आपने बहुत-से उपवन देखे होंगे। हम आपको एक अद्भुत उपवन के विषय में बताते हैं, जो संसार की सात आश्चर्यजनक वस्तुओं में से एक था। कारण, यह हवा में लटकता था। दक्षिण-पश्चिमी एशिया के इराक (मेसोपोटामिया) देश में फरात नदी के किनारे के मैदान में एक बड़ा सुंदर नगर था। इस नगर के चारो ओर बड़ी ऊंची दीवार का परकोटा था। इस परकोटे में बड़े-बड़े द्वार लगे हुए थे। इस नगर का नाम बैबिलन है।
आज से दो हजार वर्ष पहले बैबिलन संसार का एक बहुत बड़ा और धनी नगर था। वहां नबूचद नाजिर नामक एक बड़ा शक्तिशाली बादशाह राज्य करता था। इस बादशाह ने आक्रमण करके आसपास के देशों को ही नहीं, वरन् संसार के दूर-दूर के देशों को भी जीत लिया था।
जिस समय बादशाह को लड़ने से अवकाश मिल जाता था, वह अपने नगर में रहकर हजारों कारीगरों को मंदिर बनाने और शहर के परकोटे को मजबूत करने में जुटा देता था। एक बार बादशाह की इच्छा एक सुंदर महल बनवाने की हुई। फिर क्या था! उसने इतने लोग जुटा दिये कि महल पंद्रह दिन में बनकर तैयार हो गया।
बादशाह उन दिनों एक दूसरे देश की यात्रा करने गया हुआ था। वहां बादशाह की भेंट उस देश के बादशाह की पुत्री से हुई। बादशाह ने शाहजादी से विवाह कर लिया और दोनों बैबिलन लौट आए। शहजादी अब रानी हो गई थी और उसके रहने के लिए एक सुंदर महल भी था, फिर भी वह अनमनी-सी रहती थी, क्योंकि उसे रह-रहकर अपने देश के पर्वतों का ध्यान आता था। यहां के मैदान की हवा बड़ी ही गरम थी। रानी हरदम अपने मन में सोचती, "यदि पिता के घर होती तो पर्वतों की चोटियों पर चढ़कर शीतल वायु का सेवन करती।" धीरे-धीरे उसकी सेहत गिरने लगी।
बादशाह ने यह देखा तो उसे चिंता हुई। एक दिन उसने रानी से पूछा, "दिन-दिन तुम्हारी सेहत क्यों गिर रही है? तुम्हारी यह हालत मुझसे नहीं देखी जाती। जो इच्छा हो, नि:संकोच कहो। मैं तुम्हें प्रसन्न करने के लिए सब कुछ करने को तैयार हूं।"
रानी ने बादशाह से कहा, "मैं जानती हूं कि आप मेरे लिए सबकुछ करने को तैयार हैं, पर अपने चौरस देश में इच्छा होने पर भी पर्वत और पहाड़ियां तो नहीं बनवा सकते।"
बात सच थी; किंतु बादशाह भी सहज हार माननेवाला नहीं था। उसके पास अनेक कारीगर थे। बादशाह ने तुरंत उन सबको काम पर जुटा दिया। इन लोगों ने सबसे पहले एक वर्गाकार भूमि को ढकने के लिए बड़े-बड़े खंभों की कतारें बनाईं। हर कतार अपने आगे की कतार से ऊंची थी और खंभे पकी हुई इंटों तथा राल से बनाए गए थे। भीतर से वे खोखले थे। उनके भीतर मिट्टी भरी गई। उन खंभों को घुमावों द्वारा एक-दूसरे से मिला दिया गया। घुमावों के ऊपर छतें बनाई गईं।
खंभे इतने बड़े और मजबूत थे कि उनमें से बड़े से बड़े वृक्ष लगाए जा सकते थे। छतों पर भी मिट्टी बिछाई गई थी और उस पर पैधे लगाए जा सकते थे। छतों पर भी मिट्टी बिछाई गई थी और उस पर वृक्ष, झाड़ियां तथा पुष्प लगाए गए थे। इन छतों पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बना दी गई थीं। छतें एक बड़ी सीढ़ी की तरह एक दूसरों से ऊपर निकाली हुई थी। वृक्षों, लताओं और पुष्पों से भर जाने के कारण ये बड़ी मनमोहक लगती थीं।
बाग की सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता होती हैं; किंतु बैबिलन में तो बहुत ही कम वर्षा होती थी। वहां पानी फराद नदी से आता था। बाग की सिंचाई का सवाल उठा। बाग फरात नदी के किनारे पर बनाया गया था। बादशाह ने अपने दास-दासियों को आज्ञा दी कि वे हर समय डोलों में पानी भर भरकर बाग को सींचते रहें।
इस बाग को सींचने में दास-दासियों को कठिन परिश्रम करना पड़ता था, क्योंकि सबसे ऊंचे घुमाव की ऊंचाई 75 गज थी। देखते-देखते ही एक बड़ा ही सुंदर उपवन बन गया। रानी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। अब वह छतों पर चढ़कर वृक्षों के नीचे जा बैठती और इच्छानुसार ठंडक का आनंद लेती। उपवन राजमहल और उसके पिता के बाग से कहीं अधिक ठंडा था।
इन्हीं छतों को लटकते हुए उपवन के नाम से पुकारते थे, किंतु अब तो उनकी याद ही शेष रह गई है। सैकड़ों वर्ष से ये उपवन खंडहरों के रूप में पड़े हैं। किसी समय में इस स्थान को सुंदरता को देखकर लोग दांतों तले उंगली दबाते थे।
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