हिन्दू वर्ष में 12 माह होते हैं, लेकिन यह वर्ष करीब 13 माह का होगा। 12 चंद्र मास लगभग 354 दिन का होता है, जिसमें सूर्य की 12 संक्रांतियां होती हैं। जिस चन्द्र मास में सूर्य की संक्रांति नहीं होती है उसे मलमास या पुरुषोत्तम मास कहा जाता है| इस बार मलमास 16 दिसंबर दिन सोमवार से शुरू होकर 13 जनवरी की मध्यरात्रि तक रहेगा|
आपको बता दें कि मलमास के प्रारम्भ होते ही शुभ मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाएगी| सूर्य और गुरु दोनों ग्रहों का मिलान होने के कारण ही मलमास होता है| इस मलमास में दान पुण्य और सेवा करने का बहुत महत्व है, ऐसा करने से सालभर तक मनुष्य रोग मुक्त होने के साथ-साथ गृहों की शांति भी होती है| किसी भी विवाह संस्कार के लिए सूर्य गृह और गुरु (वृहस्पति) का होना बहुत जरुरी होता है, इसीलिए मल मास में विवाह कार्य नहीं होते है|
मलमास देव आराधना को सबसे उत्तम समय माना जाता है। इसमें भगवान शिव व विष्णु की स्तुति करने से साधक को अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। धर्म ग्रंथों में ऐसे कई श्लोक भी वर्णित है जिनका जप यदि पुरुषोत्तम मास में किया जाए तो अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। अगर अतुल्य पुण्य की प्राप्ति चाहते हैं तो श्रीकौण्डिन्य ऋषि के इस मंत्र का जप करें-
मंत्र-
गोवद्र्धनधरं वन्दे गोपालं गोपरूपिणम्।
गोकुलोत्सवमीशानं गोविन्दं गोपिकाप्रियम्।।
इस मंत्र का जप करते समय पीत वस्त्र (पीला कपड़ा) धारण करें| धर्मग्रंथों में लिखा है कि इस मंत्र का एक महीने तक भक्तिपूर्वक बार-बार जप करने से अतुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है|
जाने मलमास को क्यों कहते हैं पुरुषोत्तम मास -
एक पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीनकाल में जब अधिक मास उत्पन्न हुआ, तब स्वामी रहित होने के कारण उसे मलमास कहा गया। सर्वत्र निंदा होने पर वह बैकुंठ में भगवान विष्णु के पास पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाई। मलमास की पीड़ा सुनकर भगवान विष्णु उसे सर्वेश्वर श्रीकृष्ण के पास ले गए। मलमास का दुख जानने के बाद भगवान श्रीकृष्ण उसे वरदान देते हुए बोले, मैं अब मलमास का स्वामी हो गया हूं, इसलिए आज से यह पुरुषोत्तम के नाम से जाना जाएगा।
पुरुषोत्तम मास में सारे काम भगवान को प्रसन्न करने के लिए निष्काम भाव से ही किए जाते हैं। इससे प्राणी में पवित्रता का संचार होता है। इस मास में किसी कामना की पूर्ति के लिए अनुष्ठान का आयोजन या विवाह, मुंडन, यज्ञोपवीत, नींव-पूजन, गृह-प्रवेश आदि सांसारिक कार्य सर्वथा निषिद्ध हैं। अधिक मास में भगवान विष्णु या श्रीकृष्ण की उपासना, जप, व्रत, दान आदि करना चाहिए। संतों का कहना है कि अधिक मास में की गई साधना हमें ईश्वर के निकट ले जाती है।
जो काम काम्य कर्म अधिकमास से पहले ही आरंभ किए जा चुके हैं उन्हें इस माह में किया जा सकता है| शुद्धमास में मृत व्यक्ति का प्रथम वार्षिक श्राद्ध किया जा सकता है| यदि कोई व्यक्ति अत्यधिक बीमार है और रोग की निवृति के लिए रुद्र जपादि अनुष्ठान किया जा सकता है|
कपिल षष्ठी जैसे दुर्लभ योगों का प्रयोग, संतान जन्म के कृत्य, पितृ श्राद्ध, गर्भाधान, पुंसवन संस्कार तथा सीमांत संस्कार आदि किए जा सकते हैं| ऎसे संस्कार भी किए जा सकते हैं जो एक नियत अवधि में समाप्त हो रहे हों| इस मास में पराया अन्न और तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए|
जो व्यक्ति मलमास में पूरे माह व्रत का पालन करते हैं उन्हें जमीन पर ही सोना चाहिए| व्रत का पालन करने वाले व्यक्ति को केवल एक समय सादा भोजन करना चाहिए| इस मास में व्रत रखते हुए भगवान पुरुषोत्तम अर्थात विष्णु का श्रद्धापूर्वक पूजन करना चाहिए तथा मंत्र जाप करना चाहिए|
अधिकमास की समाप्ति पर स्नान, दान तथा जप आदि का अत्यधिक महत्व होता है| इस मास की समाप्ति पर व्रत का उद्यापन करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और अपनी श्रद्धानुसार दानादि करना चाहिए| इसके अतिरिक्त एक महत्वपूर्ण बात यह है कि मलमास माहात्म्य की कथा का पाठ श्रद्धापूर्वक प्रात: एक सुनिश्चित समय पर करना चाहिए|
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