हिंदुत्व परंपराओं के अनुसार भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी कहते हैं, इस दिन व्रत रखना चाहिए। इसके लिए स्नानादि से निवृत्त हो वेदी बनाते हैं। उस पर विविध रंगों से अष्टदल कमल का चित्रण करते हैं, फिर मुनियों की मूर्ति उकेर कर विधान सहित पूजा करते हैं।
ऋषि पंचमी व्रत-
प्रात:काल से दोपहर तक उपवास करके दोपहर को तालाब में जाकर अपामार्ग की दातून से दांत साफ कर, शरीर में मिट्टी लगाकर स्नान करना चाहिये| उसके बाद गेरू या गोबर से पूजन स्थल को लीपें|
सर्वतोभद्रमंडल बनाकर, मिट्टी या तांबे के कलश के कलश में जौ भर कर स्थापना करें। पंचरत्न,फूल,गंध,अक्षत से पूजन कर व्रत का संकल्प करें। कलश के पास अष्टदल कमल बनाकर, उसके दलों में कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जगदग्नि और वशिष्ठ ऋषियों की पत्नी की प्रतिष्ठा करें।
इन सभी सप्तऋषियों का 16 वस्तुओं से पूजन करें। ऋषि पंचमी में साठी का चावल और दही खाई जाती है। नमक और हल से जुते अन्न इस व्रत में नहीं खाये जाते हैं। पूजन के बाद कलश सामग्री को किसी ब्राह्मण को दान करें। पूजा के बाद ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद ही स्वयं भोजन करें।
ऋषी पंचमी व्रत की कहानी-
एक नगर में एक ब्राह्मण रहता था ।एक दिन ब्राह्मण की पत्नी ने ऋषि पंचमी का उद्यापन करने की सोची ।इसकेलिए उसने ऋषियों को भोजन के लिए आमंत्रण दिया। लेकिन दुसरे दिन वह दूर की हो गई ।उसने सोचा अब क्या करे ,वह अपनी पड़ोसन के पास गई और पूछा कि मैं क्या करु, मैंने तो आज ऋषियों को जीमने का न्योता दिया है और आज ही मैं दूर की हो गई! पड़ोसन ने कहा कि तू सात बार नहा ले और सात बार कपड़े बदल ले और फिर खाना बना ले। उसने ऐसा ही किया ।
ऋषि जब घर आए और ब्राहमण की पत्नी से पूछा कि हम 12 वर्ष में आँख खोलते हैं भोजन में कोई आपत्ति तो नहीं हैं! ब्राहमण की पत्नी ने कहा कि भोजन में कोई आपत्ति नहीं है आप आँख खोलिए ।ऋषियों ने जैसे ही आँख खोली तो देखा कि भोजन में लटकीड़े हैं, यह देखकर उन्होंने ब्राहमण व उसकी पत्नी को श्राप दे दिया। उनके श्राप के कारण अगले जन्म में ब्राहमण ने तो बैल का व उसकी पत्नी ने कुतिया के रूप में जन्म लिया। दोनों अपने बेटे के यहाँ रहने लगे।
बेटा बहुत धार्मिक था। एक दिन लडके के माता-पिता के श्राद्ध का दिन आया, इसलिए उसने ब्राहमणों को भोजन पर बुलाया। यह देख बैल व कुतिया बाते करने लगे की आज तो अपना बेटा श्राद कर रहा हैं ।खीर पुड़ी खाने को मिलेगी। ब्राह्मन के बेटे की बहु खीर बनाने के लिए दूध चूल्हे पर चढ़ा कर अन्दर गई तो दूध में एक छिपकली का बच्चा गिर गया। कुतिया यह देख रही थी। उसनें सोचा की ब्राहमण यह खीर खायेगें तो मर जायेगें और अपने बहु/बेटे को श्राप लगेगा। ऐसा सोचकर उसनें दूध कि भगोने में मुहँ लगा दिया।
बहु ने ये सब देख लिया। उसे बहुत क्रोध आया, उसनें चूल्हे की लकड़ी निकाल कर कुतिया को बहुत मारा। उसकी कमर टूट गई। बहु ने उस दूध को फैका और दुबारा से रसोई बनाई व आमंत्रित ब्रह्मण ब्राह्मणी को जीमाया। बहु रोज़ कुतिया को रोटी देती थी, पर उस दिन खाने को कुछ भी नहीं दिया। रात को कुतिया बैल के पास गई और बोली आज तो मूझे बहु ने बहुत मारा मेरी कमर ही टूट गई और रोटी भी नहीं दी। बैल बोला आज मैं भी बहुत भूखा हूँ, आज मुझे भी खाने को कुछ नहीं मिला।
दोनों बातें कर रहे थे कि तुने पिछले जन्म में दूर की होने पर भी ऋषियों के लिए खाना बनाया था अत: उन्ही के श्राप के कारण हमे ये सब भुगतना पड़ रहा हैं। वे दोनों जब ये बाते कर रहें थे, तो उनके बेटे ने उनकी बाते सुन ली। उसे अपने माता-पिता के बारे में ये सब सुन कर बहुत दु:ख हुआ। उसने कुतिया को रोटी दी और बैल को चारा दिया। दुसरे दिन वह ऋषयो के पास गया और अपने माता-पिता की मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि बोले की भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पंचमी को व्रत करना और अपने माता-पिता को ऋषियों के नहाये पानी से नहलाना। उसने एसा ही किया और अपने माता-पिता को कुतिया बैल की योनी से मुक्ति करायी ।
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