भारतीय संस्कृति में मार्गशीर्ष मास का अपना एक विशेष महत्व होता है। इस मास में सांसारिक विषयों से ध्यान हटाकर आध्यात्मिक से रिश्ता जोडा जाता है। मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को विष्णु सप्तमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत किया जाता है। इस बार विष्णु सप्तमी 18 दिसंबर दिन शुक्रवार को पड़ रही है। मान्यता है कि विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कार्य सफल होते हैं। विष्णु पुराण में शुक्लपक्ष की विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्यदायिनी कहा गया है। इस तिथि में सूर्यनारायण का पूजन करने से रोग-मुक्ति मिलती है।
इस व्रत को रखने वाले सप्तमी का व्रत करने वाले को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृत होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद प्रात:काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए। और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए। निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए। सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है। पूजा पाठ करने के बाद इस व्रत की कथा सुननी चाहिए। व्रत की कथा सुनने के बाद सांय काल में भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप, फल, फूल और सुगन्ध से करते हुए नैवैध का भोग भगवान को लगाना चाहिए। और भगवान की आरती करनी चाहिए।
भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं सर्वव्यापक भगवान श्री विष्णु समस्त संसार में व्याप्त हैं कण-कण में उन्हीं का वास है उन्हीं से जीवन का संचार संभव हो पाता है संपूर्ण विश्व भगवान विष्णु की शक्ति से ही संचालित है वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं। अत: विष्णु सप्तमी व्रत करते हुए जो भी प्रभु विष्णु का ध्यान मन करता है वह समस्त भव सागरों को पार करके विष्णु धाम को पाता है।
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