6 साल पहले गंगा में किया था बेटी का अंतिम संस्कार, आज वह वापस आ गई

शहडोल: कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाये घट जाती है जिन पर यकीन करना मुश्किल होता है। ऐसी ही एक घटना हाल ही में मध्य प्रदेश के शहडोल में घटी है जहाँ गंगा में प्रवाहित की गई एक 12 वर्षीय लड़की छह साल बाद जिंदा मिली है। घटना आज से छह साल पहले की है, जब ब्यौहारी तहसील के कुंआ गांव निवासी झुरू कचेर की बेटी स्वाति एक रात खाना खाकर सो रही थी, तभी उसके पेट में अचानक असहनीय पीड़ा हुई और मुंह से झाग भी गिरने लगा। परिजनों ने आनन-फानन में गांव के ही एक डॉक्टर को दिखाया, जहां डॉक्टर ने बच्ची को मृत घोषित कर दिया। झुरू कचेर की एक ही बेटी थी, जिसकी मौत की खबर के बाद परिवार में पहाड़ सा टूट पड़ा।

स्वाति के मौत के बाद परिजनों ने उसे इलाहबाद में गंगा में प्रवाहित करने का फैसला किया और उसे वहां ले गए। वजन कम होने के कारण परिजन उसके शरीर में पत्थर बांध कर जल में प्रवाहित कर लौट आये, लेकिन वृंदावन के साधुओं की नजर जब बच्ची पर पड़ी तो उसे गंगा से निकाल कर डॉक्टर के पास ले गए, जहां उसकी सांसे चलती मिली और उसका इलाज करवाया तो स्वस्थ्य हो गई। स्वस्थ्य होने पर वो साधुओं के साथ ही रहने लगी। यहीं रहकर स्वाति ने कथावाचन सीख लिया। साधु-संतों ने स्वाति को 12 साल का संकल्प दिलाया है। इसके बाद ही वह अपने घर जा सकेगी।

फरवरी में उमरिया जिले के मुड़गुड़ी गांव के यादव परिवार में भागवत कथा थी। इसमें वृंदावन से बतौर कथावाचक स्वाति भी पहुंची। भागवत में स्वाति के बड़े पिता भी गए थे। स्वाति यहां अपने बड़े पिता नारेन्द्र कचेर को देखते ही पहचान गई। सूचना मिलते ही बच्ची के माता-पिता भी उसे देखने पहुंचे। बच्ची ने सभी को पहचान लिया। बीते दिनों होली के समय बच्ची के परिजन उसे घुमाने वृंदावन से अपने गांव लाए थे। इसके बाद वो वापस वृंदावन चली गई। बाद में गांव आकर स्वाति यहां आश्रम बनाना चाहती है।

आपको बता दें कि एक ऐसी ही घटना कुछ साल पहले उत्तर प्रदेश के बरेली में देखने को मिला था जहाँ एक युवक को उसके परिजनों ने मृत समझकर गंगा में बहा दिया था लेकिन 14 साल बाद वह युवक वापस अपने घर आ गया। उत्तर प्रदेश के बरेली के थाना क्षेत्र देबरनिया के भुड़वा नगला गाँव के कृषक नन्थू लाल का 23 वर्षीय पुत्र छत्रपाल को 14 वर्ष पूर्व खेत मे काम करते समय सर्पदंश से मौत हो गयी थी| छत्रपाल की मौत के बाद परिजनो ने अन्य सैकड़ो ग्रामीणो के साथ जाकर रामगंगा में छत्रपाल की लाश को जल समाधि देकर अंतिम संस्कार कर दिया ,लेकिन आज 14 बर्ष बाद मृतक छत्रपाल परिजनों के पास जिन्दा होकर अपने घर लौटा है इस चमत्कार से ग्रामीणो में उत्साह व छत्रपाल को देखने होड़ में आसपास के तमाम ग्रामीणो की भारी भीड़ उमड़ पड़ी है|

मृतक छत्रपाल को 14 वर्ष बाद जिन्दा देखकर उस के परिजनो व पत्त्नी बच्चो को तो अपार ख़ुशी के बाद चमत्कारी कर्तव्य देखकर पुरे परिवार में खुशियाँ ही खुशियाँ दिख रही है वही हजारो की तादायत में ग्रामीणो का हुजूम नन्थुलाल के घर के बाहर उमड़ पड़ा है| मृतक छत्रपाल को देखकर सभी ग्रामीण अचम्भितब हो कर देख रहे है कि आखिर मौत के बाद आँखों के सामने लाश का हुआ अंतिम संस्कार फिर यह चमत्कार की छत्रपाल जिन्दा होकर सामने खड़ा है यह भगवन की लीला क्या है जबकि छत्रपाल को डॉक्टरो ने मृतक घोषित किया और सभी ग्रामीणो ने मिलकर उसकी लाश का अंतिम संस्कार 14 वर्ष पूर्व कर दिया था|

आज वही छत्रपाल उन्ही ग्रामीणो व परिवार के लोगो के सामने जिन्दा खड़ा हुआ है और अब छत्रपाल के पिता, पत्नी, भाई, माँ तमाम परिजन व ग्रामीण अपने-अपने तरीके से छत्रपाल के साथ पूर्व जीवन में बीती घटनाओ को पूछ-पूछ कर जीवित छत्रपाल की परीक्षा ले रहे है और मृतक छत्रपाल है कि हर सवालों का जवाब स्पष्ट रूप से देता चला जा रहा है| छत्रपाल के गुरु सपेरो ने पिछली जिंदगी भुला कर छत्रपाल को नया जीवन देकर उसका नाम भी नया रखते हुए रूपकिशोर नाम रख दिया है|

नन्थुलाल के पुत्र छत्रपाल को जिन जिन्दा कर के घर पर लाने वाले गुरु सपेरे हरिसिंह को नन्थुलाल का परिवार ही नहीं तमाम ग्रामीण भी उन्हें भगवान रूपी इंसान मानने के लिये मजबूर हैं| वही चमत्कारी सपेरा भी निस्वार्थ समाज सेवा करते हुए तमाम मरे हुए लोगो को जिन्दा कर के अपने साथ लिये घूम रहा है| अपनी इस कला का प्रदर्शन करते हुए अपने साथ अन्य लाये हुए चेलो को भी इसी प्रकार जिन्दा कर अपना शिष्य बनाने की बात कह रहे है सपेरे हरिसिंह भी आपबीती सुनते हुए बताते है कि वह भी सांप के डसने से मर गये थे और उनके परिजनो ने सामजिक रीतिरिवाजो के अनुसार उनकी लाश को भी परिजनो ने गंगा में बहा दिया था हरिसिंह की लाश बहती हुई बंगाल जा पहुँची वहाँ एक महात्मा ने हरीसिंह की लाश देखकर उसे जिन्दा कर दिया और अपना शिष्य बना लिया हरिसिंह भी अपने गुरु का परम शिष्य बन गया और गुरु सेवा करते-करते हरिसिंह ने भी बंगाल के अपने गुरु से सारी गुरु विद्या सीख ली और आज उसी गुरु विद्या से समाज सेवा करते हुए सर्पदश से मरे हुए लोगो को जीवन दान देकर अपने जीवन को सार्थक बना रहा है|

जड़ी बूटियों के ज्ञानी सपेरे हरिसिंह लाइलाज बीमारियो को फ्री सेवा भाव से ही ठीक कर देते है| सांप के काटने से मर चुके दर्जनो लोगो को इन्होने जीवन दान देकर उनके परिजनों को बगैर कीमत वसूले सौप है आज वो परिवार जिनके परिजन मृत्यु को प्राप्त हो चुके है और उन युवकों को सपेरे गुरु ने जिन्दा कर के उनके परिजनो को सौपा है वह लोग उनको अपना गुरु मानते हुए भगवान रूपी इंसान मान रहे है| सपेरे हरिसिंह का कहना है कि वह सांप के काटे का इलाज फ्री करते हुए बीन बजाकर सापो की लीला दिखाते हुए साधू-सन्यासी व ब्रम्ह्चर्य जीवन व्यतीत कर रहे है| निस्वार्थ भाव से जड़ी बूटियों के माध्यम से लोगो का फ्री इलाज भी कर देते है संपर्क के लिये इन्होने अपना मोबाइल नंबर भी लोगो को दे रखा है-8941943751 .

मौत के बाद छत्रपाल को जीवन दान देकर सपेरा हरीसिंह अपने कबीलो की परंपरा को बताते हुए बोले की जिन्दा किया हुआ इंसान कम से कम बारह वर्ष तक हमारे साथ रहता है उसके बाद वह अपनी वा पूर्व परिजनो की मर्जी से अपने घर जा सकता है नहीं तो वह जीवन भर हमारे साथ रहे और हमारी तरह बीन बजाये और गुरु शिक्षा ग्रहण करते हुए साधू रूपी जीवन जिये भगवान रूपी सपेरे दावा करते है कि सांप का काटा हुआ इंसान मर जाये और उसके नाक, कान, मुँह से खून नहीं निकला हो तो हम दस दिन एक महीना बाद भी उसे जिन्दा कर लेते है इसी प्रकार जिन्दा किये हुए कई लोग आज अपने परिवार के साथ जिंदगिया जी रहे है| इस काम का हम लोग किसी से कोई रुपया पैसा नहीं लेते है|

हरिसिंह सपेरे बताते है कि सांप के काटे का इलाज सबसे आसान है इस इलाज में इस्तमाल लाने वाला मुख्य यंत्र साइकिल में हवा डालने वाला पम्प होता है इसी पम्प से हम मरे हुए लोगो को पुनः जीवन दान देते है सपेरे हरी सिंह अपने कबीलो के साथ ग्राम शरीफ नगर इटौआ में अपने डेरो समेत रुके है थे और साथ में पड़ोस के गाँव भड़वा नगला के नन्थुलाल का मृतक बेटा भी था अचानक मृतक छत्रपाल की याददाश्त आ गयी और वह स्थानीय लोगो को बताने लगा कि मै पड़ौस के गाँव भड़वा के नन्थुलाल का पुत्र हूँ 14 वर्ष पूर्व साँप के काटे जाने से मौत हो गयी थी सपेरे गुरु हरिसिंह ने अपनी विद्या से मुझे जीवित कर लिया|

इस चमत्कार भरी कहानी सुनते ही पूरे क्षेत्र में अफरा तफरी मच गयी और खबर आग की तरह फैलते हुई पड़ौसी गांव भड़वा नगला के नन्थुलाल तक पहुँच गयी फिर तो ग्रामीण क्या परिजन क्या हजारो की तादात में लोगो का हुजूम सपेरो के काफिलो की तरफ उमड़ पड़ा और होड़ सी मच गयी उस मृतक युवक को जिन्दा देखने के लिये जो 14 वर्ष पूर्व मर गया था आज वह जिन्दा कैसे हो गया है इन तमाम सवालो का जवाब खोजने में लगे लोगो में चर्चा की मुख्य वजह तो थी ही वही मृतक के परिजन भी अन्य ग्रामीणो के साथ सपेरो के डेरे पर पहुँच गये और अपने खोये हुए लाल को पहचानने में जरा सी भी देरी नहीं की और तमाम मिन्नतो और खेरो खुशमात से सपेरो को अपने घर नन्थुलाल ले आया|

ऐसा आपने फ़िल्मी कहानियो में देखा होगा पर यहाँ यह हकीकत है कि पूरा गाँव इस कहानी को चमत्कार मान रहा है कला हो या चमत्कार या फिर जड़ीबूटियों की ताकत पर गुरु सपेरा हरिसिंह किसी भी चमत्कारी से कम नहीं।

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