महावीर जयंती: ऐसे बने वर्धमान से महावीर स्वामी

24वें तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी की जयंती आज देशभर में मनाई जा रही है| महावीर स्वामी ऐसे अवतरी थे जिन्होनें तत्कालीन समाज में व्याप्त अवांछनीयता का निराकरण कर समाज को नयी व सार्थक दिशा दी|महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रात:काल प्रभातफेरी निकालते हैं| भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा का आयोजन भी किया जाता है| इसके बाद महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है व शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है|

क्या है धारणा

जैन धर्म के अनुसार, भगवान महावीर का जन्म 540 ई.पूर्व कुण्ड ग्राम (वर्तमान बिहार) के एक राजघराने में राजकुमार के रूप में चैत्र शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को हुआ था| इनके बचपन का नाम वर्धमान था, यह लिच्छवी कुल के राजा सिद्दार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे| जैन धर्म के धर्मियों का मानना है कि वर्धमान ने घोर तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी जिस कारण वह विजेता हुए और उनको ‘महावीर’ कहा गया व उनके अनुयायी ‘जैन’ कहलाए| अहिंसा परमो धर्म: के प्रवर्तक के रूप में महावीर स्वामी की शिक्षाएं वर्तमान में कहीं अधिक प्रासंगिक और अनुकरणीय हैं|

महावीर के उपदेश

महावीर जी ने अपने उपदेशों द्वारा समाज का कल्याण किया उनकी शिक्षाओं में मुख्य बातें थी कि सत्य का पालन करो, अहिंसा को अपनाओ, जियो और जीने दो। इसके अतिरिक्त उन्होंने पांच महाव्रत, पांच अणुव्रत, पांच समिति तथा छ: आवश्यक नियमों का विस्तार पूर्वक उल्लेख किया, जो जैन धर्म के प्रमुख आधार हुए|

महावीर ने अपने प्रत्येक अनुयायी के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्राह्मचर्य व अपरिग्रह इन पांच व्रतों का पालन अनिवार्य बताया है, लेकिन इन सभी में अहिंसा की भावना प्रमुख है| उनकी मान्यता है कि मानव व दानव में केवल अहिंसा का ही अंतर है| जबसे मानव ने अहिंसा को भुलाया तभी से वह दानव होता जा रहा है और उसकी दानवी वृत्ति का अभिशाप आज समस्त विश्व भोगने को विवश है| उनका कहना था कि संसार के प्रत्येक जीव को अपना जीवन अति प्रिय है, जो उसको नष्ट करने व उसको क्षति पहुंचाने को उद्यत रहता वह हिंसक और दानव है| इसके विपरीत जो उसकी रक्षा करता है वह अहिंसक और वही मानव है|

महावीर ने बताई जीवन की ‘बारह भावना’

महावीर स्वामी ने संसार में जीव की स्थिति और कर्मानुसार उसकी भली-बुरी गति के संदर्भ में गहन चिंतन किया| इस गहन चिंतन के बाद उन्होंने जिस जीवन प्रणाली का प्रतिपादन किया वह जैन धर्म में ‘बारह भावना’ के नाम से प्रसिद्ध है|

1. अनित्य भावना- उन्होंने कहा इंद्रिय सुख क्षणभंगुर है इसलिए इस अनित्य जगत के लिए मैं उत्सुक नहीं होऊंगा|
2. अशरण भावना- अर्थात जिस प्रकार निर्जन वन में सिंह के पंजे में आये शिकार के लिए कोई शरण नहीं होती, उसी प्रकार सांसारिक प्राणियों की रोग व मृत्यु से रक्षा करने वाला कोई नहीं है|
3. संसारानुप्रेक्षा भावना-जिसका अर्थ है अज्ञानी भोग विषयों को भी सुख मानते हैं, लेकिन ज्ञानी उनको नरक का निमित्त समझते हैं, इसलिए मानव को सत्कर्मों द्वारा पाप से छूटने का यत्न करना चाहिए|
4. एकत्व भावना- अर्थात प्राणी को जन्म के बाद अकेले ही संसार रूपी वन में भटकना होता है|
5. अन्यत्व भावना- इसका अर्थ है कि जगत में कोई भी संबंध स्थित नहीं है| माता-पिता, पत्नी व संतान भी अपने नहीं है और समस्त सांसारिक पदार्थ व्यक्ति से अलग है|
6. अशुचि भावना- इसका अर्थ है रुधिर, वीर्य आदि से उत्पन्न यह शरीर मल मूत्र आदि से भरा हुआ है| अत: इस पर गर्व करना अनुचित है|
7. अस्तव भावना- जिस प्रकार छिद्र युक्त जहाज जल में डूब जाता है उसी प्रकार जीव भी कर्मों के अनुसार इस भव सागर में डूबता-उतराता रहता है|
8. निर्जरा भावना- इसका अर्थ है पूर्व कर्मों को तपस्या द्वारा क्षय करना ही योगियों का कर्तव्य है|

इस तरह कुल बारह भावनाओं के परिमार्जन से महावीर ने जीवन को मोक्ष की दिशा दी|

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी थे महावीर से प्रभावित

अहिंसा को अपने जीवन में उतारने वाले राष्ट्रपिता व महात्मा गांधी कहकर सम्बोधित किये जाने वाले मोहन दास करमचंद गांधी भी महावीर से प्रभावित थे| उन्होंने गुजरात के एक जैन विचारक के उपदेशों से प्रभावित होकर महावीर स्वामी के अहिंसा तत्व दर्शन का गहन अध्ययन किया| जिसके बाद महात्मा गांधी, महावीर के विचारों से इतने प्रभावित हुए कि आजीवन उनके अनुयायी बने रहे| उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का आधार अहिंसा पर रखकर पूरे संसार के सामने एक एक अनूठा आदर्श रखा|

वर्ष 1919 में एक सभा में भाषण देते हुए महात्मा गांधी ने कहा, “मैं विश्वासपूर्वक कहता हूं कि महावीर स्वामी का नाम इस समय यदि किसी सिद्धान्त के लिए पूजा जाता है तो वह अहिंसा ही है| मैंने अपनी शक्ति के अनुसार संसार के जिन अलग-अलग धर्मों का अध्ययन किया है और मुझे उनके जो सिद्धांत योग्य लगे, मैं उनका आचरण करता रहा हूं| मैं स्वयं को एक पक्का सनातनी हिन्दू मानता हूं, परन्तु मैं नहीं समझता कि जैन धर्म दूसरे दर्शनों की अपेक्षा हल्का है| मैं जानता हूं कि जो सच्चा हिन्दू है वह जैन है और जो सच्चा जैन है, वह हिन्दू है| प्रत्येक धर्म की उच्चता इसी बात में है कि उस धर्म में अहिंसा का तत्व कितने परिमाण में है और इस तत्व को यदि किसी ने अधिक से अधिक विकसित किया है तो वे महावीर स्वामी थे|”

महावीर ने बलि प्रथा जैसी कुरीतियों का खुलकर विरोध किया| भगवान महावीर ने ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त प्रचारित कर मानव में वैचारिक सहिष्णुता, अहिंसा और प्राणी मात्र के प्रति सदभावना जगाने का प्रयास किया| हम भगवान महावीर के बताए आदर्शो को आत्मसात कर समाज में सदभाव का वातावरण बनाने में भागीदारी निभा सकते है|

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