तेलंगाना में प्रमुख जलाशयों के जलस्तर में तेजी से कमी आने के कारण पेयजल का गंभीर संकट पैदा हो गया है और ऊपर से पड़ रही भीषण गर्मी ने खेती को तबाह करके रख दिया है। यहां के लोगों का कहना है कि ऐसा सूखा उन्होंने इससे पहले कभी नहीं देखा। देश का सबसे नया राज्य दूसरी बार गंभीर सूखे की चपेट में है। पानी का संकट न सिर्फ गांवों में है, बल्कि यह शहरों तक और राजधानी हैदराबाद तक पहुंच चुका है। वर्षा के जल पर निर्भर रहनेवाले इस राज्य से लगभग 3.5 करोड़ छोटे किसानों का दूसरे राज्यों के शहरों में पलायन हो चुका है।
पानी की कमी के कारण किसान अपने पशुओं को बेहद कम कीमत पर बेच रहे हैं। किसान संगठनों के मुताबिक, सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों -महबूबनगर, रंगा रेड्डी, मेडक, निजामाबाद और आदिलाबाद- से लगभग 14 लाख किसानों का पलायन हुआ है। अखिल भारतीय किसान सभा के उपाअध्यक्ष ए. एस. माला रेड्डी ने बताया, "पलायन यह दिखाता है कि यहां की स्थिति कितनी भयावह है।" यहां के लोग काम की तलाश में ज्यादातर मुंबई, भिवंडी, अहमदाबाद और सूरत जा रहे हैं।
किसान जिन पशुओं को कृषि और दुग्ध उत्पादों के लिए पाल रहे थे, उन्हें अब वे 20-30 फीसदी कम कीमत पर बेच रहे हैं। माला रेड्डी ने बताया, "बाजार में सैंकड़ों पशु रोज बेचने के लिए लाए जा रहे हैं।" किसानों की आत्महत्या की सबसे ज्यादा संख्या वाले इस राज्य की कृषि विकास दर नकारात्मक रही है और अब सूखे के कारण समस्या और गंभीर होने वाली है। राज्य के कुल 450 मंडलों में 231 मंडल सूखे की चपेट में है, जबकि किसान संगठनों का कहना है कि 368 मंडल सूखे की चपेट में हैं। साल 2015-16 में यहां अनाज उत्पादन 65 लाख टन रहा, जबकि लक्ष्य 1.11 करोड़ टन का था। राज्य में चावल का उत्पादन 35 लाख टन रहा, जबकि खपत 60 लाख टन की हुई। वहीं, दालों और तिलहन के उत्पादन में भी तेजी से गिरावट देखी गई।
राज्य में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) का काम कई गांवों में शुरू ही नहीं हो पाया है और जिन गांवों में काम शुरू भी हुआ है, वहां मजदूर तेज गर्मी के कारण इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं। माला रेड्डी ने बताया कि इस योजना के तहत काम कर चुके मजदूरों को अभी तक मजदूरी नहीं मिली है। तेलंगाना संयुक्त कार्रवाई समिति (जेएसी) ने कहा है कि मनरेगा के तहत मजदूरी के भुगतान में देरी संकट को और बढ़ा रहा है। जेएसी के अध्यक्ष एम. कोडनडरम ने कहा कि सभी जिलों में स्थिति भयावह है। उन्होंने बताया कि नलगोंडा जिले के लोगों ने अपने 70 फीसदी पशुओं की बिक्री कर दी है।
राज्य ने केंद्र सरकार से सूखा राहत के तहत 3,064 करोड़ रुपये की मांग की है। लेकिन नई दिल्ली ने अभी तक 791 करोड़ रुपये देने की ही घोषणा की है। इसमें से भी अभी तक केवल 400 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं। किसानों का कहना है कि फसलों के मुआवजे का वितरण अभी तक शुरू नहीं हुआ है। पेयजल की आपूर्ति के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से 555 करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने अभी तक 72 करोड़ रुपये जारी किए हैं। वहीं, सरकार की लू से हुई मौत के आंकड़ों को छिपाने को लेकर आलोचना हो रही है, जबकि अधिकारी विरोधाभासी आंकड़े जारी कर रहे हैं।
माला रेड्डी ने बताया, "एक अधिकारी के मुताबिक लू से इस साल अब तक 45 लोगों की मौत हुई है, जबकि अनाधिकृत रूप से 200 लोगों के मरने की सूचना है।" किसान सभा ने कई स्थानों पर गरीबों के लिए खिचड़ी केंद्र खोला है, जिसमें मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का निर्वाचन क्षेत्र मेडक जिले का गजवेल भी शामिल है। तेलंगाना राष्ट्र समिति की सरकार ने दावा किया है कि राहत के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के बावजूद वहां मिड डे मील के तहत भोजन मुहैया कराया जा रहा है।
सरकार ने कहा है कि वह सूखे के स्थायी निदान के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रही है। इसके तहत सिंचाई परियोजनाओं को फिर से डिजाइन किया जाएगा। सिंचाई टैंक को ठीक करने के लिए मिशन ककतिया और हरेक घर को पाइप से पीने का पानी पहुंचाने के लिए मिशन भगीरथ शुरू किया जाएगा। एक किसान नेता ने कहा कि अविभाजित आंध्र प्रदेश की सरकार ने साल 2005 से 2014 के बीच सिचाई परियोजनाओं पर 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए। लेकिन इससे केवल एक लाख एकड़ की अतिरिक्त भूमि की ही सिंचाई हो सकती है।
78 वर्षीय माला रेड्डी कहते हैं कि उन्होंने इससे खराब सूखा नहीं देखा है। "1972 में भी गंभीर सूखा का संकट पैदा हुआ था, लेकिन उस वक्त की सरकार ने गांवों में अनाज वितरण केंद्र खोलकर और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कर इससे बेहतर तरीके निपटा था।" प्रदेश के कृष्णा और गोदावरी नदियों के 14 बड़े जलाशयों में पानी का स्तर बहुत ज्यादा कम हो गया है। वहीं भूजल के स्तर में 2.5 मीटर की गिरावट आई है। हैदराबाद में पानी की आपूर्ति करनेवाले चार जलाशय पूरी तरह सूख गए हैं। एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर कृष्णा और गोदावरी नदियों के दो जलाशयों पर निर्भर है। वहीं, दूसरे शहरों में स्थितियां और भी खराब है, जहां ज्यादातर लोगों तक पाइप के जरिए पानी की आपूर्ति नहीं की जाती और वे सप्ताह में एक बार आनेवाले निगम के टैंकर पर निर्भर हैं।
पानी की कमी के कारण किसान अपने पशुओं को बेहद कम कीमत पर बेच रहे हैं। किसान संगठनों के मुताबिक, सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों -महबूबनगर, रंगा रेड्डी, मेडक, निजामाबाद और आदिलाबाद- से लगभग 14 लाख किसानों का पलायन हुआ है। अखिल भारतीय किसान सभा के उपाअध्यक्ष ए. एस. माला रेड्डी ने बताया, "पलायन यह दिखाता है कि यहां की स्थिति कितनी भयावह है।" यहां के लोग काम की तलाश में ज्यादातर मुंबई, भिवंडी, अहमदाबाद और सूरत जा रहे हैं।
किसान जिन पशुओं को कृषि और दुग्ध उत्पादों के लिए पाल रहे थे, उन्हें अब वे 20-30 फीसदी कम कीमत पर बेच रहे हैं। माला रेड्डी ने बताया, "बाजार में सैंकड़ों पशु रोज बेचने के लिए लाए जा रहे हैं।" किसानों की आत्महत्या की सबसे ज्यादा संख्या वाले इस राज्य की कृषि विकास दर नकारात्मक रही है और अब सूखे के कारण समस्या और गंभीर होने वाली है। राज्य के कुल 450 मंडलों में 231 मंडल सूखे की चपेट में है, जबकि किसान संगठनों का कहना है कि 368 मंडल सूखे की चपेट में हैं। साल 2015-16 में यहां अनाज उत्पादन 65 लाख टन रहा, जबकि लक्ष्य 1.11 करोड़ टन का था। राज्य में चावल का उत्पादन 35 लाख टन रहा, जबकि खपत 60 लाख टन की हुई। वहीं, दालों और तिलहन के उत्पादन में भी तेजी से गिरावट देखी गई।
राज्य में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (नरेगा) का काम कई गांवों में शुरू ही नहीं हो पाया है और जिन गांवों में काम शुरू भी हुआ है, वहां मजदूर तेज गर्मी के कारण इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं। माला रेड्डी ने बताया कि इस योजना के तहत काम कर चुके मजदूरों को अभी तक मजदूरी नहीं मिली है। तेलंगाना संयुक्त कार्रवाई समिति (जेएसी) ने कहा है कि मनरेगा के तहत मजदूरी के भुगतान में देरी संकट को और बढ़ा रहा है। जेएसी के अध्यक्ष एम. कोडनडरम ने कहा कि सभी जिलों में स्थिति भयावह है। उन्होंने बताया कि नलगोंडा जिले के लोगों ने अपने 70 फीसदी पशुओं की बिक्री कर दी है।
राज्य ने केंद्र सरकार से सूखा राहत के तहत 3,064 करोड़ रुपये की मांग की है। लेकिन नई दिल्ली ने अभी तक 791 करोड़ रुपये देने की ही घोषणा की है। इसमें से भी अभी तक केवल 400 करोड़ रुपये ही जारी किए गए हैं। किसानों का कहना है कि फसलों के मुआवजे का वितरण अभी तक शुरू नहीं हुआ है। पेयजल की आपूर्ति के लिए राज्य सरकार ने केंद्र से 555 करोड़ रुपये की मांग की थी, लेकिन केंद्र ने अभी तक 72 करोड़ रुपये जारी किए हैं। वहीं, सरकार की लू से हुई मौत के आंकड़ों को छिपाने को लेकर आलोचना हो रही है, जबकि अधिकारी विरोधाभासी आंकड़े जारी कर रहे हैं।
माला रेड्डी ने बताया, "एक अधिकारी के मुताबिक लू से इस साल अब तक 45 लोगों की मौत हुई है, जबकि अनाधिकृत रूप से 200 लोगों के मरने की सूचना है।" किसान सभा ने कई स्थानों पर गरीबों के लिए खिचड़ी केंद्र खोला है, जिसमें मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव का निर्वाचन क्षेत्र मेडक जिले का गजवेल भी शामिल है। तेलंगाना राष्ट्र समिति की सरकार ने दावा किया है कि राहत के लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। स्कूलों में गर्मी की छुट्टियों के बावजूद वहां मिड डे मील के तहत भोजन मुहैया कराया जा रहा है।
सरकार ने कहा है कि वह सूखे के स्थायी निदान के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना पर काम कर रही है। इसके तहत सिंचाई परियोजनाओं को फिर से डिजाइन किया जाएगा। सिंचाई टैंक को ठीक करने के लिए मिशन ककतिया और हरेक घर को पाइप से पीने का पानी पहुंचाने के लिए मिशन भगीरथ शुरू किया जाएगा। एक किसान नेता ने कहा कि अविभाजित आंध्र प्रदेश की सरकार ने साल 2005 से 2014 के बीच सिचाई परियोजनाओं पर 90,000 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए। लेकिन इससे केवल एक लाख एकड़ की अतिरिक्त भूमि की ही सिंचाई हो सकती है।
78 वर्षीय माला रेड्डी कहते हैं कि उन्होंने इससे खराब सूखा नहीं देखा है। "1972 में भी गंभीर सूखा का संकट पैदा हुआ था, लेकिन उस वक्त की सरकार ने गांवों में अनाज वितरण केंद्र खोलकर और आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति कर इससे बेहतर तरीके निपटा था।" प्रदेश के कृष्णा और गोदावरी नदियों के 14 बड़े जलाशयों में पानी का स्तर बहुत ज्यादा कम हो गया है। वहीं भूजल के स्तर में 2.5 मीटर की गिरावट आई है। हैदराबाद में पानी की आपूर्ति करनेवाले चार जलाशय पूरी तरह सूख गए हैं। एक करोड़ की आबादी वाला यह शहर कृष्णा और गोदावरी नदियों के दो जलाशयों पर निर्भर है। वहीं, दूसरे शहरों में स्थितियां और भी खराब है, जहां ज्यादातर लोगों तक पाइप के जरिए पानी की आपूर्ति नहीं की जाती और वे सप्ताह में एक बार आनेवाले निगम के टैंकर पर निर्भर हैं।
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