एक तरफ जहां छत्तीसगढ़ सहित पूरा देश में भीषण गर्मी के चलते पानी को लेकर हाहाकार मचा हुआ है, वहीं छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले का एक गांव पानी की उपलब्धता कैसे कायम रखा जा सकता है, इसकी सीख दे रहा है। घने जंगलों के बीच बसे सिवनी गांव के आदिवासी पिछले 10 साल से जल संरक्षण की अनूठी मिसाल पेश कर रहे हैं। एक छोटे से जलस्रोत को संरक्षित करके भीषण गर्मी में भी जल प्रबंधन और संरक्षण कैसे किया जा सकता है, ये आदिवासी ग्राम सिवनी के ग्रामीणों से सीखा जा सकता है।
भीषण गर्मी के इस मौसम में भी इस गांव के जलस्रोत लबालब हैं और आसपास हरियाली छाई हुई है। जल के बेहतर प्रबंधन से गांव के जलस्रोतों में पानी का स्तर बढ़ा है, जिससे लगभग 25 एकड़ क्षेत्र में ग्रीष्मकालीन खेती भी किया जाता है। राजधानी रायपुर से 90 किलोमीटर की दूरी पर गरियाबंद जिला है। गरियाबंदे जिले के अंतर्गत विकासखंड मुख्यालय छुरा से 9 किलोमीटर दूर खरखरा-रसेला मार्ग पर लगभग 900 जनसंख्या वाला आदिवासी बहुल ग्राम सिवनी स्थित है।
बताया जाता है कि इस ग्राम के पूर्व की ओर एक छोटी सी लटी डबरा नाला बहती है, इस नाले पर बहने वाली जल को रोकने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा एक छोटा सा पुलिया (रपटा) का निर्माण किया गया है, ग्रामीणों द्वारा जल के महत्व को समझते हुए इसे रोकने की पहल की गई और ग्राम पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर इस पर पुलिया का निर्माण किया गया। साथ ही छह छोटे गेट के माध्यम से पानी को रोका गया।
बरसात के दिनों में गेट को खोल दिया जाता है, परंतु बरसात खत्म होते ही गेट को बंद कर पानी रोका जाता है, जिससे गर्मी के चार महीने में भी नाले में चार फीट पानी लबालब रहता है, जिससे आसपास हरियाली तो रहती ही है, साथ-साथ गांव के लोग निस्तारी कार्य भी करते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इस नाले से न केवल गांव के ग्रामीण निस्तारी करते हैं, बल्कि जानवरों के लिए भी उपयोगी है। सिवनी की सरपंच गंगाबाई ठाकुर, सचिव गैंदराम नागेश और ग्रामीण कृष्ण कुमार ने बताया कि नाले के पानी को रोकने के लिए पहले ग्राम स्तरीय बैठक कर आपसी सहमति के बाद ग्राम पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया जाता है और समय-समय पर इसकी सफाई भी किया जाता है।
उन्होंने बताया कि गांव में लगभग 25 नलकूप हैं और 65-70 कुएं हैं, जिसके जलस्तर में वृद्धि हुई है। ग्राम पंचायत के सचिव नागेश ने बताया कि रपटा के ऊपरी भाग में एक छोटी-सी डबरी है, जिसके मेढ़ को काटकर उसमें मिलाने का विचार ग्राम पंचायत द्वारा किया जा रहा है, जिससे जल क्षेत्र में विस्तार होगा और ग्रामीणों को निस्तारी की बेहतर सुविधा मिलेगी।
भीषण गर्मी के इस मौसम में भी इस गांव के जलस्रोत लबालब हैं और आसपास हरियाली छाई हुई है। जल के बेहतर प्रबंधन से गांव के जलस्रोतों में पानी का स्तर बढ़ा है, जिससे लगभग 25 एकड़ क्षेत्र में ग्रीष्मकालीन खेती भी किया जाता है। राजधानी रायपुर से 90 किलोमीटर की दूरी पर गरियाबंद जिला है। गरियाबंदे जिले के अंतर्गत विकासखंड मुख्यालय छुरा से 9 किलोमीटर दूर खरखरा-रसेला मार्ग पर लगभग 900 जनसंख्या वाला आदिवासी बहुल ग्राम सिवनी स्थित है।
बताया जाता है कि इस ग्राम के पूर्व की ओर एक छोटी सी लटी डबरा नाला बहती है, इस नाले पर बहने वाली जल को रोकने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा एक छोटा सा पुलिया (रपटा) का निर्माण किया गया है, ग्रामीणों द्वारा जल के महत्व को समझते हुए इसे रोकने की पहल की गई और ग्राम पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर इस पर पुलिया का निर्माण किया गया। साथ ही छह छोटे गेट के माध्यम से पानी को रोका गया।
बरसात के दिनों में गेट को खोल दिया जाता है, परंतु बरसात खत्म होते ही गेट को बंद कर पानी रोका जाता है, जिससे गर्मी के चार महीने में भी नाले में चार फीट पानी लबालब रहता है, जिससे आसपास हरियाली तो रहती ही है, साथ-साथ गांव के लोग निस्तारी कार्य भी करते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि इस नाले से न केवल गांव के ग्रामीण निस्तारी करते हैं, बल्कि जानवरों के लिए भी उपयोगी है। सिवनी की सरपंच गंगाबाई ठाकुर, सचिव गैंदराम नागेश और ग्रामीण कृष्ण कुमार ने बताया कि नाले के पानी को रोकने के लिए पहले ग्राम स्तरीय बैठक कर आपसी सहमति के बाद ग्राम पंचायत द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया जाता है और समय-समय पर इसकी सफाई भी किया जाता है।
उन्होंने बताया कि गांव में लगभग 25 नलकूप हैं और 65-70 कुएं हैं, जिसके जलस्तर में वृद्धि हुई है। ग्राम पंचायत के सचिव नागेश ने बताया कि रपटा के ऊपरी भाग में एक छोटी-सी डबरी है, जिसके मेढ़ को काटकर उसमें मिलाने का विचार ग्राम पंचायत द्वारा किया जा रहा है, जिससे जल क्षेत्र में विस्तार होगा और ग्रामीणों को निस्तारी की बेहतर सुविधा मिलेगी।
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