अरुणा ईरानी 9 साल की उम्र से दिखा रहीं हुनर

थोड़ा रेशम लगता है', 'चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी', 'दिलबर दिल से प्यारे', 'मैं शायर तो नहीं' जैसे बॉलीवुड फिल्मों के गीतों पर थिरकने वाली अभिनेत्री अरुणा ईरानी को बच्चा-बच्चा पहचाता है। उन्होंने फिल्मों में अपने बेजोड़ अभिनय से दर्शकों को लुभाया। वह अपने अभिनय के साथ-साथ अपने नृत्य के लिए भी प्रसिद्ध हैं।

अरुणा ने बड़े-पर्दे के बाद छोटे पर्दे का रुख करने से कोई परहेज नहीं किया। वह आज भी टेलीविजन पर सक्रिय हैं, जो अन्य कलाकारों के लिए प्रेरणा है। उन्होंने दिलीप कुमार के साथ 1961 में फिल्म 'गंगा जमना' से बतौर बाल कलाकार अपने अभिनय करियर की शुरुआत की, उस वक्त वह सिर्फ 9 साल की थी। तभी दिलीप कुमार उनके अभिनय से काफी प्रभावित हुए और अरुणा की अभिनय कला को सराहा। वह अब तक 357 फिल्मों में काम कर चुकी हैं।

फिल्मों में भले ही अरुणा ईरानी ने सह-कलाकार के रूप में अभिनय किया, लेकिन अपने अभिनय से उन्होंने दर्शकों के दिलों में जगह बना ली। अरुणा का जन्म मुंबई में 3 मई, 1952 को हुआ था। उनके पिताजी की थिएटर कंपनी थी। उनके दो भाई इंद्र कुमार और आदि ईरानी हैं, जो फिल्म उद्योग से जुड़े हुए हैं। अरुणा ने बाल कलाकार, कॉमेडियन, खलनायिका, हीरोइन व चरित्र अभिनेत्री के रूप में काम किया।

फिल्म 'गंगा जमुना' (1961) में उन्होंने चरित्र अभिनेत्री अजरा के बचपन की भूमिका निभाई थी और हेमंत कुमार के गीत 'इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके' में अपने गुरुजी के साथ गा रहे बच्चों में भी वह शामिल हुईं। इसके बाद उन्होंने 'जहांआरा', 'फर्ज', 'उपकार' जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे किरदार निभाए। फिर कॉमेडी किंग महमूद के साथ उनकी जोड़ी बनी, जो 'औलाद', 'हमजोली', 'नया जमाना' जैसी फिल्मों में खूब सराही गई। अरुणा के करियर में महत्वपूर्ण मोड़ 1971 की फिल्म 'कारवां' के साथ आया। इस सुपरहिट म्यूजिकल फिल्म में उन्होंने तेज-तर्रार बंजारन की यादगार भूमिका निभाते हुए अपने अभिनय कौशल के साथ-साथ नृत्य की प्रतिभा का भी प्रदर्शन किया।

अरुणा को महमूद की 1972 'बॉम्बे टू गोवा'ं में बतौर नायिका का किरदार मिला, जिसमें नायक अमिताभ बच्चन थे। 'बॉम्बे टू गोवा'ं हिट रही। राजकपूर की 1973 की फिल्म 'बॉबी' में एक संक्षिप्त मगर दिलचस्प भूमिका में उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। इसके बाद वह लगातार एक सशक्त चरित्र अभिनेत्री के तौर पर अपनी विशेष ख्याति बनाती चली गईं। अरुणा ने 'खेल-खेल में', 'मिली', 'लैला मजनूं', 'शालीमार' आदि उनकी महत्वपूर्ण फिल्में रहीं। 'लव स्टोरी' में वह 'क्या गजब करते हो जी' गाते हुए कुमार गौरव को रिझाती नजर आईं, इसके बाद 'कुदरत' में मंच पर शास्त्रीय अंदाज में 'हमें तुमसे प्यार कितना' गाते हुए दिखाई दीं।

गुलजार की क्लासिक कॉमेडी 'अंगूर' में देवेन वर्मा की पत्नी के रूप में वह अपने किरदार में पूरी तरह डूबी नजर आईं। 1984 में 'पेट, प्यार और पाप' के लिए उन्हें फिल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ सह-अभिनेत्री अवॉर्ड मिला। अरुणा ने नए कलाकारों की काफी मदद की। अपने करियर के दौरान अरुणा कई मराठी फिल्में भी कर चुकी हैं। अरुणा ईरानी ने नब्बे के दशक से 'बेटा' और 'राजा बाबू' जैसी फिल्मों से मां का किरदार निभाना शुरू किया। 'बेटा' में उन्होंने एक बार फिर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया और फिल्मफेयर अवार्ड जीता। फिल्म 'यार मेरी जिंदगी' (2008) के बाद से वह टेलीविजन धारावाहिकों में अलग-अलग तरह के किरदारों में नजर आ रही हैं। इसके अलावा उन्होंने कई गुजराती फिल्मों में भी काम किया है। सन् 2000 में उन्होंने धारावाहिक 'जमाना बदल गया' से छोटे पर्दे पर अभिनय की शुरुआत की थी।

इसके बाद 'कहानी घर घर की' (2006-2007), 'झांसी की रानी' (2009-2011), 'देखा एक ख्वाब' (2011-2012), 'परिचय' (2013-2013), 'संस्कार धरोहर अपनो की' (2013-14) जैसे कई टेलीविजन धारावाहिकों में अरुणा अहम किरदार निभा चुकी हैं। आज के दौर के निर्देशकों में अरुणा करण जौहर और इम्तियाज अली के साथ काम करना चाहती हैं, क्योंकि उनके मुताबिक ये निर्देशक नए दौर के अनुरूप फिल्में तो बनाते ही हैं, बल्कि भावनाओं पर भरपूर जोर देते हैं। मनोरंजन-जगत में अरुणा का सिक्का कुछ कम नहीं है, उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। बचपन से काम करती आ रहीं अरुणा अपनी अंतिम सांस तक काम करते रहना चाहती हैं। उनके जन्मदिन पर हम तो यही कामना करेंगे कि वह यूं ही लंबे समय तक दर्शकों का मनोरंजन करती रहें।

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