अमरीश पुरी: दमदार अभिनय के बल पर खलनायकी को दी एक नयी पहचान

बॉलीवुड में अमरीश पुरी को एक ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है जिन्होंने अपनी कड़क आवाज .रौबदार भाव..भंगिमाओं और दमदार अभिनय के बल पर खलनायकी को एक नयी पहचान दी। रंगमंच से फिल्मों के रूपहले पर्दे तक पहुंचे अमरीश पुरी ने करीब तीन दशक में लगभग 250 फिल्मों में अभिनय का जौहर दिखाया। आज के दौर में कई कलाकार किसी अभिनय प्रशिक्षण संस्थान से प्रशिक्षण लेकर अभिनय जीवन की शुआत करते हैं जबकि अमरीश पुरी खुद अपने आप में चलते फिरते अभिनय प्रशिक्षण संस्था थे ।

पंजाब के नौशेरां गांव में 22 जून 1932 में जन्में अमरीश पुरी ने अपने करियर की शुरूआत श्रम मंत्रालय में नौकरी से की और उसके साथ साथ सत्यदेव दुबे के नाटकों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। बाद में वह पृथ्वी राज कपूर के ..पृथ्वी थियेटर ..में बतौर कलाकार अपनी पहचान बनाने में सफल हुये । पचास के दशक में अमरीश पुरी ने हिमाचल प्रदेश के शिमला से बीए पास करने के बाद मुंबई का रूख किया ।
उस समय उनके बड़े भाई मदनपुरी हिन्दी फिल्म मे बतौर खलनायक अपनी पहचान बना चुके थे।

वर्ष 1954 में अपने पहले फिल्मी स्क्रीन टेस्ट मे अमरीशपुरी सफल नही हुये । अमरीश पुरी ने अपने जीवन के 40 वें वसंत से अपने फिल्मी जीवन की शुरूआत की थी । वर्ष 1971 मे बतौर खलनायक उन्होंने फिल्म रेशमा और शेरा से अपने कैरियर की शुरूआत की लेकिन इस फिल्म से दर्शको के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके। लेकिन उनके उस जमाने के मशहूर बैनर बाम्बे टाकिज में कदम रखने बाद उन्हें बडें बड़े बैनर की फिल्में मिलनी शुरू हो गयी।

अमरीश पुरी ने खलनायकी को ही अपने कैरियर का आधार बनाया । इन फिल्मों में निंशात. मंथन. भूमिका. कलयुग और मंडी जैसी सुपरहिट फिल्में भी शामिल है । इस दौरान यदि अमरीश पुरी की पसंद के किरदार की बात करें तो उन्होनें सबसे पहले अपना मनपसंद और न कभी नहीं भुलाया जा सकने वाला किरदार गोविन्द निहलानी की वर्ष 1983 मे प्रदर्शित कलात्मक फिल्म अर्द्धसत्य में निभाया । इस फिल्म मे उनके सामने कला फिल्मों के अजेय योद्धा ओमपुरी थे ।

इसी बीच हरमेश मल्होत्रा की वर्ष 1986 मे प्रर्दशित सुपरहिट फिल्म.नगीना.में उन्होंने एक सपेरे की भूमिका निभाया जो लोगो को बहुत भाया । इच्छाधारी नाग को केन्द्र में रख कर बनी इस फिल्म में श्रीदेवी और उनका टकराव देखने लायक था। वर्ष 1987 मे अमरीश पूरी कैरियर मे अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ। वर्ष 1987 में अपनी पिछली फिल्म. मासूम. की सफलता से उत्साहित शेखर कपूर बच्चों पर केन्द्रित एक और फिल्म बनाना चाहते थे जो ‘इनविजबल मैन’ के उपर आधारित थी ।

इस फिल्म मे नायक के रूप में अनिल कपूर का चयन हो चुका था जबकि कहानी की मांग को देखते हुये खलनायक के रूप मे ऐसे कलाकार की मांग थी जो फिल्मी पर्दे पर बहुत ही बुरा लगे । इस किरदार के लिये निर्देशक ने अमरीश पुरी का चुनाव किया जो फिल्म की सफलता के बाद सही साबित हुआ। इस फिल्म मे अमरीश पुरी द्वारा निभाये गये किरदार का नाम था .मौगेम्बो. और यही नाम इस फिल्म के बाद उनकी पहचान बन गया ।

जहां भारतीय मूल के कलाकार को विदेशी फिल्मों में काम करने की जगह नही मिल पाती है वही अमरीश पुरी ने स्टीफन स्पीलबर्ग की मशहूर फिल्म ..इंडिना जोंस एंड द टेंपल आफ डूम.. में खलनायक के रूप में काली के भक्त का किरदार निभाया । इसके लिये उन्हें अंतरराष्ट्रीय ख्याति भी प्राप्त हुयी । इस फिल्म के पश्चात उन्हें हालीवुड से कई प्रस्ताव मिले जिन्हे उन्होनें स्वीकार नहीं किया क्योंकि उनका मानना था कि हालीवुड में भारतीय मूल के कलाकारों को नीचा दिखाया जाता है। लगभग चार दशक तक अपने दमदार अभिनय से दर्शको के दिल में अपनी खास पहचान बनाने वाले अमरीश पुरी 12 जनवरी 2005 को इस दुनिया से अलविदा कह गये ।


खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी


नई दिल्ली: भारत को अंग्रेजों से आज़ादी दिलाने के लिए 1857 में हुई आजादी की पहली क्रांति में बढ चढकर हिस्सा लेने वाली वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई का जन्म आज के ही दिन उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के भदैनी नामक नगर में हुआ था| लक्ष्मी बाई का वास्तविक नाम मणिकर्णिका था, लेकिन प्यार से उन्हें 'मनु' कहा जाता था| देश में जब भी महिला सशक्तिकरण की बात होती है तो शायद सबसे पहला नाम इस वीरांगना का ही लिया जाता है| रानी लक्ष्मीबाई ना सिर्फ एक महान नाम है बल्कि वह एक आदर्श हैं उन सभी महिलाओं के लिए जो खुद को बहादुर मानती हैं और उनके लिए भी एक आदर्श हैं जो महिलाएं सोचती है कि वह कुछ नहीं कर सकती|

रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही बेहद साहसी थीं, और उन्होंने बचपन में न सिर्फ शास्त्रों की शिक्षा ली बल्कि शस्त्रों की शिक्षा भी ली| समय पड़ने पर उन्होंने अपने अप्रतिम शौर्य से सबको परिचित भी करवाया| अपनी वीरता के किस्सों को लेकर वह किंवदंती बन चुकी हैं| हर किताब हर जुबान उनकी महान गाथा से ओत-प्रोत होती है| अँगरेज़ भी खुद को उनके शौर्य की प्रशंसा से नहीं रोक सके थे|

बचपन में ली शस्त्रों की शिक्षा

बचपन की मनु, शुरुआत से ही खुद को देश की आज़ादी के लिए तैयार कर रही थी| उन्होंने सिर्फ शास्त्रों की ही नहीं बल्कि शस्त्रों की शिक्षा भी ली| छोटी सी उम्र में ही वह देशभावना के प्रति जागरुक हो गई थी, उनमें अपने देश को आजाद रखने की ललक थी| उन्हें गुड्डे गुड़ियों से ज्यादा तलवार से प्यार था| उन्होंने हर वो गुर सिखा जो किसी शासक के लिए जरूरी होता है| चाहे वो घुड़सवारी हो या तलवारबाजी, मनु का कोई जवाब नहीं था|

गंगाधर राव से विवाह बाद बनी झांसी की रानी

मात्र 12 साल की उम्र में उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव के साथ हो गया| उनकी शादी के बाद झांसी की आर्थिक स्थिति में अप्रत्याशित सुधार हुआ, जिसके बाद बचपन की मनु, लक्ष्मीबाई के नाम से प्रसिद्ध हो गई| घुड़सवारी और शस्त्र-संधान में निपुण महारानी लक्ष्मीबाई ने झांसी किले के अंदर ही महिला-सेना खड़ी कर ली थी, जिसका संचालन वह स्वयं करती थीं| इससे उन्होंने महिलाओं के अंदर की शक्ति को उजागर किया और एक मजबूत महिला-सेना का निर्माण किया| लक्ष्मीबाई ने न सिर्फ खुशियों का स्वागत किया बल्कि दुखों को भी सहर्ष स्वीकार किया| पहले पुत्र की मृत्यु फिर पती ने भी प्राण त्याग दिए|

अंग्रेजों से लड़ते हुए मिली वीरगति

झाँसी 1857 के संग्राम का एक प्रमुख केन्द्र बन गया जहाँ हिंसा भड़क उठी| रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी की सुरक्षा को सुदृढ़ करते हुए एक स्वयंसेवक सेना का गठन शुरू किया| इस सेना में महिलाओं को भी शामिल किया गया और उन्हें युद्ध प्रशिक्षण भी दिया गया| 1857 के सितंबर तथा अक्तूबर माह में पड़ोसी राज्य ओरछा तथा दतिया के राजाओं ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया| रानी ने सफलता पूर्वक इसे विफल कर दिया|

1858 के जनवरी माह में अंग्रेजों ने झाँसी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया और मार्च के महीने में शहर को घेर लिया| दो हफ़्तों की लड़ाई के बाद अंग्रेजों ने शहर पर कब्जा कर लिया, लेकिन रानी, दामोदर राव के साथ अंग्रेजों से बच कर भागने में सफल हो गयी और कालपी पंहुचकर तात्या टोपे से मिली| तात्या टोपे और रानी की संयुक्त सेनाओं ने ग्वालियर के विद्रोही सैनिकों की मदद से ग्वालियर के एक किले पर कब्जा कर लिया|

17 जून 1858 को ग्वालियर के पास कोटा-की-सराय में अंग्रेजों से लड़ते हुए रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हो गयीं| लड़ाई की रिपोर्ट में ब्रिटिश जनरल ह्यू रोज़ ने टिप्पणी करते हुए लिखा रानी लक्ष्मीबाई अपनी "सुंदरता, चालाकी और दृढ़ता के लिए उल्लेखनीय" और "विद्रोही नेताओं में सबसे खतरनाक" थीं|

महिलाओं के लिए मिसाल

रानी लक्ष्मीबाई ने अदम्य साहस का परिचय देते हुए न सिर्फ आज़ादी की लड़ाई में अपना योगदान दिया बल्कि महिलाओं के सशक्त रूप को सबके सामने रखा| वहीँ, लक्ष्मीबाई महिलाओं के लिए एक मिसाल बनकर उभरीं| उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए देश उन्हें हमेशा याद करेगा|

दो दशक पहले से कैराना के सच से वाकिफ थे नौकरशाह!


लखनऊ: शामली के कैराना और कांधला कस्बे से एक विशेष समुदाय के लोगों के पलायन करने की खबरों ने प्रदेश की सियासत को गर्मा दिया है। कैराना में हिन्दुओं के पलायन पर सियासत सुर्ख हुई तो प्रशासन की पेशानी पर बल पड़ गए हैं। जांच में जुटी प्रशासनिक टीम के अपने दावे हैं। तर्क हैं। यह और बात है कि वह विश्वसनीय नहीं लगते। क्योंकि उनका आधार ठोस नहीं लगता। प्रशासन का कहना है कि पलायन के पीछे अर्थ का शास्त्र है। लोग व्यवसाय के चक्कर में पलायित हुए, या फिर भवन स्वामियों की मौत हो गई तो परिवारीजन व्यवसाय के लिए पड़ोसी राज्य हरियाणा अथवा दिल्ली कूच कर गए। जबकि सूत्र बता रहे हैं कि सच्चाई इसके विपरीत है। रंगदारी और हत्या की घटनाओं ने ही लोगों को अपना घर-बार छोड़ने को मजबूर किया। गुंडों-बदमाशों ने पहले जुबान पर फिर मकान पर ताला लगाने को मजबूर कर दिया। पलायन पर सियासत के दावे कुछ भी हों, लेकिन सूबे की ब्यूरोक्रेसी दो दशक पहले से कैराना के सच से वाकिफ रही है। तत्कालीन डीएम विनोद शंकर चौबे ने बाकायदा शासन को गोपनीय रिपोर्ट भेजी थी, जिसमें एक जाति और धर्म विशेष के अफसरों की जिले में तैनाती नहीं करने तक के लिए कह दिया था। खौफ के संदर्भ में ऐसा ही इशारा पूर्व डीएम एसपी सिंह भी कर चुके हैं। 

कैराना का लावा भले ही अब फूटा हो, मगर जमीनी हकीकत से अफसर पहले भी अनभिज्ञ नहीं रहे हैं। शामली जब पृथक जिला नहीं था। मुख्यालय से कैराना की दूरी 50 किलोमीटर से ज्यादा रही। यही वजह है कि तहसील होने के बावजूद भी डीएम और एसएसपी के लिए कैराना के लॉ एंड ऑर्डर को बनाए रखना चुनौती बना रहा।  नकली नोट, हथियारों की तस्करी से लेकर रंगदारी, हत्या, दुष्कर्म, अवैध कब्जे और अन्य संगीन अपराधों ने यहां के जनजीवन को तबाह कर दिया। यहां अपराधियों को सियासत की पनाह मिलती रही। कृषि आधारित इस इलाके में अपराध के बाद जरायम के कारिंदे हरियाणा के पानीपत, करनाल, सोनीपत और कुरुक्षेत्र में छिपते रहे हैं। कुख्यात मुकीम काला के गुर्गों की इन्हीं शहरों से हुई गिरफ्तारी बात को पुख्ता करती है। पुलिस प्रशासन ने कैराना की हकीकत पर परदा डालते हुए सियासतदाओं की चाकरी में ही नौकरी गुजार दी। शासन तक कभी कैराना का सच पहुंच नहीं पाया। तत्कालीन डीएम विनोद शंकर चौबे ने हिम्मत की तो सूबे में बवाल खड़ा हो गया। फरवरी 1999 में चौबे ने शासन को एक गोपनीय रिपोर्ट भेजी, जिसमें जिले की कानून व्यवस्था के लिए एक जाति और विशेष धर्म के अफसरों एवं पुलिस कर्मियों की तैनाती नहीं करने के लिए कहा।  

यह मामला उठने के बाद सियासी दल अपना गुणा भाग लगाने में जुट गए हैं। मुद्दा भाजपा ने उठाया, तो सियासी हलकों में हलचल मच गई। हर राजनीतिक दल अपने हिसाब से पलायन की परिभाषा तय कर रहा है। भाजपा इसे भुनाने में जुट गई है, तो सपा, बसपा और रालोद इसे चुनावी स्टंट बता रहे हैं। पलायन प्रकरण से आखिर किसका फायदा होगा और किसका होगा नुकसान। राजनीतिक दल भी इसकी गुणा भाग करने में लगे हुए हैं। खास बात यह है कि मुद्दा भले ही कैराना से शुरू हुआ, मगर अब कांधला भी पहुंच गया। भाजपा सांसद ने कांधला की सूची जारी कर नई बहस छेड़ दी, जिसके बाद सपा नेता इसकी खिलाफत में उतर आए और कहने लगे कि भाजपा सांसद वोटों की राजनीति में क्षेत्र का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। क्या वास्तव में पलायन प्रकरण आगामी विधानसभा चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब होगा। क्योंकि शामली जिले की व्यवस्था पर गौर करें, तो यहां चुनावी समीकरण एकदम अलग रहा है। जिले की कैराना, शामली और थानाभवन विधानसभा सीटों पर अलग ही समीकरण बनता है।

ऐसे में हर राजनीतिक दल अपने जनाधार को बनाए रखने के प्रयास में है, तो भाजपा हिंदुओं को लामबंद कर सकती है। सीटवार अलग समीकरण हैं, जिसमें सपा गुर्जर और मुसलिम गठजोड़ को बनाकर रखना चाहती है। लब्बो लुआब यही है कि पलायन प्रकरण पर हर राजनीतिक दल की नजर लगी हुई है। उधर, विधायक सुरेश राण नें प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को साम्प्रदायिकता का आरोपी बताया। उन्होंने कहा कि वो गोल टोपी लगाकर आते हैं वो इस बात से आखिर क्या जताना चाहते हैं। विधायक सुरेश राणा ने कहा कि सपा सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में 450 दंगे कराये हैं और दंगे कराने में गोल्ड मेडलिस्ट हो गई है सपा सरकार।
अब सवाल यह आखिर शामली प्रशासन ने अपने स्तर पर कोई जांच करने की जहमत क्यों नहीं उठाई? क्या बंद घरों-दुकानों के ताले भी सवालों का जवाब देने में सक्षम हैं? क्या ताले ही यह बता रहे हैं कि हमारे मालिक इस-इस कारण अन्य कहीं जा बसे हैं? सवाल और भी हैं। क्या शामली प्रशासन ने कैराना से अन्यत्र जा बसे लोगों से बात की? क्या किसी ने यह जानने की कोशिश की कि जो लोग कैराना में रहकर ही ठीक-ठाक कमाई कर रहे थे उन्हें दूसरे शहर जाकर कारोबार करने की जरूरत क्यों पड़ी? 

बेहतर आय और जीवन की लालसा में गांव से कस्बे और फिर वहां से पड़ोस के बड़े शहर जाने की प्रवृत्ति नई नहीं है। ऐसा हर कहीं होता है, लेकिन इस क्रम में मोहल्ले वीरान नहीं होते। लगता है कि कैराना में कुछ अस्वाभाविक हुआ है। चूंकि यह अस्वाभाविक घटनाक्रम कथित सेक्युलर दलों और उनके जैसी प्रवृत्ति वालों के एजेंडे के अनुरूप नहीं इसलिए उनके पास सबसे मजबूत तर्क यही है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव करीब आ रहे हैं इसलिए भाजपा यही सब तो करेगी ही। इसमें दोराय नहीं कि भाजपा कैराना सरीखे मसलों पर विशेष ध्यान देती है, लेकिन क्या ऐसे मसलों पर अन्य किसी राजनीतिक दल को ध्यान नहीं देना चाहिए? नि:संदेह कैराना कश्मीर नहीं है, लेकिन इन दिनों कश्मीरी पंडितों की वापसी के सवाल को लेकर भाजपा पर खूब कटाक्ष हो रहे हैं?

आपको बता दें कि कैराना, भारत के ऐतिहासिक जगहों में से एक है और बेहद ही खूबसूरत है। कैराना के फिजाओं में जहां एक तरफ संगीत की मधुर लहरें तरंगित होती हैं, वहीं उसकी मिट्टी में नृत्य कला की छाप है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह क्षेत्र भारतीय शास्त्रीय संगीत के मशहूर किराना घराना के लिए जाना जाता था। जिसकी स्थापना महान शास्त्रीय गायक अब्दुल करीम खां ने की थी। ये भी मान्यता है कि अपने समय के महान संगीतकार मन्ना डे भी इस कैराना की मिट्टी का सम्मान अपने दिल में रखते थे। क्योंकि जब एक बार उन्हें वहां जाना हुआ तो वो कैराना की मिट्टी में पांव रखने से पहले उन्होनें अपना जूता उतार कर हाथ में रख लिया था।

वहीं दूसरी ओर भारत रत्न पंडित भीमसेन जोशी भी कैराना घराने के गायक हैं। वहीं अगर धर्म की दृष्टि से देखा जाए तो भी कैराना एक संगम से कम नहीं है। क्योंकि यहां मसहूर ईदगाह, ऐतिहासिक देवी मंदिर, जैन बाग, बारादरी नवाब तालाब आज भी मौजूद है। ऐसा इतिहास होने के बावजूद भी ये जमीन आज बंजर हो गई है। क्योंकि इस जमीन को छोड़ कर लोग जा रहे है। अब मुद्दा ये है कि ये लोग यहां से कहां जा रहे हैं और क्यों जा रहे हैं?


भूरी: कहानी एक अस्तित्व की


नई दिल्ली: बॉलीवुड में पिछले काफी वक्त से सिर्फ अभिषेक चौबे के निर्देशन में बनी फिल्म ‘उड़ता पंजाब’ ही छाई हुई है। सेंसर बोर्ड द्वारा फिल्म के कुछ सीन काटे जाने से लेकर बंबई हाई कोर्ट के इसे हरी झंड़ी दिखाने तक फिल्म ने काफी सुर्खियां बटोरी है। फिल्म में करीना कपूर और शाहिद कपूर के साथ काम करने को लेकर भी खूब चर्चा हुई थी। अब फिल्म 17 जून को सिनेमाघरों में रिलीज की जाएगी। लेकिन इन सबके बीच सभी इस बात को भूल चुके हैं कि इसी दिन ‘उड़ता पंजाब’ के साथ एक और फिल्म रिलीज की जा रही है। यहां हम बात कर रहे हैं फिल्म ‘भूरी’ की।

जसबीर भट्टी के निर्देशन में बनी इस फिल्म में एक महिला भूरी की कहानी को बयां किया गया है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि भूरी एक बेहद खूबसूरत महिला है, जिसकी शादी गांव के एक सीधे-साधे किसान के साथ कर दी जाती है। शादी के बाद जब भूरी अपने पति के साथ ससुराल पहुंचती हो तो गांव के हर मर्द की नजर उस पर पड़ती है और वह उसे पाने की इच्छा में लग जाता है। पूरा गांव जैसे उसके पीछे हाथ धोकर पड़ा होता है। इसी वजह से भूरी के पति को गूंड़ों से मार भी खानी पड़ती है।

इसके बाद तो गांव के सभी आदमी भूरी के पति को परेशान करने लगते हैं, ताकि वह किसी भी तरह से भूरी को उन्हें सौंप दे। भूरी किस तरह से ऐसे ही टॉर्चर और गांव वालों की गंदी नजरों को सामना करती है वह इस फिल्म में बखूबी दिखाया गया है। फिल्म में माशा पौर, भूरी का किरदार निभाती हुई नजर आ रही हैं। माशा स्कॉटलैंड की हैं और इस फिल्म से अपने बॉलीवुड करियर की शुरुआत करने जा रही हैं। फिल्म में उनके अलावा आदित्या पंचोली, रघुवीर यादव, शक्ति कपूर, मोहन जोशी और मुकेश तिवारी जैसे सितारे मुख्य किरदार निभाते हुए नजर आ रहे हैं।

“भूरी” फिल्म के निर्माता चंद्रपाल सिंह ने बताया कि वह आजमगढ़ के रहने वाले हैं। 1997 में वह माया नगरी मुंबई चले गए थे। तब उनकी उम्र महज 17 साल थी। माया नगरी में वह कई साल तक संघर्ष करते रहे और वर्ष 2009 में उनकी पहली फिल्म ‘लकीर का फकीर’ रिलीज हुई। उन्होंने बताया कि फिल्म में भूरी का किरदार स्कॉटलैंड की रहने वाली एनआरआई माशा पौर ने निभाया है। माशा इस फिल्म में गांव की एक सुंदर महिला के किरदार में है। फिल्म की पूरी शूटिंग गोरखपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में की गई है। चंद्रपाल सिंह ने बताया कि वह आजमगढ़ के रहने वाले हैं इस वजह से माया नगरी में रहते हुए भी उन्हें काफी परेशानी का सामना करना पड़ा। जब उन्होंने शूटिंग के सिलसिले में विदेश दौरे के पहले पासपोर्ट के लिए अप्लाई किया, तो उनका पासपोर्ट आवेदन केवल इसलिए रोक दिया गया, क्योंकि वह आजमगढ़ के रहने वाले थे। वह बताते हैं कि देश और विदेशों में जिस तरह से आजमगढ़ शहर को लेकर लोगों के दिलों में गलतफहमी है, वह उसे दूर करना चाहते हैं।

कैफी आजमी, शबाना आजमी सरीखी कई बड़ी हस्तियां भी आजमगढ़ से ही हैं। ऐसे में उनके दिमाग में विचार आया कि क्यों न आजमगढ़ नाम से ही फिल्म बनाई जाये और वह इस पर एक स्टोरी लिखने का काम भी लगभग पूरा कर चुके हैं। भूरी फिल्म से उन्हें काफी उम्मीद है। उनका कहना है कि सभी अभिनेताओं ने अपने किरदार के साथ पूरा न्याय करने की कोशिश की है। रिलीज के पहले ही पूरी फिल्म कैटरीना की काफी चर्चा हो चर्चा है। यु टुब पर इसके ट्रेलर को प्रशंसकों ने काफी पसंद किया है और उससे कई हिट्स भी मिल चुके हैं । 3 मई को इस फिल्म का मुंबई में म्यूजिक लॉन्च किया गया था। लॉन्चिंग में मुख्य अतिथि के रूप में राजनेता अमर सिंह सहित बॉलीवुड की कई बड़ी हस्तियां भी पहुंची थी। देखना यह है कि 17 जून को रिलीज हो रही फिल्म “भूरी” और “उड़ता पंजाब” की टक्कर में बाजी किसके हाथ जाती है। हालांकि दोनों ही फिल्म के ट्रेलर की काफी चर्चा हो रही है।

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कैराना के बाद अब कांधला से हिन्दुओं का पलायन, क्या है सच?

शामली। उत्तर प्रदेश के कैराना में 346 हिंदू परिवारों के पलायन करने की सूची जारी कर सूबे की राजनीति में भूचाल लाने वाले भारतीय जनता पार्टी के सांसद हुकुम सिंह ने अब कांधला कस्बे के 63 परिवारों के पलायन की सूची जारी की है। हुकुम सिंह ने यहां पत्रकारों से कहा कि कैराना की तरह कांधला में भी रंगदारी और हत्या की घटनाओं से दहशत के चलते 63 परिवारों को घर बार छोड़ कर दूसरी जगहों पर जाना पड़ा है। भाजपा सांसद ने इसके लिए उत्तर प्रदेश में बदहाल कानून व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराया और राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग की। इससे पहले उन्होंने कैराना कस्बे में बदमाशों द्वारा व्यापारियों से मांगी जा रही रंगदारी व न देने पर हत्या करने, वर्ग विशेष के लोगों द्वारा हिंदू परिवारों को धमकी देने के चलते 346 परिवारों के पलायन की सूची जारी की थी। हुकुम सिंह का कहना है कि यहां से पलायन करने वाले अब दूसरे शहरों में अपना रोजगार चला रहे हैं।

सांसद ने कहा कि इस बारे में केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को भी बताया गया है। उन्होंने कहा कि राजनाथ सिंह जून के अंतिम सप्ताह में कैराना आएंगे। उन्होंने कहा कि वर्ष 2013 में हुए सांप्रदायिक दंगों में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के नेता का नाम सामने आया था। इस नेता को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपने बराबर में बैठाकर उनसे सलाह लेते हैं, आज तक उस नेता पर सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की। इस संबंध में मुख्यमंत्री से कई बार मांग की गई लेकिन आज तक भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। आबादी के अनुपात में लगातार घट रही हिंदुओं की संख्या इस तथ्य को साबित कर रही है। यहां के लोगं का कहना है कि कांधला और कैराना को बचाना है तो यहां पैरामिलेट्री फोर्स का बेस कैंप स्थापित करना होगा। सूत्रों की माने तो उनका कहना है कि सरावज्ञान, कानूनगोयान, शेखजादगान व शांतिनगर जैसे मुहल्लों से हिंदुओं का अपनी संपत्ति बेचने का सिलसिला जारी है। सुभाष जैन, राजू कंसल, दीपक चौहान, तरस चंद जैन, विकास सैनी, राजबीर मलिक और योगेंद्र सेठी जैसे लोग अपनी जन्म और कर्म भूमि को अलविदा कह चुके हैं। सतेंद्र जैन, रविंद्र कुमार और विजेंद्र मलिक जैसे अनेक लोग महफूज ठिकानों की तलाश में है। घरों व दुकानों पर लटकी बिकाऊ है जैसी सूचनाएं प्रशासन को मुंह चिढ़ा रही हैं। असंतुलित होती आबादी के आकड़े भी पलायन की टीस उजागर करते हैं।

कैराना से महज 12 किलोमीटर दूर बसे कांधला में कैराना की ही तरह असुरक्षा सबसे बड़ी समस्या है जो दिनों दिन बड़ा आकार लेती जा रही है। मेन बाजार में बीज विक्रेता तरुण सैनी यहां व्याप्त आतंक का शिकार हो चुके हैं। वर्ग विशेष की बढ़ती दबंगई के आगे पुलिस-प्रशासन के नतमस्तक होने का आरोप लगाते हुए तरुण के भाई आदेश का कहना है कि करीब दो साल पहले उनकी दुकान पर आए आधा दर्जन हथियारबंद बदमाशों ने उनसे पांच लाख रुपये रंगदारी मांगी और शहर छोड़कर चले जाने की धमकी दी। पुलिस को सीसी टीवी कैमरे की फुटेज उपलब्ध करा दी गयी परंतु कोई कार्रवाई नहीं हो सकी। तब से हम सैनी समाज की सुरक्षा की चिंता में जी रहे हैं। प्रशासन से पिस्टल का लाइसेंस मांगा परंतु फाइल अटकी है, कोई सुनवाई नहीं होती। कभी देश भर को गुड़ की जरूरतें पूरा करने वाली मंडी में आज सन्नाटा है। कभी यहां गुड के लदान के लिए रेलवे ने विशेष ट्रैक तक की व्यवस्था की थी। व्यापारी विष्णु गोयल का कहना है कि अनाज मंडी भी उजड़ चुकी है। सब्जी मंडी को छोड़ दें तो बाकी बड़ा कारोबार अब ठप है। इस गन्ना बेल्ट की चार खांडसारी इकाइयां बंद हो चुकी हैं। अब तो हालात उलट हैं, आतंक और रंगदारी की वजह से यहां कोई कारोबार नहीं करना चाहता। पांच साल में सराफा कारोबार साठ प्रतिशत कम होने का दावा करते हुए सराफा एसोसिएशन के महामंत्री सतवीर वर्मा का कहना है कि हालात ऐसे ही बने रहें तो हम भी परिवार पालने के लिए मजबूरन कस्बा छोड़ जाएंगे।

स्कूली बच्चों के लिए अच्छे स्कूलों का संकट भी कम नहीं है। करीब दो दर्जन बसें स्कूली बच्चों को लेकर सुरक्षाकर्मी के साथ 14 किलोमीटर दूर शामली आना-जाना करती हैं। लोगों का कहना है कि बच्चों को पढ़ाने की मजबूरी के चलते हम ये बड़ा जोखिम उठाने को मजबूर हैं। सैनी समाज के संयोजक नरेश सैनी का कहना है कि छेड़छाड़ की घटनाओं ने कई वर्षों में ऐसा माहौल बना दिया है कि बहन-बेटियों का देर शाम घरों से निकलना बंद है। दिव्यप्रकाश का कहना है कि कांधला के बिगड़े वातावरण से रोजगार के बचे-खुचे अवसर ही खत्म नहीं हो रहे वरन शादी में भी दिक्कतें आ रही हैं। कोई भी परिवार अपनी बेटी कांधला में ब्याहने के लिए आसानी से राजी नहीं होता। आतंक के चलते औने-पौने दाम में अपनी संपत्ति बेचने की मजबूरी जता रहे सुभाष बंसल का कहना है कि कभी कस्बे की शान रही रहतू मल की हवेली मात्र 15 लाख रुपये में बिक गयी, जबकि उसकी कीमत लोग एक करोड़ रुपये आंकी गई थी। जाट कालोनी में मकान व दुकान तेजी से बिकने का दावा करते सतीश पंवार का कहना है कि भू-माफिया सक्रिय हो चुके हैं और आतंक फैलाने में उनका योगदान भी कम नहीं। पुलिस भी इनकी मदद में खड़ी दिखती है। पलायन करने वालों की सूची में अभी इजाफा होगा, क्योंकि बहुत से लोगों को अपनी संपत्ति बेचने के लिए सही दाम नहीं मिल पा रहे हैं। एडवोकेट बीरसेन का कहना है कि कुछ व्यापारी अपना कारोबार समेटने से पहले उधार में गए धन को बटोरने में जुटे हैं। कई पीढ़ी से लोहे के व्यापारी 71 वर्षीय सतेंद्र जैन बुझे मन से कहते हैं कि अपने पौत्रों का एडमिशन इस बार देहरादून करा दिया है, उधारी सिमटते ही कांधला छोड़कर चले जाएंगे।

यह मामला उठने के बाद सियासी दल अपना गुणा भाग लगाने में जुट गए हैं। मुद्दा भाजपा ने उठाया, तो सियासी हलकों में हलचल मच गई। हर राजनीतिक दल अपने हिसाब से पलायन की परिभाषा तय कर रहा है। भाजपा इसे भुनाने में जुट गई है, तो सपा, बसपा और रालोद इसे चुनावी स्टंट बता रहे हैं। पलायन प्रकरण से आखिर किसका फायदा होगा और किसका होगा नुकसान। राजनीतिक दल भी इसकी गुणा भाग करने में लगे हुए हैं। खास बात यह है कि मुद्दा भले ही कैराना से शुरू हुआ, मगर अब कांधला भी पहुंच गया। भाजपा सांसद ने कांधला की सूची जारी कर नई बहस छेड़ दी, जिसके बाद सपा नेता इसकी खिलाफत में उतर आए और कहने लगे कि भाजपा सांसद वोटों की राजनीति में क्षेत्र का माहौल बिगाड़ने की कोशिश कर रहे हैं। क्या वास्तव में पलायन प्रकरण आगामी विधानसभा चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण करने में कामयाब होगा। क्योंकि शामली जिले की व्यवस्था पर गौर करें, तो यहां चुनावी समीकरण एकदम अलग रहा है। जिले की कैराना, शामली और थानाभवन विधानसभा सीटों पर अलग ही समीकरण बनता है।

ऐसे में हर राजनीतिक दल अपने जनाधार को बनाए रखने के प्रयास में है, तो भाजपा हिंदुओं को लामबंद कर सकती है। सीटवार अलग समीकरण हैं, जिसमें सपा गुर्जर और मुसलिम गठजोड़ को बनाकर रखना चाहती है। लब्बो लुआब यही है कि पलायन प्रकरण पर हर राजनीतिक दल की नजर लगी हुई है। उधर, विधायक सुरेश राण नें प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को साम्प्रदायिकता का आरोपी बताया। उन्होंने कहा कि वो गोल टोपी लगाकर आते हैं वो इस बात से आखिर क्या जताना चाहते हैं। विधायक सुरेश राणा ने कहा कि सपा सरकार ने पिछले साढ़े चार साल में 450 दंगे कराये हैं और दंगे कराने में गोल्ड मेडलिस्ट हो गई है सपा सरकार।

अब सवाल यह आखिर शामली प्रशासन ने अपने स्तर पर कोई जांच करने की जहमत क्यों नहीं उठाई? क्या बंद घरों-दुकानों के ताले भी सवालों का जवाब देने में सक्षम हैं? क्या ताले ही यह बता रहे हैं कि हमारे मालिक इस-इस कारण अन्य कहीं जा बसे हैं? सवाल और भी हैं। क्या शामली प्रशासन ने कैराना से अन्यत्र जा बसे लोगों से बात की? क्या किसी ने यह जानने की कोशिश की कि जो लोग कैराना में रहकर ही ठीक-ठाक कमाई कर रहे थे उन्हें दूसरे शहर जाकर कारोबार करने की जरूरत क्यों पड़ी? बेहतर आय और जीवन की लालसा में गांव से कस्बे और फिर वहां से पड़ोस के बड़े शहर जाने की प्रवृत्ति नई नहीं है। ऐसा हर कहीं होता है, लेकिन इस क्रम में मोहल्ले वीरान नहीं होते। लगता है कि कैराना में कुछ अस्वाभाविक हुआ है। चूंकि यह अस्वाभाविक घटनाक्रम कथित सेक्युलर दलों और उनके जैसी प्रवृत्ति वालों के एजेंडे के अनुरूप नहीं इसलिए उनके पास सबसे मजबूत तर्क यही है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव करीब आ रहे हैं इसलिए भाजपा यही सब तो करेगी ही। इसमें दोराय नहीं कि भाजपा कैराना सरीखे मसलों पर विशेष ध्यान देती है, लेकिन क्या ऐसे मसलों पर अन्य किसी राजनीतिक दल को ध्यान नहीं देना चाहिए? नि:संदेह कैराना कश्मीर नहीं है, लेकिन इन दिनों कश्मीरी पंडितों की वापसी के सवाल को लेकर भाजपा पर खूब कटाक्ष हो रहे हैं?



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जानिए ऋषि मुनि आसन पर बैठकर क्यों करते थे तप

नई दिल्ली: वैदिककाल से हमारे मुनि हमेशा आसन पर बैठकर तप किया करते थे। आसन को हिंदू धर्म में पवित्र माना जाता है। भगवान भी आसन पर विराजमान होते हैं। आसन पर बैठने से पूजा का फल पूरी तरह से प्राप्त हो जाता है। बिना आसन के बैठने से सारी पूजा का फल देव इंद्र ले जाता है। आसन पर बैठने के धार्मिक महत्व हो सकते हैं लेकिन क्या आपको इसके वैज्ञानिक कारणों के बारे में भी पता है। जिसे वैदिक वाटिका आपको बता रही है।

आसन कई तरह का हो सकता है।

कंबल आसन
मृगछाल आसन
कपड़े आसन

वैज्ञानिकों नें शोध के आधार पर आसन पर बैठने के कई फायदों के बारे में बताया है। जिस तरह से भारी बारिश की वजह से बादल आपस में टकराते हैं और उनसे बिजली गिरती है और धरती पर किसी वस्तु या धातु पर लगने के बाद पृथ्वी में वापस चली जाती है। ठीक एैसा ही आसन पर बैठने का रहस्य भी है।

ब्रहमांड में अनंत शक्तियों और उर्जा का भंडार है। और धरती ब्राहमांड का ही हिस्सा है। इसलिए जब इंसान पूजा व मंत्रों का जाप करता है तब ये शक्तियां और उर्जा विद्युत चुंबकीय तरगों के जरिए प्रभावित होने लगती हैं। जो मानव शरीर के अंदर उर्जा और कुडलनी जागरण का काम करती है। बिना आसन पर बैठने से ये सारी उर्जा वापस धरती के अंदर चली जाती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार आसन धरती और शरीर के बीच का संपर्क को तोड़ देता है जिससे ब्राहमांड की उर्जा और शक्तियां सीधा शरीर पर आने लगती हैं। और इंसान उर्जावान होने लगता है। आसन में बड़ी शक्ति होती है। इसलिए आसन को पूजा करने के बाद हमेशा साफ रखें।

रमजान मुबारक!

रमजान मुबारक! ए पाक महीना हम सब के जीवन में खुशियां, शान्ति और समृद्धि लाए
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मथुरा हिंसा: समय रहते फर्ज जागता तो नहीं बहता खून

ऐतिहासिक मथुरा नगरी वैसे भी आतंकियों के निशाने पर रहती है। ऐसे में शहर में ऐसे अड्डे बन जाना कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है।वर्ष 2014 में मुट्ठी भर लोगों ने जवाहरबाग में धरने की अनुमति मांगी और वहां कब्जा कर समानांतर सरकार तक बना ली, प्रशासन देखता रहा। हाईकोर्ट हमेशा प्रशासन के साथ रहा। वर्ष 2014 में पूर्व बार अध्यक्ष विजयपाल तोमर ने हाईकोर्ट में याचिका दी। मई, 2015 में हाईकोर्ट ने कब्जा हटाने के आदेश भी दे दिए, मगर प्रशासन को आदेश स्पष्ट नहीं लगे। हाल ही में कब्जाधारकों के नेता रामवृक्ष यादव ने फिर रिट देकर रसद-बिजली-पानी आपूर्ति सुचारू कराने की मांग की, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे खारिज करते हुए 50 हजार का जुर्माना लगाया।

महीनेभर से अफसर निर्णय नहीं ले पा रहे थे। कुछ माह पहले सैन्य अफसरों ने खुद प्रशासन से मदद की पहल की, लेकिन प्रशासन पूरी तैयारी की बात कहता रहा। बड़ी विफलता खुफिया विभाग की भी है। डीएम और एसएसपी में समन्वय का भी अभाव दिखा। फायरिंग के आदेश तब हुए, जब एसओ को गोली लग चुकी थी। इस पर फोर्स में रोष भी दिखा। खुद सिटी मजिस्ट्रेट भी संतुष्ट नहीं दिखे। बड़ा सवाल यह है कि जब सरकारी संपत्ति पर कब्जा जमाए लोगों को हटाने की यह कीमत चुकानी पड़ी तो अचानक होने वाले आतंकी हमले आदि से पुलिस प्रशासन कैसे निपटेगा।

रणनीति बनाकर काम नहीं किया

आखिरकार मथुरा के लोगों ने अदालत का सहारा लिया। मई महीने में हाईकोर्ट ने निर्देश दिए कि इस अतिक्रमण को तुरंत हटाया जाए और पचास हजार रुपए हर्जाने के रूप में वसूल किए जाएं। तब यह कार्रवाई हुई, लेकिन अगर पुलिस और स्थानीय खुफिया विभाग एक स्पष्ट रणनीति बनाकर काम करते तो शायद हमारे दो जांबाज पुलिस अधिकारियों की जान नहीं जाती।

मथुराः एसपी सिटी को पीट-पीट कर मारा था, एसओ को एके 47 से मारी गोली

कब्जाधारियों की लोकेशन का जायजा लेने को पहुंचे एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी की मौत गोली से नहीं हुई। उनकी मौत कब्जाधारियों के चारों ओर से घेर कर लाठी-डंडों के प्रहार करने के कारण हुई। यह खुलासा एसपी के शव के पोस्टमार्टम में हुआ है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी की मौत की वजह लाठी-डंडों का प्रहार आया है। इधर एसओ फरह को लगी गोली एके 47 से चलने की बात कही जा रही है। ढाई साल से अवैध कब्जेधारियों की गिरफ्त में रहा जवाहरबाग आखिर गुरुवार शाम को पुलिस ने खाली करा ही लिया। मगर कब्जेधारियों के चंगुल से जवाहरबाग को मुक्त कराने में एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और एसओ फरह संतोष कुमार यादव का बलिदान हो गया। गुरुवार शाम को जवाहरबाग में हुई हिंसक झड़प में एसपी सिटी की मौत होने के बाद शुक्रवार को उनके शव का पोस्टमार्टम कराया गया। इसमें एसपी की मौत की वजह लाठी-डंडों का प्रहार आया है।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया है कि एसपी के सिर की कई हड्डियां टूटी हुई हैं। वहीं उनके शरीर के अन्य हिस्सों में भी गहरे चोट के निशान मिले हैं। इधर एसओ फरह संतोष यादव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी चौकाने वाली है। उनके शरीर में मिली गोली एके 47 रायफल से चलने की संभावना जताई जा रही है। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में संतोष की नाक के ऊपर एक गोली लगी बताई गई है जो कि दाहिने कान के पास से होकर शरीर के पार निकल गई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कब्जाधारियों के पास एके 47 स्तर के हथियार मौजूद रहे होंगे। क्योंकि देशी तमंचे से चलाई गोली पार नहीं हो सकती है। हालांकि पुलिस को मौके से एके 47 तो नहीं मिली लेकिन उसके कारतूस बरामद होने की बात पुलिस कर्मियों द्वारा कही जा रही है।

इतने हथियार कहां से आए

सूत्र कहते हैं कि दो साल में कई डीएम आए लेकिन सब यही कोशिश करते रहे कि उनके कार्यकाल में किसी तरह यह मामला चलता रहे। गलतियों की यही चिंगारी शोले के रूप में हमारे सामने आ गई। एडीजीपी दलजीत चौधरी बताते हैं कि जवाहर बाग में तलाशी के दौरान तमाम असलहा और देसी बम तक बरामद हुए हैं, लेकिन इस बात का कई जवाब नहीं है कि कलेक्ट्रेट परिसर के बगल में और सेना की छावनी से मुश्किल एक किमी की दूरी पर अपराधी और असलहा कैसे इकट्ठा हो गया।

मारा गया मथुरा कांड का मास्टरमाइंड रामवृक्ष यादव

मथुरा में हुई हिंसा के मास्टर माइंड रामवृक्ष को लेकर अब तक सस्पेंस बना हुआ है। पुलिस फिलहाल उसकी तलाश में जुटी है लेकिन इस बात की भी आशंका जताई जा रही है कि वारदात में उसकी मौत हो चुकी है। पुलिस को इस बात की भी आशंका है कि रामवृक्ष के मारे जाने या फिर जख्मी होने के बाद उसके साथी उसे किसी सुरक्षित जगह पर लेकर गए हैं। इसी आशंका के तहत पुलिस अलग अलग अस्पतालों में भी सर्च ऑपरेशन चला रही है। क्योंकि जख्मी होने की हालत में वो किसी अस्पताल में इलाज के लिए भी जा सकता है। गाजीपुर का रहने वाला 50 साल का रामवृक्ष यादव हमेशा हाईटेक रहता था। वह अपने साथ एक युवक को रहता था जिसके पास इंटरनेटयुक्त लेपटॉप हुआ करता था। जब जवाहरबाग की सरकारी जमीन का मामला हाईकोर्ट में चल रहा था, तब वह अदालती की कार्रवाई देखा करता था। रामवृक्ष के सनकीपन का आलम यह था कि वह दरबार लगाकर कहता था कि वही सबकी नागरिकता तय करेगा। जो आदमी उसका आदेश नहीं मानेगा, उसकी उसे सजा मिलेगी।

असल में रामवृक्ष यादव जयगुरुदेव का शिष्य रहा है और जब जयगुरुदेव के निधन के बाद उनकी विरासत हथियाने में नाकाम रहा, तब वह 270 एकड़ जमीन पर कब्जा करके यहां पर जयगुरुदेव की तर्ज पर आश्रम बनाना चाहता था। इसके लिए उसे राजनीतिक संरक्षण भी मिला हुआ था। यही कारण है कि मथुरा का स्थानीय प्रशासन सरकारी जमीन को खाली कराने में नाकाम रहा था। जब भी प्रशासन जमीन खाली कराने के लिए मुनादी करता, रामवृक्ष यादव के लोग उसका विरोध करते हुए नारे लगाते।

रामवृक्ष के साथ रहने वाले लोग खुद को सत्याग्रही और आजाद हिन्द फौज बताते रहते थे। जिस क्षेत्र पर इनका अवैध कब्जा था, वहां पर सुबह रोजाना प्रार्थना सभा होती थी और जयहिंद के साथ जय सुभाष के नारे लगाए जाते थे। इन लोगों को यहां शूटिंग का प्रशिक्षण दिया जाता था। शूटिंग का प्रशिक्षण लेने वाले 15 साल तक की उम्र के बच्चे हुआ करते थे और उन्हें यही सिखाया जाता था कि उन्हें फौज और स्थानीय प्रशासन के खिलाफ गोली चलानी है। रामवृक्ष खुद भी मीसा एक्ट में जेल जा चुका था।

मथुरा की घटना अखिलेश यादव सरकार की बड़ी चूक : केंद्रीय गृह मंत्रालय

मथुरा हिंसा की फाइल तस्वीरनई दिल्‍ली: केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मथुरा में हुई भीषण हिंसा के लिए सीधे तौर पर अखिलेश यादव सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस मामले में राज्य सरकार से रिपोर्ट भी मांगी है। केंद्रीय गृहराज्य मंत्री किरन रिजिजू ने कहा कि ये ये एक बहुत बड़ी लापरवाही है। उन्होंने कहा, “केंद्र सरकार चिंतित है। ये कोई छोटी घटना नहीं है, राज्‍य सरकार से इस मामले पर रिपोर्ट मांगी गई है कि उससे इतनी बड़ी चूक कैसे हुई?” इस बात की भी जानकारी मांगी गई कि क्या उपद्रवियों को किसी का संरक्षण तो नहीं हासिल था? जैसा कि बीजेपी के स्थानीय नेता आरोप लगा रहे हैं।

भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने अखिलेश सरकार पर बेहद गंभीर आरोप लगाए हैं। मौर्य ने आरोप लगाया है कि मथुरा में पुलिस अफसरों का कत्ल करने वाले दंगाइयों को यूपी के ताकतवर कैबिनेट मंत्री और सीएम अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव का संरक्षण हासिल था। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी इस बारे में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से बात कर सख्त कार्रवाई करने को कहा है। ये लोग पिछले 28 महीने से वहां जमे हुए थे। मंत्रालय का कहना है कि इस बात की जांच की होनी चाहिए कि कैसे इन लोगों को सरकारी सुविधाएं मुहैया हो रही थीं। वहां सुबह-शाम परेड होती थी, पर पुलिस शांत बैठी हुई थी।

जवाहरबाग में कार्रवाई नहीं, निरीक्षण करने गई थी पुलिस : डीजीपी

उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) जावीद अहमद का कहना है कि पुलिस जवाहरबाग सरकारी पार्क में कार्रवाई नहीं बल्कि निरीक्षण के लिए गई थी। पुलिस का उद्देश्य कथित सत्याग्रहियों की रेकी करना था। मथुरा हिंसा के बाद शुक्रवार को यहां पहुंचे डीजीपी जावीद अहमद, एडीजी लॉ एंड आर्डर दलजीत चौधरी तथा प्रमुख सचिव गृह देवाशीष पांडा ने घटनास्थल और अन्य जगहों का जायजा लिया। साथ ही मथुरा पुलिस लाइन में सभी शहीद पुलिसकर्मियों को सलामी व श्रद्धांजलि दी।

डीजीपी अहमद ने कहा कि मथुरा हिंसा का मास्टरमाइंड रामवृक्ष यादव अगर जिंदा होगा तो जरूर पकड़ा जाएगा। डीजीपी ने कहा कि मामले में मुकदमा दर्ज कर लिया गया है और कार्रवाई की जा रही है। उन्होंने कहा कि पार्क से बरामद सभी असलहों की जांच की जा रही है। अब पुलिस का सारा ध्यान सिर्फ राम वृक्ष की गिरफ्तारी पर है। गुरुवार को हुई हिंसा पर उन्होंने कहा कि पुलिस केवल निरीक्षण के लिए गई थी। निरीक्षण के बाद किसी भी कार्रवाई की योजना दो-तीन दिन बाद की थी। पुलिस अभियान के लिए जवाहरबाग नहीं गई थी। उसका उद्देश्य कथित सत्याग्रहियों की रेकी करना था। तभी सत्याग्रहियों ने पुलिस पर हमला बोल दिया। उन्होंने हिंसा में 24 लोगों के मरने की पुष्टि की, जिनमें 11 की मौत जलकर हुई है।

हिंसा पर शिवपाल ने भाजपा पर साधा निशाना

कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव ने शुक्रवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर लाशों पर राजनीति करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि भाजपा के लोग अराजक हैं। शिवपाल ने मथुरा कांड पर दुख भी जाहिर किया। उन्होंने कहा, “पुलिस प्रशासन की लापरवाही से बड़ा नुकसान हुआ। मथुरा में बड़ी दुखद घटना हुई और मुझे सभी की मौत पर दुख है।” शिवपाल ने कहा कि गृहमंत्री ने रपट मांगी है, जांच के बाद कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि सीबीआई जांच का मतलब है देर, इसलिए जल्द से जल्द मामले पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

मथुरा हिंसा पर बिफरीं मायावती, अखिलेश से इस्तीफा मांगा

पूर्व मुख्यमंत्री व बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की अध्यक्ष मायावती ने मथुरा में खूनी संघर्ष में पुलिस अधिकारियों सहित जानमाल की भारी हानि को अत्यंत दु: खद और चिन्ताजनक करार देते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इस्तीफे की मांग की है। मायावती ने शुक्रवार को जारी बयान में कहा है, “इस अप्रिय घटना के लिए राज्य की सपा सरकार की अराजकतापूर्ण नीति पूरी तरह से जिम्मेदार है और यह सब यहां व्याप्त जंगलराज को दर्शाता है। इसकी जिम्मेदारी लेते हुए सपा सरकार को तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए।” मायावती ने इस मामले की समयबद्घ न्यायिक जांच की भी मांग की है।

उन्होंने कहा, “मथुरा के जवाहरबाग की सरकारी जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर हुए खूनी संघर्ष में खासतौर पर एक पुलिस अधीक्षक और एक थाना प्रभारी स्तर के पुलिस अधिकारी की मौत सपा सरकार की लचर नीतियों को साबित करती है। ऐसी नीतियों के कारण ही राज्य सरकार का कोई भी विभाग खासतौर पर पुलिस महकमे के अधिकारी-कर्मचारी कानूनी जिम्मेदारी निभाने में अपने आपको कितना असहाय, असमर्थ और मजबूर पा रहे हैं।” मायावती ने कहा कि सपा सरकार पर सबसे बड़ा आरोप यह है कि पिछले दो वर्ष से वहां अवैध कब्जा होने दिया गया।

उन्होंने सवाल उठाया कि कब्जाधारियों को इस हद तक छूट क्यों दी गई कि वे अवैध हथियार वहां जमा करते गए और यहां तक कि अवैध हथियार बनाने का कारखाना तक बना लिया। मायावती ने सवाल किया कि “अब क्या उनके परिवार को अनुग्रह राशि देकर इन परिवारों व पुलिस बल के टूटे मनोबल की क्षतिपूर्ति की जा सकती है? सपा सरकार ऐसा सोचती है तो यह उसकी गलत सोच है। समय पर उचित कार्रवाई नहीं करना व दु:खद घटना होने देना और फिर कथित तौर पर उसकी क्षतिपूर्ति घोषित करना सपा सरकार की विकृत मानसिकता को दर्शाता है।”

मथुरा हिंसा उप्र में ध्वस्त कानून-व्यवस्था का सबूत : भाजपा

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने शुक्रवार को जोर देते हुए कहा कि मथुरा में हिंसा उत्तर प्रदेश में ध्वस्त कानून-व्यवस्था का जीता जागता सबूत है। भाजपा प्रवक्ता संबित पात्रा ने यहां पार्टी मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन में कहा, “उत्तर प्रदेश में कानून-व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। मथुरा केवल एक छोटा सा शहर नहीं है। यह क्षेत्र का एक केंद्र है, जहां भारी मात्रा में हथियार तथा विस्फोटकों को इकट्ठा किया गया। स्थानीय प्रशासन को कैसे इसकी भनक नहीं लगी? इस तरह की गलती कैसे हो सकती है।” उन्होंने कहा कि इस तरह की घटना स्थानीय प्रशासन के संज्ञान के बिना नहीं हो सकती।

मथुरा के जवाहरबाग में अतिक्रमण हटाने गए पुलिस दल व अतिक्रमणकारियों के बीच गुरुवार शाम झड़प में दो पुलिस अधिकारियों सहित 24 लोग मारे गए हैं। पात्रा ने कहा कि वहां जो भी हथियार बरामद हुए, वे वहीं नहीं बने थे, बल्कि उन्हें कई जांच चौकियों व पुलिस नाके को पार कर वहां लाया गया था। उन्होंने कहा, “या फिर प्रत्येक जांच चौकी पर रिश्वत लेकर इन हथियारों को जाने दिया गया होगा।” पात्रा ने कहा, “राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के रिकॉर्ड के मुताबिक, राज्य में जब से समाजवादी पार्टी (सपा) की सरकार बनी है, पुलिसकर्मियों पर हमलों के मामले तीन गुना तक बढ़ गए हैं। साल 2014-15 के दौरान पुलिस पर 300 हमले हुए। वहीं पिछले एक साल में पुलिसकर्मियों पर 1,054 हमले हुए। जो सुरक्षा बल खुद अपनी सुरक्षा नहीं कर सकते वह लोगों की सुरक्षा कैसे करेंगे?”

उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तथा उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को अपने कर्तव्यों का निर्वहन न करने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। पात्रा ने यह भी कहा कि भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार उत्तर प्रदेश सरकार की हर संभव मदद करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हालात पर वह नजर बनाए हुए हैं।

शिवपाल के करीबी माफियाओं ने की पुलिस अफसरों की हत्या : मौर्य

उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्य ने मथुरा के जवाहरबाग कांड के लिए प्रदेश के कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव को जिम्मेदार ठहराया है। मौर्य ने इलाहाबाद में कहा कि शिवपाल के संरक्षणप्राप्त माफियाओं ने वहां पुलिस अफसरों की हत्या कर दी। उन्होंने कहा कि पीड़ित परिवारों का मुआवजा 20 लाख से बढ़ाकर एक करोड़ रुपए किया जाए। अगर इंसाफ नहीं हुआ तो भाजपा आंदोलन करेगी।

मौर्य ने कहा कि अखिलेश यादव दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करें। साथ ही उनको संरक्षण देने वाले अपने चाचा शिवपाल यादव पर भी कार्रवाई करें। उनके संरक्षण की वजह से ही दंगाइयों ने खून की होली खेली। वह पुलिस अफसरों पर भी गोलियां बरसाने में नहीं हिचके। मौर्य ने कहा कि आंदोलन की अगुवाई करने वाला भू-माफिया है। उसे शिवपाल यादव का संरक्षण हासिल था। उत्तर प्रदेश में अब कानून का राज नहीं रह गया है। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को यहां सत्ता में बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। अखिलेश इस मामले में उच्चस्तरीय जांच कराए। दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।

सपा के सरकार में आने के बाद से यूपी में जंगलराज और माफिया राज : आम आदमी पार्टी

आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के बाद से ‘जंगल राज और माफिया राज’ फल-फूल रहा है। ‘आप’ ने मथुरा में हुई एक झड़प में 24 लोगों की मौत के मद्देनजर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से इस्तीफे की मांग भी की। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव पर निशाना साधते हुए ‘आप’ के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने आरोप लगाया कि झड़प के पीछे एक स्थानीय गुंडे का हाथ है, जिसे ‘मुलायम सिंह यादव प्राइवेट लिमिटेड’ के एक वरिष्ठ मंत्री का संरक्षण प्राप्त है। संजय सिंह की अगुवाई में ‘आप’ नेताओं का एक प्रतिनिधिमंडल आज मथुरा जाएगा।

उन्होंने कहा, ‘जब से समाजवादी पार्टी सत्ता में आई है, उत्तर प्रदेश में गुंडा और माफिया राज नजर आ रहा है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को एक भी मिनट गंवाए बगैर इस्तीफा दे देना चाहिए।’ संजय ने कहा कि सपा की सरकार आने के बाद से उत्तर प्रदेश में दंगे के 600 से ज्यादा मामले हो चुके हैं। उन्होंने कहा, ‘आप’ ने भी जमीन पर अवैध कब्जे करने वालों को हटाने की मांग की थी और उच्च न्यायालय के आदेश के बाद भी ऐसा नहीं किया गया।