धार्मिक मान्यतानुसार हिन्दू धर्म में गणेश जी सर्वोपरि स्थान रखते हैं। सभी देवताओं में इनकी पूजा-अर्चना सर्वप्रथम की जाती है। श्री गणेश जी विघ्न विनायक हैं। भगवान गणेश गजानन के नाम से भी जाने जाते हैं क्योंकि उनका मुख हाथी का है| क्या आपको पता है कि भगवान श्रीगणेश का सिर कटने के बाद हाथी के बच्चे का मुख लगा लेकिन उनका असली सिर कहाँ गया? इसके बारे में आज आपको एक रोचक जानकारी देते हैं।
ब्रह्मांड पुराण में कहा गया है कि जिस समय माता पार्वती ने भगवान श्री गणेश को जन्म दिया उस समय इन्द्रदेव समेत कई देवी- देवता उनके दर्शनों के लिए उपस्थित हुए| जिस समय यह देवी देवता पधारे उसी समय न्यायाधीश कहे जाने वाले शनिदेव भी वहां आये| शनिदेव के बारे में कहा जाता है कि उनकी क्रूर दृष्टि जहां भी पड़ेगी, वहां हानि होगी। उनकी उपस्थिति से माता पार्वती रुष्ट हो गईं| फिर भी शनि देव की दृष्टि जब गणेश पर पड़ी और दृष्टिपात होते ही श्री गणेश का मस्तक अलग होकर चन्द्रमण्डल में चला गया।
इसी तरह दूसरे प्रसंग के मुताबिक, एक बार की बात है माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। वह चाहती थी की स्नान करते समय उन्हें कोई परेशान न करें। तब उन्होंने स्नान से पहले अपने मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे अपना द्वारपाल बनाकर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश दिया। उसी समय वहाँ भगवान शिवजी आये और अन्दर प्रवेश करने लगे, तब बालक ने उन्हें बाहर रोक दिया। शिव जी ने उस बालक को कई बार समझाया लेकिन वह नहीं माना। इस पर शिवगणों ने भगवान शिवजी के कहने पर उस बालक को द्वार से हटाने के लिए उससे भयंकर युद्ध किया। लेकिन उसे कोई पराजित नहीं कर सका। बालक के पराक्रम और हठधर्मिता से क्रोधित होकर शिवजी ने उस बालक का सिर काट दिया। जो चंद्रलोक चला गया|
जब माता पार्वती स्नान करके निकली तो अपने पुत्र का कटा हुआ सिर देखकर क्रोधित हो उठीं और शिवजी से उसे पुनः जीवित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा की अगर उनके पुत्र को जीवित नहीं किया गया तो प्रलय आ जाएगी। यह सब देखकर सारे देवी-देवता भयभीत हो गये। तब देवर्षि नारद न एपर्वती जी को शांत किया और बालक को जिन्दा करने का अनुराध भगवान शिवजी से करने लगे। बड़ी समस्या यह थी कि कटा हुआ सिर वापस से धड के साथ जुड नही सकता था। अतः यह तय हुआ कि अगर किसी दूसरे जीव का सिर मिल जाए तो यह बालक वापस से जिन्दा हो जाएगा।
शिव जी के आदेशानुसार शिवगणों जब दूसरा सिर खोजने निकले तो उन्हें एक जंगल में एक हाथी का बच्चा मिला। शिवगणों उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आए। इसके पश्चात शिव जी ने उस गज के कटे हुए मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया और इस बालक का नाम गणेश पड़ा। अगर आप उस कटे हुए सिर को देखना चाहते हैं तो आपको उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित एक गुफा के अंदर जाना होगा। यहां न सिर्फ आपको गणेश जी के कटे हुए सिर दिखेंगे बल्कि कई ऐसे दृश्य दिखेंगे जो आपको हैरत में डालने के लिए काफी है।
इस रहस्यमयी गुफा की खोज धरती पर भगवान शिव के अवतार माने जाने वाले आदिगुरू शंकराचार्य को माना जाता है। यह ऐसी गुफा है जिसके वहां मौजूद होने की कल्पना करना भी आम आदमी के लिए मुश्किल हो सकता था क्योंकि यह पहाड़ी से करीब 90 फीद अंदर पाताल में मौजूद है। इसमें प्रवेश के लिए श्रद्धालुओं को जंजीर का सहारा लेना पड़ता है। इस तस्वीर में गुफा में मौजूद कुंड देखिए। रहस्यमयी गुफा में आप जाएंगे तो देखकर हैरान रह जाएंगे कि गुफा में करीब 33 करोड़ देवी-देवता मौजूद हैं। यानी यह गुफा अपने आप में पूरा का पूरा देवलोक प्रतीत होता है। इसी गुफा में एक स्थान पर गणेश जी का कटा हुआ सिर भी रखा हुआ है।
यह कोई आम पिंड नहीं है बल्कि यह है अपने गणपति बप्पा। माना जाता है कि यही है भगवान गणेश का कटा हुआ सिर जिस पर भगवान शिव की अद्भुत कृपा आज भी बरसाती है। अब आप यह भी जान लीजिए कि इस गुफा का नाम है पाताल भुवनेश्वर गुफा यानी संसार के मालिक ईश्वर की गुफा। भगवान शिव ने अपने पुत्र के कटे हुए सिर की तृप्ति के लिए यहां सहस्रकमल दल की स्थापना की है ऐसी मान्यता है। इस कमल दल से जल की बूंदें भगवान गणेश के सिर पर टपकता है। कमल के मध्य से टपकता हुआ बूंद सीधे गणेश जी के मुंख में जाता है। कुदरत के इस अद्भुत दृश्य को देखकर श्रद्धालु भाव-विभोर होकर हैरत में पड़ जाते हैं।
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