करवा चौथ: अखंड सुहाग व पारस्परिक प्रेम का प्रतीक

करवा चौथ भारत में मुख्यतः उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह व्रत इस बार 22 अक्टूबर दिन मंगलवार को मनाया जायेगा| करवा चौथ का पर्व सुहागिन स्त्रियाँ मनाती हैं| पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चन्द्रमा की पूजा की जाती है| चंद्रमा के साथ- साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्रीगणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है| करवाचौथ के दिन उपवास रखकर रात्रि समय चन्द्रमा को अर्ध्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है|

करवा चौथ की व्रत विधि- 

कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला करक चतुर्थी व्रत स्त्रियां अखंड़ सौभाग्य की कामना के लिए करती हैं| इस व्रत में शिव-पार्वती, गणेश और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है| इस शुभ दिवस के उपलक्ष्य पर सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं| पति-पत्नी के आत्मिक रिश्ते और अटूट बंधन का प्रतीक यह करवाचौथ या करक चतुर्थी व्रत संबंधों में नई ताज़गी एवं मिठास लाता है| करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है| सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है|

करवा चौथ व्रत की प्रक्रिया-

करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें| व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये। करवा चौथ का व्रत पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए रहा जाता है| दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। उसके बाद आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और पक्के पकवान बनाएं। उसके बाद पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। ध्यान रहे गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। उसके बाद जल से भरा हुआ लोटा रखें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं। गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।

'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥' करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासूजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।

करवा चौथ की कथा- 

इस पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित है, जिनमें एक बहन और सात बहनों की कथा बहुत प्रसिद्ध है| बहुत समय पहले की बात है, एक लडकी थी, उसके साथ भाई थें, उसकी शादी एक राजा से हो गई| शादी के बाद पहले करवा चौथ पर वो अपने मायके आ गई| उसने करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी| वह बडी बेसब्री से चांद निकलने की प्रतिक्षा कर रही थी| 

उसके सातों भाई उसकी यह हालत देख कर परेशान हो गयें, वे सभी अपने बहन से बेहद स्नेह करते थें| उन्होने अपनी बहन का व्रत समाप्त कराने की योजना बनाई| और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी| बहन ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर, भोजन खा लिया| बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबियत खराब होने लगी| 

अपने पति की तबियत खराब होने की खबर सुन कर, वह अपने पति के पास ससुराल गई और रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिलें| पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृ्त्यु हो चुकी है, क्योकि तुमने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था|

यह सुनकर बहन ने अपनी भाईयों की करनी के लिये क्षमा मांगी| माता पार्वती ने कहा" कि तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जायेगा, लेकिन इसके लिये तुम्हें, करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा| इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई| माता के कहे अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया|

धर्म ग्रंथों में एक महाभारत से संबंधित अन्य पौराणिक कथा का भी उल्लेख किया गया है| इसके अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं व दूसरी ओर पांडवों पर कई प्रकार के संकटों से आन पड़ते हैं| यह सब देख द्रौपदी चिंता में पड़ जाती है वह भगवान श्री श्रीकृष्ण से इन सभी समस्याओं से मुक्त होने का उपाय पूछती हैं| श्रीकृष्ण द्रौपदी से कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत रहे तो उसे इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है| भगवान कृष्ण के कथन अनुसार द्रौपदी विधि विधान सहित करवा चौथ का व्रत रखती हैं जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं|
WWW.PARDAPHASH.COM

विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस पर विशेष...........

महिलाओं में हड्डी रोगों का होना एक आम बात है, लेकिन यह बीमारी अब पुरुषों में भी तेजी से बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि 60 वर्ष से अधिक के पुरुषों को ऑस्टियोपोरोसिस विशेष रूप से तेजी से प्रभावित कर रहा है।

शालीमार बाग स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलटी अस्पताल के परामर्शदाता (र्यूमेटोलॉजी) हेमंत गोपाल ने आईएएनएस को बताया, "पूर्व में महिलाओं से संबंधित माना जाने वाला अस्थि रोग ऑस्टियोपोरोसिस अब पुरुषों में भी तेजी से बढ़ रहा है। यह समस्या 60 वर्षीय या उससे अधिक उम्र के पुरुषों को ज्यादा प्रभावित करती है।"

ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों में कैल्शियम की कमी की वजह से होता है। यह कमी आगे चलकर कूल्हे, घुटनों और कंधों में फै्रक्चर की वजह बनती है। दुनिया में कोरोनरी हृदय रोग के बाद इस रोग को दूसरा सबसे आम स्वास्थ्य जोखिम माना जाता है। 93 प्रतिशत महिलाएं इसके प्रति जागरूक हैं, लेकिन उनमें से महज आठ से 10 प्रतिशत यह जानती हैं कि वे इससे ग्रस्त हैं।

एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2013 के अंत तक करीब 360 लाख लोग इससे पीड़ित होंगे। फोर्टिस अस्पताल में हड्डी रोग विभाग के डॉक्टर धनंजय गुप्ता ने बताया, "जब कोई कूदता है तो सारा वजन हड्डियों पर पड़ता है और यह हड्डियों के विकास के लिए उपयोगी है। हाथों, घुटनों और जोड़ों पर भार पड़ना चाहिए ताकि वे मजबूत हों।"

विटामिन डी की कमी और खनिजयुक्त भोजन का अभाव भी अस्थियों में कैल्यिशम की कमी की अन्य वजह हैं। इसके लिए चिकित्सक धूप लेने की सलाह देते हैं। अपोलो अस्पताल में वरिष्ठ आर्थोपेडिक और ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन राजीव के.शर्मा ने बताया, "कुछ फै्रक्चरों की पहचान सालों तक नहीं हो पाती। लेकिन मरीज को जब तक कष्टकारी फै्रक्चर नहीं होते, उन्हें उनकी ऑस्टियोपोरोसिस समस्या के बारे में पता ही नहीं चलता है। इसलिए हम 35 वर्ष से अधिक उम्र वालों को बोन डेंसिटी की जांच कराते रहने की सलाह देते हैं।"

कुल मिलाकर डॉक्टर कहते हैं कि महिलाओं और पुरुषों दोनों को व्यायाम करना चाहिए। पौष्टिक आहार लेना चाहिए ताकि हड्डी रोग ना हों। 

www.pardaphash.com

टैटू ने 22 वर्षो बाद परिवार से मिलाया

एक साधारण से टैटू की बदौलत 22 साल पूर्व परिवार से बिछुड़ा एक लड़का दोबारा परिवार से मिल सका। यह युवक इस समय में महाराष्ट्र पुलिस में तैनात है। ठाणे का धनगड़े परिवार बेटे गणेश की लौटने की खुशी में दो दशकों में पहली बार दोगुनी धूमधाम से दिवाली मनाने की योजना बना रहा है। 22 साल पूर्व परिवार से बिछुड़ा गणेश हाथ पर गुदे टैटू की बदौलत इसी सप्ताह परिवार से आ मिला।

वर्ष 1991 में जब गणेश छह वर्ष का था तो उसने एक दिन स्कूल बंक कर दिया। उसी दौरान खेलते हुए वह ठाणे के वागले इस्टेट उपनगर इंदिरा नगर में स्थित अपने घर से बहुत आगे निकल गया। लेकिन अब वह लौट आया है। उसके हाथ पर गुदे नाम 'मांडा' को दो दिन पहले ही मां ने अपने लाल को तुरंत पहचान लिया। मां ने उसके हाथ पर यह नाम चार वर्ष की आयु में गुदवाया था।

युवा गणेश ने अपने 22 वर्षो के कटु अनुभवों को याद करते गुरुवार को बताया, "उस दिन हम स्कूल जाने से ऊब गए थे और मैं दोस्तों संग खेल रहा था, लेकिन हम खेलते-खेलते बहुत आगे निकल गए और लौट नहीं सके। तब उम्र में बड़े एक लड़के ने कहा कि वह हमें घुमाने ले जाएगा, इसलिए हम उसके संग चले गए।"

तीनों ने ठाणे स्टेशन से बाहर जाने के लिए ट्रेन पकड़ी और करीब एक घंटे बाद वह कुछ स्टेशन पार कर गए। बाद में पुल पार किया और प्लेटफार्म के उस पार गए। वहां उसके दो दोस्तों ने उसे कुछ देर इंतजार करने को कहा। गणेश ने कहा, "वह नहीं लौटे। मैं अकेला था। भूखा। क्या करूं, कहां जाऊं, कुछ सूझ नहीं रहा था। जो ट्रेन पहले आई, वही मैंने पकड़ ली। बाद में मैंने उस पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस लिखा देखा।"

उसकी जिंदगी बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाए जाने वाले अनाथ बच्चों की जैसी गुजरी। समय बीतता गया मुंबई की गलियों में, रेलवे बेंच पर सोकर, सड़क किनारे बने ढाबों में काम करके और जन शौचालय का प्रयोग करते हुए।

इस बीच उसकी मां मांडा धनगड़े ने बेटे की तलाश में कोई कसर नहीं छोड़ी। मांडा ने अश्रुपूर्ण आंखें लिए कहा, "हमने जिले के भागों में उसके फोटो का प्रचार किया था। पुलिस मदद ली, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। वर्षो बीतने के चलते हमने इसके लौटने की उम्मीद छोड़ दी थी।"

खेल में उत्कृष्ट गणेश राज्य पुलिस परीक्षा में बैठा था और वर्ष 2010 में इसमें चयनित हो गया था। वर्तमान में बतौर क्यूआरटी सदस्य तैनात होने से पूर्व उसने विभिन्न पदों पर काम किया। गणेश और उसका पूरा परिवार पिछले माह युवा भर्ती के लिए उसे लेकर आए क्यूआरटी इंस्पेक्टर श्रीकांत सोंधे का आभारी है। आभारी गणेश ने कहा, "मेरी बांह पर गुदे टैटू की तह में जाने के लिए सोंधे ने सभी पुलिस जांच तकनीकों का प्रयोग किया। अंत में मेरे परिवार तक पहुंचने में मुझे सफलता मिल गई।" 

www.pardaphash.com

कानपुर की गलियों में मोदी के स्विस कॉटेज के चर्चे

उत्तर प्रदेश में चुनावी रैली के लिए कानपुर आ रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के लिए बनाए गए स्विस कॉटेज के चर्चे कानपुर के आम लोग के बीच भी हो रहे हैं। आधुनिकतम सुख सुविधाओं से लैस इस कॉटेज में भाजपाईयों ने मोदी के लिए गुजराती व्यंजनों का भी इंतजाम किया है, ताकि फुरसत के क्षणों में मोदी इसका लुत्फ उठा सकें।

कानपुर में मोदी का स्वागत गुजराती खानपान के साथ होगा। मोदी के आने के पहले ही उनके लिए तैयार हो रहे स्विस कॉटेज में सभी व्यवस्थाएं कर दी जाएंगी। यह स्विस कॉटेज मंच के ठीक पीछे तैयार किया जा रहा है, जो पूरी तरह से वातानुकूलित होगा। इसमें श्नानागार, सोफा, बिस्तर, सेंट्रल टेबल की व्यवस्था होगी। स्वागत सत्कार के लिए मशहूर राज्य उत्तर प्रदेश के नेता उनके खान पान में किसी भी तरह की कमी नहीं होने देना चाहते।

भाजपा के जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र मैथानी ने मोदी के लिए गुजरात से विशेष नमकीन, ढोकला और फाफड़ा मंगवाया है जो कि मोदी के आने के पहले ही रैली स्थल पर आ जाएगा। भाजपा के एक पदाधिकारी ने बताया कि यह व्यवस्था उनकी तरफ से की जा रही है। यदि प्रोटोकॉल के तहत कोई मांग या किसी सामग्री को हटाने के लिए कहा जाएगा तो उसे तुरंत बदलवा दिया जाएगा। साथ ही मोदी के लिए ठंडा व गरम दोनों तरह के पानी का प्रबंध किया जा रहा है।

एक सुरक्षा अधिकारी के मुताबिक, स्विस कॉटेज से लेकर मंच तक अत्यंत खास लोगों को ही पूरी तरह से प्रवेश करने दिया जाएगा, वह भी जिन्हें मोदी बुलाएंगे। खाने पीने का सारा सामान पहले तीन लोग जांचेंगे। इसके बाद ही खाने का सामान मोदी के सामने रखा जाएगा।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि किसी भी वीआईपी गतिविधि के दौरान एक सुरक्षित स्थान बनाया जाता है, ताकि आने वाले व्यक्ति को जरूरत पड़ने पर वहां ठहराया जा सके। इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए इसे भी तैयार किया गया है। 

www.pardaphash.com

खागा क्षेत्र में भी मिल सकता है खजाना!

उत्तर प्रदेश में आदमपुर के पुरातात्विक स्थल पर अकूत संपदा की बात सामने आने के बाद तहसील क्षेत्र के पुरातात्विक स्थल भी चर्चा का विषय बन गया है। पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के शिकार ऐसे स्थानों के प्रति जहां धन के लालची तांत्रिक सक्रिय हो गए हैं, वहीं स्थानीय ग्रामीणों का कौतूहल भी जाग्रत हो गया है।

खागा कस्बे के करीब स्थित कुकरा कुकरी ऐलई ग्राम का टीला तथा टिकरी गांव का टीला इन दिनों जिज्ञासु लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इन स्थानों पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है, जबकि कुछ ऐसे विवादास्पद स्थानों के प्रति भी लोग आकर्षित हुए हैं जिन्हें लोगों ने अपना कब्जा जमा रखा है।

जनपद मुख्यालय के भिटौरा ब्लॉक अंर्तगत गंगा तट पर स्थित आदमपुर गांव में सोने का खजाना दबे होने की चर्चा ने क्षेत्र के पुरातात्विक महत्व के स्थानों का जनाकर्षण बढ़ा दिया है। लोगों के बीच ऐसे स्थान चर्चा के विषय बने हुए हैं।

लोगों का कहना है कि ऐतिहासिक घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं से भूगर्भ में समा चुके पुराने वैभव का समाज व राष्ट्रहित में उपयोग के प्रति संत शोभन सरकार की पहल पर सरकार की सक्रियता को प्रशासन विस्तार दे दे तो खागा की सरजमीं भी देश का भाग्य बदलने में सहायक साबित हो सकती है।

जनचर्चा के अनुसार, नगर के संस्थापक राजा खड़क सिंह के इतिहास से जुड़ा कुकरा कुकरी स्थल में भी अकूत भू-संपदा होने की संभावना है। इस स्थान को लेकर लंबे समय तक सक्रिय रहे पत्रकार सुमेर सिंह का कहना है कि इस टीले के आसपास के ग्रामीणों को कई मर्तबा बहुमूल्य नगीने पत्थर व सिक्के हाथ लगे हैं। इनका कहना है कि टीले की थोड़ी बहुत खुदाई उन्हांेने करा दी थी, जिसमंे कतिपय भग्नावशेष उनके हाथ लगे थे। बताया कि इस बारे मे उन्होंने पुरातत्व विभाग को पत्र भी लिखा था लेकिन कोई जवाब न मिलने के कारण निराश हो कर बैठ गए।

अब जबकि आदमपुर के खजाने की बात सामने आ गई है, इन दिनों उस स्थान पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है। प्राचीन धरोहरों और सामानों के शौकीन कुंवर लाल रामेंद्र सिंह के अनुसार, इस स्थान के चक्कर लगाते हुए उन्हें कई बार ऐसे तांत्रिक भी मिले हैं, जिन्होंने टीले के अंदर बहुमूल्य संपदा होने के का दावा किया है।

फिलहाल इन दिनों इस स्थान पर धनाकांक्षी लोगांे की चहल पहल बढ़ गई है। नहर किनारे रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि आजकल शाम को कुछ लोग टीले के आसपास मंडराते देखे जाते हैं। नगर के दक्षिण-पूर्व सीमा के बाहर ऐलई गांव के पहले प्रवेश मार्ग के पास जिस टीले पर माइक्रो टावर लगा है, वह भी इस समय चर्चा में शुमार है।

बताते हैं कि सन् 1984 में जब टावर लगाने के लिए टीले की सतही की खुदाई हुई थी, उस समय भारी मात्रा में चांदी व ताबे के सिक्के निकले थे। अरबी भाषा की लिखाई वाले ये सिक्के कुछ ग्रामीणों के हाथ भी लगे थे, लेकिन डर और लोभ की वजह से लोगों ने सिक्कों के बाबत चुप्पी साध ली। लगभग 200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले इस टीले के आसपास अब आबादी बढ़ जाने के बावजूद रात मे टीले का वातावरण रहस्यमय रहता है, ग्रामीण भी टीले में जाने से भय खाते हैं। 

www.pardaphash.com

कानपुर के लिए आकर्षण बना मोदी का मंच

उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की रैली को लेकर लोगों के भीतर गजब का उत्साह देखा जा रहा है। मोदी के साथ खड़े होकर तस्वीर खिंचवाने की तमन्ना भले ही पूरी न हो लेकिन मोदी के आने से पहले ही उनके लिए बने भव्य मंच के सामने ही फोटो खिंचवाकर लोग खुश दिखाई दे रहे हैं।

भाजपा की विजय शंखनाद रैली के लिए तैयार किया गया मंच काफी भव्य है। काफी दिनों से इसे सजाने संवारने का काम चल रहा था, लेकिन शुक्रवार को कानपुरवासियों ने इसका दीदार किया। लोगों के बीच उत्सव सरीखा माहौल दिखाई दिया। शुक्रवार देर रात तक लोग परिवार सहित मोदी के रैली स्थल को देखने पहुंचे।

रैली स्थल की सैर करने पहुंचे लोगों ने भी जमकर अपनी इच्छा पूरी की। मोदी के लिए बनाए गए भव्य मंच के सामने खड़े होकर फोटो खिंचवाने का सिलसिला घंटों तक चलता रहा। मोदी के मंच की निगरानी और आसपास की सुरक्षा का जिम्मा गुजरात से आए हुए अधिकारियों ने अपने हाथों में ले लिया है। मोदी के खास और करीबी माने जाने वाले इन अधिकारियों के सुझावों के आधार पर ही भाजपा के पदाधिकारियों ने मंच को अंतिम रूप दिया है।

देशभर में अब तक हुई मोदी की हर रैली में अपेक्षा से अधिक भीड़ जुट चुकी है। प्रदेश में पहली रैली कानपुर में होने से भाजपाइयों को भीड़ का अनुमान भी कुछ बढ़ गया है। रैली में आने वाला कोई भी व्यक्ति बगैर मोदी को सुने व देखे न जाए इसके लिए भी व्यवस्थाएं की जा रही हैं। इंदिरा नगर में बुद्धापार्क के सामने खाली पड़े मैदान के 1.08 लाख वर्ग मीटर स्थान का प्रयोग रैली के लिए किया जा रहा है। रैली में तीन से साढ़े तीन लाख लोगों के जुटने का अनुमान लगाया जा रहा है।

भीड़ की वजह से कोई भी व्यक्ति रैली में मोदी को देखे बिना न लौटे, इसके लिए भाजपाइयों ने रैली स्थल से दो किलोमीटर की परिधि में मोदी को देखने और उनके भाषण को सुनने का प्रबंध किया है। मैदान के अंदर 10 और दो किलोमीटर परिधि में 17 एलसीडी स्क्रीन लगाई गई है। जाम या अन्य कारण से रैली स्थल तक न पहुंचने वाले लोगों को भी मोदी स्पष्ट आवाज के साथ एलसीडी स्क्रीन पर दिखाई देंगे। भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष शुक्ला ने बताया कि बेहतर प्रसारण के लिए 17 एलसीडी स्क्रीन वाले टेलीविजन लगाए गए हैं। मोदी की रैली को ऐतिहासिक माना जा रहा है। 

www.pardaphash.com

बिहार में नक्सली हमले के बाद जातीय संघर्ष की आशंका

बिहार के नक्सल प्रभावित औरंगाबाद जिले में नक्सली घटनाएं आम रही हैं, लेकिन गुरुवार को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के संदिग्ध नक्सलियों द्वारा बारूदी सुरंग में विस्फोट कर रणवीर सेना के समर्थक माने जाने वाले सुशील पांडेय सहित सात लोगों की हत्या किए जाने के बाद अब जातीय संघर्ष के जोर पकड़ने की आंशका बढ़ गई है।

औरंगाबाद जिले के ओबरा थाना क्षेत्र में नक्सलियों ने गुरुवार देर शाम बारूदी सुरंग विस्फोट कर सुशील पांडेय सहित सात लोगों की हत्या कर दी। इस घटना के बाद से औरंगाबाद, रोहतास, अरवल, जहानाबाद के लोग खूनी संघर्ष फिर से शुरू होने की आशंका से सहमे हुए हैं।

गौरतलब है कि 90 के दशक में रणवीर सेना और भाकपा (माओवादी) के बीच हुए खूनी संघर्ष में सैकड़ों लोगों की जान गई थी। जून 2000 में सेना और भाकपा (माओवादी) के बीच संघर्ष औरंगाबाद जिले के मियांपुर गांव में हुआ था, जहां भाकपा (माओवादी) के 33 कथित समर्थकों की हत्या कर दी गई थी। इस घटना के बाद दोनों संगठनों के समर्थक एक-दूसरे से टक्कर लेने से बच रहे थे। कहा जाता है कि मियांपुर की घटना अरवल के सेनारी गांव में भाकपा (माओवादी) द्वारा किए गए नरसंहार का बदला था।

इस घटना के बाद जहां सेना सुस्त पड़ते चली गई, वहीं भाकपा (माओवादी) ने भी संघर्ष छोड़ संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दिया। वैसे तो औरंगाबाद में रणवीर सेना का कोई सशक्त संगठन नहीं रहा है, लेकिन समय-समय पर सेना के समर्थक यहां कमान संभालते रहे हैं। सुशील पांडेय भी 90 के दशक के उत्तरार्ध में नक्सलियों के सबसे बड़े शत्रु रहे थे।

औरंगाबाद में गुरुवार को नक्सली घटना के बाद रणवीर सेना के संस्थापक ब्रह्ममेश्वर मुखिया के पुत्र और राष्ट्रवादी किसान संगठन के केंद्रीय अध्यक्ष इंदुभूषण ने सरकार को चेताते हुए कहा है कि किसान जाग जाएंगे तो उन पर काबू पाना सरकार के वश के बाहर हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार को अपनी मंशा साफ करनी चाहिए।

इधर, संगठन के प्रवक्ता देवेंद्र सिंह ने तो सरकार को ही कटघरे में लाते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं सरकार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। वे कहते हैं कि किसान अगर मारे जाते रहेंगे तो हमने भी चूड़ियां नहीं पहन रखी हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मुखिया हत्याकांड के बाद राज्य सरकार पर सब कुछ छोड़ दिया गया, पर सरकार संगठन की अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरी है।

सूत्र इस घटना को लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार से भी जोड़कर देख रहे हैं। लक्ष्मणपुर बाथे गांव में दलित समुदाय के 58 लोगों की हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा सजा पाए गए सभी 26 अभियुक्तों को नौ अक्टूबर को पटना उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था। माना जाता है कि इस फैसले के विरोध में भाकपा (माओवादी) ने इस घटना को अंजाम दिया है।

लक्ष्मणपुर बाथे जनसंहार के मामले में पटना की व्यवहार न्यायालय ने वर्ष 2010 में 26 लोगों को दोषी ठहराते हुए 16 को फांसी तथा 10 को उम्रकैद की सजा सुनाई थी तथा 19 लोगों को साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया गया था। इस मामले में दो आरोपियों की मामले की सुनवाई के दौरान ही मौत हो गई थी। आरोप है कि रणवीर सेना के लोगों ने एक दिसंबर 1997 को लक्ष्मणपुर बाथे गांव में 58 दलितों की हत्या कर दी थी। मरने वालों में 27 औरतें और 16 बच्चे शामिल थे। 

www.pardaphash.com

दार्जिलिंग: दुनिया के खुबसूरत पर्वतीय स्थलों में से एक

भारत के पश्चिम बंगाल में स्थित इकलौता पर्वतीय पर्यटन स्थल दार्जिलिंग दुनिया के खुबसूरत पर्वतीय स्थलों में से जाना जाता है। अपने खूबसूरती के कारण ही इसे पहाड़ियों की रानी कहा जाता है। यहां की औसत ऊँचाई 2,134 मीटर है। चाय के बागानों के लिए मशहूर दार्जिलिंग हिमालय की पहाड़ियों के मोहक नजारे दिखाता है। दार्जिलिंग शब्द की उत्त्पत्ति दो तिब्बती शब्दों, दोर्जे (बज्र) और लिंग (स्थान) से हुई है। इस का अर्थ "बज्र का स्थान है।"

यहां मंदिरों व मठों के जरिए अध्यात्म का संदेश गूंजता है। ट्रेकिंग के लिए भी यह बेस्ट जगह है। फिर टॉय ट्रेन का रोमांच भी है। यानी हर एज ग्रुप के लिए यहां कुछ न कुछ खास जरूर है । 1835 में अंग्रेजो ने लीज पर लेकर इसे हिल स्टेशन की तरह विकसित करना प्रारम्भ किया। फिर चाय की खेती और दार्जिलिंग हिमालयन रेलवे की स्थापना और शैक्षणिक संस्थानों की शुरुआत भी हुई। कुछ इस तरह से 'क्वीन ओफ हिल्स' का विकास शुरू हुआ। दार्जिलिंग की यात्रा का एक खास आकर्षण हरे भरे चाय के बागान हैं। हजारों देशों में निर्यात होने वाली दार्जिलिंग की चाय सबको खूब भाती हैं।
यह शहर पहाड़ की चोटी पर स्थित है। यहां सड़कों का जाल बिछा हुआ है। ये सड़के एक दूसरे से जुड़े हुए है। इन सड़कों पर घूमते हुए आपको पूरानी इमारतें दिखाई देंगीं। ये इमारतें आज भी काफी आकर्षक प्रतीत होती है। आप यहां कब्रिस्‍तान, पुराने स्‍कूल भवन तथा चर्चें भी देख सकते हैं। पुराने समय की इमारतों के साथ-साथ आपकों यहां वर्तमान काल के कंकरीट के बने भवन भी दिख जाएंगे। पुराने और नए भवनों का मेल इस शहर को एक खास सुंदरता प्रदान करता है।  
यहाँ स्थित टाइगर हिल शहर से 13 किमी दूर 8482 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। टाइगर हिल सूर्योदय के अद्भुत नजारे के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां कंचनजंगा की पहाड़ियों के पीछे से सूर्योदय का सतरंगी नजारा देखने के लिए रोजाना देश-विदेश के हजारों पर्यटक जुटते हैं। यहां से मौसम साफ रहने पर विश्व की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट भी नजर आतीहै ।

यहाँ शाक्य मठ स्थित है। यह मठ दार्जिलिंग से 8 किलोमीटर दूर स्थित है शाक्य मठ शाक्य संप्रदाय का ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण मठ है। इसकी स्थापना 1915 में की गई थी इसमें एक विशाल प्रार्थना कक्ष भी है माकडोग मठ यह मठ चौरास्ता से 3 किलोमीटर की दूरी पर आलूबरी गांव में स्थित है यह बौद्ध धर्म के योलमोवा संप्रदाय सेसंबंधित है और इसकी स्थापना श्री संगे लामा ने की थी। बता दें कि यह एक छोटा सा संप्रदाय है , जो नेपाल केपूर्वोत्तर भाग से दार्जिलिंग में आकर बस गया।  
संजय गांधी जैविक उद्यान - इस उद्यान में रेड पांडा व ब्लैक बीयर समेत कई दुर्लभ प्रजाति के जानवर व पक्षी हैं। इसके अलावा लायड्स बोटेनिकल गाडर्ेन में तरह-तरह की वनस्पतियां देखी जा सकती हैं।रंगीन वैली पैसेंजर रोपवे - शहर से तीन किमी दूर स्थित यह रोपवे देश का पहला यात्री रोपवे है। शहर के चौकबाजार से टैक्सी से यहां तक पहुंच कर रोपवे की सवारी का आनंद उठाया जा सकता है।
जपानी मंदिर विश्‍व में शांति लाने के लिए इस स्‍तूप की स्‍थापना फूजी गुरु जो कि महात्‍मा गांधी के मित्र थे ने की थी। भारत में कुल छ: शांति स्‍तूप हैं। निप्‍पोजन मायोजी बौद्ध मंदिर जो कि दार्जिलिंग में है भी इनमें से एक है। इस मंदिर का निर्माण कार्य 1972 ई. में शुरु हुआ था। यह मंदिर 1 नवंबर 1992 ई. को आम लोगों के लिए खोला गया। इस मंदिर से पूरे दार्जिलिंग और कंचनजंघा श्रेणी का अति सुंदर नजारा दिखता है। अगर आप कभी भी हिल्स स्टेशन जाने का सोचे तो दार्जलिंग के बारे में जरुर सोचे। एक बार इन खुबसूरत पहाड़ियों में आने के बाद जाने का मन नहीं होता।  









..यहां दशहरे के 6 दिन बाद होता है रावण दहन

बुराई का प्रतीक माने जाने वाले रावण का पुतला देशभर में दशहरे के दिन जलाया जा चुका है लेकिन उत्तर प्रदेश के एक कस्बे में रावण दशहरे के छह दिन बाद तक जीवित रहता है। राजधानी लखनऊ से करीब 60 किलोमीटर दूर उन्नाव जिले के अचलगंज कस्बे में दशहरे के छह दिन बाद रावण और उसके कुनबे का दहन करने की परंपरा सालों से चली आ रही है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि अचलगंज पूजा समिति की खराब आर्थिक स्थिति इस अनोखी परंपरा की वजह है, जो करीब सौ सालों से चली आ रही है। अचलगंज पूजा समिति के महामंत्री मोतीलाल गुप्ता ने बताया, "पूजा समिति ने गठन के बाद पहली बार आपसी सहयोग से चंदा लगाकर दुर्गा पूजा और दशहरा का आयोजन करने का निर्णय लिया। दुर्गा पूजा के आयोजन के वक्त ही इतना खर्चा आ गया और समिति के सामने पैसे की किल्लत आ गई।"

गुप्ता ने कहा, "दुर्गा पूजा तो किसी तरह संपन्न हो गई लेकिन पैसे की किल्लत की वजह से विजयादशमी के दिन रावण दहन का आयोजन नहीं हो पाया। समिति के सदस्यों ने एक बार फिर से लोगों से मदद मांगी। चार-पांच दिन बाद जब पैसे एकत्र हो गए तो फिर रावण दहन किया गया। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और हर साल दशहरे के छह दिन बाद रावण दहन होने लगा।"

इस साल अचलगंज में रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन 20 अक्टूबर को होगा। स्थानीय निवासी विकास तिवारी ने बताया, "मुझे नहीं लगता कि रावण और उसके कुनबे का दहन छह दिन बाद करने की अनोखी परंपरा हमारे अचलगंज के अतिरिक्त कहीं पर होगी।" तिवारी ने कहा, "बीते सालों की तरह इस साल भी मैं अपने परिवार को लेकर गांव के बाहर मैदान में जाऊंगा जहां पर दहन का कार्यक्रम आयोजित होगा।" 

www.pardaphash.com

यहां पसही के चावल खाकर गुजर बसर कर रहे हैं लोग!

वक्त की मार बहुत बुरी होती है, यकीन न हो तो बुंदेलखंड में गरीबों की थाली में झांककर देखिए, जहां पेट की आग बुझाने के लिए भटक रहे 'गरीब-गुरबा' जंगली चारा 'पसही' का चावल खा बसर कर रहे हैं। इस चारा के चावल से तीन माह तक अपनी जीविका चलाने वाले सैकड़ों परिवार हैं।

तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी बुंदेलखंड से गरीबी और मुफलिसी का दाग मिटा नहीं है और न ही दैवीय त्राशदी में कमी ही आई। इसकी जीती-जागती उदाहरण हैं बांदा जिले के महोतरा गांव की अस्सी साल की वृद्धा गोढ़निया और तेंदुरा गांव की नेत्रहीन महिला बुधुलिया जो अपनी भूख अनाज से नहीं, बल्कि जंगली चारा 'पसही' के चावल से मिटाती हैं।

ऐसा भी नहीं है कि ग्रामीण क्षेत्र में सरकारी योजनाएं न चल रही हों, लेकिन गोढ़निया और बुधुलिया जैसे सैकड़ों गरीब ऐसे हैं जिन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा।

महोतरा गांव की 80 साल की नि:संतान गोढ़निया बताती है कि उसे न तो सरकारी राशन कार्ड मिला और न ही भरण-पोषण के लिए पेंशन ही। वह बताती है कि रबी और खरीफ की फसल की कटाई के समय 'सीला' (खेत में बिखरी हुई अनाज की बाली) चुनकर दो वक्त की रोटी का इंतजाम करती है और इस समय जलमग्न जमीन में उगे जंगली चारा पसही का धान एल्युमीनियम की थाली के सहारे धुनकर लाती है और उसके कूटने से निकला चावल ही पेट की आग बुझाने का जरिया है।

इसी गांव का बुजुर्ग मनोहरा बताता है कि इस गांव के आधा सैकड़ा अनुसूचित वर्गीय लोग तड़के टीन और बांस से बनी लेंहड़ी के सहारे पसही का धान धुन रहे हैं और इसके चावल से करीब तीन माह तक अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं।

तेंदुरा गांव की नेत्रहीन महिला बुधुलिया का पति बंधना पैर से विकलांग है, उसके तीन साल की एक बेटी है। यह विकलांग दंपति भी भूख से तड़प रहा है। नेत्रहीन बुधुलिया अपने पड़ोस की बुजुर्ग महिलाएं रमिनिया, कौशल्या, नथुनिया और जहरी के साथ शाम-सबेरे थाली या लेंहड़ी के सहारे पसही के धान धुन कर लाती है और उसके चावल से पेट भरती है।

बुधुलिया बताती है कि उसे गरीबी रेखा का राशन कार्ड तो मिला हुआ है, पर सरकारी दुकान से अनाज खरीदने के लिए एक धेला (रुपया) नहीं है। ऐसी स्थिति में पसही के चावल से बसर करना मजबूरी है।

इस गांव के ग्राम प्रधान धीरेंद्र सिंह ने बताया कि गांव में करीब एक सौ बीघा जलमग्न वाले भूखंड़ों में जंगली चारा पसही उगी हुई है और करीब पांच दर्जन गरीब इसका धान इकट्ठा कर रहे हैं। इस जंगली चारा पसही के बारे में एक स्थानीय कृषि अधिकारी का कहना है कि जलमग्न भूमि में उगने वाला पसही चारा धान की ही अविकसित प्रजाति है, जिसका चावल संशोधित प्रजाति से कहीं ज्यादा स्वादिष्ट और सुगंधित होता है।

इस अधिकारी के मुताबिक, इस चावल की बाजार में कीमत भी काफी ज्यादा है। पनगरा गांव के बुजुर्ग ब्राह्मण बलदेव दीक्षित तो इस जंगली धान को सीता प्रजाति का धान बता रहे हैं। वह बताते हैं कि भगवान श्रीराम द्वारा देवी सीता का परित्याग किए जाने के बाद जब महर्षि बाल्मीकि के आश्रम में बेटे लव और कुश भूख से तड़प रहे थे, उस समय सीता ने अपनी शक्ति से एक पोखरा में पसही धान को पैदा किया था।

उन्होंने बताया कि पसही के चावल को सीताभोग के नाम से भी जाना जाता है और महिलाएं उपवास व निर्जला व्रत के दौरान इसी का पारन (भोजन) करती हैं। गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता सुरेश रैकवार का कहना है कि बुंदेलखंड के जलमग्न इलाके में रहने वाले सैकड़ों गरीब परिवार ऐसे हैं जो मुफलिसी की वजह से जंगली धान से जीवन यापन कर रहे हैं।

...तो इसीदिन भगवान श्रीकृष्ण ने रचाया था गोपियों संग रास

आश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहते हैं। इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है ऐसा इसलिए क्योंकि शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के साथ रास रचाया था। यूं तो हर माह में पूर्णिमा आती है लेकिन शरद पूर्णिमा का महत्व उन सभी से कहीं अधिक है। हिंदू धर्म ग्रंथों में भी इस पूर्णिमा को विशेष बताया गया है। इस बार शरद पूर्णिमा 18 अक्टूबर, शुक्रवार को है।

पौराणिक मान्यताएं एवं शरद ऋतु, पूर्णाकार चंद्रमा, संसार भर में उत्सव का माहौल। इन सबके संयुक्त रूप का यदि कोई नाम या पर्व है तो वह है 'शरद पूनम'। वह दिन जब इंतजार होता है रात्रि के उस पहर का जिसमें 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा अमृत की वर्षा धरती पर करता है। वर्षा ऋतु की जरावस्था और शरद ऋतु के बाल रूप का यह सुंदर संजोग हर किसी का मन मोह लेता है। सम्पूर्ण वर्ष में आश्विन मास की पूर्णिमा का चन्द्रमा ही षोडस कलाओं का होता है। शरद पूर्णिमा से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा की किरणें विशेष अमृतमयी गुणों से युक्त रहती हैं जो कई बिमारियों का नाश कर देती हैं।

आपको बता दें की एक यह भी मान्यता है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात्रि में यह देखने के लिए घूमती हैं कि कौन जाग रहा है और जो जाग रहा है महालक्ष्मी उसका कल्याण करती हैं तथा जो सो रहा होता है वहां महालक्ष्मी नहीं ठहरतीं। शरद पूर्णिमा के बाद से मौसम में परिवर्तन की शुरुआत होती है और शीत ऋतु का आगमन होता है।

कहते हैं कि इस दिन चन्द्रमा अमृत की वर्षा करता है। शरद पूर्णिमा के दिन शाम को खीर, पूरी बनाकर भगवान को भोग लगाएँ । भोग लगाकर खीर को छत पर रख दें और रात को भगवान का भजन करें। चाँद की रोशन में सुईं पिरोएँ । अगले दिन खीर का प्रसाद सबको देना चाहिए ।

इस दिन प्रात:काल आराध्य देव को सुन्दर वस्त्राभूषणों से सुशोभित करें । आसन पर विराजमान कर गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेध, ताम्बूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजा करनी चाहिए| सायंकाल में चन्द्रोदय होने पर घी के 100 दीपक जलाए। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूंगी। इस प्रकार यह शरद पूर्णिमा, कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं मां लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

www.pardaphash.com

जाने कार्तिक मास में क्यों करते हैं दीपदान

हिंदू धर्म के धर्म शास्त्रों में प्रत्येक ऋतु व मास का अपना विशेष महत्व बताया गया है। सामान्य रूप से तुला राशि पर सूर्यनारायण के आते ही कार्तिक मास प्रारंभ हो जाता है। कार्तिक का माहात्म्य पद्मपुराण तथा स्कंदपुराण में बहुत विस्तार से उपलब्ध है। कार्तिक मास में स्त्रियां ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके राधा-दामोदर की पूजा करती हैं। कलियुग में कार्तिक मास व्रत को मोक्ष के साधन के रूप में बताया गया है। कार्तिक में पूरे माह ब्रह्म मुहूर्त में किसी नदी, तालाब, नहर या पोखर में स्नान कर भगवान की पूजा की जाती है।

धर्म ग्रंथों में कार्तिक मास के बारे में वर्णित है कि यह मास स्नान, तप व व्रत के लिए सर्वोत्तम है। इस माह में दान, स्नान, तुलसी पूजन तथा नारायन पूजन का अत्यधिक महत्व है| कार्तिक माह की विशेषता का वर्णन स्कन्द पुराण में भी दिया गया है| स्कन्द पुराण में लिखा है कि सभी मासों में कार्तिक मास, देवताओं में विष्णु भगवान, तीर्थों में नारायण तीर्थ (बद्रीनारायण) शुभ हैं| कलियुग में जो इनकी पूजा करेगा वह पुण्यों को प्राप्त करेगा| पदम पुराण के अनुसार कार्तिक मास धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्ष देने वाला है|

पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति पूरे कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व उठकर नदी अथवा तालाब में स्नान करता है और भगवान विष्णु की पूजा करता है। भगवान विष्णु की उन पर असीम कृपा होती है। पद्म पुराण के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक मास में नियमित रूप से सूर्योदय से पूर्व स्नान करके धूप-दीप सहित भगवान विष्णु की पूजा करते हैं वह भगवान विष्णु के प्रिय होते हैं। पद्मपुराण की कथा के अनुसार कार्तिक स्नान और पूजा के पुण्य से ही सत्यभामा को भगवान श्री कृष्ण की पत्नी होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।

कथा है कि एक बार कार्तिक मास की महिमा जानने के लिए कुमार कार्तिकेय ने भगवान शिव से पूछा कि कार्तिक मास को सबसे पुण्यदायी मास क्यों कहा जाता है। इस पर भगवान शिव ने कहा कि नदियों में जैसे गंगा श्रेष्ठ है, भगवानों में विष्णु उसी प्रकार मासों में कार्तिक श्रेष्ठ मास है। इस मास में भगवान विष्णु जल के अंदर निवास करते हैं। इसलिए इस महीने में नदियों एवं तलाब में स्नान करने से विष्णु भगवान की पूजा और साक्षात्कार का पुण्य प्राप्त होता है।

भगवान विष्णु ने जब श्री कृष्ण रूप में अवतार लिया तब रूक्मिणी और सत्यभामा उनकी पटरानी हुई। सत्यभामा पूर्व जन्म में एक ब्राह्मण की पुत्री थी। युवावस्था में ही एक दिन इनके पति और पिता को एक राक्षस ने मार दिया। कुछ दिनों तक ब्राह्मण की पुत्री रोती रही। इसके बाद उसने स्वयं को विष्णु भगवान की भक्ति में समर्पित कर दिया।

वह सभी एकादशी का व्रत रखती और कार्तिक मास में नियम पूर्वक सूर्योदय से पूर्व स्नान करके भगवान विष्णु और तुलसी की पूजा करती थी। बुढ़ापा आने पर एक दिन जब ब्राह्मण की पुत्री कार्तिक स्नान के लिए गंगा में डुबकी लगायी तब बुखार से कांपने लगी और गंगा तट पर उसकी मृत्यु हो गयी। उसी समय विष्णु लोक से एक विमान आया और ब्राह्मण की पुत्री का दिव्य शरीर विमान में बैठकर विष्णु लोक पहुंच गया।

जब भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार लिया तब ब्राह्मण की पुत्री ने सत्यभामा के रूप में जन्म लिया। कार्तिक मास में दीपदान करने के कारण सत्यभामा को सुख और संपत्ति प्राप्त हुई। नियमित तुलसी में जल अर्पित करने के कारण सुन्दर वाटिका का सुख मिला। शास्त्रों के अनुसार कार्तिक मास में किये गये दान पुण्य का फल व्यक्ति को अगले जन्म में अवश्य प्राप्त होता है।

कार्तिक में दीपदान का महत्व-

दीपदान करने के लिए कार्तिक माह का विशेष महत्व है| शास्त्रों के अनुसार इस माह भगवान विष्णु चार माह की अपनी योगनिद्रा से जागते हैं| विष्णु जी को निद्रा से जगाने के लिए महिलाएं विष्णु जी की सखियां बनती हैं और दीपदान तथा मंगलदान करती हैं| इस माह में दीपदान करने से विष्णु जी की कृपा प्राप्त होती है और जीवन में छाया अंधकार दूर होता है| व्यक्ति के भाग्य में वृद्धि होती है|

पदमपुराण के अनुसार कार्तिक के महीने में शुद्ध घी अथवा तेल का दीपक व्यक्ति को अपनी सामर्थ्यानुसार जलाना चाहिए| इस माह में जो व्यक्ति घी या तेल का दीया जलाता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ के बराबर फलों की प्राप्ति होती है| मंदिरों में और नदी के किनारे दीपदान करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं|

हमारे शास्त्रों में दुखों से मुक्ति दिलाने के लिए कई उपाय बताए हैं। उनमें कार्तिक मास के स्नान, व्रत की अत्यंत महिमा बताई गई है। इस मास का स्नान, व्रत लेने वालों को कई संयम, नियमों का पालन करना चाहिए तथा श्रद्धा भक्तिपूर्वक भगवान श्रीहरि की आराधना करनी चाहिए।

कार्तिक स्नान कल से, जाने महत्व, विधि और कथा

आश्विन माह की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है| इसी दिन से कार्तिक माह का स्नान आरम्भ माना जाता है| प्रतिवर्ष कार्तिक माह आरम्भ होते ही पवित्र स्नान का शुभारम्भ हो जाता है| इस बार कार्तिक मास का स्नान इस बार 18 अक्टूबर से आरम्भ होकर 17 नवम्बर तक चलेगा| पुराणों में कार्तिक मास को स्नान, व्रत व तप की दृष्टि से मोक्ष प्रदान करने वाला बताया गया है। इस माह में स्नान - दान तथा व्रत से पुण्य कर्मों के फलों में वृद्धि होती है. इस माह में दीपदान का अपना विशेष महत्व है|

कार्तिक स्नान की विधि-

तिलामलकचूर्णेन गृही स्नानं समाचरेत्।

विधवास्त्रीयतीनां तु तुलसीमूलमृत्सया।।

सप्तमी दर्शनवमी द्वितीया दशमीषु च।

त्रयोदश्यां न च स्नायाद्धात्रीफलतिलैं सह।।

अर्थात कार्तिकव्रती को सर्वप्रथम गंगा, विष्णु, शिव तथा सूर्य का स्मरण कर नदी, तालाब या पोखर के जल में प्रवेश करना चाहिए। उसके बाद नाभिपर्यन्त (आधा शरीर पानी में डूबा हो) जल में खड़े होकर विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काला तिल तथा आंवले का चूर्ण लगाकर स्नान करना चाहिए परंतु विधवा तथा संन्यासियों को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मृत्तिका(मिट्टी) को लगाकर स्नान करना चाहिए। सप्तमी, अमावस्या, नवमी, द्वितीया, दशमी व त्रयोदशी को तिल एवं आंवले का प्रयोग वर्जित है। इसके बाद व्रती को जल से निकलकर शुद्ध वस्त्र धारणकर विधि-विधानपूर्वक भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। यह ध्यान रहे कि कार्तिक मास में स्नान व व्रत करने वाले को केवल नरकचतुर्दशी (कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी) को ही तेल लगाना चाहिए। शेष दिनों में तेल लगाना वर्जित है।

कार्तिक माह की कथा-

बहुत समय पहले एक इल्ली थी और एक घुण था| कार्तिक माह का आरम्भ होने पर इल्ली ने घुण से कहा कि चलो आओ कार्तिक नहा लें| तब घुण ने कहा कि तू ही नहा लें, मेरे तो मोठ तथा बाजरा पडे़ हैं मैं नहीं नहाउंगा| मैं तो हरे-हरे बाजरे का सीटा खाउंगा और ठण्डा-ठण्डा पानी पीऊंगा| यह सुनकर इल्ली राजा की लड़की के पल्ले से चिपकर चली गई, लेकिन घुण वहीं पडा़ रहा| वह नहीं नहाया| कार्तिक खतम होने के बाद दोनों मर गए, मरने के बाद इल्ली ने कार्तिक स्नान के कारण राजा के घर जन्म लिया, लेकिन घुण ने कार्तिक स्नान नहीं किया था इसलिए वह राजा के घर गधा बनकर रहने लगा|

बडे़ होने पर राजा की लड़की बनी इल्ली का विवाह तय हुआ और विवाह के बाद वह ससुराल जाने लगी तो उसकी बैलगाडी़ रुक गई| राजा-रानी ने कहा कि बैलगाडी़ क्यूं रुक गई! तुझे जो मांगना है, वह मांग ले| तब लड़की ने कहा कि यह गधा मुझे दे दो| राजा-रानी हैरान हुए, वह बोले कि यह तुम क्या माँग रही हो| तुम चाहो तो धन-दौलत ले जाओ| यह गधा कोई ले जाने की चीज है, लेकिन लड़की नहीं मानी| हारकर राजा-रानी ने वह गधा रथ के साथ बाँध दिया| गधा फुदक-फुदक कर चलने लगा| अपने ससुराल के महल में पहुंचने पर लड़की वह गधा महल की सीढी़ के नीचे बाँध दिया|

एक दिन जब वह सीढी़ उतर रही थी तब वह गधा बोला कि ऎ सुन्दरी, थोडा़ पानी पिला दे, तब वह बोली आ अब पहले तू नहा ले| पहले जन्म में तूने कहा था कि मैं पहले बाजरा खाऊंगा और ठण्डा-ठण्डा जल पीऊंगा| उन दोनों के आपस की यह बात देवरानी तथा जेठानी सुन लेती हैं| दोनों जाकर लड़की के पति को सिखाती हैं कि तुम्हारी पत्नी जादूगरनी है वह जानवरों से बात करती है| तब उसके पति ने जवाब दिया - मैं आपकी बातें तभी मानूंगा जब मैं स्वयं अपने कानों से यह सब सुन लूंगा और अपनी आंखों से देख लूंगा|

अगले दिन राजकुमार छिपकर बैठ जाता है| उस दिन भी लड़की बनी इल्ली तथा गधा बना घुण वही बात करते हैं तो उसका पति तलवार निकालकर खडा़ हो जाता है और कहता है कि तुम जानवर से बात कर रही हो! तुम मुझे सच बताओ, क्या बात है? अन्यथा मैं तलवार से तुम्हें मार दूंगा| उसकी पत्नी उससे विनती करती है कि तुम औरत का भेद मत खोलो, लेकिन वह नहीं मानता| हारकर लड़की को सारी बात बतानी पड़ती है| वह कहती है कि पिछले जन्म में मैं इल्ली थी और यह गधा घुण था| मैने इसे कार्तिक नहाने के लिए बहुत कहा लेकिन यह नहीं माना| राजा की लड़की के पल्ले से लगकर नहाने से मैंने राजा की लड़की के रुप में जन्म लिया और यह घुण नहीं नहाया तो यह गधा बन गया इसलिए मैं इससे पिछली बात कर रही थी|

अपनी पत्नी की बात सुनकर वह बहुत हैरान हुआ और कहने लगा कि कार्तिक स्नान से इतना पुण्य मिलता है? तब उसकी पत्नी बोली कि मेरे कार्तिक स्नान के कारण ही तो मैं राजा के घर जन्मी हूँ और मेरा विवाह एक राजकुमार से हुआ है| मुझे सभी तरह का राजपाट मिला है| यह सुनकर पति बोला कि यदि कार्तिक स्नान का इतना अधिक महत्व है तब हम दोनों जोडे़ में यह स्नान करेंगें और जितना हो सकेगा उतना दान-पुण्य भी करेगें| इससे हमें भविष्य में भी शुभ फलों की प्राप्ति हो| उसके बाद दोनों पति-प्त्नी जोडे़ से कार्तिक स्नान करने लगे और उनके पास पहले से भी अधिक धन-सम्पदा एकत्रित हो जाती है|

www.pardaphash.com