जहां लड़कियां पहनती हैं जनेऊ

बिहार के एक गांव में पिछले चार दशकों से एक परंपरा का निर्वाह हो रहा है। यहां लड़कियां जनेऊ धारण करती हैं। आम तौर पर ब्राह्मण समुदाय या अन्य समुदायों में भी यह पवित्र धागा सिर्फ पुरुषों के लिए 'आरक्षित' रहा है। गांव में एक समारोह के बाद सुमन कुमारी, प्रियंका कुमारी, प्रतिमा कुमारी, कुंती कुमारी के बीच एक ही समानता दिखती है और वह यह है कि ये सभी जनेऊ पहनती हैं।

परंपरावादी और अर्ध सामंती बिहार के गांव में ऐसा होना एक विरल मामला है। हरिनारायण आर्य ने इस संबंध में बताया, "मणियां गांव के दयानंद आर्य उच्च विद्यालय में आयोजित यज्ञोपवीत संस्कार में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ नौ लड़कियों को जनेऊ पहनाया गया।" आचार्य सिद्धेश्वर शर्मा के मुताबिक, ऐसी लड़कियों की उम्र 13 और 15 वर्ष के बीच है। शर्मा ने ही यज्ञोपवीत संस्कार कराया।

उन्होंने कहा, "इस गांव में लड़कियों के जनेऊ पहनने के लिए कोई जातिगत आधार नहीं है।" शर्मा ने बताया कि पिछले 40 वर्षो से गांव में इस परंपरा का निर्वाह हो रहा है। उन्होंने कहा, "हम हर वर्ष बसंत पंचमी के मौके पर लड़कियों का यज्ञोपवीत संस्कार कराते हैं।"

मणियां गांव में यह परंपरा 1972 में विश्वनाथ सिंह ने शुरू की। उन्होंने उस समय लड़कियों के लिए हाई स्कूल स्थापित किया और अपने चार बेटियों को स्कूल भेजा। उस समय बेटियों की शिक्षा के प्रति कोई जागरूकता नहीं थी, लेकिन सिंह की बेटियों के स्कूल जाने के बाद दूसरे लोगों को भी प्रोत्साहन मिला। सिंह ने इसके बाद अपनी बड़ी बेटी के लिए यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया। इसके बाद यह गांव में परंपरा के रूप में स्वीकृत हो गई।

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अरविंद केजरीवाल: परिवर्तनकर्मी या सिर्फ एक बुलबुला?

यदि आप दिल्ली में किसी फेरीवाले या फुटपाथ पर चाय दुकान चलाने वाले से बात करें तो आप तुरंत ही महसूस करेंगे कि सड़क पर खड़ा 'आम आदमी' खुद को आम आदमी पार्टी (आप) के साथ जुड़ा हुआ पाता है और मुख्यमंत्री एवं उनके साथी मंत्रियों के विपरीत व्यवहार के कारण आलोचनाओं से घिरे होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल और उनकी नई नवेली पार्टी के जनाधार में कोई कमी नहीं आई है। सच तो यह है कि उनका दायरा बढ़ता जा रहा है। यह विस्तार दिल्ली से बाहर पूरे देश में हुआ है और एक महीने से भी कम समय में पार्टी के सदस्यों की संख्या एक करोड़ के पार पहुंच चुकी है। 

बुद्धिजीवियों और मध्यम वर्ग के एक हिस्से की नजरों में केजरीवाल का तेज संभवत: कमजोर पड़ गया है, लेकिन वह और 'हम दुनिया बदलेंगे' के उत्साह से लबरेज उनके उग्र सुधारवादी सामाजिक कार्यकर्ता याकि राजनीतिक कार्यकर्ता देश के विशाल शहरही हिस्सों में हाशिए पर जी रहे दबे-कुचले भारतीयों के लिए लगातार आशा की आवाज बनते जा रहे हैं। 

एक टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि किस तरह केजरीवाल के गैरपारंपरिक भ्रष्टाचार विरोधी हथियार ने परिणाम दिखाने शुरू कर दिए हैं। पुलिसकर्मी मोबाइल स्टिंग में पकड़े जाने के डर से रिश्वत लेने से इनकार कर रहे हैं और प्रदेश के परिवहन प्राधिकरणों के दलाल गायब हो गए हैं। वर्षो तक ये दलाल ड्राइविंग एवं अन्य ऑटोमोबाइल लाइसेंस दिलाने में बाबुओं के लिए सुविधा के जरिया बने रहे। केजरीवाल का तरीका शासन की किसी भी नियमावली में शामिल नहीं हो सकता है, लेकिन इनमें से कुछ अपना काम करते दिख रहे हैं, हालांकि जैसा कि केजरीवाल खुद भी कहते हैं कि उनके पास ऐसा कोई प्रायोगिक आंकड़ा या जरिया नहीं है जिसके आधार पर वह साबित कर सकें कि भ्रष्टाचार कम हो गया है।

जो लोग सदा से पुलिस की लाठी या बाबुओं से परेशान रहते आए हैं, वे केजरीवाल को अपनी मुसीबतों के तारणहार के रूप में पा रहे हैं। ऐसे लोग उनके पक्ष में मुखर होकर बोल रहे हैं। ऐसे लोगों में ऑटो रिक्शाचालक, सड़कों पर फेरी लगाने वाले, कार्यालयों के दफ्तरी और अन्य अकुशल मजदूर व सेवा क्षेत्र से जुड़े लोग जो उतार-चढ़ाव वाली अर्थव्यवस्था में पिस रहे हैं। ऐसे लोगों की मेहनत का फल सुविधाभोगी और ताकतवर तबका उड़ा लेता है और यह बड़ा समुदाय एक शोषक और बेदर्द तंत्र की दया पर आश्रित रह जाता है। और वह तंत्र भी इनसे वोट पाने के बाद शायद ही कभी उनकी आवाज को सुनता है या फिर उन्हें नागरिक या संवैधानिक अधिकार मुहैया कराने की जहमत उठाता है।

और इसी क्षेत्र में केजरीवाल चालाकी से सेंध लगाते हैं, अपने कुछ लुभावने वादे पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अपने राजनीतिक कद के साथ ही बौद्धिक आत्मविश्वास जुटाते हैं। अपने इसी क्षेत्र के दम पर केजरीवाल अपने राजनीतिक आधार का विस्तार करने की योजना बनाते हैं और झटके से राष्ट्रीय मंच पर अवतरित हो जाते हैं। वह महसूस करते हैं कि यदि वह देश के विधायी एजेंडे को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होंगे तो उनका प्रयास व्यर्थ चला जाएगा। तब यह सवाल स्वाभाविक ही उठ खड़ा होता है कि क्या केजरीवाल और उनकी आप टिकाऊ होगी? या फिर वे सिर्फ एक चमक भर हैं जो अपने ही अंतर्विरोधों और अपेक्षाओं के बोझ तले दफन हो जाएगा?

इस तरह के अपारंपरिक आंदोलनों का क्या भविष्य होता है इसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं। ऐसे आंदोलन एक मुद्दे को लेकर पनपे, लेकिन उनमें वैचारिक दिशानिर्देश का अभाव रहा। 'पौजाडिज्मे' नामक ऐसा ही एक आंदोलन 1950 के दशक में फ्रांस में पनपा था। इस आंदोलन का यह नाम इसके अगुआ पीयरे पौजाडे के नाम पर दिया गया। पौजाडे ने तब जानलेवा करों के खिलाफ स्थानीय दुकानदारों को गोलबंद कर हड़ताल कराई थी। ठीक वैसा ही काम केजरीवाल बिजली बिलों के खिलाफ कराते हैं और सरकारी राजस्व वसूली के निरीक्षण की बात करते हैं।

पौजाडे ने दक्षिणी फ्रांस के अन्य कस्बों तक अपनी गतिविधि का विस्तार किया और बड़ी तेजी के साथ खास तौर से कामगार और गरीब तबके में अपनी पैठ बना ली। उसने अपनी यूनियन डे डिफेंस डेस कामर्सकैंट्स एट आस्ट्रियन्स (यूनियन फॉर दी डिफेंस ऑफ ट्रेड्समैन एंड आस्ट्रियन्स) में 800,000 सदस्य जुटा लिए थे। उसके समर्थकों में असंतुष्ट रैयत और छोटे कारोबारियों का बोलबाला था। पौजाडिज्मे का मुख्य जोर कुलीन तबके के बर-अक्स आम आदमी के अधिकारों की रक्षा करने पर था। सच पूछा जाए तो यह फ्रांस की आम आदमी पार्टी थी, जिसने फ्रांस के संघर्षशील तबके को वहां के बुर्जुआजी तबके के सामने ला खड़ा कर दिया था।

जिस तरह केजरीवाल समाज-सुधारक से नेता बनने के पहले नौकरशाह थे, उसी तरह पौजाडे भी नेता बनने से पहले सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े रहे थे। पौजाडे ने फ्रांस की सेना के अलावा ब्रिटेन की शाही वायुसेना में नौकरी की थी और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भाग भी खड़े हुए थे। आयकर और मूल्य वृद्धि के खिलाफ आंदोलन के अतिरिक्त पौजाडिज्मे औद्योगीकरण, शहरीकरण और अमेरिकी तौर तरीके वाले आधुनिकीकरण (वैसे ही केजरीवाल भी वालमार्ट सरीखे विदेशी निवेश का विरोध करते हैं) के खिलाफ था, उस आधुनिकीकरण के जो ग्रामीण फ्रांस की पहचान के लिए एक खतरा था। लेकिन पौजाडिज्मे वैचारिक आधार के अभाव में ढह गया। सवाल यह उठता है कि वैचारिक आधार के अभाव में क्या केजरीवाल भी पीयरे पौजाडे तो साबित नहीं होंगे?

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अखिलेश सरकार के चहेते अफसर ही रास्ते के रोड़ा

समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव के कई विश्वास पात्र अफसर ही अखिलेश यादव सरकार के लिए अड़ंगेबाज साबित हो रहे हैं। 20 माह के कार्यकाल में इन अफसरों की वजह से अखिलेश सरकार की खूब किरकिरी हुई है। इन अफसरों को विकास के कार्यो में बाधक भी माना जा रहा है। 2012 में सत्ता में आने के बाद अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री सचिवालय के साथ-साथ सिंचाई, गृह, वित्त, लोक निर्माण, परिवहन, आबकारी, पंचायती सहित लगभग सभी विभागों में पूर्ववर्ती मायावती सरकार द्वारा तैनात सैकड़ों आईएएस अफसरों को हटाकर नए अधिकारी तैनात किए थे।

मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेक(कानून व्यवस्था) और प्रमुख सचिव गृह जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नए चेहरों को नियुक्त किया गया, लेकिन ये अफसर अपनी कार्यक्षमता और कुशलता से जनता को उसरकार के प्रति अच्छा एहसास नहीं करा सके। उल्टा इन अधिकारियों द्वारा कई बार ऐसे संवेदनहीन बयान दिए गए जिनसे सरकार की जमकर किरकिरी हुई।

राजनीतिक चिंतक एच़ एऩ दीक्षित का कहना है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व के कुछ मुख्यमंत्रियों की तरह मुख्यमंत्री अखिलेश ने भी सत्ता संभालने के बाद प्रमुख विभागों में अपने चहेते अफसरों को बैठाया। अब वही चहेते अफसर विफल साबित हो रहे हैं। दीक्षित ने कहा कि हर मुख्यमंत्री को अफसरों की तैनाती उनकी योग्यता और कार्यकुशलता के आधार पर करनी चाहिए। योग्य अफसर ही बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।

प्रमुख सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास के रूप में करीब एक साल तक तैनात रहे अनिल कुमार गुप्ता के लगभग असफल साबित होने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश ने उन्हें हटाकर सूर्य प्रताप सिंह को तैनात किया पर वो विभाग को पटरी पर लाने में असफल रहे। अनिल कुमार गुप्ता हालांकि फिर से प्रमुख सचिव (गृह) जैसा महत्वपूर्ण पद पाने में सफल रहे लेकिन मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों में ठंड से मौतों पर दिए असंवेदनहीन बयान से उनकी हर तरफ जमकर किरकिरी हुई।

राज्य की बदहाल बिजली व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश ने बड़े भरोसे के साथ संजय अग्रवाल को प्रमुख सचिव ऊर्जा का प्रभार दिया। लगभग एक साल का समय बीतने को है लेकिन वह कोई करिश्मा नहीं दिखा सके। सूबे की सबसे अधिक ताकतवर अफसर मानी जाने वाली प्रमुख सचिव (मुख्यमंत्री) अनीता सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर मंत्रियों, विधायकों व कुछ अफसरों ने कई बार सवाल खड़े किए। उनका पंचमतल व जिलों में जिलाधिकारियों की तैनाती को लेकर विरोध भी हुआ लेकिन विरोधी परास्त हुए।

सात वर्ष से एक ही विभाग में जमे प्रमुख सचिव गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग राहुल भटनागर की अदूरदर्शी नीतियों के चलते गन्ने के मुद्दे पर सरकार की जमकर किरकिरी हुई है। पीसीएस से आईएएस बने एस़ पी़ सिंह की नगर विकास विभाग में तूती बोलती है। कई प्रमुख सचिवों ने नगर विकास विभाग से अपना तबादला इसलिए करवा लिया क्योंकि उनके अधीनस्थ एस़ पी़ सिंह अधिक प्रभावशाली साबित हो रहे थे।

पंचायती राज विभाग के कई प्रमुख सचिव बदल चुके लेकिन आज तक राज्य सरकार की गरीबों को कंबल और साड़ी बांटने की योजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। यही हाल प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल और प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग रजनीश दुबे का है। इनके विभाग की वजह से अधिकतर विकास कार्य ठप पड़े हैं।

एक आईएएस अफसर ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "यह प्रदेश का बड़ा दुर्भाग्य है कि राजनीतिक दल अब आईएएस अफसरों को उनकी काबिलियत के बजाय राजनीति और जातीयता के चश्मे से देखने लगे हैं। इस प्रवृत्ति के कारण नाकाबिल अफसरों की महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती हो जाती है जिससे सूबे का विकास कार्य प्रभावित होता है। सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसे अफसरों को महत्वहीन पदों पर फेंक दिया जाता है।"

कहा जा रहा है कि राज्य के महत्वपूर्ण विभागों में तैनात कई आईएएस अफसर आचार संहिता लागू होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि आने वाले कुछ माह सुकून ले गुजर सकें। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की छवि ईमानदार है। विकास कार्यो की समीक्षा बैठकें बुलाने से कई विभागों के प्रमुख सचिव उनसे असहज महसूस करते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि चहेते अफसरों में कुछ बेहतर काम कर सकते हैं लेकिन सरकार ने उन्हें काम करने की पूरी आजादी नहीं दी।

राजनीतिक विश्लेषक रमेश दीक्षित ने कहा कि वर्तमान सरकार ने अपनी पसंद के अफसर तो तैनात किए लेकिन उन्हें पूरी कार्य स्वतंत्रता नहीं दी। सरकार के अलग-अलग शक्ति केंद्र समय-समय पर निर्देश देकर अधिकारियों को अपने मुताबिक काम करवाने के लिए बाध्य करते रहे।

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'हंसी तो फंसी' मुस्कुराने को मजबूर कर देगी

एक्टर: परिणिति चोपड़ा, सिद्धार्थ मल्होत्रा, अदा शर्मा, मनोज जोशी, शरत सक्सेना
म्यूजिक: विशाल शेखर
लिरिसिस्ट: अमिताभ भट्टाचार्य, कुमार
डायरेक्टर: विनिल मैथ्यू
ड्यूरेशन: 141 मिनट

'हंसी तो फंसी' एकदम रोमांटिक फिल्म है। परिणीति-सिद्धार्थ की मज़ेदार एक्टिंग और निर्देशक विनिल मैथ्यू के सधे हुए निर्देशन से बहुत समय बाद एक अच्छी रोमांटिक कॉमेडी सामने आई है। इस फ़िल्म में वह सब कुछ है, जिसकी चाह लिए दर्शक थिएटर में जाते हैं। अच्छे स्मूद घुमाव लिए कहानी, जबरदस्त एक्टिंग, जबरजस्त कॉमेडी, लाजवाब डायलॉग्स। यह फ़िल्म हर वर्ग के लिए है। इस फ़िल्म में जिंदगी का एक मजेदार अनुभव देखने को मिलेगा जिसे प्यार और शादी कहते हैं। फिल्म की कहानी में काफ़ी नयापन है। जो दर्शकों की बड़ी क्लास को कहानी और किरदारों के साथ बांधकर रखने का दम रखती है। 

निखिल बचपन से ही खुरापाती है। उसके पापा आईपीएस हैं और बड़ा भाई आईएएस। निखिल और करिश्मा (अदा शर्मा) के बीच पिछले सात सालों से अफेयर है। इन दोनों के इस अफेयर को करिश्मा के पापा (मनोज देसाई) और निखिल के पापा (शरत सक्सेना) से ग्रीन सिग्नल मिल चुका है। पिछले सात सालों के इस अफेयर में निखिल और करिश्मा के बीच ना जाने कितनी बार ब्रेकअप हुआ लेकिन रिश्तों को हमेशा निभाने के अपने स्वभाव के चलते हमेशा करिश्मा की बात आगे रखी। अगले सात दिनों में इन दोनों की शादी होने वाली है। करिश्मा ने शादी से पहले पांच करोड़ रूपये कमाने की अपनी अनोखी शर्त रखी जिसे निखिल मान लेता है। दरअसल, अमीर खानदान की करिश्मा शादी के बाद निखिल के साथ बाकी बची पूरी लाइफ आराम से एंजॉय करना चाहती थी और निखिल अपनी दुनिया में रहने वाला युवक है जो अपनी शर्तो पर काम करता है। 

शादी से पहले इन दोनों के घर नजदीकी रिश्तेदार आ चुके है। दोनों फैमिली में शादी से पहले के फंक्शन भी स्टार्ट हो चुके है। इसी बीच अचानक एक दिन चीन से करिश्मा की बहन मीता (परिणीती चोपड़ा) जब अपने घर पहुंचती है तो कोहराम मच जाता है। दरअसल, मीता सात साल पहले अपने घर से मोटी रकम चोरी करके भाग गई थी और अब अपनी बहन की शादी से ठीक सात दिन पहले उसका अचानक चले आना किसी की समझ से परे है। मीता अपने घर में आ नहीं सकती, चीन में रहने के दौरान मीता कुछ ऐसी ऐसी दवाएं लेने की आदी हो चुकी है जिन्हें लिए बिना वह कुछ कर नहीं पाती। ऐसे में करिश्मा निखिल को मीता के कहीं रहने का इंतजाम करने के लिए कहती है।इसके बाद फिर 'निखिल' और 'मीता' की मुलाकात क्या 'टर्न और ट्विस्ट' लाती है। इसके लिए आपको पड़ेगा। पंजाबी और गुजराती कल्चर काफी मजेदार है। इस वीकएंड पर ठीकठाक टाइम पास करने के लिए 'हंसी तो फंसी' बुरा ऑप्शन नहीं है। 

परिणीति चोपड़ा खूबसूरती के साथ अपना किरदार निभाया है और सिद्धार्थ मल्होत्रा व अदा शर्मा ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। यहां मनोज जोशी का ज़िक्र करना बेहद ज़रूरी है, जिन्होंने परिणीति के पिता के किरदार में हैं। उन्होंने बेहतरीन परफॉरमेन्स दी है। शरत सक्सेना और बाकी छोटे-छोटे किरदार भी असर छोड़ने में कामयाब रहे हैं । निर्देशक विनिथ मैथ्यू ने फिल्म की रफ्तार कहीं भी कम नहीं होने दी। फिल्म की कहानी एक दम फ्रेश है। अनुराग कश्यप के डायलॉग्स में काफी लुभावने हैं। संगीत की बात करें तो गाना 'ड्रामा क्वीन...' अच्छा है। हंसी तो फंसी' में सिचुएशनल कॉमेडी है, जो वक्त-वक्त पर आपको मुस्कुराने पर मजबूर करेगी,तो कुल मिलाकर इसने मुझे एंटरटेन तो किया।

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उप्र में जातिवाद की राजनीति शुरू

वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले उप्र में जातिवाद की राजनीति ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है। सूबे की समाजवादी पार्टी (सपा) हो या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सभी अपने-अपने तरीके से जातियों को साधने में जुट गई हैं। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी भी पिछड़े तबके से आते हैं और भाजपा उनके पिछड़े तबके का होने का राग बराबर अलाप रही है। भाजपा की ओर से बनाया गया सामाजिक न्याय मोर्चा भी विभिन्न जातियों को साधने में जुटा हुआ है। 

भाजपा ने भी चुनाव आते ही पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के समय में बनाई सामाजिक न्याय समिति की संस्तुतियों की दुहाई देनी शुरू कर दी है। सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए यह समिति बनाई थी, जिसमें आरक्षण लाभ का प्रतिशत तय किया गया था। पार्टी अब इसी समिति की संस्तुतियों को लेकर मैदान में उतर गई है। 

इधर, अमित शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में यहां जातीय समीकरणों की थाह लेने में जुटे हुए हैं। सपा की तरफ से भी कई जातियों को आरक्षण दिए जाने की बात कही जा रही है। सपा पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए यात्रा भी निकाल चुकी है। जातिवादी राजनीति और विकास के मुददों के बीच प्रख्यात सामाजिक विश्लेषक प्रो. सत्यमित्र दूबे कहते हैं कि सामाजिक न्याय और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं। पिछड़ी जातियों को जब तक सामाजिक न्याय हासिल नहीं होगा तब तक उनका विकास कैसे होगा। 

दूबे ने कहा, "हमें नहीं लगता कि लोगों को विकास और जातिवादी राजनीति के बीच फंसना चाहिए। हां, यह जरूर है कि पिछड़ों को लुभाने के प्रयास चुनाव के दौरान ही क्यों किए जाते हैं लेकिन इसका जवाब तो नेता ही देंगे।" बहरहाल, लोकसभा चुनाव 2014 को लेकर एक बार फिर जाति की सियासत तेज होती दिख रही है। 

प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सुभाष राय ने कहा कि राजनीति में जातिवाद का असर तो है ही और यह इतनी जल्दी समाप्त भी नहीं होगा। उन्होंने कहा, "जातिवाद की राजनीति पहले से कम तो हुई है लेकिन अभी यह हावी रहेगी। आने वाले समय में इसका असर जरूर कम होगा। उप्र में जो भी घोषणाएं हो रही हैं, वह सारी लोकलुभावन हैं। इससे विकास का कोई लेना देना ही नहीं है।"

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पत्नियों की प्रताड़ना के चलते पति बन रहे हैं संन्यासी!

महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाए गए कड़े कानूनों से उल्टे पुरुषों के प्रताड़ित होने के कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें ये कानून पतियों के लिए ही मुसीबत का सबब बन गए। कुछ मामलों में तो आलम यह है कि पत्नियों द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद पतियों ने संन्यास ही ले लिया। मध्य प्रदेश के जबलपुर में इस तरह के कई मामले सामने आए हैं। 

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में पत्नियों द्वारा दर्ज कराई गई शिकायतों के बाद बीते पांच वर्ष में 4,500 पति ऐसे फरार हुए कि अब तक उनका पता ही नहीं चल सका तथा उनमें से कई तो संन्यासी ही बन गए। पत्नियों द्वारा कानून की चाबुक चलाए जाने के बाद संन्यासी बने ऐसे ही कई पति नर्मदा तट पर पूजा अर्चना व मंदिरों मे अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र से लेकर प्रदेश स्तर पर सरकारों ने पिछले वर्षो में काफी सजगता दिखाई और महिलाओं को सुरक्षा एवं उनके अधिकारों को संरक्षण देने के लिए कई कड़े कानून बनाए और कई कानूनों में संशोधन कर उन्हें सख्त बनाया। इसके चलते छोटी-मोटी बातों पर भी महिलाएं पुलिस का दरवाजा खटखटा देती हैं, जिससे जीवन में खलल तो पैदा हो ही जाता है, पारिवारिक अशांति भी बढ़ जाती है।

पति-पत्नी के बीच विवादों के चलते परिवार टूटने व पतियों के भाग जाने के जो मामले जबलपुर में आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। परिवार परामर्श केंद्र के परामर्शदाता अंशुमान शुक्ला ने बताया कि जबलपुर में बीते पांच वर्ष में आई पारिवारिक विवाद की शिकायतों के बाद से लगभग 4,500 पति लापता हैं।

अंशुमान ने बताया, "जो पति घर छोड़ गए हैं, उनमें से कई तो संन्यासी बन गए हैं।" अंशुमान ने बताया कि शिकायतकर्ता महिलाओं ने ही आकर उन्हें अपने पति के संन्यासी बनने की खबरें दी हैं। अंशुमान के मुताबिक पत्नियों द्वारा दर्ज कराई जाने वाली शिकायतों के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए पति भाग जाते हैं, और आने वाली मुसीबत से बचने के लिए फिर उनके पास शेष जीवन संन्यासी बनकर बिताने का ही विकल्प रह जाता है।

पत्नी द्वारा थाने में शिकायत किए जाने से परेशान प्रकाश साहू का कहना है कि उसके पिता का हाल ही में निधन हुआ है, और पत्नी ने प्रताड़ना की शिकायत थाने में दर्ज करा दी। पत्नी उससे इस शर्त पर तलाक चाहती है कि उसे इसके एवज में रकम दी जाए। इस स्थिति से बचने के लिए वह ऐसा रास्ता खोज रहा है, जिससे वह अपने को मुसीबत से बचा सके।

जबलपुर में यदि पतियों के पत्नी से प्रताड़ित होकर भागने और संन्यासी बनने का सिलसिला इसी तरह जारी रहा, तो आने वाले समय में नर्मदा के तट और मंदिरों में पत्नियों से दूर भागकर संन्यासी बनने वालों की भरमार हो जाएगी।

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कुत्ता भी खोलता है शगुन-अपशगुन के कई राज

हिंदू धर्म शास्त्रों में कई ऐसे संकेत बताये गए हैं जिसके द्वारा आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि आपको मनोवांछित कार्य में सफलता मिलेगी या नहीं। इन संकेतों को शकुन-अपशकुन कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार आप जब भी किसी खास कार्य के लिए जा रहे होते हैं ठीक उसी समय कई प्रकार की घटनाएं घटती हैं। इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। छोटी-छोटी शुभ-अशुभ घटनाएं ही शकुन या अपशकुन होती हैं। हालांकि काफी लोग इन बातों को कोरा अंधविश्वास ही मानते हैं लेकिन कई लोग इन बातों पर विश्वास भी करते हैं। 

कुत्ता एक ऐसा प्राणी है जो मनुष्यों के सबसे निकट है।बिल्ली की तरह कुत्ता भी यमदूत के आने का इशारा करता है| आज आपको कुत्ते से जुड़े कुछ शकुन- अपशकुन के बारे में बताने जा रहे हैं| 

कहीं जाते समय यदि कुत्ता सामने आकर भौंकने लगे या कान फडफडाने लगे तो अशुभ माना जाता है। इस स्थिति में थोडी देर के लिए रूक जाना चाहिए। यदि कुत्ता घर में बैठाकर दाहिने पैर से दाहिनी आंख को खुजाता है तो मित्रजनों के आगमन की संभावना होती है।

यदि कुत्ता किसी व्यक्ति के घर में आकाश को या वहां पडे गोबर को बहुत देर तक लगातार ताकता रहता है तो उस घर के मालिक को धन प्राप्ती की संभावना रहती है। प्रात: सर्वप्रथम समागमरत कुत्ते को देखना अशुभ माना जाता है। इस दिन कोई नया काम नहीं करना चाहिए। यदि किसी जगह बिना प्रयोजन बहुत सारे इकट्ठे हो जाएं और चिंतित दिखाई दे तो वहां आस-पास के लोगों में भयंकर लडाई-झगडा होने की संभावना रहती है। साथ ही कुछ लोगों को कारावास होने की भी संभावना रहती है।

यदि कुत्ता अचानक धरती पर लगातार अपने सिर को रगडता है तो उस जगह भूमि में गडे हुए धन की सूचना देता है। किसी यात्रा पर जाते समय यदि रास्ते में सामने किसी कुत्ते को मुंह में पत्थर दबाए आता दिखाई दे या हड्डी का टुकडा मुंह में दबाए गुर्राता दिखाई दे तो यात्रा के दौरान कष्टों की संभावना रहती है। हल्दी या मांस से सने मुख वाला कुत्ता यदि घर में आकर भौंकता है तो स्वर्ण प्राप्ति का योग बनता है।

यदि कोई कुत्ता जाते हुए व्यक्ति के साथ बाईं ओर चलता है तो उसे सुंदर स्त्री व धन मिलता है। यदि दाहिनी ओर चले तो चोरी से धन हानि की सूचना देता है। जिस कुत्ते की पुंछ या कान कटे हो। अगर ऐसा कुत्ता किसी यात्री के समाने आ जाए तो कार्य में असफलता मिलती है। वहीँ, यात्रा पर निकलते समय किसी व्यक्ति को कुत्ता अपने मुख में रोटी, पुड़ी या अन्य कोई खाद्य वस्तु खाता दिखे तो उसे धन का लाभ होता है।

अगर आप कहीं यात्रा पर जा रहे हैं और उसी दरमियान कोई कुत्ता आपके जूते लेकर भाग जाए तो निश्चित रूप से धन हानि होती है। वहीँ, यदि कुत्ता किसी के घर में बार-बार दीवार कुरेदता है तो उस घर में निश्चित रूप से चोरी होती है।

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जानिए क्यों होती है पीपल की पूजा

पीपल हिन्दू धर्म का पूज्य वृ़क्ष माना जाता है। जैसे देवताओं में अनेक गुण होते हैं वैसे ही पीपल का वृक्ष भी गुणों की खान है इसलिए पीपल वृक्ष की पूजा वैसे ही होती है जैसे किसी देवता की। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रात: पूजनीय माना गया है। 

पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन निस्सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है।

गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूँ।'
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
भावार्थ-अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने पीपल को अपनी विभूति कहा है। भगवान विष्णु के ऎश्वर्य का निवास भी पीपल में ही बताया गया है। पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु वृद्धि होती है। पीपल को जल से संचित करने वाला व्यक्ति के सारे पापों से मुक्त हो जाता है। पीपल में पितरों का वास भी माना गया है। शनि की साढे साती में पीपल के पूजन और परिक्रमा का विधान बताया गया है। रात में पीपल की पूजा को निषिद्ध माना गया है। क्योंकि ऎसा माना जाता है कि रात्री में पीपल पर दरिद्रता बसती है और सूर्योदय के बाद पीपल पर लक्ष्मी का वास माना गया है। 

स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इसके कई पुरातात्विक प्रमाण भी है। अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है। 

नित पीपल की पूजा एवं दर्शन करने से आयु और समृद्धि बढ़ती है। जो स्त्री नियमित पीपल की पूजा करती हैं उनका सौभाग्य बढ़ता है। शनिवार के दिन अगर अमावस्या तिथि हो तब सरसो तेल का दीपक जलाकर काले तिल से पीपल वृक्ष की पूजा करें और सात बार परिक्रमा करें तो शनि दोष के कारण प्राप्त होने वाले कष्ट समाप्त हो जाते हैं। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है। 

एक पौराणिक कथा के अनुसार लक्ष्मी और उसकी छोटी बहन दरिद्रा विष्णु के पास गई और प्रार्थना करने लगी कि हे प्रभो! हम कहां रहें? इस पर विष्णु भगवान ने दरिद्रा और लक्ष्मी को पीपल के वृक्ष पर रहने की अनुमति प्रदान कर दी। इस तरह वे दोनों पीपल के वृक्ष में रहने लगीं। विष्णु भगवान की ओर से उन्हें यह वरदान मिला कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसे शनि ग्रह के प्रभाव से मुक्ति मिलेगी। उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी।

शनि के कोप से ही घर का ऐश्वर्य नष्ट होता है, मगर शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करने वाले पर लक्ष्मी और शनि की कृपा हमेशा बनी रहेगी। इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

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बसंत पंचमी: श्रद्धा व उल्लास का पर्व

बसंत पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है| माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसंत ऋतु का आरंभ होता है। बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति बसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है। बसंत को ऋतुओं का राजा कहा गया है क्योंकि इस समय पंच-तत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। बसंत ऋतु आते ही आकाश एकदम स्वच्छ हो जाता है, अग्नि रुचिकर तो जल पीयूष के सामान सुखदाता और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। इस ऋतु के आते ही हवा अपना रुख बदल देती है जो सुख की अनुभूति कराती है| धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं वहीँ शिशिर की प्रताड़ना से तंग निर्धन सुख की अनुभूत करने लगते हैं| सच में! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है उसका। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्ल्व, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है।

प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। बसंत पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं। 

बसंत पंचमी का महत्व-

बसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, अपितु खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है, जिसे बच्चे तथा बड़े-बूढ़े सभी पसंद करते है। अतः इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सजा देती है, तो दूसरी ओर घर-घर में लोग के परिधान भी पीले दृष्टिगोचर होते हैं। नवयुवक-युवती एक -दूसरे के माथे पर चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह आरम्भ करते हैं। तब सभी लोग अपने दाएं हाथ की तीसरी उंगली में हल्दी, चंदन व रोली के मिश्रण को माँ सरस्वती के चरणों एवं मस्तक पर लगाते हैं, और जलार्पण करते हैं। धान व फलों को मूर्तियों पर बरसाया जाता है। गृहलक्ष्मी फिर को बेर, संगरी, लड्डू इत्यादि बांटती है। इस ऋतु को फूलों का मौसम भी कहा जा सकता है| इस समय ना तो ठण्ड होती है और ना ही गरमी होती है| इस समय तक आमों के वृक्षों पर आम के लिए मंजरी आनी आरम्भ हो जाती है| जिन व्यक्तियों को डायबिटीज, अतिसार, रक्त विकार की समस्या है उन्हें आम की मंजरी के सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है| इसलिए वसंत पंचमी के दिन आम की मंजरी अथवा आम के फूलों को हाथों पर मलना चाहिए| इससे उन्हें उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है|

बसंत पंचमी की कथा-

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। एक दिन वह अपनी बनाई हुई सृष्टि को देखने के लिए धरती पर भ्रमण करने के लिए आए| ब्रह्मा जी को अपनी बनाई सृष्टि में कुछ कमी का अहसास हो रहा था, लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस बात की कमी है| उन्हें पशु-पक्षी, मनुष्य तथा पेड़-पौधे सभी चुप दिखाई दे रहे थे| तब उन्हें आभास हुआ कि क्या कमी है| वह सोचने लगे कि ऎसा क्या किया जाए कि सभी बोले, गाएं और खुशी में झूमे| ऎसा विचार करते हुए ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल लेकर कमल पुष्पों तथा धरती पर छिड़का| जल छिड़कने के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए हुए एक देवी प्रकट हुई| इस देवी के चार हाथ थे| एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में कमल, तीसरे हाथ में माला तथा चतुर्थ हाथ में पुस्तक थी| ब्रह्मा जी ने देवी को वरदान दिया कि तुम सभी प्राणियों के कण्ठ में निवास करोगी| सभी के अंदर चेतना भरोगी, जिस भी प्राणी में तुम्हारा वास होगा वह अपनी विद्वता के बल पर समाज में पूज्यनीय होगा| ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हें संसार में देवी भगवती के नाम से जाना जाएगा| ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती को वरदान देते हुए कहा कि तुम्हारे द्वारा समाज का कल्याण होगा इसलिए समाज में रहने वाले लोग तुम्हारा पूजन करेगें| इसलिए प्राचीन काल से वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है अथवा कह सकते हैं कि इस दिन को सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है|

‘प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु’ 

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।

लावारिस बच्चों को अपना आंचल देकर मां की कमी पूरी करती है शिरीन

बोझ समझकर जिन बच्चों को उनके माता-पिता ने छोड़ दिया है, एक ग्रामीण महिला उनकी 'मां' बनकर जन्म देने वाली मां से कहीं ज्यादा लाड़-प्यार देती है। वह नि:स्वार्थ भाव से लावारिस और बेसहारा बच्चों को अपना आंचल देकर उनके जीवन में मां की कमी पूरी करती है। उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले के पडरौना कस्बे के निकट परसौनी कला गांव में रहने वाली 63 वर्षीया शिरीन बसुमता लावारिस हालत में मिले 29 बच्चों को अपने घर लाकर उनका पालन-पोषण कर रही हैं। बिना भेदभाव के सभी बच्चों को शिरीन का बराबर प्यार मिलता है। 

शिरीन ने बताया, "लावारिस और बेसहारा बच्चों की देखभाल करना मेरी जिंदगी का हिस्सा बन गया है। मुझे लगता है, जैसे ईश्वर ने मुझे इसी काम के लिए दुनिया में भेजा है।" उन्होंने कहा, "मैं इसे सौभाग्य समझती हूं कि ईश्वर ने मुझे इस काम के लिए चुना। मैंने करीब 13 साल पहले यह नेक काम शुरू किया था।"

शिरीन के मुताबिक, 5 नवंबर 2001 को गांव से थोड़ी दूर पर एक नाले के पास उन्हें एक नवजात बच्ची मिली। उसकी हालत बहुत खराब थी। वह उसे घर ले आईं और उसका इलाज करवाया। डॉक्टर की कड़ी मशक्कत के बाद आखिरकार उस बच्ची की जान बच सकी।

शिरीन कहती हैं, "मैंने उस बच्ची का नाम महिमा रखा। उस दिन के बाद से मैंने तय कर लिया कि अब मैं उन लावारिस बच्चों की मां बनकर उन्हें लाड़-प्यार दूंगी जिन्हें जन्म देने वाली मां किसी मजबूरी के चलते नाले, झाड़ियों, बाग, रेलवे और बस स्टेशन के आस-पास छोड़ जाती हैं।"

महिमा के बाद एक-एक करके सिरीन को अब तक कुल 29 बच्चे मिले। इनसे से कई उन्हें लावारिस हालत में मिले और कुछ को लोगों ने उन्हें सौंपा। शिरीन को इस काम में उनके परिवार के अन्य सदस्य भी पूरी मदद करते हैं। उनके पुत्र जयवंत बसमुता कहते हैं कि वह अपनी मां से प्रेरणा लेकर इन बच्चों की सेवा करते हैं। इस काम में बहुत खुशी और संतोष मिलता है।

इन बच्चों के खाने-पीने और कपड़ों के इंतजाम में शिरीन की गांव के लोगों के साथ कुछ सामाजिक संगठन भी मदद करते हैं। जयवंत कहते हैं, "गांव के लोग अक्सर हमें अनाज, सब्जियां और दूध आदि देकर मदद करते हैं जिससे हमें बच्चों के खान-पान की व्यवस्था करने में कुछ आसानी हो जाती है। कुछ सामाजिक संगठन के लोग हमारे इस नेक काम में रुपये के जरिए मदद कर देते हैं।"शिरीन ने पांच साल से ऊपर के बच्चों को घर के निकट स्थित एक मिशनरी स्कूल में दाखिला दिलवाया है। वह चाहती हैं कि ये बच्चे पढ़-लिख कर नेक इंसान बनें और जिंदगी में कुछ करके दिखाएं।

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हिमाचल में निवास करते हैं दुनिया के आधे कलहंस

विश्व की सबसे बड़ी आद्रभूमियों में से एक हिमालय की तराई में निर्मित कृत्रिम आद्रभूमि पोंग डैम इस समय लगभग 43,000 कलहंसों का निवास स्थल है। वन्यजीव अधिकारियों का कहना है कि यह विश्व में कुल कलहंसों की लगभग आधी आबादी है, जो हिमाचल प्रदेश के पोंग डैम में आश्रय लिए हुए हैं।

अधिकारियों का कहना है कि इस बार पोंग आद्रभूमि में पिछले वर्षो की अपेक्षा अधिक संख्या में कलहंस पहुंचे हैं। वन (वन्यजीव) के सहायक संरक्षक डी. एस. डडवाल ने कहा, "आद्रभूमि में रहने वाली पक्षियों की प्रजाति की गणना में लगभग 43,000 प्रवासी पक्षियों की मौजूदगी का पता चला है। राज्य वन्यजीव विभाग ने 29 जनवरी को पोंग जलाशय में पक्षी गणना कराई थी।"

कलहंसों के अलावा कांगड़ा घाटी स्थित पोंग जलाशय में सामान्य कूट पक्षी, पिनटेल, सामान्य एवं गुच्छेदार तथा लाल कलगी वाले पोचार्ड प्रजाति के बत्तख, सामान्य चैती, छोटे जलकाग, बड़ी कलगी वाले ग्रेब और भूरी टांगों वाले कलहंस जैसी प्रजाति के पक्षियों की मौजूदगी का पता चला है।

पक्षी गणना में 119 प्रजातियों के 1,28,200 पक्षियों की मौजूदगी का पता चला है। साथ ही भारतीय आद्रभूमि क्षेत्र में कम ही दिखने वाले सामान्य शेलडक, सारस क्रेन, मछलियों का शिकार करने वाले बाज (ओस्प्रे), बफ बेलीड पिपिट, भारत में पाया जाने वाला स्किमर और छोटा गुल आधि प्रजाति के पक्षियों की मौजूदगी का भी पता चला है।

डडवाल ने कहा कि पोंग डैम में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में कलहंस पक्षियों ने डेरा डाला है। कलहंस हर वर्ष सर्दियों में मध्य एशिया तथा तिब्बत और लद्दाख से यहां प्रवास पर आते हैं। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के सहायक निदेशक एस. बालाचंद्रन ने बताया कि कलहंस पक्ष बड़ी संख्या में पोंग डैम की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। पोंग डैम आद्रभूमि क्षेत्र में स्थानीय और प्रवासी पक्षियों की 421 प्रजातियां, सांपों की 18 प्रजातियां, तितलियों की 90 प्रजातियां, स्तनपाई जीवों की 24 प्रजातियां और मछलियों की 27 प्रजातियां पाई जाती हैं।

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विश्व कैंसर दिवस पर विशेष: कैंसर का उपचार अब घर पर भी संभव

चित्रा शाह (30) उस समय बिल्कुल टूट चुकी थीं, जब उन्हें मालूम हुआ कि उनके पति फेफड़े के कैंसर से पीड़ित हैं। पति की बीमारी के दौरान घर और बच्चों की देखभाल, सास-ससुर की सेवा और पति को अस्पताल ले जाने-लाने में चित्रा को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था।

इसके अलावा घर से अस्पताल की दूरी और अतिरिक्त खर्चे के बोझ से चित्रा बेहाल थीं। लेकिन, कैंसर के बेहतर इलाज और उपचार के लिए शुरू की गई नई योजना चित्रा के लिए राहत लेकर आई। योजना के अंतर्गत गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) सेवा और कीमोथेरेपी की सुविधा घर पर ही उपलब्ध कराई जाएगी।

हेल्थकेयर एट होम (एचसीएएच) मेडिकल सर्विस के प्रमुख गौरव ठकराल ने बताया, "कैंसर का संघर्ष बेहद कठिन और तोड़ देने वाला है, लेकिन इसकी मुश्किल को थोड़ा कम किया जा सकता है और इलाज को सुविधाजनक बनाया जा सकता है, यदि कैंसर का इलाज और उपचार घर पर ही संभव हो जाए।"

इस योजना की नींव रखने वालों में ठकराल भी शामिल हैं। इस योजना को शुरू करने के लिए उन्होंने पिछले साल फोर्टिस में चिकित्सक के पद से त्यागपत्र दे दिया। ठकराल जब अपने मरीजों द्वारा उठाई जा रही परेशानियों से रू-ब-रू हुए तो उनके दिमाग में घर पर ही कैंसर का इलाज उपलब्ध कराने की सुविधा का विचार आया।

उन्होंने कहा कि बार-बार अस्पतालों के चक्कर लगाने के बजाय अब मरीजों को उनके घर पर ही कीमोथेरेपी के इंजेक्शन, प्रशिक्षित नर्स और दूसरी सुविधाएं मिलेंगी। जिन मरीजों को आईसीयू में रखे जाने की जरूरत होगी, उनके लिए भी घर पर ही आईसीयू की सुविधा मुहैया कराई जाएगी।

अच्छी बात यह है कि घर पर उपचार की सुविधा के लिए मरीज को अधिक खर्च नहीं करना पड़ेगा। कीमोथेरेपी इंजेक्शन की सामान्य कीमत जहां 2,000 से 10,000 के बीच है, वहीं घर पर उपचार कराने पर भी आईसीयू की सुविधा के लिए 8,000 से 10,000 रुपये तक का ही खर्च आएगा।

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ऋतुराज के स्वागत का पर्व है बसंत पंचमी

भारतीय जीवन में परिवर्तन का मनुष्य ने जिस उत्साह के साथ स्वागत किया वहीं त्योहारों के रूप में परंपरा में शामिल होता गया। बसंत पंचमी ऋतुओं के उसी सुखद परिवर्तन का स्वागत समारोह है। धार्मिक रूप से यह त्योहार हालांकि विद्या की देवी सरस्वती की पूजा से संबंधित है। संपूर्ण भारत में बड़े उल्लास बसंत पंचमी के रोज विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है।

बसंत पंचमी का अर्थ है शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है। बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्व, जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं।

दरअसल मौसम और प्रकृति में मनोहारी बदलाव होते जिसने मनुष्य को सदा से उल्लासित किया है। पेड़ों पर फूल आ जाते हैं। नई कोपलें निकल आती हैं। फलों के पेड़ों में बौर आने का संकेत मिल जाता है। इन श्रंगारिक परिवर्तनों ने कवियों को सदैव आकर्षित किया और वसंत कविता का विषय रहा। प्राय: हर भाषा के कवि ने बसंत का अपनी तरह से वर्णन किया है। 

बसंत पर्व का आरंभ बसंत पंचमी से होता है। इसी दिन श्री अर्थात विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है। सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है। कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की। 

जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा, 'स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम।' अर्थात मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है।

ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। बसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। अत: वागीश्वरी जयंती व श्रीपंचमी नाम से भी यह तिथि प्रसिद्ध है। 

बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यत: विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। बसंत पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे कई कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं।

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