मोदी की झांसी रैली को मप्र में भुनाने की कोशिश

उत्तर प्रदेश के झांसी में होने वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की चुनावी रैली के जरिए झांसी से सटे मध्य प्रदेश के सीमावर्ती इलाकों में उत्साह पैदा करने की कोशिश की जा रही है। राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर मोदी की इस रैली को पार्टी के लिए अहम माना जा रहा है, और मप्र भाजपा इस रैली को भुनाने की पूरी कोशिश में है।

भाजपा के मिशन-2014 के तहत 25 अक्टूबर को मोदी उप्र के झांसी में आमसभा को संबोधित करने वाले हैं। प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित किए जाने के बाद मोदी का यह पहला बुंदेलखंड प्रवास है। मोदी की इस रैली को लेकर सीमावर्ती मप्र के भाजपा कार्यकर्ता भी काफी उत्साहित हैं।

झांसी की भौगौलिक स्थिति देखें तो वह तीन तरफ से मप्र से घिरा हुआ है। मप्र के दतिया, टीकमगढ़, छतरपुर व शिवपुरी जिलों की सीमाएं झांसी से जुड़ी हुई हैं। यही कारण है कि झांसी में होने वाली मोदी की रैली में इन चारों जिलों के भाजपा कार्यकतरओ में उत्साह है और वे इस रैली में बड़ी संख्या मंे पहुंचने की तैयारी में हैं।

झांसी से जुड़े इन चारों जिलों की कुल आठ विधानसभा सीटों में से मात्र तीन सीट ही भाजपा के खाते में है, इसलिए मोदी की इस रैली के जरिए शेष क्षेत्रों में भाजपा का महौल बनाने की कोशिश की जा रही है। यही कारण है कि इस रैली में मप्र की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती को भी पूरा महत्व दिया जा रहा है।

मप्र के बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष और पूर्व विधायक उमेश शुक्ला भी मानते हैं कि मोदी की यह रैली भाजपा के लिए लाभदायक होगी। शुक्ला ने कहा कि इस रैली को लेकर बुंदेलखंड के कार्यकतरओ में काफी उत्साह है, और निश्चय ही इसका लाभ आगामी विधानसभा चुनाव में मिलेगा।मोदी की इस रैली का कार्यकर्ताओं से इतर मतदाताओं पर कितना असर होता है, इसका आकलन आसान नहीं है, क्योंकि सीमावर्ती मप्र में भाजपा की स्थिति कभी भी ज्यादा अच्छी नहीं रही है।
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दीपावली पर सूना रहेगा आतिशबाजी का बाजार?

दीपावली में आतिशबाजी न हो, ऐसा तो हो नहीं सकता, मगर कहा जा रहा है कि इस वर्ष दीपावली पर आतिशबाजी का बाजार सूना रहने के आसार हैं या यूं कहें कि आतिशबाजी का शौक इस बार महंगा पड़ सकता है। इसकी वजह पिछले वर्ष की अपेक्षा इस साल आतिशबाजी के दामों में 50 से 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी है।

दरअसल, तमिलनाडु के शिवकाशी में पिछले कुछ वर्षो में हुए हादसों के बाद परिस्थितियां भी बदल गई हैं और नियम-कानून भी सख्त हो गए हैं। दूसरी बात कि चीनी पटाखों पर अब लोगों का विश्वास भी कम हो गया है, क्योंकि ज्यादातर चीनी पटाखे सही नहीं होते और उनसे खतरा भी बना रहता है। देशी पटाखों में खतरा अधिक होने की वजह से जिला प्रशासन ने तेज आवाज के पटाखे बनाने और बेचने पर पहले ही रोक लगा दी है। आपूर्ति की कमी और महंगाई के कारण थोक व्यवसायी भी अपना लाभ जोड़कर चल रहे हैं। मतलब साफ है कि पिछले वर्ष जो लोग एक हजार रुपये का पटाखा जलाते थे, उन्हें इस वर्ष वही पटाखा 1500 से 1600 रुपये में मिलेगा। 10 रुपये तक के पटाखे काफी खराब गुणवत्ता के मिलेंगे।

थोक व्यवसायियों की मानें तो 50 रुपये से नीचे अच्छा पटाखा मिलना आसान नहीं होगा। आतिशबाजी व्यापार कल्याण संघ के अध्यक्ष अखिलेश गुप्ता का कहना है कि तमिलनाडु के शिवकाशी में बनने वाले पटाखे ही पूरे देश में सप्लाई होते हैं। हाल के कुछ वर्षो में शिवकाशी में हुए हादसों के बाद से वहां भी आतिशबाजी का कारोबार काफी कम हो गया है। उन्होंने कहा कि नियम-कानून भी इतने सख्त हो गए हैं कि तेज आवाज के पटाखों के अलावा अधिक बारूद वाले पटाखे बनाने पर रोक लगा दी गई है। ऊपर से महंगाई और नक्सली इलाकों में बारूद की बढ़ती खपत के अंदेशे के चलते भी प्रशासन दुकानदारों पर निगरानी रख रहा है। 

गुप्ता ने कहा कि पटाखों में लगने वाले कागज सहित अन्य कच्चा माल भी अब दोगुना महंगे हो गए हैं। दूसरी तरफ इस बार तमिलनाडु में मानसून भी काफी देर से आया, और वहां अब भी काफी बारिश हो रही है। बने हुए पटाखे सूख भी नहीं पाए हैं। ऊपर से महंगाई ने आतिशबाजी बाजार की कमर तोड़ दी है। थोक व्यवसायियों को पहले से आर्डर देने के बावजूद कम मात्रा में ही आतिशबाजी मिल पा रही है।

कच्चा माल महंगा होने के कारण भी आतिशबाजी के दाम बढ़े हैं। संगठन के पदाधिकारियों का कहना है कि वह पूरी कोशिश कर रहा है कि राजधानी के लोगों को हर तरह का पटाखा उपलब्ध हो, लेकिन इस बार व्यापारी दाम से समझौता नहीं कर पाएंगे। तय दाम पर ही पटाखा मिलेगा। 

छोटे व्यापारियों को भी पहले से ही बता दिया गया है कि आपूर्ति की कमी के कारण उन्हें भी तय मात्रा में ही आतिशबाजी दी जाएगी। तेज आवाज की अपेक्षा इस बार कम आवाज और फुलझड़ी वाले पटाखों की बिक्री को वरीयता दी जाएगी। अखिलेश गुप्ता बताते हैं कि जनपद में बनने वाले पटाखों से ही पूरी आपूर्ति कर पाना संभव नहीं होगा। जनपद के अलावा आस-पास के जनपदों के फुटकर खरीदार भी राजधानी से ही पटाखे ले जाते हैं। इसलिए इस बार कानपुर के बने हुए ब्रांडेड पटाखे भी काफी मात्रा में मंगाए गए हैं। चीनी पटाखे भी बाजार में अब तक नहीं आ पाया है।

पटाखों के थोक व्यापारी बताते हैं कि चीनी पटाखों में लाभ कम होने के कारण भारतीय व्यापारियों ने उसे बेचने से तौबा कर ली है। दिल्ली और मुबंई से कंटेनर के माध्यम से आने वाला चीनी पटाखा इस बार राजधानी के बाजार में नहीं दिखेगा। इस समय पूरे प्रदेश में राजधानी का आतिशबाजी बाजार सबसे बड़ा बाजार है। आतिशबाजी व्यापारी कल्याण संघ के पदाधिकारियों का कहना है कि इस समय थोक के सबसे बड़े व्यापारी राजधानी में हैं। जनपद में कुल 46 थोक व्यापारियों के पास पटाखों की बिक्री करने का लाइसेंस है।
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सपा को मोदी की रैली से ज्यादा भीड़ जुटाने की फिक्र

आगामी 29 अक्टूबर को आजमगढ़ में रैली के जरिए लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत करने जा रही समाजवादी पार्टी (सपा) के सामने इस रैली में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की कानपुर रैली से ज्यादा भीड़ जुटाने की चुनौती है, क्योंकि सपा की इस रैली की तुलना मोदी की कानपुर रैली से होगी। 

कानपुर में 19 अक्टूबर को मोदी की रैली के जरिए भाजपा ने उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान का आगाज किया। मोदी की रैली में दो लाख से ज्यादा भीड़ जुटी थी। अब सपा आजमगढ़ से उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव प्रचार की शुरुआत करने जा रही है। आजमगढ़ रैली की तुलना मोदी की कानपुर रैली से होगी। ऐसे में सपा नेतृत्व चाहता है कि इस रैली में भीड़ मोदी की रैली से कम न हो।

शायद इसी चिंता में सोमवार को सपा राज्य कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी नेताओं को रैली में ज्यादा से ज्यादा भीड़ जुटाने के निर्देश दे दिए गए हैं। समाजवादी पार्टी के राज्य कार्यकारिणी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि पूर्वाचल से ताल्लुक रखने वाले मंत्रियों और आजमगढ़ व आस-पास के जिलों के विधायकों को अपने अपने क्षेत्र से लोगों को लाकर रैली में भीड़ जुटाने को कहा गया है। 

उन्होंने कहा कि सपा नेतृत्व को लगता है में मोदी की रैली से अगर तीन लाख लाख से ज्यादा भीड़ जुटेगी तो इससे कार्यकर्ताओं और नेताओं में जोश का संचार होगा। आजमगढ़ रैली को सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव संबोधित करेंगे।

माना जाता है कि किसी नेता की रैली में भारी भीड़ जुटने से उसकी राजनीतिक हैसियत और लोकप्रियता का अंदाजा तो लगता ही है साथ ही भारी भीड़ से पार्टी के पक्ष में हवा बनती है। सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी कहते हैं कि बीते विधानसभा चुनाव में भी सपा ने आजमगढ़ में रैली के जरिए चुनाव प्रचार अभियान की शुरुआत थी। रैली में ऐतिहासिक भीड़ जुटी थी और पार्टी को चुनाव में विजयश्री मिली थी। यही हाल आगामी लोकसभा चुनाव में भी होगा।

चौधरी ने कहा कि रही बात आगामी आजमगढ़ रैली की मोदी की कानपुर रैली की तुलना से की तो मोदी की रैली में आई भीड़ को पैसे देकर लाया गया था, लेकिन सपा की रैली में मजदूर, किसान, युवा और महिलाएं सभी अपनी खुशी से आएंगे। गरीबों, किसानों और युवाओं के बीच मुलायम सिंह यादव से ज्यादा लोकप्रिय कोई नहीं है।

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11 साल की उम्र में शोभन सरकार को हो गया था ‘वैराग्य’!

उन्नाव जिले के डौंड़ियाखेड़ा गांव में राजा राव रामबक्श सिंह के किले में सोने खजाना होने का सपना देखने वाले संत शोभन सरकार को 11 साल की उम्र में ही ‘वैराग्य’ उत्पनन हो गया था और वह अपना घर त्याग दिए थे।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) जिस संत के सपने को सच मानकर किले में सोने का दबा खजाना खोज रही है, उनके बारे में डौंड़ियाखेड़ा गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि करीब 38 साल पहले इस गांव में रघुनंदन दास नाम के संत हुआ करते थे। समाधि लेते समय इस संत ने गांव वालों से कुछ दिन बाद ‘चमत्कारी बालक’ के आने की बात कही थी और 16 साल की उम्र का बालक संत शोभन सरकार के रूप में आ गया था।

गांव के बुजुर्ग मकसूदन बताते हैं कि 65 वर्षीय संत शोभन सरकार का जन्म कानपुर देहात के शुक्लन पुरवा गांव में हुआ था, इनके पिता का नाम कैलाशनाथ तिवारी था।’ वह बताते हैं कि ‘संत शोभन सरकार का असली नाम ‘परमहंस स्वामी विरक्तानंद’ है, लेकिन इस इलाके में उन्हें ‘शोभन सरकार’ के नाम से सोहरत मिली है। 

इस बुजुर्ग का यह भी मानना है कि ‘संत त्रिकाल दर्शी हैं, उन्होंने सोने के खजाना का सपना देखा है तो सच साबित होगा।’ गांव के एक अन्य बुजुर्ग मोहन बाबा का कहना है कि ‘शोभन सरकार को 11 साल की उम्र में ‘वैराग्य’ उत्पन्न हो गया था और उन्होंने अपना घर त्याग दिया था।’ 

यह बुजुर्ग इस संत की वेषभूषा के बारे में कहते हैं कि ‘किले से करीब दो किलोमीटर दूर बने अपने बक्सर आश्रम में ही ज्यादातर रहते हैं और तन में ‘लाल लंगोटी’ व सिर में ‘साफा’ बांधते हैं।’ इनका कहना है कि ‘संत रघुनंदन दास की भविष्यवाणी याद कर गांव वाले उनसे यहीं रुकने का आग्रह किया था, तब वह गंगा किनारे आश्रम बनाकर ठहर गए।’

डौंड़ियाखेड़ा से रामलाल जयन की रिपोर्ट

मोदी के 'हुंकार रैली' के नाम को लेकर सियासत गर्म

बिहार की राजधानी पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी की 'हुंकार रैली' के आयोजन के लिए अब एक सप्ताह से भी कम समय रह गया है। भाजपा एक ओर जहां इसे सफल करने के लिए जी-तोड़ मेहनत कर रही है, वहीं इसे लेकर बिहार में सियासत भी गर्म है।

भाजपा की इस 'हुंकार रैली' को कई राजनीतिक दल 'खूंखार रैली' तो कई 'चीत्कार रैली' का नाम दे रहे हैं। जनता दल (युनाइटेड) इस रैली की उनकी 'अधिकार रैली' से तुलना किए जाने से नाराज है।
भाजपा नेता इस रैली को सफल बनाने के लिए तमाम प्रयास कर रहे हैं, जिसके तहत लोगों को रैली में आने के लिए आमंत्रण भी भेजा जा रहा है। वहीं अन्य राजनीतिक दलों ने इस रैली के नाम को लेकर भाजपा पर निशाना साधा है।

राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के सांसद और महासचिव रामकृपाल यादव ने कहा, "इस रैली के माध्यम से भाजपा अपना असली चेहरा दिखाने मंे लगी है। बेहतर होता कि भाजपा अपनी चाल और चरित्र के हिसाब से इसे हुंकार के बजाए 'खूंखार रैली' कहती। युद्ध के मैदान में हुंकार होता है। मेरे हिसाब से इस रैली का नाम 'खूंखार रैली' होना चाहिए।"

इधर, बिहार में सत्तारूढ़ और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) से हाल के दिनों में अलग हुए जद (यू) के नेता हुंकार नाम को ही नकारात्मक बताते हुए कहते हैं कि इस नाम से समाज को लड़ाने की साजिश की बू आ रही है। इस रैली का सही नाम तो 'चीत्कार रैली' होना चाहिए।

जद (यू) के प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा, "जब से बिहार में भाजपा सत्ता से अलग हुई है तभी से ये लोग छाती पीटकर रो रहे हैं। इस कारण ये यहां 'चीत्कार रैली' कर रहे हैं।" उन्होंने कहा, "दरअसल भाजपा नेताओं के खाने के दांत और दिखाने के दांत अलग-अलग हैं। इसलिए वे 'हैवोक रैली' का समां बांध रहे हैं।"

इस रैली की जद (यू) की 'अधिकार रैली' से तुलना किए जाने पर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह कहते हैं कि विशेष राज्य की मांग को लेकर पिछले दिनों पटना में आयोजित इस रैली की तुलना भाजपा की रैली से नहीं की जा सकती। 'अधिकार रैली' बिहार के लोगों के हक के लिए थी, वह मुद्दा आधारित और राज्य हित की रैली थी।

कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी ने भी हुंकार को लेकर भाजपा पर निशाना साधा है। वह कहते हैं कि आखिरकार भाजपा इस रैली के माध्यम से क्या हुंकार करना चाहती है और वह अभी से लोगों को रैली के दिन रेलगाड़ी और बसों में सफर नहीं करने की अपील कर रही है।

भाजपा के नेताओं के पास हुंकार नाम को लेकर अपना तर्क है। भाजपा के नेता इस नाम को सकरात्मक मानते हैं। भाजपा बिहार इकाई के अध्यक्ष मंगल पांडेय कहते हैं कि इस रैली में किया गया हुंकार बिहारवारियों की अंतरात्मा की पुकार होगी। वह कहते हैं कि यह रैली बिहार और केंद्र सरकार के खिलाफ संघर्ष का आह्वान होगा, इसलिए इस रैली का नाम हुंकार पूरी तरह से तर्क संगत है। 

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'जहां सच हुई थी सपने में प्रतिमा मिलने की बात'

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा में एक सपने के आधार पर खजाने की खोज में चल रही खुदाई को लेकर भले ही देश में बहस-मुबाहिसे हो रहे हों, लेकिन झारखंड के गढ़वा जिले में बंशीधर मंदिर में स्थापित करीब 1,280 किलोग्राम सोने से निर्मित भगवान कृष्ण की मूर्ति को सपने के आधार पर ही पहाड़ी से खुदाई कर निकाला गया है। 

गढ़वा जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर नगर उंटारी में बंशीधर मंदिर स्थित है। इस मंदिर में सैकड़ों वर्ष पुरानी श्रीकृष्ण की अद्वितीय 4.5 फुट ऊंची और कथित तौर पर लगभग 1,280 किलोग्राम सोने से निर्मित अत्यंत मनमोहक प्रतिमा अवस्थित है। इस प्रतिमा में भगवान कृष्ण शेषनाग के फन पर निर्मित 24 पंखुड़ियों वाले विशाल कमल पर विराजमान है।

मंदिर के प्रस्तर लेखों और पहले पुजारी दिवंगत सिद्धेश्वर तिवारी द्वारा लिखी गई पुस्तक के अनुसार, विक्रम संवत 1885 में नगर उंटारी के महाराज भवानी सिंह की विधवा रानी शिवमानी कुंवर ने लगभग 20 किमी दूर शिवपहरी पहाड़ी में दबी पड़ी इस कृष्ण प्रतिमा के बारे में सपना देखकर ही जाना था।

कृष्ण की भक्ति में डूबी रहने वाली रानी ने एक बार कृष्णाष्टमी का व्रत किया था और उसी रात भगवान ने उन्हें दर्शन दिए। इसके बाद सपने में ही भगवान ने कहा कि कनहर नदी के किनारे शिवपहरी पहाड़ी में उनकी प्रतिमा गड़ी है और कृष्ण ने रानी से यह प्रतिमा राजधानी लाने के लिए कहा। सपने में ही रानी को उस प्रतिमा के दर्शन भी हुए।

इस सपने के बाद सुबह रानी अपने सेना के साथ उस पहाड़ी पर गईं और पूजा-अर्चना के बाद रानी के बताए गए स्थान पर खुदाई प्रारंभ हुई। खुदाई के दौरान रानी को बंशीधर की अद्वितीय प्रतिमा मिली। इस प्रतिमा को हाथी पर रखकर नगर उंटारी लाया गया। रानी इस प्रतिमा को अपने गढ़ में स्थापित करना चाहती थीं, परंतु गढ़ के मुख्य द्वार पर हाथी बैठ गया और लाख प्रयास के बाद भी वह हाथी यहां से नहीं उठा। 

पुस्तक के अनुसार, राजपुरोहित के परामर्श के बाद रानी ने उसी स्थान पर प्रतिमा स्थापित कर वहां मंदिर बनवाया। कहा जाता है कि पहाड़ी पर मिली प्रतिमा केवल श्रीकृष्ण की थी। इस कारण कालांतर में वाराणसी से राधा की अष्टधातु की प्रतिमा भी बनावाकर यहां लाई गई, और भगवान कृष्ण की प्रतिमा के बामांग में पूरे धार्मिक रीति-रिवाज के साथ स्थापित की गई।

मंदिर के वर्तमान पुजारी ब्रजकिशोर तिवारी ने आईएएनएस को बताया कि इस मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालुओं की भारी भीड़ लगी रहती है। नगर उंटारी राज परिवार के संरक्षण में यह मंदिर प्रारंभ से ही पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहा है। उन्होंने बताया कि यहां प्रतिवर्ष फाल्गुन महीने में एक महीने तक मेले का आयोजन होता है।

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चंद्रगुप्त मौर्य काल का है डौंडियाखेड़ा किला!

उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले का डौंडियाखेड़ा किला 155 वर्षो से वीरान व गुमनाम पड़ा हुआ था, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा सोने की खोज में वहां खुदाई करने की वजह से समूचे देश की निगाहें अचानक इतने वर्षो बाद इस किले पर आ टिकी हैं। 

सोने का खजाना मिलना या न मिलना अभी भविष्य की गर्त में है, लेकिन डौंडियाखेड़ा किले से संबंधित कुछ बहुत ही रोचक जानकारियां जरूर निकलने लगी हैं। डौंडियाखेड़ा किले के बारे में जो नई जानकारी मिली है, वह यह है कि यह किला राजा राव रामबख्श का नहीं, बल्कि चंद्रगुप्त मौर्य काल से ही अस्तित्व में है।

उन्नाव जिले के डौंडियाखेड़ा गांव में गंगा नदी के किनारे बने इस किले के बारे में गांव के बुजुर्गो का कहना है कि डौंडियाखेड़ा को पहले द्रोणि क्षेत्र या फिर द्रोणिखेर से पहचाना जाता था। चंद्रगुप्त मौर्य काल में यह इलाका पांचाल प्रांत का हिस्सा हुआ करता था। उस काल में 400 से 500 गांवों के भू-भाग को द्रोणिमुख कहा जाता था।

इस द्रोणिमुख क्षेत्र की राजधानी डौंडियाखेड़ा हुआ करती थी, इसलिए इसका काफी महत्व था। साथ ही तब के राजा का एक सैन्य अधिकारी अपनी टुकड़ी के साथ यहां बसनेर किया करते थे। प्रसिद्ध पुरातत्ववेत्ता अलेक्जेंडर की मानंे तो उन्होंने अपनी एक पुस्तक में कहा है कि बौद्धकालीन हयमुख नामक प्रसिद्ध नगर यहीं था, जहां पर हर्षवर्धन काल में चीनी यात्री ह्वेनसांग आया था। 

डौंडियाखेड़ा किले के बारे में अपने को राजा राव रामबख्श सिंह का वंशज बताने वाले चंडीवीर प्रताप सिंह का कहना है कि इस किले में शुरू में बाहुबली भरों का कब्जा हुआ करता था। भरों से किला जीतने के लिए बैसों ने कई बार कोशिश की, लेकिन असफल रहे। सन 1266 के आस-पास बैसों के राजा करन राय के बेटे सेढूराय ने आखिरकार इस किले को भरों से जीत लिया।

वह बताते हैं कि इस किले पर बैसों का कब्जा होने की वजह से यह बैसवारा नाम से चर्चित हुआ और डौंडियाखेड़ा इसकी राजधानी रही। वह आगे बताते हैं कि बैस राजवंश में त्रिलोकचंद्र नामक प्रतापी राजा हुए। उन्होंने इस किले को न सिर्फ सुदृढ़ कराया, बल्कि किले के अंदर दो महल भी बनवाए, साथ ही किले के अंदर 500 सैनिक और किले के बाहर दस हजार सैनिकों की तैनाती भी की। 

राजा त्रिलोकचंद्र के बारे में उन्होंने बताया कि वह दिल्ली सल्तनत के बादशाह बहलोल लोदी के काफी नजदीकी सहयोगी माने जाते रहे हैं। त्रिलोकचंद्र के काल में ही कालपी, मैनपुरी से लेकर प्रतापगढ़ जिले के मानिकपुर और पूर्व में बहराइच तक फैल चुका था। गांव के 90 साल के बुजुर्ग सरवन बताते हैं कि बैस वंश के अंतिम राजा राव रामबख्श सिंह को 28 दिसंबर 1857 को फांसी देने के बाद ब्रिटिश सेनानायक सर होप ग्रांट ने हमला करवा कर इसे नेस्तनाबूद करवा दिया था। 

अगर इस किले के भूगोल के बारे में चर्चा करें तो उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिला मुख्यालय से करीब 33 किलोमीटर दूर दक्षिण-पूर्व में 50 फिट ऊंचे मिट्टी के टीले पर यह किला बना हुआ है। किले के पश्चिम दिशा में गंगा नदी टीले को छू कर बहती है और किले का मुख्य द्वार पूर्व दिशा की ओर था।

किले के सामने की लंबाई 385 फिट है और पीछे का हिस्सा कुछ चौड़ा है। किले का क्षेत्रफल 1,92,500 वर्ग फिट है। यह किला चारों तरफ मिट्टी की 30-32 फिट मोटी दीवारों से घिरा था और इसके चारों तरफ 50 फिट गहरी खाई बनी थी, जिसमें हमेशा पानी भरा रहता था।

यह बताना जरूरी है कि इससे पहले खंडहर में बदल चुके इस ऐतिहासिक धरोहर की खबर न तो एएसआई को थी और न ही कोई गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ही इस किले के संरक्षण के लिए अब तक आगे आया। अब जब एक संत शोभन सरकार ने यहां एक हजार टन सोने का खजाना होने के सपने के बारे में केंद्र सरकार को बताया तो भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (जीएसआई) व एएसआई हरकत में आई और यह सुर्खियों में आ गया।

देह व्यापार की भट्ठी में झोंकने वाला 'राजू' आखिर कौन.......?

देश के आर्थिक रूप से पिछड़े ग्रामीण इलाकों की युवतियों को फंसाकर दिल्ली के रेड लाइट इलाके में देह व्यापार की भट्ठी में झोंकने वाला 'राजू' आखिर कौन है, जिसकी दिल्ली पुलिस को पिछले दो वर्षो से तलाश है। दिल्ली के रेड लाइट इलाके में देह व्यापार में फंसी लगभग हर युवती को यहां लाने वाले इस रहस्यमय व्यक्ति 'राजू' की आखिर असलियत क्या है। क्या यह कोई गैंग है या पुलिस को धोखा देने के लिए देह व्यापार के दलालों का फर्जी नाम भर है।

दिल्ली पुलिस के पास इस 'राजू' नाम के व्यक्ति का कोई रेखाचित्र, फोटो या कोई भी अन्य जानकारी नहीं है, और वह पिछले दो वर्षो से उसके लिए रहस्य बना हुआ है। जांच कर रहे एक अधिकारी ने अपनी पहचान की गोपनीयता के शर्त पर बताया, "जी. बी. रोड स्थित वैश्यालयों से बचाई गई अधिकतर युवतियों ने यही नाम लिया है। हम उसकी तलाश पिछले दो वर्षो से कर रहे हैं, लेकिन नाममात्र को सफलता मिली है।"

पिछले दो वर्षो से मध्य दिल्ली के भीड़ भरे इलाके जी. बी. रोड से निकाली गईं अधिकतर महिलाओं एवं किशोरियों ने अपनी वर्तमान स्थिति के लिए इसी व्यक्ति को जिम्मेदार बताया है।
कमला मार्केट पुलिस थाना के गृह अधिकारी प्रमोद जोशी ने बताया, "राजू ही वह आदमी है जो बचाई गई अधिकतर महिलाओं को विवाह करने या नौकरी देने का झांसा देकर देश के विभिन्न स्थानों से दिल्ली लाया था।"

महिलाओं को 20,000 रुपये से लेकर पांच लाख रुपये तक में बेचा गया। जी. बी. रोड इलाके में 24 इमारतों में लगभग 92 चकलाघर चलते हैं, जिसमें करीब 3,500 महिलाएं वैश्यावृत्ति करने के लिए मजबूर हैं। अधिकारी ने आगे बताया, "हम उसकी भारतीय दंड संहिता के तहत मानव तस्करी, अवैध कारावास एवं महिलाओं को जबरन देह व्यापार में धकेलने के आरोप में तलाश कर रहे हैं।"

जोशी ने बताया, "गुप्त सूचना के आधार पर हमने कुछ महीने पहले एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया, जिसके पास से रेलवे के ढेर सारे टिकट मिले थे। लेकिन वह व्यक्ति भी राजू नहीं था।"
एक अन्य पुलिस अधिकारी ने बताया, "चूंकि यहां लाई गई महिलाएं ठीक से हिंदी नहीं बोल पातीं, इसलिए उन्हें यहां लाने वाले व्यक्ति को हम अब तक दबोचने में असफल रहे हैं। इसी कारण वे अपने ग्राहकों एवं संपर्क में आने वाले अन्य व्यक्तियों को भी अपने बारे में कुछ नहीं बता पातीं।"

चकलाघरों से बचाकर निकाली गईं युवतियों के कल्याण के लिए 'शक्ति वाहिनी' एवं 'रेस्क्यू फाउंडेशन' दो गैर सरकारी संगठन काम कर रहे हैं। शक्ति वाहिनी के कार्यक्रम निदेशक सुरबीर रॉय ने बताया, "पुलिस की मदद से हमने जुलाई, 2010 से अब तक कम से कम 66 युवतियों को बचाया है।"रॉय के अनुसार, "मानव तस्करी में लगे गिरोह के सदस्यों द्वारा पुलिस को धोखा देने के लिए 'राजू' के फर्जी नाम का सहारा लिया जाता है।" दिल्ली पुलिस ही नहीं कोलकाता पुलिस को भी इस रहस्यमय व्यक्ति 'राजू' की तलाश है।
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करवा चौथ: अखंड सुहाग व पारस्परिक प्रेम का प्रतीक

करवा चौथ भारत में मुख्यतः उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और गुजरात में मनाया जाता है। कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाने वाला यह व्रत इस बार 22 अक्टूबर दिन मंगलवार को मनाया जायेगा| करवा चौथ का पर्व सुहागिन स्त्रियाँ मनाती हैं| पति की दीर्घायु और अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए इस दिन चन्द्रमा की पूजा की जाती है| चंद्रमा के साथ- साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्रीगणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है| करवाचौथ के दिन उपवास रखकर रात्रि समय चन्द्रमा को अर्ध्य देने के उपरांत ही भोजन करने का विधान है|

करवा चौथ की व्रत विधि- 

कार्तिक माह की कृष्ण चन्द्रोदयव्यापिनी चतुर्थी के दिन किया जाने वाला करक चतुर्थी व्रत स्त्रियां अखंड़ सौभाग्य की कामना के लिए करती हैं| इस व्रत में शिव-पार्वती, गणेश और चन्द्रमा का पूजन किया जाता है| इस शुभ दिवस के उपलक्ष्य पर सुहागिन स्त्रियां पति की लंबी आयु की कामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं| पति-पत्नी के आत्मिक रिश्ते और अटूट बंधन का प्रतीक यह करवाचौथ या करक चतुर्थी व्रत संबंधों में नई ताज़गी एवं मिठास लाता है| करवा चौथ में सरगी का काफी महत्व है| सरगी सास की तरफ से अपनी बहू को दी जाने वाली आशीर्वाद रूपी अमूल्य भेंट होती है|

करवा चौथ व्रत की प्रक्रिया-

करवा चौथ में प्रयुक्त होने वाली संपूर्ण सामग्री को एकत्रित करें| व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये। करवा चौथ का व्रत पूरे दिन बिना कुछ खाए पिए रहा जाता है| दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है। उसके बाद आठ पूरियों की अठावरी, हलुआ और पक्के पकवान बनाएं। उसके बाद पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं। ध्यान रहे गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें। उसके बाद जल से भरा हुआ लोटा रखें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं। गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु की कामना करें।

'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्‌। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥' करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा कहें या सुनें। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासूजी के पैर छूकर आशीर्वाद लें और करवा उन्हें दे दें। तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें। रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य दें।इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें। पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।

करवा चौथ की कथा- 

इस पर्व को लेकर कई कथाएं प्रचलित है, जिनमें एक बहन और सात बहनों की कथा बहुत प्रसिद्ध है| बहुत समय पहले की बात है, एक लडकी थी, उसके साथ भाई थें, उसकी शादी एक राजा से हो गई| शादी के बाद पहले करवा चौथ पर वो अपने मायके आ गई| उसने करवा चौथ का व्रत रखा, लेकिन पहला करवा चौथ होने की वजह से वो भूख और प्यास बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी| वह बडी बेसब्री से चांद निकलने की प्रतिक्षा कर रही थी| 

उसके सातों भाई उसकी यह हालत देख कर परेशान हो गयें, वे सभी अपने बहन से बेहद स्नेह करते थें| उन्होने अपनी बहन का व्रत समाप्त कराने की योजना बनाई| और पीपल के पत्तों के पीछे से आईने में नकली चांद की छाया दिखा दी| बहन ने इसे असली चांद समझ लिया और अपना व्रत समाप्त कर, भोजन खा लिया| बहन के व्रत समाप्त करते ही उसके पति की तबियत खराब होने लगी| 

अपने पति की तबियत खराब होने की खबर सुन कर, वह अपने पति के पास ससुराल गई और रास्ते में उसे भगवान शंकर पार्वती देवी के साथ मिलें| पार्वती देवी ने रानी को बताया कि उसके पति की मृ्त्यु हो चुकी है, क्योकि तुमने नकली चांद को देखकर व्रत समाप्त कर लिया था|

यह सुनकर बहन ने अपनी भाईयों की करनी के लिये क्षमा मांगी| माता पार्वती ने कहा" कि तुम्हारा पति फिर से जीवित हो जायेगा, लेकिन इसके लिये तुम्हें, करवा चौथ का व्रत पूरे विधि-विधान से करना होगा| इसके बाद माता पार्वती ने करवा चौथ के व्रत की पूरी विधि बताई| माता के कहे अनुसार बहन ने फिर से व्रत किया और अपने पति को वापस प्राप्त कर लिया|

धर्म ग्रंथों में एक महाभारत से संबंधित अन्य पौराणिक कथा का भी उल्लेख किया गया है| इसके अनुसार पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने नीलगिरी पर्वत पर चले जाते हैं व दूसरी ओर पांडवों पर कई प्रकार के संकटों से आन पड़ते हैं| यह सब देख द्रौपदी चिंता में पड़ जाती है वह भगवान श्री श्रीकृष्ण से इन सभी समस्याओं से मुक्त होने का उपाय पूछती हैं| श्रीकृष्ण द्रौपदी से कहते हैं कि यदि वह कार्तिक कृष्ण चतुर्थी के दिन करवा चौथ का व्रत रहे तो उसे इन सभी संकटों से मुक्ति मिल सकती है| भगवान कृष्ण के कथन अनुसार द्रौपदी विधि विधान सहित करवा चौथ का व्रत रखती हैं जिससे उनके समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं|
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विश्व ऑस्टियोपोरोसिस दिवस पर विशेष...........

महिलाओं में हड्डी रोगों का होना एक आम बात है, लेकिन यह बीमारी अब पुरुषों में भी तेजी से बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि 60 वर्ष से अधिक के पुरुषों को ऑस्टियोपोरोसिस विशेष रूप से तेजी से प्रभावित कर रहा है।

शालीमार बाग स्थित मैक्स सुपर स्पेशियलटी अस्पताल के परामर्शदाता (र्यूमेटोलॉजी) हेमंत गोपाल ने आईएएनएस को बताया, "पूर्व में महिलाओं से संबंधित माना जाने वाला अस्थि रोग ऑस्टियोपोरोसिस अब पुरुषों में भी तेजी से बढ़ रहा है। यह समस्या 60 वर्षीय या उससे अधिक उम्र के पुरुषों को ज्यादा प्रभावित करती है।"

ऑस्टियोपोरोसिस हड्डियों में कैल्शियम की कमी की वजह से होता है। यह कमी आगे चलकर कूल्हे, घुटनों और कंधों में फै्रक्चर की वजह बनती है। दुनिया में कोरोनरी हृदय रोग के बाद इस रोग को दूसरा सबसे आम स्वास्थ्य जोखिम माना जाता है। 93 प्रतिशत महिलाएं इसके प्रति जागरूक हैं, लेकिन उनमें से महज आठ से 10 प्रतिशत यह जानती हैं कि वे इससे ग्रस्त हैं।

एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2013 के अंत तक करीब 360 लाख लोग इससे पीड़ित होंगे। फोर्टिस अस्पताल में हड्डी रोग विभाग के डॉक्टर धनंजय गुप्ता ने बताया, "जब कोई कूदता है तो सारा वजन हड्डियों पर पड़ता है और यह हड्डियों के विकास के लिए उपयोगी है। हाथों, घुटनों और जोड़ों पर भार पड़ना चाहिए ताकि वे मजबूत हों।"

विटामिन डी की कमी और खनिजयुक्त भोजन का अभाव भी अस्थियों में कैल्यिशम की कमी की अन्य वजह हैं। इसके लिए चिकित्सक धूप लेने की सलाह देते हैं। अपोलो अस्पताल में वरिष्ठ आर्थोपेडिक और ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन राजीव के.शर्मा ने बताया, "कुछ फै्रक्चरों की पहचान सालों तक नहीं हो पाती। लेकिन मरीज को जब तक कष्टकारी फै्रक्चर नहीं होते, उन्हें उनकी ऑस्टियोपोरोसिस समस्या के बारे में पता ही नहीं चलता है। इसलिए हम 35 वर्ष से अधिक उम्र वालों को बोन डेंसिटी की जांच कराते रहने की सलाह देते हैं।"

कुल मिलाकर डॉक्टर कहते हैं कि महिलाओं और पुरुषों दोनों को व्यायाम करना चाहिए। पौष्टिक आहार लेना चाहिए ताकि हड्डी रोग ना हों। 

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टैटू ने 22 वर्षो बाद परिवार से मिलाया

एक साधारण से टैटू की बदौलत 22 साल पूर्व परिवार से बिछुड़ा एक लड़का दोबारा परिवार से मिल सका। यह युवक इस समय में महाराष्ट्र पुलिस में तैनात है। ठाणे का धनगड़े परिवार बेटे गणेश की लौटने की खुशी में दो दशकों में पहली बार दोगुनी धूमधाम से दिवाली मनाने की योजना बना रहा है। 22 साल पूर्व परिवार से बिछुड़ा गणेश हाथ पर गुदे टैटू की बदौलत इसी सप्ताह परिवार से आ मिला।

वर्ष 1991 में जब गणेश छह वर्ष का था तो उसने एक दिन स्कूल बंक कर दिया। उसी दौरान खेलते हुए वह ठाणे के वागले इस्टेट उपनगर इंदिरा नगर में स्थित अपने घर से बहुत आगे निकल गया। लेकिन अब वह लौट आया है। उसके हाथ पर गुदे नाम 'मांडा' को दो दिन पहले ही मां ने अपने लाल को तुरंत पहचान लिया। मां ने उसके हाथ पर यह नाम चार वर्ष की आयु में गुदवाया था।

युवा गणेश ने अपने 22 वर्षो के कटु अनुभवों को याद करते गुरुवार को बताया, "उस दिन हम स्कूल जाने से ऊब गए थे और मैं दोस्तों संग खेल रहा था, लेकिन हम खेलते-खेलते बहुत आगे निकल गए और लौट नहीं सके। तब उम्र में बड़े एक लड़के ने कहा कि वह हमें घुमाने ले जाएगा, इसलिए हम उसके संग चले गए।"

तीनों ने ठाणे स्टेशन से बाहर जाने के लिए ट्रेन पकड़ी और करीब एक घंटे बाद वह कुछ स्टेशन पार कर गए। बाद में पुल पार किया और प्लेटफार्म के उस पार गए। वहां उसके दो दोस्तों ने उसे कुछ देर इंतजार करने को कहा। गणेश ने कहा, "वह नहीं लौटे। मैं अकेला था। भूखा। क्या करूं, कहां जाऊं, कुछ सूझ नहीं रहा था। जो ट्रेन पहले आई, वही मैंने पकड़ ली। बाद में मैंने उस पर छत्रपति शिवाजी टर्मिनस लिखा देखा।"

उसकी जिंदगी बॉलीवुड की फिल्मों में दिखाए जाने वाले अनाथ बच्चों की जैसी गुजरी। समय बीतता गया मुंबई की गलियों में, रेलवे बेंच पर सोकर, सड़क किनारे बने ढाबों में काम करके और जन शौचालय का प्रयोग करते हुए।

इस बीच उसकी मां मांडा धनगड़े ने बेटे की तलाश में कोई कसर नहीं छोड़ी। मांडा ने अश्रुपूर्ण आंखें लिए कहा, "हमने जिले के भागों में उसके फोटो का प्रचार किया था। पुलिस मदद ली, लेकिन कोई लाभ नहीं मिला। वर्षो बीतने के चलते हमने इसके लौटने की उम्मीद छोड़ दी थी।"

खेल में उत्कृष्ट गणेश राज्य पुलिस परीक्षा में बैठा था और वर्ष 2010 में इसमें चयनित हो गया था। वर्तमान में बतौर क्यूआरटी सदस्य तैनात होने से पूर्व उसने विभिन्न पदों पर काम किया। गणेश और उसका पूरा परिवार पिछले माह युवा भर्ती के लिए उसे लेकर आए क्यूआरटी इंस्पेक्टर श्रीकांत सोंधे का आभारी है। आभारी गणेश ने कहा, "मेरी बांह पर गुदे टैटू की तह में जाने के लिए सोंधे ने सभी पुलिस जांच तकनीकों का प्रयोग किया। अंत में मेरे परिवार तक पहुंचने में मुझे सफलता मिल गई।" 

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कानपुर की गलियों में मोदी के स्विस कॉटेज के चर्चे

उत्तर प्रदेश में चुनावी रैली के लिए कानपुर आ रहे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के लिए बनाए गए स्विस कॉटेज के चर्चे कानपुर के आम लोग के बीच भी हो रहे हैं। आधुनिकतम सुख सुविधाओं से लैस इस कॉटेज में भाजपाईयों ने मोदी के लिए गुजराती व्यंजनों का भी इंतजाम किया है, ताकि फुरसत के क्षणों में मोदी इसका लुत्फ उठा सकें।

कानपुर में मोदी का स्वागत गुजराती खानपान के साथ होगा। मोदी के आने के पहले ही उनके लिए तैयार हो रहे स्विस कॉटेज में सभी व्यवस्थाएं कर दी जाएंगी। यह स्विस कॉटेज मंच के ठीक पीछे तैयार किया जा रहा है, जो पूरी तरह से वातानुकूलित होगा। इसमें श्नानागार, सोफा, बिस्तर, सेंट्रल टेबल की व्यवस्था होगी। स्वागत सत्कार के लिए मशहूर राज्य उत्तर प्रदेश के नेता उनके खान पान में किसी भी तरह की कमी नहीं होने देना चाहते।

भाजपा के जिलाध्यक्ष सुरेन्द्र मैथानी ने मोदी के लिए गुजरात से विशेष नमकीन, ढोकला और फाफड़ा मंगवाया है जो कि मोदी के आने के पहले ही रैली स्थल पर आ जाएगा। भाजपा के एक पदाधिकारी ने बताया कि यह व्यवस्था उनकी तरफ से की जा रही है। यदि प्रोटोकॉल के तहत कोई मांग या किसी सामग्री को हटाने के लिए कहा जाएगा तो उसे तुरंत बदलवा दिया जाएगा। साथ ही मोदी के लिए ठंडा व गरम दोनों तरह के पानी का प्रबंध किया जा रहा है।

एक सुरक्षा अधिकारी के मुताबिक, स्विस कॉटेज से लेकर मंच तक अत्यंत खास लोगों को ही पूरी तरह से प्रवेश करने दिया जाएगा, वह भी जिन्हें मोदी बुलाएंगे। खाने पीने का सारा सामान पहले तीन लोग जांचेंगे। इसके बाद ही खाने का सामान मोदी के सामने रखा जाएगा।

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता विजय बहादुर पाठक कहते हैं कि किसी भी वीआईपी गतिविधि के दौरान एक सुरक्षित स्थान बनाया जाता है, ताकि आने वाले व्यक्ति को जरूरत पड़ने पर वहां ठहराया जा सके। इसी जरूरत को ध्यान में रखते हुए इसे भी तैयार किया गया है। 

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खागा क्षेत्र में भी मिल सकता है खजाना!

उत्तर प्रदेश में आदमपुर के पुरातात्विक स्थल पर अकूत संपदा की बात सामने आने के बाद तहसील क्षेत्र के पुरातात्विक स्थल भी चर्चा का विषय बन गया है। पुरातत्व विभाग की उपेक्षा के शिकार ऐसे स्थानों के प्रति जहां धन के लालची तांत्रिक सक्रिय हो गए हैं, वहीं स्थानीय ग्रामीणों का कौतूहल भी जाग्रत हो गया है।

खागा कस्बे के करीब स्थित कुकरा कुकरी ऐलई ग्राम का टीला तथा टिकरी गांव का टीला इन दिनों जिज्ञासु लोगों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इन स्थानों पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है, जबकि कुछ ऐसे विवादास्पद स्थानों के प्रति भी लोग आकर्षित हुए हैं जिन्हें लोगों ने अपना कब्जा जमा रखा है।

जनपद मुख्यालय के भिटौरा ब्लॉक अंर्तगत गंगा तट पर स्थित आदमपुर गांव में सोने का खजाना दबे होने की चर्चा ने क्षेत्र के पुरातात्विक महत्व के स्थानों का जनाकर्षण बढ़ा दिया है। लोगों के बीच ऐसे स्थान चर्चा के विषय बने हुए हैं।

लोगों का कहना है कि ऐतिहासिक घटनाओं या प्राकृतिक आपदाओं से भूगर्भ में समा चुके पुराने वैभव का समाज व राष्ट्रहित में उपयोग के प्रति संत शोभन सरकार की पहल पर सरकार की सक्रियता को प्रशासन विस्तार दे दे तो खागा की सरजमीं भी देश का भाग्य बदलने में सहायक साबित हो सकती है।

जनचर्चा के अनुसार, नगर के संस्थापक राजा खड़क सिंह के इतिहास से जुड़ा कुकरा कुकरी स्थल में भी अकूत भू-संपदा होने की संभावना है। इस स्थान को लेकर लंबे समय तक सक्रिय रहे पत्रकार सुमेर सिंह का कहना है कि इस टीले के आसपास के ग्रामीणों को कई मर्तबा बहुमूल्य नगीने पत्थर व सिक्के हाथ लगे हैं। इनका कहना है कि टीले की थोड़ी बहुत खुदाई उन्हांेने करा दी थी, जिसमंे कतिपय भग्नावशेष उनके हाथ लगे थे। बताया कि इस बारे मे उन्होंने पुरातत्व विभाग को पत्र भी लिखा था लेकिन कोई जवाब न मिलने के कारण निराश हो कर बैठ गए।

अब जबकि आदमपुर के खजाने की बात सामने आ गई है, इन दिनों उस स्थान पर लोगों की चहल कदमी बढ़ गई है। प्राचीन धरोहरों और सामानों के शौकीन कुंवर लाल रामेंद्र सिंह के अनुसार, इस स्थान के चक्कर लगाते हुए उन्हें कई बार ऐसे तांत्रिक भी मिले हैं, जिन्होंने टीले के अंदर बहुमूल्य संपदा होने के का दावा किया है।

फिलहाल इन दिनों इस स्थान पर धनाकांक्षी लोगांे की चहल पहल बढ़ गई है। नहर किनारे रहने वाले ग्रामीणों ने बताया कि आजकल शाम को कुछ लोग टीले के आसपास मंडराते देखे जाते हैं। नगर के दक्षिण-पूर्व सीमा के बाहर ऐलई गांव के पहले प्रवेश मार्ग के पास जिस टीले पर माइक्रो टावर लगा है, वह भी इस समय चर्चा में शुमार है।

बताते हैं कि सन् 1984 में जब टावर लगाने के लिए टीले की सतही की खुदाई हुई थी, उस समय भारी मात्रा में चांदी व ताबे के सिक्के निकले थे। अरबी भाषा की लिखाई वाले ये सिक्के कुछ ग्रामीणों के हाथ भी लगे थे, लेकिन डर और लोभ की वजह से लोगों ने सिक्कों के बाबत चुप्पी साध ली। लगभग 200 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैले इस टीले के आसपास अब आबादी बढ़ जाने के बावजूद रात मे टीले का वातावरण रहस्यमय रहता है, ग्रामीण भी टीले में जाने से भय खाते हैं। 

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