इस तरह गणेशजी कहलाये विघ्नेश्वर

बहुधा लोग किसी कार्य में प्रवृत्त होने के पूर्व संकल्प करते हैं और उस संकल्प को कार्य रूप देते समय कहते हैं कि हमने अमुक कार्य का श्रीगणेश किया। कुछ लोग कार्य का शुभारंभ करते समय सर्वप्रथम श्रीगणेशाय नम: लिखते हैं। यहां तक कि पत्रादि लिखते समय भी 'ऊँ' या श्रीगणेश का नाम अंकित करते हैं।

श्रीगणेश को प्रथम पूजन का अधिकारी क्यों मानते हैं? लोगों का विश्वास है कि गणेश के नाम स्मरण मात्र से उनके कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं- इसलिए विनायक के पूजन में 'विनायको विघ्नराजा-द्वैमातुर गणाधिप' स्त्रोत पाठ करने की परिपाटी चल पड़ी है। यहां तक कि उनके नाम से गणेश उपपुराण भी है। पुराण-पुरुष गणेश की महिमा का गुणगान सर्वत्र क्यों किया जाता है? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है।

इस संबंध में एक कहानी प्रचलित है। एक बार सभी देवों में यह प्रश्न उठा कि पृथ्वी पर सर्वप्रथम किस देव की पूजा होनी चाहिए। सभी देव अपने को महान बताने लगे। अंत में इस समस्या को सुलझाने के लिए देवर्षि नारद ने शिव को निणार्यक बनाने की सलाह दी। शिव ने सोच-विचारकर एक प्रतियोगिता आयोजित की- जो अपने वाहन पर सवार हो पृथ्वी की परिक्रमा करके प्रथम लौटेंगे, वे ही पृथ्वी पर प्रथम पूजा के अधिकारी होंगे।

सभी देव अपने वाहनों पर सवार हो चल पड़े। गणेश जी ने अपने पिता शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्रमा की और शांत भाव से उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े रहे। कार्तिकेय अपने मयूर वाहन पर आरूढ़ हो पृथ्वी का चक्कर लगाकर लौटे और दर्प से बोले, "मैं इस स्पर्धा में विजयी हुआ, इसलिए पृथ्वी पर प्रथम पूजा पाने का अधिकारी मैं हूं।"

शिव अपने चरणें के पास भक्ति-भाव से खड़े विनायक की ओर प्रसन्न मुद्रा में देख बोले, "पुत्र गणेश तुमसे भी पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा कर चुका है, वही प्रथम पूजा का अधिकारी होगा।"

कार्तिकेय खिन्न होकर बोले, "पिताजी, यह कैसे संभव है? गणेश अपने मूषक वाहन पर बैठकर कई वर्षो में ब्रह्मांड की परिक्रमा कर सकते हैं। आप कहीं तो परिहास नहीं कर रहे हैं?" "नहीं बेटे! गणेश अपने माता-पिता की परिक्रमा करके यह प्रमाणित कर चुका है कि माता-पिता ब्रह्मांड से बढ़कर कुछ और हैं। गणेश ने जगत् को इस बात का ज्ञान कराया है।" इतने में बाकी सब देव आ पहुंचे और सबने एक स्वर में स्वीकार कर लिया कि गणेश जी ही पृथ्वी पर प्रथम पूजन के अधिकारी हैं।

गणेश जी के सम्बंध में भी अनेक कथाएं पुराणों में वर्णित हैं। एक कथा के अनुसार शिव एक बार सृष्टि के सौंदर्य का अवलोकन करने हिमालयों में भूतगणों के साथ विहार करने चले गए। पार्वती जी स्नान करने के लिए तैयार हो गईं। सोचा कि कोई भीतर न आ जाए, इसलिए उन्होंने अपने शरीर के लेपन से एक प्रतिमा बनाई और उसमें प्राणप्रतिष्ठा करके द्वार के सामने पहरे पर बिठाया। उसे आदेश दिया कि किसी को भी अंदर आने से रोक दे। वह बालक द्वार पर पहरा देने लगा।

इतने में शिव जी आ पहुंचे। वह अंदर जाने लगे। बालक ने उनको अंदर जाने से रोका। शिव जी ने क्रोध में आकर उस बालका का सिर काट डाला। स्नान से लौटकर पार्वती ने इस दृश्य को देखा। शिव जी को सारा वृत्तांत सुनाकर कहा, "आपने यह क्या कर डाला? यह तो हमारा पुत्र है।"

शिव जी दुखी हुए। भूतगणों को बुलाकर आदेश दिया कि कोई भी प्राणी उत्तर दिशा में सिर रखकर सोता हो, तो उसका सिर काटकर ले आओ। भूतगण उसका सिर काटकर ले आए। शिव जी ने उस बालक के धड़ पर हाथी का सिर चिपकाकर उसमें प्राण फूंक दिए। तवसे वह बालक 'गजवदन' नाम से लोकप्रिय हुआ।

दूसरी कथा भी गणेश जी के जन्म के बारे में प्रचलित है। एक बार पार्वती के मन में यह इच्छा पैदा हुई कि उनके एक ऐसा पुत्र हो जो समस्त देवताओं में प्रथम पूजन पाए। इन्होंने अपनी इच्छा शिव जी को बताई। इस पर शिव जी ने उन्हें पुष्पक व्रत मनाने की सलाह दी।

पार्वती ने पुष्पक व्रत का अनुष्ठान करने का संकल्प किया और उस यज्ञ में सम्मिलित होने के लिए समस्त देवी-देवताओं को निमंत्रण दिया। निश्चित तिथि पर यज्ञ का शुभारंभ हुआ। यज्ञमंडल सभी देवी-देवताओं के आलोक से जगमगा उठा। शिव जी आगत देवताओं के आदर-सत्कार में संलग्न थे, लेकिन विष्णु भगवान की अनुपस्थिति के कारण उनका मन विकल था। थोड़ी देर बाद विष्णु भगवान अपने वाहन गरुड़ पर आरूढ़ हो आ पहुंचे। सबने उनकी जयकार करके सादर उनका स्वागत किया। उचित आसन पर उनको बिठाया गया।

ब्रह्माजी के पुत्र सनतकुमार यज्ञ का पौरोहित्य कर रहे थे। वेद मंत्रों के साथ यज्ञ प्रारंभ हुआ। यथा समय यज्ञ निर्विघ्न समाप्त हुआ। विष्णु भगवान ने पार्वती को आशीर्वाद दिया, "पार्वती! आपकी मनोकामना पूर्ण होगी। आपके संकल्प के अनुरूप एक पुत्र का उदय होगा।"

भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाकर पार्वती प्रसन्न हो गई। उसी समय सनतकुमार बोल उठे, "मैं इस यज्ञ का ऋत्विक हूं। यज्ञ सफलतापूर्वक संपन्न हो गया है, परंतु शास्त्र-विधि के अनुसार जब तक पुरोहित को उचित दक्षिणा देकर संतुष्ट नहीं किया जाता, तब तक यज्ञकर्ता को यज्ञ का फल प्राप्त नहीं होगा।"

"कहिए पुरोहित जी, आप कैसी दक्षिणा चाहते हैं?" पार्वती जी ने पूछा।

"भगवती, मैं आपके पतिदेव शिव जी को दक्षिणा स्वरूप चाहता हूं।"

पार्वती तड़पकर बोली, "पुरोहित जी, आप पेरा सौभाग्य मांग रहे हैं। आप जानते ही हैं कि कोई भी नारी अपना सर्वस्व दान कर सकती है, परंतु अपना सौभाग्य कभी नहीं दे सकती। आप कृपया कोई और वस्तु मांगिए।"

परंतु सनतकुमार अपने हठ पर अड़े रहे। उन्होंने साफ कह दिया कि वे शिव जी को ही दक्षिणा में लेंगे, दक्षिणा न देने पर यज्ञ का फल पार्वती जी को प्राप्त न होगा।

देवताओं ने सनतकुमार को अनेक प्रकार से समझाया, पर वे अपनी बात पर डटे रहे। इस पर भगवान विष्णु ने पार्वती जी को समझाया, "पार्वती जी! यदि आप पुरोहित को दक्षिणा न देंगी तो यज्ञ का फल आपको नहीं मिलेगा और आपकी मनोकामना भी पूरी न होगी।"

पार्वती ने दृढ़ स्वर में उत्तर दिया, "भगवान! मैं अपने पति से वंचित होकर पुत्र को पाना नहीं चाहती। मुझे केवल मेरे पति ही अभीष्ट हैं।"

शिव जी ने मंदहास करके कहा, "पार्वती, तुम मुझे दक्षिणा में दे दो। तुम्हारा अहित न होगा।" पार्वती दक्षिणा में अपने पति को देने को तैयार हो गई, तभी अंतरिक्ष से एक दिव्य प्रकाश उदित होकर पृथ्वी पर आ उतरा। उसके भीतर से श्रीकृष्ण अपने दिव्य रूप को लेकर प्रकट हुए। उस विश्व स्वरूप के दर्शन करके सनतकुमार आह्रादित हो बोले, "भगवती! अब मैं दक्षिणा नहीं चाहता। मेरा वांछित फल मुझे मिल गया।"

श्रीकृष्ण के जयनादों से सारा यज्ञमंडप प्रतिध्वनित हो उठा। इसके बाद सभी देवता वहां से चले गए। थोड़ी ही देर बाद एक विप्र वेशधारी ने आकर पार्वती जी से कहा, "मां, मैं भूखा हं, अन्न दो।" पार्वती जी ने मिष्टान्न लाकर आगंतुक के समाने रख दिया। चंद मिनटों में ही थाल समाप्त कर द्विज ने फिर पूछा, "मां, मेरी भूख नहीं मिटी, थोड़ा और खाने को दो।" वह ब्राह्मण बराबर मांगता रहा, पार्वती जी कुछ-न-कुछ लाकर खिलाती रहीं, फिर भी वह संतुष्ट न हुआ। कुछ और मांगता रहा।

पार्वती जी की सहनशीलता जाती रही। वह खीझ उठीं, शिव जी के पास जाकर शिकायती स्वर में बोलीं, "देव, न मालूम यह कैसा याचक है। ओह, कितना खिलाया, और मांगता है। कहता है कि उसका पेट नहीं भरा। मैं और कहां से लाकर खिला सकती हूं।" शिव जी को उस याचक पर आश्चर्य हुआ। उस देखने के लिए पहुंचे, पर वहां कोई याचक न था। पार्वती चकित होकर बोली, "अभी तो यहीं था, न मालूम कैसे अदृश्य हो गया"

शिव जी ने मंदहास करते हुए कहा, "देवि, वह कहीं नहीं गया। वह यहीं है, तुम्हारे उदर में। वह कोई पराया नहीं, साक्षात् तुम्हारा ही पुत्र गणेश है। तुम्हारे मनोकामना पूरी हो गई है। तुम्हें पुष्पक यज्ञ का फल प्राप्त हो गया है।" इस प्रकार भगवान शिव के अनुग्रह से गणेश जन्म धारण करके गणाधिपति बन गए। समस्त विश्व के संकट दूर करते हुए विघ्नेश्वर कहलाए।

गणेश चतुर्थी पर इस बार नक्षत्रों का संयोग

पार्वती नंदन व रिद्दी सिद्धी के दाता गणेशजी का जन्मोत्सव 'गणेश चतुर्थी' के अवसर पर पूरे देश में धूम मची हुई है। गणपति धाम व गणेश जी के प्रमुख मंदिरों में जहां भव्य सजावट का दौर जारी रहा वहीं उनके दर्शन के लिए भक्तों की लम्बी कतार भी देखी गई| यह त्यौहार महाराष्ट्र और गोवा में कोंकणी लोगों का सबसे ज्यादा लोकप्रिय त्यौहार है, जिसे वह बड़ी धूम-धाम और श्रद्धा के साथ मानते हैं। इसके साथ ही गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश के अलावा भारत के सभी राज्यों में इस त्यौहार में बड़ी धूम रहती है।

भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को ही 'श्री गणेश चतुर्थी' कहते हैं। भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को गणेश भगवान का जन्म हुआ था। भारतीय संस्कृति के अनुसार गणेश भगवान की पूजा बुद्धि, समृद्धि, सौभाग्य और किसी भी शुभ कार्य के करने को करने से पहले की जाती है। इस बार गणेश चतुर्थी 17 सितम्बर दिन गुरूवार को पड़ रही है| गणेश जी को बुद्धि के देवता और विघ्नों का विनाशक माना जाता है। चूहे की सवारी करने वाले गणेश जी का प्रिय भोग लड्डू है। गणेश जी का विवाह ऋद्धि तथा सिद्धि नामक दो स्त्रियों के साथ हुआ है।

शुभ मुहूर्त-

इस साल 17 सितम्बर गुरुवार भाद्रपद शुक्लपक्ष चतुर्थी को गणेश चतुर्थी पूरे देश में मनाई जाएगी। ऐसे चार योग हैं जो कई वर्षों बाद बने हैं। इस साल गणेश चतुर्थी बेहद महत्वपूर्ण है और आपके घर में सुख एवं समृद्धि लेकर आने वाली है। पहला योग यह कि कन्या की संक्रांति में 19 वर्षों बाद गणेश चतुर्थी मनेगी| 12 वर्षों के बाद गणेश चतुर्थी बृहस्पति, सूर्य सिंह संक्रांति में आयी है, जो अगले 12 साल बाद 4 सितम्बर 2027 को आएगी। रवि योग जो सूर्योदय से रात्रि 1:32 बजे तक रहेगा, ऐन्द्र योग जो सूर्योदय पूर्व से सायः 6:23 बजे तक रहेगा। सिंह में बृहस्पति का योग। विद्या और बुद्ध‍ि के देव गणेश जी की चतुर्थी ऐसे दुर्लभ योग कई वर्षों बाद आते हैं जिसमें विद्या, साधना के करने से उत्तम सिद्दी प्रदान करेगा।

गणेश चतुर्थी सूर्योदय पूर्व से रात्रि 10:20 मिनिट तक रहेगी तथा स्वाति नक्षत्र सूर्योदय से रात्रि 1:32 तक रहेगी। इसी दिन सूर्य दोपहर 12:29 पर कन्या राशि में संकान्ति करेंगे। सूर्य और बुध मिल के बुध आदित्य योग बनायेंगे। यह योग श्रेष्ठ फलदायी रहेगा, जिससे व्यापारियों को बाजार में वृद्धि होगी। मंगल कार्यों का आरम्भ होगा। 

गणेश चतुर्थी पर भद्रा का साया रहेगा| भद्रा प्रातः 9:10 बजे से रात्रि 10:20 तक रहेगी। गणेश चतुर्दशी को भी भद्रा रहेगी जो दोपहर 12:07 से रात्रि 10:14 मिनट तक रहेगी। हो सके तो भद्रा के समय को छोड़कर पूजन कार्य करें व अधिक आवश्यकता हो तो भद्रा का मुख पूछ छोड़कर शुभ मुहूर्त में कार्य संपन्न किये जा सकते हैं। 18 सितम्बर को ऋषि पंचमी को सर्वार्थ सिद्दी योग भी रहेगा।

कैसे जन्में भगवान गणेश-

एक बार की बात है माता पार्वती स्नान करने जा रही थीं। वह चाहती थी की स्नान करते समय उन्हें कोई परेशान न करें। तब उन्होंने स्नान से पहले अपने मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे अपना द्वारपाल बनाकर दरवाजे पर पहरा देने का आदेश दिया। उसी समय वहाँ भगवान शिवजी आये और अन्दर प्रवेश करने लगे, तब बालक ने उन्हें बाहर रोक दिया। शिव जी ने उस बालक को कई बार समझाया लेकिन वह नहीं माना। इस पर शिवगणों ने भगवान शिवजी के कहने पर उस बालक को द्वार से हटाने के लिए उससे भयंकर युद्ध किया। लेकिन उसे कोई पराजित नहीं कर सका। बालक के पराक्रम और हठधर्मिता से क्रोधित होकर शिवजी ने उस बालक का सिर काट दिया।

जब माता पार्वती स्नान करके निकली तो अपने पुत्र का कटा हुआ सिर देखकर क्रोधित हो उठीं और शिवजी से उसे पुनः जीवित करने के लिए कहा। उन्होंने कहा की अगर उनके पुत्र को जीवित नहीं किया गया तो प्रलय आ जाएगी। यह सब देखकर सारे देवी-देवता भयभीत हो गये। तब देवर्षि नारद न एपर्वती जी को शांत किया और बालक को जिन्दा करने का अनुराध भगवान शिवजी से करने लगे। बड़ी समस्या यह थी कि कटा हुआ सिर वापस से धड के साथ जुड नही सकता था। अतः यह तय हुआ कि अगर किसी दूसरे जीव का सिर मिल जाए तो यह बालक वापस से जिन्दा हो जाएगा।

शिव जी के आदेशानुसार शिवगणों जब दूसरा सिर खोजने निकले तो उन्हें एक जंगल में एक हाथी का बच्चा मिला। शिवगणों उस हाथी के बच्चे का सिर काटकर ले आए। इसके पश्चात शिव जी ने उस गज के कटे हुए मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया और इस बालक का नाम गणेश पड़ा। गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की स्थापना की जाती है। सभी भक्तगण गणेश जी का उपवास रखते हैं। इस दिन घरों व मंदिरों में गणेश जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। कई दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और गणेश भगवान की पूजा-अर्चना में शामिल होते हैं। दस दिन चलने वाले इस उत्सव के बाद गणेश भगवान की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है।

गणेश चतुर्थी कथा-

श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है| कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें| वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा| भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये| परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है| परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है| इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता|

यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया| खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई| खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया| यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व कीचड़ में पडे रहने का श्राप दे दिया| बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऎसा नहीं किया| बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई|

ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं| नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया| उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा| बालक ने कहा कि हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों|

बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए| बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई| उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई| देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया| इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वह समाप्त हो गई|

यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई| यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई| माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया| व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें| उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है|

भगवान विश्वकर्मा: इन्द्रपुरी से लेकर यमपुरी तक के रचयिता

हिंदू धर्म में मानव विकास को धार्मिक व्यवस्था के रूप में जीवन से जोड़ने के लिए विभिन्न अवतारों का विधान मिलता है। इन्हीं अवतारों में से एक भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का इंजीनियर माना गया है, अर्थात समूचे विश्व का ढांचा उन्होंने ही तैयार किया है। वे ही प्रथम आविष्कारक थे। हिंदू धर्मग्रंथों में यांत्रिक, वास्तुकला, धातुकर्म, प्रक्षेपास्त्र विद्या, वैमानिकी विद्या आदि का जो प्रसंग मिलता है, इन सबके अधिष्ठाता विश्वकर्मा माने जाते हैं। इस बार विश्वकर्मा पूजा 17 सितम्बर दिन बुधवार को पड़ रही है| 

विश्वकर्मा ने मानव को सुख-सुविधाएं प्रदान करने के लिए अनेक यंत्रों व शक्ति संपन्न भौतिक साधनों का निर्माण किया। इन्हीं साधनों द्वारा मानव समाज भौतिक चरमोत्कर्ष को प्राप्त करता रहा है। प्राचीन शास्त्रों में वैमानकीय विद्या, नवविद्या, यंत्र निर्माण विद्या आदि का उपदेश भगवान विश्वकर्मा ने दिया। माना जाता है कि प्राचीन समय में स्वर्ग लोक, लंका, द्वारिका और हस्तिनापुर जैसे नगरों के निर्माणकर्ता भी विश्वकर्मा ही थे। माना जाता है कि विश्वकर्मा ने ही इंद्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पांडवपुरी, सुदामापुरी और शिवमंडलपुरी आदि का निर्माण किया। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग में आने वाली वस्तुएं भी इनके द्वारा निर्मित हैं। कर्ण का कुंडल, विष्णु का सुदर्शन चक्र, शंकर का त्रिशूल और यमराज का कालदंड इत्यादि वस्तुओं का निर्माण भी भगवान विश्वकर्मा ने ही किया है।

एक कथा के अनुसार यह मान्यता है कि सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम नारायण अर्थात् विष्णु भगवान क्षीर सागर में शेषशय्या पर आविर्भूत हुए। उनके नाभि-कमल से चतुर्मुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे। ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए। कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे। उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए थे। अपने पिता की भांति ही विश्वकर्मा भी आगे चलकर वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने। भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं। उन्हें कहीं पर दो बाहु, कहीं चार, कहीं पर दस बाहुओं तथा एक मुख और कहीं पर चार मुख व पंचमुखों के साथ भी दिखाया गया है। उनके पांच पुत्र मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ हैं।

यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तुशिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार भी वैदिक काल में किया। इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है। हिंदू धर्मशास्त्रों और ग्रथों में विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन मिलता है :

विराट विश्वकर्मा : सृष्टि के रचयिता
धर्मवंशी विश्वकर्मा : शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र
अंगिरावंशी विश्वकर्मा : आदि विज्ञान विधाता और वसु पुत्र
सुधन्वा विश्वकर्मा : विज्ञान के जन्मदाता (अथवी ऋषि के पौत्र)
भृंगुवंशी विश्वकर्मा : उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र)

विश्वकर्मा के विषय में कई भ्रांतियां हैं। बहुत से विद्वान विश्वकर्मा नाम को एक उपाधि मानते हैं, क्योंकि संस्कृत साहित्य में भी समकालीन कई विश्वकर्माओं का उल्लेख है। कुछ विद्वान अंगिरा पुत्र सुधन्वा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं, तो कुछ भुवन पुत्र भौवन विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं। ऋग्वेद में विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 ऋचाएं लिखी हुई हैं। यही सूक्त यजुर्वेद अध्याय 17, सूक्त मंत्र 16 से 31 तक 16 मंत्रों में आया है। ऋग्वेद में विश्वकर्मा शब्द इंद्र व सूर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है। महाभारत के खिल भाग सहित सभी पुराणकार प्रभात पुत्र विश्वकर्मा को आदि विश्वकर्मा मानते हैं। स्कंद पुराण प्रभात खंड के इस श्लोक की भांति किंचित पाठभेद से सभी पुराणों में यह श्लोक मिलता है :

बृहस्पते भगिनी भुवना ब्रह्मवादिनी।
प्रभासस्य तस्य भार्या बसूनामष्टमस्य च।
विश्वकर्मा सुतस्तस्यशिल्पकर्ता प्रजापति: ।।16।।

महर्षि अंगिरा के ज्येष्ठ पुत्र बृहस्पति की बहन भुवना जो ब्रह्मविद्या जानने वाली थी, वह अष्टम वसु महर्षि प्रभास की पत्नी बनी और उससे संपूर्ण शिल्प विद्या के ज्ञाता प्रजापति विश्वकर्मा का जन्म हुआ। भारत में शिल्प संकायों, कारखानों और उद्योगों में प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को भगवान विश्वकर्मा पूजनोत्सव का आयोजन किया जाता है। भगवान विश्वकर्मा की जयंती वर्षाऋतु के अंत और शरदऋतु के शुरू में मनाए जाने की परंपरा रही है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इसी दिन सूर्य कन्या राशि में प्रवेश करते हैं। चूंकि सूर्य की गति अंग्रेजी तारीख से संबंधित है, इसलिए कन्या संक्रांति भी प्रतिवर्ष 17 सितंंबर को पड़ती है। जैसे मकर संक्रांति अमूमन 14 जनवरी को ही पड़ती है। ठीक उसी प्रकार कन्या संक्रांति भी प्राय: 17 सितंबर को ही पड़ती है।

भगवान विश्वकर्मा की महत्ता को सिद्ध करने वाली एक कथा भी है। कथा के अनुसार, काशी में धार्मिक आचरण रखने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह अपने कार्य में निपुण तो था, परंतु स्थान-स्थान पर घूमने और प्रयत्न करने पर भी वह भोजन से अधिक धन प्राप्त नहीं कर पाता था। उसके जीविकोपार्जन का साधन निश्चित नहीं था। पति के समान ही पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी। पुत्र प्राप्ति के लिए दोनों साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा पूरी न हो सकी। तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा, ‘तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी अवश्य ही इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य सुनो।’ इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे। तभी से विश्वकर्मा की पूजा धूमधाम से की जाने लगी।

जानिए कौन है मिया खलीफा?

पोर्न स्टार मिया खलीफा इस समय खासा चर्चित हैं| बिग बॉस के नौवें सीजन में मिया खलीफा के आने की चर्चा है| जबसे मीडिया में इस पोर्न स्टार के आने को लेकर खबरे आईं तबसे लोगों ने गूगल पर मिया खलीफा ले के बारे में सर्च करना शुरू कर दिया है| आज हम आपको बताते हैं कौन है मिया खलीफा?

मिया खलीफा का असली नाम कलिस्टा है| इनका जन्म 10 फरवरी 1993 को लेबनान के बेरुत में हुआ था| मिया खलीफा जब सात साल की थी तो इनका परिवार अमेरिका के मेरीलैंड में आकर रहने लगा था| मिया खलीफा भले ही पोर्न स्टार है लेकिन उन्हें 'ब्यूटी विद ब्रेन' कहा जा सकता है। उसकी वजह है कि उन्होंने इतिहास के विषय में स्नातक किया है। इनके परिवार ने इनसे बातचीत तब बंद कर दी जब ये पोर्न इंडस्ट्री में शामिल हो गई।

बताया जा रहा है कि मिया शादीशुदा है। 18 साल की उम्र में ही इन्होंने एक अमेरिकन व्यक्ति से शादी कर ली। एडल्पट एंटरटेनमेंट वेबसाइट पोर्नहब ने (28 दिसंबर , 2014 को) मिया को दुनिया में नंबर वन पोर्न स्टार की रैंकिंग दी थी। मिया ने जबसे पोर्न की दुनिया में कदम रखा तभी से उनकी आलोचना होती रही है। मिया पोर्न की दुनिया में कदम रखने से पहले मियामी, फ्लोरिडा में काम कर चुकी है। 

मिया खलीफा पोर्न मूवी में काम करने से पहले मायामी फ्लोरिडा में एक रेस्टोरेंट में काम करती थी| यहीं पर किसी ने उन्हें पोर्न मूवी में काम करने का ऑफर दिया था| अक्टूबर 2014 को मिया ने पोर्न इंडस्ट्री को ज्वाइन कर लिया| और दिसंबर 2014 तक वह नंबर वन पोर्न स्टार कहलाई जाने लगी| 

मिया की गिनती टॉप रेटेड पोर्न स्टार्स में होती है। वे अभी 22 साल की हैं। लेबनान में जन्मी मिया फिलहाल मियामी में रहती हैं। मिया सोशल मीडिया पर खूब एक्टिव रहती हैं। इंस्टाग्राम पर उनके करीब 2.2 मिलियन फॉलोअर्स हैं। वहीं, ट्विटर पर भी उन्हें 7 लाख से ज्यादा लोग फॉलो करते हैं। वे अक्सर अपनी फोटोज और वीडियो फ्रेंड्स से शेयर करती रहती हैं। 

मिया खलीफा का कंट्रोवर्सी से भी गहरा नाता है| एक वीडियो क्लिप में हिजाब पहनकर सेक्स करते हुए नज़र आईं हैं जिसको लेकर काफी बवाल मचा| लेबनानी मूल की इस ऐक्ट्रेस को जान से मारने की धमकियां मिल रही थी। एक अडल्ट वेबसाइट की ओर से कराई गई वोटिंग में नंबर वन बनने पर उनके देश लेबनान में भी लोगों के मन में उनके लिए काफी गुस्सा देखा गया था। सूत्रों की माने तो लेबनान के लोगों में गुस्सा होने की एक वजह यह भी थी कि मिया अक्सर सोशल मीडिया पर खुद को लेबनानी कहती रहती हैं। लोग उनके इस काम से नाराज हैं। वह ट्विटर और इंस्टाग्राम पर अरबी भाषा में लिखे अपने टैटू के फोटो अपलोड करती रहती हैं, जो लेबनान के राष्ट्रगान के शुरुआती शब्द हैं।

क्या आपके सपने में भी आते हैं मरे हुए लोग

सपनों का हमारे जीवन काफी गहरा महत्व है। हर सपना कुछ-न कुछ कहता है। कुछ सपने निराशा देते हैं, तो कुछ जीवन में खुशियों की लहर भर देते हैं। जब व्यक्ति निद्रावस्था में होता है तो उसकी पाँचों ज्ञानेंद्रियाँ उसका मन और उसकी पाँचों कर्मेंद्रियाँ अपनी-अपनी क्रियाएँ करना बंद कर देती हैं और व्यक्ति का मस्तिष्क पूरी तरह शांत रहता है। उस अवस्था में व्यक्ति को एक अनुभव होता है, जो उसके जीवन से संबंधित होता है। उसी अनुभव को स्वप्न कहा जाता है|

ज्योतिष के अनुसार सपनों में भी भविष्य में होने वाली घटनाओं के राज छिपे होते हैं। इन्हें समझने पर व्यक्ति कई प्रकार की परेशानियों से बच सकता है और अधिक लाभ प्राप्त कर सकता है। आज हम आपको सपनो से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां देंगे- 

कुछ लोगों को सपने में मृत व्यक्ति ज्यादा दिखाई देते हैं यदि आपके साथ भी ऐसा हो रहा है तो घबराएं नहीं| क्योंकि शास्त्रों के अनुसार जीवन और मृत्यु का चक्र अनवरत चलता रहता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने यही बताया है कि व्यक्ति का शरीर नश्वर होता है। आत्मा अमर होती है जो निश्चित समय के लिए अलग-अलग शरीर धारण करती है। जीवन में हमारे कई रिश्ते-नाते बनते हैं, कई लोगों से लगाव होता है। ऐसे में मृत्यु के बाद अक्सर प्रियजनों को मृत व्यक्ति की याद आती है, सपने में भी दिखाई देते हैं।

यदि किसी भी इंसान को सपने में कोई मृत व्यक्ति दिखाई देता है तो उसे ये दो काम अवश्य करना चाहिए। पहला काम है उस मृत व्यक्ति के नाम पर रामायण या श्रीमदभागवत का पाठ करना चाहिए। दूसरा काम है गरीब बच्चों को मिठाई खिलाएं। इसके साथ ही मृत व्यक्ति के नाम से विधि-विधान से तर्पण कराना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि मरने वाले आत्मा अतृप्त है या उसकी कोई इच्छा अधूरी रह गई है या वह अशांत है तो संबंधित व्यक्ति के सपनों में आकर संकेत देती है। ऐसे में परिवार के सदस्यों को मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए पुण्य कर्म, दान आदि करना चाहिए। इससे वह आत्मा तृप्त होती है और उसे शांति प्राप्त होती है।

सपने में कोई मृत व्यक्ति खुश दिखाई दे तो समझना चाहिए कि उसकी आत्मा प्रसन्न है। अत: उस व्यक्ति के नाम पर समय-समय पर तर्पण आदि कर्म किए जाने चाहिए। ऐसा माना जाता है कि यदि किसी मृत व्यक्ति की आत्मा को शांति नहीं मिली हो तो वह भटकती रहती है और उससे संबंधित लोगों को सपनों में दिखाई देती है। कभी-कभी किसी मृत व्यक्ति से अधिक लगाव होने या उसके संबंध में अत्यधिक सोचने के कारण भी वे लोग सपने में दिखाई देते हैं।

लौंग के औषधीय गुणों के बारे में जानकर दंग रह जाएंगे आप

हमारे देश में लौंग को मसालों का राजा माना जाता है| मसाले को स्थायी तथा खुशबूदार बनाने के लिए लौंग का प्रयोग किया जाता है| पान में भी लौंग डालकर खाया जाता है| यह कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वाष्पशील तेल, वसा जैसे तत्वों से भरपूर है। इसके अलावा लौंग में खनिज पदार्थ, हाइड्रोक्लोरिक एसिड में न घुलने वाली राख, कैल्शियम, फॉस्फोरस, लोहा, सोडियम, विटामिन सी और ए भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

इसके सेवन से गला खुल जाता है और छाती में जमा कफ बाहर निकल जाता है| यह पाचक, पित्त नाशक, कुछ उष्ण, वायु रोग नष्ट करने वाला, दमा, बुखार, अपच, हैजा, सिर दर्द, हिचकी और खांसी आदि रोगों को शान्त करने वाला है| स्त्रियां इसका उपयोग घरेलू चिकित्सा में करती हैं| आइए, जाने लौंग के औषधीय गुणों के बारे में-

यदि खांसी से परेशान हैं तो लौंग, कालीमिर्च, अनार के छिलके और सोंठ – सभी बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें| फिर शहद मिलाकर इस चूर्ण को दिन में तीन बार खाएं| लौंग को पानी में पीसकर माथे तथा दोनों कनपटियों पर लेप लगाने से सिर दर्द ठीक हो जाता है| खसरा में दो लौंग का चूर्ण शहद के साथ दिन में तीन बार चटाएं| इससे बच्चे को बहुत आराम मिलता है| भोजन के बाद दो लौंग सुबह और दो शाम को मुंह में डालकर चूसें| कुछ ही दिनों में अम्लपित्त शान्त हो जाएगा|

लौंग, कालीमिर्च, सोंठ तथा अनार के छिलकों को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करें| यह छाती पर जमे हुए कफ को निकालता है और श्वास को स्वाभाविक बनाता है| एक गिलास पानी में दो लौंग का चूर्ण और दो चम्मच प्याज का रस मिलाकर रोगी को पिलाने से हैजे का रोग शान्त होता है| दो रत्ती की मात्रा में लौंग का चूर्ण गरम पानी से लेने पर बुखार उतर जाता है| इस चूर्ण का सेवन सुबह-शाम करें| दो लौंग पीसकर आधा कप पानी में डालकर अच्छी तरह खौला लें| फिर इस पानी को गुनगुने रूप में दिनभर में तीन बार पिएं|

चार-पांच लौंग पीसकर पानी में डालकर उसे गरम कर लें| फिर इस पानी में कुल्ला करें| दाढ़-दांत के दर्द में लौंग का तेल लगाने से भी काफी आराम मिलता है| एक-दो लौंग मुंह में डालकर धीरे-धीरे चूसने से जी मिचलाना रुक जाता है| लौंग को पानी में घिसकर गुहेरी पर लेप करने से वह बैठ जाती है| इससे पलकों की सूजन भी दूर होती है|

एंटी-सेप्टिक गुणों के कारण लौंग चोट, खुजली और संक्रमण में काफी उपयोगी होती है। इसका उपयोग कीटों के काटने या डंक मारने पर भी किया जाता है। इसे किसी पत्थर पर पानी के साथ पीस कर काटे गए या डंक वाले स्थान पर लगाना चाहिए, काफी लाभ होता है। अक्सर लोग तनाव के समय सिगरेट जला लेते हैं या ऐसा कोई अन्य उपाय करते हैं, जो कई बार नुकसानदेह भी साबित होता है। एक लौंग आपके ऐसे तनाव को ही नहीं कम करती, बल्कि अपने विशिष्ट गुण के कारण थकान को कम करने का भी काम करती है।

हरितालिका तीज: माता पार्वती ने किया था यह व्रत और पति रूप में मिले थे भगवान भोलेनाथ

हमारे देश में महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए तरह-तरह के व्रत करती हैं। हरितालिका तीज का व्रत उनमें से सबसे प्रमुख है| हरितालिका तीज व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृ्तिया को किया जाता है| कहीं- कहीं इसे कजरी तीज के नाम से भी जाना जाता है| इस व्रत को 'हरितालिका' इसलिये कहा जाता है क्योंकि पार्वती कि सखी उन्हें पिता और प्रदेश से हर कर जंगल में ले गयी थी। 'हरित' अर्थात हरण करना और 'तालिका' अर्थात सखी। इस व्रत को विशेष रुप से विवाहित स्त्रियों के द्वारा किया जाता है| इस दिन उपवास कर भगवान शंकर-पार्वती की बालू से मूर्ति बनाकर पूजा की जाती है| सुंदर वस्त्र धारण किये जाते है तथा कदली स्तम्भों से घर को सजाया जाता है| इसके बाद मंगल गीतों से रात्रि जागरण किया जाता है| इस व्रत को करने वालि स्त्रियों को पार्वती के समान सुख प्राप्त होता है| इस वर्ष यह त्यौहार 16 सितम्बर दिन बुधवार को मनाया जायेगा| 

हरितालिका तीज व्रत विधि-

इस व्रत में कुछ ना खाने-पीने की वजह से ही इसका नाम हरितालिका तीज पड़ा। व्रती स्त्री को पहले नित्य कर्म स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त हो प्रसन्नतापूर्वक वस्त्राभूषणों से श्रृंगार कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए, व्रत के दौरान किसी पर क्रोध नहीं करना चाहिए, किसी प्रकार के तामसिक आहार व अन्न, चाय, दूध, फल, रस (जूस) आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। 

प्रात: स्नान आदि करने के बाद, व्रत का संकल्प लिया जाता है और भगवान शंकर व माता पार्वती जी की पूजा की जाती है| इस व्रत को निर्जल रहकर किया जाता है| व्रत के दिन माता का पूजन धूप, दीप व फूलों से करना चाहिए| अंत में व्रत की कथा सुनी जाती है और घर के बडों से आशिर्वाद प्राप्त किया जाता है|

हरितालिका व्रत कथा-

कहते हैं कि इस व्रत के माहात्म्य की कथा भगवान् शिव ने पार्वती जी को उनके पूर्व जन्म का स्मरण करवाने के उद्देश्य से इस प्रकार से कही थी- "हे गौरी! पर्वतराज हिमालय पर गंगा के तट पर तुमने अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया था। इस अवधि में तुमने अन्न ना खाकर केवल हवा का ही सेवन के साथ तुमने सूखे पत्ते चबाकर काटी थी। माघ की शीतलता में तुमने निरंतर जल में प्रवेश कर तप किया था। वैशाख की जला देने वाली गर्मी में पंचाग्नी से शरीर को तपाया। श्रावण की मुसलाधार वर्षा में खुले आसमान के नीचे बिना अन्न जल ग्रहन किये व्यतीत किया। तुम्हारी इस कष्टदायक तपस्या को देखकर तुम्हारे पिता बहुत दुःखी और नाराज़ होते थे। तब एक दिन तुम्हारी तपस्या और पिता की नाराज़गी को देखकर नारदजी तुम्हारे घर पधारे।

तुम्हारे पिता द्वारा आने का कारण पूछने पर नारदजी बोले - 'हे गिरिराज! मैं भगवान् विष्णु के भेजने पर यहाँ आया हूँ। आपकी कन्या की घोर तपस्या से प्रसन्न होकर वह उससे विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूँ।' नारदजी की बात सुनकर पर्वतराज अति प्रसन्नता के साथ बोले- 'श्रीमान! यदि स्वंय विष्णुजी मेरी कन्या का वरण करना चाहते हैं तो मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। वे तो साक्षात ब्रह्म हैं। यह तो हर पिता की इच्छा होती है कि उसकी पुत्री सुख-सम्पदा से युक्त पति के घर कि लक्ष्मी बने।'

नारदजी तुम्हारे पिता की स्वीकृति पाकर विष्णुजी के पास गए और उन्हें विवाह तय होने का समाचार सुनाया। परंतु जब तुम्हे इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम्हारे दुःख का ठिकाना ना रहा। तुम्हे इस प्रकार से दुःखी देखकर, तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछने पर तुमने बताया कि - 'मैंने सच्चे मन से भगवान् शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है। मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ। अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा।' तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी। उसने कहा - 'प्राण छोड़ने का यहाँ कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिये। भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करे। सच्ची आस्था और एकनिष्ठा के समक्ष तो भगवान् भी असहाय हैं। मैं तुम्हे घनघोर वन में ले चलती हूँ जो साधना थल भी है और जहाँ तुम्हारे पिता तुम्हे खोज भी नहीं पायेंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।'

तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हे घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। वह सोचने लगे कि मैंने तो विष्णुजी से अपनी पुत्री का विवाह तय कर दिया है। यदि भगवान् विष्णु बारात लेकर आ गये और कन्या घर पर नहीं मिली तो बहुत अपमान होगा, ऐसा विचार कर पर्वतराज ने चारों ओर तुम्हारी खोज शुरू करवा दी। इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं। भाद्रपद तृतीय शुक्ल को हस्त नक्षत्र था। उस दिन तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। रात भर मेरी स्तुति में गीत गाकर जागरण किया। तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुँचा और तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा - 'मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूँ। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहाँ पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिये। 'तब 'तथास्तु' कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया।

प्रातः होते ही तुमने पूजा की समस्त सामग्री नदी में प्रवाहित करके अपनी सखी सहित व्रत का वरण किया। उसी समय गिरिराज अपने बंधु - बांधवों के साथ तुम्हे खोजते हुए वहाँ पहुंचे। तुम्हारी दशा देखकर अत्यंत दुःखी हुए और तुम्हारी इस कठोर तपस्या का कारण पुछा। तब तुमने कहा - 'पिताजी, मैंने अपने जीवन का अधिकांश वक़्त कठोर तपस्या में बिताया है। मेरी इस तपस्या के केवल उद्देश्य महादेवजी को पति के रूप में प्राप्त करना था। आज मैं अपनी तपस्या की कसौटी पर खरी उतर चुकी हूँ। चुंकि आप मेरा विवाह विष्णुजी से करने का निश्चय कर चुके थे, इसलिये मैं अपने आराध्य की तलाश में घर से चली गयी। अब मैं आपके साथ घर इसी शर्त पर चलूंगी कि आप मेरा विवाह महादेवजी के साथ ही करेंगे। पर्वतराज ने तुम्हारी इच्छा स्वीकार करली और तुम्हे घर वापस ले गये। कुछ समय बाद उन्होने पूरे विधि - विधान के साथ हमारा विवाह किया।"

भगवान् शिव ने आगे कहा - "हे पार्वती! भाद्र पद कि शुक्ल तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था, उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका। इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मन वांछित फल देता हूँ।" भगवान् शिव ने पार्वती जी से कहा कि इस व्रत को जो भी स्त्री पूर्ण श्रद्धा से करेगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग प्राप्त होगा।

इन आध्यात्म गुरुओं ने तोडा अपने भक्तों का विश्वास और फंसे कानून के फंदे में

'संत न छोड़े संतई, कोटिक मिले असंत| चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग' संतों के आचरण के संबंध में सदियों से प्रचलित इस दोहे को आज के संतों ने नकार दिया है| आज के साधू-संत जो खुद को आध्यात्मिक गुरु कहते हैं, की बात करे तो अधिकांश ऐसे मिलेंगे जो अध्यात्म को अपना व्यवसाय बना कर जेबें भरने में जुटे हैं| इनकी प्रॉपर्टी और बैंक बैलेंस का मुकाबला दुनिया के 80 फीसदी करोड़पति भी नहीं कर सकते| इनके समर्थक या भक्त ऐसे हैं जो अपना समय तो इन्हें देते ही है साथ में अपना धन भी इन पर जम कर लुटाते हैं। कभी चढ़ावे के नाम दान करके तो कभी गुरुओं के प्रवचन और भजन की सीडी कैसेट या फिर उनके आश्रमों में बबनने वाले प्रोडक्ट खरीद कर इन समर्थकों का करोड़ों रुपये आध्यात्मिक गुरुओं की तिजोरियों में पहुँच जाता है। लेकिन ये आध्यात्म के कारोबारी लोग अपने समर्थकों के विश्वास पर कैसा आघात करते हैं यह भी कई बार देखने को मिल चुका है। आइये जानते है ऐसे ही कुछ आध्यात्म गुरुओं के विषय में जिन्होंने कुछ ऐसा किया और आज कानून के फेर में फसे हुए हैं।


राधे मां-

अश्लीलता फैलाने और दहेज के लिए प्रताड़ित करने के आरोपों का सामना कर रहीं स्वघोषित देवी राधे माँ इन दिनों सुर्ख़ियों में बनी हुई हैं| राधे मां को लेकर नित नए खुलासे हो रहे हैं| मॉडल और एक्ट्रेस अर्शी खान ने अभी हाल ही में उन पर आरोप लगते हुए कहा कि उनकी मुलाक़ात राधे मां की बिजनेस पार्टनर और मैनेजर से हुई उसने उसे सेक्स रैकेट में शामिल होने को कहा| लेकिन उसने मना कर दिया| अर्शी खान ने बताया कि राधे मां के पार्टनर ने कहा कि तुम पर राधे मां की असीम कृपा है और तुम जिसके साथ भी संबंध बनाओगी उसका भला होगा|

अर्शी खान के अलावा 'बिग बॉस' प्रतिभागी डॉली बिंद्रा ने राधे मां के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाते हुए कहा कि राधे मां उन्हें अपने बैडरूम में आईपैड पर पोर्न फिल्में दिखाती थी और अपने उनके भक्त सामने अश्लील डांस करते थे। डॉली का आरोप हैं कि राधे मां ड्रग्स का भी बिजनेस करती हैं।

दुल्हन जैसे भारी मेकअप और महंगे साड़ी-गहनों में नज़र आने वाली राधे मां के बार में पता चला है की अपने आशीर्वाद के बदले भक्तों से बड़ी कीमत वसूल रही हैं| इनके भक्तों में बड़े फिल्म और टीवी कलाकार भी शामिल हैं। स्टेज पर राधे मां दुल्हन की तरह फुल मेकप कर अवतरित होती हैं और झूमती नाचती रहती हैं। हाथ में त्रिशूल होता है माँ के साथ ही उनके श्रद्धालु भी झूमते नज़र आते हैं। इस सबके बीच जो अद्भुत नज़ारा होता है वो ये कि राधे मां जब किसी पर प्रसन्न होती हैं तब झूमते हुए उसकी गोद में कूद जाती हैं। कहा जाता है कि जिस भक्त की गोद में वो छलांग लगाती हैं उसके सभी कष्ट उसी समय से दूर हो जाते हैं।

आसाराम बापू-

संसार का सार परमात्मा का आनंद बताने वाले संत आसाराम बापू की बात की जाए तो यह भी विवादों से अछूते नहीं हैं| आपको बता दें कि आसाराम बापू के आश्रम में दो बच्चों की संदिग्ध मौत का मामला काफी विवादों में रहा। यही नहीं अपने एक चेले को मरवाने के लिए सुपारी देने के आरोप भी बाबा पर लगे। इतना ही नहीं एक तांत्रिक ने बापू पर आरोप लगाया कि बापू ने गुजरात के एक अखबार के मालिक के बेटे समेत छह लोगों की काले जादू से हत्या करने की सुपारी दी थी। और इस समय वह एक नाबालिग लड़की के यौन शोषण के आरोप में जोधपुर जेल में डेढ़ साल से बंद हैं|

स्वामी नित्यानंद-

हम बात करते हैं भक्तों को आस्था का पाठ पढ़ाने वाले स्वामी नित्यानंद की| कर्नाटक सीआईडी ने स्वामी नित्यानंद के खिलाफ एक चार्जशीट दाखिल किया था इसमें दावा किया गया कि नित्यानंद ने महिलाओं के अलावा अपने एक विदेशी भक्त के साथ कई बार शारीरिक संबंध बनाए हैं। कर्नाटक के बिदादी आश्रम के अलावा अमेरिका में कुछ शहरों में उन्होंने अपने इस भक्त के साथ अप्राकृतिक सेक्स संबंध बनाए थे। सीआईडी ​​द्वारा दाखिल चार्जशीट में साफ कहा गया है कि सबूतों में यह बात सामने आई कि नित्यानंद अप्राकृतिक सेक्स भी करते थे। अधिकारियों के मुताबिक, यह नित्यानंद केस में यह पहला मामला है जब किसी पुरूष भक्त ने एफआईआर दर्ज कराई है। शिकायतकर्ता वर्तमान में अमेरिका में रहता है। उसने कहा है कि स्वामी ने अपने आश्रम में कम से कम छह बार उसके साथ कुकर्म किया था।

निर्मल बाबा-

हजारों भक्तों की परेशानियों को खट्टी- मीठी चटनी, समोसा और गोलगप्पों से दूर करने वाले निर्मल बाबा भी एक विवादित हस्ती बन चुके हैं| उनके खिलाफ देशभर में दर्जनों लिखित शिकायतें दी जा चुकीं है| कृपा का कारोबार करने वाले निर्मल बाबा के खिलाफ धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज करवाने वालों की गिनती में लगातार इजाफा हो रहा है| अपनी तीसरी आंख से दुनिया देखने वाले और हाथ उठाकर लोगों पर कृपा की बारिश करने वाले निर्मल बाबा की जिन्दगी में अब कुछ भी सामान्य नहीं रहा है| उनकी मुसीबतें कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है| जहाँ लोग उनके खिलाफ शिकायत लेकर थाने पहुंच रहे हैं तो वहीँ एक के बाद एक हो रहे खुलासे से बाबा की कृपा के कारोबार में तेजी से गिरावट हो रही है|

सुधांशु जी महाराज-

दुनिया को मोह माया त्याग कर आध्यात्म अपनाने का ज्ञान सुधांशु जी महाराज पर आरोप है कि उनके विश्व जागृति मिशन संस्थान ने चंदे पर आयकर छूट दिलाने के नाम पर लोगों को ठगा। महाराज आयकर छूट के जाली प्रमाणपत्र के जरिए लोगों को दान देने के लिए उकसाते थे। अगर सूत्रों की माने तो उनका कहना है कि मुंबई के एक उद्योगपति भक्त ने मिशन को 53 लाख रूपए दान किए और जब वो आयकर छूट लेने पहुंचा तो पता चला कि आयकर छूट का प्रमाणपत्र जाली है। आयकर विभाग के मुताबिक, विश्व जाग्रति मिशन को वर्ष 1999 से 2008 के बीच 80(G) सर्टिफिकेट दिया ही नहीं गया। मिशन ने 80(G) सर्टिफिकेट की जो कापियां लोगों को दीं, वो फर्जी हैं। 80(G) के तहत दानदाता को 50 फीसदी तक की छूट मिलती है। यही नहीं, आयकर विभाग ने साफ किया की विश्व जागृति मिशन को आयकर के तहत छूट मिल भी नहीं सकती क्योंकि संस्था का पंजीकरण आयकर की धारा 12(A) के तहत कराया ही नहीं गया।

भीमानंद उर्फ इच्‍छाधारी बाबा-

इस ढोंगी बाबा की मायावी दुनिया काफी फैली हुई थी। कांच के टुकड़ों पर डांस, नुकीली कीलों पर थिरकतीं बालाएं, कठपुतली के साथ नृत्य का लुत्फ उठाते इच्छाधारी बाबा भीमानंद। बाबा भीमानंद धार्मिक समारोह के नाम पर मनोरंजन का सामान परोसता था। धर्म के नाम पर लोगों की भीड़ जुटाने के लिए ये समारोह में तरह-तरह नाच करवाता था। फिर आखिर में बारी आती थी खुद बाबा की। नृत्य करने से पहले बाबा पटाखे की लंबी लड़ी में आग लगाता था। फिर जैसे-जैसे पटाखें की लड़ी जलती जाती। वैसे-वैसे बाबा के बदन में ढोल-नगाड़े की आवाज के साथ थिरकन बढ़ती जाती।

दरअसल बाबा भीमानंद के इन समारोहों का मकसद पैसे उगाहना होता था। जाहिर है कि अगर सिर्फ साईं के नाम का प्रवचन होगा तो पैसे नहीं मिलेंगे। इसलिए इस तरह के डांस के जरिए पैसा उगाहने की कोशिश होती थी। इच्छाधारी के हर धार्मिक समारोह में पारंपरिक नृत्य के नाम पर लड़कियों से इसी तरह डांस करवाया जाता था। भोली-भाली जनता तो बेवकूफ बनती ही थी। लुत्फ उठाने वालों में होते थे पुलिसवाले और सफेदपोश। अब पुलिस इस सीडी की जांच कर बाबा के नेटवर्क का पता लगा रही है। इस तरह के समारोह में आने वाले लोगों से बाबा अपने कारोबार यानि सेक्स रैकेट या धर्म के बाजार का सौदा भी कर लेता था।

नारायण साईं-

रेप मामले में आरोपी नारायण साईं पर उनकी ही पत्नी ने बड़ा खुलासा किया है। नारायण साईं की पत्नी ने आरोप लगाया है कि नारायण साईं अय्याश, व्यभिचारी और संत के नाम पर कलंक है। उसने न जाने कितनी लड़कियों के साथ शारीरिक संबंध बनाए हैं। जानकी ने बताया कि उसका विवाह नारायण पिता आसाराम हरपलानी से 22 मई 1997 को हुआ था। इसके बाद वह सास लक्ष्मी के साथ अहमदाबाद के महिला आश्रम में रहकर उनकी देखभाल करती थी। शादी के पंडाल में आसाराम ने घोषणा की थी कि उनका बेटा (नारायण) पांच साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करेगा। लेकिन उसके बाद भी वो लड़कियों के साथ घूमता रहा। नारायण साईं को कलंक बताते हुए जानकी ने कहा की दरअसल आसाराम लोगों को प्रभावित करना चाहते थे कि इतनी सुंदर पत्नी होने के बाद भी नारायण ब्रह्मचर्य का पालन करेगा। उन्होंने यह भी बताया की शादी के बाद नारायण आश्रम की साधिकाओं के साथ सत्संग के नाम पर विभिन्न स्थानों पर घूमता रहता था। अक्सर लड़कियों के साथ विदेश जाता था।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि अगर आपको अपने ऊपर विश्वास है तो आप आस्तिक हो, लेकिन अगर आपको अपने ऊपर ही विश्वास नहीं है तो आप नास्तिक हो लेकिन वर्तमान समाज में इसके ठीक विपरीत है। आज अगर आप किसी बाबा को नहीं मानते तो आपको नास्तिक कहा जाता है। भारत के पतन की कहानी भी अंधविश्वास और भाग्यवाद के सहारे ही लिखी गई। भारत का इतिहास शौर्य, वीरता और कर्म का है लेकिन हम इन गुणों को छोड़कर केवल और केवल भाग्यवादी बनकर रह गए हैं। और इसी का परिणाम है इन बाबाओं की फौज। यह सिर्फ हिन्दू धर्म की विडंबना नहीं है, सभी धर्मों में कुछ ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जिन्होंने धर्म को धंधा बनाकर रख दिया है। वे भोली-भाली जनता को परमेश्वर, प्रलय, ग्रह-नक्षत्र और शैतान से डराकर लूटते हैं। 

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आचार्य विनोबा भावे की 120वी जयंती पर उनको शत-शत नमन

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के उत्तराधिकारी कहे जाने वाले महान समाज सुधारक एवं चिंतक आचार्य विनोबा भावे देश के उन विद्वज्जनों में शुमार हैं, जिन्होंने आजादी के बाद देश के समक्ष सबसे बड़े संकटों को पहचाना और उन्हें दूर करने के लिए प्रभावी प्रयास किए। विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर, 1895 को महाराष्ट्र के नासिक में हुआ था। विनोबा का वास्तविक नाम विनायक नरहरि भावे था। छोटी उम्र में ही विनोबा भावे ने रामायण, महाभारत और भागवत गीता का अध्ययन कर लिया था। वह इनसे बहुत ज्यादा प्रभावित भी हुए थे। विनोबा भावे अपनी माता से सर्वाधिक प्रभावित थे। विनोबा का कहना था कि उनकी मानसिकता और जीवनशैली को सही दिशा देने और उन्हें अध्यात्म की ओर प्रेरित करने में उनकी मां का ही योगदान है।

विनोबा गणित के बहुत बड़े विद्वान थे, लेकिन ऐसा माना जाता है कि 1916 में जब वह अपनी 10वीं की परीक्षा के लिए मुंबई जा रहे थे तो उन्होंने महात्मा गांधी का एक लेख पढ़कर शिक्षा से संबंधित अपने सभी दस्तावेजों को आग के हवाले कर दिया था। विनोबा भावे अपने युवाकाल में ही महात्मा गांधी के समीप आ गए थे। गांधी की सादगी ने जहां उन्हें मोह लिया, वहीं राष्ट्रपिता ने विनोबा के भीतर एक विचारक और आध्यात्मिक व्यक्तित्व के लक्षण देखे। इसके बाद विनोबा ने आजादी के आंदोलन के साथ-साथ महात्मा गांधी के सामाजिक कार्यो में सक्रियता से भाग लिया।

विनोबा भावे एक महान विचारक, लेखक और विद्वान थे, और अनेक भाषाओं के ज्ञाता भी। उन्हें लगभग सभी भारतीय भाषाओं का ज्ञान था। वह एक उत्कृष्ट वक्ता और समाज सुधारक भी थे। विनोबा भावे के अनुसार, कन्नड़ लिपि विश्व की सभी लिपियों की रानी है। विनोबा ने गीता, कुरान, बाइबिल जैसे धर्मग्रंथों का अनुवाद तो किया ही, साथ ही इनकी आलोचनाएं भी कीं। विनोबा भावे भागवत गीता से बहुत ज्यादा प्रभावित थे। वह कहते थे कि गीता उनके जीवन की हर एक सांस में है। उन्होंने गीता को मराठी भाषा में अनूदित भी किया था।

आजादी के बाद देश में सामंती एवं राजशाही व्यवस्था कानूनी रूप से तो खत्म हो गई, लेकिन सामाजिक व्यवस्था में वह कहीं न कहीं व्याप्त थी। विनोबा भावे ने ऐसे समय में देश में भूमि सुधार की जरूरत को समझा और 'भूदान यज्ञ' की शुरुआत की। विनोबा भावे के भूमिसुधार आंदोलन के महत्व को इस बात से भी समझा जा सकता है कि आज भी देश को बड़े स्तर पर भूमिसुधार की जरूरत है, और हाल ही में संसद द्वारा पारित भूमि अधिग्रहण विधेयक को भी भूमिसुधार की एक कड़ी के रूप में देखा जा सकता है। आजादी के बाद विनोबा ने गांधीवादियों को सलााह दी कि स्वराज हासिल करने के बाद उनका उद्देश्य सर्वोदय के लिए समर्पित समाज का निर्माण करना होना चाहिए। इसके लिए विनोबा ने देश के सबसे पिछड़े इलाकों में से एक तेलंगाना को चुना, क्योंकि वहां से उस समय भूमि मालिकों के खिलाफ कुछ हिंसक घटनाओं की खबरें आ रही थीं।

उन हिंसक घटनाओं ने सरकार के खिलाफ संघर्ष का रूप ले लिया, तो विनोबा ने उस हिंसक संघर्ष को समाप्त करने के लिए खुद पहल करने का संकल्प लिया। विनोबा अपने संकल्प की साधना में पैदल ही निकल पड़े तथा तीसरे दिन तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव पहुंचे। वहां वह मुस्लिम प्रार्थनास्थल में रुके। वहां विनोबा क्षेत्र के 40 भूमिहीन दलित परिवारों से मिले और उनकी समस्याएं जानीं। लोगों ने जब विनोबा से पूछा कि क्या वह उन्हें सरकार से भूमि दिला सकते हैं? तो विनोबा ने कहा कि इसमें सरकार की क्या जरूरत है? इसके लिए विनोबा ने उसी क्षेत्र के कुछ लोगों से मदद मांगी तो गांव के एक प्रमुख किसान ने 100 एकड़ भूमि दान देना स्वीकार कर लिया, जबकि दलित सिर्फ 80 एकड़ भूमि मांग रहे थे। विनोबा भावे देश की विकराल समस्या का हल मिल गया।

यहीं से विनोबा के भूदान आंदोलन की शुरुआत हुई। विनोबा ने सिर्फ तेलंगाना के 200 गांवों से सात सप्ताह के भीतर 12,000 एकड़ भूमि जुटा ली। विनोबा के उस समय चलाए आंदोलन की गूंज का हम इसी बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि एशिया का नोबेल के रूप में प्रतिष्ठित प्रथम रैमन मैग्सेसे पुरस्कारों की जब घोषणा हुई तो विनोबा को सामुदायिक नेतृत्वकर्ता के लिए पहला मैग्सेसे पुरस्कार प्रदान किया गया। विनोबा सच्चे संन्यासी थे। नवंबर 1982 में अत्याधिक बीमार पड़ने के बाद उन्होंने अपनी इहलीला स्वेच्छा से समाप्त करने का संकल्प लिया और अन्न-जल का त्याग कर दिया। परिणामस्वरूप 15 नवंबर, 1982 को विनोबा पंचतत्व में विलीन हो गए। विनोबा को समाज को दिए उनके अप्रतिम योगदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें मरणोपरांत 1983 में देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया।

इन हॉट अभिनेत्रियों का रहा विवादों से गहरा संबंध


बॉलीवुड में कई ऐसी हॉट अभिनेत्रियां है जिनका विवादों से गहरा संबंध रहा है| तो आइये उन अभिनेत्रियों पर नज़र डालते हैं जिनका विवादों से चोली दामन का साथ रहा है|

वीना मलिक

ग्लैमर की दुनिया में नाम और शोहरत कमाने की चाहत में कुछ हस्तियां खुद को सुर्ख़ियों में रखने के लिए विवादों का सहारा ले लेते है। ऐसी ही एक हस्ती है पाकिस्तानी मॉडल व वीना मलिक जिन्हें कौन नहीं जानता| वीना मलिक अपनी हॉट फोटोज और विडियोज को लेकर अक्सर सुर्ख़ियों में रहती हैं| 

पूनम पांडे

अपनी हॉट फोटोज और वीडियोज को लेकर हमेशा सुर्ख़ियों में बनी रहने वाली बॉलीवुड अभिनेत्री पूनम पांडे ने एक मॉडल के रूप में अपने कैरियर की शुरूआत की थी। पूनम पांडे वर्ष 2011 के लिए किंगफिशर कैलेंडर लड़कियों में से एक है। पूनम ने किंगफिशर कैलेंडर के लिए अपनी नग्न मुद्रा तस्वीर डाली। किसी काम की उपलब्धि नहीं बल्कि अपने ऐसे ही अजीबोगरीब हरकतें, ट्विटर पर डाले गए नग्न तस्वीरें की वजह से ही वो चर्चाओं में बने रहने के लिए जानी जाती हैं।

सनी लियोन

मशहूर रियलिटी शो 'बिग बॉस 5' के जरिये भारतीय-कनाडाई मूल की जानी-मानी पॉर्नस्टार सनी लियोन भी अक्सर विडियोज व फोटोज को लेकर सुर्ख़ियों में बनी रहती हैं| आजकल सनी लियोन का कंडोम विज्ञापन चर्चा में बना हुआ है| 

राखी सावंत

कई हिंदी और कुछ कन्नड़, मराठी, तेलुगु और तमिल फिल्मों में दिखाई देनी वाली राखी सावंत भारतीय राजनीतिज्ञ, नर्तकी, हिंदी फिल्म और टीवी अभिनेत्री है।

रोजलीन खान

मॉडल से अभिनेत्री बनी रोजलीन खान किंगफिशर मॉडल पूनम पांडे से कहां हार मानने वाली हैं। किंगफिशर मॉडल पूनम पांडे ने अगर न्यूड पोज दिया तो रोजलीन खान भी धोनी के प्रति वफादारी दिखाते हुए टॉपलेस हो गयी थी और फोटोशूट करवाये थे।

निगार खान

बॉलीवुड के आइटम गानों में आपने इन्हें जरूर देखा होगा। निगार और उनके बॉय्फ्रेन्ड साहिल खान की शादी को लेकर बहुत सारी चर्चाएं हुई थी। बिंदास ऎक्ट्रेस निगार खान का नाम भी इस लिस्ट में शामिल है। फिल्मों में सेक्सी सीन के अलावा उत्तेजक फोटोशूट से लेकर अपने कप़डे गिराने की खास अदाओं को लेकर खूब चर्चा में रही हैं निगार।

नंदना सेन

फिल्म रंग रसिया में नंदना सेन ने काफी बोल्ड और सेक्सी सीन दिए हैं। नंदना इस फिल्म में कॉन्ट्रोवर्शल टॉपलेस सीन देने के लिए खूब सुर्खियों में रही हैं। बॉलिवुड की यह बंगाली बाला रिया सेन ने भले फिल्मों में अपनी कोई खास पहचान न बना पाई हो, लेकिन अपने विवादास्पद एमएमएस को लेकर चर्चाओं में टॉप पर रही हैं रिया।

शिल्पा शुक्ला

शिल्पा शुक्ला ने 2007 में फिल्म ‘चक दे इंडिया’ में काम किया था और 2013 में इनकी बहुत बोल्ड फिल्म बी.ए पास आई थी।

नीतू चंद्रा
नीतू एक जानी-मानी फिल्म अभिनेत्री, मॉडल है। नीतू चंद्रा ने मॉडल क्रिशिखा के साथ बहुत ही आपत्तिजनक फोटोशूट करवाया था

इस मंदिर में रोजाना खिचड़ी का भोग लगाने आते हैं हजारों सियार

क्या कभी आपने जंगली जानवरों को घास खाते हुए देखा है, या मछलियों को पेड़ पर चढ़ते हुए देखा है? यह पढ़कर आप जरूर अचंभित हो रहे होंगे. लेकिन भारत में एक ऐसी जगह है जहां ऐसी ही रहस्‍यमयी घटनाएं घटती हैं. यह जगह है रण ऑफ कच्‍छ|

काला डूंगर या ब्लैक हिल गुजरात के कच्छ ज़िले का एक पर्यटन स्थल है। काला डूंगर से रण का का दृश्य देखते ही बनता है तथा पहाड़ी स्थित ‘दत्तात्रेय मंदिर’ से सायंकाल की आरती के बाद पुजारी की आवाज़ पर सैकड़ों की संख्या में सियारों का दौड़ कर आना पर्यटकों को अचंभित करता है।

मान्‍यता है कि रण ऑफ कच्‍छ के वीरान पहाड़ काला डूंगर पर घूमते हुए गुरु दत्तात्रेय ने एक सियार को भूख से तड़पते हुए देखा| यह देखकर गुरु ने सियार को 'ले अंग' कहकर स्‍वयं को भोजन स्‍वरूप पेश कर दिया| लेकिन आश्‍चर्यजनक रूप से सियार ने गुरु को खाने से मना कर दिया| इस पर प्रसन्‍न होकर गुरु ने सियारों को वरदान दिया कि वे अब कभी भी रण ऑफ कच्‍छ में भूखें नहीं मरेंगे|

गुरु दत्तात्रेय को इस धरती से विचरण किए सैकड़ों साल हो गए हैं लेकिन आज भी गुरु दत्तात्रेय के मंदिर में रोज सुबह हजारों सियार खिचड़ी का भोग लगाने आते हैं| मंदिर में आए भक्‍तों द्वारा लाल चावल और दूध की खीर को एक नियत जगह पर रख दिया जाता है| इसके बाद जैसे ही 'ले अंग' की आवाज दी जाती है वैसे ही देखते ही देखते एक बड़ी संख्‍या में सियार लाल चावल खाने आ जाते हैं|

मंदिर प्रशासन के नियमानुसार जब सियारों को खाना दिया जाता है, तब इनके पास लोगों को नहीं जाने दिया जाता। हां, उन्हें मंदिर के पास से देखा जा सकता है। सियार लगभग 10-15 मिनट में खाना खत्म कर वापस जंगल में ओझल हो जाते हैं। इतना ही नहीं, खिचड़ी खाने के लिए यहां कई पक्षी व कुत्ते भी पहुंचते हैं, लेकिन वे सभी सियारों के जाने का इंतजार करते हैं। यानी की उन्हें यह अच्छी तरह से पता है कि मंदिर के इस प्रसाद पर पहला हक सियारों का है।

गुजरात में जहां आज रण ऑफ कच्‍छ स्थित है वहां हजारों साल पहले एक विशाल समुंदर लहराया करता था| लेकिन एक भूकंप में कच्‍छ की जमीन ऊपर आ गई और समुद्र पीछे हट गया|

जानिए कितनी भाषाओँ में लिखी गई रामायण

सर्वप्रथम श्रीराम की कथा भगवान श्री शंकर ने माता पार्वतीजी को सुनाई थी। उस कथा को एक कौवे ने भी सुन लिया। उसी कौवे का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ।काकभुशुण्डि को पूर्व जन्म में भगवान शंकर के मुख से सुनी वह रामकथा पूरी की पूरी याद थी। उन्होंने यह कथा अपने शिष्यों को सुनाई। इस प्रकार रामकथा का प्रचार-प्रसार हुआ। भगवान शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा 'अध्यात्म रामायण' के नाम से विख्यात है।लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मु‍क्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप मंं ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गिद्धराज गरुड़ को सुना दी थी।जब रावण के पुत्र मेघनाथ ने श्रीराम से युद्ध करते हुए श्रीराम को नागपाश से बांध दिया था, तब देवर्षि नारद के कहने पर गिद्धराज गरुड़ ने नागपाश के समस्त नागों को खाकर श्रीराम को नागपाश के बंधन से मुक्त कर दिया था।

भगवान राम के इस तरह नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम के भगवान होने पर गरुड़ को संदेह हो गया।गरुड़ का संदेह दूर करने के लिए देवर्षि नारद उन्हें ब्रह्माजी के पास भेज देते हैं। ब्रह्माजी उनको शंकरजी के पास भेज देते हैं। भगवान शंकर ने भी गरुड़ को उनका संदेह मिटाने के लिए काकभुशुण्डिजी के पास भेज दिया। अंत में काकभुशुण्डिजी ने राम के चरित्र की पवित्र कथा सुनाकर गरुड़ के संदेह को दूर किया। वैदिक साहित्य के बाद जो रामकथाएं लिखी गईं, उनमें वाल्मीकि रामायण सर्वोपरि है। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था। एक दिन वे वन में ऋषि भारद्वाज के साथ घूम रहे थे और उन्होंने एक व्याघ द्वारा क्रौंच पक्षी को मारे जाने की हृदयविदारक घटना देखी और तभी उनके मन से एक श्लोक फूट पड़ा। बस यहीं से इस कथा को लिखने की प्रेरणा मिली। यह इसी कल्प की कथा है और यही प्रामाणिक है। वाल्मीकि ने राम से संबंधित घटनाचक्र को अपने जीवनकाल में स्वयं देखा या सुना था इसलिए उनकी रामायण सत्य के काफी निकट है, लेकिन उनकी रामायण के सिर्फ 6 ही कांड थे। उत्तरकांड को बौद्धकाल में जोड़ा गया। उत्तरकांड क्यों नहीं लिखा वाल्मीकि ने? यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है।

राम कथा के प्रणेता के रूप में वाल्मीकि रामायण का नाम सर्वप्रथम लिया जाता है। वाल्मीकि रामयाण को स्मृत ग्रंथ माना गया है इस ग्रंथ की रचना माता सरस्वती की कृपा से हुई थी| इस ग्रंथ को ॠतम्भरा प्रज्ञा की देन बताया जाता है। रामायण की रचना संस्कृत भाषा में हुई है। वाल्मीकि रामायण के अलावा भी कई रामायणे लिखी गईं हैं| श्री रामचरित मानस की रचना गोस्वामी तुसलीदास द्वारा संवत 1633 में सम्पन्न हुई थी। अवधी भाषा में रचित इस महाकाव्य की रचना दो वर्ष सात महीने छब्बीस दिन लगे थे। इस ग्रंथ में बालकाण्ड, आयोध्या कांड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धा काण्ड, सुन्दरकाड, लंकाकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड के रूप में सात काण्ड है। इन सात काण्डों में ही श्रीराम के सम्पूर्ण चरित्रको समाहित किया गया है।

आध्यात्म रामायण की रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई है। ब्राह्मण्ड पुराण के उत्तरखण्ड के अंतर्गत एक आख्ययान के रूप में इसकी रचना हुई है। इसकी रचना संस्कृत भाषा में की गई है। प्रस्तु ग्रंथ में भगवान श्री राम को आध्यात्मिक तत्व माना गया है। आनन्द रामायण महर्षि वाल्मीकि की ही रचना है। इस रामायण को भी सारकाण्ड, जन्म काण्ड, मनोहर काण्ड, राज्य काण्ड आदि काण्डों में बांटा गया है।संस्कृत भाषा में रचित इस रामायण में राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व के साथ ही श्री राम के मर्यादा पुरूषत्व की नींव को सुदृढ़ बनाया है। कृति वास रामायण की रचना गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म से लगभग सौ वर्ष पूर्व हुई थी। इस रामायण की भाषा बंगला है। बंग्लादेश स्थित मनीषी कवि कृतिवास द्वारा रचित इस रामायण में भी बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धा काण्ड,उत्तरकाण्ड इत्यादि है । इस रामायण में भी सात काण्ड है। पवार छन्दों में पांचाली गान के रूप में रचित इस ग्रंथ में श्रीराम के उदार चरित्रों का बखान किया गया है।

अदभुत रामायण की रचना भी संस्कृत भाषा में की गई है। इस रामायण की रचना भी महर्षि वाल्मिकी द्वारा ही की गयी है। इस रामायण में सत्ताईस सर्ग के अंतर्गत लगभग चौदह हजार श्लोक है। इस रामायण में भगवती सीता के महात्म्य को विशेष रूप से दर्शाया गया है। इस रामायण के अनुसार सहस्रसुख का भी रावण था जो दशमुख रावण का अग्रज था। सीता ने महाकाली का रूप धारण करके सहस्रसुख रावण का वध कर दिया था। रंगनाथ रामायण की रचना द्रविड़ भाषा में (तेलगु) में श्री मोनबुध्द राज द्वारा देशज छन्दों में 1380 ई. के आसपास की गई । इस रामायण में युध्दकाण्ड के माध्यम से श्रीराम को महाप्रतापी बताया गया है। रावण के कुकृत्यों की निन्दा के साथ ही उसके गुणों की भी इसमें मुक्तकण्ठ से प्रशंसा की गई है।

कश्मीरी रामायण की रचना दिवाकर प्रकाश भट्ट द्वारा कश्मीरी भाषा में की गई है। इस रामायण को रामावतार चरित्र के नाम से भी जाना जाता है । इसका एक नाम प्रकाश रामायण भी है। काशुर रामायण के नाम से इसका हिन्दी रूपान्तर भी प्राप्त है। इस रामायण में भक्ति ज्ञान एवं वैराग्य की त्रिवेणी प्रवाहित होती दिखाई देती है। प्रियंका रामायण की रचना उड़िया भाषा में आदिकवि श्री शरलादास द्वारा की गई है। यह रामायण पूर्वकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड के रूप में थी तथा दो खण्डों में है। शिव पार्वती के संवाद के रूप में रचित यह रामायण भगवती महिषासुर मर्दिनी की वन्दना से प्रारंभ है। योगवशिष्ठ - रामायण की रचना भी महर्षि वाल्मीकि द्वारा संपन्न हुई है। इसे महारामायण, आर्य रामायण (आर्ष रामायण), वशिष्ठ रामायण, ज्ञान वशिष्ठ रामायण के नामों से भी जाना जाता है। यह ग्रंथवैराग्य प्रकरण, मुमुक्षु व्यवहार प्रकरण, उत्तप्ति प्रकरण, स्थिति प्रकरण, उपशम प्रकरण तथा निर्वाण प्रकरण (पूर्वार्ध एवं उत्तरार्ध) के रूप में श्रीराम के चरित्र को छ: प्रकरणों में विभक्त किया गया है। संस्कृत भाषा में रचित इस रामायण में श्रीराम के मानवीय चरित्र के पक्ष में विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है।

उपरोक्त रामायणों के अतिरिक्त विष्णु प्रताप रामायण, मैथिली रामायण, दिनकर रामायण, शंकर रामायण, जगमोहन रामायण, शर्मा नारायण, ताराचंद रामायम, अमर रामायण, प्रेम रामायण, कम्बा रामायण, तोखे रामायण, गड़बड़ रामायण नेपाली रामायण, विचित्र रामायण मंत्र रामायण तिब्बती रामायण, राधेश्याम रामायण, चरित्र रामायण, कर्कविन रामायण जावी रामायम, जानकी रामायण आदि अनेक रामायण की रचना सिर्फ भारत में ही नहीं अपितु विदेशों में भी की गई है।

अगर हम भाषाओं पर जाएं तो अन्नामी, बाली, बांग्ला, कम्बोडियाई, चीनी, गुजराती, जावाई, कन्नड़, कश्मीरी, खोटानी, लाओसी, मलेशियाई, मराठी, ओड़िया, प्राकृत, संस्कृत, संथाली, सिंहली, तमिल, तेलुगू, थाई, तिब्बती, कावी आदि भाषाओं में लिखी गई है रामायण। अभी तक बहुत सारी रामायण लिखी जा चुकी हैं। विदेशों में जो रामायणे लिखी गईं हैं उनमें किंरस-पुंस-पा की 'काव्यदर्श' (तिब्बती), रामायण काकावीन (इंडोनेशियाई कावी), हिकायत सेरीराम (मलेशियाई भाषा), रामवत्थु (बर्मा), रामकेर्ति-रिआमकेर (कंपूचिया खमेर), तैरानो यसुयोरी की 'होबुत्सुशू' (जापानी), फ्रलक-फ्रलाम-रामजातक (लाओस), भानुभक्त कृत रामायण (नेपाल), अद्भुत रामायण, रामकियेन (थाईलैंड), खोतानी रामायण (तुर्किस्तान), जीवक जातक (मंगोलियाई भाषा), मसीही रामायण (फारसी), शेख सादी मसीह की 'दास्ताने राम व सीता'।, महालादिया लाबन (मारनव भाषा, फिलीपींस), दशरथ कथानम (चीन), हनुमन्नाटक (हृदयराम-1623) इसके साथ-साथ अभी भी खोज निरंतर जारी है।

जानलेवा डेंगू से बचना है तो बरतें यह सावधानी

बारिश भले ही नहीं हो रही है मौसम का साइड इफेक्ट दिखने लगा है। बदलते हुए मौसम में सावधान रहना बहुत जरूरी होता है, आपके खान-पान और रहन-सहन में थोड़ी सी लापरवाही आपको बीमार कर सकती है। बदलते मौसम के प्रभाव में आने लोगों का मौसमी बीमारियों के साथ ही मच्छर जनित बीमारियों ने पैर पसारना शुरु कर दिया है। डेंगू भी एक ऐसी ही बीमारी है जो मच्छर जनित होने के साथ-साथ बदलते मौसम में सबसे ज्यादा पनपती है।

डेंगू बुखार का वाइरस बारिश के मौसम में यानी जून से सितंबर-अक्‍टूबर के बीच ही फैलता है। इसका सबसे बड़ा कारण है भारत में बदलता तापमान, इसिलए भी डेंगू बुखार का मौसम बारिश के साथ ही शुरू हो जाता है। आमतौर पर जून कें अंत में बारिश शुरू हो जाती है जुलाई, अगस्त , सितंबर तीन महीनों में डेंगू बुखार सबसे ज्यादा फैलता है, क्योंकि पूरे भारत में सबसे अधिक बारिश इन तीन महीनों के बीच ही होती हैं।

भारत में मौसम का उतार-चढ़ाव लगातार चलता रहता है, कभी बहुत अधिक बारिश तो कभी बहुत अधिक गर्मी या ठंडी होती है जिससे डेंगू के मच्छरों की पैदाइश अधिक बढ़ जाती हैं। इन महीनों में लगातार बारिश और मौसम के उतार-चढ़ाव से काफी उमस और चिपचिपाहट होती है और इसी उमस के कारण डेंगू बुखार के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। डेंगू का प्रभाव अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरीके से होता है क्योंकि मौसम का उतार-चढ़ाव और बारिश का कभी एक क्षेत्र में आना तो कभी दूसरे में आना इसका मुख्य कारण है।

डेंगू बुखार के कारण पिछले कुछ वर्षों से इंसान में मच्छरों का खौफ बढ़ा है, इससे प्रभावित होने वाले लोग न सिर्फ भारत से हैं बल्कि पूरी दुनिया से हैं। इसमें व्यक्ति को तेज़ बुखार, सिरदर्द, आंखों के पीछे दर्द, मांसपेशियों और जोड़ों में दर्द और शरीर पर फुंसियां हो जाती हैं। इस बुखार में खून में जल्दी से संक्रमण फैलते हैं। डेंगू बुखार एडिज नामक मच्छर के काटने से फैलता है। ये मच्छर एडिज इजिप्टी तथा एडिज एल्बोपेक्टस के नाम से जाने जाते हैं। यह मच्छर साफ, इकट्ठे पानी में पनपते हैं, जैसे घर के बाहर पानी की टंकियाँ या जानवरों के पीने की हौद, कूलर में इकट्ठा पानी, पानी के ड्रम, पुराने ट्यूब या टायरों में इकट्ठा पानी, गमलों में इकट्ठा पानी, फूटे मटके में इकट्ठा पानी आदि।

डेंगू के लक्षण-

आपको बता दें कि डेंगू बुखार हर उम्र के व्यक्ति को हो सकता है, लेकिन छोटे बच्चों और बुजुर्गों को ज़्यादा देखभाल की ज़रूरत होती है। साथ ही दिल की बीमारी के मरीज़ों का भी खास ख्याल रखने की ज़रूरत होती है। यह बुखार युवाओं में भी तेज़ी से फैलता है, क्योंकि वे अलग-अलग जगह जाते हैं और कई लोगों के संपर्क में आते हैं। डेंगू बुखार के लक्षण आम बुखार से थोड़े अलग होते हैं। इसमें बुखार बहुत तेज़ होता है। साथ में कमज़ोरी हो जाती है और चक्कर आते हैं। डेंगू के दौरान मुंह का स्वाद बदल जाता है और उल्टी भी आती है। सिरदर्द के साथ ही पूरा बदन दर्द करता है।

डेंगू में गंभीर स्थिति होने पर कई लोगों को लाल-गुलाबी चकत्ते भी पड़ जाते हैं। अक्सर बुखार होने पर लोग घर में ‘क्रोसिन’ जैसी दवाओं से खुद ही अपना इलाज करते हैं। लेकिन डेंगू बुखार के लक्षण दिखने पर थोड़ी देर भी भारी पड़ सकती है। लक्षण दिखने पर तुरंत अस्पताल जाना चाहिए। नहीं तो ये लापरवाही रोगी की जान भी ले सकती है। डेंगू संक्रमित व्यक्ति अगर पानी पीने और कुछ भी खाने में परेशानी महसूस करता है और बार-बार कुछ भी खाते ही उल्टी करता है तो डीहाइड्रेशन का खतरा हो जाता है। इससे लीवर का खतरा हो सकता है।

प्लेटलेट्स के कम होने या ब्लड प्रेशर के कम होने या खून का घनापन बढ़ने को भी खतरे की घंटी मानना चाहिए। साथ ही अगर खून आना शुरू हो जाए तो तुरंत अस्पताल ले जाना चाहिए। डेंगू बुखार होने पर सफाई का ध्यान रखने की जरूरत होती है। इलाज में खून को बदलने की जरूरत होती है इसलिए डेंगू के दौरान कुछ स्वस्थ व्यक्तियों को तैयार रखना चाहिए जो रक्तदान कर सकें। सामान्यतः डेंगू से ग्रसित होने वाले सभी लोगों को इससे खतरा होता है। खासतौर पर जब साधारण डेंगू बुखार के बजाय रोगी में रक्तस्राव ज्वर या आघात सिंड्रोम के लक्षण पाए जाते है।

डेंगू रक्तस्राव ज्वर में नाक, मुंह व दांतों में रक्तस्राव के साथ तेज बुखार हो जाता है और मरीज के बुखार का स्तर 105 डिग्री तक भी जा सकता है, जिसका सीधा असर मस्तिष्क पर भी पड़ता है। डीएचएस पॉजीटिव जांच के बाद मरीज को प्लेटलेट्स चढ़ाने की जरूरत होती है। यदि ऐसा न किया जाए तो वह किसी घातक बीमारी का शिकार हो सकता है या फिर रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। डेंगू की गंभीर व तीसरी अवस्था को डेंगू शॉक सिंड्रोम कहा जाता है, जिसके तेज कंपकंपाहट के साथ मरीज को पसीने आते हैं। इस अवस्था में इलाज की देरी मरीज की जान ले सकती है। शॉक सिंड्रोम की स्थिति आने तक मरीज के शरीर पर लाल चकत्ते के दाग स्थाई हो जाते हैं, जिनमें खुजली भी होने लगती है।

जरूरी नहीं हर तरह के डेंगू में प्लेटलेट्स चढ़ाए जाएं, केवल हैमरेजिक और शॉक सिंड्रोम डेंगू में प्लेटलेट्स की जरूरत होती है। जबकि साधारण डेंगू में जरूरी दवाओं के साथ मरीज को ठीक किया जा सकता है। इस दौरान ताजे फलों का जूस व तरल चीजों का अधिक सेवन तेजी से रोगी की स्थिति में सुधार ला सकता है।

डेंगू से बचाव ही उसका इलाज-

रोगग्रसित मरीज का तुरंत उपचार शुरू करें व तेज बुखार की स्थिति में पेरासिटामाल की गोली दें। एस्प्रिन या डायक्लोफेनिक जैसी अन्य दर्द निवारक दवाई न लें। खुली हवा में मरीज को रहने दें व पर्याप्त मात्रा में भोजन-पानी दें जिससे मरीज को कमजोरी न लगे। फ्लू एक तरह से हवा में फैलता है अतः मरीज से 10 फुट की दूरी बनाए रखें तो फैलने का खतरा कम रहता है। जहां बीमारी अधिक मात्रा में हो, वहां फेस मॉस्क पहनना चाहिए। घर के आसपास मच्छरनाशक दवाइयां छिड़काएं।

पानी के फव्वारों को हफ्ते में एक दिन सुखा दें। घर के आसपास छत पर पानी एकत्रित न होने दें। घर का कचरा सुनिश्चित जगह पर डालें, जो कि ढंका हो। कचरा आंगन के बाहर न फेंककर नष्ट करें। पानी की टंकियों को कवर करके रखें व नियमित सफाई करें। इस तरह थोड़ी-सी सावधानी से स्वस्थ रहा जा सकता है।