कभी हमारे घरों में गौरैया का घोसला हुआ करता था दोपहर के समय अपने बचों के साथ चहचहाया करती थी जब हम लोग गर्मी की दोपहर में आराम करने के लिए घरों में सोया करते थे. मई छोटा था तब इनके बच्चों को दौड़ाया करता था न जाने कितनी बार माँ से इस वजह से मर पड़ी लेकिन मेरे अन्दर सुधार नहीं हुआ लेकिन आज मई अपने वो दिन यद् करता हूँ की किस तरह से मेरा बचपन बीता करता था लेकिन आज वो दौर है की दिन भर केवल भागा दौड़ी लगी रहती है. अपने वो दिन यद् करता हूँ तो सिहर जाता हूँ की न जाने कितनी चिड़ियों के बच्चों को सताया करता था . लेकिन आज वो समय है कि गौरैया देखने के लिए तरस जा रहे हैं . इस आधुनिक युग में रहन सहन और वातावरण में आये बदलाओं के कारण आज गौरैयों पर कई खतरे मंडरा रहे हैं . बढती जन संख्या का शिकार हो रही है बेचारी गौरैया.
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