जब-जब असुरों के अत्याचार बढे और धर्म की हानि हुई है तब- तब ईश्वर ने धरती पर अवतार लेकर सत्य और धर्म का मार्ग प्रशस्त किया है और धरतीवासियों के दुखों को हरा है। जन्माष्टमी का पावन त्यौहार भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। जन्माष्टमी श्रावण (जुलाई-अगस्त) माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन मनाया जाता है। हिन्दू परम्परा के अनुसार जिस भाव से जन्माष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है वह विश्व के किसी भी कोने में दिखना अत्यंत ही दुर्लभ है।
जन्माष्टमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मथुरा के राजा कंस की बहन का विवाह वासुदेव से साथ हुआ था। जब कंस अपनी बहन को विदा कर रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई, देवकी का आठवा पुत्र कंस का वध करेगा। इस बात से भयभीत कंस ने अपनी बहन और वासुदेव को काल कोठारी में डाल दिया। कंस ने देवकी की सारी संतानों की एक-एक करके हत्या कर दी। जब देवकी के आठवें पुत्र का जन्म हुआ तो अचानक काल कोठारी के सारे दरवाजे खुल गए और वासुदेव अपने नवजात पुत्र को लेकर अपने मित्र नन्द के पास गोकुल गए। दैवीय कारणों से नन्द के घर में एक पुत्री ने जन्म लिया था। उन्होंने अपनी पुत्री वासुदेव को सौंप दी। अगली सुबह कंस हमेशा की तरह आया और देवकी की बेटी को पत्थर पर पटक दिया, लेकिन उस कन्या ने देवी का रूप धारण कर कंस को बताया कि उस शक्ति का जन्म हो चुका है जो तेरी वध करेगा। इस बात से क्रोधित कंस ने कृष्ण को कई बार मारने की भी कोशिश की, लेकिन वह अपनी योजनों में सफल न हो सका। जब कंस के पापो का घड़ा भर गया तब भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध कर अपने माता-पिता को कारागार से बाहर निकला और मथुरा की जनता को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
पूजन विधि-
जन्माष्टमी के अवसर पर महिलाएं, पुरूष व बच्चे उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण का भजन-कीर्तन करते हैं। इस पावन पर्व में कृष्ण मन्दिरों व घरों को सुन्दर ढंग से सजाया व प्रकाशित किया जाता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृन्दावन के मन्दिरों में इस अवसर पर कई तरह के रंगारंग समारोह आयोजित किए जाते हैं। कृष्ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला का भी आयोजन किया जाता है। इस त्यौहार को 'कृष्णाष्टमी' अथवा 'गोकुलाष्टमी' के नाम से भी जाना जाता है।
श्री कृष्ण का जन्म रात्रि 12 बजे हुआ था इसलिए बाल कृष्ण की मूर्ति को आधी रात के समय दूध, दही, धी, जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद शिशु कृष्ण का श्रृंगार कर भजन व पूजन-अर्चन की जाती है और उन्हें भोग लगाया जाता है। जो लोग उपवास रखते हैं वह इसी भोग को ग्रहण कर अपना उपवास पूरा करते हैं।
गोविंदा आला रे...
पूरे उत्तर भारत में इस त्यौहार के उत्सव के दौरान भजन गाए जाते हैं नृत्य किया जाता है। मथुरा व महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दौरान मिट्टी की मटकियों जिन्हें लोगों की पहुंच से दूर उचाई पर बांधा जाता है, इनसे दही व मक्खन चुराने की कोशिश की जाती है। इन वस्तुओं से भरा एक मटका अथवा पात्र जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है, तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्तत: इसे फोड़ते हैं। इसके पीछे आशय यह है कि लोगों का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण इसे ही अपने मित्रों के साथ दही और मक्खन की मटकियों को फोड़ते थे और दही, मक्खन चुरा कर खाते थे। यह उत्सव करीब सप्ताह तक चलता है।
जन्माष्टमी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार मथुरा के राजा कंस की बहन का विवाह वासुदेव से साथ हुआ था। जब कंस अपनी बहन को विदा कर रहा था तभी एक आकाशवाणी हुई, देवकी का आठवा पुत्र कंस का वध करेगा। इस बात से भयभीत कंस ने अपनी बहन और वासुदेव को काल कोठारी में डाल दिया। कंस ने देवकी की सारी संतानों की एक-एक करके हत्या कर दी। जब देवकी के आठवें पुत्र का जन्म हुआ तो अचानक काल कोठारी के सारे दरवाजे खुल गए और वासुदेव अपने नवजात पुत्र को लेकर अपने मित्र नन्द के पास गोकुल गए। दैवीय कारणों से नन्द के घर में एक पुत्री ने जन्म लिया था। उन्होंने अपनी पुत्री वासुदेव को सौंप दी। अगली सुबह कंस हमेशा की तरह आया और देवकी की बेटी को पत्थर पर पटक दिया, लेकिन उस कन्या ने देवी का रूप धारण कर कंस को बताया कि उस शक्ति का जन्म हो चुका है जो तेरी वध करेगा। इस बात से क्रोधित कंस ने कृष्ण को कई बार मारने की भी कोशिश की, लेकिन वह अपनी योजनों में सफल न हो सका। जब कंस के पापो का घड़ा भर गया तब भगवान श्री कृष्ण ने कंस का वध कर अपने माता-पिता को कारागार से बाहर निकला और मथुरा की जनता को कंस के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई।
पूजन विधि-
जन्माष्टमी के अवसर पर महिलाएं, पुरूष व बच्चे उपवास रखते हैं और श्री कृष्ण का भजन-कीर्तन करते हैं। इस पावन पर्व में कृष्ण मन्दिरों व घरों को सुन्दर ढंग से सजाया व प्रकाशित किया जाता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा-वृन्दावन के मन्दिरों में इस अवसर पर कई तरह के रंगारंग समारोह आयोजित किए जाते हैं। कृष्ण की जीवन की घटनाओं की याद को ताजा करने व राधा जी के साथ उनके प्रेम का स्मरण करने के लिए रास लीला का भी आयोजन किया जाता है। इस त्यौहार को 'कृष्णाष्टमी' अथवा 'गोकुलाष्टमी' के नाम से भी जाना जाता है।
श्री कृष्ण का जन्म रात्रि 12 बजे हुआ था इसलिए बाल कृष्ण की मूर्ति को आधी रात के समय दूध, दही, धी, जल से स्नान कराया जाता है। इसके बाद शिशु कृष्ण का श्रृंगार कर भजन व पूजन-अर्चन की जाती है और उन्हें भोग लगाया जाता है। जो लोग उपवास रखते हैं वह इसी भोग को ग्रहण कर अपना उपवास पूरा करते हैं।
गोविंदा आला रे...
पूरे उत्तर भारत में इस त्यौहार के उत्सव के दौरान भजन गाए जाते हैं नृत्य किया जाता है। मथुरा व महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दौरान मिट्टी की मटकियों जिन्हें लोगों की पहुंच से दूर उचाई पर बांधा जाता है, इनसे दही व मक्खन चुराने की कोशिश की जाती है। इन वस्तुओं से भरा एक मटका अथवा पात्र जमीन से ऊपर लटका दिया जाता है, तथा युवक व बालक इस तक पहुंचने के लिए मानव पिरामिड बनाते हैं और अन्तत: इसे फोड़ते हैं। इसके पीछे आशय यह है कि लोगों का मानना है कि भगवान श्री कृष्ण इसे ही अपने मित्रों के साथ दही और मक्खन की मटकियों को फोड़ते थे और दही, मक्खन चुरा कर खाते थे। यह उत्सव करीब सप्ताह तक चलता है।
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