क्या आपको पता है कि मनुष्य की कब आरती की जाती है अगर नहीं तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि मनुष्य की कब आरती की जाती है| आपको बता दें कि मनुष्य की मुख्य रूप से तीन बार आरती की जाती है| पहला शुभ कार्य के प्रारंभ में, दूसरा अत्यधिक यश प्राप्त होने पर और तीसरा प्राणोत्क्रमण के बाद।
आपको बता दें कि घर में धार्मिक कार्यो के अवसरों पर एवं नैमित्तिक व्रत के दिन उतारी जाने वाली आरती को कुर्वडी कहते हैं। शुभ कार्य के प्रारंभ में पुण्याह वाचन करके व्यक्ति की आरती उतारें। पुण्याह वाचन के समय ली गई कुर्वडी के बाद एक दूसरे को शक्कर, पेडे एवं गुड आदि मीठे पदार्थ दिए जाते हैं।
इसके बाद जब कोई व्यक्ति विजय प्राप्ति करके आता है या वश की प्राप्ति करके आता है तो उसकी कुर्वडी उतारने का रिवाज है। कुर्वडी की आरती पुण्याह वाचन के लिए बैठे स्त्री, पुरूष तथा बच्चो की उतारी जाती है जबकि विजयोत्सव की कुर्वडी केवल पुरूष ही करते हैं। कुर्वडी करने का अधिकार केवल सुहागिन स्त्रियों को है। यदि सुहागिन स्त्री उपस्थित न हो तो कुमारी कन्या कुर्वडी कर सकती है।
वहीँ, औक्षण आरती का अधिकार सभी स्त्रियों को है। भैयादूज के दिन विधवा बहन अपने भाई का औक्षण कर सकती है। आश्विन पूर्णिमा के के दिन विधवा माता अपने ज्येष्ठापत्य का नीरांजन कर सकती है। कुर्वडी और औक्षण के लिए तेल की दो बत्तियों का प्रयोग करें। औक्षण के लिए पीतल के दो दीये लेते हैं। कई बार औक्षण के लिए पंचारती का भी उपयोग किया जाता है। कुर्वडी या औक्षण के समय थाली में हल्दी, कुंकुम, अक्षत, पान, सुपारी एवं कुछ सुवर्ण अलंकार रखें।
इसके बाद मनुष्य की अंतिम यात्रा भी अंतिम समय में ही होती है यह आरती जब मनुष्य का शव को स्नान कराया जाता है तो उस वक्त होती है| अर्थी उठाने के पहले तेल की पणती उतारी जाती है। फिर उसे मृत व्यक्ति द्वारा हमेशा इस्तेमाल की जाने वाली जगह पर या घर के किसी कोने में आटे का छोटा ढेर लगाकर उस पर रखने की प्रथा है।
आपको बता दें कि घर में धार्मिक कार्यो के अवसरों पर एवं नैमित्तिक व्रत के दिन उतारी जाने वाली आरती को कुर्वडी कहते हैं। शुभ कार्य के प्रारंभ में पुण्याह वाचन करके व्यक्ति की आरती उतारें। पुण्याह वाचन के समय ली गई कुर्वडी के बाद एक दूसरे को शक्कर, पेडे एवं गुड आदि मीठे पदार्थ दिए जाते हैं।
इसके बाद जब कोई व्यक्ति विजय प्राप्ति करके आता है या वश की प्राप्ति करके आता है तो उसकी कुर्वडी उतारने का रिवाज है। कुर्वडी की आरती पुण्याह वाचन के लिए बैठे स्त्री, पुरूष तथा बच्चो की उतारी जाती है जबकि विजयोत्सव की कुर्वडी केवल पुरूष ही करते हैं। कुर्वडी करने का अधिकार केवल सुहागिन स्त्रियों को है। यदि सुहागिन स्त्री उपस्थित न हो तो कुमारी कन्या कुर्वडी कर सकती है।
वहीँ, औक्षण आरती का अधिकार सभी स्त्रियों को है। भैयादूज के दिन विधवा बहन अपने भाई का औक्षण कर सकती है। आश्विन पूर्णिमा के के दिन विधवा माता अपने ज्येष्ठापत्य का नीरांजन कर सकती है। कुर्वडी और औक्षण के लिए तेल की दो बत्तियों का प्रयोग करें। औक्षण के लिए पीतल के दो दीये लेते हैं। कई बार औक्षण के लिए पंचारती का भी उपयोग किया जाता है। कुर्वडी या औक्षण के समय थाली में हल्दी, कुंकुम, अक्षत, पान, सुपारी एवं कुछ सुवर्ण अलंकार रखें।
इसके बाद मनुष्य की अंतिम यात्रा भी अंतिम समय में ही होती है यह आरती जब मनुष्य का शव को स्नान कराया जाता है तो उस वक्त होती है| अर्थी उठाने के पहले तेल की पणती उतारी जाती है। फिर उसे मृत व्यक्ति द्वारा हमेशा इस्तेमाल की जाने वाली जगह पर या घर के किसी कोने में आटे का छोटा ढेर लगाकर उस पर रखने की प्रथा है।
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