एक ऐसा मंदिर जहाँ हरि-हर यानि की तीनों लोकों के स्वामी विष्णु और देवाधिदेव महादेव का मिलन हुआ था| जी हाँ हम बात कर रहे हैं अपने वैभव और मौलिकताओं के लिए विख्यात काशी के श्रीसत्यनारायणमानस मंदिर की| इस मंदिर की यह विशेषता है कि पहली नजर में ही यह भक्ति-आस्था और वैभव का अनुपम संगम प्रतीत होने लगेगा| इस मंदिर के लिए अगर अद्भुत, अविश्वसनीय, असाधारण व अमूल्य ये पर्यायवाची शब्द प्रयोग किये जाएँ तो भी शायद काम ही हैं|
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है | इस मंदिर के बारे में यह बताया जाता है कि लगभग पांच दशक पूर्व सन् 1960 में मानस मंदिर के निर्माण कार्य का शिलान्यास हुआ था और सन् 1964 में तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्लीडॉ.राधाकृष्णन ने नवनिर्मित मंदिर का उद्घाटन किया।
यह मंदिर सेठ रतन लाल सुरेकाने अपने माता-पिता की स्मृति को जीवंत रखने के उद्देश्य से बनवाया। मकरानाव जोधपुर के सफेद संगममरमर से बने चमचमाते मंदिर की विशाल इमारत हर शख्स को अभिभूत करती हैं। विशाल प्रस्तर खंडों पर संपूर्ण श्रीराम चरित मानस का आलेख अद्भुत प्रतीत होता है। सफेद पत्थरों की हर दरो-दीवारपर रामचरित मानस, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण आदि के संपूर्ण दोहे, पद व छंद विधिवत उकेरे गए हैं।
इस विशाल मंदिर के उत्तर दिशा में हिमालय से गंगा अवतरण का दृश्य है तो दक्षिण में रामेश्वर मंदिर। माता सीता की कुटी भी अपने आप में अद्वितीय है। मंदिर के सौन्दर्य को बखूबी तराशा-निखारा गया है। पत्थरों की चमक इतनी प्रखर है कि लोग देखते ही रह जाते हैं। सुखद अनुभव कराता है मंदिर परिसर में विचरण। ऐसा लगता है जैसे मानस मंदिर का निर्माण कराने वालों ने अपने जीवन के हर अनुभव को, यहां तक की अध्यात्म को भी अपने नजरिए से देखा हो। मंदिर परिसर में मूल विग्रह भगवान राम, लक्ष्मण, जानकी व हनुमान का है। इसके दायीं ओर माता अन्नपूर्णा व बाबा विश्वनाथ का विग्रह है और बांयीओर श्रीसत्यनारायणभगवान का यानी लक्ष्मी नारायण का।
यहाँ के एक ज्योतिषी ने बताया है कि अनादि काल से महोत्सवोंव मेलों की नगरी रही काशी में मानस मंदिर ही एकमात्र ऐसा केंद्र है, जिसने मेला संस्कृति को आज भी स्थायी रूप से सहेज कर रखा है। काशी आरंभ से ही विष्णु और शिव की मिलन नगरी के रूप में प्रतिष्ठित रही है, जहां पहले पंचगंगाघाट पर बिन्दु माधव इसका केंद्र हुआ करता था, आज वह केंद्र मानस मंदिर हो गया है।
यह मंदिर उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है | इस मंदिर के बारे में यह बताया जाता है कि लगभग पांच दशक पूर्व सन् 1960 में मानस मंदिर के निर्माण कार्य का शिलान्यास हुआ था और सन् 1964 में तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्लीडॉ.राधाकृष्णन ने नवनिर्मित मंदिर का उद्घाटन किया।
यह मंदिर सेठ रतन लाल सुरेकाने अपने माता-पिता की स्मृति को जीवंत रखने के उद्देश्य से बनवाया। मकरानाव जोधपुर के सफेद संगममरमर से बने चमचमाते मंदिर की विशाल इमारत हर शख्स को अभिभूत करती हैं। विशाल प्रस्तर खंडों पर संपूर्ण श्रीराम चरित मानस का आलेख अद्भुत प्रतीत होता है। सफेद पत्थरों की हर दरो-दीवारपर रामचरित मानस, हनुमान चालीसा, बजरंग बाण आदि के संपूर्ण दोहे, पद व छंद विधिवत उकेरे गए हैं।
इस विशाल मंदिर के उत्तर दिशा में हिमालय से गंगा अवतरण का दृश्य है तो दक्षिण में रामेश्वर मंदिर। माता सीता की कुटी भी अपने आप में अद्वितीय है। मंदिर के सौन्दर्य को बखूबी तराशा-निखारा गया है। पत्थरों की चमक इतनी प्रखर है कि लोग देखते ही रह जाते हैं। सुखद अनुभव कराता है मंदिर परिसर में विचरण। ऐसा लगता है जैसे मानस मंदिर का निर्माण कराने वालों ने अपने जीवन के हर अनुभव को, यहां तक की अध्यात्म को भी अपने नजरिए से देखा हो। मंदिर परिसर में मूल विग्रह भगवान राम, लक्ष्मण, जानकी व हनुमान का है। इसके दायीं ओर माता अन्नपूर्णा व बाबा विश्वनाथ का विग्रह है और बांयीओर श्रीसत्यनारायणभगवान का यानी लक्ष्मी नारायण का।
यहाँ के एक ज्योतिषी ने बताया है कि अनादि काल से महोत्सवोंव मेलों की नगरी रही काशी में मानस मंदिर ही एकमात्र ऐसा केंद्र है, जिसने मेला संस्कृति को आज भी स्थायी रूप से सहेज कर रखा है। काशी आरंभ से ही विष्णु और शिव की मिलन नगरी के रूप में प्रतिष्ठित रही है, जहां पहले पंचगंगाघाट पर बिन्दु माधव इसका केंद्र हुआ करता था, आज वह केंद्र मानस मंदिर हो गया है।
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