गंगा भारत वर्षे भातृरूपेण संस्थिता/नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः जो स्वयं में एक इतिहास हो, जो देश की परम्परा, समाज, धर्म, कला, संस्कृति की जीवन रेखा हो, जिसे पतित पावन नदी का गौरव प्राप्त हो, जिससे देश-विदेश के लोग प्यार करते हों, जो हमेशा से समृद्धि से जुड़ी हो, आशा-निराशा, हार-जीत से जुड़ी हो, जिसने भारत की अनेक में भी एक संस्कृति का भरण पोषण किया हो, जो वर्षों से देश की सभी नदियों का नेतृत्व करती हो, जिसे हम और हमारे पुरखे माँ का दर्जा देते रहे हों, जिसने हिमालय से निकल कर मैदानों को सजाया-संवारा, खलिहानों में ही नहीं जिसने घरों में भी हरियाली भर दी हो, हम उसी मुक्तिदायिनी गंगा मईया की बात कर रहे हैं। गंगा नदी पर टीम पर्दाफाश की विशेष रिपोर्ट .........|
पतित पावन गंगा नदी जिसे सभी हिन्दू गंगा मईया भी कहते हैं कि, प्रधान शाखा भागीरथी है जो उत्तराखंड के कुमायूँ इलाके में पर्वतराज हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। गंगा के इस उद्गम स्थल की समुद्र तल से ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ एक मंदिर है जहाँ देवी गंगा की मूर्ति स्थापित है इस मंदिर की मान्यता सारे देश में है। गंगोत्री ग्लेशियर 25 किमी लंबा और 4 किमी चौड़ा होने के साथ ही लगभग 40 मी. ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी (गंगा नदी का एक नाम ) एक छोटे से गुफानुमा मुख से अवतरित होती है। इसका जल स्रोत 5000 मी ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है।
गौमुख के मार्ग में 3600 मी ऊँचे चिरबासा ग्राम में विशालकाए गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में नंदा देवी पहाड़ , कामत पर्वत और त्रिशूल पर्वत की बर्फ़ पिघल कर आती है। यहाँ गंगा को अलकनन्दा कहा जाता है इसकी सहयोगी नदियाँ धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। इनमे से एक धौली गंगा का अलकनंदा से विष्णु प्रयाग में मिलन होता है। यह स्थान समुद्र तल से 1372 मी. की ऊँचाई पर स्थित है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनन्दा का कर्ण गंगा (पिंडर नदी) से संगम होता है। इसके उपरांत ऋषिकेश से 139 किमी दूर रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी और अलकनन्दा 1500 फीट पर स्थित देव प्रयाग में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मिलित धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इस तरह 200 किमी का पहाड़ी मार्ग तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श हरी के द्वार "हरिद्वार" में करती है।
इसके बाद आरंभ होती है गंगा की मैदानी यात्रा हरिद्वार से लगभग 800 किमी यात्रा करते हुए उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर,सोरों, फर्रुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर होते हुए गंगा इलाहाबाद (प्रयाग) पहुँचती है। यहाँ इसका संगम एक और बड़ी नदी यमुना से होता है। यह संगम दुनिया भर के हिन्दुओं के लिए महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यह यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से मीरजापुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे सोन, गंडक, घाघरा, कोसी आदि मिल जाती हैं।
भागलपुर में राजमहल की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है-भागीरथी और पद्मा। भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई फरक्का बैराज (जो 1974 में निर्मित हुआ ) से होती हुयी बंगला देश में प्रवेश कर जाती है। यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम हुगली नदी है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6-4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादो से पाट रही है | गंगा नदी कि गहराई मैदानी इलाको में 1000 से 2000 मीटर है।
गंगा से जुड़ा पौराणिक प्रसंग
हिन्दू पुराणों और धर्मं ग्रंथों में गंगा नदी से जुडी अनेक कथाएँ हैं। कथाओं के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु के पैर के पसीने की बूँदों से गंगा का निर्माण किया। एक कथा में उल्लेख है कि राजा सगर के साठ हजार बेटे थे| एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक अश्व मेघ यज्ञ किया। यज्ञ के लिये घोड़ा आवश्यक था जो ईर्ष्यालु इंद्र ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सभी पुत्रों को घोड़े की तलाश में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला जो एक ऋषि के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया।तपस्या में लीन ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गये। सगर के पुत्रों की आत्माएँ मोक्ष न मिलने के चलते अतृप्त थी|
सगर के एक मात्र बचे पुत्र अंशुमान ने इन अतृप्त आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी।राजा भागीरथ ,राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके अंतिम संस्कार कर, राख को गंगाजल में प्रवाहित किया जा सके|
भागीरथ ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति संभव हो सके। तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊँचाई से जब पृथ्वी पर गिरूँगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तब भागीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया, और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भागीरथ के पीछे-पीछे गंगा सागरसंगम तक गई, जहाँ सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिये श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं।
एतिहासिक प्रसंग
“आईना- ए -अकबरी में उल्लेखित हैं की जब शहंशाह अकबर को प्यास लगती थी तो वे गंगा का जल पीना पसंद करते थे .यह निश्चित करने के लिए कि शहंशाह को ताजा और शुद्ध जल ही मिलता रहे ,इसके लिए अलग विभाग का गठन किया गया था .बाद में अकबर के उत्तराधिकारी जहाँगीर|" ने भी गंगा का जल ही पीना पसंद करते थे |
गंगा नदी को उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड भी कहा गया है। यहाँ तीसरी सदी में अशोक महान के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित मुग़ल साम्राज्य तक सारी सभ्यताएँ विकसित हुईं। गंगा नदी अपना अधिकांश सफ़र भारतीय इलाक़े में ही तय करती है, लेकिन उसके विशाल डेल्टा क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा बांग्लादेश में है। गंगा के प्रवाह की सामान्यत: दिशा उत्तर-पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की तरफ है और डेल्टा क्षेत्र में प्रवाह आमतौर से दक्षिण मुखी है।
रिपोर्ट का शेष भाग .....
पतित पावन गंगा नदी जिसे सभी हिन्दू गंगा मईया भी कहते हैं कि, प्रधान शाखा भागीरथी है जो उत्तराखंड के कुमायूँ इलाके में पर्वतराज हिमालय के गोमुख नामक स्थान पर गंगोत्री हिमनद से निकलती है। गंगा के इस उद्गम स्थल की समुद्र तल से ऊँचाई 3140 मीटर है। यहाँ एक मंदिर है जहाँ देवी गंगा की मूर्ति स्थापित है इस मंदिर की मान्यता सारे देश में है। गंगोत्री ग्लेशियर 25 किमी लंबा और 4 किमी चौड़ा होने के साथ ही लगभग 40 मी. ऊँचा है। इसी ग्लेशियर से भागीरथी (गंगा नदी का एक नाम ) एक छोटे से गुफानुमा मुख से अवतरित होती है। इसका जल स्रोत 5000 मी ऊँचाई पर स्थित एक बेसिन है।
गौमुख के मार्ग में 3600 मी ऊँचे चिरबासा ग्राम में विशालकाए गोमुख हिमनद के दर्शन होते हैं। इस हिमनद में नंदा देवी पहाड़ , कामत पर्वत और त्रिशूल पर्वत की बर्फ़ पिघल कर आती है। यहाँ गंगा को अलकनन्दा कहा जाता है इसकी सहयोगी नदियाँ धौली, विष्णु गंगा तथा मंदाकिनी है। इनमे से एक धौली गंगा का अलकनंदा से विष्णु प्रयाग में मिलन होता है। यह स्थान समुद्र तल से 1372 मी. की ऊँचाई पर स्थित है। इसके बाद कर्ण प्रयाग में अलकनन्दा का कर्ण गंगा (पिंडर नदी) से संगम होता है। इसके उपरांत ऋषिकेश से 139 किमी दूर रुद्र प्रयाग में अलकनंदा मंदाकिनी से मिलती है। इसके बाद भागीरथी और अलकनन्दा 1500 फीट पर स्थित देव प्रयाग में संगम करती हैं यहाँ से यह सम्मिलित धारा गंगा नदी के नाम से आगे प्रवाहित होती है। इस तरह 200 किमी का पहाड़ी मार्ग तय करके गंगा नदी ऋषिकेश होते हुए प्रथम बार मैदानों का स्पर्श हरी के द्वार "हरिद्वार" में करती है।
इसके बाद आरंभ होती है गंगा की मैदानी यात्रा हरिद्वार से लगभग 800 किमी यात्रा करते हुए उत्तर प्रदेश के गढ़मुक्तेश्वर,सोरों, फर्रुखाबाद, कन्नौज, बिठूर, कानपुर होते हुए गंगा इलाहाबाद (प्रयाग) पहुँचती है। यहाँ इसका संगम एक और बड़ी नदी यमुना से होता है। यह संगम दुनिया भर के हिन्दुओं के लिए महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इसे तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है। इसके बाद हिन्दू धर्म की प्रमुख मोक्षदायिनी नगरी काशी (वाराणसी) में गंगा एक वक्र लेती है, जिससे यह यहाँ उत्तरवाहिनी कहलाती है। यहाँ से मीरजापुर, पटना, भागलपुर होते हुए पाकुर पहुँचती है। इस बीच इसमें बहुत-सी सहायक नदियाँ, जैसे सोन, गंडक, घाघरा, कोसी आदि मिल जाती हैं।
भागलपुर में राजमहल की पहाड़ियों से यह दक्षिणवर्ती होती है। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के गिरिया स्थान के पास गंगा नदी दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है-भागीरथी और पद्मा। भागीरथी नदी गिरिया से दक्षिण की ओर बहने लगती है जबकि पद्मा नदी दक्षिण-पूर्व की ओर बहती हुई फरक्का बैराज (जो 1974 में निर्मित हुआ ) से होती हुयी बंगला देश में प्रवेश कर जाती है। यहाँ से गंगा का डेल्टाई भाग शुरू हो जाता है। मुर्शिदाबाद शहर से हुगली शहर तक गंगा का नाम भागीरथी नदी तथा हुगली शहर से मुहाने तक गंगा का नाम हुगली नदी है। गंगा का यह मैदान मूलत: एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वतमाला निर्माण प्रक्रिया के तीसरे चरण में लगभग 6-4 करोड़ वर्ष पहले हुआ था। तब से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ लाए हुए अवसादो से पाट रही है | गंगा नदी कि गहराई मैदानी इलाको में 1000 से 2000 मीटर है।
गंगा से जुड़ा पौराणिक प्रसंग
हिन्दू पुराणों और धर्मं ग्रंथों में गंगा नदी से जुडी अनेक कथाएँ हैं। कथाओं के अनुसार ब्रह्मा ने विष्णु के पैर के पसीने की बूँदों से गंगा का निर्माण किया। एक कथा में उल्लेख है कि राजा सगर के साठ हजार बेटे थे| एक दिन राजा सगर ने देवलोक पर विजय प्राप्त करने के लिये एक अश्व मेघ यज्ञ किया। यज्ञ के लिये घोड़ा आवश्यक था जो ईर्ष्यालु इंद्र ने चुरा लिया था। सगर ने अपने सभी पुत्रों को घोड़े की तलाश में भेज दिया अंत में उन्हें घोड़ा पाताल लोक में मिला जो एक ऋषि के समीप बँधा था। सगर के पुत्रों ने यह सोच कर कि ऋषि ही घोड़े के गायब होने की वजह हैं उन्होंने ऋषि का अपमान किया।तपस्या में लीन ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गये। सगर के पुत्रों की आत्माएँ मोक्ष न मिलने के चलते अतृप्त थी|
सगर के एक मात्र बचे पुत्र अंशुमान ने इन अतृप्त आत्माओं की मुक्ति का असफल प्रयास किया और बाद में अंशुमान के पुत्र दिलीप ने भी।राजा भागीरथ ,राजा दिलीप की दूसरी पत्नी के पुत्र थे। उन्होंने अपने पूर्वजों का अंतिम संस्कार किया। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर लाने का प्रण किया जिससे उनके अंतिम संस्कार कर, राख को गंगाजल में प्रवाहित किया जा सके|
भागीरथ ने ब्रह्मा की घोर तपस्या की ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। ब्रह्मा प्रसन्न हुये और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिये तैयार हुये और गंगा को पृथ्वी पर और उसके बाद पाताल में जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति संभव हो सके। तब गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊँचाई से जब पृथ्वी पर गिरूँगी, तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? तब भागीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया, और उन्होंने अपनी खुली जटाओं में गंगा के वेग को रोक कर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भागीरथ के पीछे-पीछे गंगा सागरसंगम तक गई, जहाँ सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। शिव के स्पर्श से गंगा और भी पावन हो गयी और पृथ्वी वासियों के लिये श्रद्धा का केन्द्र बन गयीं। पुराणों के अनुसार स्वर्ग में गंगा को मन्दाकिनी और पाताल में भागीरथी कहते हैं।
एतिहासिक प्रसंग
“आईना- ए -अकबरी में उल्लेखित हैं की जब शहंशाह अकबर को प्यास लगती थी तो वे गंगा का जल पीना पसंद करते थे .यह निश्चित करने के लिए कि शहंशाह को ताजा और शुद्ध जल ही मिलता रहे ,इसके लिए अलग विभाग का गठन किया गया था .बाद में अकबर के उत्तराधिकारी जहाँगीर|" ने भी गंगा का जल ही पीना पसंद करते थे |
गंगा नदी को उत्तर भारत की अर्थव्यवस्था का मेरुदण्ड भी कहा गया है। यहाँ तीसरी सदी में अशोक महान के साम्राज्य से लेकर 16वीं सदी में स्थापित मुग़ल साम्राज्य तक सारी सभ्यताएँ विकसित हुईं। गंगा नदी अपना अधिकांश सफ़र भारतीय इलाक़े में ही तय करती है, लेकिन उसके विशाल डेल्टा क्षेत्र का अधिकांश हिस्सा बांग्लादेश में है। गंगा के प्रवाह की सामान्यत: दिशा उत्तर-पश्चिमोत्तर से दक्षिण-पूर्व की तरफ है और डेल्टा क्षेत्र में प्रवाह आमतौर से दक्षिण मुखी है।
रिपोर्ट का शेष भाग .....
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