उत्तर प्रदेश के कई हिस्सों में पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश
और नदियों के जलस्तर में वृद्धि को देखते हुए लगता है कि राज्य भीषण बाढ़
संकट का सामना कर सकता है।
राज्य के करीब 32 जिलों में बाढ़ का खतरा है। पिछले साल मानसून के दौरान 398 लोगों की जान गई थी। कुछ अधिकारियों का कहना है कि पिछले साल की स्थिति से कुछ नहीं सीखा गया।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, बाढ़ राहत और रोकथाम से संबंधित कार्य पूरा करने के लिए 15 जून की तिथि निर्धारित किए जाने के बावजूद राज्य सरकार ने नदियों के बांधों को मजबूत बनाने के लिए मंजूर 725 करोड़ रुपये की राशि में से बहुत कम राशि खर्च की।
एक अधिकारी ने बताया कि सिंचाई विभाग ने अब तक केवल 29.35 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। उन्होंने बताया कि पश्चिमी एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में नदियों के बांध टूट गए हैं।
एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि मानसून की पहली ही बारिश के बाद स्थिति गंभीर है। केवल ईश्वर ही जानता है कि यदि बारिश तेज हुई तो आगे क्या स्थिति होगी।
उन्होंने बताया कि सिंचाई विभाग को अग्रिम भुगतान के तौर पर 183.57 करोड़ रुपये दिए गए थे, जिनमें से करीब 150 करोड़ रुपये का अब तक इस्तेमाल नहीं किया गया।
सिंचाई विभाग की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि श्रीनगर तथा बलिया सहित कई इलाकों में मरम्मत के कार्य या तो जल्दबाजी में किए गए या नहीं किए गए। इससे हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।
सिंचाई विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि यदि पिछले कुछ दिनों की बारिश से यह स्थिति है तो आगे क्या होगा, इसे लेकर मैं डरा हुआ हूं।
हर साल सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती, गोरखपुर, महराजगंज, सहारनपुर, बांदा तथा हमीरपुर जिले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। इस मौसम के दौरान गंगा, यमुना, बेतवा, घाघरा तथा सरयू नदी में पानी का स्तर अक्सर ऊंचा हो जाता है।
खतरे को भांपते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने धीमी गति से मरम्मत कार्यो के लिए अधिकारियों को फटकार लगाई है। साथ ही दवाओं का स्टॉक रखने और खतरे वाले स्थानों पर प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी के कर्मचारियों की तैनाती करने के निर्देश दिए गए हैं। राज्य सरकार ने मंगलवार को मुख्य सचिव के नेतृत्व में बाढ़ प्रबंधन समूह का गठन किया है।
राज्य के करीब 32 जिलों में बाढ़ का खतरा है। पिछले साल मानसून के दौरान 398 लोगों की जान गई थी। कुछ अधिकारियों का कहना है कि पिछले साल की स्थिति से कुछ नहीं सीखा गया।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार, बाढ़ राहत और रोकथाम से संबंधित कार्य पूरा करने के लिए 15 जून की तिथि निर्धारित किए जाने के बावजूद राज्य सरकार ने नदियों के बांधों को मजबूत बनाने के लिए मंजूर 725 करोड़ रुपये की राशि में से बहुत कम राशि खर्च की।
एक अधिकारी ने बताया कि सिंचाई विभाग ने अब तक केवल 29.35 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। उन्होंने बताया कि पश्चिमी एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में नदियों के बांध टूट गए हैं।
एक अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा कि मानसून की पहली ही बारिश के बाद स्थिति गंभीर है। केवल ईश्वर ही जानता है कि यदि बारिश तेज हुई तो आगे क्या स्थिति होगी।
उन्होंने बताया कि सिंचाई विभाग को अग्रिम भुगतान के तौर पर 183.57 करोड़ रुपये दिए गए थे, जिनमें से करीब 150 करोड़ रुपये का अब तक इस्तेमाल नहीं किया गया।
सिंचाई विभाग की ओर से कराए गए एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि श्रीनगर तथा बलिया सहित कई इलाकों में मरम्मत के कार्य या तो जल्दबाजी में किए गए या नहीं किए गए। इससे हजारों लोगों की जान खतरे में पड़ सकती है।
सिंचाई विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि यदि पिछले कुछ दिनों की बारिश से यह स्थिति है तो आगे क्या होगा, इसे लेकर मैं डरा हुआ हूं।
हर साल सिद्धार्थनगर, श्रावस्ती, गोरखपुर, महराजगंज, सहारनपुर, बांदा तथा हमीरपुर जिले बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। इस मौसम के दौरान गंगा, यमुना, बेतवा, घाघरा तथा सरयू नदी में पानी का स्तर अक्सर ऊंचा हो जाता है।
खतरे को भांपते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव जावेद उस्मानी ने धीमी गति से मरम्मत कार्यो के लिए अधिकारियों को फटकार लगाई है। साथ ही दवाओं का स्टॉक रखने और खतरे वाले स्थानों पर प्रोविंशियल आर्म्ड कांस्टेबुलरी के कर्मचारियों की तैनाती करने के निर्देश दिए गए हैं। राज्य सरकार ने मंगलवार को मुख्य सचिव के नेतृत्व में बाढ़ प्रबंधन समूह का गठन किया है।
पर्दाफाश से साभार
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