गाड़ियों से ज्यादा शोर मचाती हैं गौरैया


अब तक तो यही माना जाता था कि शहरों में सबसे ज्यादा शोर वाहनों की वजह से होता है लेकिन हाल में आई एक रिपोर्ट के अनुसार इनसे ज्यादा शोर शहरी क्षेत्र में रहने वाले गौरैया मचाती हैं। 


वर्जीनिया के जॉर्ज मेशन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेविड लुथर का मानना है कि ये गौरैया अपने पूवर्जो से ज्यादा शोर मचाती हैं। उन्होंने इसकी पुष्टि के लिए 1960 के दौरान उनके पूर्वजों किए जाने वाले कलरव की विशेष ध्वनि की रिकॉर्डिग से उनके आवाज की तुलना की, जो वर्ष 2005 में सैन फ्रांसिस्को में रिकॉर्ड की गई थी। 


डेविड लुथर ने अपने शोध के दौरान पाया कि गौरैया अपने पूर्वजों से ज्यादा तेज आवाजें निकालती हैं और उनके पूर्वजों द्वारा किए जाने वाले कलरव का अब कोई अस्तित्व नहीं रहा है। वर्ष 1960 के दौरान उजले मत्थे वाले गौरैये तीन क्षेत्रीय ध्वनियों के कलरव किया करते थे। तीस साल बाद उनकी संख्या घटकर दो हो गई और अब सिर्फ एक ही ध्वनि के कलरव शेष रह गए हैं, जो सैन फ्रांसिस्को के क्षेत्रीय कलरव के रूप में रह गई हैं।


शोधकर्ताओं का मानना है कि यह आखिरी कलरव काफी ऊंची ध्वनि के साथ किया जाता है, जिसे सीखना काफी आसान होता है। इस वजह से यह वातावरण में आसानी से सुनी जा सकती है। लुथर ने इस बारे में कहा कि अन्य शोध में जहां शहरों और देश के चिड़ियों के कलरव के बीच के अंतर को दिखाया गया है, वहीं उनके शोध में एक क्षेत्र विशेष के कलरव को स्थान दिया गया है। 


इससे पहले भी चिड़ियों के कलरव पर कई शोध प्रकाशित हो चुके हैं। जिनमें अलग-अलग तथ्य सामने आए हैं। एक शोध में यह पाया गया है कि बर्लिन के बुलबुल, जंगलों में रहने वाले बुलबुल से 14 डेसीबल ज्यादा तेजी से आवाज निकालते हैं। शहरों में रहने वाली इन चिड़ियों की आवाज, कार और अन्य वाहनों की अपेक्षा ज्यादा शोर मचाती हैं।

कोई टिप्पणी नहीं: