जाने क्यों करते हैं भगवान की परिक्रमा

शास्त्रों में भगवान को प्रसन्न करने के लिए कई मार्ग बताए गए हैं। यह अलग-अलग विधियां भगवान की प्रसन्नता दिलाती है जिससे हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए लोग मंदिर या भगवान् की प्रतिमा की परिक्रमा करते हैं| वैसे तो सभी देवी देवताओं की परिक्रमा की जाती है| क्या आप जानते हैं भगवान की परिक्रमा क्यों की जाती है?

आपको बता दें कि मंदिर में आरती, पूजा, मंत्रों उच्चारण व विविध प्रकार की साधना के उपरांत भगवान के श्री स्वरूप के चारों ओर दिव्य प्रभा और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है, इस ऊर्जा को ग्रहण करने के लिए परिक्रमा की जाती है। इससे ज्योतिर्मडल से निकलने वाले तेज की सहज ही प्राप्ति हो जाती है। 

हिन्दू धर्म शास्त्रों में अलग-अलग देवी देवताओं के लिए परिक्रमा की अलग-अलग संख्या भी निर्धारित की गई है| श्रीराम भक्त हनुमान व पर्वत्री नंदन गणेश की तीन परिक्रमा करनी चाहिए| इसके अलावा भगवान भोलेनाथ की आधी परिक्रमा की जाती है| भगवान विष्णुजी एवं उनके सभी अवतारों की चार परिक्रमा करनी चाहिए। इसके अलावा देवियों की तीन परिक्रमा करने का विधान है|

देवी देवताओं की परिक्रमा करते समय ध्यान रहे कि परिक्रमा करते समय बीच में रुकना नहीं चाहिए| इसके अलावा परिक्रमा जहाँ से शुरू करें खत्म भी वहीँ करें। इसके अलावा परिक्रमा करते समय बातचीत बिलकुल न करें और मन में जिस जिस देवी या देवता को परिक्रमा कर रहे हैं उसका सुमिरन करते रहें|

परिक्रमा से पहले देवी-देवताओं से प्रार्थना करें। हाथ जोडकर, भावपूर्ण नाम जप करते हुए मध्यम गति से परिक्रमा लगाएं। ऐसा करते समय गर्भगृह को स्पर्श न करें। परिक्रमा लगाते हुए, देवता की पीठ की ओर पहुंचने पर रुकें एवं देवता को नमस्कार करें।

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