जुलाई: कुछ तो खास है इस महीने में, प्रसिद्ध लोगों का प्रसिद्ध महीना...

भारत में किसी भी बात को आम होने और आम से खास होने में ज्यादा वक़्त नही लगता| कहते है कि वक़्त, जगह, समाज, लोग, सभी पहलुओं से कुछ ऐसी बाते जुडी रहती है, जो उस व्यक्ति या समय को खास बना देती है, ऐसा ही कुछ है, इंग्लिश कैलेण्डर के हिसाब से सातंवे महीने में आने वाले जुलाई महीने का| जुलाई की खासियत यह है कि इस महीने जन्म लेने वाले लोग किसी न किसी वजह से चर्चा में जरुर रहते है|

वैसे तो इस महीने में पूरे विश्व में करोड़ों लोगो ने जन्म लिया होगा पर उन करोड़ों लोगो में जो विशिष्ट लोग शामिल हुए उन्होंने अपने अपने क्षेत्रो में कुछ अलग पहचान बनाई, साथ ही इस महीने में कुछ ऐसी शख्सियते भी रही जिन्होंने अपनी देह को भी छोड़ा भी है| ऐसे ही कुछ खास लोगो के बारे में जब लिखने के लिए सोचा गया तो फिल्म उद्योग से लेकर बड़े राजनेताओ के साथ वह शख्सियते भी सामने आई जिन्होंने अपने खास हुनर से लोगो का दिल जीत लिया| भारतीय राजनीति के धुरंधर बाबू जगजीवन राम हो या फिर भारत को दो विश्व कप दिलाने वाले धोनी, युवा दिलो की धड़कन कैटरिना कैफ हो, या पूर्व विश्व सुंदरी और देसी गर्ल के खिताब से नवाजी गई बॉलीवूड अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा या कभी आम ज़िन्दगी में खलनायक घोषित किये गए संजय दत्त हो, अपने उपन्यासों से समाज का आइना दिखाने वाले साहित्यकार और उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद्र, विश्व को शांति का पाठ पढ़ाने वाले दलाई लामा सहित दर्जनों ऐसी शख्सियत है, जो इस महीने पैदा हुई और इन्होने अपने अपने क्षेत्रो में इतना नाम किया कि लोग आज उनके नाम और काम के मुरीद है| 

1- कैटरीना कैफ: हिंदी सिनेमा की बार्बी डॉल यानी की कैटरीना कैफ का जन्म 16 जुलाई 1984 को हाँगकाँग में हुआ था| फिल्म जगत में वर्ष 2003 में आई फिल्म 'बूम' से कदम रखने वाली कैटरीना अभिनेता सलमान खान की खासम-खास मानी जाती है| यहाँ तक कि बॉलीवुड में उन्हें सलमान ही लेकर आये थे| क्यूट से चेहरे वाली कैटरीना अपनी शालीनता के लिए भी काफी मशहूर हैं| अपने माता-पिता की आठ संतानों में से एक कैटरीना इन दिनों बॉलीवुड की सबसे डिमांडिंग अभिनेत्रियों में से एक हैं|

कैटरीना का बचपन और पढाई-लिखाई हवाई, चीन, जापान, फ्रांस, पोलेंड, जर्मनी, बेल्जियम और अन्य यूरोपीय देशों में हुई। शुरूआती दिनों में उन्हें हिंदी न के बराबर आती थी, जिसकी वजह से उन्हें इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी लेकिन अब वह काफी हद तक स्पष्ट हिंदी बोल लेती हैं|

2- प्रियंका चोपड़ा: वर्ष 2003 में आई फिल्म 'अंदाज' में मुख्य भुमिका निभाकर बॉलीवुड में कदम रखने वाली अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा का जन्म झारखण्ड के जमशेदपुर में 18 जुलाई, 1982 को हुआ था| 'पिग्गी चोप्स' के नाम से भी मशहूर प्रियंका ने वर्ष 2000 में ‘मिस इंडिया वर्ल्‍ड’ का ताज पहना और फिर प्रियंका ने ‘मिस वर्ल्‍ड’ प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्‍व कर ‘मिस वर्ल्‍ड-2000’ का खिताब जीता। प्रियंका ने अब तक के करियर में वैसे तो कई बड़े व छोटे बजट की फ़िल्में की लेकिन वर्ष 2008 में आई उनकी फिल्म 'फैशन' ने सफलता के नए आयाम लिखे| 

अपने ग्लैमरस लुक और अट्रैक्टिव मुस्कराहट की वजह से प्रियंका आज लाखों दिलों पर राज करती हैं| वैसे प्रियंका के बारे में यह बात कम लोग ही जानते होंगें कि वह ऐसी दूसरी और आखिरी अभिनेत्री हैं, जिनको 'फिल्मफेयर बेस्ट विलन अवार्ड' से नवाज़ा गया है| यह अवार्ड उन्हें वर्ष 2005 में आई फिल्म 'एतराज' के लिए मिला|

3- संजय दत्त: अपने खास स्टाइल के लिए मशहूर हिंदी सिनेमा के अभिनेता संजय दत्त का जन्म 29 जुलाई, 1959 को मुंबई में अभिनेता सुनील दत्त व अभिनेत्री नर्गिस दत्त के घर में हुआ| संजय दत्त ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1981 में आई फिल्म 'रॉकी' से की थी| यह फिल्म एक हिट साबित हुई थी लेकिन इसके बाद उनकी जिंदगी में कुछ ऐसा हुआ कि वह अपने आगे बढने से पहले ही गिर गये| उनके पिता ने उन्हें जैसे-तैसे संभाला उसके बाद उन्होंने वर्ष 1982 में आई फिल्म 'विधाता' से वापसी की| 

संजय को वर्ष 1991 में आई फिल्म 'साजन' से बड़ी सफलता का स्वाद चखने को मिला| युवाओं के बीच अपने टफ लुक की वजह से खासे लोकप्रिय संजय ने राजनीति में भी हाथ अजमाया है लेकिन शायद उन्हें राजनीति ज्यादा रास नहीं आई और कुछ समय बाद ही उन्होंने इससे किनारा कर लिया| अपने फैन्स के बीच संजू बाबा के नाम से मशहूर संजय का वैवाहिक जीवन काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा| उनकी पहली शादी वर्ष 1989 में अभिनेत्री रिचा सिंह से हुई लेकिन रिचा और उनका साथ लम्बा न चल सका और उनकी मौत हो गई, इसके बाद उन्होंने मॉडल रिया पिल्लै को वर्ष 1998 में अपनी जीवनसंगिनी बनाया लेकिन यह रिश्ता भी सफल नहीं रहा और वह दोनों वर्ष 2005 में आपसी सहमती से अलग हो गये| इसके बाद वर्ष 2008 में संजय ने अपनी दोस्त मान्यता को अपना हमसफर बनाया|

4- सोनू निगम: 'सूरज हुआ मद्धम' , 'कल हो न हो' और 'अब मुझे रात दिन' जैसे बेहतरीन गीत गाने वाले मशहूर प्ले बैक सिंगर सोनू निगम का जन्म 30 जुलाई, 1973 को हरियाणा के फरीदाबाद में हुआ था| सोनू ने 'रफ़ी की यादें' एल्बम से अपने कॅरियर की शुरुआत की लेकिन वर्ष 1995 में फिल्म 'सनम बेवफा' के गीत 'अच्छा सिला दिया तुने' से उन्हें अपार सफलता मिली| सोनू के बारे में यह बात कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने फ़राह ख़ान की फ़िल्म ‘तीस मार ख़ां’ के एक गीत को 54 अलग-अलग आवाज़ों में गाया है| तीन साल की उम्र में गायन की शुरुआत करने वाले सोनू के जीवन में लोकप्रिय टी. वी. प्रोग्राम 'सारेगामापा' के आने के बाद से नया मोड़ आ गया था|

सोनू को ज्यादातर मोहम्मद रफी के गीतों के लिए जाना जाता है। उनके कुछ हिट गाने इस प्रकार हैं - 'संदेसे आतें हैं' , 'इश्क बिना' , 'साथिया' , कल हो न हो' , 'कभी अलविदा न कहना' आदि|

5- नसीरुद्दीन शाह:प्रतिभाशाली अभिनेता-निर्देशक नसीरुद्दीन शाह का जन्म उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में 20 जुलाई, 1950 में हुआ था| नसीरुद्दीन शाह को इंडस्ट्री में अपने आपको स्थापित करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी थी| रंगमंच से होते हुए उन्होंने मेन सिनेमा में जगह बनाई| वर्ष 1983 में आई फिल्म ‘मासूम’, उनके करियर की मुख्य फिल्मों में से एक हैं| इसके बाद उन्होंने बहुत सी बेहतरीन फ़िल्में दी जिनमे, ‘कर्मा’, ‘इजाज़त’, ‘जलवा’, ‘हीरो हीरालाल’, ‘गुलामी’, ‘विश्वात्मा’, ‘मोहरा’, ‘सरफ़रोश’ जैसी कमर्शियल फिल्में शामिल है|

फिल्म 'इकबाल', 'द डर्टी पिक्चर', 'आक्रोश' में उनके अभिनय के लिए काफी सराहना भी मिली| शाह को वर्ष 1987 में बेहतर अभिनय के लिए 'पद्मश्री' और वर्ष 2003 में 'पद्म भूषण' से नवाजा जा चुका है। साथ ही वह फिल्म निर्देशन में भी हाथ आजमा चुके हैं|

6- राजेंद्र कुमार: फिल्म 'मदर इण्डिया' में अभिनय कर चर्चा में आये अभिनेता राजेंद्र कुमार का जन्म पश्चिम पंजाब के सियालकोट (वर्तमान पाकिस्तान) में 20 जुलाई 1929 को एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था| फिल्म इंडस्ट्री में जुबली कुमार का दर्जा पाने वाली राजेंद्र कभी भी एक तरह भी भूमिका में नहीं बंधे| यह भी एक सच है कि राजेंद्र कुमार को शुरूआती दिनों में बेहद संघर्ष करना पड़ा था| इसके बाद कही जाकर उन्होंने सफलता का स्वाद चखा|

इसके बाद वर्ष 1963 से 1966 के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में राजेन्द्र कुमार की लगातार छह फिल्में हिट रहीं| 'मेरे महबूब' (1963), 'जिन्दगी', 'संगम' और 'आई मिलन की बेला' (1964), 'आरजू' (1965) और 'सूरज' (1966) ने सिनेमाघरों पर धमाल मचा दिया था| राजेंद्र कुमार के फिल्मी योगदान को देखते हुए वर्ष 1969 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया| राजेंद्र कुमार की मृत्यु 12 जुलाई 1999 में मुंबई में हुई थी|

7- दलाई लामा: तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा यानी तेनजिन ग्यात्सो का जन्म 6 जुलाई, 1935 को क्वींगहाई के तक्तसर में हुआ था| तिब्बतियों द्वारा उनके जन्म के दो साल बाद उन्हें 13वें दलाई का अवतार घोषित कर दिया गया | इसके बाद उन्हें औपचारिक रूप से 17 नवंबर, 1950 को 15 साल की उम्र में 14वें दलाई लामा का दर्जा दे दिया गया| दलाई लामा वर्ष 1959 में चीनी शासन के खिलाफ असफल आंदोलन के बाद भारत आ गए थे| 

दरअसल, दलाई लामा एक मंगोलियाई पदवी है, जिसका मतलब होता है ज्ञान का महासागर और दलाई लामा के वंशज करूणा, अवलोकेतेश्वर के बुद्ध के गुणों के साक्षात रूप माने जाते हैं। 

8- मनोज कुमार: अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए मशहूर अभिनेता मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई, 1937 को पाकिस्तान के एबटाबाद में हुआ था। फिल्म इंडस्ट्री में में उन्हें 'भारत कुमार' के नाम से भी जाना जाता है| वैसे उनका असली नाम हरिकिशन गिरि गोस्वामी है। मनोज कुमार ने अपने करियर की शुरूआत वर्ष 1957 में प्रदर्शित फिल्म 'फैशन' से की लेकिन उनका सितारा वर्ष 1962 में प्रदर्शित फिल्म 'हरियाली और रास्ता' से चमका। मनोज कुमार को अपने करियर में सात फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है|

लगभग 30 साल के करियर में 'वो कौन थी', 'हिमालय की गोद में', 'गुमनाम', 'शोर', 'सन्यासी' ,'दस नम्बरी', 'क्लर्क' जैसी ढेरों फ़िल्में देने वाले मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों के जरिये यह सन्देश भी दिया कि देशप्रेम और देशभक्ति क्या होती है। यह भी एक सच है कि जब भी 15 अगस्त और 26 जनवरी का दिन आता है तब लोग 'लोग-मेरे देश की धरती सोना उगले-उगले हीरे मोती' गीत जरूर सुनते हैं और यह गीत मनोज के ऊपर ही फिल्माया गया है|

9- महेंद्र सिंह धोनी: भारतीय क्रिकेट का वो सितारा जो एक छोटे से शहर से निकल कर भारतीय क्रिकेट पर उस धूमकेतु की तरह छा गया जिसको छूना समकालीन क्रिकेट खिलाडियों के लिए मुश्किल है, अपनी कप्तानी में भारत को करीब 30 साल बाद वर्ल्ड कप जिताने वाले धोनी ने भारत को पहला टी-20 चैम्पियन भी बनाया था| जब से इन्होने भारतीय क्रिकेट की कमान संभाली है तब से भारत वन डे क्रिकेट के साथ टेस्ट में भी नंबर वन बना, इस खिलाडी का जन्म 7 जुलाई को पड़ता है, महेंद्र सिंह धोनी रांची में पैदा हुए थे, बचपन से ही क्रिकेट के शौक़ीन धोनी ने कुछ समय भारतीय रेल में टिकट चेकर की नौकरी भी की थी|

10- मुंशी प्रेम चंद्र: हिंदी उर्दू साहित्य के कालजयी साहित्यकार मुंशीप्रेम चंद्र का जन्म उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के लमही गाँव में 31 जुलाई, 1880 में हुआ था, मुंशी प्रेमचंद्र का असली नाम धनपत राय था, उन्होंने लिखना शुरू किया था, नवाब राय के नाम से और प्रसिद्द हुए मुंशी प्रेमचंद्र के नाम से मुंशी प्रेम चंद्र को उपन्यासकार के तौर पर ज्यादा जाना जाता है, उनके लिखे उपन्यासों में समाज का आइना दिखता है, गबन, बाज़ार-ए- हुस्न, कर्मभूमि, शतरंज के खिलाडी,और सेवा सदन मुख्य उपन्यास है|

इस महीने और जिन प्रसिद्ध शख्सियतों ने जन्म लिया उनमे माकपा नेता और भारत के बंगाल राज्य पर सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री पद संभालने वाले ज्योति बसु का जन्म 8 जुलाई को हुआ था| लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई को हुआ था| आज़ादी की लड़ाई में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेने वाले बालगंगाधर तिलक ने स्वराज का नारा दिया, बालगंगाधर तिलक आज़ादी की लड़ाई के अगुवा माने जाते थे|

चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म भी 23 जुलाई को बदरका जिला उन्नाव उत्तर प्रदेश में हुआ था, आज़ादी की लड़ाई में इनका नाम स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है| चंद्रशेखर आज़ाद ने अंग्रेजो से सीधा मुकाबला लिया था| काकोरी ट्रेन में सरकारी खजाना लूटने के प्लान में शामिल चंद्रशेखर आज़ाद को कभी भी अंग्रेज पुलिस पकड़ नही सकी, इनकी मौत भी खुद इनके रिवाल्वर से हुई थी|

'DEATH'

1- दारा सिंह: पहलवान व अभिनेता दारा सिंह ने लम्बी बीमारी से लड़ते हुए 12 जुलाई, 2012 को अपने घर पर अंतिम सांस ली| 84 वर्षीय दारा की हालत इतनी ख़राब थी कि उनकी किडनी, गुर्दे, दिल, दिमाग ने पहले से ही काम करना बंद कर दिया था| 19 नवंबर, 1928 को पंजाब के अमृतसर में जन्मे दारा सिंह ने खेल और मनोरंजन की दुनिया में समान रुप से नाम कमाया| दारा को कुश्ती के लिए 'रुस्तम-ए-हिंद' का खिताब मिला था| वहीं, उन्होंने वर्ष 1952 में फिल्म 'संगदिल' से अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था|

दारा सिंह ने वर्ष 2007 में आई फिल्म 'जब वी मेट' में आखिरी बार अभिनय किया| छोटे पर्दे के लोकप्रिय धारावाहिक 'रामायण' में निभाई गई उनकी हनुमान की भूमिका से उन्हें काफी लोकप्रियता मिली थी|

2- राजेश खन्ना: बॉलीवुड के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना ने 18 जुलाई, 2012 को दुनिया को अलविदा कह दिया| महिला प्रशंसकों के बीच खासे मशहूर राजेश का निधन 69 वर्ष की उम्र में लम्बी बीमारी के बाद हुआ| जिन्दादिली से भरपूर राजेश का असली नाम जतिन खन्ना था| अपने फैन्स के बीच 'काका' के नाम से मशहूर राजेश का साथ अंतिम दिनों में उनसे अलग रह रही उनकी पत्नी व अभिनेत्री डिम्पल कपाडिया व बेटियां ट्विंकल खन्ना, रिंकी और दामाद अक्षय कुमार ने दिया|

'आराधना', 'अमर प्रेम' 'सफर', 'कटी पतंग' और 'आनंद' जैसी फिल्मों में अपने दमदार किरदार से लाखों दिलों पर छाप छोड़ने वाले राजेश के खन्ना के गुजरने के बाद बॉलीवुड जगत में शोक की लहर दौड़ गई| 29 दिसंबर, 1942 को अमृतसर में जन्मे राजेश ने परिवार की मर्जी के खिलाफ अभिनय को बतौर करियर चुना था| जब राजेश खन्ना 24 साल के थे तब उन्होंने फिल्म 'आखिरी खत' से अपने करियर की शुरुआत की थी| हालांकि, उन्हें शुरूआती दिनों में कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली थी लेकिन बाद में मुमताज़, शर्मीला टैगोर, हेमा मालिनी, आशा पारेख, के साथ उनकी जोड़ी को बहुत सराहा गया था|

3- राज कुमार: 'आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं इन्हें ज़मीन पर मत उतारियेगा मैले हो जायेगें' फिल्म 'पाकीजा' का यह संवाद बीते दौर में ही नहीं आज भी सिने प्रेमियों के जुबां पर चढ़ा हुआ है| राज कुमार द्वारा कहीं गयी इन लाइनों ने उनको बेहद लोकप्रिय कर दिया था| लगभग चार दशक तक प्रशंसकों के दिल पर राज करने वाले अभिनेता राज कुमार ने 3 जुलाई, 1996 को इस दुनिया को अलविदा कहा|

राजकुमार ने वर्ष 1952 में प्रदर्शित फ़िल्म 'रंगीली' से अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत की थी लेकिन यह फिल्म चली नहीं| फ़िल्मी दुनिया में आने से पहले राजकुमार मुंबई के माहिम पुलिस स्टेशन में बतौर सब इंस्पेक्टर तैनात थे| वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब ख़ान की फ़िल्म 'मदर इंडिया' में राजकुमार के छोटे से रोल ने उनको जबरदस्त लोकप्रियता दिलाई थी| 'दिल अपना और प्रीत पराई-1960', 'घराना- 1961', 'गोदान- 1963', 'दिल एक मंदिर- 1964', 'दूज का चांद- 1964' जैसी हिट फ़िल्में देने के बाद ऐसा भी समय आया जब राजकुमार फिल्मों में अपनी भूमिका खुद चुनते थे|

राज कुमार का जन्म पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में 8 अक्तूबर 1926 को एक मध्यम वर्गीय कश्मीरी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनका असली नाम कुलभूषण पंडित था जो बाद में बदलकर राज कुमार हो गया|

4- लक्ष्मी सहगल: ब्रिटिश राज से देश को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारी नेता सुभाष चंद्र बोस की नजदीकी सहयोगी लक्ष्मी सहगल आजाद हिंद फोज या इंडियन नेशनल आर्मी की पहली महिला कैप्टन थीं। 97 वर्षीय सहगल का 23 जुलाई, 2012 को कानपुर में निधन हो गया| वर्ष 2002 में एपीजे अब्दुल कलाम के खिलाफ राष्ट्रपति चुनाव में उतरने वाली सहगल ने 24 अक्तूबर 1914 में एक तमिल परिवार में जन्म लिया था|

सहगल ने मद्रास मेडिकल कॉलेज से मेडिकल की शिक्षा ली। फिर वे सिंगापुर चली गईं। सहगल अपने जीवन के अंतिम सालों तक बतौर डॉक्टर कानपुर में अपने घर में बीमारों का इलाज करती रहीं। सहगल को वर्ष 1998 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया था। उनकी बेटी सुभाषिनी अली वर्ष 1989 में कानपुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सांसद भी रहीं|

5- राजेंद्र कुमार: वर्ष 1950 में आई फिल्म 'जोगन' में छोटा सा किरदार निभाकर लोकप्रियता हासिल करने वाले अभिनेता राजेंद्र कुमार का 12 जुलाई, 1999 को निधन हुआ था| पहली बार वह फिल्म 1959 ‘गूंज उठी शहनाई’ में एक अभिनेता के तौर पर दिखे| वैसे राजेंद्र कुमार को जनता ने हमेशा सम्मान दिया| उनकी फिल्मों को इस कदर कामयाबी मिली कि उन्हें 'जुबली कुमार' का नाम दिया गया| इस सफलता के बावजूद राजेंद्र कुमार के पांव हमेशा जमीन पर रहे|

6- बाबू जगजीवन राम: देश के पूर्व उप प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी बाबू जगजीवन राम का निधन 6 जुलाई, 1986 को हुआ था| जगजीवन राम का ऐसा व्यक्तित्व था जिसने कभी भी अन्याय से समझौता नहीं किया और दलितों के सम्मान के लिए हमेशा संघर्षरत रहे। विद्यार्थी जीवन से ही उन्होंने अन्याय के प्रति आवाज़ उठायी। बाबू जगजीवन राम का भारत में संसदीय लोकतंत्र के विकास में काफी योगदान है।

एक दलित के घर में 5 अप्रैल, 1908 को बिहार में भोजपुर में जन्मे बाबू जगजीवन राम पंडित जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में शामिल होने के बाद सत्ता की ऊँची सीढ़ियों पर चढ़ते चले गए और तीस साल तक कांग्रेस मंत्रिमंडल में रहे। पांच दशक से अधिक समय तक सक्रिय राजनीति में रहे बाबू जगजीवन राम ने सामाजिक कार्यकर्ता, सांसद और कैबिनेट मंत्री के रूप में देश की सेवा की।

7- स्वामी विवेकानंद की मृत्यु मात्रा 39 साल की अवस्था में कोलकाता के निकट बेलूर मठ में हुई थी, स्वामी विवेकानंद ने भारत का नाम विश्व धर्म सम्मलेन में तब ऊँचा किया था जब इन्होनें शिकागो में इस सम्मलेन में हिस्सा लेकर अमेरिका का दिल यह कह कर जीत लिया था की "सिस्टर एंड ब्रदर ऑफ अमेरिका" साथ ही भारत की धार्मिक भावनाए क्या है इस पर बोलते हुए उन्होंने पूरे विश्व के धर्म पर प्रकाश डाला था|

जुलाई के महीने को हमने इस लिए भी चुना की यह महीना ऐसे लोगो की पैदाइश और मृत्यु का गवाह है, जिन्होंने अपने काम से इस सामज को कुछ ना कुछ दिया, नहीं तो एक साल में बारह महीने होते है इन बारह महीनो में ग्यारह ऐसे महीने है, जिनमे कुछ खास होता होगा पर जुलाई महीने में इतने प्रसिद्द लोगो के जन्म हुए है जितने किसी महीने में नहीं हुए, इस महीने जन्म लिए सभी महान विभूतियों को उनके जन्म की बधाइयां साथ ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके लोगो को मेरी तरफ से श्रद्धांजलि|

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