अपनी मदहोश कर देने वाली आवाज़ से सबको अपना दीवाना बनाने वाले गायक मोहम्मद रफ़ी की आज पुण्यतिथि है| इन्हें 'शहंशाह-ए-तरन्नुम' भी कहा जाता है| रफ़ी का जन्म 24 दिसम्बर 1924 को अमृतसर, के पास 'कोटला सुल्तान सिंह' में हुआ था। इनके परिवार का संगीत से कोई ताल्लुक नहीं था। रफ़ी के गायन की शुरुआत साल 1940 के आस पास हुई| वर्ष1960 में फ़िल्म 'चौदहवीं का चांद' के शीर्षक गीत के लिए रफ़ी को अपना पहला फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला था।
मोहम्मद रफ़ी अपने दर्द भरे नगमों के लिए खासतौर पर जाने जाते है| इन्होनें अपने करियर में लगभग 26000 हज़ार गाने गाये| सन 1946 में आई फिल्म 'अनमोल घड़ी' का गाना 'तेरा खिलौना टूटा' से रफ़ी को पहली बार हिन्दी जगत में ख्याति मिली।
मोहम्मद रफ़ी बहुत ही शर्मीले स्वभाव के समर्पित मुस्लिम थे। आजादी के समय विभाजन के दौरान उन्होने भारत में रहना पसन्द किया। उन्होने बेगम विक़लिस से शादी की और उनकी सात संतान हुईं-चार बेटे तथा तीन बेटियां। रफ़ी का देहान्त 31 जुलाई 1980 को हृदयगति रुक जाने के कारण हुआ।
यह किसी से छुपा नहीं है कि दिवंगत अभिनेता शम्मी कपूर के लोकप्रिय गीतों में मोहम्मद रफ़ी का कितना योगदान है| शम्मी कपूर तो इनकी आवाज से इतने प्रभावित थे कि वह अपना हर गाना रफ़ी से गवातें थे| शम्मी कपूर के ऊपर फिल्माए गए यह लोकप्रिय गाने 'चाहे कोई मुझे जंगली कहे', 'एहसान तेरा होगा मुझपर', 'ये चांद सा रोशन चेहरा', 'दीवाना हुआ बादल' जो रफ़ी द्वारा गायें गए है|
इनकी प्रसिद्धि धीरे-धीरे इतनी बढ़ गयी कि ज्यादातर अभिनेता इन्हीं से गाना गवाने का आग्रह करने लगे। अभिनेता दिलीप कुमार व धर्मेन्द्र तो मानते ही नहीं थे कि उनके लिए कोई और गायक गाए। इस कारण से कहा जाता है कि रफ़ी साहब ने अन्जाने में ही 'मन्ना डे', 'तलत महमूद' और 'हेमन्त कुमार' जैसे गायकों के करियर को नुकसान पहुँचाया|
सन 1961 में रफ़ी को अपना दूसरा फ़िल्मफेयर आवार्ड फ़िल्म 'ससुराल' के गीत 'तेरी प्यारी प्यारी सूरत को' के लिए मिला। इसके बाद 1965 में ही लक्ष्मी-प्यारे के संगीत निर्देशन में फ़िल्म दोस्ती के लिए गाए गीत 'चाहूंगा मै तुझे सांझ सवेरे के' लिए रफ़ी को तीसरा फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। साल 1965 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा। उस वक्त तक रफ़ी सफलता की उचाईयों को छुते जा रहे थे| साल 1966 में फ़िल्म सूरज के गीत 'बहारों फूल बरसाओ' बहुत प्रसिद्ध हुआ और इसके लिए उन्हें चौथा फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला। साल 1968 में शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म ब्रह्मचारी के गीत 'दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर' के लिए उन्हें पाचवां फ़िल्मफेयर अवार्ड मिला।
1960 के दशक में अपने करियर के शीर्ष पर पहुंचने के बाद उनके लिए दशक का अन्त सुखद नहीं रहा।1969 में फ़िल्म आराधना के निर्माण के समय सचिन देव बर्मन (जिन्हे दादा नाम से भी जाना जाता था) को संगीतकार चुना गया। इसी साल दादा बीमार पड़ गए और उन्होने अपने पुत्र राहुल देव बर्मन(पंचमदा) से गाने रिकार्ड करवाने को कहा। उस समय रफ़ी हज के लिए गए हुए थे। पंचमदा को अपने प्रिय गायक किशोर कुमार से गवाने का मौका मिला और उन्होने रूप तेरा मस्ताना तथा मेरे सपनों की रानी गाने किशोर दा की आवाज में रिकॉर्ड करवाया।
ये दोनों गाने बहुत ही लोकप्रिय हुए, साथ ही गायक किशोर कुमार भी जनता तथा संगीत निर्देशकों की पहली पसन्द बन गए। इसके बाद रफ़ी के गायक जीवन का अंत शुरू हुआ। हालांकि, इसके बाद भी उन्होने कई हिट गाने दिये, जैसे 'ये दुनिया ये महफिल', 'ये जो चिलमन है', 'तुम जो मिल गए हो'। 1977 में फ़िल्म 'हम किसी से कम नहीं' के गीत 'क्या हुआ तेरा वादा' के लिए उन्हे अपने जीवन का छठा तथा अन्तिम फ़िल्म फेयर एवॉर्ड मिला।
रफ़ी के कुछ प्रमुख गाने
मैं जट यमला पगला दीवाना
चढ़ती जवानी मेरी चाल मस्तानी
हम काले हैं तो क्या हुआ दिलवाले हैं
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
ये देश है वीर जवानों का
नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुठ्ठी में क्या है
रे मामा रे मामा
चक्के पे चक्का
बाबुल की दुआए
आज मेरे यार की शादी है
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