चलो दिलदार चलो, चाँद के पार चलो- फिल्म पाकीजा का यह गाना बॉलीवुड की खूबसूरत अदाकारा मीनाकुमारी की खूबसूरती में चार चाँद लगा गया था , भले ही फिल्म कामयाब नहीं रही पर 70 के दशक में यह गाना यादगार गानों में गिना जाने लगा, 1 अगस्त 1932 को जन्मी मीना कुमारी फ़िल्मी दुनिया में जड़ें मीने की तरह थी|
आज के फ़िल्मी दौर में फिल्म में हीरोइने कब आती है कब चली जाती है पता ही चलता। टाकीज में फिल्म लगती है और उतर जाती है पर इन फिल्मो की फिल्मी गलियारो में चर्चा भी नही होती क्योंकि आज फिल्म की हीरोइने अदाकारी की बजाये अपना तन दिखाने और अपने कपड़े उतारने में ही अपना ध्यान लगती हैं जबकि पुराने जमाने की कई अभिनेत्रिया और फिल्मे आज भी कई बरस बीत जाने के बाद भी दिलो दिमाग से नही उतरती, उन में एक नाम मीना कुमारी का भी है। मीना कुमारी का नाम आते ही फिल्मो का वो इतिहास सामने आ जाता है जिसे लोग आज भी फिल्मो के गोल्डन दौर के रूप में याद करते है।
मीना कुमारी का असली नाम मेंजबीं बानो था और यह बांबे में पैदा हुई थीं। उनके पिता अली बक्श भी फिल्मों में और पारसी रंगमंच के एक मंजे हुए कलाकार थे और उन्होंने कुछ फिल्मों में संगीतकार का भी काम किया था। उनकी मां प्रभावती देवी (बाद में इकबाल बानो) भी एक मशहूर नृत्यांगना एवं अदाकारा थी।
मीना कुमारी का वास्तविक नाम मेहजबी बानो था। मीना कुमारी ने केवल छह साल की छोटी उम्र में फिल्मो में काम करना शुरू कर दिया था। 1952 में विजय भट्ट की फिल्म बैजू बावरा ने मीना कुमारी को बतौर अभिनेत्री फिल्मी दुनिया में स्थापित किया और इस फिल्म की लोकप्रियता के बाद मीना की अदाकारी की चारो ओर काफी प्रसंशा होने के साथ ही मेहजबी से यह अदाकारा मीना कुमारी बन गई। दिल अपना और प्रीत पराई, यहूदी, बंदिश, दिल एक मंदिर, प्यार का सागर, मैं चुप रहॅूगी, आरती, भाभी की चूडिया, काजल, कोहेनूर, सहारा, शारदा, फूल और पत्थर, गजल, नूर जहॉ ,मझली दीदी, चन्दन का पालना, भीगी रात, मिस मैरी, बेनजीर, साहिब बीवी और गुलाम, ये सारी ऐसी फिल्मी है जिन्होने मीना कुमारी को बुलंदी के उस आसमान पर पहुंचा दिया जहॉ से आसमान को छूना बहुत आसान हो जाता है।
धर्मन्द्र के साथ मीना कुमारी के रोमांस की चर्च सब से ज्यादा हुई पर फिल्मी पर्द पर दुख झेलती इस अदाकारा के असली जीवन में भी दुख ही दुख भर गये। या यू कहा जाये कि इस अदाकारा ने खुद को जमाने से दूर बहुत दूर कर दुखो से दोस्ती कर ली। पर इतनी बडी दुनिया में तन्हा जीना बडा मुश्क्लि होता है। मीना को तन्हाई खाए जा रही थी इसी दौरान न जाने कब उन्होने शराब और शायरी को अपना दोस्त बना लिया खुद उन्हे भी नही पता। मीना कुमारी शायरी के माध्यम से शोर कह कर अपने दिल का दर्द हल्खा करने लगी वो नाज नाम से उर्द् शायरी करती थी।
मीना कुमारी ने कमाल अमरोही से शादी की, हालांकि उनकी शादीशुदा जिंदगी तनाव से भरी रही। पाकीजा फिल्म निर्माण में सत्रह साल का समय लगा। पाकीजा फिल्म मीना कुमारी ने बीमारी की हालत में की। गुरुदत्त की फिल्म साहिब, बीवी और गुलाम की छोटी बहू के किरदार में मीना कुमारी को सराहा गया। कहते हैं मीना कुमारी पहली तारिका थीं, जिन्होंने बॉलीवुड में पराए मर्दों के बीच बैठकर शराब पी। कहते तो यह भी हैं धर्मेन्द्र की बेवफाई ने मीना कुमारी को अकेले में भी पीने पर मजबूर किया। मीना धर्मेद्र के गम क्या डूबी उन्होंने छोटी-छोटी बोतलों में देसी-विदेशी शराब भरकर अपने पर्स में रखना शुरू कर दिया, जब मौका मिला एक शीशी गटक ली।फिल्म 'पाकीजा' 4 फरवरी 1972 को रिलीज हुई और 31 अगस्त 1972 को मीना कुमारी चल बसी। महज चालीस साल की उम्र में महजबीं उर्फ मीना कुमारी खुद-ब-खुद मौत के मुँह में चली गईं। मीना कुमारी का नाम कई लोगों से जोड़ा गया।
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