देश के विभिन्न हिस्सों में रामलीला के माध्यम से मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के चरित्र को रंगमंच पर उतारने की परंपरा काफी प्राचीन है, लेकिन वाराणसी जनपद में एक गांव ऐसा भी है, जहां यह परंपरा 300 वर्षो से भी पहले से चली आ रही है।
वाराणसी से 40 किलोमीटर दूर स्थित बरवां गांव के बुजुर्गो की मानें तो वाराणसी के रामनगर में आयोजित होने वाली विश्वप्रसिद्ध रामलीला से भी पहले से इस गांव में रामलीला का मंचन होता आया है। बरवां गांव में रामलीला करने वालों के मुताबिक, हालांकि इसका कोई लिखित प्रमाण तो नहीं है, लेकिन इस गांव की रामलीला का मंचन लगभग 300 वर्ष पहले से होता आ रहा है।
बरवां गांव की रामलीला राघवेंद्र रामलीला समिति के नेतृत्व में पूरी परंपरा और निष्ठा के साथ आज भी अनवरत जारी है और उसी 300 वर्ष पुरानी परंपरा के अनुसार यहां प्रतिवर्ष रामलीला होती है।
रामनगर की रामलीला को वैसे तो अति प्राचीन माना जाता है, लेकिन बरवां गांव के बुजुर्गो का कहना है कि अगर उनके पास इस रामलीला मंचन का लिखित अभिलेख सुरक्षित होता तो उनके गांव की रामलीला के रामनगर से भी प्राचीन होने के प्रमाण मिल जाते।
समिति के वर्तमान अध्यक्ष महेंद्र दुबे ने बताया, "हमारे पास पिछले 100 वर्षो का प्रमाण तो है, लेकिन उसके पहले के प्रमाण नष्ट हो चुके हैं।" उन्होंने बताया, "बढ़ती महंगाई ने वर्तमान में जहां अन्य जगहों पर होने वाली रामलीलाओं पर असर डाला है, वहीं गांव वालों के सहयोग से हमारी रामलीला इससे अछूती है।"
उन्होंने आगे बताया, "11 दिनों चलने वाली रामलीला के आयोजन की तैयारी दो महीने पहले से शुरू हो जाती है। पात्रों के पोशाकों के चयन से लेकर संवाद तक हर पहलू को ध्यान में रखते हुए कड़ी मेहनत की जाती है। संगीत पक्ष भी अपनी तैयारी करता है। रामलीला में इसका बहुत ही महत्व है।"
इस गांव में होने वाली रामलीला में कुछ ऐसे कलाकार भी हैं जो लगातार कई वर्षो से हनुमान, रावण और अंगद का किरदार निभाते आ रहे हैं।
पिछले 25 वर्षो से रावण का किरदार निभाने वाले 60 वर्षीय पन्नालाल शर्मा ने बताया, "रावण रामकथा का एक विशेष पात्र है। किसी भी कृति के लिए अच्छे पात्रों के साथ-साथ बुरे पात्रों का होना अति आवश्यक है। किंतु रावण में अवगुणों की अपेक्षा गुण अधिक थे। यदि रावण न होता तो रामायण की रचना भी न हो पाती।"
शर्मा ने कहा, "देखा जाए तो रामकथा में रावण ही ऐसा पात्र है, जो राम के उज्ज्वल चरित्र को उभारने का काम करता है।"
शर्मा ने कहा, "रावण जहां दुष्ट और पापी था वहीं उसमें शिष्टाचार और ऊंचे आदर्श वाली मर्यादाएं भी थीं। रावण कितना भी अहंकारी क्यों न रहा हो, लेकिन उसके गुणों को विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्घिमान ब्राह्मण तथा शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था।"
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