चाहते हैं धन-धान्य और ऐश्वर्य की प्राप्ति तो रखें अक्षय नवमी का व्रत

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को अक्षय नवमी रूप में मनाया जाता है, इसे आंवला नवमी भी कहते हैं| इस बार अक्षय नवमी 11 नवम्बर दिन सोमवार को पड़ रही है| इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नदान करने से हर मनोकामना पूरी होती है। कहते हैं कि अक्षय नवमी के दिन किया गया जप, तप, दान इत्यादि व्यक्ति को सभी पापों से मुक्त करता है तथा सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला होता है| मान्यता है कि सतयुग का आरंभ भी इसी दिन हुआ था| इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधान है| धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले के वृक्ष में सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अति प्रिय है|

अक्षय नवमी का महत्व- 

कार्तिक शुक्ल पक्ष की आंवला नवमी का धार्मिक महत्व बहुत माना गया है| एक बार भगवान विष्णु से पूछा गया कि कलियुग में मनुष्य किस प्रकार से पाप मुक्त हो सकता है। तब भगवान प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि जो प्राणी अक्षय नवमी के दिन मुझे एकाग्र होकर ध्यान करेगा, उसे तपस्या का फल मिलेगा। यही नहीं शास्त्रों में ब्रह्म हत्या को घोर पाप बताया गया है। यह पाप करने वाला अपने दुष्कर्म का फल अवश्य भोगता है, लेकिन अगर वह अक्षय नवमी के दिन स्वर्ण, भूमि, वस्त्र एवं अन्नदान करे और वह आंवले के वृक्ष के नीचे लोगों को भोजन कराए, तो इस पाप से मुक्त हो सकता है।

आंवला नवमी की तिथि को पवित्र तिथि माना गया है| इस दिन किया गया गौ, स्वर्ण तथा वस्त्र का दान अमोघ फलदायक होता है| इन वस्तुओं का दान देने से ब्राह्मण हत्या, गौ हत्या जैसे महापापों से बचा जा सकता है| चरक संहिता में इसके महत्व को व्यक्त किया गया है| जिसके अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा होने का वरदान प्राप्त हुआ था|

अक्षय नवमी की पूजन विधि-

प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की जाती है| पूजा करने के लिए आँवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर शोड्षोपचार पूजन करें| दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें| 

अद्येत्यादि अमुकगोत्रोमुक (गोत्र का उच्चारण करें) ममाखिलपापक्षयपूर्वकधर्मार्थकाममोक्षसिद्धिद्वारा श्रीविष्णुप्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णुपूजनं धात्रीपूजनं च करिष्ये।

ऐसा संकल्प कर आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख करके ऊँ धात्र्यै नम: मंत्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मंत्रों से आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें-

पिता पितामहाश्चान्ये अपुत्रा ये च गोत्रिण:।

ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।

आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं देवर्षिपितृमानवा:।

ते पिवन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेक्षयं पय:।।

इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में निम्न मंत्र से सूत्रवेष्टन करें-

दामोदरनिवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नम:।

सूत्रेणानेन बध्नामि धात्रि देवि नमोस्तु ते।।

इसके बाद कर्पूर या घृतपूर्व दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा निम्न मंत्र से उसकी प्रदक्षिणा करें -


यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च।

तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे।।

आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण- भोजन भी कराना चाहिए और अन्त में स्वयं भी आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करना चाहिए। एक पका हुआ कुम्हड़ा (कद्दू) लेकर उसके अंदर रत्न, सुवर्ण, रजत या रुपया आदि रखकर निम्न संकल्प करें-


ममाखिलपापक्षयपूर्वक सुख सौभाग्यादीनामुक्तरोत्तराभिवृद्धये कूष्माण्डदानमहं करिष्ये। 

तदनन्तर विद्वान तथा सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके दक्षिणासहित कुम्हड़ा दे दें और निम्न प्रार्थना करें-

कूष्णाण्डं बहुबीजाढयं ब्रह्णा निर्मितं पुरा।

दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च।।

पितरों के शीतनिवारण के लिए यथाशक्ति कंबल आदि ऊर्णवस्त्र भी सत्पात्र ब्राह्मण को देना चाहिए। अगर घर में आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे में या गमले में आंवले का पौधा लगा कर यह कार्य सम्पन्न करना चाहिए|

अक्षय नवमी की कथा-

प्राचीन समय की बात है, काशी नगरी में एक वैश्य रहता था| वह बहुत ही धर्म कर्म को मानने वाला धर्मात्मा पुरूष था, किंतु उसके कोई संतान न थी| इस कारण उस वणिक की पत्नी बहुत दुखी रहती थी| एक बार किसी ने उसकी पत्नी को कहा कि यदि वह किसी बच्चे की बलि भैरव बाबा के नाम पर चढा़ए तो उसे अवश्य पुत्र की प्राप्ति होगी| स्त्री ने यह बात अपने पति से कही परंतु वणिक ने ऐसा कार्य करने से मना कर दिया, किंतु उसकी पत्नी के मन में यह बात घर कर गई तथा संतान प्राप्ति की इच्छा के लिए उसने किसी बच्चे की बली दे दी, परंतु इस पाप का परिणाम अच्छा कैसे हो सकता था अत: उस स्त्री के शरीर में कोढ़ उत्पन्न हो गया और मृत बच्चे की आत्मा उसे सताने लगी|


उस स्त्री ने यह बात अपने पति को बताई| हालाँकि पहले तो पति ने उसे खूब दुत्कारा लेकिन फिर उसकी दशा पर उसे दया भी आई| वह अपनी पत्नी को गंगा स्नान एवं पूजन के लिए कहता है, तब उसकी पत्नी गंगा के किनारे जा कर गंगा जी की पूजा करने लगती है| एक दिन माँ गंगा वृद्ध स्त्री का वेश धारण किए उस स्त्री के समक्ष आती है और उस सेठ की पत्नी को कहती है कि यदि वह मथुरा में जाकर कार्तिक नवमी का व्रत एवं पूजन करे तो उसके सभी पाप समाप्त हो जाएंगे| ऎसा सुनकर वणिक की पत्नी मथुरा में जाकर विधि विधान के साथ नवमी का पूजन करती है और भगवान की कृपा से उसके सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा उसका शरीर पहले की भाँति स्वस्थ हो जाता है, उसे संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है|

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