यह वर्ष अपने आखिरी पड़ाव पर है, तथा भारतीय कला जगत एवं उद्योग के लिए काफी उतार-चढ़ाव वाला साबित हुआ। वर्ष की शुरुआत भारतीय कला मेला (आईएएफ) के जरिए कला जगत के लिए सकारात्मक रही, और राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर के खरीदारों से इसे काफी सराहना भी मिली।
वर्ष के मध्य में रुपये की कीमत में डॉलर के मुकाबले आई भारी गिरावट के चलते कला उद्योग में भी गिरावट देखने को मिली, लेकिन बाद में इसे जबरदस्त बढ़त भी मिली। विश्वविख्यात नीलामीकर्ता 'क्रिस्टी' ने पहली बार भारत में कदम रखा और पहले ही नीलामी सत्र में एस. गायतोंडे की 1979 में बनाई गई पेंटिंग 23.7 करोड़ रुपये में खरीदी गई, जिसने भारतीय कला उद्योग में सकारात्मक रुझान बने रहने का संकेत दिया।
लंदन की इस नीलामी कंपनी का भारत में पदार्पण वास्तव में भारतीय कला जगत के लिए वर्ष की सबसे बड़ी घटना रही, तथा कंपनी के पहले नीलामी सत्र में आशा से दोगुनी कीमत (96.6 करोड़ रुपये) की कलाकृतियां बिकीं। क्रिस्टी के एशियाई कला जगत के अंतर्राष्ट्रीय निदेशक ह्यूगो वी ने बताया, "पिछले 10 वर्षो में हमारे भारतीय खरीदारों की संख्या में चार गुना वृद्धि हुई है। भारतीय खरीदारों ने विभिन्न प्रकार की कलाकृतियों में रुचि दिखाई है। कला जगत में अन्य तेजी से विकास कर रहे बाजारों की ही भांति भारतीय कलाकृतियों की खरीदारी में लगातार बढ़ोत्तरी दर्ज की गई, लेकिन इस बार इसमें इसके अतिरिक्त भी वृद्धि देखी गई।"
वी ने आगे बताया, "हम मानते हैं कि भारत में कला बाजार तेजी से विकास कर रहा है, तथा यहां काफी संभावनाएं हैं। इसके अलावा हमें पूरा विश्वास है कि भारत, भारतीय संग्रहकर्ता और भारतीय कलाकृतियां बहुत जल्द अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हमारे विकास में महत्वपूर्ण भागीदार बनेंगे।" एक तरफ भारतीय कला उद्योग में इस वृद्धि ने सकारात्मकता कायम रखी तो दूसरी ओर लंदन के कला उद्योग क्षेत्र में शोध करने वाली स्वतंत्र एजेंसी 'आर्टटैक्टिक' के निष्कर्ष इससे अलग हैं।
आर्टटैक्टिक के अनुसार, "भारतीय कला बाजार में पिछले छह महीने में आत्मविश्वास संकेतक में 13.6 फीसदी की कमी आई है। यह कमी पिछले 18 महीनों से लगातार सकारात्मक रुख बने रहने के बाद देखी गई।"
दिल्ली और लंदन में स्थित कला वीथिका संचालक कंपनी 'वढेरा आर्ट गैलरी' (वीएजी) के निदेशक अरुण वढेरा ने लेकिन उम्मीदें नहीं छोड़ी हैं। उनका कहना है कि वर्तमान भारतीय कला बाजार 65 अरब डॉलर के वैश्विक बाजार की तुलना में 40 करोड़ डॉलर वार्षिक का है। वढेरा ने बताया, "रुपये के कमजोर होने का भारतीय कला बाजार पर कोई असर नहीं पड़ा है। यह बहुत अलग बाजार है, जिसकी पूंजी इसका जुनून है। इसीलिए यहां बाहरी प्रभावों ने संग्रहकर्ताओं को प्रभावित नहीं किया।"
भारतीय कला मेला की संस्थापक निदेशक नेहा किरपाल ने कहा, "पिछले तीन वर्षो से लोगों में भारतीय कला बाजार को लेकर उम्मीदें बढ़ी हैं, तथा यह बहुत ही सकारात्मक है। जो भारतीय समकालीन कला बाजार के लिए बहुत ही उत्साहवर्धक है।" युनाइटेड आर्ट फेयर के लिए यह वर्ष उतना भाग्यशाली नहीं रहा। 2.5 करोड़ रुपयों की कलाकृतियों से सजे इस कला मेला से सिर्फ 15 लाख रुपये कीमत की कलाकृतियां ही बिक सकीं।
युनाइटेड आर्ट फेयर के निदेशक अनुराग शर्मा ने बताया, "लोगों में थोड़ी हिचक थी। शायद गिरती अर्थव्यवस्था ने लोगों को कलाकृतियों के संग्रह से रोका। मुझे इस संदर्भ में कोई अंदाजा नहीं है। मेले में बिक्री बहुत कम रही।" क्रिस्टी के भारत में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद हालांकिभारतीय कला बाजार के ऊपर छाए सारे काले बादल छंट गए। वढेरा का कहना है कि कुल मिलाकर यह वर्ष भारतीय कला बाजार के लिए बहुत अच्छा रहा, तथा क्रिस्टी के पदार्पण से भारत के घरेलू बाजार को काफी प्रोत्साहन मिला है।
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