आम आदमी की पार्टी 'आप' का उदय

दिल्ली में हुआ इस बार का विधानसभा चुनाव कई मामलों में महत्वपूर्ण है। जिस आम आदमी पार्टी (आप) को दिल्ली की पराजित मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने नवजात जबकि भाजपा ने उसे कांग्रेस की 'बी-टीम' कहकर खारिज किया था उसने खुद को वास्तव में आम आदमी की पार्टी के रूप में साबित किया।

रविवार को घोषित चुनाव परिणाम में आप ने अप्रत्याशित प्रदर्शन कर देश के चुनावी इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है। गठन के बाद पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरी पार्टी ने जहां दूसरा स्थान प्राप्त किया, वहीं दिल्ली में कांग्रेस का चेहरा मानी जाने वाली शीला दीक्षित को परास्त कर चौंका दिया है। आप के मुख्य प्रचारक अरविंद केजरीवाल के हाथों शीला दीक्षित को पराजय का सामना करना पड़ा है।

दिल्ली में आप का उभार देश के राजनीतिक फलक पर व्यापक असर डालने वाला साबित हो सकता है। इसके बाद पार्टी देश के अन्य हिस्सों में अपनी ताकत बढ़ाने में जुटेगी। पार्टी ने सिर्फ उन्हीं इलाकों की सीट हथियाने में कामयाबी हासिल नहीं की है जहां बड़ी संख्या में गरीब और नौकरीपेशा लोग रहते हैं, बल्कि ग्रेटर कैलाश जैसे 'रसूखदारों' के इलाके में भी जीत हासिल की है।

एक वर्ष पहले गठित आप ने राजनीति में स्वच्छता और लोगों को धनी और रसूखदारों के दबदबे वाले तंत्र से मुक्ति दिलाने का वादा किया है। अपने सीमित साधनों और नियंत्रण के कारण पार्टी ने पांच राज्यों में से केवल दिल्ली में ही चुनाव लड़ने का फैसला किया था। चमकदार प्रचारकों और लोकलुभावन चेहरों से लैस कांग्रेस और भाजपा के मुकाबले आप के पास ले देकर केजरीवाल (45) ही सबसे अधिक देखे जाने वाले और प्रमुख चेहरे थे।

आईआईटी की शिक्षा प्राप्त कर भारतीय राजस्व सेवा में नौकरी कर सामाजिक कार्यकर्ता ने भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाई। केजरीवाल ने नई दिल्ली विधानसभा से कांग्रेस की प्रत्याशी शीला दीक्षित के खिलाफ चुनाव लड़ने की घोषणा कर सुर्खियां बटोरी। यह एक ऐसा कदम है जिसे उठाने में कोई नया राजनेता सौ बार सोचेगा। लेकिन, केजरीवाल की इस घोषणा ने आप को चुनावी रंगमंच पर चर्चा के केंद्र में ला खड़ा किया।

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