पश्चिमी देशों की आम समस्याएं निराशा, एकाकीपन, अरुचि और नकारात्मक भावना भारतीयों को भी अपनी गिरफ्त में लेता जा रहा है। चिकित्सकों के मुताबिक सर्दियों की उदासी (विंटर ब्लूज) के नाम से पहचानी जाने वाली यह समस्या उत्तर भारत में अधिक देखने को मिलती है।
पुष्पावती सिंघानिया रिसर्च सेंटर की मनोविज्ञानी बृष्टि बर्काटकी ने कहा कि इस मौसम में लोग अलगाव, चिड़चिड़ापन, कमजोरी और एकाकीपन जैसी भावनाओं की शिकायत करते हैं। जीवन में आने वाली छोटी-छोटी समस्याओं को भी बहुत बड़ा समझने लगते हैं और कई बार खुद से ही उसका इलाज भी करने लगते हैं।
उन्होंने कहा कि भारत में 1.5-2 करोड़ लोग सर्दियों की उदासी से प्रभावित होते हैं। सर्दी के मौसम में घर से बाहर निकलना कम होने और धूप नहीं मिल पाने के कारण यह संख्या बढ़ती जा रही है। सर गंगा राम अस्पताल के वरिष्ठ सलाहकार राजीव मेहता ने कहा कि सर्दियों की उदासी या मौसम प्रभावित अवसाद (एसएडी) धूप की अवधि कम होने से मस्तिष्क में जैवरासायनिक असंतुलन के कारण पैदा होता है।
उन्होंने कहा कि इस मौसम में धूप की कमी के कारण स्ट्रोटाइनिन का स्तर घट जाता है और लोग उदासी महसूस करने लगते हैं। मेहता ने कहा, "कड़ाके की ठंड के कारण शारीरिक गतिविधि का अभाव और घर से बाहर नहीं निकलने के कारण भी लोग एकाकीपन और उदासी महसूस करने लगते हैं।"
कई लोग शरीर दर्द, कब्ज और सिर दर्द की भी शिकायत करते हैं। मेहता ने कहा, "सर्दी के मौसम में लोग यह सोच कर घर से बाहर नहीं निकलते हैं कि कहीं जुकाम न हो जाए, लेकिन उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि इस मौसम में धूप और विटामिन डी की जरूरत होती है क्योंकि सर्दियों में घर में खुद को बंद रखने से विटामिन डी का स्तर शरीर में घट जाता है।"
गुड़गांव के कोलंबिया एशिया अस्पताल के मनोवैज्ञानिक आशीष मित्तल ने कहा, "घर से बहुधा बाहर निकलकर, सुबह के समय में धूप का सेवन कर और शराब तथा धूम्रपान को पूरी तरह से छोड़कर अवसाद से बचा जा सकता है।" मित्तल ने कहा कि 2020 तक हृदय रोग के बाद अवसाद दूसरी सबसे आम बीमारी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि बेहतर खान-पान, चिकित्सकों से सलाह मशविरा, घर से बाहर निकलकर घूमना और धूप का सेवन करना इस समस्या का इलाज है।
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