भारतीय जीवन में परिवर्तन का मनुष्य ने जिस उत्साह के साथ स्वागत किया वहीं त्योहारों के रूप में परंपरा में शामिल होता गया। बसंत पंचमी ऋतुओं के उसी सुखद परिवर्तन का स्वागत समारोह है। धार्मिक रूप से यह त्योहार हालांकि विद्या की देवी सरस्वती की पूजा से संबंधित है। संपूर्ण भारत में बड़े उल्लास बसंत पंचमी के रोज विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी के पर्व से ही बसंत ऋतु का आगमन माना जाता है।
बसंत पंचमी का अर्थ है शुक्ल पक्ष का पांचवां दिन अंग्रेजी कलेंडर के अनुसार यह पर्व जनवरी-फरवरी तथा हिन्दू तिथि के अनुसार माघ के महीने में मनाया जाता है। बसंत को ऋतुओं का राजा अर्थात सर्वश्रेष्ठ ऋतु माना गया है। इस समय पंचतत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। पंचतत्व, जल, वायु, धरती, आकाश और अग्नि सभी अपना मोहक रूप दिखाते हैं।
दरअसल मौसम और प्रकृति में मनोहारी बदलाव होते जिसने मनुष्य को सदा से उल्लासित किया है। पेड़ों पर फूल आ जाते हैं। नई कोपलें निकल आती हैं। फलों के पेड़ों में बौर आने का संकेत मिल जाता है। इन श्रंगारिक परिवर्तनों ने कवियों को सदैव आकर्षित किया और वसंत कविता का विषय रहा। प्राय: हर भाषा के कवि ने बसंत का अपनी तरह से वर्णन किया है।
बसंत पर्व का आरंभ बसंत पंचमी से होता है। इसी दिन श्री अर्थात विद्या की अधिष्ठात्री देवी महासरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है। सरस्वती ने अपने चातुर्य से देवों को राक्षसराज कुंभकर्ण से कैसे बचाया, इसकी एक मनोरम कथा वाल्मिकी रामायण के उत्तरकांड में आती है। कहते हैं देवी वर प्राप्त करने के लिए कुंभकर्ण ने दस हजार वर्षों तक गोवर्ण में घोर तपस्या की।
जब ब्रह्मा वर देने को तैयार हुए तो देवों ने कहा कि यह राक्षस पहले से ही है, वर पाने के बाद तो और भी उन्मत्त हो जाएगा तब ब्रह्मा ने सरस्वती का स्मरण किया। सरस्वती राक्षस की जीभ पर सवार हुईं। सरस्वती के प्रभाव से कुंभकर्ण ने ब्रह्मा से कहा, 'स्वप्न वर्षाव्यनेकानि। देव देव ममाप्सिनम।' अर्थात मैं कई वर्षों तक सोता रहूं, यही मेरी इच्छा है।
ब्राह्मण ग्रंथों के अनुसार वाग्देवी सरस्वती ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गई है। बसंत पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। अत: वागीश्वरी जयंती व श्रीपंचमी नाम से भी यह तिथि प्रसिद्ध है।
बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। मुख्यत: विद्यारंभ, नवीन विद्या प्राप्ति एवं गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। बसंत पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे कई कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं।
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