आपने एक कहावत सुनी होगी 'जैसा खाओगे अन्न वैसा होगा मन'| यह बात आज वैज्ञानिकों ने भी मान ली| मनुष्य के जीवनकाल में सेक्स का अह्म स्थान होता है। खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए अच्छी सेक्सुअल लाइफ का होना भी जरूरी है। यौन सुख के लिए लोग न जाने कितने जतन करते हैं, तरह-तरह की दवाइयां, वनस्पतियां उपयोग में लाते हैं| करें भी क्यों न क्योंकि पुरुषों और महिलाओं के लिए ताकत और ऊर्जा देने वाले उत्पादों की बाज़ार में होड़ सी जो लगी है। इसके चलते कई महत्वपूर्ण औषधीय पौधों जैसे अश्वगंधा, सफेद मूसली, शतावरी, गोखरू, आदि पर तो जैसे ‘सेक्स मेडिसिन’ का ठप्पा लगा है। तथाकथित सेक्स मेडिसिन्स के नाम पर बेची जानी वाली इन जड़ी बूटियों के अन्य महत्वपूर्ण गुण भी हैं जिन्हें दरकिनार कर दिया जाता है|
सबसे पहले बात करते हैं शतावरी| इसकी जड़ें उंगलियों की तरह दिखाई देती हैं जिनकी संख्या लगभग सौ या सौ से अधिक होती है और इसी वजह से इसे शतावरी कहा जाता है। यह एक बेल है, जिसकी जड़ों मे सेपोनिन्स और डायोसजेनिन जैसे महत्वपूर्ण रसायन पाए जाते हैं। इसके पत्ते भी काम गुणकारी नहीं है| पत्तों का रस (लगभग दो चम्मच) दूध में मिलाकर दिन में दो बार लिया जाए तो यह शक्तिवर्धक होता है। यदि पेशाब के साथ खून आने की शिकायत हो तो शतावरी का सेवन लाभकारी होता है। प्रसूता माता को यदि दूध नहीं आ रहा हो या कम आता हो तो शतावरी की जड़ों के चूर्ण का सेवन दिन में कम से कम चार बार अवश्य करना चाहिए। जानकारों का मानना है कि शतावरी की जड़ों के चूर्ण का सेवन बगैर शक्करयुक्त दूध के साथ लगातार किया जाए तो मधुमेह के रोगियों को काफी फायदा होता है।
इसके बाद बात करते हैं सफ़ेद मूसली की| इसे बतौर सेक्स मेडिसिन बहुत प्रचारित किया गया लेकिन इसके अन्य औषधीय गुणों पर कम ही चर्चा होती है। यदि जानकारों की माने तो यदि आपको पेशाब में जलन की शिकायत रहती है तो सफेद मूसली की जड़ों के चूर्ण के साथ इलायची मिलाकर दूध में उबालते हैं और पेशाब में जलन की शिकायत होने पर रोगियों को दिन में दो बार पीने की सलाह देते हैं। इन्द्रायण की सूखी जड़ का चूर्ण और सफेद मूसली की जड़ों के चूर्ण की समान मात्रा (1-1 ग्राम) लेकर इसे एक गिलास पानी में डालकर खूब मिलाया जाए और मरीज को प्रतिदिन सुबह दिया जाए। ऐसा सात दिनों तक लगातार करने से पथरी गलकर बाहर आ जाती है। अक्सर बदन दर्द की शिकायत करने वाले लोगों को प्रतिदिन इसकी जड़ों का सेवन करना चाहिए, फायदा होता है। तो आपने देखा कितने काम की चीज है सफ़ेद मूसली|
अब बात करते हैं अश्वगंधा की| औषधि के रूप में मुख्यत: अश्वगंधा की जड़ों का प्रयोग किया जाता है। प्रतिदिन अश्वगंधा के चूर्ण की एक-एक ग्राम मात्रा तीन बार लेने पर शरीर में हीमोग्लोबिन, लाल रक्त कणों की संख्या में काफी इजाफा होता है और बालों का कालापन भी बढ़ता है। अश्वगंधा के प्रत्येक 100 ग्राम में 789.4 मिलीग्राम लोहा पाया जाता है। लोहे के साथ ही इसमें पाए जाने वाले मुक्त अमीनो अम्ल इसे एक अच्छा हिमोटिनिक (रक्त में लोहा बढ़ाने वाला) टॉनिक बनाते हैं। कफ तथा वात संबंधी दोषों को दूर करने की शक्ति भी इसमें होती है। थायराइड या अन्य ग्रंथियों की वृद्धि में इसके पत्तों का लेप करने से फायदा होता है। यह नींद लाने में भी सहायक होता है। इसके अलावा सड़कों व नहरों के किनारे पाये जाने वाले गोखरू के पौधे को तो देखा ही होगा आपने| यह भी गुणों का खान है| गोखरू के पौधे को पीसकर सूजन वाले स्थान पर लगाने से सूजन दूर होती है और प्रतिदिन दो बार इसके आधे कप काढ़े के सेवन से भूख मर जाती है। इससे मोटापा भी कम होता है। दमा के रोगियों को गोखरू के फल और अंजीर के फल समान मात्रा में लेना चाहिए और दिन में तीन बार लगभग पांच ग्राम मात्रा का सेवन करना चाहिए, दमा ठीक हो जाता है। तो देखा आपने कितने काम की हैं यह वनस्पतियां|
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1 टिप्पणी:
सुंदर जानकारी ।
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