हिन्दू धर्म में अग्नि को देवता माना जाता है। अग्रि यानी आग को धार्मिक दृष्टि से पृथ्वी लोक में सूर्य का रूप माना गया है। जहां ऋग्वेद का पहला शब्द अग्रि बताया गया है। वहीं श्रीमद्भागवत में भी विराट पुरूष के मुंह से अग्रि के जन्म के बारे में लिखा गया है।
अग्रि को पूर्व और दक्षिण दिशा का स्वामी माना गया है। व्यावहारिक नजरिए से मानव जीवन से जुड़े अनेक कार्य अग्रि की मौजूदगी के बिना शुभ नहीं माने जाते। शास्त्रों में इंसानी जि़दगी में अग्रि की अहमियत को ही बताते हुए अग्रि के अनेक रूप बताए गए हैं जैसे-
- जठराग्नि - यह प्राणियों के शरीर में मौजूद होती है।
- बडावाग्नि - सागर में लगने वाली आग होती है।
- दावाग्नि - जंगल लगने वाली आग
- विद्युत - मेघ या बादलों के बीच पैदा बिजली भी आग का ही रूप है।
- आहावनीय- यज्ञ के दौरान मंत्र शक्ति से पैदा होती है।
- गार्हस्थ्य- शादी के बाद कुल में प्रतिष्ठित होती है।
- दक्षिणाग्नि - यह मंडप के दक्षिण भाग में प्रतिष्ठित होती है।
- कृव्यादाग्नि - दाह संस्कार में पैदा होने वाली अग्रि
अग्रि के इन रूपों से अग्रि की उपयोगिता साबित होती है। अग्रि का स्वभाव ऊष्णा यानि गर्म होता है। इसमें दहन शक्ति यानि जलाने की ताकत होती है। शास्त्रों के मुताबिक अग्नि को देवता मानने का कारण यही है कि यह प्रकाशित करती यानि ज्ञान प्रदायिनी है। साथ ही यह पुष्टि, शक्ति, यश व अन्न देने वाली है।
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