स्वाद और सेहत का खजाना है सलाद

सलाद हमारे भोजन में बहुत महत्व रखता है। सलाद खाने से हमारे शरीर को सारे पौष्टिक तत्व मिलते हैं। इसीलिए इसे रात को खाना खाने से पहले या खाने के साथ खाना चाहिए। सलाद पेट तो भरता ही है ज्यादा खाना खाने से भी बचाता है। संतुलित भोजन के सेवन से संक्रामक रोगों से जहां बचा जा सकता है वहां पौष्टिक तत्वों के सेवन से शरीर का सुचारू रूप से विकास भी होता है। अनियमित भोजन से मनुष्य विभिन्न रोगों का शिकार हो जाता है जो अंत में उग्र रूप धारण कर लेते हैं। सलाद का भोजन के साथ प्रमुख स्थान होने का मुख्य कारण इसमें सभी विटामिनों, पौष्टिक तत्वों, लोहा, फास्फोरस, गंधक, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन आदि का होना है।

हरी मिर्च, मूली, गाजर, टमाटर, बंदगोभी, प्याज, नींबू, अदरक आदि के कच्चा खाने पर मूल रूप से अधिक से अधिक विटामिन प्राप्त हो जाते हैं जो स्वास्थ्य बनाये रखने हेतु लाभदायक हैं। सब्जियों को उबाल कर बनाने से विटामिन्स नष्ट हो जाते हैं अथवा शरीर को आवश्यकतानुसार नहीं मिल पाते। यदि सलाद के साथ-साथ पोदीन की चटनी का सेवन करें तो यह अति गुणकारी होता है। इससे पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है। भोजन शीघ्र पचता है। मूली से विटामिन बीसी और गाजर से विटामिन एसी लोहा तथा शलजम से विटामिन बी, सी, अधिक एवं वसा की कम प्राप्ति होती है। प्याज में विटामिन बीसी गंधक, फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है। बंदगोभी से तो विटामिन ए, बीसी, के अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट्स, लवण और वसा की प्राप्ति में बहुत लाभ है। टमाटर से भी एबीसी के साथ कार्बोज, प्रोटीन, वसा आदि प्राप्त होता है। नींबू से भरपूर विटामिन सी मिलता है। चुकंदर तो पूर्ण स्वास्थ्यवर्ध्दक है।

चुकन्दर, मूली, शलजम आदि के मुलायाम पत्तों को भी सलाद रूप में सेवन करने से सर्वाधिक विटामिन मिलते हैं। वृध्दावस्था में सलाद का खाना एक समस्या बन जाता है। इसके लिये सलाद को जहां तक हो सके, तरल एवं बारीक बनाया जा सकता है। मूली, गाजर, शलजम, अदरक आदि को कसकर और टमाटर का जूस निकाल कर आसानी से सलाद के रूप में सेवन किया जा सकता है। अतः सलाद बच्चों, बूढ़ों, जवानों एवं महिलाओं आदि के लिये सेवन करना अति गुणकारी है क्योंकि यह स्वयं में एक वैद्य है। यह शरीर में सभी कमियों को दूर कर रक्त को शुध्द कर पूर्ण स्वास्थ्य लाभ पहुंचाता है जिसके कारण मानव अनेक रोगों का शिकार हो जाता है।

गर्भावस्था के दौरान भी सलाद के पत्ते खाना बहुत लाभदायक होता है। कम कैलोरी में इससे ज़्यादा ख़ुराक मिल जाती है। विशेष रूप से इसमें मौजूद फोलिक एसिड, जिसकी गर्भावस्था के समय तथा बाद में भी शरीर को आवश्यकता रहती है, अच्छी मात्रा में पाया जाता है। फोलिक एसिड मेगालोब्लास्टिक एनिमिया को रोकता है। तथा जिनमें बार बार गर्भपात की संभावना रहती है उन्हें भी कच्चे सलाद के पत्ते खाने की सलाह दी जाती है। कच्चे सलाद के पत्ते खाने से महिलाओं के शरीर में प्रोजेस्टेरोन होरमोन के स्राव पर भी प्रभाव पड़ता है। भोजन के तुरंत बाद सलाद के पत्ते चबाने से दाँतों की बहुत सी बीमारियों जैसे गिंगिविटिस, पायरिया, हेलीटोसिस, स्टोमेटिटिस आदि से निजात मिल सकती है। जिह्वा पर उपस्थित स्वादग्राही तंतुओं तथा इनेमल के क्षय में भी रूकावट पड़ती है। प्रतिदिन आधा लीटर सलाद के पत्ते तथा पालक के रस को पीने से बालों का झड़ना भी कम होता है। 

खीरे का सलाद कब्ज दूर करता है। पीलिया, प्यास, ज्वर, शरीर की जलन और गर्मी की सारी समस्याओं को दूर करता है तथा इससे चर्म रोगों में लाभ पहुंचता है। यदि आपके सलाद में टमाटर भी है तो इससे शरीर में विटामिन ए की कमी को पूरा किया जा सकता है। कच्चा टमाटर खाने से कब्ज़ दूर होती है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है और रक्त चाप तथा मोटापे को कम करने में भी सहायक सिद्ध होता है। यदि सलाद में खीरे और टमाटर के अतिरिक्त ककड़ी भी हो तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि इसमें पोटेशियम तत्व बहुत मिलते हैं।

रोजाना विटामिन सी के सेवन से कैंसर व हृदय रोगों का जोखिम कम हो जाता है। ये इम्यूनिटी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं और इन्हीं की बदौलत सर्दी ज़ुकाम तथा वायरसों के अन्य हमलों की अवधि व गंभीरता में कमी आती है। ताजा फलों व सब्जियों में शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं, जैसे विटामिन ए और सी, जो हृदयरोग व कैंसर से बचाव करते हैं। सलाद के पत्ते जैसे कि लैटूयूस में कैलोरी कम होती है और इनमें 90 प्रतिशत पानी होता है; लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इसमें कई महत्वपूर्ण विटामिन व खनिज होते हैं, जैसे कि कैल्शियम, तांबा, पोटेशियम, आयरन, विटामिन ए और सी।

गैस की समस्या से हैं परेशान तो अपनाइए ये घरेलू नुस्खे

लगातार बैठ कर काम करने और खान-पान सावधानी नहीं रखने के कारण गैस की समस्या आज आम हो गई है। इस रोग में डकारें आना, पेट में गैस भरने से बेचैनी, घबराहट, छाती में जलन, पेट में गुड़गुडाहट, पेट व पीठ में हलका दर्द, सिर में भारीपन, आलस्य व थकावट तथा नाड़ी दुर्बलता जैस लक्षण देखने को मिलते हैं। कभी-कभी भूख नहीं लगने पर भी कुछ न कुछ खाने की बेवजह आदतों से भी पेट में एसिडिटी बनने लगती है। यदि आपको भी गैस की समस्या रहती है तो अब घबराने की जरुरत नहीं बस यहाँ कुछ घरेलू उपाय बताये जा रहे हैं जिन पर ध्यान दिया जाए तो इस समस्या से हल निकल सकता है| 

भोजन में मूंग, चना, मटर, अरहर, आलू, सेम, चावल, तथा तेज मिर्च मसाले युक्त आहार अधिक मात्रा में सेवन न करें! शीर्घ पचने वाले आहार जैसे सब्जियां, खिचड़ी, चोकर सहित बनी आटें कि रोटी, दूध, तोरई, कद्दू, पालक, टिंडा, शलजम, अदरक, आवंला, नींबू आदि का सेवन अधिक करना चाहिए। भोजन खूब चबा चबा कर आराम से करना चाहिए! बीच बीच में अधिक पानी ना पिएं! भोजन के दो घंटे के बाद 1 से 2 गिलास पानी पिएं। दोनों समय के भोजन के बीच हल्का नाश्ता फल आदि अवश्य खाएं। 

तेल गरिष्ठ भोजन से परहेज करें! भोजन सादा, सात्त्विक और प्राक्रतिक अवस्था में सेवन करने कि कोशिश करें। दिन भर में 8 से 10 गिलास पानी का सेवन अवश्य करें। प्रतिदिन कोई न कोई व्यायाम करने कि आदत जरुर बनाएं! शाम को घूमने जाएं! पेट के आसन से व्यायाम का पूरा लाभ मिलता है। प्राणयाम करने से भी पेट की गैस की तकलीफ दूर हो जाती है| शराब, चाय, कॉफी, तम्बाकू, गुटखा, जैसे व्यसन से बचें। दिन में सोना छोड़ दें और रात को मानसिक परिश्रम से बचें|

एक चम्मच अजवाइन के साथ चुटकी भर काला नमक भोजन के बाद चबाकर खाने से पेट कि गैस शीर्घ ही निकल जाती है| अदरक और नींबू का रस एक एक चम्मच कि मात्रा में लेकर थोड़ा सा नमक मिलकर भोजन के बाद दोनों समय सेवन करने से गैस कि सारी तकलीफें दूर हो जाती हैं , और भोजन भो हजम हो जाता है! भोजन करते समय बीच बीच में लहसुन, हिंग, थोड़ी थोड़ी मात्रा में खाते रहने से गैस कि तकलीफ नहीं होती| हरड, सोंठ का चूर्ण आधा आधा चम्मच कि मात्रा में लेकर उसमे थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर भोजन के बाद पानी से सेवन करने से पाचन ठीक प्रकार से होता है और गैस नहीं बनती! नींबू का रस लेने से गैस कि तकलीफ नहीं होती और पाचन क्रिया सुधरती है! 

गैस बनने पर हींग, जीरा, अजवायन और काला नमक, बहुत कम मात्रा में नौसादर मिलाकर गुनगुने पानी से लें। इनमें से कोई एक चीज भी ले सकते हैं। इसके अलावा आधे कच्चे, आधे भुने जीरे को कूट कर गर्म पानी से दो ग्राम लें। ऐसा दिन में दो बार एक सप्ताह तक करें। इसके बाद मोटी सौंफ को भून-पीसकर गुड़ के साथ मिक्स करके 6-6 ग्राम के लड्डू बना लें। दिन में दो-तीन बार लड्डू चूसें। 

एक मुनक्के का बीज निकालकर उसमें मूंग की दाल के एक दाने के बराबर हींग या फिर लहसुन की एक छिली कली रखकर मुनक्के को बंद कर लें। इसे सुबह खाली पेट पानी से निगल लें। इसके 20-25 मिनट बाद तक कुछ न खाएं। तीन दिन लगातार ऐसा करें। इसके अलावा अजवायन, जीरा, छोटी हरड़ और काला नमक बराबर मात्रा में पीस लें। बड़ों के लिए दो से छह ग्राम, खाने के तुरंत बाद पानी से लें। बच्चों के लिए मात्रा कम कर दें। 

लहसुन की एक-दो कलियों के बारीक टुकड़े काटकर थोड़ा-सा काला नमक और नीबू की बूंदें डालकर गर्म पानी से सुबह खाली पेट निगल लें। इससे कॉलेस्ट्रॉल, एंजाइना और आंतों की टीबी आदि बीमारियां ठीक होने में भी मदद मिलेगी। गर्मियों में एक-दो और सर्दियों में दो-तीन कलियां लें। बिना दूध की नीबू की चाय भी फायदा करती है, पर नीबू की बूंदें चाय बनाने के बाद ही डालें। इसमें चीनी की जगह हल्का-सा काला नमक डाल लें, फायदा होगा। 

पांच ग्राम हल्दी या अजवायन और तीन ग्राम नमक मिलाकर पानी से लें। 
दो लौंग चूस लें या फिर उन्हें उबालकर उस पानी को पी लें। 
पानी में 10-12 ग्राम पुदीने का रस और 10 ग्राम शहद मिलाकर लें। 
खाना खाने के बाद 25 ग्राम गुड़ खाने से गैस नहीं बनती और आंतें मजबूत रहती हैं। 
बेल का चूर्ण, त्रिफला और कुटकी मिलाकर (दो से छह ग्राम) रात को खाना खाने के बाद पानी से लें।

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मेकअप के समय ऑयली स्किन वाली महिलाएं रखें विशेष ध्यान

सभी महिलाएं चाहती हैं कि उनकी त्वचा सुंदर दिखे लेकिन सही स्किन न होने के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। चेहरे का ड्राई होना, पिंपल्स का होना, ब्लैक स्पॉट होना हमारी सुंदरता को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। चेहरे की इन समस्याओं में से सबसे बड़ी समस्या ऑयली स्किन की है| कई महिलाओं की शिकायत रहती है कि उनकी स्किन ऑयली है, इसीलिए वो ज्यादा मेकअप नहीं करतीं। ऑयली स्किन होना आम बात है और इसकी ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। हां मेकअप करते समय आप कुछ बातों पर ध्यान दें तो ऑयली स्किन से छुटकारा पा सकती हैं।

मेकअप करने से पहले आप अपने चेहरे को धोएं और स्क्रब करें। यह बहुत जरूरी है मेकअप करने से पहले| त्वचा को तैयार करें मेकअप लगाने से पहले अपने चेहरे को एल्कोहल फ्री टोनर से साफ करें। इसे क्लींजर से चेहरा साफ करने के 5 मिनट बाद ही लगाएं। यह तेल को सोख लेता है और त्वचा को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाता है। ऑयली स्किन होने पर आप अपने लिए ऑयल फ्री फाउंडेशन चुन सकते हैं। यह त्वचा के रोम छिद्रों को पूरी तरह से ढक देता है और चेहरे पर अच्छी तरह से लग भी जाता है। अच्छे रिजल्ट के लिये इसे थोड़े से मॉइस्चराइजर के साथ मिक्स करें और चेहरे पर उंगलियों या ब्रश की मदद से लगाएं।

आप अपनी स्किन से मेल खाता कंसीलर खरीदें। इसे चेहरे के दाग धब्बों पर लगा कर उसे छुपा सकती हैं। इसे लगाने के लिये आप ब्रश या उंगलियों का प्रयोग कर सकती हैं। हमेशा अपने साथ एक ऑइल ब्लाटिंग शीट रखें। इससे आप आराम से चेहरे पर जमे तेल को सोख सकती हैं| फाउंडेशन लगाने के बाद ट्रांसलूसेंट पाउडर लगाना चाहिये। इसे फाउंडेशन लगाने के 10 मिनट बाद लगाएं और ध्यान दे कर गालों, माथा और नाक को हाईलाइट करें। ट्रांसलूसेंट पाउडर हमेशा लाइट कलर का होना चाहिये।

हो सके तो चेहरे पर अंडे का सफेद भाग लगाएं और थोड़ी देर के बाद जब ये सूख जाए, तो उसे बेसन के आटे से साफ कर लें| चावल के आटे में पुदीने का अर्क और गुलाबजल मिलाकर, गोलाई में घुमाते हुए चेहरे पर लगाएं| इसके सुखने के बाद पानी से धो लें| ऑयली त्वचा पर मुहांसे की समस्या आम होती है। इसके लिए दवा लें लेकिन इन्हें फोड़ने की गलती न करें। इससे संक्रमण फैलता है और ऑयली त्वचा की समस्याएं बढ़ जाती हैं। दिन में कम से कम आठ ग्लास पानी रोज पिएं जिससे त्वचा सेहतमंद रहेगी और शरीर डीटॉक्सिफाई होगी।

इस किले पर दशकों से हर साल गिरती है आकाशीय बिजली, जानिए क्यों?

आपने कई किलों के खंडहर में तब्दील होने की कहानी सुनी और देखी भी होगी, लेकिन प्रतिवर्ष आकाशीय बिजली गिरने से एक किले को तबाह होते कभी नहीं देखा होगा। यह हकीकत है। झारखंड के रांची-पतरातू मार्ग के पिठौरिया गांव स्थित राजा जगतपाल सिंह के 100 कमरों का विशाल महल (किला) इसका साक्षात प्रमाण है। यह आकाशीय बिजली गिरने से तबाह हो गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसके पीछे एक 'श्राप' है।

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 18 किलोमीटर दूर पिठौरिया गांव में दो शताब्दी पुराना यह किला राजा जगतपाल सिंह का है, जो आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस किले पर दशकों से हर साल आसमानी बिजली गिरती है, जिससे हर साल इसका कुछ हिस्सा टूटकर गिर जाता है। पिठौरिया गांववासियों की मान्यता है कि ऐसा एक क्रांतिकारी द्वारा राजा जगतपाल सिंह को दिए गए श्राप के कारण होता है। बिजली गिरना वैसे तो एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन यहां के लोग एक ही जगह पर दशकों से लगातार बिजली गिरने को एक आश्चर्यजनक की बात मानते हैं।

इतिहासकार डा. भुवनेश्वर अनुज ने बताया कि पिठौरिया शुरुआत से ही मुंडा और नागवंशी राजाओं का प्रमुख केंद्र रहा है। यह इलाका 1831-32 में हुए कौल विद्रोह के कारण इतिहास में अंकित है। पिठौरिया के राजा जगतपाल सिंह ने क्षेत्र का चहुंमुखी विकास किया। इसे व्यापार और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बनाया। वह क्षेत्र की जनता में काफी लोकप्रिय था, लेकिन उनकी कुछ गलतियों ने उसका नाम इतिहास में खलनायकों और गद्दारों की सूची में शामिल करवा दिया।

उन्होंने बताया कि वर्ष 1831 में सिंदराय और बिंदराय के नेतृत्व में आदिवासियों ने आंदोलन किया था, लेकिन यहां की भौगोलिक परिस्तिथियों से अनजान अंग्रेज, विद्रोह को दबा नहीं पा रहे थे। ऐसे में अंग्रेज अधिकारी विलकिंग्सन ने राजा जगतपाल सिंह के पास सहायता का संदेश भिजवाया, जिसे उसने स्वीकार करते हुए अंग्रेजों की मदद की। उनकी इस मदद के बदले तत्कालीन गवर्नर जनरल विलियम वैंटिक ने उन्हें 313 रुपये प्रतिमाह आजीवन पेंशन दी।

इतिहासकारों के मुताबिक, 1857 के दौरान भी उसने अंग्रेजों का साथ दिया था। स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि जगतपाल सिंह की गवाही के कारण ही झारखंड के क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ नाथ शाहदेव को फांसी दी गई थी। मान्यता है कि विश्वनाथ शाहदेव ने जगतपाल सिंह को अंग्रेजों का साथ देने और देश के साथ गद्दारी करने पर यह श्राप दिया कि आने वाले समय में जगतपाल सिंह का कोई नामलेवा नहीं रहेगा और उसके किले पर हर साल बिजली गिरेगी। तब से हर साल इस किले पर बिजली गिरती आ रही है। इस कारण किला खंडहर में तब्दील हो चुका है।

भूगर्भशास्त्री ग्रामीणों की इस मान्यता से सहमत नहीं हैं। किले पर शोध कर चुके जाने-माने भूगर्भशास्त्री नितीश प्रियदर्शी इसके दूसरे ही कारण बताते हैं। उनके मुताबिक, यहां मौजूद ऊंचे पेड़ और पहाड़ों में मौजूद लौह अयस्कों की प्रचुरता दोनों मिलकर आसमानी बिजली को आकर्षित करने का एक बहुत ही सुगम माध्यम उपलब्ध कराती है। इस कारण बारिश के दिनों में यहां अक्सर बिजली गिरती है। बहरहाल ग्रामीणों की मान्यता और भूगर्भशास्त्रियों की शोध के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन कई लोगों के लिए आज भी यह प्रश्न बना हुआ है कि यह किला जब दशकों तक आबाद रहा, तब क्यों नहीं बिजलियां गिरी थी? उस समय तो और ज्यादा पेड़ और लौह अयस्क रहे होंगे। 

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हथेली देखकर स्वयं जानिए भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है

भविष्य से जुड़े सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्राप्त किए जा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को ज्योतिष में महारत हासिल हो तो वह आने वाले कल में होने वाली घटनाओं की जानकारी दे सकता है। भविष्य जानने की कई विद्याएं प्रचलित हैं, इन्हीं में से एक विद्या है हस्तरेखा ज्योतिष। हाथों में दिखाई देने वाली रेखाएं और हमारे भविष्य का गहरा संबंध है। इन रेखाओं का अध्ययन किया जाए तो हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं की भी जानकारी प्राप्त हो सकती है। वैसे तो हाथों की सभी रेखाओं का अलग-अलग महत्व होता है। लेकिन अगर आप अपनी रेखाओं को ध्यान से देखें तो जान सकते हैं कि भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है...

एस्ट्रो गुरु विजय कुमार के अनुसार, मजबूत शनि, लम्बी गहरी मस्तिष्क रेखा, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां जातक का रूझान मशीनरी क्षेत्र में करती हैं। इसके अलावा जिस जातक की लम्बी कनिष्ठा, उठा हुआ शुक्र तथा तर्जनी का विकसित एवं मोटा तीसरा पोरा हो तो आप समझ जाइए कि आप पाकशास्त्री हो सकते हैं|

निष्कंलक अर्थात् शुद्ध भाग्य रेखा अनामिका की तुलना में लम्बी तर्जनी, कनिष्ठा, अनामिका के पहले पोरे को पारकर जाए। शाखायुक्त मस्तिष्क रेखा, अच्छा मजबूत दोषयुक्त सूर्य क्षेत्र तथा श्रेष्ठ अन्य रेखाएं जातक को प्रशासन संबंधी कार्यों की ओर ले जाने का संकेत करती हैं। लम्बी शनि अंगुली, सबल एवं लम्बा दूसरा पोरा तथा सख्त हाथ कृषि की तरफ रूझान देता है।

लम्बा एवं सख्त मजबूत अंगूठा, उन्नत शुक्र एवं मंगल अच्छी सूर्य एवं भाग्य रेखा तथा वर्गाकार या चमसाकार अंगुलियां सैन्य सेवा के लिए अच्छी हैं। इसके साथ यदि मंगल अति विकसित एवं सख्त है तो थल सेना के लिए उपयुक्त है। यदि उक्त के साथ विकसित बृहस्पति एवं मजबूत एवं थोड़ा सा अन्तराल लिए मस्तिष्क एवं जीवन रेखा का उदय हो तो हवाई सेना के लिए संकेत हैं।

अपने उदय के समय मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा थोड़ा गैप लेकर चले तथा मस्तिष्क रेखा के अंत में कोई फोर्क (द्विशाखा) हो, कनिष्ठा का पहला पोरा लम्बा एवं मजबूत हो तथा अच्छा बुध, तीन खड़ी लाइन युक्त हो तथा मजबूत अंगूठे का दूसरा पोरा सबल हो तो यह न्याय के क्षेत्र में ले जाने का संकेत है।

अंगुलियों की तुलना में लम्बी हथेली, कोणाकार अंगुलियां, मस्तिष्क एवं जीवन रेखा में प्रारम्भ से ही गैप तथा शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा एवं शुक्र व चन्द्र अच्छे हों तो समझ जाइए आपके गायकी क्षेत्र में जाने के संकेत हैं| लम्बी एवं शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा जिसकी एक शाखा बुध पर जाए, विकसित बुध तथा शुक्र तथा सूर्य एवं अच्छा चन्द्र एवं लम्बी कनिष्ठा अंगुली ऐक्टिंग के लिए उपयुक्त है। डांसर के लिए लचीला अंगूठा, लचीली एवं हथेली की तुलना में लम्बी अंगुलियां हों|

लम्बा अंगूठा, तर्जनी का लम्बा दूसरा पोरा वर्गाकार हथेली, अच्छी संधि गांठें, अंगुलियों की वर्गाकार नोक, विकसित शनि एवं लम्बी मध्यमा तथा मस्तिष्क रेखा एवं अच्छा बुध इंजीनियर के लिए उपयुक्त हैं। अच्छी एवं सफेद धब्बे युक्त मस्तिष्क रेखा तथा अच्छे बुध पर त्रिकोण का चिह्न वैज्ञानिक क्षेत्र में ले जाने के लिए उचित है। अच्छे बुध पर तीन-चार खड़ी लाइनें, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां तथा वर्गाकार हथेली तथा अच्छी आभास रेखा चिकित्सा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।

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जानिए कोई भी शुभ कार्य करते समय क्यों बनाते हैं स्वास्तिक?

हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही स्वस्तिक को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है। यूँ तो बहुत से लोग इसे हिन्दू धर्म का एक प्रतीक चिह्न ही मानते हैं । किन्तु वे लोग ये नहीं जानते कि इसके पीछे कितना गहरा अर्थ छिपा हुआ है। स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है । यहाँ "सु" का अर्थ है शुभ और "अस्ति" का अर्थ होना । संस्कृ्त व्याकरण अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो" ।

स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ सत्ता 'या' अस्तित्व और 'क' का अर्थ है करने वाला। इस प्रकार स्वस्तिक शब्द का अर्थ हुआ मंगल करने वाला। इसलिए देवता का तेज़ शुभ करनेवाला - स्वस्तिक करने वाला है और उसकी गति सिद्ध चिह्न 'स्वस्तिक' कहा गया है। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वस्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है।

किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक के नहीं किया जा सकता। चूंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं, अत: स्वस्तिक का पूजन करने का अर्थ यही है कि हम श्रीगणेश का पूजन कर उनसे विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो। स्वस्तिक बनाने से हमारे कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाते हैं। किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में या सामान्यत: किसी भी पूजा-अर्चना में हम दीवार, थाली या ज़मीन पर स्वस्तिक का निशान बनाकर स्वस्ति वाचन करते हैं। साथ ही स्वस्तिक धनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। आपको बता दें कि स्वस्तिक चिन्ह को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। जिन्हें शुभ कार्यो में आम की पत्तियों को आपने लोगों को अक्सर घर के दरवाजे पर बांधते हुए देखा होगा क्योंकि आम की पत्ती ,इसकी लकड़ी ,फल को ज्योतिष की दृष्टी से भी बहुत शुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है> 

भारतीय दर्शन के अनुसार स्वस्तिक की चार रेखाओं को चार वेद, चार पुरूषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश से तुलना की गई है। ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। जबकि सिद्धान्तसार ग्रन्थ में स्वास्तिक को विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है।

हर मंगल कार्य में स्वास्तिक बनाया जाता है, क्योंकि इसका बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान गं बीजमंत्र होता है। इसमें जो चार बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। भगवान गणेश की उपासना, धन और वैभव की देवी लक्ष्मी के साथ ही बही-खाते की पूजा में भी स्वास्तिक का विशेष स्थान है। स्वास्तिक की बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा में एक जैसा दिखता है। और इसी कारण यह घर में मौजूद हर प्रकार के वास्तुदोष को कम करने में सहायक होता है। इसके प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है। शास्त्रों में स्वास्तिक को विष्णु का आसन और लक्ष्मी का स्वरुप माना गया है। चंदन, कुमकुम और सिंदूर से बना स्वास्तिक ग्रह दोषों को दूर करने वाला होता है और यह धन कारक योग बनाता है। स्वास्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है।

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