कुंवारी लड़कियां करती हैं कुंवारे लड़कों की डंडो से पिटाई, जिसको पड़ा उसका ब्याह पक्का

दुनिया में ऐसे तो कई अजीबोगरीब परंपराएं हैं, जिनके बारे में सुनकर हम आश्चर्य में पड़ जाएंगे। कुछ ऐसी परंपराएं होतीं हैं जिन्हें आप कभी भी नहीं भुला पाते हैं। इन्हीं में से एक राजस्थान के जोधपुर की एक परम्परा| जोधपुर की अजीबोगरीब परंपरा को सुनकर आप चौंक जाओगे। 

इस उत्सव का नाम है 'धींगा गवर'। इस उत्सव में लड़कियां कुंवारे लड़कों को दौड़ा-दौड़ाकर डंडा मारती हैं। यहां की मान्यता के अनुसार डंडा अगर किसी लड़के पर लगता है तो उसका ब्याह होना पक्का समझा जाता है। इस उत्सव को बेंतमार गणगौर के रूप में जाना जाता है। यहां रात के समय हाथों में बेंत लिए महिलाएं और युवतियां अलग-अलग तरह के स्वांग रचकर सड़कों पर निकल जाती हैं। बेंत की पिटाई से बचने के लिए पुरूष और युवक भागते दौड़ते नजर आते हैं।

इस त्योहार के साथ सोलह अंक का सुंदर संयोग भी जुड़ा है। धींगा गवर मेला गवर माता की पूजा के सोलहवें दिन मनाया जाता है। तीजणियां सोलह दिन तक उपवास रखती हैं, फिर सोलह श्रृंगार कर धींगा गवर माता के दर्शन करने निकलती हैं। इस दौरान जो भी महिलाएं सोलह व्रतधारी होती हैं उनकी बांह पर सोलह गांठों वाला पवित्र सूत बंधा होता है, जिसे सोलहवें दिन उतार कर गवर माता की बांह पर इस उद्देश्य से बांध दिया जाता है कि अगले जन्म में वह अखंड सौभाग्यवती हो।

गवर माता को पार्वती का रूप माना जाता है। ईश्वर शिव के प्रतीक होते हैं। इसका पूजन सुहागिनें अपने इसी जन्म के भरतार की सुखद दीर्घायु के लिए करती है, जबकि धींगागवर का पूजन अगले जन्म में उत्तम जीवन साथी मिलने की कामना के साथ किया जाता है। धींगा गवर के पूजन में ये भी मान्यता है कि इसी सुहागिनों के साथ साथ कुंवारी कन्याएं और विधवाएं भी कर सकती है। चूंकि पूजा का महात्म्य अगले जन्म के लिए कामना करना होता है, इसलिए कुंवारी कन्याएं भी इसी उद्देश्य से और विधवा महिलाएं भी इस प्रार्थना के साथ पूजा करती हैं।

मारवाड़ में लगभग 80-100 वर्ष पहले ये मान्यता थी कि धींगा गवर के दर्शन पुरुष नहीं करते। क्योंकि तत्कालीन समय में ऐसा माना जाता था कि जो भी पुरुष धींगा गवर के दर्शन कर लेता था उसकी मृत्यु हो जाती थी। ऐसे में धींगा गवर की पूजा करने वाली सुहागिनें अपने हाथ में बेंत या डंडा ले कर आधी रात के बाद गवर के साथ निकलती थी। वे पूरे रास्ते गीत गाती हुई और बेंत लेकर उसे फटकारती हुई चलती। 

बताया जाता है कि महिलाएं डंडा फटकारती थी ताकि पुरुष सावधान हो जाए और गवर के दर्शन करने की बजाय किसी गली, घर या चबूतरी की ओट ले लेते थे। कालांतर में यह मान्यता स्थापित हुई कि जिस युवा पर बेंत (डंडा) की मार पड़ती उसका जल्दी ही विवाह हो जाता। इसी परंपरा के चलते युवा वर्ग इस मेले का अभिन्न हिस्सा बन गया है।

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