आमतौर पर मंदिरों में फूल, फल, मेवा-मिठाई का चढ़ावा चढ़ता है, लेकिन राजस्थान में एक ऐसा अनोखा मंदिर है, जहां प्याज का भोग लगाया जाता है| सूत्रों के अनुसार राजस्थान में गोगामे़डी स्थित गोगाजी और गुरू गोरखनाथ मंदिर में लोग बाकायदा प्याज चढ़ा रहे हैं। यह संभवत इकलौता मंदिर है जिसमें देवता को प्याज और दाल चढ़ाई जाती है। लोगों के अनुसार किवदंती है कि यहां पर प्याज व दाल चढाने से देवता प्रसन्न होते हैं।
बताते हैं कि करीब एक हजार साल पहले यहां गोगाजी व मजमूद गजनवी के बीच युद्ध हुआ था। गोगाजी ने इस युद्ध में सहायता के लिए विभिन्न स्थानों से सेनाएं बुलाई थीं जो अपने साथ भोजन के लिए प्याज और दाल लाए थे। इस युद्ध गोगाजी वीरगति को प्राप्त हुए। वापसी में जब सहायक सेनाएं अपने गंतव्य स्थान को वापस लौट रहीं थी तो लौटने से पहले बची हुई प्याज व दाल गोगाजी की समाधि पर अर्पित कर दी। तब से यह परंपरा है कि जो भी भक्त गोगाजी के दर्शन करने आता है वह प्याज व दाल चढाता है। कहते हैं गोगाजी को प्याज चढ़ाने से भक्त की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं|
इस मंदिर में भादों के महीने में प्रथम पखवाडे में 15 दिन मेला भरता है और इस मेले में लगभग 40-50 लाख लोग दर्शन के लिए पहुंचते हैं जिससे यहां पर सैकडों क्विंटल प्याज इकटा हो जाती है जिसे बेचकर जो राशि प्राप्त होती है उस राशि से मंदिर का भण्डारा किया जाता है और गौशाला चलाने के काम में यह राशि काम में ली जाती है।
आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक ऐसा मंदिर है जहां लोग इडली, दोसा, सांभर, बड़ा जैसे फास्ट फूड का भोग लगाते हैं| अमरैया चिंगराजपारा के मां धूमावती मंदिर में सिर्फ शनिवार को पूजा-आराधना होती है। लोग चटपटे व्यंजन लेकर मंदिर के द्वार पर खड़े रहते हैं। दूसरी खासियत कि यह देश का दूसरा एकलपीठ है। पहला धूमावती मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया में भारत-चीन युद्ध के दौरान भारत की जीत के लिए स्थापित हुआ था।
शिव-शक्ति दुर्गा मंदिर परिसर में 2005 में स्थापित मां धूमावती मंदिर में देवी का स्वरूप तामस है। यही वजह है कि देवी को चटपटे व्यंजनों का ही भोग लगाया जाता है। लहसुन, मिर्च, प्याज से बने व्यंजन तामसी होते हैं। शुरुआत में मिर्ची भजिया चढ़ाने का प्रचलन था। समय के साथ भोग भी बदले और अब इडली-दोसा तक चढ़ाए जाने लगे। इन व्यंजनों को बाद में प्रसाद के तौर पर बांट दिया जाता है। प्राचीन काल में देवी के इस रूप को भोग में बलि चढ़ाने की परंपरा थी। आमतौर पर धूमावती देवी की पूजा मंदिरों के बजाय श्मशानों में होती है, क्योंकि वे तांत्रिक आराधना के लिए जानी जाती हैं।
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