चिटफंड कंपनियों ने निवेशकों को लगाया 80 हजार करोड़ रुपए का चूना


नई दिल्ली: देशभर में चिटफंड कंपनियों के धोखाधड़ी के मामलों की जांच कर रही सीबीआई के आकलन के अनुसार, इस तरह की कंपनियों ने हजारों सीधे-सादे निवेशकों को कम से कम 80 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया है। एजेंसी के सूत्रों ने कहा कि जांच अब भी चल रही है और इसलिए यह राशि शुरुआती आकलन से बढ़ सकती है। देशभर में चल रहीं इन कंपनियों ने लोगों को आकर्षक ब्याज दर का प्रलोभन लेकर ठगा है। सूत्रों के अनुसार, देश के चार पूर्वी और उत्तर-पूर्वी राज्यों पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और त्रिपुरा में संचालित चिटफंड कंपनियों द्वारा छोटे निवेशकों से कथित तौर पर 30 हजार करोड़ रुपए एकत्रित किए गए हैं वहीं पंजाब और अन्य उत्तर भारतीय राज्यों में कारोबार कर रहे पर्ल्स समूह ने निवेशकों को 51 हजार करोड़ रुपए का चूना लगाया है।

इन कंपनियों द्वारा जमा धन को कथित तौर पर जमीन खरीदने, मीडिया संस्थान खोलने, होटल और अन्य कारोबारों में लगाया जाता है और निवेशकों का बकाया नहीं दिया जाता। सूत्रों के अनुसार, 80 हजार करोड़ रुपए का आंकड़ा अभी तक हुई जांच पर आधारित है और निवेशकों से इकट्ठे किए गए धन के बारे में अब भी पड़ताल जारी है। इन चार राज्यों में 253 प्राथमिकियों के आधार पर सीबीआई ने अब तक 76 मामले दर्ज किए हैं। एजेंसी ने घोटाले के सिलसिले में 31 आरोपपत्र दाखिल किए हैं। एजेंसी ने रोज वैली समूह के खिलाफ तीन और सारदा समूह के खिलाफ सात मामले धोखाधड़ी के दर्ज किए हैं। सूत्रों ने कहा कि देशभर में इस तरह की कंपनियों ने करीब छह करोड़ लोगों को ठगा है जिनमें अधिकतर को कथित तौर पर पर्ल्स समूह ने फंसाया जो पिछले करीब 20 साल से कारोबार चला रहा था और अब एजेंसी ने उस पर लगाम कसी।

घोटाले की जांच बहुत मुश्किल काम है जहां एक पूर्व केंद्रीय मंत्री, एक प्रदेश स्तर के मंत्री, एक सांसद, एक पूर्व पत्रकार और राजनेताओं के नाम बड़े संचालकों के तौर पर शामिल हैं। एजेंसी ने कहा कि चिटफंड घोटाले जैसे आर्थिक अपराधों की जांच में बहुत कागजी कामकाज करना होता है क्योंकि धन का प्रवाह सामान्य तौर पर फाइलों और कंप्यूटरों में जटिल तरीके से परतों में छिपा होता है। आंकड़ों के विश्लेषण के लिए भी मदद की जरूरत होती है और इसलिए इसमें समय लग जाता है। उन्होंने कहा कि एजेंसी को संदेह है कि नियामकों के कुछ अफसरों द्वारा इन कंपनियों के परिचालन की अनदेखी किए बिना इतना बड़ा घोटाला होना संभव नहीं है। एजेंसी ने इस संबंध में सेबी तथा आरबीआई के अफसरों से सवाल किए हैं।

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