धर्म शास्त्रो में भगवान शिव को जगत पिता बताया गया हैं, क्योकि भगवान शिव सर्वव्यापी एवं पूर्ण ब्रह्म हैं। हिंदू संस्कृति में शिव को मनुष्य के कल्याण का प्रतीक माना जाता हैं। शिव शब्द के उच्चारण या ध्यान मात्र से ही मनुष्य को परम आनंद की अनुभूति होती है। भगवान शिव भारतीय संस्कृति को दर्शन ज्ञान के द्वारा संजीवनी प्रदान करने वाले देव हैं। इसी कारण अनादिकाल से भारतीय धर्म साधना में निराकार रूप में होते हुवे भी शिवलिंग के रूप में साकार मूर्ति की पूजा होती हैं। लेकिन अभी तक भगवान भोलेनाथ के बारे में आप यही जान रहे होंगे कि भगवान शिव की दो पत्नियां थी लेकिन थी देवी सती और दूसरी माता पार्वती। लेकिन यदि हिन्दू पौराणिक कथाओं की माने तो भगवान नीलकंठेश्वर ने एक दो नहीं बल्कि चार विवाह किये थे। उन्होंने यह सभी विवाह आदिशक्ति के साथ ही किए थे।
भगवान शिव ने पहला विवाह माता सती के साथ किया जो कि प्रजापति दक्ष की पुत्री थीं। पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं जन्मी और वीरणी से साठ कन्याएं। इस तरह दक्ष की 84 पुत्रियां और हजारों पुत्र थे। राजा दक्ष की पुत्री 'सती' की माता का नाम था प्रसूति। यह प्रसूति स्वायंभुव मनु की तीसरी पुत्री थी। सती ने अपने पिती की इच्छा के विरूद्ध कैलाश निवासी शंकर से विवाह किया था। सती ने अपने पिता की इच्छा के विरूद्ध रुद्र से विवाह किया था। लेकिन, जब अपने पिता के यज्ञ में बिन बुलाए पहुंची सती के सामने भगवान शिव का अपमान हुआ, तब उन्होंने यज्ञ कुंड में ही अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। ऐसे में भगवान शिव माता सती का शव लेकर कई दिनों तक भटकते रहे। माता सती के शव जहां-जहां गिरे वहां पर 51 शक्तिपीठ बन गए।
माता सती के वियोग में भगवान शिव काफी दुःखी थे। इस दुःखद घटना के कई वर्षों बाद भगवान शिव का फिर से विवाह हुआ इस बार उनकी अर्धांगिनी बनी देवी पार्वती। देवी पार्वती हिमालय की पुत्री थीं। उन्हें अल्पआयु में ही भगवान शिव को अपना पति मानकर उनका वरण किया और उनका विवाह बाद में भगवान शिव से हुआ। देवी पार्वती को भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप करना पड़ा था। भगवान गणेश मां पार्वती के ही पुत्र हैं। देवी पार्वती ही मां दुर्गा हैं।
हमारे धर्मग्रंथों में भगवान शिव का तीसरी पत्नी देवी उमा को बताया गया है। देवी उमा को भूमि की देवी भी कहा जाता है। मां उमा देवी दयालु और सरल ह्दय की देवी हैं। आराधना करने पर वह जल्द ही प्रसन्न हो जाती हैं।
उमा के साथ महेश्वर शब्द का उपयोग किया जाता है। अर्थात महेश और उमा। कश्मीर में एक स्थान है उमा नगरी। यह नगरी अनंतनाग क्षेत्र के उत्तर में हिमालय में बसी है। यहां विराजमान है उमा देवी। भक्तों का ऐसा विश्वास है कि देवी स्वयं यहां एक नदी के रूप में रहती हैं जो ओंकार का आकार बनाती है जिसके साथ पांच झरने भी हैं।
भगवान शिव की चौथी पत्नी मां महाकाली को बताया गया है। उन्होंने इस पृथ्वी पर भयानक दानवों का संहार किया था। वर्षों पहले एक ऐसा भी दानव हुआ जिसके रक्त की एक बूंद अगर धरती पर गिर जाए तो हजारों रक्तबीज पैदा हो जाते थे। इस दानव को मौत की नींद सुलाना किसी भी देवता के वश में नहीं था। तब मां महाकाली ने इस भयानक दानव का संहार कर तीनों लोकों को बचाया। रक्तबीज को मारने के बाद भी मां का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था, तब भगवान शिव उनके चरणों में लेट गए गलती से मां महाकाली का पैर भगवान शिव के सीने पर रख गया। इसके बाद उनका गुस्सा शांत हुआ।
इसके अलावा जानिए भगवान भोलेनाथ के कितने पुत्र थे-
भगवान शिव के साथ साथ उनके पुत्र कार्तिकेय और गणेश भी देवो में पूजनीय है पर क्या आप जानते है की इन दोनों के आलावा भी शिव के चार अन्य पुत्र है .. इस प्रकार शिव के दो नही वरन 6 पुत्र थे | आइये जानते है कैसे हुआ शिवजी के इन 6 पुत्रो का जन्म ;-
गणेश :- गणेश की उत्तपति पार्वती जी ने चन्दन से की थी ,एक बार गणेश का द्वार पर बिठा कर पार्वतीजी स्नान कर रही थी .इतने में शिव भवन में प्रवेश करने लगे .जब गणेश ने उन्हें रोक तो क्रोध में शिव ने गणेश का सिर काट दिया .जब पार्वती ने देखा की उनके पुत्र का सिर काट दिया है तो वे क्रोधित हो गई | उन्हें शांत करने के लिए शिवजी ने गणेश के सिर के स्थान पर एक हाथी का सिर लगा दिया. और वे फिर से जीवित हो उठे |
कार्तिकेय :- जब शिव शती के आग में भस्म होने कारण दुःख से तपस्या में लीन हो गए थे तब धरती पर तारकासुर नामक दैत्य धरती पर अत्याचार मचाने लगा | उस दैत्य के अत्याचार से परेशान होकर देवता ब्रह्मा जी के पास गए तब ब्रह्माजी ने कहा की इसका समाधान शिवजी का पुत्र ही कर सकता है | फिर देवता शिव के पास गए और तारकासुर के अत्याचारों से मुक्ति के लिए प्राथना करी | उनकी प्राथना सुन शिव,पार्वती से शुभ घड़ी व शुभ मुहरत में विवाह करते है , इस प्रकार भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ |
सुकेश :- शिव का तीसरा पुत्र था सुकेश | दानवो में दो भाई थे हेति और प्रहेति | दानवो ने इन्हे अपना प्रतिनिधि बनाया, ये दोनों भाई बलशाली और प्रतापी थे |प्रहेति धर्मिक था और हेति को राजपाट और राजनीति की लालशा थी | दानव हेति ने अपने वंश को आगे बढ़ाने के लिए काल की पुत्री से ‘भय’ से विवाह कर लिया .कुछ समय पश्चात उनका पुत्र हुआ जिसका नाम था विद्युत्केश | विद्युत्केश का विवाह सालकटंकटा से हुआ क्योकि सालकटंकटा व्यभिचारणी थी इस कारण उन्होंने अपने पुत्र को लवारिश छोड़ दिया | पुराणो के अनुसार जब भगवान शिव और पार्वती की उस लावारिश बालक पर नजर गई तो उन्होंने उसे गोद लिया |
जलंधर :- जलंधर शिव जी का ही अंश था, एक बार जब शिव ने अपना तेज जल में फेका तो उस से जलंधर की उत्पति हुई | जलंधर बहुत ही शक्तिशाली था उसने अपने आक्रमण से स्वर्ग में कब्जा कर लिया तो वे शिवजी के पास गए और उन्हें पूरी घटना बताई | शिव ने इंद्रा से जलंधर की पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म तोड़ने को कहा क्योकि उंसकी पतिव्रता धर्म की शक्ति के कारण शिव जलंधर को पराजित करने में असमर्थ थे | अतः इंद्र ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा का पतिवर्त धर्म तोडा तथा शिव ने जलंधर का वध कर दिया|
अयप्पा :- अयप्पा भगवन शिव और मोहिनी का पुत्र था | कहते हैं कि जब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था तो उनकी मादकता से भगवान शिव का वीर्यपात हो गया था और उस वीर्य से इस बालक का जन्म हुआ | दक्षिण भारत में अयप्पा देव की पूजा अधिक की जाती हैं अयप्पा देव को ‘हरीहर पुत्र’ के नाम से भी जाना जाता हैं |
भौम :- भौम भगवान शिव के पसीने से उत्पन हुआ था .जब भगवान शिव तपश्या में लीन थे तो उस समय उनके सर से पसीने की एक बून्द टपकी जो धरती पर गिरी | इन पसीने की बूंदों से एक सुंदर और प्यारे बालक का जन्म हुआ, जिसके चार भुजाएं थीं | इस पुत्र का पृथ्वी ने पालन पोषण करना शुरु किया। तभी भूमि का पुत्र होने के कारण यह भौम कहलाया। कुछ बड़ा होने पर मंगल काशी पहुंचा और भगवान शिव की कड़ी तपस्या की। तब भगवान शिव ने प्रसन्न होकर उसे मंगल लोक प्रदान किया ।
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