दुनिया भर में ऊंची इमारत बनाने वाला देश अब कृत्रिम पहाड़ बनाने की कोशिश में है। ताकि यहां के लोगों को देश में गर्मी से निजात मिल सके व जल संकट से जूझ रहे इस देश में बारिश ज्यादा हो व लोग बारिश का आनंद उठा सकें। यह कृत्रिम पहाड़ 1.93 किलोमीटर ऊंचा बनेगा ताकि पर्याप्त बारिश हो सके। यूएई की सरकार ने इस योजना पर शोध शुरू करने के साथ ही अमेरिका की कंपनी ‘‘नेशनल सेंटर फॉर एटमस्फेरिक रिसर्च’ (एनसीएआर) को इससे संबंधित अध्ययन करने के लिए तैनात किया है। इससे पता लगेगा कि कैसा, कितना ऊंचा, कितना चौड़ा और कितनी ढलान वाला पहाड़ बनाने पर बारिश में इजाफा होगा।
इस गर्मी के मौसम तक प्रारंभिक रिपोर्ट आने की संभावना है। वैसे तो पहाड़ों से बारिश कैसे होती है, यह बहुत लोग जानते हैं। कहा जाता है कि नम वायु पहाड़ से टकराकर ऊपर की ओर उठती हैं और ठंडी होती जाती है। यह हवा संघनित होकर पानी में बदल जाती है, यही पानी बारिश के रूप में गिरता है। जिस तरह के पहाड़ से हवा टकराती है वहां बारिश होती है, जबकि पहाड़ का दूसरा हिस्सा सूखा रह जाता है।यूएई मध्यपूर्व का ऐसा देश है जहां पर रेगिस्तान अधिक है। इस कारण से भी यहां साल में बेहद कम करीब पांच इंच बारिश होती है। गर्मी के दिनों में यहां 43.33 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है, लेकिन बारिश नहीं के बराबर होती है। दूसरे देशों से तुलना करें तो भारत में यहां से तीन से पांच गुना और अमेरिका में आठ गुना तक बारिश साल में होती है।
यूएई की सरकार ने कृत्रिम बारिश पर छह करोड़ खर्च कर पिछले साल क्लाउड सीडिंग तकनीक के बारिश कराने की कोशिश की थी। यहां साल में कुल 186 जगहों पर क्लाउड सीडिंग कराई गई है। वहीं तीस करोड़ रु पए का फंड बारिश बढ़ाने सबंधी शोध के लिए दिया गया है। इससे फायदा भी हुआ है, पिछले दिनों यहां कुछ इलाकों में एक दिन में 11 इंच तक बारिश हुई है। पानी की कमी को देखते हुए यूएई की सरकार ने पानी से जुड़े कई बड़े प्रोजेक्ट अपने हाथों में लिए हैं और इसी सिलसिले में देश में समुद्री पानी को पेयजल में बदलने के लिए बनाए कई संयंत्र लगाए जाने वाले हैं।
इस गर्मी के मौसम तक प्रारंभिक रिपोर्ट आने की संभावना है। वैसे तो पहाड़ों से बारिश कैसे होती है, यह बहुत लोग जानते हैं। कहा जाता है कि नम वायु पहाड़ से टकराकर ऊपर की ओर उठती हैं और ठंडी होती जाती है। यह हवा संघनित होकर पानी में बदल जाती है, यही पानी बारिश के रूप में गिरता है। जिस तरह के पहाड़ से हवा टकराती है वहां बारिश होती है, जबकि पहाड़ का दूसरा हिस्सा सूखा रह जाता है।यूएई मध्यपूर्व का ऐसा देश है जहां पर रेगिस्तान अधिक है। इस कारण से भी यहां साल में बेहद कम करीब पांच इंच बारिश होती है। गर्मी के दिनों में यहां 43.33 डिग्री सेल्सियस तापमान रहता है, लेकिन बारिश नहीं के बराबर होती है। दूसरे देशों से तुलना करें तो भारत में यहां से तीन से पांच गुना और अमेरिका में आठ गुना तक बारिश साल में होती है।
यूएई की सरकार ने कृत्रिम बारिश पर छह करोड़ खर्च कर पिछले साल क्लाउड सीडिंग तकनीक के बारिश कराने की कोशिश की थी। यहां साल में कुल 186 जगहों पर क्लाउड सीडिंग कराई गई है। वहीं तीस करोड़ रु पए का फंड बारिश बढ़ाने सबंधी शोध के लिए दिया गया है। इससे फायदा भी हुआ है, पिछले दिनों यहां कुछ इलाकों में एक दिन में 11 इंच तक बारिश हुई है। पानी की कमी को देखते हुए यूएई की सरकार ने पानी से जुड़े कई बड़े प्रोजेक्ट अपने हाथों में लिए हैं और इसी सिलसिले में देश में समुद्री पानी को पेयजल में बदलने के लिए बनाए कई संयंत्र लगाए जाने वाले हैं।
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