जाने लक्ष्मी के होते हुए श्रीविष्णु के साथ किस तरह हुआ कलावती का विवाह

धर्मशास्त्र में दशविध विवाहों की चर्चा है। इनमें से प्रमुख हैं गांधर्व विवाह, राक्षस विवाह और माता-पिता द्वारा निर्धारित विवाह। इस विधान के बावजूद कन्या का विवाह प्राचीन काल से ही एक प्रश्नचिह्न् बना रहा है। आज भी यह समस्या प्रासंगिक है। पुराण युग में यह समस्या कितनी जटिल थी, स्कंद पुराण की इस कथा से यह पता चलता है : 

महर्षि अगत्स्य ने तपस्या करने आई कलावती से पूछा, "बेटी, तुम कहां से आ रही हो? इस अल्पायु में तपस्या करने का कारण क्या है?"

महर्षि के इस प्रश्न पर कलावती ने वृत्तांत सुनाया कि प्राचीन काल में कांपिल्य नगर में धर्मसेतु नामक राजा शासन करते थे। उनकी सहधर्मिणी कुमुद्धती के कोई संतान न थी। धर्मसेतु ने संतान प्राप्ति के लिए अनेक दान, धर्म, व्रत और उपवास किए, तीर्थाटन भी किया, परंतु उनकी मनोकामना पूरी नहीं हुई।

एक बार राजमहल में भिक्षा के लिए एक योगिनी आई, परंतु भिक्षा ग्रहण किए बिना लौटने लगी। रानी कुमुद्धती ने योगिनी से पूछा, "आप भिक्षा पाने के लिए आईं, किंतु भिक्षा ग्रहण किए बिना क्यों लौट रही हैं?

योगिनी ने कहा, "आप पुत्रवती नहीं हैं, इसीलिए मैं आपके हाथ की भिक्षा नहीं ग्रहण करूंगी।" इस पर रानी ने योगिनी से विनती की कि वह भोजन ग्रहण करके ही राजमहल से लौटे।

योगिनी ने रानी कुमुद्धती की प्रार्थना सुन ली। बहुविध मिष्ठान्न ग्रहण करके संतुष्ट होकर वरदान दिया, "कुमुद्धती, यह उत्तम फल ग्रहण करो। इमली के वन में इस फल का सेवन करके संतान लाभ करो।"

तपस्विनी ने महर्षि से कहा, "रानी ने योगिनी के आदेशानुसार इमली वन में प्रवेश किया तो एक पेड़ पर फल देखा। उस फल का सेवन करके एक पुत्र तथा एक पुत्री को जन्म दिया। रानी ने अपने पुत्र का नाम इंद्रकीर्ति तथा पुत्री का नाम कलावती रखा। मैं वही कलावती हूं।"

कलावती ने आगे का वृत्तांत सुनाया, "मेरे वयस्क होते ही राजा धर्मसेतु ने मेरा विवाह करने का संकल्प किया। मनीषियों का मानना है कि कन्या के वयस्क होने पर उसका विवाह न करने से उसका दोष माता-पिता को लगता है। अलावा इसके मातृवंश, पितृवंश तथा श्वसुरवंश के उद्धार के लिए कन्या का विवाह अनिवार्य होता है। यह दायित्व कन्या के पिता का बनता है। इसीलिए कन्या माता-पिता के लिए दुख का कारणभूत बन जाती है। मेरे विवाह को लेकर मेरे पिता राजा धर्मसेतु चिंतित थे। आखिर समस्त राजाओं के पास आमंत्रण-पत्र भेजकर मेरे स्वयंवर का प्रबंध किया।"

"उस स्वयंवर में अंग, वंग, कलिंग इत्यादि अनेक देशों के राजा पधारे। मेरे सौंदर्य पर मुग्ध हो सभी राजा मोहजाल में फंस गए। एक राजा ने स्वयंवर मंडप में आगे बढ़कर कहा, "यह राजकन्या मेरी है। मैं इसके साथ विवाह करना चाहता हूं।" दूसरे ने इसका प्रतिवाद करते हुए कहा, "नहीं, इस कन्या को मैं अपनी पत्नी बनाना चाहता हूं।" तीसरे ने कहा, "मैं तुम दोनों से कहीं अधिक पराक्रमी हूं और मेरा राज्य बड़ा है।" 

"इस तरह प्रत्येक राजा ने अभिमान में आकर परस्पर द्वंद्व युद्ध किया। आखिर स्वयंवर में आए हुए सभी राजा आपस में लड़ मरे। परिणामस्वरूप स्वयंवर भंग हुआ। इसी चिंता में मेरे पिताजी ने प्राण त्याग दिए, मेरी माताजी ने अपने पति का अनुगमन किया। इस पर वृद्ध मंत्रियों ने मंत्रणा करके मेरे भाई इंद्रकीर्ति का राज्याभिषेक किया। मैं माता-पिता से वंचित होकर अनाथ बन गई।"

"राज्य, धन-संपत्ति, बंधु-बांधव, मित्र, दान-धर्म इत्यादि स्त्री के लिए सुखदायक नहीं हो सकते। दांपत्य जीवन नारी के लिए स्वर्गतुल्य है। इसलिए मैं दांपत्य जीवन प्राप्त करने के लिए व्याकुल रहने लगी। मंत्रियों ने मुझे सांत्वना दी। परंतु समाज मुझे मातृ-पितृ तथा राजहंता कहकर मेरी निंदा करता रहा। आखिर मैं तंग आकर अपने पिता का घर छोड़कर निकल आई। आत्महत्या करने के विचार से प्रयाग क्षेत्र में पहुंची, किंतु आत्महत्या महापाप है, यह पुराणोक्ति सुनकर मैंने अपना विचार बदल लिया।"

"अंत में मुनि भरद्वाज के अनुग्रह से मैं दीक्षित हो गई। भरद्वाज महर्षि ने मुझे बताया कि विंध्याचल के दक्षिण में स्थित विरजा क्षेत्र पापविनाशकारी है। इसलिए मैंने संकल्प किया कि विरजा तीर्थ में घोर तपस्या करके वहीं पर अपना शरीर त्याग दूंगी। मेरी तपस्या का उद्देश्य है- चाहे मुझे अनेक जन्म भले ही धारण करना पड़े, किंतु मैं श्रीमहाविष्णु को ही अपने पति के रूप में प्राप्त करना चाहती हूं। उनके अतिरिक्त मैं किसी अन्य पुरुष को अपने पति के रूप में प्राप्त करने की कामना नहीं रखती।"

महर्षि अगत्स्य ने कलावती से सारा वृत्तांत सुना और सलाह दी, "तुम विरजा तीर्थ में जाकर तप करो।" फिर उन्होंने कंद-मूल, फल देकर उसका अतिथि सत्कार किया। एक रात महर्षि अगत्स्य के आश्रम में बिताकर सुबह होते ही महर्षि की अनुमति लेकर कलावती तपस्या करने निकल पड़ी।

विरजा क्षेत्र में पहुंचकर वैष्णव-मंत्र का जाप करते हुए कलावती ने तप आरंभ किया। शिशिर ऋतु में कटि तक जल में खड़े रहकर तप किया, ग्रीष्म ऋतु और वर्षा काल में खुले मैदान में। हेमंत में गीले वस्त्र धारण कर और वसंत में धूप में खड़े हाकर तप करती रही। जप, तप, उपवास और व्रत के साथ धूप-दीप, पुष्पों से कलावती ने विष्णु की आराधना की। आखिर उसकी तपस्या सफल हुई। 

शंख, चक्र, गदा, वैजयंती एवं पीतांबरधारी विष्णु गरुड़ पर सवार हो लक्ष्मी समेत कलावती के सामने प्रत्यक्ष हुए और वांछित वर मांगने को कहा। कलावती ने जनार्दन को भक्तिपूर्वक प्रणाम करके निवेदन किया, "भगवन् मैं पति कामिनी हूं। मैं आदि-मध्यांत रहित श्रीमहाविष्णु को अपने पति के रूप में पाना चाहती हूं।"

विष्णु के समीप स्थित लक्ष्मीदेवी ने कुपित होकर कलावती से पूछा, "मेरे रहते तुम मेरे पति को कैसे वरण कर सकती हो? इस जन्म में तुम कभी इनकी पत्नी नहीं हो सकती। अगले जन्म में भी मैं ही श्रीमहाविष्णु की पत्नी बनूंगी।" 

इस पर श्रीमहाविष्णु ने कलावती से कहा, "श्रीमहालक्ष्मी का कथन सत्य होगा। परंतु कलावती सुनो, इस समय कृतयुग चल रहा है। त्रेता युग के पश्चात् द्वापर युग में मैं यदुवंश में जन्म धारण करूंगा। देवकी-वसुदेव पुण्य दंपति हैं। मैं उनके घर में अवतार लूंगा। उस समय लक्ष्मीदेवी भूलोक में रुक्मिणी के नाम से जन्म धारण करेगी। तुम सत्राजित की पुत्री सत्यभामा के रूप में जन्म धारण करोगी। तुम चिंता न करो। द्वापर में तुम मेरे लिए अत्यंत प्रियतमा बनोगी। इस बीच तुम पुण्यलोक प्राप्त करके मेरी पत्नी के रूप में जन्म लोगी।" यह वरदान देकर श्रीमहाविष्णु अंतर्धान हो गए।

कलावती को पुण्यलोक प्राप्त हुआ। द्वापर युग में सत्यभामा के रूम में जन्म धारण करके वह श्रीकृष्ण की पत्नी बनी। इसी प्रकार सती ने कन्या का व्रत करके शंकर को पति के रूप में प्राप्त किया और उनकी अर्धागनी बनी थी।

...इस तरह दो मित्र बन गए पति- पत्नी

प्राचीनकाल में सारस्वत और वरमित्र नामक दो मित्र रहा करते थे। सारस्वत का पुत्र सोमवंत था और वरमित्र का पुत्र सुमेध। उन दोनों के बीच गहरी मैत्री थी। वे एक ही गुरुकुल में पढ़ते थे। दोनों ने कालांतर में समस्त शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त किया। दोनों मित्र बाद में पति-पत्नी बन गए। कैसे? आइए जानें.. 

सोमवंत और सुमेध जब वयस्क हुए, तब एक दिन उनके माता-पिता ने उन्हें समझाया, "सुनो बेटे! तुम्हारा विवाह करने के लिए हमारे पास पर्याप्त धन नहीं है, इसलिए तुम विदर्भ राज्य में जाओ। वहां के राजा को अपनी विद्या से प्रसन्न करके पुरस्कार और सम्मान प्राप्त करो।"

माता-पिता की सलाह पाकर सोमवंत और सुमेध विदर्भ नरेश की राजसभा में गए। राजा ने उन वटुओं को देख परिहासपूर्वक कहा, "निषध देश की रानी सीमंतिनी सोमवार का व्रत रखती हैं और दंपतियों की पूजा करके उन्हें धन, सुवर्ण, वस्तु और वाहन पुरस्कार रूप में दे रही हैं। इसलिए तुम दोनों में से एक स्त्री का वेष धारण कर लो और दंपति के रूप में उनके दर्शन करो। वह तुम्हें पर्याप्त संपदा दे देंगी।"

"महाराज! हम ऐसे कपट वेष कभी धारण नहीं करेंगे। हमने वेद-शास्त्रों का अध्ययन किया है। ज्योतिषशास्त्र की भी जानकारी रखते हैं। केवल धन-सम्पत्ति पाने के लिए हम ऐसे नीच कार्य नहीं करेंगे।" दोनों युवकों ने उत्तर दिया।

राजा ने क्रोध में आकर कहा, "यह मेरा आदेश है। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे, तो तुम्हें कठिन दंड मिलेगा।"

बेचारे दोनों युवक डर गए। विवश होकर सोमवंत ने नारी का वेष धर लिया और सुमेध पति के रूप में। दोनों निषध देश पहुंचे। वहां पर रानी सीमंतिनी महेश्वर की अर्चना करके उस वक्त आए हुए दंपतियों की पूजा कर रही थीं। सुमेध और सोमवंत भी दंपति के रूप में उस व्रत में सम्मिलित हुए। नारी के वेषधारी सोमवंत को देख रानी सीमंतिनी ने सोचा कि वह सचमुच नारी ही है, इसलिए उसका भी विशेष रूप से सत्कार किया। इसके बाद वे युवक इस आशंका से कि उनका कपट प्रकट न हो जाए, वे उसी रात अपने नगर की ओर चल पड़े।

परंतु आश्चर्य की बात थी कि मध्य मार्ग में सोमवंत सचमुच नारी के रूप में बदल गया। सुमेध के प्रति उसके मन में मोह उत्पन्न हुआ। अंत में वे सुमेध और सोमवती के रूप में अपने घर पहुंचे। अपने एकमात्र पुत्र को नारी के रूप में परिवर्तित देख सारस्वत और उनकी पत्नी अत्यंत दु:खी हुए। सारस्वत ने भांप लिया कि यह अनहोनी घटना विदर्भ नरेश के कारण ही घटित हुई है। वे अत्यंत क्रोधित हुए। तत्काल राजदरबार में प्रवेश करके सारस्वत ने तीव्र शब्दों में राजा से कहा, "राजन्! आप ही के कारण मेरा एकमात्र पुत्र नारी बन गया है। इसका कुफल आपको भोगना ही पड़ेगा।"

विदर्भ राजा यह वृत्तांत सुनकर विस्मित हो गए। उन्हें इस घटना पर अपार दुख और पश्चाताप हुआ। उन्होंने सोमवंत के प्रति न्याय करने के विचार से पार्वती और परमेश्वर की घोर तपस्या की। पार्वती ने प्रत्यक्ष हाकर पूछा, "मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं। कोई वर मांग लो।" राजा ने सोमवती को पुन: पुरुष के रूप में परिवर्तित करने का वर मांगा।

पार्वती ने कहा, "यह कदापि संभव नहीं है। रानी सीमंतिनी को सोमवंत नारी के रूप में दिखा था, इसलिए उसका यही रूप रहेगा। सोमवंत अब सोमवती है, उसका विवाह सुमेध से करवा दो। इस दंपति के एक सुयोग्य पुत्र पैदा होगा।" पार्वती के आदेश को शिरोधार्य कर सारस्वत ने सुमेध के साथ सोमवती का विवाह कर दिया।

जानिए भगवान विष्णु के वराह अवतार की कथा

वैकुंठ में श्रीमहाविष्णु का निवास माना जाता है। उनके भवन में कोई अनाधिकार प्रवेश न करे, इसलिए जय और विजय नामक दो द्वारपाल पहरा देते रहते थे। एक बार सनक महामुनि तथा उनके साथ कुछ अन्य मुनि श्रीमहाविष्णु के दर्शन करने उनके निवास पर पहुंचे। जय और विजय ने उन्हें महल के भीतर प्रवेश करने से रोका। इस पर मुनियों ने कुपित होकर द्वारपालों को शाप दिया, "तुम दोनों इसी समय राक्षस बन जाओगे, किंतु महाविष्णु के हाथों तीन बार मृत्यु को प्राप्त करने के बाद तुम्हें स्वर्गवास की प्राप्ति होगी।"

सांयकाल का समय था। महर्षि कश्यप संध्यावंदन अनुष्ठान में निमग्न थे। उस समय महर्षि कश्यप की पत्नी दिति वासना से प्रेरित हो अपने को सब प्रकार से अलंकृत कर अपने पति के समीप पहुंची। कश्यप महर्षि ने दिति को बहुविध समझाया, "देवी! मैं प्रभु की प्रार्थना और संध्यावंदन कार्य में प्रवृत्त हूं, इसलिए काम-वासना की पूर्ति करने का यह समय नहीं है।" किंतु दिति ने हठ किया कि उसकी इच्छा की पूर्ति इसी समय हो जानी चाहिए। 

अंत में विवश होकर कश्यप को उसकी इच्छा पूरी करनी पड़ी। फलत: दिति गर्भवती हुई। मुनि पत्नी दिति ने दो पुत्रों को जन्म दिया। जय ने हिरण्याक्ष के रूप में और विजय ने हिरण्यकशिपु के रूप में जन्म लिया। इन दोनों के जन्म से प्रजा त्रस्त हो गई। दोनों राक्षस भ्राताओं ने समस्त लोक को कंपित कर दिया। उनके अत्याचारों की कोई सीमा न रही। वे समस्त प्रकार के अनर्थो के कारण बने।

कालांतर में हिरण्याक्ष तथा देवताओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। युद्ध जब चरम सीमा पर पहुंचा, तब हिरण्याक्ष पृथ्वी की गेंद की तरह वृत्ताकार में लपेटकर समुद्र-तल में पहुंचा। भूमि के अभाव में सर्वत्र केवल जल ही शेष रह गया। इस पर देवताओं ने श्रीमहाविष्णु के दर्शन करके प्रार्थना की कि वे पुन: पृथ्वी को यथास्थान स्थिर रखें। उस वक्त ब्रह्मा के पुत्र स्वायंभुव मनु अपने पिता की सेवा में उपस्थित रहकर उनकी परिचर्या में निरत थे। अपने पुत्र की सेवाओं से प्रमुदित होकर ब्रह्मा ने मनु को सलाह दी, "हे पुत्र! तुम देवी की प्रार्थना करो। उनके आशीर्वाद प्राप्त करो। तुम अवश्य एक दिन प्रजापति बन जाओगे।"

स्वांयभुव ने ब्रह्मा के सुझाव पर जगदंबा देवी के प्रति निश्चल भक्ति एवं अकुंठित भाव से कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या पर प्रसन्न होकर जगदंबा प्रत्यक्ष हुईं और कहा, "पुत्र! मैं तुम्हारी श्रद्धा, भक्ति, निष्ठा और तपस्या पर प्रसन्न हूं, तुम अपना वांछित वर मांगो। मैं अवश्य तुम्हारा मनोरथ पूरी करूंगी।"

स्वायंभुव ने हाथ जोड़कर विनम्रतापूर्वक जगदंबा से निवेदन किया, "माते! मुझे ऐसा वर प्रदान कीजिए जिससे मैं बिना किसी प्रकार के प्रतिबंध के सृष्टि की रचना कर सकूं।" जगदंबा ने स्वायंभुव मनु पर अनुग्रह करके वर प्रदान किया। 

स्वायंभुव अपने मनोरथ की सिद्धि पर प्रसन्न होकर ब्रह्मा के पास लौट आए और कहा, "पिताजी! मुझे जगदंबा का अनुग्रह प्राप्त हो गया है। आप मुझे आशीर्वाद देकर ऐसा स्थान बताइए, जहां पर मैं सृष्टि रचना का कार्य संपन्न कर सकूं।"

ब्रह्मदेव दुविधा में पड़ गए, क्योंकि हिरण्याक्ष पृथ्वी को ढेले के रूप में लपेटकर अपने साथ जल में ले जाकर छिप गया है। ऐसी हालत में सृष्टि की रचना के लिए कहां पर वे उचित स्थान बता सकते हैं। सोच-विचारकर वे इस निर्णय पर पहुंचे कि महाविष्णु ही इस समस्या का समाधान कर सकते हैं।

फिर क्या था, बह्मदेव ने महाविष्णु का ध्यान किया। ध्यान के समय ब्रह्मा ने दीर्घ निश्वास लिया, तब उनकी नासिका से एक सूअर निकल आया। वह वायु में स्थित हो क्रमश: अपने शरीर का विस्तार करने लगा। देखते-देखते एक विशाल पर्वत के समान परिवर्तित हो गया। सूअर के उस बृहदाकार को देखकर स्वंय ब्रह्मा विस्मय में आ गए। 

सूअर ने विशाल रूप धारण करने के बाद हाथी की भांति भयंकर रूप से चिंघाड़ा। उसकी ध्वनि समस्त लोकों में व्याप्त हो गई। मर्त्यलोक तथा सत्यलोक के निवासी समझ गए कि यह महाविष्णु की माया है। सबने आदि महाविष्णु की लीलाओं का स्मरण किया। उसके बाद सूअर रूप को प्राप्त आदिविष्णु चतुर्दिक प्रसन्न दृष्टि प्रसारित कर पुन: भयंकर गर्जन कर जल में कूद पड़े। उस आघात को जलदेवता वरुण देव सहन नहीं कर पाए। उन्होंने महाविष्णु से प्रार्थना की, "आदि देव! मेरी रक्षा कीजिए।" ये वचन कहकर वरुण देव उनकी शरण में आ गए।

सूअर रूपधारी जल के भीतर पहुंचे। पृथ्वी को अपने लंबे दांतों से कसकर पकड़ लिया और जल के ऊपर ले आए। महाविष्णु को पृथ्वी को उठा ले जाते देखकर हिरण्याक्ष ने उनका सामना किया। महाविष्णु ने क्रुद्ध होकर हिरण्याक्ष का वध किया। (तब जल पर तैरते हुए पृथ्वी को जल के ऊपर अवस्थित किया।) फिर पृथ्वी को सघन बनाकर जल के मध्य उसे स्थिर किया। पृथ्वी इस रूप में अवतरित हुई, जैसे जल के मध्य कमल-पत्र तैर रहा हो।

ब्रह्मदेव ने श्रीमहाविष्णु की अनेक प्रकार से स्तुति की। इसके बाद उन्होंने पृथ्वी पर सृष्टि की रचना के लिए अपने पुत्र स्वायंभुव को उचित स्थान पर जाने का निर्देश किया। इस प्रकार निर्विघ्न सृष्टि रचना संपन्न हुई।

तो इस तरह लौटी महर्षि च्यवन की दृष्टि

पुराणों में महर्षि च्यवन का जन्म-वृत्तांत अत्यंत कौतूहलपूर्ण रीति में वर्णित है। महर्षि च्यवन महर्षि भृगु तथा पुलोमा के पुत्र थे। पुलोमा न केवल असाधारण रूपवती थी, बल्कि परम पतिव्रता भी थी। पुलोमा के अनुपम सौंदर्य पर आसक्त होकर उसके विवाह के पूर्व ही पुलोक नामक राक्षस उसका अपहरण करना चाहता था। 

वह कई बार प्रयत्न करके असफल रहा। पुलोमा के विवाह के बाद एक दिन महर्षि भृगु को आश्रम में न पाकर राक्षस पुलोम ने भृगु पत्नी का अपहरण करना चाहा। उस समय अग्निदेव पुलोमा की रक्षा करने के लिए आश्रम का पहरा दे रहे थे। राक्षस पुलोम ने अग्निदेव के समीप जाकर पूछा, "महाशय! यह बताइए कि क्या महर्षि भृगु और पुलोमा का विवाह वेद-विधि और शास्त्रोक्त पद्धति में संपन्न हुआ है?" 

अग्निदेव ने उत्तर दिया, "नहीं। मैं कभी असत्य वचन नहीं कह सकता।" इस पर राक्षस पुलोम सूअर का रूप धारण कर भृगु की पत्नी को उठा ले गया। उस समय भृगु की पत्नी पुलोमा पूर्ण गर्भवती थी। मध्य मार्ग में उसका प्रसव हुआ और शिशु पुलोमा के गर्भ से फिसलकर जमीन पर गिर पड़ा। इसलिए वह च्यवन नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

शिशु के जन्म के समय जो तेज प्रकट हुआ, उस तेज की आंच में राक्षस पुलोम जलकर भस्म हो गया। ऋषि पत्नी पुलोमा विलाप करते हुए आश्रम को लौट आई। पुलोमा के नेत्रों से अविरल जो अश्रुधारा बह निकली, वह नदी के रूप में प्रकट हुई। उस नदी का नाम पड़ा- वधूसर। आश्रम लौटने पर भृगु को पुलोमा के अपहरण का समाचार मिला। अग्निदेव की असावधानी पर रुष्ट होकर भृगु ने उनको सर्वभक्षक बनने का शाप दे डाला।

बालक च्यवन बचपन से ही भक्ति-भाव रखता था। उसने सोचा कि तपस्या करके कोई महान कार्य संपन्न करना है। इस विचार से उसने निश्चल भाव से अन्न-जल भी त्यागकर तप करना आरंभ किया। कालांतर में उसके चारों तरफ वल्मीक यानी बाम्बियां निकल आईं। बाम्बियों के चतुर्दिक पौधे उग आए। लताओं से बाम्बियां ढक गईं। इन बाम्बियों के कटोरों में पक्षियों ने घोंसले बनाए।

एक दिन राजा शर्याति अपने परिवार के साथ वन-विहार करने निकल पड़े। राजकुमारी सुकन्या अपनी सखियों के साथ वन-विहार करते उस बाम्बी के समीप पहुंची। उसने देखा, बाम्बी के चारों तरफ एक विचित्र प्रकाश फैला हुआ है। उसका कौतूहल बढ़ गया। वह प्रकाश बाम्बी के भीतर से कैसे फूट रहा था, इस रहस्य का पता लगाने के विचार से सुकन्या एक लकड़ी तोड़कर बाम्बी को खोदने लगी।

बाम्बी के भीतर से उसे ये शब्द सुनाई पड़े "बाम्बी मत खोदो। यहां से चले जाओ।" सुकन्या विस्मय में आ गई। उसकी जिज्ञासा दुगुनी हो गई, लेकिन अगले ही क्षण उसने देखा, नक्षत्रों की भांति दो ज्योतियां दमक रही हैं। उनका परीक्षण करने के ख्याल से सुकन्या ने उन प्रकाश बिंदुओं में पतली छड़ी घुसेड़ दी। तत्काल भीतर से रक्त के छींटे छितरा गए। राजकुमारी भयभीत हो अपनी सखियों के साथ वहां से भाग गई।

वास्तव में, प्रकाश की बिंदुएं तपस्या में रत च्यवन की आंखें थीं। च्यवन को अपार पीड़ा हुई। फिर भी वे क्रुद्ध नहीं हुए। निश्चल भाव से पतस्या में समाधिस्थ रहे। परंतु उधर राजा शर्याति के राज्य में नाना प्रकार के उपद्रव प्रारंभ हुए। जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। भयंकर व्याधियों का प्रकोप हुआ। मल-मूत्र तक स्तंभित हो गए। 

मनुष्य, पशु और पक्षी भी व्याधिग्रस्त हुए। राजा का मन व्याकुल हो उठा। इन उत्पातों का कारण राजा की समझ में न आया। अकारण राज्य में हलचल मच गई। राजा ने मंत्री, सलाहकार तथा ज्योतिषों को बुलवाकर इन उत्पातों का कारण जानना चाहा, परंतु कोई भी सही समाधान नहीं दे पाए।

राजकुमारी सुकन्या बड़ी बुद्धिमती थी। उसके मन में संदेह हुआ कि कहीं ये सब उत्पात उसकी करनी का फल हो। उसने राजा को सारा वृत्तांत सुनाकर कहा, "पिताजी, मैं समझती हूं कि इन सारे उपद्रवों का कारण मैं ही हूं।" राजा शर्याति विवेकशील पुरुष थे। उन्होंने तत्काल वल्मीक के पास जाकर बड़ी सावधानी से बाम्बी को तुड़वा दिया। तपस्वी च्यवन के चरणों में प्रणाम करके अपनी पुत्री के इस अकृत्य के लिए राजा ने क्षमायाचना की।

च्यवन ने कहा, "राजन! मेरे साथ जो अत्याचार हुआ है, उसका प्रायश्चित केवल यही होगा कि आप अपनी कन्या का विवाह मेरे साथ करें।" च्यवन का उत्तर सुनकर राजा आपादमस्तक कांप उठे। दरअसल, च्यवन वृद्ध हो गए थे, तिस पर कुरूपी और अंधे थे। जुगुप्सा पैदा करनेवाले ऐसे विकृत पुरुष के साथ लावण्यमयी सुशीला और बुद्धिमती कन्या का विवाह! यह सर्वदा असंभव है। यही विचार करके राजा व्यथित हो राजमहल को लौट आए।

राजकुमारी सुकन्या को जब यह समाचार मालूम हुआ, तो उसने च्यवन के साथ विवाह करने की इच्छा प्रकट की। राजा ने विवश होकर सुकन्या का विवाह च्यवन के साथ कर दिया।

विवाह के बाद सुकन्या च्यवन के साथ चली गई। वह बड़ी श्रद्धा-भक्ति से पति की सेवा में लगी रही। उन्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं होने देती थी। एक दिन सुकन्या नदी से पानी भरकर अपने निवास को लौट रही थी। रास्ते में अश्विनी देवताओं से उसकी भेंट हुई। अश्विनी देवताओं ने सुकन्या के सौंदर्य की प्रशंसा के साथ च्यवन की अवहेलना की और आग्रह किया कि उन दोनों में से किसी एक के साथ वह विवाह करे। यह प्रलोभन भी दिया कि उनके साथ विवाह करने पर उसे सभी प्रकार के सुख-भोग प्राप्त होंगे। इस पर सुकन्या ने उनके इस व्यवहार की कड़ी निंदा की और उन्हें समझाया कि इस प्रकार का प्रस्ताव रखना उन्हें शोभा नहीं देता।

सुकन्या के मुंह से हित वचन सुनकर वे बहुत प्रसन्न हुए और बोले, "हमें अश्विनी देवता कहते हैं और हम देवताओं के वैद्य हैं। आप चाहेंगी तो हम आपके पति को पुन: दृष्टि दिलाकर उनको यौवन प्रदान कर सकते हैं, किंतु हमारी एक शर्त है। आपके पति के यौवन प्राप्त करने के बाद आपके सामने तीन युवक प्रत्यक्ष होंगे। तीनों के रूपरंग, नाक-नक्श एक ही प्रकार के होंगे। उनमें से किसी एक को आपको अपने पति के रूप में चयन करना होगा।"

सुकन्या ने यह वृत्तांत अपने पति को सुनाया। च्यवन ने सुकन्या को सलाह दी कि वह अश्विनी देवताओं की शर्त मान ले। इसके बाद अश्विनी देवता और च्यवन पानी में डुबकी लगाकर एक ही प्रकार के युवकों के रूप में बाहर निकले। सुकन्या ने महादेवी से प्रार्थना की कि उसे अपने पति को पहचानने का विवेक प्रदान करें।

महादेवी का अनुग्रह पाकर सुकन्या ने अपने पति को पहचान लिया। च्यवन ने दृष्टि और यौवन पाकर अश्विनी देवताओं से निवेदन किया, "आपने मुझ पर अनुग्रह किया, इसके लिए मैं आपके प्रति हृदय से आभारी हूं। इसके प्रत्युपकार में मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूं?"

अश्विनी देवताओं ने यज्ञों में सोम भांड दिलाने का आग्रह किया। तपस्वी च्यवन ने अपने श्वसुर राजा शर्याति के द्वारा यज्ञ करवाकर अश्विनी देवताओं को आमंत्रित किया। उस समय सुरपति इंद्र ने सोमपान पर निषेध किया और आदेश दिया कि यज्ञ के समय अश्विनी देवताओं को सोम भांड नहीं दिया जाए। इस पर च्यवन इंद्र के इस आदेश का विरोध करके उनके साथ युद्ध करने के लिए सन्नद्ध हुए। 

इंद्र ने च्यवन का संहार करने के लिए अपने वज्रायुध का प्रयोग करना चाहा, च्यवन ने रुष्ट होकर हुंकार करके इंद्र को ललकारा। इंद्र एकदम स्तंभित हो गए। उसी समय च्यवन ने होम-कुंड से मधु नामक एक राक्षस की सृष्टि की। उसने देवताओं पर आक्रमण करके यज्ञ-भूमि से उनको भगाया। इंद्र स्तंभित थे, इसलिए वे यज्ञ-भूमि से हिल-डुल नहीं सकते थे। उन्होंने देवगुरु बृहस्पति के प्रति प्रार्थना की। 

बृहस्पति ने इंद्र को सलाह दि कि वे च्यवन के समक्ष पराजय स्वीकार करें। इंद्र ने च्यवन के समक्ष नतमस्तक हो उनकी रक्षा करने की प्रार्थना की। तब च्यवन ने मधु को चार भागों में विभाजित किया और उन चार भागों को जुए, आखेट, मद्य और महिला में निक्षेपित किया। इस प्रकार च्यवन ने समस्या का समाधान कर लिया।

जाने रामचरित मानस के सुन्दरकाण्ड का रहस्य

गोस्वामी तुलसीदास की सबसे कालजयी कृति "रामचरित मानस" को आपने जरुर पढ़ा होगा| क्या कभी आपने यह सोचा है कि रामचरित मानस के कुंदर काण्ड को छोड़कर अन्य सभी कांडों के नाम व्यक्ति या स्थितियों के नाम पर रखा गया है| जैसे बाललीला का बालकाण्ड, अयोध्या की घटनाओं का अयोध्या काण्ड, जंगल के जीवन का अरण्य काण्ड, किष्किंधा राज्य के कारण किष्किंधा काण्ड, लंका के युद्ध की चर्चा लंका काण्ड में और जीवन के प्रश्नों का उत्तर फिलॉसफी के साथ उत्तरकाण्ड में दिया गया है। फिर अचानक सुंदरकाण्ड का नाम सुंदर क्यों रखा गया? 

क्या आपको पता है सुन्दरकाण्ड का नाम सुन्दर क्यों रखा गया है? यदि नहीं तो आज हम आपको बताते हैं कि सुन्दरकाण्ड का नाम सुन्दर क्यों रखा गया है| दरअसल, लंका त्रिकुटाचल पर्वत पर बसी हुई थी। तीन पर्वत थे - पहला सुबैल, जहां के मैदान में युद्ध हुआ था। दूसरा, नील पर्वत, जहां राक्षसों के महल बसे हुए थे और तीसरे पर्वत का नाम है सुंदर पर्वत| सुन्दर पर्वत पर ही अशोक वाटिका थी इसी अशोक वाटिका में ही हनुमान जी और सीताजी का मिलन हुआ था इसीलिए इस काण्ड का नाम सुन्दरकाण्ड रखा गया| 

यहां की घटनाओं में हनुमानजी ने एक विशेष शैली अपनाई थी। वे अपने योग्य प्रबंधक शिष्यों को योगी प्रबंधक बनाते हैं, जिसकी आज जरूरत है। सुंदरकाण्ड में इन्हीं बातों के इशारे हैं। 

नाम के पहले अक्षर से जाने अपने चाहने वालों का भविष्य


हर किसी को किसी स्त्री या पुरुष के बारे में यह जानने की इच्छा जरुर होती है कि उस स्त्री या पुरुष का स्वभाव कैसा होगा| इसके लिए हमारे ज्योतिषाचार्य ने अब तक आपको कई उपाय बताएं हैं जिसे देखकर आप उस स्त्री या पुरुष के बारे में जान सकते हैं कि उसका स्वभाव कैसा होगा| जैसे उसके अंगों को देखकर, उसकी चाल- ढाल देखकर या फिर उसके खानपान से भी उसके स्वभाव के बारे में अंदाजा लगाया जा सकता है| इसी क्रम में आज आपको एक और चीज बताने जा रहे हैं जिसके बारे में जानकर आप उस स्त्री या पुरुष के स्वभाव के बारे में जान सकते है| 

आपको पता है कि किसी व्यक्ति के जीवन में अक्षरों का क्या प्रभाव पड़ता है अगर नहीं तो आज हम आपको 'ए' से लेकर 'जेड' तक बताते हैं|

ए अक्षर:- अगर किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के ए अक्षर से शुरू होता है तो ऐसे व्यक्ति प्यार और रिश्तों का काफी महत्व देते हैं लेकिन बहुत ज्यादा रोमांटिक नहीं होते हैं। ए अक्षर वाले सुंदरता को काफी पसंद करते है और खुद भी बहुत सुन्दर और सेक्सी होते है। इनकी एक खासियत होती है ये अपनी बात सबसे नहीं कहते हैं। इनके जीवन में हर चीज देर से हासिल होती है| लेकिन जब भी सफलता मिलती है तो वो सफलता की चरम सीमा होती है। जीवन संघर्ष से भरा होता है लेकिन ये मंजिल को पा ही लेते हैं। ये धोखेबाज बिलकुल नहीं होते है और ना ही ये धोखेबाजी को पसंद करते हैं। ये मौके की नजाकत को समझने वाले और हालात के हिसाब से फैसले लेने के कारण ये हर दिल अजीज होते हैं। लेकिन इनमे एक दोष होता है ये क्रोधी स्वभाव के होते हैं।

बी अक्षर:- इस अक्षर वाले संवेदनशील और रोमांटिक होते है, इन पर छोटी-छोटी बातें काफी असर डालती हैं, इन्हें मनाना काफी आसान होता है। बी अक्षर वाले व्यक्ति सेक्स लाइफ पर काफी भरोसा करते हैं इसलिए अक्सर इस नाम के व्यक्ति प्रेम विवाह करते हैं। ये सौंदर्य प्रेमी, प्रकृति से स्नेह रखने वाले होते हैं। इनके लिए पैसा भी काफी महत्वपूर्ण होता है। ये लेन-देन भी बहुत करते हैं। ये आमतौर पर हिम्मती होते हैं। इसलिए अक्सर इस नाम के लोग सेना या दूसरे जोखिम भरे क्षेत्र में अपना करियर बनाते हैं। इन्हें अपनी मेहनत पर भरोसा होता है। और आम तौर पर इस नाम के लोग धनवान भी होते है। इनके बड़बोले पन के कारण इन्हें घमंडी होने की संज्ञा मिल जाती है। इसलिए इनके दोस्त बहुत ज्यादा नहीं होते है लेकिन जो होते हैं वो काफी पक्के और गहरे होते है

सी अक्षर:- हर दिल अजीज और मिलनसार होते हैं सी अक्षर वाले | ऐसे व्यक्ति सामाजिक कार्यों में बाद चढ़ कर हिस्सा लेने वाले होते हैं| इनके लिए लोगों की भावनाएं काफी मायने रखती है क्योंकि ये खुद भी काफी भावुक होते हैं। लेकिन ये स्पष्ट बोलने वाले होते है लेकिन फिर भी ये जानबूझकर किसी का दिल नहीं दुखाते हैं। इनकी सेक्स लाईफ काफी अच्छी होती है, ये आसानी से किसी को भी अपने वश में कर लेते है लेकिन ये ईमानदार होते हैं। देखने में भी सी नाम के लोग काफी अच्छे होते है । जो भी करियर चुनते हैं उसमें खासा कामयाब होते हैं क्योंकि इनके काम से ज्यादा इनके व्यवहार से लोग खुश होते हैं जिसका फायदा इनके अपने प्रोफेशनल लाईफ में भी आजीवन मिलता रहता है। लक्ष्मी जी की भी इन पर खासी मेहरबानी होती है। कुल मिलाकर ऐसे लोग काफी संपन्न होते हैं।

डी अक्षर:- अपनी मेहनत के दम पर ये काफी आगे जाते हैं डी अक्षर वाले। इस नाम के व्यक्ति काफी जिद्दी स्वाभाव के होते हैं| डी अक्षर से जिन लड़कों का नाम शुरु होता है वे बातों के जादूगर होते हैं। लड़कियां उन तक तितलियों की तरह मंडराती रहती है मगर वे एक समय में एक ही रिश्ता निभाते हैं। यूं भी उनकी किस्मत में फालतु प्यार नहीं लिखा है वे जब भी करेंगे जहनी तौर पर ऐसे व्यक्ति से ही प्यार करेंगे जो उनके आतंरिक संसार को समझने की क्षमता रखता हो। और इस नामाक्षर की अधिकांश लड़कियां किसी बुद्धिमान व्यक्ति से मन ही मन प्यार करती है, और करती रह जाती है। अक्सर बड़ी उम्र तक इस इंतजार में रहती है कि वह खुद इनके पास लौट आएगा। 

ई अक्षर:- बहुत बोलने वाला होते हैं ई अक्षर वाले, लेकिन अपने ज्यादा बोलने के कारण ये हमेशा खतरों में पड़ जाते हैं| ये लोग बड़े ही दिल फेंक होते है। ये काफी मजाकिया स्वभाव के भी होते हैं| ई अक्षर वाले व्यक्ति सेक्स के प्रति ये काफी आकर्षित होते है। इसलिए इनकी लिस्ट में लड़के-लड़कियों की पूरी जमात होती है। ये जो रिश्ता निभाते है उसके प्रति ईमानदार होते है मतलब ये कि भले ही ये चार लोगों से मोहब्बत करे लेकिन अगर ये किसी से शादी करते है तो अपने हमसफर के प्रति ईमानदार होते है।

एफ अक्षर:- इस अक्षर वाले बहुत ही प्यारे और ज़रूरत से ज्यादा भावुक और लोगों की मदद करने वाले होते हैं| इस अक्षर के लोगों की जिंदगी प्यार से शुरू होती है और प्यार पर ही खत्म होती है। ये व्यक्ति सभी कार्य दिल लगाकर करते हैं | इन लोगों की खासियत होती है कि जहाँ भी जाते हैं वहां लोगों को अपना बना लेते हैं| इनके अन्दर आत्म विश्वास कूट-कूट कर भरा होता है। इस अक्षर के व्यक्ति झगडालू नहीं होते हैं| इसके अलावा इस अक्षर वाले व्यक्ति काफी आकर्षक, सेक्सी और रोमांटिंक होते हैं| जिंदगी में हर चीज का लुत्फ उठाते हैं| अपनी मन मोहक छवि से लोगों का दिल जीतने वाले होते है |

जी अक्षर:- शांत प्रिय होते है जी अक्षर वाले लेकिन जब इन्हें गुस्सा आता है तो अगले की खैर नहीं होती है। इस अक्षर वाले व्यक्ति गलतियों को दोहराते नहीं हैं बल्कि उससे सबक लेकर आगे बढ़ने की कोशिश करते हैं और खासा सफल भी होते है। ये तब तक किसी को परेशान नहीं करते हैं जब तक कोई इन्हें तंग नहीं करता है। फिलहाल इनमें आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरा होता है। इस अक्षर वाले व्यक्ति कम बोलने वाले और प्यार पर ज्यादा भरोसा न करने वाले होते हैं| अपनी मेहनत पर भरोसा करने वाले ये व्यक्ति जीवन को एक संघर्ष मानकर चलते हैं इसलिए इन्हें अपनी परेशानियों से ज्यादा दिक्कत नहीं होती है। इस अक्षर वाले व्यक्तियों को ईश्वर पर काफी भरोसा होता है, इसलिए ये हमेशा धर्म-कर्म के काम करते रहते हैं। इनका वैवाहिक जीवन हमेश सुखी रहता है। इन्हें हर वो चीज मिलती है जिसकी इन्हें चाहत होती है लेकिन हर चीज में इन्हें वक्त लगता है।

एच अक्षर:- संकोची और संवेदनशील होते हैं एच अक्षर वाले और इसके साथ ही ये अपनी ख़ुशी और अपना दर्द किसी से शेयर नहीं करते| ये रहस्यमयी व्यक्ति होते हैं, इनको समझ पाना थोड़ा मुश्किल होता है लेकिन दिल के अच्छे और सच्चे व्यक्ति होते हैं। ये तेज़ दिमाग वाले होते हैं| ये व्यक्ति ना काहू से दोस्ती और ना ही काहू से बैर वाले होते हैं | इस अक्षर के व्यक्ति अक्सर राजनीति और प्रशासनिक क्षेत्र में दिखायी देते हैं। इस अक्षर के व्यक्ति किसी से भी अपने प्यार का इजहार नहीं करते हैं लेकिन ये जिसे चाहते हैं, उसे दिल की गहराई से प्यार करते हैं। इनका वैवाहिक जीवन काफी अच्छा होता है। ये इंसान पैसा खूब कमाते है लेकिन ये अपने पैसों को सिर्फ अपने ऊपर खर्च करते हैं। फिलहाल ये काफी तरक्की करने वाले होते है। ऐसे लोग सिर्फ अपनी मर्जी के मालिक होते है ये दूसरों पर हुकूमत करते हैं लेकिन कोई इन पर हुकूम चलाये ये इन्हें बर्दाश्त नहीं। ज्ञान का अथाह सागर कहलाने वाले ये व्यक्ति समाज के लिए अलग मिसाल बनते हैं।

आई अक्षर- यदि किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के I अक्षर से शुरू होता है तो ऐसे व्यक्ति काफी सुंदर होते हैं और सुंदरता को पसंद भी करते हैं। इन्हें बच्चों की कंपनी भी काफी अच्छी लगती है। धर्म-कर्म में रूचि रखते हैं। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि ऐसे लोग बहुत ही प्यारे और मोहक होते है जिनका साथ हर कोई पसंद करता है। इस अक्षर वाले व्यक्ति सिर्फ और सिर्फ प्यार का भूखा है। उसे अपनेपन और प्यार की तलाश होती है । ये इंसान बहुत ही भावुक होते हैं। ये हर काम दिल से करते हैं इसलिए इन्हें आसानी से इन्हें बुद्धू भी बनाया जा सकता है। ये अक्सर अपने इस स्वभाव के कारण अपनी बहुत सारी उपयोगी चीजों को खो देते हैं। इस अक्षर वाले व्यक्तियों को जिंदगी बहुत कुछ देती है लेकिन उसका सुख कम ही मिल पाता है। शिक्षा और लेखनी के क्षेत्र में ये विशेष जानकारी रखते है। खैर इन्हें कभी पैसे की कमी नहीं होती है। प्रेम और पारिवारिक सौगात भी इन्हें थोक मात्रा में मिलती है। समाज में ये अच्छी पकड़ रखते है। सेक्स लाईफ काफी अच्छी होती है।

जे अक्षर:- जिंदगी को बहुत ही खुशनुमा अंदाज से जीते है जे अक्षर वाले| इस नाम का व्यक्ति अपने रिश्तों के प्रति काफी ईमानदार और वफादार होता है। इस नाम के व्यक्ति जितने तन से सुन्दर होते हैं, उतना ही मन से सुन्दर होते हैं| ऐसे लोग जीवन में काफी तरक्की करते है| स्वभाव से बेहद ही नखरीले होते हैं जे अक्षर वाले| पैसा,रूतबा, मुहब्बत हर चीज इनके पास थोक मात्रा में होती है| इस अक्षर के लोगों के साथ बस एक समस्या होती है और वो है इनका स्वास्थ्य जो कि काफी कमजोर होता है। इनको हमेशा कोई न कोई बीमारी घेरे रहती है| इनकी सेक्स लाईफ काफी रोमांचित होती है। ये प्रेम विवाह पर ज्यादा भरोसा रखते हैं।

के अक्षर:-किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के 'K''अक्षर से शुरू होता है तो वे व्यक्ति काफी निडर होते है। इस अक्षर वाले व्यक्ति बेहद खुबसूरत होते हैं यही वजह है कि लोग इनकी तरफ काफी आकर्षित भी होते है। इस अक्षर वाला व्यक्ति बेहद ही दिखावे वाला होता है। किसी को कुछ भी कह देना इनके स्वभाव में शामिल होता है। बिना कुछ सोचे समझे ये किसी को भी कुछ सुना देते है जिसकी वजह से इन्हें लोग मुंहफट कहते हैं| इस नाम के व्यक्ति अपने फायदे के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। के अक्षर वाले पैसा तो बहुत कमाते हैं, लेकिन इन्हें इज्जत से कुछ लेना-देना नहीं होता है। जहां तक वैवाहिक संबधों का सवाल है तो ये ससुराल पक्ष पर भी अपना रुतबा कायम रखते हैं| लोग इनसे डरते हैं। इनके सामने अपनी बात कहने में हिचकते हैं। "के" अक्षर वाले सेक्स लाईफ को भी ये ज्यादा तवज्जों नहीं देते है और ज्यादातर ये लोग अरेंज मैरिज ही करते हैं| इनका वैवाहिक जीवन समझौतों पर ही निर्भर होता है।

एल अक्षर- जिस लड़की या लड़के के नाम की शुरुआत अंग्रेजी के 'L' अक्षर से होता है तो उस व्यक्ति के लिए प्यार, रोमांस ही सब कुछ होता है| रंग-रूप में भी ये काफी सुंदर होते हैं| हर चीज दिल से सोचने वाले होते हैं एल अक्षर वाले| इन्हें गुस्सा भी बहुत जल्दी आता है, लेकिन इनके गुस्से पर भोलेनाथ की कृपा रहती है इसलिए इनका गुस्सा जल्द ही काफूर हो जाता है। इस अक्षर वाले लोगों की एक खासियत होती है वो है इस अक्षर का व्यक्ति कभी किसी बड़ी चीज की तमन्ना नहीं रखता हैं। इन्हें छोटी-छोटी ही चीजों में खुशी मिलती है। ये बहुत कल्पनाशील होते हैं। इसलिए ये लोग अक्सर साहित्य के क्षेत्र में अपना करियर बनाते हैं। 

एम अक्षर- संकोची और चिंतन में डूबे रहने वाले होते हैं एम अक्षर वाले| इस अक्षर का व्यक्ति हर छोटी-बड़ी बात को दिल से लगा लेने वाले होते हैं, इसलिए इनका जब दिल टूटता है तो कभी-कभी दूसरों के लिए काफी खतरनाक साबित होते है। इसलिए इन्हें संवेदनशील भी कहा जा सकता है। ऐसे लोग राजनीति में ज्यादा दिखायी पड़ते है। आमतौर पर इन्हें लोग पसंद ही करते है। वैसे ये दिल के काफी साफ इंसान होते है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जब तक आप इन्हें छेड़े नहीं तब तक ये आपको नुकसान नहीं पहुंचायेगे। एम अक्षर वाले व्यक्तियों के लिए प्रेम काफी मायने रखता है और ये अपना प्यार पाने के लिए हर संभव कोशिश भी करते है लेकिन ये धोखा करने वालों को बिल्कुल भी बक्शते नहीं है । इनके ऊपर किस्मत काफी मेहरबान होती है इसलिए धन और इज्जत इन्हें मिल ही जाती है। इस अक्षर वाले व्यक्तियों के लिए सेक्स लाईफ काफी मायने रखती है। जिद्दी स्वभाव के होते हैं एम अक्षर वाले | ये जिस चीज को एक बार पकड़ लेते हैं उसे छोड़ते भी नहीं है।

एन अक्षर:-बेहद ही स्वतंत्र विचारों वाले और मनमौजी होते है एन अक्षर वाले| एन अक्षर वाले व्यक्तियों को दिखावे पर बहुत यकीन होता है। ये कब क्या करेगें इन्हें खुद भी पता नहीं होता है। इनका किसी से कोई लेना-देना नहीं होता है| अपनी ही धुन और दुनिया में मस्त रहने वाले होते हैं ये लोग| कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि मस्तमौला होते हैं एन अक्षर वाले| एन अक्षर वाले बिना मेहनत के हर चीज पाने की कामना रखते है| ऐसे व्यक्ति वैसे तो ऊपरी तौर पर शांत दिखायी देते है लेकिन अंदर ही अंदर ये बेहद ही आक्रमक होते है। इनको अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं होती है। ये जरूरत से ज्यादा मुंहफट,स्वार्थी,और घमंडी होते हैं| एन अक्षर वाले अपना काम निकालने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं| ऐसे व्यक्तियों के लिए प्रेम एक हिसाब किताब की तरह होता है| ये वहीं रिश्ता जोड़ते है जहां इनका फायदा होता है। सेक्स लाईफ भी इनके लिए काफी मायने रखती है| ये आकर्षक रूप-रंग के मालिक होते हैं। जिसका फायदा ये समय-समय पर उठाते रहते है। मै तो यही कहूँगा कि इन लोगों से दूरी बनाकर ही रखिए| 

ओ अक्षर- बेहद आकर्षक और उर्जावान होते हैं ओ अक्षर वाले| इस अक्षर वाले व्यक्ति सामाजिक सेवा में काफी योगदान देने वाले होते हैं| कुल मिलाकर यह कहा जाता है कि इस नाम के लोग सफल और अच्छे इंसान होते है। इन्हें नाम, पैसा, सोहरत सभी इनके क़दमों तले होती है| प्रेम, भावनाएं और रिश्ते इन लोगों के लिए काफी मायने रखते है। सेक्स लाइफ को बहुत पसंद करते है। इस अक्षर वाले लोग प्रेम विवाह पर ज्यादा भरोसा करते हैं| बस इनमें एक कमी होती है कि हर चीज को दिल से लगा लेते है। जो चीज इनके दिल में एक बार घर कर गई उसे निकालना काफी मुश्किल होता है। ये जल्दी किसी को माफ नहीं करते हैं।

पी अक्षर- यदि किसी लड़के या लड़की का नाम अंग्रेजी के 'P' अक्षर से शुरू होता है तो ऐसे व्यक्ति देश, दुनिया, घर, परिवार सबका ख्याल रखने वाले होते हैं| पी अक्षर वाले व्यक्तियों के लिए अपना मान-सम्मान ही सबसे बड़ा है जिसके लिए कुछ भी त्यागने को तैयार रहते हैं। ये तानाशाही भी कहलाते है क्योंकि इनका स्वभाव जिद्दी प्रवृत्ति का होता है। इनकी नजर से जो एक बार उतर जाये वो फिर लाख कोशिश कर ले वो इनके करीब नहीं आ सकता है| इनके रुतबे को लोग पसंद भी करते है और डरते भी है। पी अक्षर वाले आकर्षक छवि के मालिक होते है। इनके लिए इनके अपने अलग उसूल होते है जिसके लिए किसी भी प्रकार का कोई समझौता नहीं करते है। इन्हें प्रेम जैसे शब्द पर ज्यादा भरोसा नहीं होता है। इनके लिए सेक्स लाईफ भी काफी महत्त्वपूर्ण होती है| हालांकि ये जिस किसी को भी मानते हैं उसे दिल से मानते हैं।

क्यू अक्षर- पैसा,प्यार और नाम कमाने वाले होते हैं क्यू अक्षर वाले| इनको हर छोटी-छोटी चीजों में खुशी मिलती है। अपने आप में हमेशा खोए रहने वाले होते हैं क्यू अक्षर वाले| ये लोग कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते है। लेकिन इनकी इस प्रवृत्ति के चलते इन्हें लोगों की उपहास का शिकार भी होना पड़ता है। क्यू अक्षर वाले सबको खुश रखने की कोशिश करते है बस इन में एक कमी होती है और वो ये कि ये अपनी बातें जल्दी किसी से शेयर नहीं करते है। कुल मिला कर कहा जा सकता है ऐसे नाम के लोगों के साथ अक्सर लोगों को मित्रता रखनी चाहिए क्योंकि इनसे आपको हमेशा कुछ ना कुछ सीखने को मिलेगा। सेक्स लाईफ को भी ये काफी पसंद करते है। इन्हें गुस्सा आमतौर पर बहुत कम आता है लेकिन जब भी आता है तो बहुत बुरी तरह से आता है। हर काम को दिल से करने वाले ये लोग अक्सर एक बहुत अच्छे चित्रकार,कवि या लेखक होते है।

आर अक्षर:- अपनी ही दुनिया में खोये रहने वाले होते हैं R अक्षर वाले| इन्हें रूतबा और दौलत दोनों ही नसीब होती है। ये दिल के भी बहुत अच्छे होते है। ये समय पड़ने पर दूसरों की मदद भी करते है। इनकी एक खास बात होती है ये हमेशा कुछ नये चीज की तलाश में होते है। इन्हें वहां अच्छा लगता है जहां इन्हें ज्ञान मिलता है। इसलिए इनकी दोस्ती लेखकों, दार्शनिकों इत्यादि से ही होती है। इन्हें सासंरिक चीजों में कोई खास रूचि नहीं होती है। आर अक्षर वालों का वैवाहिक जीवन ज्यादा सही नहीं होता है ज्यादातर इनके वैवाहिक जीवन में खटपट होती रहती है| इन्हें प्रेम, सेक्स आदि में कोई खास दिलचस्पी नहीं होती है। 

एस अक्षर:- बहुमुखी प्रतिभा और क्रोधी स्वाभाव वाले होते हैं एस अक्षर वाले| पैसा,रूतबा हासिल करने वाले ये लोग अपनी चीज आसानी से किसी को कुछ नही देते है। कुल मिलकर कहा जा सकता है कि ये कंजूस होते है, एस अक्षर वाले दिल के बुरे नहीं होते लेकिन उनका तेज स्वभाव उन्हें बुरा बना देता है। ये व्यक्ति अपनी मेहनत के बल पर ये सब कुछ पा ही लेते है। एस अक्षर वाले अपने प्यार के प्रति सचेत रहने वाले होते हैं, ये लोग कुछ शक्की मिजाज के भी होते हैं, इसके पीछे इनकी भावना सिर्फ इतनी होती है कि वो अपने प्रेम को किसी से शेयर नहीं करते हैं लेकिन उनका ये ही तरीका दूसरे लोगों के लिए सिरदर्द का कारण बन जाते हैं। इनकी सेक्स के प्रति भी कोई दिलचस्पी नहीं होती है|

टी अक्षर- यदि किसी लड़की या लड़के का नाम अंग्रेजी के प्रथम अक्षर 'T' अक्षर से शुरू होता है तो वह व्यक्ति बेहद मेहनती, होशियार, चालाक औऱ बुद्धिमान होता है। इस अक्षर वाले व्यक्ति अपनी खुशी और गम जल्दी किसी को नहीं बताते हैं लेकिन हां दूसरो को हमेशा खुश और उनके दुख दूर करने की कोशिश करते है। लोग इनके इस गुण के कारण इन्हें काफी पसंद करते हैं। इन्हें खुद पर काफी भरोसा होता है। अपने दम पर ये बड़ी से बड़ी मुश्किलों को भी सुलझा लेते हैं। अपनी मेहनत के बल पर ये दुनिया जीतने का भी रिस्क रखते हैं। टी अक्षर वाले पैसा और शोहरत तो बहुत कमाते हैं लेकिन प्रेम के नाम पर इनका सिक्का नहीं चलता है। ये प्रेम और सेक्स के प्रति इनकी सोच नकारात्मक होती है| वैसे ये रिश्तों और भावनाओं के प्रति काफी केयरिंग होते हैं लेकिन इन में अपनी भावनाओं को व्यक्त करने की क्षमता नहीं होती है।

यू अक्षर:- ऐसे व्यक्ति बेहद जोशीले, होशियार और नेकदिल के होते हैं| इस अक्षर वाले व्यक्ति छोटी- छोटी बातों से ही खुश रहने वाले होते हैं| इनके किस्मत के सितारे हमेशा इन पर मेहरबान भी रहते हैं। अपने लोगों और अपनी चीजों से बेइंतहा प्रेम करने वाले इन लोगों के व्यक्तित्व में जरूर ऐसा कुछ होता है जो इन्हें लोगों की भीड़ से अलग करता है। मेरा कहने का मतलब यह है कि या तो अत्यधिक लम्बे होंगे या फिर अत्यधिक छोटे ही होंगे| ऐसे व्यक्तियों के पास पैसा, शौहरत सब कुछ होता है लेकिन इनके पास घमंड नाम की कोई चीज नहीं होती है| ऐसे इन्सान थोडा हठी स्वभाव के होते हैं लेकिन अगर इन्हें प्रेम से समझाया जाये तो मान भी जाते है। ये व्यक्ति बच्चों को बेहद प्यार करने वाले होते हैं| आपको बता दें कि इस अक्षर वाले व्यक्ति अपने प्यार के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं| ऐसे लोग बहुत ज्यादा रोमांटिक और अपनी सेक्स लाईफ को लेकर बहुत ज्यादा उत्साहित रहते हैं।

वी अक्षर:- जिसके नाम की शुरुआत अंग्रेजी के 'V' अक्षर से होती है, तो वह व्यक्ति किसी की बंदिशे पसंद नहीं करता है। ऐसे व्यक्ति अपनी बातें , अपने सपने , ये किसी से शेयर नहीं करते हैं। किसी को रोक-टोक इन्हें अच्छी नहीं लगती है| ये केवल वो ही काम करते हैं जो इनका मन कहता है, इनसे किसी काम को जबरदस्ती नहीं करवाया जा सकता है अगर किसी ने भूल से इनसे जबरदस्ती काम करवाने की कोशिश की तो ये ऐसा कुछ कर देगें जिससे वो काम रूक जायेगा। कुल मिलकर कहा जा सकता है की आजाद ख्याल के होते हैं वी अक्षर वाले व्यक्ति| इस अक्षर वाले व्यक्ति नाम, इज्जत और पैसा बहुत कमाते हैं लेकिन इसमें वक्त लगता है। इनको चीजें रूक-रूक कर और धीमी गति से मिलती है लेकिन स्थायी तौर पर इनके पास रहती है। ये जिद्दी और आलसी भी होते हैं लेकिन वक्त आने पर अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करते हैं। सामाजिक जीवन में इनकी रूचि ज्यादा नहीं होती है इसलिए ये आलोचनाओं के भी शिकार होते हैं। वैसे अपने दम पर आगे बढ़ने वाले ये लोग जीवन में देर से तरक्की करते है और जिनके निकट होते हैं उनके काफी अजीज होते हैं। वी अक्षर वाले व्यक्ति भावनाओं की कद्र करते हैं | लेकिन अपनी भावनाओं के बारे में ये किसी से कुछ नहीं कहते हैं। इनका पारिवारिक और वैवाहिक जीवन आम तौर पर सुखमय ही होता है। इसलिए इन्हें अपनी चीजों को लेकर परेशानी नहीं होती है। इनमें एक चीज होती है, ये बहुत जल्दी किसी भी चीज से ऊब जाते हैं। परिवर्तन से प्रेम करने वाले इन लोगों के लिए सेक्स भी मायने नहीं रखता है। 

डब्ल्यू अक्षर:- ज्ञानी,रौबदार और जिद्दी स्वभाव वाले होते हैं डब्ल्यू अक्षर वाले व्यक्ति| ऐसे व्यक्ति दिखावा भी बहुत करते हैं जिसके चलते ये अक्सर फिजूल खर्ची भी कर जाते हैं | इस नाम के लोग काफी तरक्की करते हैं, नाम, पैसा और शोहरत इनके कदम चूमती है लेकिन इस बात का इनको अभिमान बहुत होता है। डब्लू अक्षर वाले व्यक्तियों को अपनी सुनाने की आदत होती है, दूसरों की सुनने की नहीं| इनकी एक खास बात होती है वह है इनकी सबसे पटती भी नहीं है, इसलिए ये हमेशा आलोचनाओं के घेरे में घिरे रहते हैं। हालांकि ये दिल के बुरे नहीं होते हैं| अक्सर इस नाम के लोग राजनीति, सिविल सर्विसेज और पुलिस विभाग में पाये जाते हैं| इस नाम के लोग धर्म-कर्म में भी काफी रूचि रखते है। इस अक्षर वाले व्यक्ति प्रेम पर यकीन नहीं करते हैं। अक्सर ये असफल प्रेमी करार दिये जाते है लेकिन इनको हमसफ़र हमेशा अच्छा ही मिलता है|

एक्स अक्षर:- आप बहुत जल्दी बोर हो जाते हैं। आप एक साथ कई प्रेम संबंधों को निभाने की ताकत रखते हैं। आपको लगातार बोलते रहने में भी मजा आता है। आपके अपनी तरफ से कई प्रेम संबंध होते हैं यानी उनमें से कई काल्पनिक होते हैं। आप ख्वाबों में अव्वल दर्जे के सेक्सी हैं लेकिन हकीकत में ऐसे संयमित होने का ढोंग करते हैं जैसे आपके जैसा सीधा कोई नहीं। अपने अल्फाबेट की तरह ही प्यार के मामले में आप गलत इंसान है।

वाय अक्षर:- आप संवेदनशील और आत्मनिर्भर हैं। आप संबंधों में ज्यादा हक जताते हैं जिससे आपका रिश्ता लंबे समय तक नहीं टिकता। प्रेम में आपको स्पर्श में बहुत आनंद आता है जैसे हाथ पकड़कर बैठना, कंधे पर हाथ रखकर चलना। आप अपने प्रेमी को बार बार जताते हैं कि आप कितने अच्छे प्रेमी हैं। आपको उनकी प्रतिक्रिया भी चाहिए। आप खुले दिल के और रोमांटिक हैं।

जेड अक्षर:- आप सामान्य रूप से रोमांटिक हैं। जीवन में चीजों आसानी से लेना आपका शौक है और प्यार में भी यही बात आपको सच लगती है। आपको कहीं भी किसी से भी प्रेम हो सकता है। हर शख्स में आप खूबी तलाश लेते हैं। इसी कारण से लोग आपसे प्रभावित हो जाते हैं। आप प्रेम के मामले में खिलाड़ी हैं। आपको कोई खास फर्क नहीं पड़ता जब ब्रेक अप होता है। आप तुरंत नई तलाश शुरू कर सकते हैं।

जन्म-जन्मांतर की गाथा: इस तरह बार- बार भोगता रहा नरक

यह प्रश्न बड़ा ही विचित्र-सा लगता है कि हम कौन हैं? क्या थे? और क्या होंगे? मनुष्य के भूत, भविष्य और वर्तमान को लेकर अनेक मत-मतांतर हैं। कुछ लोग पूर्वजन्म पर विश्वास करते हैं- बौद्ध धर्म संबंधी जातक कथाएं भी हिंदू धर्म के इस विश्वास की पुष्टि करती हैं, तो ज्योतिष भूत, वर्तमान के साथ भविष्य भी बताता है। पुराणों में पुनर्जन्म संबंधी अनेक कहानियां मिलती हैं। मरक डेय पुराण में वर्णित ऐसी ही एक कहानी है- निशाकर की। यह कहानी महाबली ने शुक्र को सुनाई थी।

प्राचीन काल में मुद्गल नामक एक मुनि थे। इनके कोशकार नाम का एक पुत्र था, जो समस्त शास्त्रों के ज्ञाता थे। वात्स्यायन की पुत्री धर्मिष्ठा उनकी सहधर्मिणी थी। इस दम्पति के एक पुत्र हुआ। वह जन्म से ही जड़ प्रकृति का था। अंधा था और मूक भी। साध्वी धर्मिष्ठा ने सोचा कि वह बालक अचेतन है। इसलिए छठे दिन वह उस शिशु को अपने गृह के द्वार के सामने छोड़ आई।

उन दिनों में समीप के जंगल में 'शूर्पाक्षी' नामक एक राक्षसी निवास करती थी। वह शिशुओं को चुराकर उन्हें मारकर खाया करती थी। शूर्पाक्षी ने कोशकार के द्वार पर एक शिशु को देखा, तब वह अपने एक कृशकाय शिशु को वहां पर छोड़कर कोशकार के पुत्र को उठाकर एक पहाड़ पर ले गई और उस शिशु को खाना ही चाहती थी। शूर्पाक्षी का पति घटोधर अंधा था। उसने शूर्पाक्षी के पैरों की आहट पाकर पूछा, "कैसा आहार ले आई हो?"

शूर्पाक्षी ने उत्तर दिया, "अपने शिशु को कोशकार के द्वार पर छोड़कर उनके शिशु को उठा लाई हूं।" तुमने बड़ा बुरा किया। वे महान तपस्वी और ज्ञानी हैं। वे क्रोध में आकर श्राप देंगे। इसलिए तुम इसी वक्त इस शिशु को कोशकार के द्वार पर छोड़ किसी दूसरे शिशु को उठा लाओ।

कोशकार के द्वार पर राक्षस शिशु अंगूठा मुंह में डाले रोने लगा। शिशु का रुदन सुनकर कोशकार अपनी कुटिया से बाहर आए ओर उस शिशु को देखकर मंदहास करते हुए अपनी पत्नी से बोले, "सुनो, यह कोई भूत है। लगता है कि यह हमें धोखा देने के लिए यहां पर आया है।" यह कहकर कोशकार ने मत्र पठन करके राक्षस के शिशु को बोध दिया। इस बीच शूर्पाक्षी काशकार के शिशु को उठाकर ले आई। परंतु मंत्र के प्रभाव के कारण वह अपने पुत्र गिराकर दुखी हो, अपने पति के पास गई और अपनी करनी पर पछताने लगी।

कोशकार ने दोनों शिशुओं को अपनी पत्नी के हाथ सौंप दिया। मुनि के आश्रम में दोनों बच्चे पलने लगे। जब वे बच्चे सात वर्ष के हुए, तब कोशकार ने उनका नामकरण किया-दिवाकर और निशाकर। यथा समय दोनों का उपनयन करके वेदपाठ आरंभ किया। दिवाकर वेद-पठन करने लगा, परंतु निशाकर उच्चारण नहीं कर पाया- सब कोई उसे देख घृणा करने लगे। आखिर बालक के पिता कोशकार ने क्रोधावेश में आकर उसको एक निर्जन कुएँ में डाल दिया और जगह पर एक चट्टान ढंक दिया।

दस वर्ष बीत गए। किसी कार्य से कोशकार की पत्नी धर्मिष्ठा उस कुएं के पास पहुंची। कुएं पर चट्टान ढंका हुआ देख उसने उच्च स्वर में पूछा, "किसने कुएं को चट्टान से ढंक दिया है? "इसके उत्तर में कुएं के भीतर से ये शब्द सुनाई दिए।" मां, क्रोध में आकर पिताजी ने मुझे इस कुएं में डालकर इस पर चट्टान ढंक दिया है।"

धर्मिष्ठा यह उत्तर सुनकर भयभीत हो गई। उसने पूछा, "यह कंठध्वनि किसकी है?" इस बार स्पष्ट उत्तर मिला, "मैं तुम्हार पुत्र निशाकर हूं।" फिर क्या था, धर्मिष्ठा ने विस्मय में आकर कुएं पर से ढक्कन हटाया। कुएं से बाहर निकलकर निशाकर ने अपनी माता के चरणों में प्रणाम किए।

धर्मिष्ठा निशाकार को घर ले गई और सारा वृत्तांत अपने पति को सुनाया। कोशकार ने आश्चर्य में आकर पूछा, "बेटे, तुम तो मूक थे, कैसे बोल पाते हो?" निशाकर ने अपने पूर्वजन्मों का वृत्तांत सुनाया, "पिताजी, मेरे अंधे, मूक तथा जड़त्व को प्राप्त होने का कारण सुनिए। प्राचीन काल में मैं एक मुनि तथा माला नामक स्त्री का पुत्र था। विप्र वंश में मेरा जन्म हुआ था। उस समय मेरे पिताजी ने मुझे धर्म, अर्थ एवं काम-संबंधी शास्त्रों का अध्ययन कराया। मुझे अपने ज्ञान का अहंकार था। 

मैंने सब प्रकार के दुष्कृत्य करके उन पापों के कारण मृत्यु के होते ही एक हजार वर्ष रौरव नरक भोगा। फिर मैंने एक बाघ का जन्म लिया। एक राजा ने जंगल से मुझे पकड़कार ले जाकर पिंजड़े में बंद करके अपने महल में रख लिया। परंतु पूर्वाभ्यास के कारण व्याघ्र जन्म मेुं भी मुझे सभी शास्त्र और अन्य कर्म स्मरण थे। एक दिन राजा की अद्भुत रूपवती पत्नी 'जिता' मेरे निकट आई। 

मैं काममोहित हो रानी से बोला, "महारानी, रूप यौवनवती! आपका मधुर स्वर मन को मोह लेता है।" रानी भी कामवासना के वशीभूत हो गई। मेरे अनुरोध पर उसने पिंजड़े का द्वार खोल दिया। पिंजड़े से बाहर निकलकर मैंने बंधन तोड़कर रानी के साथ संयोग करना चाहा। इतने में राजसेवकों ने आकर मेरा वध कर डाला। पर-स्त्री गमन के पापों के विचार से मुझे पुन: एक हजार वर्ष का नरक प्राप्त हुआ।

इसके बाद मैंने एक तोता का जन्म लिया। एक भील युवक ने मुझे जाल में फंसाकर एक पिंजड़े में बंद किया और एक नगर में ले जाकर मुझे एक वणिक्-पुत्र के हाथ बेच डाला। उसने मुझे अपने महल में रखा। वहां की युवतियां मुझे फल आदि खिलाकर प्रेम से मेरा पालन-पोषण करने लगीं।

एक दिन की घटना है। वणिक्-पुत्र की पत्नी चंद्रवती ने मुझे पिंजड़े से बाहर निकाला। अपने कोमल हाथों में लेकर मुझे पुचकारा, प्यार किया और मेरे सुंदर रूप पर मुग्ध हो मुझे अपने वक्ष से लगाया। मैंने कामवासना से प्रेरित होकर उस युवती का संगम चाहा और उसके अधरों का चुंबन किया। कुछ वर्ष के पश्चात् मेरी मृत्यु हुई, परंतु इस पापाचार के कारण मुझे पुन: नरक की प्राप्ति हुई।

नरकवास के पश्चात् मैंने चंडाल पत्तन में बैल का जन्म लिया। एक बार उस चंडाल ने मुझे एक गाड़ी में जोत लिया। उस गाड़ी में वह अपनी नवोढ़ा पत्नी के साथ, जो अत्यंत सुंदर थी, एक वन की ओर मुझे हांक ले गया। गाड़ी में आगे चंडाल बैठा हुआ था और पीछे उसकी पत्नी। 

वह युवती मधुर कंठ से गीत गाने लगी। उस चंडाली का मधुर गीत सुनकर मेरा मन विचलित हो गया। उस मीठी तान को सुनते स्तब्ध हो, मैं पीछे मुड़कर उस रमणी की आंखों में देखता ही रह गया। क्रमश: मेरी चाल धीमी हो गई और मैं चलना भूलकर स्थिर खड़ा रह गया। इस समय एक झटका हुआ। जुए से बंधे रस्सी ने मेरा कंठ कस लिया और मेरे प्राण पंचभूतों में विलीन हो गए। इस पाप-कर्म के लिए मुझे एक हजार वर्ष का रौरव नरक भोगना पड़ा।

अब इस चौथे जन्म में मैं आपके घर में मूक, अंधे और जड़ बनकर पैदा हुआ। परंतु पूर्वजन्म-कृत अभ्यास के कारण इस जन्म में भी मुझे समस्त शास्त्रों का ज्ञान स्मरण है। मैं ज्ञानी था, इस कारण मन, वाणी व कर्मणा द्वारा कृत घोर पापों की स्मृति बनाए रख सका।

पूर्वजन्मों में मैंने जो दुष्कृत्य किए थे, उनके प्रति मैं पश्चाताप करता रहा। फलत: मेरे मन में निर्वेद पैदा हुआ, इसलिए मैं इस जन्म में समस्त पापों से मुक्त होना चाहता हूं। इसलिए आपसे मेरा सादर निवेदन है कि मैं अपने पूर्वजन्मों के पापों के परिहार हेतु वानप्रस्थ में जाना चाहता हूं। आप मेरा निवेदन स्वीकार करके दिवाकर को गृहस्थाश्रम में प्रवेश कराकर संतुष्ट हो जाइए।

इसके पश्चात् निशाकर ने अपने-पिता के चरणों में भक्तिपूर्वक प्रणाम किया और वानप्रस्थ में प्रवेश करने के लिए बदरिकाश्रम की ओर निकल पड़ा।

गुरु बिनु ज्ञान कहाँ जग माही

'गुरु गोविन्द दोउ खड़े काके लगौ पांय, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय ' भगवान से भी ऊँचा दर्जा पाने वाले गुरुजनों के सम्मान के लिए एक दिन है व है शिक्षक दिवस | भारत में शिक्षक दिवस (5 सितम्बर) के मौके पर शिक्षा क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान देने वाले कई शिक्षकों को प्रति वर्ष राष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा सम्मानित किया जाता है| यह सम्मान शिक्षकों को उनके पेशे के लिए नहीं बल्कि उनकी शिक्षा देने के भावना और उनके शिक्षण के प्रति समर्पण के लिए दिया जाता है|

शिक्षक दिवस का महत्व-

'शिक्षक दिवस' कहने-सुनने में तो बहुत अच्छा प्रतीत होता है। लेकिन क्या आप इसके महत्व को समझते हैं। शिक्षक दिवस का मतलब साल में एक दिन बच्चों के द्वारा अपने शिक्षक को भेंट में दिया गया एक गुलाब का फूल या ‍कोई भी उपहार नहीं है और यह शिक्षक दिवस मनाने का सही तरीका भी नहीं है।

आप अगर शिक्षक दिवस का सही महत्व समझना चाहते है तो सर्वप्रथम आप हमेशा इस बात को ध्यान में रखें कि आप एक छात्र हैं, और ‍उम्र में अपने शिक्षक से काफ़ी छोटे है। और फिर हमारे संस्कार भी तो हमें यही सिखाते है कि हमें अपने से बड़ों का आदर करना चाहिए। हमको अपने गुरु का आदर-सत्कार करना चाहिए। हमें अपने गुरु की बात को ध्यान से सुनना और समझना चाहिए। अगर आपने अपने क्रोध, ईर्ष्या को त्याग कर अपने अंदर संयम के बीज बोएं तो निश्‍चित ही आपका व्यवहार आपको बहुत ऊँचाइयों तक ले जाएगा। और तभी हमारा शिक्षक दिवस मनाने का महत्व भी सार्थक होगा।

क्यों मनाते हैं शिक्षक दिवस-

शिक्षक दिवस वैसे तो पूरे विश्व में मनाया जाता है लेकिन अलग-अलग तिथियों को। भारत में यह दिवस पूर्व राष्ट्रपति डॉ.सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिवस पांच सितम्बर को मनाया जाता है। देश में शिक्षक दिवस मनाने की परम्परा तब शुरू हुई जब डॉ. राधाकृष्णन 1962 में राष्ट्रपति बने और उनके छात्रों एवं मित्रों ने उनका जन्मदिन मनाने की उनसे अनुमति मांगी।

स्वयं 40वर्षो तक शिक्षण कार्य कर चुके राधाकृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन मनाने की अनुमति तभी मिलेगी जब केवल मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय देशभर के शिक्षकों का दिवस आयोजित करें।’ बाद से प्रत्येक वर्ष शिक्षक दिवस मनाया जाने लगा।

आपको बता दें कि राधाकृष्णन का जन्म पांच सितम्बर 1888 को मद्रास (चेन्नई) के तिरुत्तानी कस्बे में हुआ था। उनके पिता वीरा समय्या एक जमींदारी में तहसीलदार थे। उनका बचपन एवं किशोरावस्था तिरुत्तानी और तिरुपति (आंध्र प्रदेश) में बीता। उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से एम.ए.की पढ़ाई पूरी की तथा ‘वेदांत के नीतिशास्त्र’ पर शोधपत्र प्रस्तुत कर पी.एचडी. की उपाधि हासिल की।

मद्रास प्रेसीडेंसी कॉलेज के दर्शनशास्त्र विभाग में 1909 में वह व्याख्याता नियुक्त किए गए। फिर 1918 में मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बने। लंदन के ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में वह 1936 से 39 तक पूर्व देशीय धर्म एवं नीतिशास्त्र के प्रोफेसर रहे। राधाकृष्णन 1939 से 48 तक बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।

वर्ष 1946 से 52 तक राधाकृष्णन को यूनेस्को के प्रतिनिधिमंडल के नेतृत्व का अवसर मिला। वह रूस में 1949 से 52 तक भारत के राजदूत रहे। 1952 में ही उन्हें भारत का उपराष्ट्रपति चुना गया। मई 1962 से मई 1967 तक उन्होंने राष्ट्रपति पद को सुशोभित किया।

डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन का मानना था कि शिक्षक उन्हीं लोगों को बनना चाहिए जो सर्वाधिक योग्य व बुद्धिमान हों। उनका स्पष्ट कहना था कि जब तक शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित और प्रतिबद्ध नहीं होता है और शिक्षा को एक मिशन नहीं मानता है, तब तक अच्छी शिक्षा की कल्पना नहीं की जा सकती है। शिक्षक को छात्रों को सिर्फ पढ़ाकर संतुष्ट नहीं होना चाहिए, शिक्षकों को अपने छात्रों का आदर व स्नेह भी अर्जित करना चाहिए। सिर्फ शिक्षक बन जाने से सम्मान नहीं होता, सम्मान अर्जित करना महत्वपूर्ण है|

7 हजार 122 साल पहले हुआ था प्रभु श्रीराम का जन्म

यदि आपसे कोई यह पूछे कि भगवान श्रीराम का जन्म कब हुआ था? तो शायद आपका जवाब रामनवमी ही होगा| आपको बता दें कि दिल्ली के इंस्टीट्यूट फॉर साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज (आइ-सर्व) को भगवान राम के जन्म की सटीक तिथि के बारे में पता लगाने में सफलता मिल गई है| इतना ही नहीं संस्थान ने इसे वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करने का भी दावा किया है। 

साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज की निदेशक सरोज बाला ने बताया कि हमने अपने सहयोगियों और प्लैनेटेरियम सॉफ्टवेयर के माध्यम से श्रीराम की जन्मतिथि की सटीक जानकारी प्राप्त की है। इससे भगवान राम का अस्तित्व भी प्रमाणित होता है।

सरोज बाला ने बताया है कि भगवान श्रीराम का जन्म 10 जनवरी, 5014 ईसा पूर्व (सात हजार, 122 साल) पहले हुआ था। जिस दिन भगवान श्रीराम ने अवतार लिया था उस दिन चैत्र का महीना और शुक्ल पक्ष की नवमी थी| जन्म का वक्त दोपहर 12 बजे से दो बजे की बीच था। 

आइ-सर्व के वैज्ञानिकों ने बताया कि वे न केवल भगवान राम बल्कि अन्य पौराणिक पात्रों की जन्मतिथि और अस्तित्व का सत्यापन करने का प्रयास कर रहे हैं। बल्कि प्रभु श्रीराम के जीवन में हुई घटनाओं, जैसे वनवास, रावण वध का भी सत्यापन करने जा रहे हैं।