जानिए पुत्र ही क्यों देता शव को मुखाग्नि

भारत मान्यताओं और परम्पराओं का देश है| यहाँ तमाम तरह की परम्पराएँ है| इन परम्पराओं में एक परंपरा यह भी है कि यहाँ किसी भी शव को मुखाग्नि पुत्र ही देता है। क्या आपको पता है कि मृत व्यक्ति को मुखाग्नि परिवार के अन्य सदस्यों को छोड़कर उसका बेटा ही क्यों देता है? 

इस संबंध में हमारे शास्त्रों में उल्लेख है कि पुत्र पुत नामक नर्क से बचाता है अर्थात् के हाथों से मुखाग्नि मिलने के बाद मृतक को स्वर्ग प्राप्त होता है। इसीलिए मान्यता के आधार पर पुत्र होना कई जन्मों के पुण्यों का फल बताया जाता है।

पुत्र ही माता-पिता का अंश होता है। इसी वजह से पुत्र का यह कर्तव्य है कि वह अपने माता-पिता की मृत्यु उपरांत उन्हें मुखाग्नि दे। इसे पुत्र के लिए ऋण भी कहा गया है। http://hindi.pardaphash.com/news/--727041/727041.html

जानिए मृत शरीर को ले जाते समय क्यों कहते हैं 'राम-नाम सत्य है'


जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना भी एक अटल सच्चाई है| श्रीमदभगवत गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने यही संदेश दिया है कि मृत्यु एक अटल सत्य है। जिसने जन्म लिया है उसे मृत्यु अवश्य प्राप्त होगी। आत्मा अमर है और वह निश्चित समय के अलग-अलग शरीर धारण करती है। जब जिस शरीर का समय पूर्ण हो जाता है आत्मा उसका त्याग कर देती है। इसे ही मृत्यु कहा जाता है। हिंदू धर्म में जब किसी की शव यात्रा जा रही होती है तो आपने देखा होगा कि मृतक के परिजन 'राम नाम सत्य है' कहते जाते हैं क्या कभी आपने यह जानने की कोशिश की कि आखिर शव यात्रा में मृतक के परिजन क्यों कहते हैं..? 

आपको बता दें कि पञ्च प्राण मृत्यु के उपरांत मनुष्य के शरीर को छोड़ ब्रह्माण्ड में विलीन हो जाता है जिनकी साधना और पुण्याई अच्छी होती है उन्हें तुरंत गति मिलती है और वे मृत्यु उपरांत की यात्रा तय करने हेतु अपने आगे का प्रवास आरम्भ कर देते हैं परन्तु कलयुग में अधिकांश व्यक्ति की साधना इतनी नहीं होती और मृत्यु के उपरांत अचानक ही शरीर को न पाकर कुछ लिंगदेह अपनी वासना की तृप्ति हेतु दुसरे शरीर में प्रवेश करने का प्रयास करने लगते हैं।

और ऐसे में उनके आप-पास उपस्थित व्यक्ति में वे सरलता से प्रवेश कर सकते हैं अतः राम का नाम लेने से उपस्थित लोगों के ऊपर कवच निर्माण होता है जो उनकी रक्षा करता है| साथ ही लिंगदेह और मृत देह से प्रक्षेपित होने वाली काली शक्ति से भी रक्षण होता है। इसलिए जब कोई शव यात्रा जाती है तो उस मृतक के परिजन घर से लेकर मरघट तक "राम नाम सत्य है, सत्य बोलो मुक्त है" कहते जाते हैं| 


Once Upon A Time In Mumbaai Again | Official Trailer

Mumbai: The much awaited trailer of Once Upon A Time In Mumbaai Again is finally out, highlighting Akshay Kumar, Imran Khan as gangsters and Sonakshi Sinha playing the love girl placed opposite the two actors.

The tagline of the flick, We Are Back and This Time It Is Personal is pretty promising. 

The flick is a sequel to the Once Upon A time In Mumbai and it will include more of romance. 

In this flick, Akshay will be playing a gangster which was played by Emran Hashmi in Once Upon A Time in Mumbai. 
The flick involves high action scenes and stunts by action hero, Akshay Kumar. Moreover, few action scene are also done by the chocolate boy Imran Khan. Sonakshi Sinha plays an actress Yasmin in the movie.

The flick will hit cinemas this Eid giving competition to Shahrukh Khan's Chennai Express. 

Well, speculations continue till the release of the two flicks, till then enjoy the first trailer of the movie and get some idea about the story. 

'Yeh Jawaani...' to break 10-year jinx for Bollywood in Israel


Since the 2002 film "Devdas", no Bollywood film is said to have hit screens in Israel. Now, Ranbir Kapoor-starrer "Yeh Jawaani Hai Deewani" will break the dry spell on Friday.

The movie, subtitled in Hebrew for the audiences there, will release in India and Israel on the same day. Eros International is releasing the Ayan Mukerji-directed romantic entertainer in that country.

"There is a huge demand for these movies since Israelis and the local Indian population over there are fond of Indian content," Kumar Ahuja, president (Business Development), Eros International, said in a statement.

"Earlier, Bollywood content was available on DVDs and Indian channels, but this can very well be called the beginning of theatrical age of Hindi movies in Israel," he added.

Ahuja said Israel was devoid of any Bollywood films in the last decade as "there was no solid distributor until now and getting prints of the movie is an expensive process".

Now Shai Motion Pictures, an Israeli distributor, has invested in a portable projector which gives them the mobility to showcase movies at different locations at a lesser cost, added Ahuja.

The foreign distributors are equally thrilled about the film, which also features Deepika Padukone, Kalki Koechlin and Aditya Roy Kapur.

"We are looking forward to it. It is after a long gap, after 'Devdas', that any Indian movie will release here. This itself calls for celebration and we are anticipating good numbers," said Shai Solomon of Shai Motion Pictures.

In India, the movie is expected to release in over 3,000 screens, tweeted trade analyst Taran Adarsh.

Are Katrina Kaif, Ranbir Kapoor In Love?

Providing a fresh air to the rumours of a romantic affair, Ranbir Kapoor and Katrina Kaif were seen in the same car heading towards Karan Johar's birthday bash.

It is not done yet. They also danced their together on some numbers of Ranbir's upcoming film 'Yeh Jawaani Hai Deewani'. On the other hand, when Ranbir was shaking his legs with Katrina, his ex-flame Deepika Padukone just kept watching them. 

The news of an affair between Ranbir and Katrina have been coming ever since Katrina parted ways with Salman Khan.
Ranbir and Katrina, who are said to be Bollywood's latest couple, first met on the sets of 2009 super-hit flick 'Ajab Prem Ki Ghazab Kahani'. Since then, they have been spotted together several times. However, the couple have strictly denied having any kind of relationship till now.

Looking at the several previous reports, the pair has been hanging out together even after being tired completing their hectic schedules. A few days before, the news had come that Katrina was shooting in Mumbai's Film City and when she came to know that Ranbir was also present there, she immediately went to meet him. In a bid to avoid the media, they met in a van and chatted for around an hour. During their chatting, the shooting was put on hold.

This incident reveals the attraction connection between these two Bollywood sensations and they may be having an affair right now.

With gratitude pardaphash.com

तो इसलिए धारण करते हैं मौन


शास्त्रों में कहा गया है कि "उत्सर्ग मिथुने चैव प्रस्त्रवे दन्तधावने। श्राद्धे भोजन काले च षट्सु मौनं समाचरेत्।। अर्थात मल-मूत्र त्याग करते समय, नाक व कान का मेल साफ़ करते समय, मैथुन के समय, कान व नाक की सफाई करते समय इसके अलावा आँख के चिपड़े को साफ़ करते समय, श्राद्ध काल में तथा भोजन करते समय मौनाचरण करना चाहिए| 

मौन पालन के समय मुंह से न बोलना जितना आवश्यक है, उससे अधिक महत्वपूर्ण किसी भी व्यावहारिक बात का विचार न करना है। परमार्थ सिद्धि के लिए व्यावहारिक बातों का अस्पष्ट विचार भी मन में नहीं आना चाहिए। यही मौन पालन का सही अर्थ है। मौन पालन की समयावधि में साधना,चिंतन तथा मनन की अधिक से अधिक प्रमाण में आवश्यकता होती है।

कहते हैं कि मौन साधना प्राचीन तपश्चर्या का छोटा रूप है। मौन धारण करने वाले साधक के शरीर में दैवी शक्ति उत्पन्न होती है। उसकी इच्छा शक्ति एवं मनोबल जैसे-जैसे बढता जाता है, वैसे-वैसे अल्प, लघु, क्षुद्र या महासिद्धि का लाभ प्राप्त होता है। मौन के भी दो प्रकार होते हैं- वाचिक एंव वैचारिक| इनमें से वाचिक मौन का पाठ बचपन में ही सीखने को मिल जाता है। जब वाद-विवाद एवं मतभेद उत्पन्न होता है, उस समय क्रोध की संभावना रहती है। 

ऐसे में प्रासंगिक मौन का सहारा लेने पर अच्छा परिणाम निकलता है। अष्टमी, एकादशी, पूर्णिमा एवं अमावस्या-इन तिथियों का मौन पालन विशेष स्मरणीय रहता है। इसके अलावा पूजा, पंचमहायज्ञ, जप तथा पुरश्चरण आदि धार्मिक प्रसंगों पर मौन पालन आवश्यक है। साथ ही साथ वैचारिक मौन के समय कोई भी विचार मन में नहीं आने देना चाहिए। वैचारिक मौन ही श्रेष्ठ मौन माना जाता है।

बाबा बैद्यनाथ धाम में है रावण की लायी चंद्रकांत मणि


भारत के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में झारखंड के देवघर का बैद्यनाथ धाम अत्यंत महत्वपूर्ण है। द्वादश ज्योतिर्लिगों में से एक बैद्यनाथ मंदिर स्थापत्य कला की दृष्टि से देश के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यहां सावन में गंगाजल अर्पण का विशेष महत्व है। 

धर्माचार्यो के मुताबिक, शिव पुराण और बैद्यनाथ महात्म्य में वर्णित तथ्यों में कहा गया है कि बैद्यनाथ ज्योतिर्लिग को गंगाजल और विल्वपत्र अर्पण करने से मनुष्य के सभी पाप धुल जाते हैं। उन्हें अभिष्ट की प्राप्ति होती है। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिग और गंगाजल का अन्योन्याश्रय सम्बंध है। आपको बता दें कि कांवड़िए सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से जल भरने के बाद करीब 105 किलोमीटर की पैदल यात्रा कर बैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। 

धर्म के जानकार जय कुमार पाठक कहते हैं कि प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में कहीं भी कांवड़ के सम्बंध में विशेष उल्लेख तो नहीं मिलता, लेकिन पुराणों में कांवड़ की आंशिक चर्चा है। पितृभक्त श्रवण कुमार की कथा में कांवड़ का उल्लेख किया गया है। पाठक हालांकि यह भी मानते हैं कि धार्मिक ग्रंथों में इसकी चर्चा भले ही न हो, लेकिन ऐतिहासिक पुस्तकों या प्राचीन चित्रों में कांवड़ की चर्चा और उसके चित्र अवश्य मिलते हैं। 

बैद्यनाथ धाम का मंदिर ठोस पत्थरों से निर्मित है। मंदिर के मध्य प्रांगण में बना शिव का भव्य और विशाल मंदिर मनमोहक है। यह मंदिर कब बना और किसने बनवाया, यह गंभीर शोध का विषय है। मंदिर के मध्य प्रांगण में शिव के 72 फीट ऊंचे मंदिर के अलावा उसी प्रांगण में अन्य 22 मंदिर हैं। मंदिर प्रांगण में एक घंटा, एक चंद्रकूप और एक विशाल सिंह दरवाजा बना हुआ है। 

इस मंदिर की विशेषता है कि यहां शिवलिंग पर मंदिर के ऊपर लगे चंद्रकांत मणि से बराबर बूंद-बूंद जल टपकता रहता है। मान्यता के अनुसार, चंद्रकांत मणि यहां लंकापति रावण ने धन देवता कुबेर से हासिल कर यहां लगवाया था। चंद्रकांत मणि अष्टदल कमल की आकृति के बीच में लगा हुआ है। 

पुजारियों के मुताबिक, इस मंदिर में रात को होने वाली श्रृंगार पूजा में शिवलिंग पर जो चंदन का लेप किया जाता है, उसके ऊपर रातभर चंद्रकांत मणि से बूंदें टपकती रहती हैं। यही कारण है कि सुबह इस चंदन को लेने के लिए भक्तों की भारी भीड़ लगती है। लोगों का कहना है कि यह घाम चंदन अमृत के समान होता है। इससे सभी रोग और दुख दूर हो जाते हैं। 

यहां के पंडितों का कहना है कि इस बात का पता वर्ष 1962 में उस समय चला जब सरकार की ओर से इस मंदिर में एक और दरवाजा बनाने के लिए खुदाई की जा रही थी। चंद्रकांत मणि मिलने के बाद दरवाजा बनाने का कार्य रोक दिया गया था। पंडितों ने बताया कि एक और चंद्रकांत मणि देवी लक्ष्मी के मंदिर में है। 

कुछ लोग मानते हैं कि बैद्यनाथ मंदिर का निर्माण स्वयं भगवान विश्वकर्मा ने करवाया था। पंडित कामेश्वर मिश्र ने बताया कि पुराणों में उल्लेख है कि रावण जब शिवलिंग को धरती पर रखकर चला गया, उसके बाद भगवान विष्णु स्वयं इस शिवलिंग के दर्शन के लिए पधारे थे। तब विष्णु ने शिव की षोडषोपचार पूजा की थी। शिव ने विष्णु से यहां एक मंदिर निर्माण कराने की बात कही थी। इसके बाद विष्णु के आदेश पर भगवान विश्वकर्मा ने इस मंदिर का निर्माण किया था। 

मंदिर निर्माण को लेकर इतिहासकारों और पुरातत्ववेत्ताओं के मत अलग-अलग हैं। कुछ इतिहासकार इसे पालकालीन मानते हैं तो कई इसे गुप्तकालीन बताते हैं। पुरातत्ववेत्ता एवं संस्कृत साहित्य के विद्वान डा. मोहनानंद मिश्र के अनुसार, रावणेश्वर मंदिर का निर्माण इंडो-आर्य कला का खूबसूरत उदाहरण है। इस मंदिर पर अब तक किसी प्राकृतिक आपदा का प्रभाव नहीं पड़ा है।

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार 

एक राजा ने अपनी रानी को दिया था ताजमहल से भी प्यारा गिफ्ट

  आपने बहुत-से उपवन देखे होंगे। हम आपको एक अद्भुत उपवन के विषय में बताते हैं, जो संसार की सात आश्चर्यजनक वस्तुओं में से एक था। कारण, यह हवा में लटकता था। दक्षिण-पश्चिमी एशिया के इराक (मेसोपोटामिया) देश में फरात नदी के किनारे के मैदान में एक बड़ा सुंदर नगर था। इस नगर के चारो ओर बड़ी ऊंची दीवार का परकोटा था। इस परकोटे में बड़े-बड़े द्वार लगे हुए थे। इस नगर का नाम बैबिलन है।

आज से दो हजार वर्ष पहले बैबिलन संसार का एक बहुत बड़ा और धनी नगर था। वहां नबूचद नाजिर नामक एक बड़ा शक्तिशाली बादशाह राज्य करता था। इस बादशाह ने आक्रमण करके आसपास के देशों को ही नहीं, वरन् संसार के दूर-दूर के देशों को भी जीत लिया था।

जिस समय बादशाह को लड़ने से अवकाश मिल जाता था, वह अपने नगर में रहकर हजारों कारीगरों को मंदिर बनाने और शहर के परकोटे को मजबूत करने में जुटा देता था। एक बार बादशाह की इच्छा एक सुंदर महल बनवाने की हुई। फिर क्या था! उसने इतने लोग जुटा दिये कि महल पंद्रह दिन में बनकर तैयार हो गया।

बादशाह उन दिनों एक दूसरे देश की यात्रा करने गया हुआ था। वहां बादशाह की भेंट उस देश के बादशाह की पुत्री से हुई। बादशाह ने शाहजादी से विवाह कर लिया और दोनों बैबिलन लौट आए। शहजादी अब रानी हो गई थी और उसके रहने के लिए एक सुंदर महल भी था, फिर भी वह अनमनी-सी रहती थी, क्योंकि उसे रह-रहकर अपने देश के पर्वतों का ध्यान आता था। यहां के मैदान की हवा बड़ी ही गरम थी। रानी हरदम अपने मन में सोचती, "यदि पिता के घर होती तो पर्वतों की चोटियों पर चढ़कर शीतल वायु का सेवन करती।" धीरे-धीरे उसकी सेहत गिरने लगी।

बादशाह ने यह देखा तो उसे चिंता हुई। एक दिन उसने रानी से पूछा, "दिन-दिन तुम्हारी सेहत क्यों गिर रही है? तुम्हारी यह हालत मुझसे नहीं देखी जाती। जो इच्छा हो, नि:संकोच कहो। मैं तुम्हें प्रसन्न करने के लिए सब कुछ करने को तैयार हूं।" 

रानी ने बादशाह से कहा, "मैं जानती हूं कि आप मेरे लिए सबकुछ करने को तैयार हैं, पर अपने चौरस देश में इच्छा होने पर भी पर्वत और पहाड़ियां तो नहीं बनवा सकते।"

बात सच थी; किंतु बादशाह भी सहज हार माननेवाला नहीं था। उसके पास अनेक कारीगर थे। बादशाह ने तुरंत उन सबको काम पर जुटा दिया। इन लोगों ने सबसे पहले एक वर्गाकार भूमि को ढकने के लिए बड़े-बड़े खंभों की कतारें बनाईं। हर कतार अपने आगे की कतार से ऊंची थी और खंभे पकी हुई इंटों तथा राल से बनाए गए थे। भीतर से वे खोखले थे। उनके भीतर मिट्टी भरी गई। उन खंभों को घुमावों द्वारा एक-दूसरे से मिला दिया गया। घुमावों के ऊपर छतें बनाई गईं।

खंभे इतने बड़े और मजबूत थे कि उनमें से बड़े से बड़े वृक्ष लगाए जा सकते थे। छतों पर भी मिट्टी बिछाई गई थी और उस पर पैधे लगाए जा सकते थे। छतों पर भी मिट्टी बिछाई गई थी और उस पर वृक्ष, झाड़ियां तथा पुष्प लगाए गए थे। इन छतों पर चढ़ने के लिए सीढ़ियां बना दी गई थीं। छतें एक बड़ी सीढ़ी की तरह एक दूसरों से ऊपर निकाली हुई थी। वृक्षों, लताओं और पुष्पों से भर जाने के कारण ये बड़ी मनमोहक लगती थीं।

बाग की सिंचाई के लिए पानी की आवश्यकता होती हैं; किंतु बैबिलन में तो बहुत ही कम वर्षा होती थी। वहां पानी फराद नदी से आता था। बाग की सिंचाई का सवाल उठा। बाग फरात नदी के किनारे पर बनाया गया था। बादशाह ने अपने दास-दासियों को आज्ञा दी कि वे हर समय डोलों में पानी भर भरकर बाग को सींचते रहें।

इस बाग को सींचने में दास-दासियों को कठिन परिश्रम करना पड़ता था, क्योंकि सबसे ऊंचे घुमाव की ऊंचाई 75 गज थी। देखते-देखते ही एक बड़ा ही सुंदर उपवन बन गया। रानी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा। अब वह छतों पर चढ़कर वृक्षों के नीचे जा बैठती और इच्छानुसार ठंडक का आनंद लेती। उपवन राजमहल और उसके पिता के बाग से कहीं अधिक ठंडा था।

इन्हीं छतों को लटकते हुए उपवन के नाम से पुकारते थे, किंतु अब तो उनकी याद ही शेष रह गई है। सैकड़ों वर्ष से ये उपवन खंडहरों के रूप में पड़े हैं। किसी समय में इस स्थान को सुंदरता को देखकर लोग दांतों तले उंगली दबाते थे।

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार 

जहाँ लौट आती थी आत्माएं!

अफ्रीका महाद्वीप के उत्तरी प्रदेश मिस्र में प्राचीन काल में मृतक शरीरों पर चिह्न् लगाकर उन्हें सुरक्षित स्थानों पर रखकर उनके ऊपर समाधियां बना देते थे। वहां के रहने वालों का विश्वास था कि इन समाधियों में से आत्माएं फिर लौट आती हैं। इन समाधियों में सबसे अधिक सुरक्षित और प्रसिद्ध स्थान पिरामिड थे। ये पिरामिड बादशाहों के मृतक शरीरों को गाड़ने के लिए बनाए जाते थे। 


इन पिरामिडों में सबसे बड़ा गिजा का पिरामिड है। इसे आज से पांच हजार से अधिक वर्ष पहले नील नदी के मरुस्थल में बहुत-से दासों ने बनाया था। क्षेत्रफल में यह साढ़े बारह एकड़ और ऊंचाई में 451 फुट है। आज भी इसमें इतने पत्थर लगे हैं कि उनसे एक बड़ा नगर बन सकता है। इस विशाल भवन का नक्शा इतना सही था कि आज भी इसके आधार पर चारों भुजाओं की लंबाई में दो अंगुल से अधिक का अंतर नहीं है।



इन पिरामिडों के भीतरी भाग में ऐसे अनेक बरामदे हुए हैं, जिनमें होकर उन स्थानों में जाते हैं, जहां मिश्र के प्राचीन बादशाह और बेगमें अनंत निद्रा में सोए हुए हैं। इन विशाल पिरामिडों को बहुत-से दासों ने खून-पसीना एक करके वर्षो में बनाया था। इनके लिए नील नदी के किनारे से पत्थर लाए गए थे। नील नदी यहां से नौ मील की दूरी पर है। अकेला गिजा का पिरामिड बीस वर्ष में बन पाया था।



मिस्र के पिरामिड संसार की सात आश्चर्यजनक वस्तुओं में से है। आज भी ये सारे संसार में प्रसिद्ध हैं और दुनिया के कोने-कोने से लोग उन्हें देखने के लिए बड़ी उत्सुकता से आते हैं। इन पिरामिडों का कला कौशल वास्तव में निराला है।

पर्दाफाश से साभार 

दुनिया के 7 अजूबों में एक है चीन की दीवार


आज से हजारों वर्ष पहले जब मान और माल की रक्षा का इतना उत्तम प्रबंध न था, मनुष्यों को हर समय चोर, डाकुओं तथा शत्रुओं का डर बना रहता था। इसलिए उन दिनों लोग अपने रहने के मकान मजबूत और ऊंचे बनाते थे और नगरों को रक्षा के लिए चहारदीवारी से घेर लेते थे। 

चहारदीवारी में आने-जाने के लिए खास-खास स्थानों पर मजबूत दरवाजे बनाते थे। इन दरवाजों की सुरक्षा के लिए सिपाहियों का कड़ा पहरा रहता था। ये दरवाजे रात के समय बंद कर दिए जाते थे।

आज भी भारत के बहुत-से नगरों के चारों ओर चहारदीवारी दिखाई देती है। प्राचीनकाल में क्रूर और अत्याचारी तातार लोग चीन के उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम से इस देश पर बहुधा आक्रमण करते रहते थे। ये लोग चीन में मनमानी लूट-मार मचाते थे। इन लोगों से तंग आकर चीन के निवासियों ने अपनी रक्षा के लिए यह अचरज में डालने वाली मजबूत तथा ऊंची दीवार बनाई थी।

यह दीवार ईसा के जन्म से 204 वर्ष पूर्व बननी आरंभ हुई थी। इसकी लंबाई 1500 मील है, किंतु सारी दीवार एक साथ नहीं, थोड़ी-थोड़ी करके बनी थी। इस दीवार की नींव 15 से 25 फुट चौड़ी है, लेकिर ऊपर आकर 12 फुट रह गई है। ऊंचाई 20 से 30 फुट तक है। दो-दो सौ गज की दूरी पर 40 फुट ऊंची मीनारें बनाई गई हैं। भिन्न-भिन्न ऊंचाइयां रखने का यही कारण है कि कहीं दीवार नीची घाटियों पर बनी है तो कहीं इसके नीचे पहाड़ आ गए हैं। कहीं-कहीं तो यह समुद्र के धरातल से 4000 फुट ऊंची है।

यह दीवार चीन और मंचूरिया की सीमा पर समुद्र के किनारे पेकिंग (आजकल का बीजिंग) नगर से आरंभ होकर दक्षिण-पश्चिम तक चली गई है। तिब्बत और तुर्किस्तान की सीमा पर इस दीवार को विशेष रूप से मजबूत बनाया गया है, क्योंकि चीन वालों को उस ओर से शत्रुओं का अधिक डर था। कालगन, पीनमन आदि दर्रो की ओर खास-खास दरवाजे बनाए गए थे और उन पर सेना तैनात रखी जाती थी। चीन में यह व्यवस्था आज भी है।

धीरे-धीरे यह बड़ी दीवार कहीं-कहीं पर टूटने लगी। सोलहवीं शताब्दी में इसकी मरम्मत हुई। ईंट और पत्थर की बनी हुई यह दीवार सचमुच एक आश्चर्य है।

पर्दाफाश से साभार 

इस चर्च की अनूठी दास्तां

मुम्बई में सेंट थॉमस के बड़े चर्च में प्रवेश करते ही दीवारों पर स्मृति पट्टियां और स्मारक नजर आते हैं जो हमें दो सौ साल पीछे ले जाते हैं, जब मुम्बई में पहले व्यापारी और फिर ईस्ट इंडिया कम्पनी आकर बस गई थी। कम्पनी ने मुम्बई द्वीप को किंग चार्ल्स द्वितीय से प्रतिवर्ष 10 पौंड की दर से भाड़े पर लिया था। किंग की पत्नी को यह द्वीप दहेज के एक अंश के रूप में मिला था।

उन सुखमय दिनों में ईस्ट इंडिया कम्पनी के कारखानों के अध्यक्ष सर जेराल्ड आंगियर वस्तुत: मुम्बई के शासक थे। उन्होंने किलेबंदी जैसी सुरक्षा प्रदान की और मजबूत गैरिसन बल द्वारा सैनिक विद्रोह को दबाया। उन्होंने 1672 ई. में चर्च का निर्माण शुरू किया था लेकिन इसमें उसकी रुचि खत्म हो गई और इसे अंतत: उनकी मृत्यु के बाद 1718 ई. में पूरा किया गया। ऐसा खासतौर से रेवरेंड रिचर्ड कोबे के जोश और उत्साह से संभव हो पाया।

जब कोबे के पादरी के रूप में मुम्बई पहुंचा तो उसने पाया कि धार्मिक अनुष्ठान किले के एक कमरे में किए जाते थे। उसने अपने प्रवचनों में चर्च में एकत्र जनसमूह के बीच एक समुचित गिरिजाघर बनवाने की आवश्यकता पर जोर दिया। एक दिन अनुष्ठान में भाग लेने के बाद गवर्नर ने कहा, "हां, तो डॉक्टर कोबे, आज सुबह आप गिरिजाघर बनाए जाने के लिए जोश में दिखाई दे रहे थे।" "हां महाशय, मेरे विचार से ऐसा करने की जरूरत है और मुझे आशा है यह किसी को बुरा नहीं लगा होगा।" कोबे ने जवाब दिया।

"ठीक है, अगर हमें गिरिजाघर की जरूरत है तो वह बनना ही चाहिए।" गवर्नर ने कहा, "आप एक बही बना दें और देखें कि लोग गिरिजाघर के निर्माण के लिए कितना चंदा देते हैं।" कोबे ने खुद एक हजार रुपये दान दिए। अन्य राजाओं में कोर्निलियस टोडिंगटन भी शामिल था जिसने बीस रुपये देते हुए लिखवाया, "मेरी पत्नी के लिए।" जब भारी मात्रा में धन जमा हो गया तो नींव रखी गई। तीन वर्ष बाद तैयार हुए गिरिजाघर को क्रिसमस के मौके पर खोला गया। गवर्नर जुलूस में पहुंचा। धार्मिक अनुष्ठान के बाद वह महिलाओं और मंत्रिमंडल के साथ वस्त्रागार पहुंचा और नए गिरिजाघर की सफलता की कामना करते हुए उन्होंने चुनिंदा मैक और शेरी का सेवन किया।

यह गिरिजाघर कोबे के प्रशासन में फला-फूला लेकिन शीघ्र ही कोबे का गवर्नर के मंत्रिमंडल से झगड़ा हो गया और वह अपने प्रवचनों में मंत्रियों की आलोचना करने लगा। चूंकि प्रवचन के जरिए भी किसी का अपमान करने की अनुमति नहीं दी जा सकती थी, सो कोबे को कम्पनी की सेवाओं से निलंबित कर और उसे पादरी के रूप में काम करने से रोक दिया गया। इसके बाद वह इंग्लैंड लौट गया और लंबी आयु तक जीवित रहा।

मुम्बई में जब तक कोई विशेष क्षेत्र निर्धारित नहीं किया गया और धीरे-धीरे अन्य गिरिजाघर नहीं बनाए गए, तब तक इस चर्च को हर जगह बॉम्बे चर्च के नाम से जाना जाता था और यह मुम्बई में रहने वाले व्यापारियों के लिए पूजा-पाठ का एकमात्र स्थान था।

1763 ई. में जेम्स फोर्बस ने ओरिएंटल मेमोआयर्स में गिरिजाघर के सामने के उद्यान की सुंदर तस्वीर बनाई।

गिरिजाघर के सामने सैनिकों की फौज खड़ी है। तिरछी टोपी, घुटने तक की पतलून पहने और एक लंबी छड़ी हाथ में लिए हुए। सिर पर छाता (जिसे नौकर ने पकड़ा हुआ था) ताने हुए उनकी ओर टकटकी लगाकर देख रहा है। चर्च के पीछे चार घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी गुजर रही है जिसके आगे-आगे सिपाही चल रहे हैं। एक आढ़ती को खुली पालकी में ले जाया जा रहा है जिसके पीछे तलवार ताने दो सिपाही चल रहे हैं। एक सज्जन चार पहियों की गाड़ी (जोकि उन दिनों बैलगाड़ी का नया रूप था) को जोड़ा बनाकर चला रहा था।

बैल घोड़ों की तरह ही दुलकी चाल से सरपट दौड़ते हैं और हर लिहाज से घोड़ों जितने काम आते हैं सिवाय इसके कि कभी-कभी वे अपनी पूंछ द्वारा आप पर गंदगी फेंक देते हैं। पुरानी बम्बई में पूरी वर्दी में सुसज्जित किसी अधिकारी का बैलगाड़ी में बैठकर मुम्बई घूमना असामान्य तो नहीं, लेकिन आश्चर्य की बात होती थी।

1836 ई. में गिरिजाघर बिशप क्षेत्र का बड़ा चर्च बन गया और छोटे-से घंटाघर को एक ऊंची मीनार बना दिया गया। बीस साल बाद गिरिजाघर के पुनर्निर्माण का लंबा-चौड़ा काम शुरू किया गया लेकिन उसे अमेरिकी असैनिक युद्ध के अंत के बाद स्थानीय व्यापारियों के काम में मंदी आने के कारण रोक देना पड़ा। चांसल और पवित्र स्थान इस पुनर्निर्माण योजना का नतीजा हैं और इन्हें बनावटी गोथिक शैली में बनाया गया है। लेकिन गिरिजाघर की मध्य वीथी और पश्चिमी भाग पहले बनाए गए थे और वे गौरवशाली और भव्य थे।

बड़े चर्च के भीतर बड़ी संख्या में बने स्मारकों में मुम्बई के इतिहास के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। सोलह वर्षो तक गवर्नर रहे जोनाथन डंकन (1811 ई.) के स्मारक में उसे हिंदू युवक का आर्शीवाद लेते हुए दर्शाया गया है, जो डंकन के बनारस के निकट कुछ जिलों और काठियावाड़ में शिशु मृत्यु को रोकने के प्रयास को दर्शाता है।

एक स्मारक कर्नल बर्न का है जिसने किड़की की लड़ाई (1817 ई.) में कमान संभाली थी। एक स्मारक कर्नल जॉन कैंपबैल का है जिसने 1784 ई. में टीपू के खिलाफ मंगलौर की रक्षा की थी। दूसरा स्मारक जॉन कार्नेक (1780 ई.) का है जिसने बंगाल में क्लाइव की सेवा की थी और उसकी पत्नी एलिजा रिवेट का स्मारक भी है जिसकी तस्वीर रेनाल्ड द्वारा लंदन में वालेस कलेक्शन में लगाई गई है। एक स्मारक एडमिर मेटलैंड (1839ई.) का है जिसने बैलेरोफोन पर सवार नेपोलियन का स्वागत किया था और अनेक दूसरे लोगों के भी स्मारक हैं।

आज आधुनिक मुम्बई के चहल-पहल से घिरे माहौल में दो सौ साल पुराने सेंट थॉमस के बारे में कल्पना करना कठिन लगता है जो विशाल बॉम्बे ग्रीन के मध्य सबसे महत्वपूर्ण भवन है, लेकिन जिसकी चारदीवारी में प्रवेश करते ही बाहर की सारी आवाजें शांत हो जाती हैं। यहां आकर बाहर स्थित पत्थरों और मैले संगमरमर पर हाथ फेरते हुए हम उन दुस्साहसी व्यापारियों की उपस्थिति महसूस कर सकते हैं जिन्होंने गंदे मलेरियाग्रस्त द्वीप को एक महान बंदरगाह और भीड़-भाड़ वाले महानगर में बदल दिया। 

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार

धरती के खूबसूरत स्थानों में एक है मनाली

ब्यास नदी की बहती तेज़ धारा का शोर जब कानों को सुकून देने लगे, रंग बिरंगी पोशाक पहने लोग बगीचे में सेब तोड़ते हुए दिखें, ऊँचे पहाड़ों में जमी बर्फ एक बड़े सफ़ेद फूल की प्रतीत होने लगे, बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटक मौसम का मज़ा लेते हुए नज़र आएं और घूमते-घूमते अचानक लकड़ी के दरवाज़ों से बने 24 मीटर ऊंचे किसी मंदिर पर आपकी नज़र पड़ जाए तो समझिये कि आप धरती की खूबसूरत जगहों में से एक यानि मनाली पहुँच गए हैं।

समुद्र तल से 2050 मीटर की ऊंचाई और हिमालय की गोद में बसा मनाली कुल्लू जिले का सबसे महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल है क्योंकि सैलानियों का सबसे ज्यादा आवागमन इसी स्थान पर होता है। राजधानी शिमला से 270 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह जगह किसी भी माईने में स्वर्ग से कम नहीं है, इस जगह का नाम हिंदू पौराणिक कथाओं में मानवों के जनक मनु के नाम पर रखा गया है जिन्‍हे सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रहमा ने बनाया था।

मनाली मुख्य रूप से सुंदर दृश्‍यों, गार्डन, पहाड़ो, और सेब के बागों के लिए जाना जाता है। यहां के बागों में लाल और हरे सेब पैदा होते है। यहां आने पर पर्यटक हिमालय नेशनल पार्क, हिडिम्बा मंदिर, सोलांग घाटी, रोहतांग पास, पनदोह बांध, पंद्रकनी पास, रघुनाथ मंदिर और जगन्‍ननाथी देवी मंदिर में विभिन्न देवी-देवताओं के दर्शन कर सकते हैं। यहां का हिडिम्बा मंदिर 1533 ई. में घटोत्कक्ष की माँ हिडिम्बा को समर्पित करके बनाया गया था। हिडिम्बा, एक राक्षस हिडिम्ब की बहन थीं तथा भीम की पत्नी थी। स्‍थानीय मान्‍यताओं के अनुसार, इस मंदिर को बनवाने वाले राजा ने मंदिर बनाने वाले कलाकारों के सीधे हाथ काटवा दिए थे ताकि वह ऐसा सुंदर मंदिर कही और न बना सकें।

300 मीटर की ऊंचाई वाली मनाली की सोलांग घाटी हर साल सर्दियों में विंटर स्काईंग फेस्टिवल का आयोजन किया जाता है। वहीं रोहतांग पास एक पहाड़ी पिकनिक स्‍पॉट है जिसे जिपावेल रोड़ के नाम से भी जाना जाता है। जहाँ पर्यटक कई प्रकार की साहसिक गतिविधियों जैसे - पैराग्‍लाडिंग, पहाड़ो पर बाइक चलाना, और स्काईंग कर सकते है। सोलंग घाटी से पूरे मनाली, ग्‍लेशियर और पर्वतों का खुबसूरत व्‍यू लिया जा सकता है। धर्म में श्रद्धा रखने वाले पर्यटक व्‍यास कुंड जाना न भूलें, इस कुंड का वर्णन महाभारत में ऋषि व्‍यास के संदर्भ में किया गया है। माना जाता है कि ऋषि व्‍यास ने इसी कुंड में स्‍नान किया था। कहा जाता है कि इस कुंड में स्‍नान करने से त्‍वचा सम्‍बंधी समस्‍त रोग दूर हो जाते हैं।

मनाली में स्थित एक गांव विशिष्ट सोपस्‍टोन से बना है। यह गांव पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है, यहां स्थित मंदिर सैंडस्‍टोन से बने हैं। इसके अलावा, यहां कई प्राकृतिक झरने भी स्थित हैं। स्‍थानीय लोगों के अनुसार, भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण ने यहां एक सल्‍फर झरने का निर्माण किया था। यहां आकर पर्यटक कला गुरू और राम मंदिर भी देख सकते हैं। यहां का जगन्‍ननाथी देवी मंदिर को आज से 1500 साल पहले बनवाया गया था जो माता भुवनेश्‍वरी देवी को समर्पित है। यह मंदिर मनाली का मुख्‍य धार्मिक केंद्र है। जगन्‍नाथी देवी को भगवान विष्‍णु की बहन माना जाता है। यहां के अन्‍य धार्मिक केंद्र में रघुनाथ मंदिर भी है जहाँ पर्यटक और श्रद्धालु घूमना पसंद करते हैं। यह मंदिर भगवान रघुनाथ जी को समर्पित है। इस मंदिर से मनाली के सभी पहाड़ो का एकस्‍वरूप दिखता है और भारत के उत्‍तर दिशा में स्थित हिमालय की तलहटी में रहने वाले लोगों के समूह में एक व्‍यापक सामान्‍यीकरण भी होता है, यहां के मंदिर की वास्‍तुकला पिरामिड आकार के बने मंदिरों की वास्तुकला देखते ही बनती है, जो एक बेजोड़ कला का उदाहरण है।

जीव-जंतुओं और उनकी फोटोग्राफी में दिलचस्पी रखने वालों की खोज मनाली में स्थित हिमालयन नेशनल पार्क में आकर पूरी हो सकती है जहां 300 से ज्‍यादा प्रकार के जीव जन्‍तु हैं। यह अभयारण्‍य विलुप्‍त पक्षियों की अनेक प्रजातियों और पश्चिमी ट्रागोपेन के लिए खासा प्रसिद्ध है। पार्क में 30 स्‍तनधारी प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं। मनाली, पहाड़ों में होने वाली साहसिक गतिविधियों के लिए भी जाना जाता है, यहां कई साहसिक गतिविधियों जैसे - पर्वतारोहण, माउंटेन बाइकिंग, नदी राफ्टिंग, ट्रैकिंग,जॉरविंग और पैराग्लाइडिंग आदि होतीं हैं। पास में रोहतांग दर्रा, देव डिव्‍वा बेस कैंप, पिन नार्वती पास, बाल झील आदि हैं जहां पर्यटक गर्मियों के दौरान समर ट्रेनिंग के आते हैं। मनाली में माउंटेन बाइकिंग का अपना ही मज़ा है। दुर्गम पहाड़ों पर संतुलन बनाते हुए बाइक चलाना अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव होता है। यहां बाइकिंग करने का अच्‍छा और उचित समय सितम्‍बर के महीने में होता है। इस दौरान सड़को पर बर्फ जमा नहीं होती है और गाड़ी फिसलने का डर भी नहीं रहता है।

सड़क, रेल और हवाई मार्ग की दृष्टि से यह शहर सभी प्रकार के यातायात के साधनों से संपन्न है। पर्यटक यहाँ हवाई यात्रा, रेल यात्रा या सड़क यात्रा करते हुए आ सकते हैं। यहां का भुटार एयरपोर्ट मनाली से 50 किमी. की दूरी पर स्थित है। विदेशों से आने वाले पर्यटक दिल्‍ली के रास्‍ते से आ सकते हैं। दिल्‍ली से मनाली के लिए भी उड़ान भरी जाती है। अन्‍य साधनों से भी दिल्‍ली से मनाली तक आया जा सकता है। मनाली का नजदीकी रेलवे स्‍टेशन जोगिंदर नगर है जो शहर से 165 किमी. की दूरी पर स्थित है। यहां से देश के बड़े-बड़े शहरों जैसे - चंडीगढ़, शिमला, नई दिल्‍ली और पठानकोट के लिए ट्रेन मिल जाती हैं।

राज्‍य में आने वाले पर्यटकों के लिए घूमने और भ्रमण के लिए राज्‍य सरकार व हिमाचल प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा कई बसें चलाई गई हैं। जो राज्‍य के अंदर ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों के शहरों में भी जाती हैं। मनाली का मौसम साल भर काफी सुखद रहता है लेकिन पर्यटक यहां मार्च से जून के दौरान आना ज्‍यादा पसंद करते है। 

पर्दाफाश डॉट कॉम से साभार

..यहाँ नारी रूप में विराजमान हैं हनुमान जी

अभी तक आपने रामभक्त हनुमान के कई रूपों के दर्शन किये होंगे क्या कभी उनका नारी रूप देखा है? अगर नहीं तो आज हम आपको बताते हैं एक ऐसा मंदिर जहाँ हनुमान जी पुरुष रूप में नहीं बल्कि नारी रूप में विराजमान हैं| 

आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ के रतनपुर में एक ऐसा मंदिर है जहाँ हनुमान जी की नारी प्रतिमा की पूजा होती है। मान्यता है कि हनुमान जी की यह प्रतिमा दस हजार साल पुरानी है।

हनुमान जी के इस रूप के बारे में एक कथा है- यहाँ प्राचीन समय में एक राजा राज्य करते थे| राजा को कुष्ट रोग हो गया था। जिसको लेकर राजा हर पल निराश रहते थे| एक दिन हनुमान जी राजा के सपने में आए और मंदिर बनावने के लिए कहा। मंदिर निर्माण का काम जब पूरा हो गया तब हनुमान जी फिर से राज के सपने में आए और अपनी प्रतिमा को महामाया कुण्ड से निकालकर मंदिर में स्थापित करने का आदेश दिया। मायाकुंड से निकली मूर्ति हनुमान की थी लेकिन वो नारी रूप में हनुमान थे। 

इस मूर्ति की यह विशेषता है कि यह मूर्ति दक्षिणमुखी है। इस मूर्ति के बायें कंधे पर भगवान श्री राम और दायें पर शेषावतारी लक्ष्मण जी विराजमान हैं। हनुमान जी के पैरों के नीचे दो राक्षस हैं। 

कहा जाता है कि उस राजा ने जब उस प्रतिमा को महामाया कुण्ड से निकालकर मंदिर में स्थापित करवाया तो हनुमान जी की कृपा से राजा रोग मुक्त हो गया | तब से लेकर आज तक यहाँ हर मंगलवार भारी मात्रा में श्रद्धालु हनुमान जी के नारी रूप के दर्शन करने के लिए आते हैं|