पुदीने के यह गुण जानेंगे तो दूर नहीं रह सकेंगे

चटनी, सलाद व अन्य पेय पदार्थों में इस्तेमाल होने वाला पुदीना न सिर्फ टेस्टी और रिफ्रेशिंग होता है, बल्कि यह हेल्थ को भी कई तरीकों से संवारता है। आपको पता है पुदीना कई बिमारियों में रामबाण औषधि से कम नहीं है| तो आइये जाने इसकी खूबियों के बारे में-

आपको बता दें कि पुदीने का इस्तेमाल सलाद में सबसे स्वास्थ्यवर्द्धक है, प्रतिदिन इसकी पत्ती चबाई जाए तो दंत क्षय मसूढ़ों से रक्त निकलना पायरिया आदि रोग कम हो जाते हैं| यह एंटीसेप्टिक जैसा कार्य करता है और दांतों तथा मसूढ़ों को जरूरी पोषक तत्व पहुंचाता है|

इसके अलावा एक गिलास पानी में पुदीने की चार से पांच पत्तियां डालकर उबालें| फिर ठंडा होने के लिए फ्रिज में रख दें| इस पानी से कुल्ला करने पर मुंह की दुर्गध दूर हो जाती है क्योंकि पुदीना कीटाणुनाशक है| यदि घर के चारों तरफ पुदीने के तेल का छिड़काव कर दिया जाए तो मक्खी, मच्छर, चींटी आदि कीटाणु भाग जाते हैं|

मासिक धर्म समय पर न आने पर पुदीने की सूखी पत्तियों के चूर्ण को शहद के साथ समान मात्रा में मिलाकर दिन में दो-तीन बार नियमित रूप से सेवन करने पर लाभ मिलता है। इसके अलावा यदि महिलाओं को प्रसव के समय दिक्कते आ रही हैं तो पुदीने का रस पिलाने से प्रसव आसानी से हो जाता है।

हरा पुदीना पीसकर उसमें नींबू के रस की दो-तीन बूँद डालकर चेहरे पर लेप करें। कुछ देर लगा रहने दें। बाद में चेहरा ठंडे पानी से धो डालें। कुछ दिनों के प्रयोग से मुँहासे दूर हो जाएँगे तथा चेहरे की कांति खिल उठेगी। हरे पुदीने की 20-25 पत्तियाँ, मिश्री व सौंफ 10-10 ग्राम और कालीमिर्च 2-3 दाने इन सबको पीस लें और सूती, साफ कपड़े में रखकर निचोड़ लें। इस रस की एक चम्मच मात्रा लेकर एक कप कुनकुने पानी में डालकर पीने से हिचकी बंद हो जाती है।

एक टब में पानी भरकर उसमें कुछ बूंद पुदीने का तेल डालकर यदि उसमें पैर रखे जाएं तो थकान से राहत मिलती है और बिवाइयों के लिए बहुत लाभकारी है| पुदीने का ताजा रस क्षय रोग अस्थमा और विभिन्न प्रकार के श्वास रोगों में बहुत लाभकारी है|

पानी में नींबू का रस, पुदीना और काला नमक मिलाकर पीने से मलेरिया के बुखार में राहत मिलती है| इसके अलावा हकलाहट दूर करने के लिए पुदीने की पत्तियों में काली मिर्च पीस लें तथा सुबह शाम एक चम्मच सेवन करें| पुदीने की चाय में दो चुटकी नमक मिलाकर पीने से खांसी में लाभ मिलता है| हैजे में पुदीना, प्याज का रस, नींबू का रस समान मात्रा में मिलाकर पिलाने से लाभ होता है|

पुदीने का ताजा रस शहद के साथ सेवन करने से ज्वर दूर हो जाता है तथा न्यूमोनिया से होने वाले विकार भी नष्ट हो जाते हैं| पेट में अचानक दर्द उठता हो तो अदरक और पुदीने के रस में थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर सेवन करे| नकसीर आने पर प्याज और पुदीने का रस मिलाकर नाक में डाल देने से नकसीर के रोगियों को बहुत लाभ होता है|

एक चम्मच पुदीने का रस, दो चम्मच सिरका और एक चम्मच गाजर का रस एकसाथ मिलाकर पीने से श्वास संबंधी विकार दूर होते हैं। इतना ही नहीं अधिक गर्मी या उमस के मौसम में जी मिचलाए तो एक चम्मच सूखे पुदीने की पत्तियों का चूर्ण और आधी छोटी इलायची के चूर्ण को एक गिलास पानी में उबालकर पीने से लाभ होता है।

पुदीने को सूखाकर पीस लें। अब इसे कपड़े से छानकर बारीक पाउडर बनाकर एक शीशे में रख लें। सुबह-शाम एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। यह फेफड़ों में जमे हुए कफ के कारण होने वाली खांसी और दमा की समस्या को दूर करता है। बिच्छू या बर्रे के दंश स्थान पर पुदीने का अर्क लगाने से यह विष को खींच लेता है और दर्द को भी शांत करता है।

इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होता है। यह पेट के विकारों में काफी फायदेमंद होता है। पुदीना के कई फायदे हैं। एक गिलास पानी में 8-10 पुदीने की पत्तियां, थोड़ी-सी काली मिर्च और जरा सा काला नमक डालकर उबालें। 5-7 मिनट उबालने के बाद पानी को छान लें। फिर इसे पीने के बाद यह खांसी, जुकाम और बुखार से काफी राहत पहुंचाता है। यदि हाजमा खराब हो तो एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़ें, उसमें थोड़ा-सा काला नमक डालें और पुदीने की 8-10 पत्तियां पीसकर मिलाएं। अब पीड़ित व्यक्ति को इसे पिलाएं, तुरंत लाभ मिलेगा। 

मुंहासे दूर करने के लिए पुदीने की कुछ पत्तियां लेकर पीस लें। अब उसमें 2-3 बूंदे नींबू का रस डालकर इसे चेहरे पर कुछ देर के लिए लगाएं। फिर चेहरा ठंडे पानी से धो लें। कुछ दिन ऐसा करने से मुंहासे तो ठीक हो ही जाएंगे, चेहरे पर चमक भी आ जाएगी। पुदीने को सूखाकर पीस लें। अब इसे कपड़े से छानकर बारीक पाउडर बनाकर एक शीशे में रख लें। सुबह-शाम एक चम्मच चूर्ण पानी के साथ लें। यह फेफड़ों में जमे हुए कफ के कारण होने वाली खांसी और दमा की समस्या को दूर करता है। अगर नमक के पानी के साथ पुदीने के रस को मिलाकर कुल्ला करें तो गले की खराश और आवाज में भारीपन दूर हो जाते हैं। यही नहीं आवाज साफ हो जाती है और गले में काफी आराम मिलता है।

नाक बंद होने की स्थिति में ताजे पुदीने के पत्ते को सूंघना फायदेमंद रहेगा। खुजली या गले में खराश होने पर भी पुदीने का काढ़ा लिया जा सकता है। इसके लिए एक कप पानी में दस-बारह पुदीने के पत्ते डालकर आधा होने तक उबालें। पानी को छानकर एक चम्मच शहद के साथ पिएं। सिरदर्द में ताजी पत्तियों का लेप माथे पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।

कहाँ से आया यह पुदीना-

जब इतने सारे गुण पुदीना में विधमान हैं तो सवाल यह उठता है कि यह आया कहाँ से है? गहरे हरे रंग की पत्तियों वाले पुदीने की उत्पत्ति कुछ लोग योरप से मानते हैं तो कुछ का विश्वास है कि मेंथा का उद्भव भूमध्यसागरीय बेसिन में हुआ तथा वहाँ से यह प्राकृतिक तथा अन्य तरीकों से संसार के अन्य हिस्सों में फैला। लगभग तीस जातियों और पाँच सौ प्रजातियों वाला पुदीने का पौधा आज पुदीना, ब्राजील, पैरागुए, चीन, अर्जेन्टिना, जापान, थाईलैंड, अंगोला, तथा भारतवर्ष में उगाया जा रहा है। लेकिन इसकी विभिन्न जातियों में- पिपमिंट और स्पियरमिंट का प्रयोग ही अधिक होता है। 

भारतवर्ष में मुख्यतया तराई के क्षेत्रों (नैनीताल, बदायूँ, बिलासपुर, रामपुर, मुरादाबाद तथा बरेली) तथा गंगा यमुना दोआन (बाराबंकी, तथा लखनऊ तथा पंजाब के कुछ क्षेत्रों (लुधियाना तथा जलंधर) में उत्तरी-पश्चिमी भारत के क्षेत्रों में इसकी खेती की जा रही है। पूरे विश्व का सत्तर प्रतिशत स्पियर मिंट अकेले संयुक्त राज्य में उगाया जाता है।

....यहाँ गिरी थी देवी सती की नाभि!

हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। ये अत्यंत पावन तीर्थ कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है। हालांकि देवी भागवत में जहां 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का ज़िक्र मिलता है, वहीं तन्त्रचूडामणि में 52 शक्तिपीठ बताए गए हैं। देवी पुराण में ज़रूर 51 शक्तिपीठों की ही चर्चा की गई है। इन 51 शक्तिपीठों में से कुछ विदेश में भी हैं और पूजा-अर्चना द्वारा प्रतिष्ठित हैं। 

51 शक्तिपीठों के सन्दर्भ में जो कथा है वह यह है राजा प्रजापति दक्ष की पुत्री के रूप में माता जगदम्बिका ने जन्म लिया| एक बार राजा प्रजापति दक्ष एक समूह यज्ञ करवा रहे थे| इस यज्ञ में सभी देवताओं व ऋषि मुनियों को आमंत्रित किया गया था| जब राजा दक्ष आये तो सभी देवता उनके सम्मान में खड़े हो गए लेकिन भगवान शंकर बैठे रहे| यह देखकर राजा दक्ष क्रोधित हो गए| उसके बाद एक बार फिर से राजा दक्ष ने विशाल यज्ञ का आयोजन किया इसमें सभी देवताओं को बुलाया गया, लेकिन अपने दामाद व भगवान शिव को यज्ञ में शामिल होने के लिए निमंत्रण नहीं भेजा| जिससे भगवान शिव इस यज्ञ में शामिल नहीं हुए। 

नारद जी से सती को पता चला कि उनके पिता के यहां यज्ञ हो रहा है लेकिन उन्हें निमंत्रित नहीं किया गया है। इसे जानकर वे क्रोधित हो उठीं। नारद ने उन्हें सलाह दी कि पिता के यहां जाने के लिए बुलावे की ज़रूरत नहीं होती है। जब सती अपने पिता के घर जाने लगीं तब भगवान शिव ने मना कर दिया। लेकिन सती पिता द्वारा न बुलाए जाने पर और शंकरजी के रोकने पर भी जिद्द कर यज्ञ में शामिल होने चली गई। यज्ञ-स्थल पर सती ने अपने पिता दक्ष से शंकर जी को आमंत्रित न करने का कारण पूछा और पिता से उग्र विरोध प्रकट किया। इस पर दक्ष ने भगवान शंकर के विषय में सती के सामने ही अपमानजनक बातें करने लगे। इस अपमान से पीड़ित हुई सती को यह सब बर्दाश्त नहीं हुआ और वहीं यज्ञ-अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। 

भगवान शंकर को जब इस दुर्घटना का पता चला तो क्रोध से उनका तीसरा नेत्र खुल गया। सर्वत्र प्रलय-सा हाहाकार मच गया। भगवान शंकर के आदेश पर वीरभद्र ने दक्ष का सिर काट दिया और अन्य देवताओं को शिव निंदा सुनने की भी सज़ा दी और उनके गणों के उग्र कोप से भयभीत सारे देवता और ऋषिगण यज्ञस्थल से भाग गये। तब भगवान शिव ने सती के वियोग में यज्ञकुंड से सती के पार्थिव शरीर को निकाल कंधे पर उठा लिया और दुःखी हुए सम्पूर्ण भूमण्डल पर भ्रमण करने लगे। भगवती सती ने अन्तरिक्ष में शिव को दर्शन दिया और उनसे कहा कि जिस-जिस स्थान पर उनके शरीर के खण्ड विभक्त होकर गिरेंगे, वहाँ महाशक्तिपीठ का उदय होगा। 

सती का शव लेकर शिव पृथ्वी पर विचरण करते हुए तांडव नृत्य भी करने लगे, जिससे पृथ्वी पर प्रलय की स्थिति उत्पन्न होने लगी। पृथ्वी समेत तीनों लोकों को व्याकुल देखकर और देवों के अनुनय-विनय पर भगवान विष्णु सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड कर धरती पर गिराते गए। जब-जब शिव नृत्य मुद्रा में पैर पटकते, विष्णु अपने चक्र से शरीर का कोई अंग काटकर उसके टुकड़े पृथ्वी पर गिरा देते। इस प्रकार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आया। इस तरह कुल 51 स्थानों में माता की शक्तिपीठों का निर्माण हुआ। माना जाता जाता है शक्तिपीठ में देवी सदैव विराजमान रहती हैं। जो भी इन स्थानों पर मॉ की पूजा अर्चना करता है उसकी मनोकामना पूरी होती है। ऐसा ही एक शक्तिपीठ कनखल यानी वर्तमान हरिद्वार में स्थित है।

कनखल देवी सती की जन्मस्थली है और यहीं इन्होंने यज्ञ कुण्ड में आत्मदाह भी किया था। मान्यता है कि यहां पर देवी सती की नाभि गिरी थी। नाभि शरीर का मध्य भाग होता है, अत: धारणा है कि इस स्थल पर भूमिगत ऊर्जा मौजद है। जो भी भक्त यहां माता के दर्शनों के लिए आता है उसे मां की उर्जा की अनुभूति पहली बार में ही प्राप्त हो जाती है। जहां जहां भी शक्तिपीठ है भगवान शिव ने इसकी रक्षा के लिए अपने एक भैरव को नियुक्त किया है। भगवती के इस स्वरूप की रक्षा भगवान आनंद भैरव करते हैं। नवरात्रों में शक्तिपीठ मायादेवी पर श्रद्धालुओं का तांता लग रहता है। माया देवी शक्तिपीठ की एक विशेषता यह भी है कि, मनसा देवी और चंडी देवी को मिलाकर यह एक अद्भुत त्रिभुज का निर्माण करती है। मान्यता है इस अद्भुत त्रिभुज का दिव्य लाभ भी यहां आने वाले भक्तों को प्राप्त होता है।

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गुणों की खान है नीम

नीम स्वाद में जितनी कड़वी होती है गुणों में उतनी ही मीठी होती है| नीम का वृक्ष आसपास की हवा को तो साफ करता ही है, इसके पत्ते से लेकर टहनियां तक अपनी अलग-अलग खूबियों के कारण औषधि के रूप में खूब लोकप्रिय हैं। आयुर्वेद में नीम की बड़ी महिमा बताई गई है। इस वृक्ष के ढेरों औषधीय गुण हैं। पौराणिक काल से ही नीम का उपयोग कई बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता रहा है। आज भी बहुत सी ऐसी दवाइयां हैं जिनमें नीम के पत्तों का रस, नीम के पेड़ के दूसरों हिस्सों का इस्तेमाल होता है। नीम के पेड़ की छांव की तो बात ही कुछ और है क्योंकि यह उन वृक्षों में शुमार होता है जो सबसे ज्यादा वातावरण में ऑक्सीजन प्रदान करता है।

नीम के यूं तो ढेरों लाभ है। नीम की पत्तियों का लेप हर प्रकार के चर्म रोग को दूर करता है। नीम की पत्तियों को पीस कर उसे चेहरे पर लेप करने से फुंसियां और मुहांसे मिट जाते हैं। नीम की पत्तियों को पानी में उबाल कर तथा ठंडा करके उस पानी से मुंह धोने से मुहांसे दूर होते हैं। नीम का दातून करने से दांत चमकदार और मसूढ़े स्वस्थ होते हैं। नीम की पत्तियों का रस पीने से खून साफ होता है होता है और चेहरे की कांति बढ़ती है। दो भाग नीम की पत्तियों का रस और एक भाग शहद मिलाकर पीने से पीलिया रोग में काफी फायदा होता है। नीम की सूखी पत्तियों को जलाने से उत्पन्न धुएँ से मच्छर भाग जाते हैं।

नीम की पत्तियों को बारीक पीसकर इनका रस निकालकर एक गिलास हफ्ते में दो दिन पीने से पेट की बीमारियां नहीं होंगी। नीम के हरे पत्ते एवं काली मिर्च को लगभग दस दिनों तक फांकने से जुकाम व कफ दूर हो जाता है। दमा के रोगियों के लिए भी नीम बहुत लाभकारी होता है। नीम के पेड़ के तने से निकलने वाले रस को पीने से दमा ठीक हो जाता है। नीम की पत्तियों का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरे का सौन्दर्य बढ़ता है।

नीम कीड़ों को मारता है। इसलिए इसकी पत्तों को कपड़ों व अनाज में रखा जाता है। नीम की 10 पत्ते रोज खाने से रक्तदोष खत्म हो जाता है। नीम के पंचांग, जड़, छाल, टहनियां, फूल पत्ते और निंबोली बेहद उपयोगी हैं। इसलिए पुराणों में इसे अमृत के समान माना गया है। नीम आंख, कान, गला और चेहरे के लिए उपयोगी है। आंखों में मोतियाबिंद और रतौंधी हो जाने पर नीम के तेल को सलाई से आंखों में डालने से काफी लाभ होता है।

दस्त हो रहे हों तो नीम का काढा बनाकर लें। (नीम के किसी भी प्रयोग को करने से पहले चिकित्सक परामर्श अवश्य लें। नीम के पत्ते को पीसकर अगर दाईं आंख में सूजन है तो बाएं पैर के अंगूठे पर लेप लगाएं। सूजन अगर बनाईं आंख में हो तो दाएं अंगूठे पर लेप करें। आंखों की लाली और सूजन ठीक हो जाती है। कान में दर्द या फोड़ा फुंसी हो गई हो तो नीम या निंबोली को पीसकर उसका रस कानों में टपकाए।

अगर कान से पीप आ रहा है तो नीम के तेल में शहद मिलाकर कान साफ करें, पीप आना बंद हो जाएगा। सर्दी जुकाम हो गया हो तो नीम की पत्तियां शहद मिलाकर चाटें। खराश तुरंत ठीक हो जाएगी।ह्रदय रोगों में भी नीम लाभदायक है। ह्रदय रोगी नीम के तेल का सेवन करें तो काफी फायदा होगा।

अगर आप अक्सर संक्रमण की चपेट में आ जाते हैं तो नीम की कोंपलों को एक माह तक चबाना चाहिए। इस तु में पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नये आते हैं, जो हल्के लाल रंग के होते हैं। यही कोंपल कहलाते हैं। इनकी दो-तीन पत्तियां ले लें और धोकर चबा जाएं। अधिक ज्यादा कड़बी महसूस करें तो अगले दिन से थोड़ी अजवाइन के साथ चबाएं। इससे पूरे साल संक्रमण की बीमारियों से सुरक्षित रहेंगे। इतना ही नहीं, इससे आपके ऊपर जहरीले कीड़े, सांप, बिच्छू के काटने पर भी उतना असर नहीं होगा।

पेट का ही नहीं खूबसूरती का भी ख़याल रखता है पपीता

पपीता को गुणों की खान कहा गया है। यह आपके पेट का भी ख़याल रखता है और त्वचा की खूबसूरती का भी। यह कई बीमारियों से दूर रखता है जैसे कि पका पपीता पाचन शक्ति को बढ़ाता है, भूख को बढ़ाता, पथरी को गलाता है और मोटापे को दूर करता है। इतना ही नहीं पपीता आपके लिए और भी फायदेमंद है तो आइए जाने पपीता हमारे लिए कितना फायदेमंद हो सकता है| 

पपीते को पेट के लिए तो वरदान माना गया है। इसमें पेप्सिन नामक तत्व पाया जाता है, जो भोजन को पचाने में मदद करता है। पपीता का सेवन रोज करने से पाचन शक्ति में वृद्धि होती है। पका पपीता पाचन शक्ति को बढ़ाता है, भूख को बढ़ाता है, मोटापे को नियंत्रित करता है और अगर आपको खट्टी डकारें आती हैं तो पपीते का रस उसे भी बंद कर देगा। पके या कच्चे पपीते की सब्जी बना कर खाना पेट के लिए लाभकारी होता है।

पपीते में बड़ी मात्रा में विटामिन-ए होता है। इसलिए यह आंखों और त्वचा के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। इससे आंखों की रोशनी तो अच्छी होती ही है, त्वचा भी स्वस्थ, स्वच्छ और चमकदार रहती है।पपीते में कैल्शियम भी खूब मिलता है। इसलिए यह हड्डियां मजबूत बनाता है। यह प्रोटीन को पचाने में सहायक होता है। पपीता फाइबर का अच्छा स्रोत है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, कैंसर रोधी और हीलिंग प्रॉपर्टीज भी होती है। जिन लोगों को बार-बार सर्दी-खांसी होती रहती है, उनके लिए पपीते का नियमित सेवन काफी लाभकारी होता है। इससे इम्यून सिस्टम मज़बूत होता है।

पपीते का रस अरुचि, अनिद्रा, सिरदर्द, कब्ज व आंव-दस्त आदि रोगों को ठीक करता है। आपको भूख नहीं लगती या पेशाब ठीक से नहीं होता तो सुबह में नियमित रूप से पके पपीते का सेवन करें। इससे भूख भी लगने लगेगी और पेशाब से संबंधित समस्या भी दूर हो जाएगी। पपीते के रस के सेवन से खट्टी डकारें बंद हो जाती है। यह हृदय रोग, आंतों की कमजोरी आदि को भी दूर करता है। पपीते के पत्तों के उपयोग से उच्च रक्तचाप में लाभ होता है और हृदय की धड़कन ठीक रहती है। यह पौरुष को बढ़ाता है, पागलपन को दूर करता है एवं वात दोषों को नष्ट करता है। पपीते का निरंतर सेवन जख्म भी जल्द भरने में मदद करता है।

पपीते में एंटी कैंसर के गुण पाये जाते हैं| इसमें मौजूद विटामिन सी, बीटा कैरोटीन और विटामिन ई शरीर में कैंसर सेल बनने से रोकते हैं| इसलिए रोज पपीता खाना चाहिए| समय से पहले बूढा होना भला कौन चाहेगा. पपीता इसे रोकता है| इस फल को खाने से हमारा शरीर भोजन से सारे पोषण आराम से ग्रहण कर लेता है, जिससे उसकी जरूरत पूरी हो जाती है| अब अगर शरीर में सारे जरूरी पोषण जाएंगे तो वह सालों साल जवान बना रहेगा|

कच्चे पपीते का दूध त्वचा रोग के लिए काफी फायदेमंद साबित होता है। पपीते का प्रयोग लोग फेस पैक में भी करते हैं। त्वचा को ठंडक पहुंचाने वाला पपीता आंखों के नीचे के काले घेरे को दूर करता है। अगर आप कील-मुंहासों से परेशान हैं तो कच्चे पपीते के गूदे को शहद में मिलाकर चेहरे पर लगाएं और जब वह सूख जाए तो गुनगुने पानी से चेहरा धो लें। उसके बाद मूंगफली के तेल से हल्के हाथ से चेहरे पर मालिश करें। एक महीने तक नियमित रूप से ऐसा करने से आपको काफी लाभ होगा। पपीता कफ के साथ आने वाले खून को रोकता है और खूनी बवासीर को भी ठीक करता है। हृदय रोगियों के लिए भी पपीता काफी लाभदाक होता है।

पेशाब में जलन की शिकायत है तो कच्चे पपीते की सब्जी या रायता बनाकर खाएं। बवासीर के रोगियों को प्रतिदिन एक पका पपीता खाते रहना चाहिए। बवासीर के मस्सों पर कच्चे पपीते के दूध को लगाने से काफी फायदा होता है। पैरों में छाले होने पर कच्चे पपीते का रस लगाया जाए तो वे शीघ्र ठीक हो जाते हैं। पपीता यकृत तथा लिवर को मजबूती देता है। पीलिया के रोगी को प्रतिदिन एक पका पपीता अवश्य खाना चाहिए। रात्रि भोजन के बाद पपीते का सेवन नियमित रूप से करते रहें। इससे सुबह पेट साफ होता है तथा कब्ज दूर हो जाता है।

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जहां लड़कियां पहनती हैं जनेऊ

बिहार के एक गांव में पिछले चार दशकों से एक परंपरा का निर्वाह हो रहा है। यहां लड़कियां जनेऊ धारण करती हैं। आम तौर पर ब्राह्मण समुदाय या अन्य समुदायों में भी यह पवित्र धागा सिर्फ पुरुषों के लिए 'आरक्षित' रहा है। गांव में एक समारोह के बाद सुमन कुमारी, प्रियंका कुमारी, प्रतिमा कुमारी, कुंती कुमारी के बीच एक ही समानता दिखती है और वह यह है कि ये सभी जनेऊ पहनती हैं।

परंपरावादी और अर्ध सामंती बिहार के गांव में ऐसा होना एक विरल मामला है। हरिनारायण आर्य ने इस संबंध में बताया, "मणियां गांव के दयानंद आर्य उच्च विद्यालय में आयोजित यज्ञोपवीत संस्कार में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ नौ लड़कियों को जनेऊ पहनाया गया।" आचार्य सिद्धेश्वर शर्मा के मुताबिक, ऐसी लड़कियों की उम्र 13 और 15 वर्ष के बीच है। शर्मा ने ही यज्ञोपवीत संस्कार कराया।

उन्होंने कहा, "इस गांव में लड़कियों के जनेऊ पहनने के लिए कोई जातिगत आधार नहीं है।" शर्मा ने बताया कि पिछले 40 वर्षो से गांव में इस परंपरा का निर्वाह हो रहा है। उन्होंने कहा, "हम हर वर्ष बसंत पंचमी के मौके पर लड़कियों का यज्ञोपवीत संस्कार कराते हैं।"

मणियां गांव में यह परंपरा 1972 में विश्वनाथ सिंह ने शुरू की। उन्होंने उस समय लड़कियों के लिए हाई स्कूल स्थापित किया और अपने चार बेटियों को स्कूल भेजा। उस समय बेटियों की शिक्षा के प्रति कोई जागरूकता नहीं थी, लेकिन सिंह की बेटियों के स्कूल जाने के बाद दूसरे लोगों को भी प्रोत्साहन मिला। सिंह ने इसके बाद अपनी बड़ी बेटी के लिए यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया। इसके बाद यह गांव में परंपरा के रूप में स्वीकृत हो गई।

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अरविंद केजरीवाल: परिवर्तनकर्मी या सिर्फ एक बुलबुला?

यदि आप दिल्ली में किसी फेरीवाले या फुटपाथ पर चाय दुकान चलाने वाले से बात करें तो आप तुरंत ही महसूस करेंगे कि सड़क पर खड़ा 'आम आदमी' खुद को आम आदमी पार्टी (आप) के साथ जुड़ा हुआ पाता है और मुख्यमंत्री एवं उनके साथी मंत्रियों के विपरीत व्यवहार के कारण आलोचनाओं से घिरे होने के बावजूद अरविंद केजरीवाल और उनकी नई नवेली पार्टी के जनाधार में कोई कमी नहीं आई है। सच तो यह है कि उनका दायरा बढ़ता जा रहा है। यह विस्तार दिल्ली से बाहर पूरे देश में हुआ है और एक महीने से भी कम समय में पार्टी के सदस्यों की संख्या एक करोड़ के पार पहुंच चुकी है। 

बुद्धिजीवियों और मध्यम वर्ग के एक हिस्से की नजरों में केजरीवाल का तेज संभवत: कमजोर पड़ गया है, लेकिन वह और 'हम दुनिया बदलेंगे' के उत्साह से लबरेज उनके उग्र सुधारवादी सामाजिक कार्यकर्ता याकि राजनीतिक कार्यकर्ता देश के विशाल शहरही हिस्सों में हाशिए पर जी रहे दबे-कुचले भारतीयों के लिए लगातार आशा की आवाज बनते जा रहे हैं। 

एक टैक्सी ड्राइवर ने बताया कि किस तरह केजरीवाल के गैरपारंपरिक भ्रष्टाचार विरोधी हथियार ने परिणाम दिखाने शुरू कर दिए हैं। पुलिसकर्मी मोबाइल स्टिंग में पकड़े जाने के डर से रिश्वत लेने से इनकार कर रहे हैं और प्रदेश के परिवहन प्राधिकरणों के दलाल गायब हो गए हैं। वर्षो तक ये दलाल ड्राइविंग एवं अन्य ऑटोमोबाइल लाइसेंस दिलाने में बाबुओं के लिए सुविधा के जरिया बने रहे। केजरीवाल का तरीका शासन की किसी भी नियमावली में शामिल नहीं हो सकता है, लेकिन इनमें से कुछ अपना काम करते दिख रहे हैं, हालांकि जैसा कि केजरीवाल खुद भी कहते हैं कि उनके पास ऐसा कोई प्रायोगिक आंकड़ा या जरिया नहीं है जिसके आधार पर वह साबित कर सकें कि भ्रष्टाचार कम हो गया है।

जो लोग सदा से पुलिस की लाठी या बाबुओं से परेशान रहते आए हैं, वे केजरीवाल को अपनी मुसीबतों के तारणहार के रूप में पा रहे हैं। ऐसे लोग उनके पक्ष में मुखर होकर बोल रहे हैं। ऐसे लोगों में ऑटो रिक्शाचालक, सड़कों पर फेरी लगाने वाले, कार्यालयों के दफ्तरी और अन्य अकुशल मजदूर व सेवा क्षेत्र से जुड़े लोग जो उतार-चढ़ाव वाली अर्थव्यवस्था में पिस रहे हैं। ऐसे लोगों की मेहनत का फल सुविधाभोगी और ताकतवर तबका उड़ा लेता है और यह बड़ा समुदाय एक शोषक और बेदर्द तंत्र की दया पर आश्रित रह जाता है। और वह तंत्र भी इनसे वोट पाने के बाद शायद ही कभी उनकी आवाज को सुनता है या फिर उन्हें नागरिक या संवैधानिक अधिकार मुहैया कराने की जहमत उठाता है।

और इसी क्षेत्र में केजरीवाल चालाकी से सेंध लगाते हैं, अपने कुछ लुभावने वादे पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं और अपने राजनीतिक कद के साथ ही बौद्धिक आत्मविश्वास जुटाते हैं। अपने इसी क्षेत्र के दम पर केजरीवाल अपने राजनीतिक आधार का विस्तार करने की योजना बनाते हैं और झटके से राष्ट्रीय मंच पर अवतरित हो जाते हैं। वह महसूस करते हैं कि यदि वह देश के विधायी एजेंडे को प्रभावित करने में सक्षम नहीं होंगे तो उनका प्रयास व्यर्थ चला जाएगा। तब यह सवाल स्वाभाविक ही उठ खड़ा होता है कि क्या केजरीवाल और उनकी आप टिकाऊ होगी? या फिर वे सिर्फ एक चमक भर हैं जो अपने ही अंतर्विरोधों और अपेक्षाओं के बोझ तले दफन हो जाएगा?

इस तरह के अपारंपरिक आंदोलनों का क्या भविष्य होता है इसके ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं। ऐसे आंदोलन एक मुद्दे को लेकर पनपे, लेकिन उनमें वैचारिक दिशानिर्देश का अभाव रहा। 'पौजाडिज्मे' नामक ऐसा ही एक आंदोलन 1950 के दशक में फ्रांस में पनपा था। इस आंदोलन का यह नाम इसके अगुआ पीयरे पौजाडे के नाम पर दिया गया। पौजाडे ने तब जानलेवा करों के खिलाफ स्थानीय दुकानदारों को गोलबंद कर हड़ताल कराई थी। ठीक वैसा ही काम केजरीवाल बिजली बिलों के खिलाफ कराते हैं और सरकारी राजस्व वसूली के निरीक्षण की बात करते हैं।

पौजाडे ने दक्षिणी फ्रांस के अन्य कस्बों तक अपनी गतिविधि का विस्तार किया और बड़ी तेजी के साथ खास तौर से कामगार और गरीब तबके में अपनी पैठ बना ली। उसने अपनी यूनियन डे डिफेंस डेस कामर्सकैंट्स एट आस्ट्रियन्स (यूनियन फॉर दी डिफेंस ऑफ ट्रेड्समैन एंड आस्ट्रियन्स) में 800,000 सदस्य जुटा लिए थे। उसके समर्थकों में असंतुष्ट रैयत और छोटे कारोबारियों का बोलबाला था। पौजाडिज्मे का मुख्य जोर कुलीन तबके के बर-अक्स आम आदमी के अधिकारों की रक्षा करने पर था। सच पूछा जाए तो यह फ्रांस की आम आदमी पार्टी थी, जिसने फ्रांस के संघर्षशील तबके को वहां के बुर्जुआजी तबके के सामने ला खड़ा कर दिया था।

जिस तरह केजरीवाल समाज-सुधारक से नेता बनने के पहले नौकरशाह थे, उसी तरह पौजाडे भी नेता बनने से पहले सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े रहे थे। पौजाडे ने फ्रांस की सेना के अलावा ब्रिटेन की शाही वायुसेना में नौकरी की थी और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भाग भी खड़े हुए थे। आयकर और मूल्य वृद्धि के खिलाफ आंदोलन के अतिरिक्त पौजाडिज्मे औद्योगीकरण, शहरीकरण और अमेरिकी तौर तरीके वाले आधुनिकीकरण (वैसे ही केजरीवाल भी वालमार्ट सरीखे विदेशी निवेश का विरोध करते हैं) के खिलाफ था, उस आधुनिकीकरण के जो ग्रामीण फ्रांस की पहचान के लिए एक खतरा था। लेकिन पौजाडिज्मे वैचारिक आधार के अभाव में ढह गया। सवाल यह उठता है कि वैचारिक आधार के अभाव में क्या केजरीवाल भी पीयरे पौजाडे तो साबित नहीं होंगे?

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अखिलेश सरकार के चहेते अफसर ही रास्ते के रोड़ा

समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव के कई विश्वास पात्र अफसर ही अखिलेश यादव सरकार के लिए अड़ंगेबाज साबित हो रहे हैं। 20 माह के कार्यकाल में इन अफसरों की वजह से अखिलेश सरकार की खूब किरकिरी हुई है। इन अफसरों को विकास के कार्यो में बाधक भी माना जा रहा है। 2012 में सत्ता में आने के बाद अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री सचिवालय के साथ-साथ सिंचाई, गृह, वित्त, लोक निर्माण, परिवहन, आबकारी, पंचायती सहित लगभग सभी विभागों में पूर्ववर्ती मायावती सरकार द्वारा तैनात सैकड़ों आईएएस अफसरों को हटाकर नए अधिकारी तैनात किए थे।

मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेक(कानून व्यवस्था) और प्रमुख सचिव गृह जैसे महत्वपूर्ण पदों पर नए चेहरों को नियुक्त किया गया, लेकिन ये अफसर अपनी कार्यक्षमता और कुशलता से जनता को उसरकार के प्रति अच्छा एहसास नहीं करा सके। उल्टा इन अधिकारियों द्वारा कई बार ऐसे संवेदनहीन बयान दिए गए जिनसे सरकार की जमकर किरकिरी हुई।

राजनीतिक चिंतक एच़ एऩ दीक्षित का कहना है कि उत्तर प्रदेश के पूर्व के कुछ मुख्यमंत्रियों की तरह मुख्यमंत्री अखिलेश ने भी सत्ता संभालने के बाद प्रमुख विभागों में अपने चहेते अफसरों को बैठाया। अब वही चहेते अफसर विफल साबित हो रहे हैं। दीक्षित ने कहा कि हर मुख्यमंत्री को अफसरों की तैनाती उनकी योग्यता और कार्यकुशलता के आधार पर करनी चाहिए। योग्य अफसर ही बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।

प्रमुख सचिव अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास के रूप में करीब एक साल तक तैनात रहे अनिल कुमार गुप्ता के लगभग असफल साबित होने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश ने उन्हें हटाकर सूर्य प्रताप सिंह को तैनात किया पर वो विभाग को पटरी पर लाने में असफल रहे। अनिल कुमार गुप्ता हालांकि फिर से प्रमुख सचिव (गृह) जैसा महत्वपूर्ण पद पाने में सफल रहे लेकिन मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों में ठंड से मौतों पर दिए असंवेदनहीन बयान से उनकी हर तरफ जमकर किरकिरी हुई।

राज्य की बदहाल बिजली व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश ने बड़े भरोसे के साथ संजय अग्रवाल को प्रमुख सचिव ऊर्जा का प्रभार दिया। लगभग एक साल का समय बीतने को है लेकिन वह कोई करिश्मा नहीं दिखा सके। सूबे की सबसे अधिक ताकतवर अफसर मानी जाने वाली प्रमुख सचिव (मुख्यमंत्री) अनीता सिंह की कार्यप्रणाली को लेकर मंत्रियों, विधायकों व कुछ अफसरों ने कई बार सवाल खड़े किए। उनका पंचमतल व जिलों में जिलाधिकारियों की तैनाती को लेकर विरोध भी हुआ लेकिन विरोधी परास्त हुए।

सात वर्ष से एक ही विभाग में जमे प्रमुख सचिव गन्ना विकास एवं चीनी उद्योग राहुल भटनागर की अदूरदर्शी नीतियों के चलते गन्ने के मुद्दे पर सरकार की जमकर किरकिरी हुई है। पीसीएस से आईएएस बने एस़ पी़ सिंह की नगर विकास विभाग में तूती बोलती है। कई प्रमुख सचिवों ने नगर विकास विभाग से अपना तबादला इसलिए करवा लिया क्योंकि उनके अधीनस्थ एस़ पी़ सिंह अधिक प्रभावशाली साबित हो रहे थे।

पंचायती राज विभाग के कई प्रमुख सचिव बदल चुके लेकिन आज तक राज्य सरकार की गरीबों को कंबल और साड़ी बांटने की योजना को अमली जामा नहीं पहनाया जा सका। यही हाल प्रमुख सचिव सिंचाई दीपक सिंघल और प्रमुख सचिव लोक निर्माण विभाग रजनीश दुबे का है। इनके विभाग की वजह से अधिकतर विकास कार्य ठप पड़े हैं।

एक आईएएस अफसर ने नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "यह प्रदेश का बड़ा दुर्भाग्य है कि राजनीतिक दल अब आईएएस अफसरों को उनकी काबिलियत के बजाय राजनीति और जातीयता के चश्मे से देखने लगे हैं। इस प्रवृत्ति के कारण नाकाबिल अफसरों की महत्वपूर्ण पदों पर तैनाती हो जाती है जिससे सूबे का विकास कार्य प्रभावित होता है। सत्ता परिवर्तन के बाद ऐसे अफसरों को महत्वहीन पदों पर फेंक दिया जाता है।"

कहा जा रहा है कि राज्य के महत्वपूर्ण विभागों में तैनात कई आईएएस अफसर आचार संहिता लागू होने का इंतजार कर रहे हैं ताकि आने वाले कुछ माह सुकून ले गुजर सकें। मुख्य सचिव जावेद उस्मानी की छवि ईमानदार है। विकास कार्यो की समीक्षा बैठकें बुलाने से कई विभागों के प्रमुख सचिव उनसे असहज महसूस करते हैं। कुछ जानकारों का कहना है कि चहेते अफसरों में कुछ बेहतर काम कर सकते हैं लेकिन सरकार ने उन्हें काम करने की पूरी आजादी नहीं दी।

राजनीतिक विश्लेषक रमेश दीक्षित ने कहा कि वर्तमान सरकार ने अपनी पसंद के अफसर तो तैनात किए लेकिन उन्हें पूरी कार्य स्वतंत्रता नहीं दी। सरकार के अलग-अलग शक्ति केंद्र समय-समय पर निर्देश देकर अधिकारियों को अपने मुताबिक काम करवाने के लिए बाध्य करते रहे।

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'हंसी तो फंसी' मुस्कुराने को मजबूर कर देगी

एक्टर: परिणिति चोपड़ा, सिद्धार्थ मल्होत्रा, अदा शर्मा, मनोज जोशी, शरत सक्सेना
म्यूजिक: विशाल शेखर
लिरिसिस्ट: अमिताभ भट्टाचार्य, कुमार
डायरेक्टर: विनिल मैथ्यू
ड्यूरेशन: 141 मिनट

'हंसी तो फंसी' एकदम रोमांटिक फिल्म है। परिणीति-सिद्धार्थ की मज़ेदार एक्टिंग और निर्देशक विनिल मैथ्यू के सधे हुए निर्देशन से बहुत समय बाद एक अच्छी रोमांटिक कॉमेडी सामने आई है। इस फ़िल्म में वह सब कुछ है, जिसकी चाह लिए दर्शक थिएटर में जाते हैं। अच्छे स्मूद घुमाव लिए कहानी, जबरदस्त एक्टिंग, जबरजस्त कॉमेडी, लाजवाब डायलॉग्स। यह फ़िल्म हर वर्ग के लिए है। इस फ़िल्म में जिंदगी का एक मजेदार अनुभव देखने को मिलेगा जिसे प्यार और शादी कहते हैं। फिल्म की कहानी में काफ़ी नयापन है। जो दर्शकों की बड़ी क्लास को कहानी और किरदारों के साथ बांधकर रखने का दम रखती है। 

निखिल बचपन से ही खुरापाती है। उसके पापा आईपीएस हैं और बड़ा भाई आईएएस। निखिल और करिश्मा (अदा शर्मा) के बीच पिछले सात सालों से अफेयर है। इन दोनों के इस अफेयर को करिश्मा के पापा (मनोज देसाई) और निखिल के पापा (शरत सक्सेना) से ग्रीन सिग्नल मिल चुका है। पिछले सात सालों के इस अफेयर में निखिल और करिश्मा के बीच ना जाने कितनी बार ब्रेकअप हुआ लेकिन रिश्तों को हमेशा निभाने के अपने स्वभाव के चलते हमेशा करिश्मा की बात आगे रखी। अगले सात दिनों में इन दोनों की शादी होने वाली है। करिश्मा ने शादी से पहले पांच करोड़ रूपये कमाने की अपनी अनोखी शर्त रखी जिसे निखिल मान लेता है। दरअसल, अमीर खानदान की करिश्मा शादी के बाद निखिल के साथ बाकी बची पूरी लाइफ आराम से एंजॉय करना चाहती थी और निखिल अपनी दुनिया में रहने वाला युवक है जो अपनी शर्तो पर काम करता है। 

शादी से पहले इन दोनों के घर नजदीकी रिश्तेदार आ चुके है। दोनों फैमिली में शादी से पहले के फंक्शन भी स्टार्ट हो चुके है। इसी बीच अचानक एक दिन चीन से करिश्मा की बहन मीता (परिणीती चोपड़ा) जब अपने घर पहुंचती है तो कोहराम मच जाता है। दरअसल, मीता सात साल पहले अपने घर से मोटी रकम चोरी करके भाग गई थी और अब अपनी बहन की शादी से ठीक सात दिन पहले उसका अचानक चले आना किसी की समझ से परे है। मीता अपने घर में आ नहीं सकती, चीन में रहने के दौरान मीता कुछ ऐसी ऐसी दवाएं लेने की आदी हो चुकी है जिन्हें लिए बिना वह कुछ कर नहीं पाती। ऐसे में करिश्मा निखिल को मीता के कहीं रहने का इंतजाम करने के लिए कहती है।इसके बाद फिर 'निखिल' और 'मीता' की मुलाकात क्या 'टर्न और ट्विस्ट' लाती है। इसके लिए आपको पड़ेगा। पंजाबी और गुजराती कल्चर काफी मजेदार है। इस वीकएंड पर ठीकठाक टाइम पास करने के लिए 'हंसी तो फंसी' बुरा ऑप्शन नहीं है। 

परिणीति चोपड़ा खूबसूरती के साथ अपना किरदार निभाया है और सिद्धार्थ मल्होत्रा व अदा शर्मा ने भी अपने-अपने किरदारों के साथ न्याय किया है। यहां मनोज जोशी का ज़िक्र करना बेहद ज़रूरी है, जिन्होंने परिणीति के पिता के किरदार में हैं। उन्होंने बेहतरीन परफॉरमेन्स दी है। शरत सक्सेना और बाकी छोटे-छोटे किरदार भी असर छोड़ने में कामयाब रहे हैं । निर्देशक विनिथ मैथ्यू ने फिल्म की रफ्तार कहीं भी कम नहीं होने दी। फिल्म की कहानी एक दम फ्रेश है। अनुराग कश्यप के डायलॉग्स में काफी लुभावने हैं। संगीत की बात करें तो गाना 'ड्रामा क्वीन...' अच्छा है। हंसी तो फंसी' में सिचुएशनल कॉमेडी है, जो वक्त-वक्त पर आपको मुस्कुराने पर मजबूर करेगी,तो कुल मिलाकर इसने मुझे एंटरटेन तो किया।

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उप्र में जातिवाद की राजनीति शुरू

वर्ष 2014 में होने वाले आम चुनाव से ठीक पहले उप्र में जातिवाद की राजनीति ने रंग दिखाना शुरू कर दिया है। सूबे की समाजवादी पार्टी (सपा) हो या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सभी अपने-अपने तरीके से जातियों को साधने में जुट गई हैं। भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी भी पिछड़े तबके से आते हैं और भाजपा उनके पिछड़े तबके का होने का राग बराबर अलाप रही है। भाजपा की ओर से बनाया गया सामाजिक न्याय मोर्चा भी विभिन्न जातियों को साधने में जुटा हुआ है। 

भाजपा ने भी चुनाव आते ही पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह के समय में बनाई सामाजिक न्याय समिति की संस्तुतियों की दुहाई देनी शुरू कर दी है। सिंह ने मुख्यमंत्री रहते हुए यह समिति बनाई थी, जिसमें आरक्षण लाभ का प्रतिशत तय किया गया था। पार्टी अब इसी समिति की संस्तुतियों को लेकर मैदान में उतर गई है। 

इधर, अमित शाह उत्तर प्रदेश के प्रभारी के रूप में यहां जातीय समीकरणों की थाह लेने में जुटे हुए हैं। सपा की तरफ से भी कई जातियों को आरक्षण दिए जाने की बात कही जा रही है। सपा पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए यात्रा भी निकाल चुकी है। जातिवादी राजनीति और विकास के मुददों के बीच प्रख्यात सामाजिक विश्लेषक प्रो. सत्यमित्र दूबे कहते हैं कि सामाजिक न्याय और विकास एक-दूसरे के पूरक हैं। पिछड़ी जातियों को जब तक सामाजिक न्याय हासिल नहीं होगा तब तक उनका विकास कैसे होगा। 

दूबे ने कहा, "हमें नहीं लगता कि लोगों को विकास और जातिवादी राजनीति के बीच फंसना चाहिए। हां, यह जरूर है कि पिछड़ों को लुभाने के प्रयास चुनाव के दौरान ही क्यों किए जाते हैं लेकिन इसका जवाब तो नेता ही देंगे।" बहरहाल, लोकसभा चुनाव 2014 को लेकर एक बार फिर जाति की सियासत तेज होती दिख रही है। 

प्रसिद्ध राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार सुभाष राय ने कहा कि राजनीति में जातिवाद का असर तो है ही और यह इतनी जल्दी समाप्त भी नहीं होगा। उन्होंने कहा, "जातिवाद की राजनीति पहले से कम तो हुई है लेकिन अभी यह हावी रहेगी। आने वाले समय में इसका असर जरूर कम होगा। उप्र में जो भी घोषणाएं हो रही हैं, वह सारी लोकलुभावन हैं। इससे विकास का कोई लेना देना ही नहीं है।"

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पत्नियों की प्रताड़ना के चलते पति बन रहे हैं संन्यासी!

महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करने के लिए बनाए गए कड़े कानूनों से उल्टे पुरुषों के प्रताड़ित होने के कई ऐसे मामले सामने आए हैं, जिनमें ये कानून पतियों के लिए ही मुसीबत का सबब बन गए। कुछ मामलों में तो आलम यह है कि पत्नियों द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद पतियों ने संन्यास ही ले लिया। मध्य प्रदेश के जबलपुर में इस तरह के कई मामले सामने आए हैं। 

मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में पत्नियों द्वारा दर्ज कराई गई शिकायतों के बाद बीते पांच वर्ष में 4,500 पति ऐसे फरार हुए कि अब तक उनका पता ही नहीं चल सका तथा उनमें से कई तो संन्यासी ही बन गए। पत्नियों द्वारा कानून की चाबुक चलाए जाने के बाद संन्यासी बने ऐसे ही कई पति नर्मदा तट पर पूजा अर्चना व मंदिरों मे अपनी सेवाएं दे रहे हैं।

महिलाओं पर बढ़ते अत्याचारों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र से लेकर प्रदेश स्तर पर सरकारों ने पिछले वर्षो में काफी सजगता दिखाई और महिलाओं को सुरक्षा एवं उनके अधिकारों को संरक्षण देने के लिए कई कड़े कानून बनाए और कई कानूनों में संशोधन कर उन्हें सख्त बनाया। इसके चलते छोटी-मोटी बातों पर भी महिलाएं पुलिस का दरवाजा खटखटा देती हैं, जिससे जीवन में खलल तो पैदा हो ही जाता है, पारिवारिक अशांति भी बढ़ जाती है।

पति-पत्नी के बीच विवादों के चलते परिवार टूटने व पतियों के भाग जाने के जो मामले जबलपुर में आए हैं, वे चौंकाने वाले हैं। परिवार परामर्श केंद्र के परामर्शदाता अंशुमान शुक्ला ने बताया कि जबलपुर में बीते पांच वर्ष में आई पारिवारिक विवाद की शिकायतों के बाद से लगभग 4,500 पति लापता हैं।

अंशुमान ने बताया, "जो पति घर छोड़ गए हैं, उनमें से कई तो संन्यासी बन गए हैं।" अंशुमान ने बताया कि शिकायतकर्ता महिलाओं ने ही आकर उन्हें अपने पति के संन्यासी बनने की खबरें दी हैं। अंशुमान के मुताबिक पत्नियों द्वारा दर्ज कराई जाने वाली शिकायतों के बाद गिरफ्तारी से बचने के लिए पति भाग जाते हैं, और आने वाली मुसीबत से बचने के लिए फिर उनके पास शेष जीवन संन्यासी बनकर बिताने का ही विकल्प रह जाता है।

पत्नी द्वारा थाने में शिकायत किए जाने से परेशान प्रकाश साहू का कहना है कि उसके पिता का हाल ही में निधन हुआ है, और पत्नी ने प्रताड़ना की शिकायत थाने में दर्ज करा दी। पत्नी उससे इस शर्त पर तलाक चाहती है कि उसे इसके एवज में रकम दी जाए। इस स्थिति से बचने के लिए वह ऐसा रास्ता खोज रहा है, जिससे वह अपने को मुसीबत से बचा सके।

जबलपुर में यदि पतियों के पत्नी से प्रताड़ित होकर भागने और संन्यासी बनने का सिलसिला इसी तरह जारी रहा, तो आने वाले समय में नर्मदा के तट और मंदिरों में पत्नियों से दूर भागकर संन्यासी बनने वालों की भरमार हो जाएगी।

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कुत्ता भी खोलता है शगुन-अपशगुन के कई राज

हिंदू धर्म शास्त्रों में कई ऐसे संकेत बताये गए हैं जिसके द्वारा आप इस बात का अंदाजा लगा सकते हैं कि आपको मनोवांछित कार्य में सफलता मिलेगी या नहीं। इन संकेतों को शकुन-अपशकुन कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार आप जब भी किसी खास कार्य के लिए जा रहे होते हैं ठीक उसी समय कई प्रकार की घटनाएं घटती हैं। इन पर ध्यान दिया जाना चाहिए। छोटी-छोटी शुभ-अशुभ घटनाएं ही शकुन या अपशकुन होती हैं। हालांकि काफी लोग इन बातों को कोरा अंधविश्वास ही मानते हैं लेकिन कई लोग इन बातों पर विश्वास भी करते हैं। 

कुत्ता एक ऐसा प्राणी है जो मनुष्यों के सबसे निकट है।बिल्ली की तरह कुत्ता भी यमदूत के आने का इशारा करता है| आज आपको कुत्ते से जुड़े कुछ शकुन- अपशकुन के बारे में बताने जा रहे हैं| 

कहीं जाते समय यदि कुत्ता सामने आकर भौंकने लगे या कान फडफडाने लगे तो अशुभ माना जाता है। इस स्थिति में थोडी देर के लिए रूक जाना चाहिए। यदि कुत्ता घर में बैठाकर दाहिने पैर से दाहिनी आंख को खुजाता है तो मित्रजनों के आगमन की संभावना होती है।

यदि कुत्ता किसी व्यक्ति के घर में आकाश को या वहां पडे गोबर को बहुत देर तक लगातार ताकता रहता है तो उस घर के मालिक को धन प्राप्ती की संभावना रहती है। प्रात: सर्वप्रथम समागमरत कुत्ते को देखना अशुभ माना जाता है। इस दिन कोई नया काम नहीं करना चाहिए। यदि किसी जगह बिना प्रयोजन बहुत सारे इकट्ठे हो जाएं और चिंतित दिखाई दे तो वहां आस-पास के लोगों में भयंकर लडाई-झगडा होने की संभावना रहती है। साथ ही कुछ लोगों को कारावास होने की भी संभावना रहती है।

यदि कुत्ता अचानक धरती पर लगातार अपने सिर को रगडता है तो उस जगह भूमि में गडे हुए धन की सूचना देता है। किसी यात्रा पर जाते समय यदि रास्ते में सामने किसी कुत्ते को मुंह में पत्थर दबाए आता दिखाई दे या हड्डी का टुकडा मुंह में दबाए गुर्राता दिखाई दे तो यात्रा के दौरान कष्टों की संभावना रहती है। हल्दी या मांस से सने मुख वाला कुत्ता यदि घर में आकर भौंकता है तो स्वर्ण प्राप्ति का योग बनता है।

यदि कोई कुत्ता जाते हुए व्यक्ति के साथ बाईं ओर चलता है तो उसे सुंदर स्त्री व धन मिलता है। यदि दाहिनी ओर चले तो चोरी से धन हानि की सूचना देता है। जिस कुत्ते की पुंछ या कान कटे हो। अगर ऐसा कुत्ता किसी यात्री के समाने आ जाए तो कार्य में असफलता मिलती है। वहीँ, यात्रा पर निकलते समय किसी व्यक्ति को कुत्ता अपने मुख में रोटी, पुड़ी या अन्य कोई खाद्य वस्तु खाता दिखे तो उसे धन का लाभ होता है।

अगर आप कहीं यात्रा पर जा रहे हैं और उसी दरमियान कोई कुत्ता आपके जूते लेकर भाग जाए तो निश्चित रूप से धन हानि होती है। वहीँ, यदि कुत्ता किसी के घर में बार-बार दीवार कुरेदता है तो उस घर में निश्चित रूप से चोरी होती है।

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जानिए क्यों होती है पीपल की पूजा

पीपल हिन्दू धर्म का पूज्य वृ़क्ष माना जाता है। जैसे देवताओं में अनेक गुण होते हैं वैसे ही पीपल का वृक्ष भी गुणों की खान है इसलिए पीपल वृक्ष की पूजा वैसे ही होती है जैसे किसी देवता की। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रात: पूजनीय माना गया है। 

पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन निस्सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है।

गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूँ।'
।।मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।
भावार्थ-अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है।

गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने पीपल को अपनी विभूति कहा है। भगवान विष्णु के ऎश्वर्य का निवास भी पीपल में ही बताया गया है। पीपल को प्रणाम करने और उसकी परिक्रमा करने से आयु वृद्धि होती है। पीपल को जल से संचित करने वाला व्यक्ति के सारे पापों से मुक्त हो जाता है। पीपल में पितरों का वास भी माना गया है। शनि की साढे साती में पीपल के पूजन और परिक्रमा का विधान बताया गया है। रात में पीपल की पूजा को निषिद्ध माना गया है। क्योंकि ऎसा माना जाता है कि रात्री में पीपल पर दरिद्रता बसती है और सूर्योदय के बाद पीपल पर लक्ष्मी का वास माना गया है। 

स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इसके कई पुरातात्विक प्रमाण भी है। अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है। 

नित पीपल की पूजा एवं दर्शन करने से आयु और समृद्धि बढ़ती है। जो स्त्री नियमित पीपल की पूजा करती हैं उनका सौभाग्य बढ़ता है। शनिवार के दिन अगर अमावस्या तिथि हो तब सरसो तेल का दीपक जलाकर काले तिल से पीपल वृक्ष की पूजा करें और सात बार परिक्रमा करें तो शनि दोष के कारण प्राप्त होने वाले कष्ट समाप्त हो जाते हैं। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है। 

एक पौराणिक कथा के अनुसार लक्ष्मी और उसकी छोटी बहन दरिद्रा विष्णु के पास गई और प्रार्थना करने लगी कि हे प्रभो! हम कहां रहें? इस पर विष्णु भगवान ने दरिद्रा और लक्ष्मी को पीपल के वृक्ष पर रहने की अनुमति प्रदान कर दी। इस तरह वे दोनों पीपल के वृक्ष में रहने लगीं। विष्णु भगवान की ओर से उन्हें यह वरदान मिला कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसे शनि ग्रह के प्रभाव से मुक्ति मिलेगी। उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी।

शनि के कोप से ही घर का ऐश्वर्य नष्ट होता है, मगर शनिवार को पीपल के पेड़ की पूजा करने वाले पर लक्ष्मी और शनि की कृपा हमेशा बनी रहेगी। इसी लोक विश्वास के आधार पर लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं, लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

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बसंत पंचमी: श्रद्धा व उल्लास का पर्व

बसंत पंचमी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है| माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसंत ऋतु का आरंभ होता है। बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति बसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है। बसंत को ऋतुओं का राजा कहा गया है क्योंकि इस समय पंच-तत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। बसंत ऋतु आते ही आकाश एकदम स्वच्छ हो जाता है, अग्नि रुचिकर तो जल पीयूष के सामान सुखदाता और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। इस ऋतु के आते ही हवा अपना रुख बदल देती है जो सुख की अनुभूति कराती है| धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं वहीँ शिशिर की प्रताड़ना से तंग निर्धन सुख की अनुभूत करने लगते हैं| सच में! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है उसका। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्ल्व, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है।

प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।

बसंत पंचमी को सभी शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। गृह प्रवेश के लिए बसंत पंचमी को पुराणों में भी अत्यंत श्रेयस्कर माना गया है। बसंत पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं। 

बसंत पंचमी का महत्व-

बसंत पंचमी पर न केवल पीले रंग के वस्त्र पहने जाते हैं, अपितु खाद्य पदार्थों में भी पीले चावल पीले लड्डू व केसर युक्त खीर का उपयोग किया जाता है, जिसे बच्चे तथा बड़े-बूढ़े सभी पसंद करते है। अतः इस दिन सब कुछ पीला दिखाई देता है और प्रकृति खेतों को पीले-सुनहरे रंग से सजा देती है, तो दूसरी ओर घर-घर में लोग के परिधान भी पीले दृष्टिगोचर होते हैं। नवयुवक-युवती एक -दूसरे के माथे पर चंदन या हल्दी का तिलक लगाकर पूजा समारोह आरम्भ करते हैं। तब सभी लोग अपने दाएं हाथ की तीसरी उंगली में हल्दी, चंदन व रोली के मिश्रण को माँ सरस्वती के चरणों एवं मस्तक पर लगाते हैं, और जलार्पण करते हैं। धान व फलों को मूर्तियों पर बरसाया जाता है। गृहलक्ष्मी फिर को बेर, संगरी, लड्डू इत्यादि बांटती है। इस ऋतु को फूलों का मौसम भी कहा जा सकता है| इस समय ना तो ठण्ड होती है और ना ही गरमी होती है| इस समय तक आमों के वृक्षों पर आम के लिए मंजरी आनी आरम्भ हो जाती है| जिन व्यक्तियों को डायबिटीज, अतिसार, रक्त विकार की समस्या है उन्हें आम की मंजरी के सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल सकता है| इसलिए वसंत पंचमी के दिन आम की मंजरी अथवा आम के फूलों को हाथों पर मलना चाहिए| इससे उन्हें उपरोक्त समस्याओं से मुक्ति मिल सकती है|

बसंत पंचमी की कथा-

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। एक दिन वह अपनी बनाई हुई सृष्टि को देखने के लिए धरती पर भ्रमण करने के लिए आए| ब्रह्मा जी को अपनी बनाई सृष्टि में कुछ कमी का अहसास हो रहा था, लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस बात की कमी है| उन्हें पशु-पक्षी, मनुष्य तथा पेड़-पौधे सभी चुप दिखाई दे रहे थे| तब उन्हें आभास हुआ कि क्या कमी है| वह सोचने लगे कि ऎसा क्या किया जाए कि सभी बोले, गाएं और खुशी में झूमे| ऎसा विचार करते हुए ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल लेकर कमल पुष्पों तथा धरती पर छिड़का| जल छिड़कने के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए हुए एक देवी प्रकट हुई| इस देवी के चार हाथ थे| एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में कमल, तीसरे हाथ में माला तथा चतुर्थ हाथ में पुस्तक थी| ब्रह्मा जी ने देवी को वरदान दिया कि तुम सभी प्राणियों के कण्ठ में निवास करोगी| सभी के अंदर चेतना भरोगी, जिस भी प्राणी में तुम्हारा वास होगा वह अपनी विद्वता के बल पर समाज में पूज्यनीय होगा| ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हें संसार में देवी भगवती के नाम से जाना जाएगा| ब्रह्मा जी ने देवी सरस्वती को वरदान देते हुए कहा कि तुम्हारे द्वारा समाज का कल्याण होगा इसलिए समाज में रहने वाले लोग तुम्हारा पूजन करेगें| इसलिए प्राचीन काल से वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है अथवा कह सकते हैं कि इस दिन को सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है|

‘प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु’ 

अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।