इस अचूक मंत्र के द्वारा शत्रु भी बन जायेगा मित्र

यह सत्य है कि मन्त्रों में शक्ति होती है। परन्तु मन्त्रों की क्रमबद्धता, शुद्ध उच्चारण और प्रयोग का ज्ञान भी परम आवश्यक है। जिस प्रकार कई सुप्त व्यक्तियों में से जिस व्यक्ति के नाम का उच्चारण होता है, उसकी निद्रा भंग हो जाती है, अन्य सोते रहते हैं उसी प्रकार शुद्ध उच्चारण से ही मन्त्र प्रभावशाली होते हैं और देवों को जाग्रत करते हैं।

अगर आपका कोई शत्रु है और आप उससे परेशान है तो यह जान लें कि शत्रुओं के मन से शत्रु भाव मिटाना बड़ा ही कठिन है, लेकिन आज आपको एक ऐसा आसान उपाय बताने जा रहे हैं जिसके द्वारा शत्रु भी आपका मित्र बन जाएगा और भूलकर भी सपने में वह आपका अहित नहीं सोचेगा।

आज आपको एक आसान मंत्र बताने जा रहे हैं जिसके द्वारा आप किसी को भी अपना मित्र बना सकते हैं तो आइये जाने क्या है या आसान मंत्र-

गरल सुधा रिपु करहिं मिताई, गोपद सिंधु अनल सितलाई

आपको बता दें कि कोई मंत्र नहीं बल्कि यह तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस की एक चौपाई है|

विधि-

प्रत्येक सुबह स्नानादि करके भगवान राम की पूजा करें| हमेशा ध्यान रहे कि आप जब भी पूजा कर रहे हो तो आप का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए| इसके बाद कुश के आसन पर बैठें और तुलसी की माला से इस मंत्र का जप करें। कम से कम 5 माला का जप अवश्य करें। कुछ ही दिनों में आपके शत्रु, मित्र बन जाएंगे।

अगर रखते हैं स्वर्ग की प्राप्ति की इच्छा तो माघी पूर्णिमा को करें गंगा स्नान

माघ पूर्णिमा हिन्दुओं के सबसे पवित्र माने जाने वाली पूर्णिमाओं में से एक है| इस बार माघ मास की पूर्णिमा 7 फरवरी मंगलवार को पड़ रही है| मान्यता है कि माघ मास की पूर्णिमा को गंगा स्नान करने से मनुष्य का तन-मन पवित्र हो जाता है| माघी पूर्णिमा में किसी नदी,सरोवर, कुण्ड अथवा जलाशय में सूर्य के उदित होने से पहले स्नान करने मात्र से ही पाप धुल जाते हैं और हृदय शुद्ध होता है। शास्त्रों में भी कहा गया है कि व्रत, दान और तप से भगवान विष्णु को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी कि माघी पूर्णिमा में स्नान करने मात्र से होती है। यह स्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है| इस समय ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए स्नान व दान करना चाहिए|

माघी पूर्णिमा में पूजा की विधि-

माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है| सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है| सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है|

माघ मास को बत्तीसी पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। शास्त्रों के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन अन्न दान और वस्त्रदान का बड़ा ही महत्व है। इस तिथि को स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। श्री हरि की पूजा के पश्चात यथा संभव अन्नदान किया जाता है अथवा भूखों को भरपेट भोजन कराया जाता है। ब्रह्मणों एवं पुरोहितों को यथा संभव श्रद्धा पूर्वक दान दे उनका आशीर्वाद लिया जाता है। शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं।

शास्त्रों के अनुसार माघी पूर्णिमा के दिन अन्न दान और वस्त्रदान का बड़ा ही महत्व है| इस तिथि को गंगा स्नान के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करें| श्री हरि की पूजा के पश्चात यथा संभव अन्नदान करें अथवा भूखों को भरपेट भोजन कराए| ब्रह्मणों एवं पुरोहितों को यथा संभव श्रद्धा पूर्वक दान दें और उनका आशीर्वाद लें, इसके बाद आप स्वयं भोजन करें|

शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा कर सकते हैं| जो भक्त शिव और विष्णु के प्रति समदर्शी होते हैं वे शिव और विष्णु दोनों की ही पूजा करते हैं| समदर्शी भक्तों के प्रति भगवान शंकर और विष्णु दोनों ही प्रेम रखते हैं अत: गंगा के जल से शिव और विष्णु की पूजा करना परम कल्याणकारी माना गया है|

माघी पूर्णिमा का महत्व:-

हिन्दु धर्म पंचांग के ग्यारह-वें महीने ‘माघ’ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व होता है इस महीने कि पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा मघा नक्षत्र में होता है जिस कारण इसे माघ कहा जाता है| माघ मास की पूर्णिमा की विशेषता है कि इसमें जहां-कहीं भी स्वच्छ जल हो, वह गंगाजल के समान गुणकारी हो जाता है। जिन्हें प्रयाग, काशी, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, नैमिषारण्य, मथुरा, अवंतिका (उज्जैन) आदि किसी तीर्थ में माघ-स्नान का सुअवसर प्राप्त होगा, वे निश्चय ही सौभाग्यशाली हैं। किंतु जो श्रद्धालु किन्ही कारणों से बाहर नहीं जा सकते, वे साफ जल को किसी बाल्टी में भरकर उसमें आंवले और तुलसीदल का चूर्ण मिला दें और उससे स्नान करें। 

पुरातन मान्यता है कि गंगा में जहां कही भी स्नान किया जाए वे कुरुक्षेत्र के समान फल देने वाली हैं। जिनका चित्त पाप से दूषित है, ऐसे समस्त प्राणियों और मनुष्यों की गंगा के अलावा अन्यत्र कहीं दूसरा स्थान नहीं है। भगवान शंकर के मस्तक से निकली हुई गंगा सब पापों का हरण करने वाली शुभ फल देने वाली हैं। वे पापियों को भी पवित्र कर उनका उद्धार करने वाली हैं।

आपको बता दें कि पूर्णिमा में प्रात:स्नान, यथाशक्ति दान तथा सहस्त्र नाम अथवा किसी स्तोत्र द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से यह अनुष्ठान पूरा होता है। यदि किसी कामना की पूर्ति के उद्देश्य से माघ-स्नान किया जाए, तो मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। निष्काम भाव से माघ-स्नान मोक्ष प्रदायक है। माघ-स्नान से समस्त पाप-ताप-शाप नष्ट हो जाते हैं। माघ-स्नान के व्रती स्त्री-पुरुष को नित्य कुछ न कुछ दान अवश्य करना चाहिए।

माघी पूर्णिमा में दान का महत्व:-

माघ मास की पूर्णिमा के दिन स्नान व व्रत रखने से विशेष पुण्य मिलता है ऐसा धर्मशास्त्रों में वर्णित है। सुबह नित्यकर्म एवं स्नान आदि से निपट कर भगवान विष्णु का विधिपूर्वक पूजन करें। फिर पितरों का श्राद्ध करें। गरीबों को भोजन तथा वस्त्र दान दें। तिल, कंबल, कपास, गुड़, घी, मोदक, जूते, फल, अन्न और यथाशक्ति सोना, चांदी आदि का दान भी दें तथा पूरे दिन का व्रत रखकर ब्राह्मणों को भोजन कराएं और सत्संग एवं कथा कीर्तन में दिन-भर बिताकर दूसरे दिन पारण करें।

माघ शुक्ल पूर्णिमा को यदि शनि मेष राशि पर, गुरु और चंद्रमा सिंह राशि पर तथा सूर्य श्रवण नक्षत्र पर हों तो महामाघी पूर्णिमा का योग होता है। यह तिथि स्नान तथा दान के लिए अक्षय फलदायिनी होती है।

माघ मास की धार्मिक मान्यता:-

शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है | इसके सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस तिथि में भगवान नारायण क्षीर सागर में विराजते हैं तथा गंगा जी क्षीर सागर का ही रूप है| धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से मुक्ति प्राप्त होती है| यह महीना जप-तप व संयम का महीना माना गया है इस महीने तामसी प्रवृत्ति के लोग भी सात्विकता को अपना लेते हैं, ऋषि मुनियों ने भी माघ मास में मांस भक्षण को निषिद्व कहा है| 

अगर पैसों की तंगी से हैं परेशान तो सोमवार को करें यह उपाय आसान


 यदि आपके जीवन में लगातार परेशानयों का आना-जाना लगा रहता है, यदि आपके कार्य समय पर पूर्ण नहीं होते हैं, यदि आपको धन की कमी के कारण आर्थिक तंगी झेलना पड़ रही है, घर-परिवार की समस्याओं से जुझना पड़ रहा है तो घबराये नहीं, बस पूरी श्रद्धा और भक्ति से ये उपाय करें |

हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि अगर आप धन की कमी को लेकर परेशान है तो सोमवार के दिन भगवान शिव की उपासना करतें और शिवलिंग पर जल चढ़ाएं क्योंकि भगवान शंकर जगतगुरु कहलाते हैं| 

उपाय-
सोमवार को सुबह स्नानादि करने के बाद भगवान शंकर के साथ- साथ माता पार्वती और उनकी सवारी नंदी का गंगाजल, चंदन, अक्षत, बिल्वपत्र, धतूरा या आंकड़े के फूल चढ़ाएं। तत्पश्चात भगवान शंकर के इस मंत्र को 108 बार जप करें| 

मन्दारमालाङ्कुलितालकायै कपालमालांकितशेखराय।

दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नम: शिवायै च नम: शिवाय।। 

श्री अखण्डानन्दबोधाय शोकसन्तापहा​रिणे। 

सच्चिदानन्दस्वरूपाय शंकराय नमो नम:॥ 

कहते हैं विश्वास से बढ़कर इस दुनिया में कुछ नहीं है इसलिए आप भगवान भोलेनाथ पर आस्था रखें निश्चित ही आपकी दरिद्रता दूर होगी| क्योंकि भगवान भोलेनाथ बहुत ही दयालु हैं| 

पूजा करते समय आखिर क्यों ढका जाता है सिर

अगर आप कहीं पूजा में या मंदिर जाते होंगे तो आपने देखा होगा कि लोग पूजा करते समय या पूजा में बैठते समय अपने सिर को ढक लेते हैं| क्या आपको पता है पूजा करते समय आखिर क्यों ढका जाता है सिर| 

आपको बता दें कि हमारी परंपरा में सिर को ढकना स्त्री और पुरुषों सबके लिए आवश्यक किया गया था। सभी धर्मों की स्त्रियां दुपट्टा या साड़ी के पल्लू से अपना सिर ढंककर रखती थी। इसीलिए मंदिर या किसी अन्य धार्मिक स्थल पर जाते समय या पूजा करते समय सिर ढकना जरूरी माना गया था। 

लेकिन सिर ढकने का एक वैज्ञानिक कारण भी है| दरअसल सिर मनुष्य के अंगों में सबसे संवेदनशील भाग होता है। ब्रह्मरंध्र सिर के बीचों-बीच स्थित होता है। मौसम के मामूली से परिवर्तन के दुष्प्रभाव ब्रह्मरंध्र के भाग से शरीर के अन्य अंगों पर आते हैं। इसीलिये सिर को ढक लिया जाता है| 

इसके अलावा आकाशीय विद्युतीय तरंगे खुले सिर वाले व्यक्तियों के भीतर प्रवेश कर क्रोध, सिर दर्द, आंखों में कमजोरी आदि रोगों को जन्म देती है। इसलिए इन सब से बचने के लिए औरतें और पुरुष अपना सिर ढक लेते हैं| 

इसी कारण सिर और बालों को ढककर रखना हमारी परंपरा में शामिल था। इसके बाद धीरे-धीरे समाज की यह परंपरा बड़े लोगों को या भगवान को सम्मान देने का तरीका बन गई। साथ ही इसका एक कारण यह भी है कि सिर के मध्य में सहस्त्रारार चक्र होता है। पूजा के समय इसे ढककर रखने से मन एकाग्र बना रहता है। इसीलिए नग्न सिर भगवान के समक्ष जाना ठीक नहीं माना जाता है। 

यह मान्यता है कि जिसका हम सम्मान करते हैं या जो हमारे द्वारा सम्मान दिए जाने योग्य है उनके सामने हमेशा सिर ढककर रखना चाहिए। इसीलिए पूजा के समय सिर पर और कुछ नहीं तो कम से कम रूमाल ढक लेना चाहिए। इससे मन में भगवान के प्रति जो सम्मान और समर्पण है उसकी अभिव्यक्ति होती है।

लड़कियों की चाल देखकर जाने आप से इश्क फरमाती हैं या नहीं

अगर आपका किसी लड़की पर दिल आ गया है तो थोड़ा संजीदा होकर उस लडकी की चाल पर गौर फरमाइये अगर उस लड़की की चाल-ढाल बदली-बदली सी है और कमर में लचक ज्यादा है तो समझिए कि वह इश्क फरमाने के लिए तैयार हैं| यह हम नहीं बल्कि इसका खुलासा हुआ है| 

मिली जानकारी के मुताबिक, फ्रांस के ब्रेताग्ने-सद यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि शारीरिक क्रियाओं के कारण जिस वक्त महिला के गर्भवती होने की संभावना होती है, उस वक्त उनकी चाल-ढाल में अपेक्षाकृत ज्यादा आकर्षण होता है। इस दौरान महिलाओं की चाल कामोत्तेजक कही जा सकती है और इसमें सामान्य व्यवहार से थोड़ा परिवर्तन होता है। इस वक्त महिलाएं अधिक आकर्षक लगती हैं। 

इस यूनिवर्सिटी के एक प्रोफ़ेसर निकोलस गुएग्वेन के नेतृत्व में किए गए अध्ययन का परिणाम 103 अविवाहित लड़कियों की आकर्षक चाल-ढाल के विश्लेषण के आधार पर किया गया है। अध्ययन में हर लड़की को एक कमरे में बैठकर इंतजार करने के लिए कहा गया। कुछ समय बाद एक स्मार्ट आदमी उनके बीच जाकर बैठा। वह उनके साथ मुस्कराकर बात करने लगा। 

इसके बाद सभी को एक लैब तक लाया, जहां उनसे अध्ययन की बात कही गयी थी| बताया जा रहा है कि उन लड़कियों को इस बात की भनक नहीं थी कि उनकी चाल को कैमरे में कैद किया गया है। जब महिलाएं कमरे में पहुंचीं, तो उनकी मंजूरी से उनकी लार की जांच की गई। जाँच के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा कि महिलाओं की चाल के आधार पर प्यार के प्रति उनके रुझान का पता लगाया जा सकता है।

आपसी मनमुटाव से खुशहाल रहता है वैवाहिक जीवन

अभी तक यही माना जा रहा था कि वैवाहिक संबंध में छोटी-मोटी नोक-झोंक होना एक आम बात है| प्राय: देखा जाता है कि एक-दूसरे से नाराज दंपत्ति जब अपने बीच के मनमुटाव को सुलझा लेते हैं तो ऐसे में वे एक-दूसरे के और निकट तो आते ही हैं साथ ही उनकी आपसी समझ और सहयोग की भावना को भी बढ़ावा मिलता है| अब यह सच साबित हो गया है क्योंकि सर्वेक्षण में भारत के 44 फीसदी दम्पत्तियों का मानना है कि हफ्ते में एक से अधिक बार की नोकझोंक वैवाहिक जीवन को लम्बा और खुशहाल बनाती है। 

बताया जा रहा है कि मैट्रिमॉनियल वेबसाइट 'शादी डॉट काम' और सर्वेक्षण संस्था 'आईएमआरबी' द्वारा 'शादी आजकल' नाम से कराए गए सर्वेक्षण में इन दम्पतियों ने स्वीकार किया कि हफ्ते में एक से अधिक बार की नोकझोंक से संवाद के रास्ते खुले रहते हैं।

निजी कम्पनी में कार्यरत आनंद सेठ ने बताया है कि नोकझोंक से पति-पत्नी को एक दूसरे के नजदीक आने का मौका मिलता है और इससे अक्सर गलतफहमियां दूर होती हैं। रिश्ते में यह लड़ाई जरूरी होती है इससे बंधन मजबूत होते हैं। वहीँ, बहुराष्ट्रीय कम्पनी में विपणन प्रबंधक सुशीला बासु ने कहा कि दम्पतियों के कुढ़ने के बजाय बहस से मनमुटाव को दूर करने में सहायता मिलती है।

दिल्ली एवं मुम्बई के क्रमश: 32 फीसदी एवं 33 फीसदी दम्पति महीने में एक बार आपस में झगड़ते हैं। सर्वेक्षण में एक बात सामने आई कि 20-25 वर्ष आयु वर्ग के 10 फीसदी दम्पति महीने में एक बार वाद-विवाद में पड़ते हैं, जबकि 41-45 वर्ष आयु वर्ग के मध्य यह आंकड़ा सिर्फ दो फीसदी दम्पतियों का है।

सर्वेक्षण में यह तथ्य सामने आया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं में बहस करने की प्रवृत्ति अधिक होती है। आठ फीसदी पुरुषों की तुलना में 12 फीसदी महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे प्रतिदिन वाद विवाद में पड़ती हैं।

सम्मोहन चिकित्सक प्रकृति पोद्दार का मानना है कि वैवाहिक जीवन के लिए वाद विवाद अच्छा नहीं हैं। वहीँ, दिल्ली स्थित अस्पताल की चिकित्सक पूनम दर्षवाल ने कहा है कि प्रत्येक विवाद से मेरे और मेरे पति के बीच में दूरियां बढ़ती हैं, खास तौर पर तब जब हम किसी सही निष्कर्ष पर न पहुंचे। यद्यपि इससे कभी-कभी एक दूसरे को समझने में सहायता मिलती है जब एक दूसरे को खुले दिल से सुना जाए।

सर्वेक्षण में दम्पतियों ने माना कि उन्हें आपसी नोकझोंक से कोई समस्या नहीं है लेकिन जीवन साथी के विवाहेत्तर सम्बंध असहनीय हैं।

वास्तुदोष से बचने के आसान उपाय

अगर आपके घर में जगह की कमी है और आप अपने रसोईघर को स्टोर अथवा भंडारण कक्ष के रूप में इस्तेमाल की योजना बना रहे हैं, तो ध्यान रखें ईशान व आग्नेय कोण के मध्य पूर्वी दीवार के पास के स्थान का उपयोग करें। चूल्हा या गैस आग्नेय कोण में ही रखें।

वास्तुदोष से बचने के लिए अगर आपके घर का आग्नेय कोण पूर्व दिशा में बढ़ा हो, तो इसे काटकर वर्गाकार या आयताकार बनाएं। इसके आलावा शुद्ध बालू और मिट्टी से आग्नेय क्षेत्र के सभी गड्ढे इस प्रकार भर दें कि यह क्षेत्र ईशान और वायव्य से ऊंचा लेकिन नैर्ऋत्य से नीचा रहे। शाम के समय घर में सुगंधित एवं पवित्र धुआ करें। किचन में आग और पानी साथ न रखें। घर में जाले न लगने दें, इससे मानसिक तनाव कम होता है। 

आग्नेय कोण में दोष होने पर वहां भोजन में प्रयोग होने वाले फल, सब्जियां (सूर्यमुखी, पालक, तुलसी, गाजर आदि) और अदरक मिर्च, मेथी, हल्दी, पुदीना पत्ता आदि उगाएं अथवा मनीप्लांट लगाएं। आग्नेय दिशा से आने वाली सूर्य किरणों को रोकने वाले सभी पेड़ों को हटाएं। इस दिशा में ऊंचे पेड़ न लगाएं| इसके आलावा घर की स्त्रियों को नए रेश्मी परिधान, सौंदर्य प्रसाधन, सामग्री, सजावट के सामान और गहने आदि देकर हमेशा खुश रखें। यह सर्वोत्तम उपाय है। 

घर में आंगन मध्य में ऊंचा तथा चारों ओर से नीचा होना चाहिए। यदि आपका आंगन वास्तु के अनुरूप न हो, तो उसे फौरन बताए गए तरीके से पूर्ण करवा लें। ध्यान रखें आंगन मध्य में नीचा व चारों ओर ऊंचा भूलकर भी न रखें। इसके आलावा कोई भूखंड उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर विस्तृत हो तथा भवन का निर्माण उत्तरी भाग में हुआ हो तथा भूखंड का दक्षिणी भाग खाली पड़ा हो तो वास्तु में यह स्थिति अत्यंत दोषपूर्ण होती है। 

अगर संतान होने में आ रही बाधाएँ तो रखें पुत्रदा एकादशी व्रत

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। पुत्रदा एकादशी का व्रत पौष माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है| इस बार पुत्रदा एकादशी चार जनवरी यानि की बुधवार को है|

पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि-

इस एकादशी के दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है| सुबह स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पश्चात श्रीहरि का ध्यान करना चाहिए| सबसे पहले धूप दीप आदि से भगवान् नारायण की पूजा अर्चना की जाती है, उसके बाद फल- फूल, नारियल, पान सुपारी लौंग, बेर आंवला आदि व्यक्ति अपनी सामर्थ्य अनुसार भगवान् नारायण को अर्पित करते हैं| पूरे दिन निराहार रहकर संध्या समय में कथा आदि सुनने के पश्चात फलाहार किया जाता है|

पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व- 

इस व्रत के नाम के अनुसार ही इस व्रत का फल है| जिन व्यक्तियों के संतान होने में बाधाएं आती हैं उनके लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत बहुत ही शुभफलदायक होता है| इसलिए संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को व्यक्ति विशेष को अवश्य रखना चाहिए, जिससे उन्हें मनोवांछित फल की प्राप्ति हो|

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा-

युधिष्ठिर बोले: श्रीकृष्ण ! कृपा करके पौष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का माहात्म्य बतलाइये । उसका नाम क्या है? उसे करने की विधि क्या है ? उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है ?

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: राजन्! पौष मास के शुक्लपक्ष की जो एकादशी है, उसका नाम ‘पुत्रदा’ है ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को नाम-मंत्रों का उच्चारण करके फलों के द्वारा श्रीहरि का पूजन करे । नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा नींबू, जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों से देवदेवेश्वर श्रीहरि की पूजा करनी चाहिए । इसी प्रकार धूप दीप से भी भगवान की अर्चना करे ।

‘पुत्रदा एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है । रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए । जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होति है, वह हजारों वर्ष तक तपस्या करने से भी नहीं मिलता । यह सब पापों को हरनेवाली उत्तम तिथि है ।

चराचर जगतसहित समस्त त्रिलोकी में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है । समस्त कामनाओं तथा सिद्धियों के दाता भगवान नारायण इस तिथि के अधिदेवता हैं ।

"पूर्वकाल की बात है, भद्रावतीपुरी में राजा सुकेतुमान राज्य करते थे । उनकी रानी का नाम चम्पा था । राजा को बहुत समय तक कोई वंशधर पुत्र नहीं प्राप्त हुआ । इसलिए दोनों पति पत्नी सदा चिन्ता और शोक में डूबे रहते थे । राजा के पितर उनके दिये हुए जल को शोकोच्छ्वास से गरम करके पीते थे । ‘राजा के बाद और कोई ऐसा नहीं दिखायी देता, जो हम लोगों का तर्पण करेगा …’ यह सोच सोचकर पितर दु:खी रहते थे ।

एक दिन राजा घोड़े पर सवार हो गहन वन में चले गये । पुरोहित आदि किसीको भी इस बात का पता न था । मृग और पक्षियों से सेवित उस सघन कानन में राजा भ्रमण करने लगे । मार्ग में कहीं सियार की बोली सुनायी पड़ती थी तो कहीं उल्लुओं की । जहाँ तहाँ भालू और मृग दृष्टिगोचर हो रहे थे । इस प्रकार घूम घूमकर राजा वन की शोभा देख रहे थे, इतने में दोपहर हो गयी । राजा को भूख और प्यास सताने लगी । वे जल की खोज में इधर उधर भटकने लगे । किसी पुण्य के प्रभाव से उन्हें एक उत्तम सरोवर दिखायी दिया, जिसके समीप मुनियों के बहुत से आश्रम थे । शोभाशाली नरेश ने उन आश्रमों की ओर देखा । उस समय शुभ की सूचना देनेवाले शकुन होने लगे । राजा का दाहिना नेत्र और दाहिना हाथ फड़कने लगा, जो उत्तम फल की सूचना दे रहा था । सरोवर के तट पर बहुत से मुनि वेदपाठ कर रहे थे । उन्हें देखकर राजा को बड़ा हर्ष हुआ । वे घोड़े से उतरकर मुनियों के सामने खड़े हो गये और पृथक् पृथक् उन सबकी वन्दना करने लगे । वे मुनि उत्तम व्रत का पालन करनेवाले थे । जब राजा ने हाथ जोड़कर बारंबार दण्डवत् किया,तब मुनि बोले : ‘राजन् ! हम लोग तुम पर प्रसन्न हैं।’

राजा बोले: आप लोग कौन हैं ? आपके नाम क्या हैं तथा आप लोग किसलिए यहाँ एकत्रित हुए हैं? कृपया यह सब बताइये ।

मुनि बोले: राजन् ! हम लोग विश्वेदेव हैं । यहाँ स्नान के लिए आये हैं । माघ मास निकट आया है । आज से पाँचवें दिन माघ का स्नान आरम्भ हो जायेगा । आज ही ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है,जो व्रत करनेवाले मनुष्यों को पुत्र देती है ।

राजा ने कहा: विश्वेदेवगण ! यदि आप लोग प्रसन्न हैं तो मुझे पुत्र दीजिये।

मुनि बोले: राजन्! आज ‘पुत्रदा’ नाम की एकादशी है। इसका व्रत बहुत विख्यात है। तुम आज इस उत्तम व्रत का पालन करो । महाराज! भगवान केशव के प्रसाद से तुम्हें पुत्र अवश्य प्राप्त होगा ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर ! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उक्त उत्तम व्रत का पालन किया । महर्षियों के उपदेश के अनुसार विधिपूर्वक ‘पुत्रदा एकादशी’ का अनुष्ठान किया । फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारंबार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये । तदनन्तर रानी ने गर्भधारण किया । प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया । वह प्रजा का पालक हुआ । 

इसलिए राजन्! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिए । मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है । जो मनुष्य एकाग्रचित्त होकर ‘पुत्रदा एकादशी’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिलता है ।

भगवान शंकर आखिर क्यों कहलाते हैं कालों के काल - 'महाकाल

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। भगवान शिव को कई नामों से पुकारा जाता है। कोई उन्हें भोलेनाथ तो कोई देवाधि देव महादेव के नाम से पुकारता है| वे महाकाल भी कहे जाते हैं और कालों के काल भी।

शिव की साकार यानि मूर्तिरुप और निराकार यानि अमूर्त रुप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याणकारी माना गया है। उनके दिव्य चरित्र और गुणों के कारण भगवान शिव अनेक रूप में पूजित हैं।

आखिर क्यों भगवान शंकर को कालों के काल कहा जाता है, आइये जाने-

आपको बता दें कि देवाधी देव महादेव मनुष्य के शरीर में प्राण के प्रतीक माने जाते हैं| आपको पता ही है कि जिस व्यक्ति के अन्दर प्राण नहीं होते हैं तो उसे शव का नाम दिया गया है| भगवान् भोलेनाथ का पंच देवों में सबसे महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है|

भगवान शिव को मृत्युलोक का देवता माना जाता है| आपको पता होगा कि भगवान शिव के तीन नेत्रों वाले हैं| इसलिए त्रिदेव कहा गया है| ब्रम्हा जी सृष्टि के रचयिता माने गए हैं और विष्णु को पालनहार माना गया है| वहीँ, भगवान शंकर संहारक है| यह केवल लोगों का संहार करते हैं| भगवान भोलेनाथ संहार के अधिपति होने के बावजूद भी सृजन का प्रतीक हैं। वे सृजन का संदेश देते हैं। हर संहार के बाद सृजन शुरू होता है। 

इसके आलावा पंच तत्वों में शिव को वायु का अधिपति भी माना गया है। वायु जब तक शरीर में चलती है, तब तक शरीर में प्राण बने रहते हैं। लेकिन जब वायु क्रोधित होती है तो प्रलयकारी बन जाती है। जब तक वायु है, तभी तक शरीर में प्राण होते हैं। शिव अगर वायु के प्रवाह को रोक दें तो फिर वे किसी के भी प्राण ले सकते हैं, वायु के बिना किसी भी शरीर में प्राणों का संचार संभव नहीं है।

आखिर क्यों रखती हैं लड़कियां सोमवार व्रत

भारतीय संस्कृति में व्रत-उपवासों का बड़ा महत्व है। व्रत कामनापूर्ति और ईश्वर के प्रति सर्मपण का प्रतीक होते है। आप भी यह देखते होंगे कि ज्यादातर लड़कियां सोमवार का व्रत रखती है क्या आपको पता है यह व्रत क्यों रखा जाता है अगर नहीं तो हम आपको बताते हैं कि आखिर लड़कियां क्यों सोमवार व्रत रखती हैं|

आपको बता दें कि ज्यादातर लड़कियां भगवान शंकर को अपना इष्ट देव मानती हैं और उन्ही पर बहुत अधिक आस्था रखती हैं| लड़कियाँ अक्सर इच्छित वर की प्राप्ति के लिए भगवान भोलेनाथ को ही मनाती है। कहा जाता है कि भगवान भोलेनाथ बहुत ही दयालु हैं, जो लडकियों पर कृपा कर उन्हें इच्छित वर देते है।

सोमवार व्रत के नियम- 

-आमतौर पर सोमवार का व्रत तीसरे पहर तक होता है|
- व्रत में अन्न या फल का कोई नियम नहीं है |
- भोजन केवल एक ही बार करती है|
- व्रतधारी को गौरी- शंकर की पूजा करनी चाहिए|
- तीसरे पहर, शिव पूजा करके, कथा कह सुनकर भोजन करना चाहिए|

आइये जाने भगवान शिव के 108 नाम व उनके अर्थ

शास्त्रों में शिव के अनेक कल्याणकारी रूप और नाम की महिमा बताई गई है। शिव ने विषपान किया तो नीलकंठ कहलाए, गंगा को सिर पर धारण किया तो गंगाधर पुकारे गए। भूतों के स्वामी होने से भूतभावन भी कहलाते हैं। कोई उन्हें भोलेनाथ तो कोई देवाधि देव महादेव के नाम से पुकारता है| हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। शिव के इन सभी रूप और सभी नामों का स्मरण मात्र ही हर भक्त के सभी दु:ख और कष्टों को दूर कर हर इच्छा और सुख की पूर्ति करने वाला माना गया है।

आज आपको हम भगवान भोलेनाथ के 108 नामों के बारे में बताते हैं, इतना ही नहीं नामों के साथ- साथ उन सभी नामों का अर्थ भी बताते हैं तो आइये जाने भगवान शिव के कौन- कौन से नाम हैं-

1 शिव - कल्याण स्वरूप

2 महेश्वर - माया के अधीश्वर

3 शम्भू - आनंद स्वरूप वाले

4 पिनाकी- पिनाक धनुष धारण करने वाले

5 शशिशेखर- सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले

6 वामदेव- अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले

7 विरूपाक्ष- भौंडी आँख वाले

8 कपर्दी - जटाजूट धारण करने वाले

9 नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले

10 शंकर - सबका कल्याण करने वाले

11 शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले

12 खटवांगी -खटिया का एक पाया रखने वाले

13 विष्णुवल्लभ- भगवान विष्णु के अतिप्रेमी

14 शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले

15 अंबिकानाथ - भगवति के पति

16 श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले

17 भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले

18 भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले

19 शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले

20 त्रिलोकेश - तीनों लोकों के स्वामी

21 शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले

22 शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय

23 उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले

24 कपाली - कपाल धारण करने वाले

24 कामारी - कामदेव के शत्रुअंधकार

26 सुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले

27 गंगाधर - गंगा जी को धारण करने वाले

28 ललाटाक्ष - ललाट में आँख वाले 

29 कालकाल - काल के भी काल

30 कृपानिधि - करूणा की खान

31 भीम - भयंकर रूप वाले

32 परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले

33 मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले

34 जटाधर - जटा रखने वाले

35 कैलाशवासी - कैलाश के निवासी

36 कवची - कवच धारण करने वाले

37 कठोर - अत्यन्त मजबूत देह वाले

38 त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर को मारने वाले

39 वृषांक - बैल के चिह्न वाली झंडा वाले

40 वृषभारूढ़ - बैल की सवारी वाले

41 भस्मोद्धूलितविग्रह - सारे शरीर में भस्म लगाने वाले

42 सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले

43 स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले

44 त्रयीमूर्ति - वेदरूपी विग्रह करने वाले

45 अनीश्वर -जिसका और कोई मालिक नहीं है

46 सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले

47 परमात्मा - सबका अपना आपा

48 सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आँख वाले

49 हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले

50 यज्ञमय - यज्ञस्वरूप वाले

51 सोम - उमा के सहित रूप वाले 

52 पंचवक्त्र अर्थात जो पांच मुख वाले

53 सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाल

54 विश्वेश्वर - सारे विश्व के ईश्वर

55 वीरभद्र -बहादुर होते हुए भी शांत रूप वाले

56 गणनाथ - गणों के स्वामी

57 प्रजापति - प्रजाओं का पालन करने वाले

58 हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले

59 दुर्धुर्ष - किसी से नहीं दबने वाले

60 गिरीश - पहाड़ों के मालिक

61 गिरिश -कैलाश पर्वत पर सोने वाले

62 अनघ -पापरहित

63 भुजंगभूषण - साँप के आभूषण वाले

64 भर्ग - पापों को भूंज देने वाले

65 गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले

66 गिरिप्रिय - पर्वत प्रेमी

67 कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले

68 पुराराति- पुरों का नाश करने वाले

69 भगवान् - सर्वसमर्थ षड्ऐश्वर्य संपन्न

70 प्रमथाधिप - प्रमथगणों के अधिपति

71 मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले

72 सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले

73 जगद्व्यापी - जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले

74 जगद्गुरू - जगत् के गुरू

75 व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले

76 महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता

77 चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले

78 रूद्र - भक्तों के दुख देखकर रोने वाले

79 भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी

80 स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले

81 अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी को धारण करने वाले

82 दिगम्बर - नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले

83 अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले

84 अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाले

85 सात्त्विक - सत्व गुण वाले

86 शुद्धविग्रह - शुद्धमूर्ति वाले

87 शाश्वत - नित्य रहने वाले

88 खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले

89 अज - जन्म रहित

90 पाशविमोचन- बंधन से छुड़ाने वाले

91 मृड - सुखस्वरूप वाले

92 पशुपति - पशुओं के मालिक

93 देव - स्वयं प्रकाश रूप

94 महादेव -देवों के भी देव

95 अव्यय- खर्च होने पर भी न घटने वाले

96 हरि - विष्णुस्वरूप

97 पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाले

98 अव्यग्र - कभी भी व्यथित न होने वाले

99 दक्षाध्वरहर- दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाल

100 हर - पापों व तापों को हरने वाले

101 भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले

102 अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले

103 सहस्राक्ष- अनंत आँख वाले

104 सहस्रपाद- अनंत पैर वाले

105 अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले

106 अनंत- देशकालवस्तुरूपी परिछेद से रहित

107 तारक - सबको तारने वाला

108 परमेश्वर- सबसे परे ईश्वर

घर के बाहर क्यों बनाए जाते हैं पैरों के निशान

आपने ज्यादातर घरों में एक चीज जरूर देखी होगी वह है किसी के घर के प्रवेश द्वार पर रंगोली या कुमकुम से पैरों के निशान बने| क्या आपको पता है यह पैरों के निशान क्यों बनाये जाते हैं, अगर नहीं तो हमारे ज्योतिषाचार्य आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि हिन्दू धर्म व संस्कृति में घर के बाहर रंगोली बनाना अति आवश्यक होता है क्योंकि कुमकुम या रंगोली से बने पैरों के निशान शुभ शगुन माना जाता है|

आचार्य विजय कुमार बताते हैं कि शास्त्रों के अनुसार यह पैरों के निशान माता लक्ष्मी के माने जाते हैं, देवी के पैरों के निशान मुख्य द्वार के पास जमीन पर लगाना चाहिए। अगर घर के बाहर कुमकुम के छोटे-छोटे पैर बारह महीने बने रहें तो इसके भी अनेक लाभ होते हैं|

आपको बता दें कि अगर आपके घर के बाहर देवी लक्ष्मी के चरणों के निशान बने हैं तो इससे सभी देवी-देवताओं की शुभ दृष्टि हमारे घर और सदस्यों पर सदैव बनी रहती है। इसके आलावा अशुभ ग्रहों का बुरा प्रभाव भी कम होता है। इतना ही नहीं आपके घर पर किसी की बुरी नजर नहीं लगेगी और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है। 

इसलिए अगर आपके घर के बाहर माता लक्ष्मी के पैरों के निशान नहीं बने हैं तो आप भी बना लें क्योंकि इससे पॉजिटिव ऊर्जा मिलती है|