स्मृति ईरानी : सीरियल से संसद तक का सफर

सौंदर्य प्रसाधनों के प्रचार से लेकर मिस इंडिया प्रतियोगिता की प्रतिभागी और देश के टेलीविजन दर्शकों की लोकप्रिय 'बहू' से लेकर नरेंद्र मोदी सरकार में मंत्री बनीं 38 साल की स्मृति ईरानी का जीवन प्रसिद्धि और सफलता के त्वरित उत्थान की कहानी है।

स्मृति का राजनीतिक करियर साल 2003 में तब शुरू हुआ जब उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सदस्यता ग्रहण की और चांदनी चौक से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल से हार का सामना करना पड़ा, लेकिन वह टीवी चैनलों में पार्टी का मुख्य चेहरा बनी रहीं।

वर्ष 2014 के आम चुनाव में स्मृति ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी और आम आदमी पार्टी के नेता कुमार विश्वास के खिलाफ अमेठी संसदीय सीट से चुनाव लड़ा और उन्हें कड़ी चुनौती दी। यद्यपि वह चुनाव हार गईं, लेकिन अभिनेत्री से राजनेता बनीं स्मृति ने राज्यसभा की सदस्य होने के नाते शपथ ग्रहण कर अब मोदी सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय पाने के लिए तैयार हैं।

दिल्ली से ताल्लुक रखने वाली स्मृति ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था कि उन्होंने 10वीं के बाद पैसा कमाना शुरू कर दिया था और सौंदर्य प्रसाधन के प्रचार के लिए उन्हें 200 रुपये मिलते थे। रूढ़ीवादी पंजाबी-बंगाली परिवार की तीन बेटियों में से एक स्मृति ने सारी बंदिशें तोड़कर ग्लैमर जगत में कदम रखा। कामयाब हुईं तो भाजपा ने उनके जज्बे को सलाम किया।

उन्होंने 1998 में मिस इंडिया प्रतियोगिता में हिस्सा लिया, लेकिन फाइनल तक मुकाम नहीं बना पाईं। इसके बाद स्मृति ने मुंबई जाकर अभिनय के जरिए अपनी किस्मत बनाई। किस्मत उन पर मेहरबान भी थी और उन्होंने 'ऊह ला ला ला' की मेजबान के रूप में एक कड़ी में नीलम कोठारी का स्थान लिया। उन्हें यह कड़ी मिल गई और एकता कपूर को वह भा गईं जिसके बाद की कहानी एक इतिहास है।

एकता कपूर ने उन्हें टेलीविजन पर लंबे समय तक चले धारावाहिक 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' में तुलसी वीरानी का किरदार दिया जिसके बाद वह घर-घर की लोकप्रिय हुईं। छोटे पर्दे पर अच्छी बहू का किरदार करने वाली स्मृति ने अपने बचपन के मित्र जुबिन ईरानी से शादी की और दो बच्चों बेटा जौहर व बेटी जोइश की परवरिश करते हुए वास्तविक जिंदगी में भी इस भूमिका को अच्छे से निभा रही हैं।

इधर, राष्ट्रीय महासचिव से लेकर भाजपा महिला मोर्चा की अध्यक्ष बनने के बाद वह भाजपा की उपाध्यक्ष भी नियुक्त की गईं। पार्टी की अन्य कुछ सदस्य भी अभिनय की पृष्ठभूमि से आई हैं लेकिन यह स्मृति की स्पष्टवादिता व सहनशीलता ही है जो उन्हें सभी चुनौतियों के बीच आगे ले गई।

www.pardaphash.com

दिल्ली में प्रतिदिन 6 दुष्कर्म

दिल्ली पुलिस के आंकड़ों पर गौर करें, तो साल 2014 के शुरुआती चार महीनों में दिल्ली में प्रतिदिन दुष्कर्म के छह और छेड़छाड़ के 14 मामले दर्ज किए जाते रहे हैं। पुलिस ने हालांकि दावा किया है कि कुल मामलों में से 90 फीसदी को सुलझा लिया गया है और आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है।

दिल्ली पुलिस के एक दस्तावेज से यह खुलासा हुआ है कि 1 जनवरी से 30 अप्रैल तक की अवधि में दुष्कर्म के 616 और छेड़छाड़ के 1,336 मामले दर्ज हुए हैं। पिछले साल की तुलना में इन आंकड़ों में काफी बढ़ोतरी हुई है, क्योंकि इसी अवधि में पिछले साल दुष्कर्म का आंकड़ा 450 था।

छेड़छाड़ के आंकड़ों पर गौर करें तो इसमें भी काफी बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल यह आंकड़ा 1,000 के आसपास था। पुलिस का कहना है कि पहले चार महीनों में दर्ज दुष्कर्म और छेड़छाड़ के 89 फीसदी मामलों को सुलझा लिया गया और आरोपियों पर न्यायसंगत कार्रवाई हुई। साल 2013 की बात करें, तो दुष्कर्म के 1,559 जबकि छेड़छाड़ के 3,347 मामले दर्ज हुए। वहीं, 2012 में दुष्कर्म का आंकड़ा 680 और छेड़छाड़ का 653 था।

क्राइम ब्रांच के एसीपी अशोक चांद ने कहा कि महिलाओं के विरुद्ध हिंसा के मामले इस कारण ज्यादा दर्ज हो रहे हैं, क्योंकि पुलिस ने अपराधियों के विरुद्ध 'जीरो टॉलरेंस' नीति अपना ली है। यानी पहले भी वारदात काफी हो रहे थे, लेकिन पुलिस पर भरोसा कम होने के कारण पीड़िताएं मामला दर्ज कराने में दिलचस्पी नहीं रखती थीं। चांद ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले पुलिस प्राथमिकता के आधार पर दर्ज करती है।

एनसीआरबी, 2011 के आंकड़ों पर गौर करें, तो दिल्ली में दुष्कर्म के 568 मामले दर्ज किए गए, जो देश मे सबसे ज्यादा हैं। दूसरे पायदान पर मुंबई है, जहां इसी अवधि में 218 मामले दर्ज किए गए। गौरतलब है कि 2012 में दिल्ली में 23 साल की फीजियोथेरेपी की छात्रा 'निर्भया' के साथ छह लोगों द्वारा सामूहिक दुष्कर्म और इलाज के दौरान उसकी मौत के बाद दिल्ली को 'रेप कैपिटल' कहा जाने लगा है।

इस दर्दनाक घटना के बाद दिल्ली पुलिस ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई कदम उठाए। मगर इसका श्रेय उन हजारों युवाओं को मिलना चाहिए जिन्होंने अपने जज्बे से पुलिस-तंत्र और केंद्र सरकार को हिलाकर रख दिया। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि 90 फीसदी मामले में आरोपी पीड़िता के जानने वाले ही थे, जबकि अपरिचित लोगों द्वारा ऐसे कुकर्म करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम पाई गई है।

नाम न बताने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने बताया कि दुष्कर्म और छेड़छाड़ जैसे अपराध करने वाले आरोपी पीड़िता की जान-पहचान के ही होते हैं। ऐसे में अपराध पर लगाम लगाना पुलिस के लिए बेहद कठिन हो जाता है। महिलाओं की सुरक्षा के मद्देनजर उठाए गए कदमों की जानकारी देते हुए एसीपी वर्षा शर्मा ने कहा कि राजधानी के कुल 11 पुलिस जिलों में महिलाओं और बच्चों (एसपीयूजडब्ल्यूएसी) की सुरक्षा के लिए एक विशेष इकाई की तैनाती की गई है।

स्कूल और कॉलेजों की छात्राओं को लगातार आत्मरक्षा के गुर सिखाए जा रहे हैं। पुलिस को महिलाओं के प्रति जागरूकता के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। एसपीयूजडब्ल्यूएसी द्वारा आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में अभी तक कुल 860 पुलिस वाले भाग ले चुके हैं। इसके अलावा, महिलाओं की सहायता के लिए 24 घंटे मोबाइल महिला पुलिस की भी व्यवस्था की गई है। औसतन 30 कॉल हर रोज इस यूनिट को मिलते हैं। महिला पुलिस टीम को इस साल 30 अप्रैल तक कुल 11,439 मोबाइल कॉल भेजी गईं, जिन पर कार्रवाई कर टीम ने मामले सफलतापूर्वक सुलझाए।

www.pardaphash.com

अखंड सौभाग्य व सुहाग के लिए रखें वट सावित्री व्रत

हमारे देश में महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा के लिए तरह-तरह के व्रत करती हैं। वट सावित्री व्रत उनमें सबसे प्रमुख है| हर वर्ष सुहागिन महिलाओं द्वारा ज्येष्ठ मास की अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता है| इस बार ज्येष्ठ मास कृष्ण पक्ष की अमावस्या 28 मई दिन बुधवार को है। ऐसी मान्यता है कि वटवृक्ष की जडों में ब्रह्मा, तने में भगवान विष्णु व डालियों व पत्तियों में भगवान शिव का निवास स्थान है| इस व्रत में महिलाएं वट वृक्ष की पूजा करती हैं, सति सावित्री की कथा सुनने व वाचन करने से सौभाग्यवति महिलाओं की अखंड सौभाग्य की कामना पूरी होती है| 

ऐसे करें वट सावित्री व्रत और पूजन

सुहागन स्त्रियां वट सावित्री व्रत के दिन सोलह श्रृंगार करके सिंदूर, रोली, फूल, अक्षत, चना, फल और मिठाई से सावित्री, सत्यवान और यमराज की पूजा करें। यह व्रत करने वाली स्त्रियों को चाहिए कि वह वट के समीप जाकर जल का आचमन लेकर कहे-ज्येष्ठ मात्र कृष्ण पक्ष त्रयोदशी अमुक वार में मेरे पुत्र और पति की आरोग्यता के लिए एव जन्म-जन्मान्तर में भी मैं विधवा न होऊं इसलिए सावित्री का व्रत करती हूं। वट के मूल में ब्रह्म, मध्य में जर्नादन, अग्रभाग में शिव और समग्र में सावित्री है। हे वट! अमृत के समान जल से मैं तुमको सींचती हूं। ऐसा कहकर भक्तिपूर्व एक सूत के डोर से वट को बांधे और गंध, पुष्प तथा अक्षत से पूजन करके वट एवं सावित्री को नमस्कार कर प्रदक्षिणा करे|

वट सवित्री व्रत कथा

प्राचीनकाल में मद्रदेश में अश्वपति नाम के एक राजा राज्य करते थे। वे बड़े धर्मात्मा, ब्राह्मणभक्त, सत्यवादी और जितेन्द्रिय थे। राजा को सब प्रकार का सुख था, किन्तु कोई सन्तान नहीं थी। इसलिये उन्होंने सन्तान प्राप्ति की कामना से अठारह वर्षों तक पत्नि सहित सावित्री देवी का विधि पूर्वक व्रत तथा पूजन कठोर तपस्या की। सर्वगुण देवी सावित्री ने प्रसन्न होकर पुत्री के रूप में अश्वपति के घर जन्म लेने का वर दिया। यथासमय राजा की बड़ी रानी के गर्भ से एक परम तेजस्विनी सुन्दर कन्या ने जन्म लिया। राजा ने उस कन्या का नाम सावित्री रखा। राजकन्या शुक्ल पक्षके चन्द्रमा की भाँति दिनों-दिन बढ़ने लगी। धीरे-धीरे उसने युवावस्था में प्रवेश किया। उसके रूप-लावण्य को जो भी देखता उसपर मोहित हो जाता।

कन्या के युवा होने पर अश्वपति ने सावित्री के विवाह का विचार किया । राजा के विशेष प्रयास करने पर भी सावित्री के योग्य कोई वर नहीं मिला। उन्होंने एक दिन सावित्री से कहा—‘बेटी ! अब तुम विवाह के योग्य हो गयी हो, इसलिये स्वयं अपने योग्य वर की खोज करो।’ पिताकी आज्ञा स्वीकार कर सावित्री योग्य मन्त्रियों के साथ स्वर्ण-रथपर बैठकर यात्रा के लिये निकली। कुछ दिनों तक ब्रह्मर्षियों और राजर्षियों के तपोवनों और तीर्थोंमें भ्रमण करने के बाद वह राजमहल में लौट आयी। उसने पिता के साथ देवर्षि नारद को बैठे देखकर उन दोनों के चरणों में श्रद्धा से प्रणाम किया। महाराज अश्वपति ने सावित्री से उसी यात्रा का समाचार पूछा सावित्री ने कहा—पिताजी ! तपोवन में अपने माता-पिता के साथ निवास कर रहे द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान् सर्वथा मेरे योग्य हैं। अतः सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें मैंने पति रूप में वरण कर लिया है | ’ नारद जी सत्यवान तथा सावित्री के ग्रहो की गणना कर राजा अश्वति से बोले—‘राजन ! सावित्री ने बहुत बड़ी भूल कर दी है। सत्यवान् के पिता शत्रुओं के द्वारा राज्य से वंचित कर दिये गये हैं, वे वन में तपस्वी जीवन व्यतीत कर रहे हैं और अन्धे हो चुके हैं। सबसे बड़ी कमी यह है कि सत्यवान् की आयु अब केवल एक वर्ष ही शेष है। और सावित्री के बारह वर्ष की आयु होने पर सत्यवान कि मृत्यु हो जायेगी ।’

नारदजी की बात सुनकर राजा अश्वपति व्यग्र हो गये। उन्होंने सावित्री से कहा—‘बेटी ! अब तुम फिर से यात्रा करो और किसी दूसरे योग्य वर का वरण करो।’ 

सावित्री सती थी। उसने दृढ़ता से कहा—‘पिताजी ! आर्य कन्या होने के नाते जब मै सत्यवान का वरण कर चुकी हूँ तो अब सत्यवान् चाहे अल्पायु हों या दीर्घायु, अब तो वही मेरे पति बनेगें। जब मैंने एक बार उन्हें अपना पति स्वीकार कर लिया, फिर मैं दूसरे पुरुषका वरण कैसे कर सकती हूँ ?’

सावित्री का निश्चय दृढ़ जानकर महाराज अश्वपति ने उसका विवाह सत्यवान् से कर दिया।सावित्री ने नारदजी से सत्यवान की मृत्यु का समय ज्ञातकर लिया तथा अपने श्वसुर परिवार के साथ जंगल मे रहने लगी । धीरे-धीरे वह समय भी आ पहुँचा, जिसमें सत्यवान् की मृत्यु निश्चित थी। सावित्री ने नादरजी द्वारा बताय हुये दिन से तीन दिन पूर्व से ही निराहार व्रत रखना शुरू कर दिया था। नारद द्वारा निश्चित तिथि को पति एवं सास-ससुर की आज्ञा से सावित्री भी उस दिन पति के साथ जंगल में फल-मूल और लकड़ी लेने के लिये गयी। सत्यवान वन में पहुँचकर लकडी काटने के लिए बड के पेड पर चढा । अचानक वृक्ष से लकड़ी काटते समय सत्यवान् के सिर में भंयकर पीडा होने लगी और वह पेड़ से नीचे उतरा। सावित्री ने उसे बड के पेड के नीचे लिटा कर उसका सिर अपनी गोद में रख लिया (कही-कही ऐसा भी उल्लेख मिलता हैं कि वट वृक्ष के नीचे लेटे हुए सत्यवान को सर्प ने डस लिया था) । उसी समय सावित्री को लाल वस्त्र पहने भयंकर आकृति वाला एक पुरुष दिखायी पड़ा। वे साक्षात् यमराज थे। यमराज ने ब्रम्हा के विधान के रूप रेखा सावित्री के सामने स्पष्ट की और सावित्री से कहा—‘तू पतिव्रता है। तेरे पति की आयु समाप्त हो गयी है। मैं इसे लेने आया हूँ।’ इतना कहकर देखते ही देखते यमराज ने सत्यवान के शरीर से सूक्ष्म जीवन को निकाला और सत्यवान के प्राणो को लेकर वे दक्षिण दिशा की ओर चल दिये। सावित्री भी सत्यावान को वट वृक्ष के नीचे ही लिटाकर यमराज के पीछे पीछे चल दी । पीछे आती हुई सावित्री को यमराज ने उसे लौट जाने का आदेश दिया । इस पर वह बोली महराज जहा पति वही पत्नि । यही धर्म है, यही मर्यादा है । सावित्री की बुद्धिमत्ता पूर्ण और धर्मयुक्त बाते सुनकर यमराज का हृदय पिघल गया। सावित्री के धर्म निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज बोले पति के प्राणो से अतिरिक्त कुछ भी माँग लो । सावित्री ने यमराज से सास-श्वसुर के आँखो ज्योती और दीर्घायु माँगी । यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ गए सावित्री भी यमराज का पीछा करते हुये रही । यमराज ने अपने पीछे आती सावित्री से वापिस लौटे जाने को कहा तो सावित्री बोली पति के बिना नारी के जीवन के कोई सार्थकता नही । यमराज ने सावित्री के पति व्रत धर्म से खुश होकर पुनः वरदान माँगने के लिये कहा इस बार उसने अपने श्वसुर का राज्य वापिस दिलाने की प्रार्थना की । तथास्तु कहकर यमराज आगे चल दिए सावित्री अब भी यमराज के पीछे चलती रही इस बार सावित्री ने सौ पुत्रो का वरदान दिया है, पर पति के बिना मैं पुत्रो का वरदान दिया है पर पति के बिना मैं माँ किस प्रकार बन सकती हूँ, अपना यह तीसरा वरदान पूरा कीजिए। सावित्री की धर्मनिष्ठा,ज्ञान, विवेक तथा पतिव्रत धर्म की बात जानकर यमराज ने सत्यवान के प्राणो को अपने पाश से स्वतंत्र कर दिया । सावित्री सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुँची जहाँ सत्यवान के प्राण को लेकर वट वृक्ष के नीचे पहुँची जहाँ सत्यवान का मृत शरीर रखा था । सावित्री ने वट वृक्ष की परिक्रमा की तो सत्यवान जीवित हो उठा । प्रसन्नचित सावित्री अपने सास-श्वसुर के पास पहुँची तो उन्हे नेत्र ज्योती प्राप्त हो गई इसके बाद उनका खोया हुआ राज्य भी उन्हे मिल गया आगे चलकर सावित्री सौ पुत्रो की माता बनी ।

इस प्रकार सावित्री ने सतीत्व के बल पर न केवल अपने पति को मृत्यु के मुख से छीन लिया बल्कि पतिव्रत धर्म से प्रसन्न कर यमराज से सावित्री ने अपने सास-ससुर की आँखें अच्छी होने के साथ राज्यप्राप्त का वर, पिता को पुत्र-प्राप्ति का वर और स्वयं के लिए पुत्रवती होने के आशीर्वाद भी ले लिया। तथा इस प्रकार चारो दिशाएँ सावित्री के पतिव्रत धर्म के पालन की कीर्ति से गूँज उठी ।

www.pardaphash.com

बॉलीवुड मोहिनी माधुरी दीक्षित के जन्मदिन पर विशेष.....


सिल्वर स्क्रीन पर अपने अभिनय, अपनी दिलकश अदाओं, खूबसूरत मुस्कराहट से दर्शकों को दीवाना बनाने वाली माधुरी दीक्षित 15 मई को अपना 47वां जन्‍मदिन मना रही हैं। गौरतलब है कि 15 मई 1967 में मुबई के मराठी परिवार में जन्मी माधुरी दीक्षित की इच्छा डॉक्टर बनने की थी लेकिन उनकी किस्मत उन्हे फ़िल्मी दुनिया मे ले आयी। वर्ष 1984 में राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म 'अबोध' से अपना फिल्मी करियर की शुरुआत की लेकिन फ़िल्म कुछ सफल नही रही। लेकिन 1988 में प्रदर्शित फिल्म तेजाब ने उन्हें बॉलीवुड का चमकता सितारा बना दिया। 

'तेजाब' के बाद माधुरी का कैरियर बुलंदियों के तरफ चल निकला 'राम लखन', 'परिंदा', 'त्रिदेव', 'किशन कन्हैया', 'बेटा', 'प्रहार' जैसी लगातार कई सुपरहिट फिल्मों ने माधुरी को बॉलीवुड की नंबर वन हीरोइन बना दिया। वर्ष 1990 आई रोमांटिक फिल्म 'दिल' में वह आमिर खान के साथ पर्दे पर नजर आयीं। इस फिल्‍म के लिए उन्हें बेस्ट एक्ट्रेस का फिल्म फेयर अवार्ड मिला। इस फिल्म के गाने भी जबर्दस्त हिट हुए। जबकि राजश्री प्रोडक्‍शन की फिल्‍म ‘हम आपके हैं कौन’ की निशा के लिए लिए भी माधुरी को वर्ष 1995 में फिल्‍मफेयर पुरस्‍कार मिला। माधुरी की 'बेटा', 'खेल', 'खलनायक', 'हम आपके हैं कौन' जैसी फिल्मों ने माधुरी दीक्षित को ऐसी अभिनेत्री क दर्जा दिल दिया जिसका कोई मुक़ाबला नहीं था। इन फिल्मों में माधुरी ने अलग-अलग तरह की भूमिका की। और अपने हुनर से सबको हैरान कर दिया। 

वर्ष 1997 में आई उनकी आखिरी सुपरहिट फ़िल्म दिल तो पागल है के बाद वर्ष 1999 में माधुरी ने अमेरिका में काम कर रहे भारतीय मूल के डॉक्‍टर श्रीराम नेने से शादी कर ली माधुरी और श्रीराम नेने के दो बेटे हैं। उनके उपलब्धियों की लिस्ट लम्बी है। वर्ष 2000 में माधुरी को एक्ट्रेस ऑफ द मिलेनियम चुना गया। गिनिज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के मिलेनियम वर्जन में उन्हें सबसे ज्यादा मेहनताना पाने वाली भारतीय अभिनेत्री माना गया। वर्ष 2008 में माधुरी को भारत सरकार ने पद्म श्री पुरस्‍कार ने नवाजा। फिल्म इंडस्ट्री में 25 साल पूरे करने पर 2011 में उन्हें फिल्मफेयर स्पेशल अवॉर्ड से भी नवाजा गया। उन्हें कुल 11 मुख्य अवॉर्ड मिले और 26 बार उन्हें अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट किया गया। 

शादी के बाद माधुरी दीक्षित फिल्मों में फिर सक्रिय हुईं। माधुरी ने 'गजगामिनी' जैसी चर्चित फिल्म मे काम किया। 'गजगामिनी' ने बॉक्स ऑफिस पर कोई बहुत अच्छा कारोबार नहीं किया। उसके बाद 'लज्‍जा', 'हम तुम्हारे हैं सनम', 'देवदास' जैसी फिल्में कीं। उसके बाद एक लम्बे अंतराल तक अपने घर-परिवार में समय देने के बाद वर्ष 2007 में 'आजा नचले' फिल्म से माधुरी दीक्षित ने एक बार फिर से फिल्मों से वापसी की। माधुरी ने पिछले वर्ष प्रदर्शित फिल्म ये जवानी है दीवानी से इंडस्ट्री में कम बैक किया है। माधुरी की इस वर्ष 'डेढ़ इश्किया' और' गुलाब गैंग' जैसी फिल्मे प्रदर्शित हुयी है। 

बुद्ध पूर्णिमा कल, इस तरह करें भगवान बुद्ध की पूजा

बुद्ध पूर्णिमा बौद्ध धर्म में आस्था रखने वालों का एक प्रमुख त्यौहार है। इसे बुद्ध जयन्ती के नाम से भी जाना जाता है| बुद्ध जयन्ती वैशाख पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। इस बार बुद्ध पूर्णिमा 14 मई को मनाई जा रही है| पूर्णिमा के दिन ही गौतम बुद्ध का स्वर्गारोहण समारोह भी मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान बुद्ध को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी। आज बौद्ध धर्म को मानने वाले विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग इस दिन को बड़ी धूमधाम से मनाते हैं।

बुद्द पूर्णिमा का महत्व-

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार महात्मा बुद्ध को भगवान विष्णु का तेइसवां अवतार माना गया है| इस दिन लोग व्रत-उपवास रखते हैं| इस दिन बौद्ध मतावलंबी श्वेत वस्त्र धारण करते हैं तथा बौद्ध विहारों व मठों में एकत्रित होकर सामूहिक उपासना करते हैं व दान दिया जाता है| बौद्ध और हिंदू दोनों ही धर्मो के लोग बुद्ध पूर्णिमा को बहुत श्रद्धा के साथ मनाते हैं| बुद्ध पूर्णिमा का पर्व बुद्ध के आदर्शों व धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है| संपूर्ण विश्व में मनाया जाने वाला यह पर्व सभी को शांति का संदेश देता है|

दुनियाभर से बौद्ध धर्म के अनुयायी बोधगया आते हैं और प्रार्थनाएँ करते हैं तथा बोधिवृक्ष की पूजा करते हैं उसकी शाखाओं पर रंगीन ध्वज सजाए जाते हैं वृक्ष पर दूध व सुगंधित पानी डाला जाता है और उसके पास दीपक जलाए जाते है| श्रीलंका में इस पर्व को 'वेसाक' पर्व के नाम से जाना जाता है| इस दिन दीपक जलाए जाते हैं और फूलों से घरों को सजाया जाता है| बौद्ध धर्म के धर्मग्रंथों का निरंतर पाठ किया जाता है| इस दिन किए गए अच्छे कार्यों से पुण्य की प्राप्ति होती है|

महात्मा बुद्ध की कथा-

गौतम बुद्ध का मूल नाम 'सिद्धार्थ' था इन्हें ‘बुद्ध', 'महात्मा बुद्ध' आदि नामों से भी जाना जाता है| यह बौद्ध धर्म के संस्थापक हुए. बौद्ध धर्म भारत की श्रमण परंपरा से निकला धर्म और दर्शन है तथा संपूर्ण विश्व के चार बड़े धर्मों में से एक है| गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन और माता जी का नाम महामाया था| राज घराने में जन्में सिद्धार्थ के विषय में इनके पिता राजा शुद्धोधन को विद्वानों द्वारा बताया गया था कि युवराज सिद्धार्थ या तो एक महान राजा बनेंगे, या एक महान साधु बनेगें साथ ही यह भी भविष्यवाणी की कि युवराज सिद्धार्थ को किसी भी प्रकार के दुख को न देखने दिया जाए इनका कभी भी बूढे, रोगी, मृतक और सन्यासी से सामना न हो तभी यह राज्य कर पाएंगे|

इस भविष्यवाणी को सुनकर राजा शुद्धोधन ने अपनी सामर्थ्य की हद तक सिद्धार्थ को दुख से दूर रखने की कोशिश की तथा सांसारिक बंधन में पूर्ण रूप से बांधने के लिए इनका विवाह यशोधरा जी के साथ कर दिया गया| परंतु जब सिद्धार्थ ने एक बार एक वृद्ध विकलांग व्यक्ति, एक रोगी, एक पर्थिव शरीर, और एक साधु समेत इन चार दृश्यों को एक साथ देखा तो उनके मन में जीवन के सत्य को जानने की जिज्ञासा उत्पन्न हुई और एक रात्रि सिद्धार्थ अपना सब कुछ छोड़कर सत्य की खोज में निकल पडे व एक साधु का जीवन अपना लिया. उन्होंने कठिन तप किया तथा अंत में महावरिक्ष के नीचे आठ दिन तक स्माधिवस्था में वैशाख पूर्णिमा के दिन उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई यहीं से सिद्धार्थ गौतम बुद्ध कहलाए|

बुद्ध पूर्णिमा को बैशाख माह का अंतिम स्नान-

वैसे तो प्रत्येक माह की पूर्णिमा श्री हरि विष्णु भगवान को समर्पित होती है। शास्त्रों में पूर्णिमा को तीर्थ स्थलों में गंगा स्नान का विशेष महत्व बताया गया है। बैशाख पूर्णिमा का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि इस पूर्णिमा को भाष्कर देव अपनी उच्च राशि मेष में होते हैं और चंद्रमा भी उच्च राशि तुला में। संयोगवश इस बार पूर्णिमा को स्वाती नक्षत्र का योग भी है।

शास्त्रों में पूरे बैशाख माह में गंगा स्नान का महत्व बताया गया है। शास्त्रों में यह भी वर्णित है कि पूर्णिमा का स्नान करने से पूरे बैशाख माह के स्नान के बराबर पुण्य मिलता है।

WWW.PARDAPHASH.COM

नृसिंह जयंती आज, इस तरह करें भगवान नृसिंह को प्रसन्न

वैसाख के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को नृसिंह जयंती के रूप में मनाया जाता है| इस बार नृसिंह जयंती 13 मई दिन मंगलवार को मनाई जाएगी| पुराणों में वर्णित कथाओं के अनुसार इसी पावन दिवस को भक्त प्रहलाद की रक्षा करने के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह रूप में अवतार लिया था. जिस कारणवश यह दिन भगवान नृसिंह के जयंती रूप में बड़े ही धूमधाम और हर्सोल्लास के साथ मनाया जाता है|

व्रत विधि-

इस दिन स्नानादि करे संपूर्ण घर की साफ-सफाई करें। इसके बाद गंगा जल या गौमूत्र का छिड़काव कर पूरा घर पवित्र करें।

नृसिंह देवदेवेश तव जन्मदिने शुभे।
उपवासं करिष्यामि सर्वभोगविवर्जितः॥

इस मंत्र के साथ इस मंत्र के साथ दोपहर के समय क्रमशः तिल, गोमूत्र, मृत्तिका और आँवला मलकर पृथक-पृथक चार बार स्नान करें। इसके बाद शुद्ध जल से स्नान करना चाहिए। पूजा के स्थान को गोबर से लीपकर तथा कलश में तांबा इत्यादि डालकर उसमें अष्टदल कमल बनाना चाहिए। अष्टदल कमल पर सिंह, भगवान नृसिंह तथा लक्ष्मीजी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए। तत्पश्चात वेदमंत्रों से इनकी प्राण-प्रतिष्ठा कर षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। दूसरे दिन फिर पूजन कर ब्राह्मणों को भोजन कराएँ।

कथा-

जब- जब पृथ्वीलोक पर असुरों का पाप बढ़ा तब-तब भगवान ने अवतार लिया| आपको बता दें कि नृसिंह अवतार भगवान विष्णु के प्रमुख अवतारों में से एक है| नरसिंह अवतार में भगवान विष्णु ने आधा मनुष्य व आधा शेर का शरीर धारण करके दैत्यों के राजा हिरण्यकशिपु का वध किया था|

प्राचीन काल में कश्यप नामक ऋषि हुए थे उनकी पत्नी का नाम दिति था| उनके दो पुत्र हुए, जिनमें से एक का नाम हरिण्याक्ष तथा दूसरे का हिरण्यकशिपु था| हिरण्याक्ष को भगवान श्री विष्णु ने पृथ्वी की रक्षा हेतु वाराह रूप धरकर मार दिया था| अपने भाई कि मृत्यु से दुखी और क्रोधित हिरण्यकशिपु ने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए अजेय होने का संकल्प किया| सहस्त्रों वर्षों तक उसने कठोर तप किया, उसकी तपस्या से प्रसन्न हो ब्रह्माजी ने उसे 'अजेय' होने का वरदान दिया| वरदान प्राप्त करके उसने स्वर्ग पर अधिकार कर लिया, लोकपालों को मार भगा दिया और स्वत: सम्पूर्ण लोकों का अधिपति हो गया|

देवता निरूपाय हो गए थे वह असुर को किसी प्रकार वे पराजित नहीं कर सकते थे अहंकार से युक्त वह प्रजा पर अत्याचार करने लगा| इसी दौरान हिरण्यकशिपु कि पत्नी कयाधु ने एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया एक राक्षस कुल में जन्म लेने पर भी प्रह्लाद में राक्षसों जैसे कोई भी दुर्गुण मौजूद नहीं थे तथा वह भगवान नारायण का भक्त था तथा अपने पिता के अत्याचारों का विरोध करता था| भगवान-भक्ति से प्रह्लाद का मन हटाने और उसमें अपने जैसे दुर्गुण भरने के लिए हिरण्यकशिपु ने बहुत प्रयास किए, नीति-अनीति सभी का प्रयोग किया किंतु प्रह्लाद अपने मार्ग से विचलित न हुआ तब उसने प्रह्लाद को मारने के षड्यंत्र रचे मगर वह सभी में असफल रहा| भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद हर संकट से उबर आता और बच जाता था|

इस बातों से क्षुब्ध हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी बहन होलिका की गोद में बैठाकर जिन्दा ही जलाने का प्रयास किया| होलिका को वरदान था कि अग्नि उसे नहीं जला सकती परंतु जब प्रल्हाद को होलिका की गोद में बिठा कर अग्नि में डाला गया तो उसमें होलिका तो जलकर राख हो गई किंतु प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ|

इस घटना को देखकर हिरण्यकशिपु क्रोध से भर गया उसकी प्रजा भी अब भगवान विष्णु को पूजने लगी, तब एक दिन हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से पूछा कि बता, तेरा भगवान कहाँ है? इस पर प्रह्लाद ने विनम्र भाव से कहा कि प्रभु तो सर्वत्र हैं, हर जगह व्याप्त हैं| क्रोधित हिरण्यकशिपु ने कहा कि 'क्या तेरा भगवान इस स्तम्भ में भी है? प्रह्लाद ने हाँ, में उत्तर दिया|

यह सुनकर क्रोधांध हिरण्यकशिपु ने खंभे पर प्रहार कर दिया तभी खंभे को चीरकर श्री नृसिंह भगवान प्रकट हो गए और हिरण्यकशिपु को पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ डाला और उसका वध कर दिया| श्री नृसिंह ने प्रह्लाद की भक्ति से प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा अत: इस कारण से दिन को नृसिंह जयंती-उत्सव के रूप में मनाया जाता है|

WWW.PARDAPHASH.COM

परशुराम जयंती आज, जानिए परशुराम से जुड़ी कुछ रोचक जानकारियां

भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र और विष्णु के अवतार परशुराम की जयन्ती इस बार 1 मई को है| बताया जाता है कि इन्हें शिव से विशेष परशु प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार, जो वामन एवं रामचन्द्र के मध्य में गिने जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये जामदग्न्य भी कहे जाते हैं। इनका जन्म अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया) को हुआ था। अत: इस दिन व्रत करने और उत्सव मनाने की प्रथा है। परम्परा के अनुसार इन्होंने क्षत्रियों का अनेक बार विनाश किया। क्षत्रियों के अहंकारपूर्ण दमन से विश्व को मुक्ति दिलाने के लिए इनका जन्म हुआ था।

परशुराम का जन्म-

प्राचीनकाल में कन्नौज नामक नगर में गाधि नामक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्‍चात् वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्‍वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। "इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु जी ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया। इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योगशक्‍ति से भृगु जी को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगा। इस पर सत्यवती ने भृगु जी से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु जी ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। "समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस और परशुराम।

परशुराम ने अपने जीवनकाल में किये थे अनेक यज्ञ- 

परशुराम ने अपने जीवनकाल में अनेक यज्ञ किए। यज्ञ करने के लिए उन्होंने बत्तीस हाथ ऊँची सोने की वेदी बनवायी थी। महर्षि कश्यप ने दक्षिण में पृथ्वी सहित उस वेदी को ले लिया तथा फिर परशुराम से पृथ्वी छोड़कर चले जाने के लिए कहा। परशुराम ने समुद्र पीछे हटाकर गिरिश्रेष्ठ महेंद्र पर निवास किया।

मातृ-पितृ भक्त थे परशुराम-

श्रीमद्भागवत में दृष्टांत है कि गंधर्वराज चित्ररथ को अप्सराओं के साथ विहार करता देख हवन हेतु गंगा-तट पर जल लेने गई माता रेणुका आसक्त हो गई। तब हवन-काल व्यतीत हो जाने से क्रुद्ध मुनि जमदग्निने पत्नी के आर्य मर्यादा विरोधी आचरण एवं मानसिक व्यभिचारवश पुत्रों को माता का वध करने की आज्ञा दी।

अन्य भाइयों द्वारा साहस न कर पाने पर पिता के तपोबल से प्रभावित परशुराम ने उनकी आज्ञानुसार माता का शिरोच्छेदन एवं समस्त भाइयों का वध कर डाला, और प्रसन्न जमदग्नि द्वारा वर मांगने का आग्रह किए जाने पर सभी के पुनर्जीवित होने एवं उनके द्वारा वध किए जाने संबंधी स्मृति नष्ट हो जाने का ही वर मांगा।

क्रोधी स्वभाव वाले थे परशुराम- 

दुर्वासा की भाँति ये भी अपने क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात है। एक बार कार्त्तवीर्य ने परशुराम की अनुपस्थिति में आश्रम उजाड़ डाला था, जिससे परशुराम ने क्रोधित हो उसकी सहस्त्र भुजाओं को काट डाला। कार्त्तवीर्य के सम्बन्धियों ने प्रतिशोध की भावना से जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन कर दिया और पाँच झीलों को रक्त से भर दिया। अंत में पितरों की आकाशवाणी सुनकर उन्होंने क्षत्रियों से युद्ध करना छोड़कर तपस्या की ओर ध्यान लगाया।

परशुराम ने ली थी राम के पराक्रम की परीक्षा-

बताया जाता है कि परशुराम राम का पराक्रम सुनकर वे अयोध्या गये। दशरथ ने उनके स्वागतार्थ रामचन्द्र को भेजा। उन्हें देखते ही परशुराम ने उनके पराक्रम की परीक्षा लेनी चाही। अतः उन्हें क्षत्रियसंहारक दिव्य धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने के लिए कहा। राम के ऐसा कर लेने पर उन्हें धनुष पर एक दिव्य बाण चढ़ाकर दिखाने के लिए कहा। राम ने वह बाण चढ़ाकर परशुराम के तेज पर छोड़ दिया। बाण उनके तेज को छीनकर पुनः राम के पास लौट आया। राम ने परशुराम को दिव्य दृष्टि दी। जिससे उन्होंने राम के यथार्थ स्वरूप के दर्शन किये। परशुराम एक वर्ष तक लज्जित, तेजहीन तथा अभिमानशून्य होकर तपस्या में लगे रहे। तदनंतर पितरों से प्रेरणा पाकर उन्होंने वधूसर नामक नदी के तीर्थ पर स्नान करके अपना तेज पुनः प्राप्त किया।

भगवान परशुराम को पृथ्वी को अत्याचारियों से मुक्त करवाने वाला अत्याचार का अंत करने वाला महापुरुष मन जाता है, इसीलिए उनके जन्मदिन पर विशेष आयोजन कर उन्हें श्रद्धा पूर्वक याद किया जाता है|

45 के हुए अजय देवगन, जानिए उनसे जुड़ी कुछ ख़ास बातें

फिल्म 'फूल और कांटे' से बॉलीवुड में एंट्री कर कामयाबी की चमक बरकरार रखने वाले फिल्मस्टार अजय देवगन आज 45 साल के हो गये हैं| अपनी आँखों से सब कुछ बयान कर देने वाले अजय बिन किसी हंगामे के दर्शकों के आज भी चेहते स्टार हैं|

फ़िल्मी दुनिया के स्टार अजय देवगन का असली नाम विशाल देवगन है| उनका जन्म दिल्ली में 2 अप्रैल, 1969 को हुआ था| अजय के पिता वीरू देवगन हिंदी फिल्मों के नामी स्टंटमैन थे, जबकि उनकी मां वीना देवगन ने एक-दो फिल्मों का निर्माण किया था| बचपन से ही पिता के साथ सेट्स पर जाते-जाते अजय ने भी फिल्मी दुनिया में आने का मन बना लिया| उन्होंने मुंबई में अपनी पढ़ाई पूरी की|

अजय ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1991 में फिल्म 'फूल और कांटे' से की थी| अपनी पहली फिल्म के लिए उन्होंने 'बेस्ट मेल डेब्यू' का फिल्मफेयर अवॉर्ड हासिल किया| इसके बाद उन्होंने वर्ष 1992 में “जिगर” फिल्म में काम किया जो एक हिट फिल्म साबित हुई| वर्ष 1994 तो अजय देवगन के लिए सबसे अच्छा साल साबित हुआ| इस वर्ष अजय देवगन ने तीन हिट फिल्में दीं, जिनमें 'दिलवाले', 'सुहाग' और 'दिलजले' शामिल थीं| वर्ष 1999 में उन्होंने 'प्यार तो होना ही था' और 'जख्म' जैसी फिल्में की| “जख्म” के लिए उन्होंने पहली बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीता|

वर्ष 1995 में आई फिल्म “हलचल” में पहली बार काजोल और अजय की जोड़ी फ़िल्मी पर्दे पर नज़र आई| इस फिल्म के बाद दोनों ने एक साथ कई फिल्में की जो बेहद हिट रहीं जैसे ‘इश्क’, ‘प्यार तो होना ही था’, ‘दिल क्या करे’, ‘राजू चाचा’ और ‘यू मी और हम’|

फ़िल्मी पर्दे पर एक-दूसरे का साथ निभाते-निभाते काजोल और अजय इतने नज़दीक आ गये कि वर्ष 1999 में दोनों ने शादी कर ली| कहा जा सकता है की शादी के बाद का समय अजय के लिए खुशियां लेकर आया| उनके लिए वर्ष 2010 सफल रहा| 'गोलमाल 3', 'राजनीति', 'ऑल द बेस्ट', 'वन्स अपॉन ए टाइम इन मुंबई' जैसी फिल्मों ने उन्हें 2010 का सबसे कमाऊ कलाकार बना दिया था|

जैसी तेरी सूरत, वैसा मेरा जवाब!

दागी, बागी, बाहुबली और भ्रष्टों के खिलाफ वोटिंग मशीन में नोटा (इनमें से कोई नहीं) की मिली शक्ति के कारण ऐसे दागी, बागी और दलबदलू प्रत्याशियों की धड़कनें तेज हैं। चुनाव में पहली बार इस्तेमाल किए जा रहे 'राइट टू रिजेक्ट' की ताकत से मतदाता बेहद खुश हैं। इस ताकत के प्रयोग की मतदान में प्रबल संभावना है। नेताओं की हर चालों से ऊब चुका मतदाता इस अधिकार से प्रत्याशियों को सबक सिखा सकता है। माना जा रहा है कि राइट टू रिजेक्ट से वोटिंग प्रतिशत बढ़ेगा।

मतदान में नोटा के रूप में मिली इस ताकत का प्रभाव मतदाताओं पर साफ दिख भी रहा है। मतदाता इस बार अधिक संख्या में पोलिंग स्टेशन तक जाने को तैयार हैं। अब तक मतदाता इन बातों पर विचार करता था कि किन पार्टियों से बेदाग छवि के लोग हैं, ईमानदार और कर्मठ प्रत्याशी कौन है, संसद में वह हमारी बात को कैसे रखेगा। लेकिन किसी भी प्रत्याशी के इन मुद्दों पर खरा नहीं उतरने पर मतदाताओं की रूचि मतदान में खत्म होने लगी थी, जिससे मतदान प्रतिशत घटता था।

अब नोटा बटन ने उस वर्ग को मतदान की ओर आकर्षित किया है, जो कसौटी पर खरा न उतरने वाले प्रत्याशियों को देखकर मतदान ही करने नहीं जाते थे। सीतापुर की दोनों संसदीय सीट से दलबदलू एक-दूसरे को आमने-सामने की टक्कर दे रहे हैं। बार-बार पार्टियां बदलने वाले प्रत्याशियों का जनता में खासा विरोध है। अभी तक इन्हीं में से किसी एक को वोट देना मजबूरी बन जाती थी, लेकिन अब नोटा विकल्प से मतदाताओं की बाछें खिल गई हैं।

व्यंग्यकार कवि शांति शरण मिश्र इस पर बेबाक टिप्पणी करते हैं। वह कहते हैं कि नोटा के विकल्प से मतदाता को पहली बार शक्ति मिली है। वह दागदार बाहुबलियों को नकार देगा जो दागी प्रत्याशी और उनको प्रत्याशी बनाने वाली पार्टी दोनों को आईना दिखाएगा यानी 'जैसी तेरी सूरत वैसा मेरा जवाब।' उन्होंने कहा कि यह राजनीतिज्ञों को सचेत करेगा कि वे सुधरें और स्वच्छ छवि के प्रत्याशी चुनाव में उतारें जिससे लोकतंत्र मजबूत हो। उनका यह भी कहना है कि नोटा के वोटों की गणना भी की जानी चाहिए। 

www.pardaphash.com

माँ भगवती की उपासना का पर्व है नवरात्रि

हमारे वेद, पुराण व शास्त्र साक्षी हैं कि जब-जब किसी आसुरी शक्तियों ने अत्याचार व प्राकृतिक आपदाओं द्वारा मानव जीवन को तबाह करने की कोशिश की तब-तब किसी न किसी दैवीय शक्तियों का अवतरण हुआ। इसी प्रकार जब महिषासुरादि दैत्यों के अत्याचार से भू व देव लोक व्याकुल हो उठे तो परम पिता परमेश्वर की प्रेरणा से सभी देवगणों ने एक अद्भुत शक्ति का सृजन किया जो आदि शक्ति मां जगदंबा के नाम से सम्पूर्ण ब्रह्मांड में व्याप्त हुईं। उन्होंने महिषासुरादि दैत्यों का वध कर भू व देव लोक में पुनःप्राण शक्ति व रक्षा शक्ति का संचार कर दिया। शक्ति की परम कृपा प्राप्त करने हेतु संपूर्ण भारत में नवरात्रि का पर्व बड़ी श्रद्धा, भक्ति व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्रि 31 मार्च से प्रारम्भ हैं|

नवरात्रि का अर्थ होता है, नौ रातें। हिन्दू धर्मानुसार यह पर्व वर्ष में दो बार आता है। एक शरद माह की नवरात्रि और दूसरी बसंत माह की| इस पर्व के दौरान तीन प्रमुख हिंदू देवियों- पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ स्वरुपों श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री का पूजन विधि विधान से किया जाता है | जिन्हे नवदुर्गा कहते हैं।

नव दुर्गा-

श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री हैं। पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इसके आलावा श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री ब्रह्मचारिणी का हैं। यहां ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या की थी। अतः ये तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। नवरात्रि के तृतीय दिन इनका पूजन और अर्चना किया जाता है। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा हैं। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा जाता है। नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। श्री कूष्मांडा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता हैं। श्री स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाती हैं। श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी। महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति ने उनके यहां पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिए वे कात्यायनी कहलाती हैं। नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है। श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं। इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिए ये महागौरी कहलाती हैं। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन किया जाता है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती है।

नवरात्रि व्रत की कथा-

नवरात्रि व्रत की कथा के बारे प्रचलित है कि पीठत नाम के मनोहर नगर में एक अनाथ नाम का ब्रह्मण रहता था। वह भगवती दुर्गा का भक्त था। उसके सुमति नाम की एक अत्यन्त सुन्दर कन्या थी। अनाथ, प्रतिदिन दुर्गा की पूजा और होम किया करता था, उस समय सुमति भी नियम से वहाँ उपस्थित होती थी। एक दिन सुमति अपनी साखियों के साथ खेलने लग गई और भगवती के पूजन में उपस्थित नहीं हुई। उसके पिता को पुत्री की ऐसी असावधानी देखकर क्रोध आया और पुत्री से कहने लगा कि हे दुष्ट पुत्री! आज प्रभात से तुमने भगवती का पूजन नहीं किया, इस कारण मै किसी कुष्ठी और दरिद्र मनुष्य के साथ तेरा विवाह करूँगा। पिता के इस प्रकार के वचन सुनकर सुमति को बड़ा दुःख हुआ और पिता से कहने लगी कि ‘मैं आपकी कन्या हूँ। मै सब तरह से आधीन हूँ जैसी आप की इच्छा हो मैं वैसा ही करूंगी। रोगी, कुष्ठी अथवा और किसी के साथ जैसी तुम्हारी इच्छा हो मेरा विवाह कर सकते हो। होगा वही जो मेरे भाग्य में लिखा है। मनुष्य न जाने कितने मनोरथों का चिन्तन करता है, पर होता है वही है जो भाग्य विधाता ने लिखा है। अपनी कन्या के ऐसे कहे हुए वचन सुनकर उस ब्राम्हण को अधिक क्रोध आया। तब उसने अपनी कन्या का एक कुष्ठी के साथ विवाह कर दिया और अत्यन्त क्रुद्ध होकर पुत्री से कहने लगा कि जाओ-जाओ जल्दी जाओ अपने कर्म का फल भोगो। सुमति अपने पति के साथ वन चली गई और भयानक वन में कुशायुक्त उस स्थान पर उन्होंने वह रात बड़े कष्ट से व्यतीत की।उस गरीब बालिका कि ऐसी दशा देखकर भगवती पूर्व पुण्य के प्रभाव से प्रकट होकर सुमति से कहने लगी की, हे दीन ब्रम्हणी! मैं तुम पर प्रसन्न हूँ, तुम जो चाहो वरदान माँग सकती हो। मैं प्रसन्न होने पर मनवांछित फल देने वाली हूँ। इस प्रकार भगवती दुर्गा का वचन सुनकर ब्रह्याणी कहने लगी कि आप कौन हैं जो मुझ पर प्रसन्न हुईं। ऐसा ब्रम्हणी का वचन सुनकर देवी कहने लगी कि मैं तुझ पर तेरे पूर्व जन्म के पुण्य के प्रभाव से प्रसन्न हूँ। तू पूर्व जन्म में निषाद (भील) की स्त्री थी और पतिव्रता थी। एक दिन तेरे पति निषाद द्वारा चोरी करने के कारण तुम दोनों को सिपाहियों ने पकड़ कर जेलखाने में कैद कर दिया था। उन लोगों ने तेरे और तेरे पति को भोजन भी नहीं दिया था। इस प्रकार नवरात्र के दिनों में तुमने न तो कुछ खाया और न ही जल पिया इसलिए नौ दिन तक नवरात्र का व्रत हो गया।हे ब्रम्हाणी ! उन दिनों में जो व्रत हुआ उस व्रत के प्रभाव से प्रसन्न होकर तुम्हे मनोवांछित वस्तु दे रही हूँ। ब्राह्यणी बोली की अगर आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो कृपा करके मेरे पति के कोढ़ को दूर करो। उसके पति का शरीर भगवती की कृपा से कुष्ठहीन होकर अति कान्तियुक्त हो गया।

हमरे अंगना मा फिर से आओ प्यारी गौरैया

कभी हमारे घरों को अपनी चीं..चीं से चहकने वाली गौरैया अब नहीं दिखाई देती है| इस छोटे आकार वाले खूबसूरत पक्षी का कभी इंसान के घरों में बसेरा हुआ करता था और बच्चे बचपन से इसे देखते बड़े हुआ करते थे लेकिन आज वह स्थिति आ गई है कि कभी कभार ही घरों में देखेने को मिलती हैं| दोपहर के समय जब व्यक्ति थका हारा अपने घर में आराम करता था तो मिट्टी के घरों में गौरैया अपने बच्चों को दाना चुगाया करती थी, तो बच्चे इसे बड़े कौतूहल से देखते थे। लेकिन अब तो इसके दर्शन भी मुश्किल हो गए हैं और यह विलुप्त हो रही प्रजातियों की सूची में आ गई है। भारत में गौरैया की संख्या घटती ही जा रही है। इस नन्हें से परिंदे को बचाने के लिए प्रत्येक वर्ष 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पर्यावरण संरक्षण में गौरैया के महत्व व भूमिका के प्रति लोगों का ध्यान आकृष्ट करने तथा इस पक्षी के संरक्षण के प्रति जनजागरूकता उत्पन्न करने के इरादे से यह आयोजन किया जाता है। यह दिवस पहली बार वर्ष 2010 में मनाया गया था। वैसे देखा जाए तो इस नन्ही गौरैया के विलुप्त होने का कारण मानव ही है। हमने तरक्की तो बहुत की लेकिन इस नन्हें पक्षी की तरक्की की तरफ कभी ध्यान नहीं दिया। यही कारण है कि जो दिवस हमें खुशी के रूप में मनाना चाहिए था, वो हम आज इसलिए मनाते हैं कि इनका अस्तित्व बचा रहे।

वक्त के साथ जमाना बदला और छप्पर के स्थान पर सीमेंट की छत आ गई। आवासों की बनावट ऐसी कि गौरैया के लिए घोंसला बनाना मुश्किल हो गया। एयरकंडीशनरों ने रोशनदान तो क्या खिड़कियां तक बन्द करवा दीं। गौरैया ग्रामीण परिवेश का प्रमुख पक्षी है, किन्तु गांवों में फसलों को कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों के प्रयोग के कारण गांवों में गौरैया की संख्या में कमी हो रही है। पहले घर-घर दिखने वाली इस गौरैया के संरक्षण अभियान में अब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी जुड़ गए हैं। उन्होंने राज्य की जनता से गौरैया को लुप्त होने से बचाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की अपील की है।

उन्होंने गौरैया के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु वन विभाग से प्रदेश स्तर पर अभियान चलाने के लिए कहा है। प्रकृति ने सभी वनस्पतियों और प्राणियों के लिए विशिष्ट भूमिका निर्धारित की है। इसलिए पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं को पूरा संरक्षण प्रदान किया जाए।

गौरैया के संरक्षण में इंसानों की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। आवास की छत, बरामदे अथवा किसी खुले स्थान पर बाजरा या टूटे चावल डालने व उथले पात्र में जल रखने पर गौरैया को भोजन व पीने का जल मिलने के साथ-साथ स्नान हेतु जल भी उपलब्ध हो जाता है। बाजार से नेस्ट हाउस खरीद कर लटकाने अथवा आवास में बरामदे में एक कोने में जूते के डिब्बे के बीच लगभग चार से.मी. व्यास का छेद कर लटकाने पर गौरैया इनमें अपना घांेसला बना लेती है। सिर्फ एक दिन नहीं हमें हर दिन जतन करना होगा गौरैया को बचाने के लिए।

गौरैया महज एक पक्षी नहीं है, ये हमारे जीवन का अभिन्न अंग भी रहा है। बस इनके लिए हमें थोड़ी मेहनत रोज करनी होगी। छत पर किसी खुली छावदार जगह पर कटोरी या किसी मिट्टी के बर्तन में इनके लिए चावल और पीने के लिए साफ बर्तन में पानी रखना होगा। फिर देखिये रूठा दोस्त कैसे वापस आता है।

अब रस्मों को भी अपने अंदाज में समेटने लगा इंसान

अब रस्मों को भी अपने अंदाज में समेटने लगा इंसानहिंदू रीति से होने वाले विवाह में मंडप सबसे अहम होता है। मंडप का मतलब महज आम के पत्ते लगा फूस का छप्पर भर नहीं होता, इसके साथ साक्षी होते हैं वे देवता जिन्हें आवाहन कर बुलाया जाता है और वह नए जीवन में प्रवेश करने वाले वर-वधू को अपना आशीर्वाद देते हैं और उनके वैवाहिक बंधन के साक्षी बनते हैं। अब बदले दौर में परंपराओं का जैसे-जैसे आधुनिकीकरण होता गया, वैसे-वैसे मंडप पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है। इसी औपचारिकता के चलते अब रेडीमेड मंडप की मांग बढ़ गई है। हाईटेक और भागम-भाग वाली जिंदगी का हिस्सा बन चुका इंसान अब रस्मों को भी अपने अंदाज में समेटने लगा है।

धार्मिक रीति-रिवाजों के मुताबिक शादी की रस्मों की शुरुआत मंडप से होती है। इसके लिए पुरोहित दिन व समय निश्चित करते हैं। उचित समय पर गाड़े गए मंडप शादी होने के बाद शुभ मुहूर्त में ससम्मान विसर्जित होते हैं। मान्यता है कि शादी के शुभ मुहूर्त पर पुरोहित के आवाहन पर सभी देवता मंडप के नीचे विराजमान रहते हैं और वैवाहिक जोड़े के लिए सुखी वैवाहिक जीवन के द्वार खोलते हैं।

एक वक्त था, जब कन्यापक्ष के बीच मंडप को लेकर बेहद उत्सकुता और जिम्मेदारी का भाव रहता था। मंडप को इतनी अहयिमत दी जाती थी कि इसके लिए घर के बड़े-बजुर्ग पहले से ही तैयारियों में जुट जाते थे। ऐसी मान्यताएं समाज में प्रारंभ से मानी जा रही हैं। लेकिन वक्त के साथ आए बदलाव का असर है कि आज लोगों ने मंडप का दूसरा फार्मूला तैयार कर लिया है।

बढ़ती आबादी, सिकुड़ते मकान और सीमित जगहों के कारण मंडप कहीं मैरिज हॉल के किसी कोने में रेडिमेड तरीके से खड़ा किया जा रहा है, तो कहीं खुले मैदान में ऐसी जगह मंडप बनाया जा रहा है, जहां सिर्फ वर-वधू पक्ष के सीमित लोग ही मौजूद रह सकें और बाकी जगह शादी की दूसरी व्यवस्थाओं, स्टेज और कैटरिंग के लिए इस्तेमाल की जा रही है। दरअसल, मंडप अब पीछे छूटता जा रहा है और शादी का सारा आकर्षण 'जयमाल' और डीजे तक सिमटता जा रहा है।

वहीं फेरों के लिए अब मंडप औपचारिकता भर रह गया है। शादी के अन्य इंतजामों के साथ-साथ टेंट वाले को मंडप का भी जिम्मा सौंप दिया जाता है, जिसके कारीगर आनन-फानन में मिनटों में मंडप तैयार करके चले जाते हैं। शादी के बाकी इंतजामों को लेकर भले ही कन्या पक्ष को चिंता हो, लेकिन आमतौर पर मंडप अब चिंता का विषय नहीं बनता। वहीं दहेज रहित विवाहों के समारोहों में तो सैकड़ों मंडप थोक के भाव एक साथ मंगाए जाते हैं और शादियां समाप्त होने के बाद सभी मंडप उठ जाते हैं।

परंपराओं से हो रहे खिलवाड़ पर पं. कृष्णदेव शुक्ल कहते हैं कि मंडप का महत्व लोग भूल रहे हैं और जाने-अनजाने में धार्मिक परंपराओं से खिलवाड़ कर रहे हैं। इससे वैवाहिक जीवन में दुश्वारियां आ सकती हैं, लेकिन अतिव्यस्त जीवन शैली में समयाभाव के कारण लोग विकल्प तलाशने लगे हैं। शुक्ल के मुताबिक, रेडीमेड मंडपों का उपयोग परंपरा के लिहाज से ठीक नहीं है। खासतौर से जैसे-जैसे इसका व्यवसायीकरण हो रहा है, वैसे वैसे परंपपराएं पीछे छूटती जा रही हैं और मंडप भी खानापूर्ति का हिस्सा बनते जा रहे हैं।

www.pardaphash.com

होलिका दहन 16 को, जानिए क्या है शुभ समय

होली का त्यौहार हमारी पौराणिक कथाओं में श्रद्धा विश्वास और भक्ति का त्यौहार माना गया है तथा साथ ही होली के दिन किये जाने वाले अद्‌भूत प्रयोगों से मानव अपने जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति भी पा सकता है। होली हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को मनायी जाती है तथा भद्रारहित समय में होली का दहन किया जाता हैं। इस बार होलिका दहन 16 मार्च दिन रविवार को है| आपको बता दें कि प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं| 

होलिका दहन में आहुतियाँ देना बहुत ही जरुरी माना गया है इसलिए याद रहे कि होलिका दहन में आहुतियाँ जरुर दें| होलिका दहन होने के बाद होलिका में जिन वस्तुओं की आहुति दी जाती है, उसमें कच्चे आम, नारियल, भुट्टे या सप्तधान्य, चीनी के बने खिलौने, नई फसल का कुछ भाग है. सप्त धान्य है, गेंहूं, उडद, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर आदि है|

पूजन विधि -

ध्यान रहे होलिका दहन से पहले होली की पूजा की जाती है| जिस वक्त आप होली की पूजा कर रहे हों उस समय आपका मुख पूर्व या उतर दिशा की ओर होना चाहिए उसके पश्चात निम्न सामग्रियों का प्रयोग करना चाहिए|

एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए| इसके अलावा नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है| इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल रख दें| 

होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका की पूजा करें| गोबर से बनाई गई ढाल की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख लें इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है|

होली – होलिका पूजन के समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

अहकूटा भयत्रस्तैः कृता त्वं होलि बालिशैः ।

अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम्‌ ॥

होलिका दहन के पश्चात उसकी जो राख निकलती है, जिसे होली – भस्म कहा जाता है, उसे शरीर पर लगाना चाहि‌ए। होली की राख लगाते समय निम्न मंत्र का उच्चारण करना चाहि‌ए :-

वंदितासि सुरेन्द्रेण ब्रम्हणा शंकरेण च ।

अतस्त्वं पाहि माँ देवी! भूति भूतिप्रदा भव ॥

ऐसा माना जाता है कि होली की जली हु‌ई राख घर में समृद्धि लाती है। साथ ही ऐसा करने से घर में शांति और प्रेम का वातावरण निर्मित होता है।

शुभ मुहूर्त-

होली पूजन के पश्चात होलिका का दहन किया जाता है। यह दहन सदैव उस समय करना चाहि‌ए जब भद्रा लग्न न हो। ऐसी मान्यता है कि भद्रा लग्न में होलिका दहन करने से अशुभ परिणाम आते हैं, देश में विद्रोह, अराजकता आदि का माहौल पैदा होता है। इसी प्रकार चतुर्दशी, प्रतिपदा अथवा दिन में भी होलिका दहन करने का विधान नहीं है। होलिका दहन के दौरान गेहूँ की बाल को इसमें सेंकना चाहि‌ए। ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय बाली सेंककर घर में फैलाने से धन-धान्य में वृद्धि होती है। दूसरी ओर होलिया का यह त्योहार न‌ई फसल के उल्लास में भी मनाया जाता है।

तो आइए जाने इस वर्ष क्या है शुभ मुहूर्त-

हमारे ज्योतिशाचर्य के मुताबिक 16 मार्च को रात 10 बजकर 27 मिनट पर होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त का शुभ मुहूर्त है। चौघडिय़ा के हिसाब से भी होलिका दहन किया जा सकता है। इस बार का होलिका दहन भद्रा मुक्त रहेगा। सुबह 9 बजकर 45 मिनट पर भद्रा खत्म हो जाएगी। रात पूरी तरह से भद्रा मुक्त है।

www.pardaphash.com