स्वाद और सेहत का खजाना है सलाद

सलाद हमारे भोजन में बहुत महत्व रखता है। सलाद खाने से हमारे शरीर को सारे पौष्टिक तत्व मिलते हैं। इसीलिए इसे रात को खाना खाने से पहले या खाने के साथ खाना चाहिए। सलाद पेट तो भरता ही है ज्यादा खाना खाने से भी बचाता है। संतुलित भोजन के सेवन से संक्रामक रोगों से जहां बचा जा सकता है वहां पौष्टिक तत्वों के सेवन से शरीर का सुचारू रूप से विकास भी होता है। अनियमित भोजन से मनुष्य विभिन्न रोगों का शिकार हो जाता है जो अंत में उग्र रूप धारण कर लेते हैं। सलाद का भोजन के साथ प्रमुख स्थान होने का मुख्य कारण इसमें सभी विटामिनों, पौष्टिक तत्वों, लोहा, फास्फोरस, गंधक, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन आदि का होना है।

हरी मिर्च, मूली, गाजर, टमाटर, बंदगोभी, प्याज, नींबू, अदरक आदि के कच्चा खाने पर मूल रूप से अधिक से अधिक विटामिन प्राप्त हो जाते हैं जो स्वास्थ्य बनाये रखने हेतु लाभदायक हैं। सब्जियों को उबाल कर बनाने से विटामिन्स नष्ट हो जाते हैं अथवा शरीर को आवश्यकतानुसार नहीं मिल पाते। यदि सलाद के साथ-साथ पोदीन की चटनी का सेवन करें तो यह अति गुणकारी होता है। इससे पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है। भोजन शीघ्र पचता है। मूली से विटामिन बीसी और गाजर से विटामिन एसी लोहा तथा शलजम से विटामिन बी, सी, अधिक एवं वसा की कम प्राप्ति होती है। प्याज में विटामिन बीसी गंधक, फास्फोरस पर्याप्त मात्रा में मिलता है। बंदगोभी से तो विटामिन ए, बीसी, के अतिरिक्त कार्बोहाइड्रेट्स, लवण और वसा की प्राप्ति में बहुत लाभ है। टमाटर से भी एबीसी के साथ कार्बोज, प्रोटीन, वसा आदि प्राप्त होता है। नींबू से भरपूर विटामिन सी मिलता है। चुकंदर तो पूर्ण स्वास्थ्यवर्ध्दक है।

चुकन्दर, मूली, शलजम आदि के मुलायाम पत्तों को भी सलाद रूप में सेवन करने से सर्वाधिक विटामिन मिलते हैं। वृध्दावस्था में सलाद का खाना एक समस्या बन जाता है। इसके लिये सलाद को जहां तक हो सके, तरल एवं बारीक बनाया जा सकता है। मूली, गाजर, शलजम, अदरक आदि को कसकर और टमाटर का जूस निकाल कर आसानी से सलाद के रूप में सेवन किया जा सकता है। अतः सलाद बच्चों, बूढ़ों, जवानों एवं महिलाओं आदि के लिये सेवन करना अति गुणकारी है क्योंकि यह स्वयं में एक वैद्य है। यह शरीर में सभी कमियों को दूर कर रक्त को शुध्द कर पूर्ण स्वास्थ्य लाभ पहुंचाता है जिसके कारण मानव अनेक रोगों का शिकार हो जाता है।

गर्भावस्था के दौरान भी सलाद के पत्ते खाना बहुत लाभदायक होता है। कम कैलोरी में इससे ज़्यादा ख़ुराक मिल जाती है। विशेष रूप से इसमें मौजूद फोलिक एसिड, जिसकी गर्भावस्था के समय तथा बाद में भी शरीर को आवश्यकता रहती है, अच्छी मात्रा में पाया जाता है। फोलिक एसिड मेगालोब्लास्टिक एनिमिया को रोकता है। तथा जिनमें बार बार गर्भपात की संभावना रहती है उन्हें भी कच्चे सलाद के पत्ते खाने की सलाह दी जाती है। कच्चे सलाद के पत्ते खाने से महिलाओं के शरीर में प्रोजेस्टेरोन होरमोन के स्राव पर भी प्रभाव पड़ता है। भोजन के तुरंत बाद सलाद के पत्ते चबाने से दाँतों की बहुत सी बीमारियों जैसे गिंगिविटिस, पायरिया, हेलीटोसिस, स्टोमेटिटिस आदि से निजात मिल सकती है। जिह्वा पर उपस्थित स्वादग्राही तंतुओं तथा इनेमल के क्षय में भी रूकावट पड़ती है। प्रतिदिन आधा लीटर सलाद के पत्ते तथा पालक के रस को पीने से बालों का झड़ना भी कम होता है। 

खीरे का सलाद कब्ज दूर करता है। पीलिया, प्यास, ज्वर, शरीर की जलन और गर्मी की सारी समस्याओं को दूर करता है तथा इससे चर्म रोगों में लाभ पहुंचता है। यदि आपके सलाद में टमाटर भी है तो इससे शरीर में विटामिन ए की कमी को पूरा किया जा सकता है। कच्चा टमाटर खाने से कब्ज़ दूर होती है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है और रक्त चाप तथा मोटापे को कम करने में भी सहायक सिद्ध होता है। यदि सलाद में खीरे और टमाटर के अतिरिक्त ककड़ी भी हो तो बहुत अच्छी बात है क्योंकि इसमें पोटेशियम तत्व बहुत मिलते हैं।

रोजाना विटामिन सी के सेवन से कैंसर व हृदय रोगों का जोखिम कम हो जाता है। ये इम्यूनिटी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं और इन्हीं की बदौलत सर्दी ज़ुकाम तथा वायरसों के अन्य हमलों की अवधि व गंभीरता में कमी आती है। ताजा फलों व सब्जियों में शक्तिशाली एंटी-ऑक्सीडेंट होते हैं, जैसे विटामिन ए और सी, जो हृदयरोग व कैंसर से बचाव करते हैं। सलाद के पत्ते जैसे कि लैटूयूस में कैलोरी कम होती है और इनमें 90 प्रतिशत पानी होता है; लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि इसमें कई महत्वपूर्ण विटामिन व खनिज होते हैं, जैसे कि कैल्शियम, तांबा, पोटेशियम, आयरन, विटामिन ए और सी।

गैस की समस्या से हैं परेशान तो अपनाइए ये घरेलू नुस्खे

लगातार बैठ कर काम करने और खान-पान सावधानी नहीं रखने के कारण गैस की समस्या आज आम हो गई है। इस रोग में डकारें आना, पेट में गैस भरने से बेचैनी, घबराहट, छाती में जलन, पेट में गुड़गुडाहट, पेट व पीठ में हलका दर्द, सिर में भारीपन, आलस्य व थकावट तथा नाड़ी दुर्बलता जैस लक्षण देखने को मिलते हैं। कभी-कभी भूख नहीं लगने पर भी कुछ न कुछ खाने की बेवजह आदतों से भी पेट में एसिडिटी बनने लगती है। यदि आपको भी गैस की समस्या रहती है तो अब घबराने की जरुरत नहीं बस यहाँ कुछ घरेलू उपाय बताये जा रहे हैं जिन पर ध्यान दिया जाए तो इस समस्या से हल निकल सकता है| 

भोजन में मूंग, चना, मटर, अरहर, आलू, सेम, चावल, तथा तेज मिर्च मसाले युक्त आहार अधिक मात्रा में सेवन न करें! शीर्घ पचने वाले आहार जैसे सब्जियां, खिचड़ी, चोकर सहित बनी आटें कि रोटी, दूध, तोरई, कद्दू, पालक, टिंडा, शलजम, अदरक, आवंला, नींबू आदि का सेवन अधिक करना चाहिए। भोजन खूब चबा चबा कर आराम से करना चाहिए! बीच बीच में अधिक पानी ना पिएं! भोजन के दो घंटे के बाद 1 से 2 गिलास पानी पिएं। दोनों समय के भोजन के बीच हल्का नाश्ता फल आदि अवश्य खाएं। 

तेल गरिष्ठ भोजन से परहेज करें! भोजन सादा, सात्त्विक और प्राक्रतिक अवस्था में सेवन करने कि कोशिश करें। दिन भर में 8 से 10 गिलास पानी का सेवन अवश्य करें। प्रतिदिन कोई न कोई व्यायाम करने कि आदत जरुर बनाएं! शाम को घूमने जाएं! पेट के आसन से व्यायाम का पूरा लाभ मिलता है। प्राणयाम करने से भी पेट की गैस की तकलीफ दूर हो जाती है| शराब, चाय, कॉफी, तम्बाकू, गुटखा, जैसे व्यसन से बचें। दिन में सोना छोड़ दें और रात को मानसिक परिश्रम से बचें|

एक चम्मच अजवाइन के साथ चुटकी भर काला नमक भोजन के बाद चबाकर खाने से पेट कि गैस शीर्घ ही निकल जाती है| अदरक और नींबू का रस एक एक चम्मच कि मात्रा में लेकर थोड़ा सा नमक मिलकर भोजन के बाद दोनों समय सेवन करने से गैस कि सारी तकलीफें दूर हो जाती हैं , और भोजन भो हजम हो जाता है! भोजन करते समय बीच बीच में लहसुन, हिंग, थोड़ी थोड़ी मात्रा में खाते रहने से गैस कि तकलीफ नहीं होती| हरड, सोंठ का चूर्ण आधा आधा चम्मच कि मात्रा में लेकर उसमे थोड़ा सा सेंधा नमक मिलाकर भोजन के बाद पानी से सेवन करने से पाचन ठीक प्रकार से होता है और गैस नहीं बनती! नींबू का रस लेने से गैस कि तकलीफ नहीं होती और पाचन क्रिया सुधरती है! 

गैस बनने पर हींग, जीरा, अजवायन और काला नमक, बहुत कम मात्रा में नौसादर मिलाकर गुनगुने पानी से लें। इनमें से कोई एक चीज भी ले सकते हैं। इसके अलावा आधे कच्चे, आधे भुने जीरे को कूट कर गर्म पानी से दो ग्राम लें। ऐसा दिन में दो बार एक सप्ताह तक करें। इसके बाद मोटी सौंफ को भून-पीसकर गुड़ के साथ मिक्स करके 6-6 ग्राम के लड्डू बना लें। दिन में दो-तीन बार लड्डू चूसें। 

एक मुनक्के का बीज निकालकर उसमें मूंग की दाल के एक दाने के बराबर हींग या फिर लहसुन की एक छिली कली रखकर मुनक्के को बंद कर लें। इसे सुबह खाली पेट पानी से निगल लें। इसके 20-25 मिनट बाद तक कुछ न खाएं। तीन दिन लगातार ऐसा करें। इसके अलावा अजवायन, जीरा, छोटी हरड़ और काला नमक बराबर मात्रा में पीस लें। बड़ों के लिए दो से छह ग्राम, खाने के तुरंत बाद पानी से लें। बच्चों के लिए मात्रा कम कर दें। 

लहसुन की एक-दो कलियों के बारीक टुकड़े काटकर थोड़ा-सा काला नमक और नीबू की बूंदें डालकर गर्म पानी से सुबह खाली पेट निगल लें। इससे कॉलेस्ट्रॉल, एंजाइना और आंतों की टीबी आदि बीमारियां ठीक होने में भी मदद मिलेगी। गर्मियों में एक-दो और सर्दियों में दो-तीन कलियां लें। बिना दूध की नीबू की चाय भी फायदा करती है, पर नीबू की बूंदें चाय बनाने के बाद ही डालें। इसमें चीनी की जगह हल्का-सा काला नमक डाल लें, फायदा होगा। 

पांच ग्राम हल्दी या अजवायन और तीन ग्राम नमक मिलाकर पानी से लें। 
दो लौंग चूस लें या फिर उन्हें उबालकर उस पानी को पी लें। 
पानी में 10-12 ग्राम पुदीने का रस और 10 ग्राम शहद मिलाकर लें। 
खाना खाने के बाद 25 ग्राम गुड़ खाने से गैस नहीं बनती और आंतें मजबूत रहती हैं। 
बेल का चूर्ण, त्रिफला और कुटकी मिलाकर (दो से छह ग्राम) रात को खाना खाने के बाद पानी से लें।

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मेकअप के समय ऑयली स्किन वाली महिलाएं रखें विशेष ध्यान

सभी महिलाएं चाहती हैं कि उनकी त्वचा सुंदर दिखे लेकिन सही स्किन न होने के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। चेहरे का ड्राई होना, पिंपल्स का होना, ब्लैक स्पॉट होना हमारी सुंदरता को बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। चेहरे की इन समस्याओं में से सबसे बड़ी समस्या ऑयली स्किन की है| कई महिलाओं की शिकायत रहती है कि उनकी स्किन ऑयली है, इसीलिए वो ज्यादा मेकअप नहीं करतीं। ऑयली स्किन होना आम बात है और इसकी ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। हां मेकअप करते समय आप कुछ बातों पर ध्यान दें तो ऑयली स्किन से छुटकारा पा सकती हैं।

मेकअप करने से पहले आप अपने चेहरे को धोएं और स्क्रब करें। यह बहुत जरूरी है मेकअप करने से पहले| त्वचा को तैयार करें मेकअप लगाने से पहले अपने चेहरे को एल्कोहल फ्री टोनर से साफ करें। इसे क्लींजर से चेहरा साफ करने के 5 मिनट बाद ही लगाएं। यह तेल को सोख लेता है और त्वचा को कोई नुकसान भी नहीं पहुंचाता है। ऑयली स्किन होने पर आप अपने लिए ऑयल फ्री फाउंडेशन चुन सकते हैं। यह त्वचा के रोम छिद्रों को पूरी तरह से ढक देता है और चेहरे पर अच्छी तरह से लग भी जाता है। अच्छे रिजल्ट के लिये इसे थोड़े से मॉइस्चराइजर के साथ मिक्स करें और चेहरे पर उंगलियों या ब्रश की मदद से लगाएं।

आप अपनी स्किन से मेल खाता कंसीलर खरीदें। इसे चेहरे के दाग धब्बों पर लगा कर उसे छुपा सकती हैं। इसे लगाने के लिये आप ब्रश या उंगलियों का प्रयोग कर सकती हैं। हमेशा अपने साथ एक ऑइल ब्लाटिंग शीट रखें। इससे आप आराम से चेहरे पर जमे तेल को सोख सकती हैं| फाउंडेशन लगाने के बाद ट्रांसलूसेंट पाउडर लगाना चाहिये। इसे फाउंडेशन लगाने के 10 मिनट बाद लगाएं और ध्यान दे कर गालों, माथा और नाक को हाईलाइट करें। ट्रांसलूसेंट पाउडर हमेशा लाइट कलर का होना चाहिये।

हो सके तो चेहरे पर अंडे का सफेद भाग लगाएं और थोड़ी देर के बाद जब ये सूख जाए, तो उसे बेसन के आटे से साफ कर लें| चावल के आटे में पुदीने का अर्क और गुलाबजल मिलाकर, गोलाई में घुमाते हुए चेहरे पर लगाएं| इसके सुखने के बाद पानी से धो लें| ऑयली त्वचा पर मुहांसे की समस्या आम होती है। इसके लिए दवा लें लेकिन इन्हें फोड़ने की गलती न करें। इससे संक्रमण फैलता है और ऑयली त्वचा की समस्याएं बढ़ जाती हैं। दिन में कम से कम आठ ग्लास पानी रोज पिएं जिससे त्वचा सेहतमंद रहेगी और शरीर डीटॉक्सिफाई होगी।

इस किले पर दशकों से हर साल गिरती है आकाशीय बिजली, जानिए क्यों?

आपने कई किलों के खंडहर में तब्दील होने की कहानी सुनी और देखी भी होगी, लेकिन प्रतिवर्ष आकाशीय बिजली गिरने से एक किले को तबाह होते कभी नहीं देखा होगा। यह हकीकत है। झारखंड के रांची-पतरातू मार्ग के पिठौरिया गांव स्थित राजा जगतपाल सिंह के 100 कमरों का विशाल महल (किला) इसका साक्षात प्रमाण है। यह आकाशीय बिजली गिरने से तबाह हो गया है। स्थानीय लोगों का कहना है कि इसके पीछे एक 'श्राप' है।

झारखंड की राजधानी रांची से करीब 18 किलोमीटर दूर पिठौरिया गांव में दो शताब्दी पुराना यह किला राजा जगतपाल सिंह का है, जो आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। इस किले पर दशकों से हर साल आसमानी बिजली गिरती है, जिससे हर साल इसका कुछ हिस्सा टूटकर गिर जाता है। पिठौरिया गांववासियों की मान्यता है कि ऐसा एक क्रांतिकारी द्वारा राजा जगतपाल सिंह को दिए गए श्राप के कारण होता है। बिजली गिरना वैसे तो एक प्राकृतिक घटना है, लेकिन यहां के लोग एक ही जगह पर दशकों से लगातार बिजली गिरने को एक आश्चर्यजनक की बात मानते हैं।

इतिहासकार डा. भुवनेश्वर अनुज ने बताया कि पिठौरिया शुरुआत से ही मुंडा और नागवंशी राजाओं का प्रमुख केंद्र रहा है। यह इलाका 1831-32 में हुए कौल विद्रोह के कारण इतिहास में अंकित है। पिठौरिया के राजा जगतपाल सिंह ने क्षेत्र का चहुंमुखी विकास किया। इसे व्यापार और संस्कृति का प्रमुख केंद्र बनाया। वह क्षेत्र की जनता में काफी लोकप्रिय था, लेकिन उनकी कुछ गलतियों ने उसका नाम इतिहास में खलनायकों और गद्दारों की सूची में शामिल करवा दिया।

उन्होंने बताया कि वर्ष 1831 में सिंदराय और बिंदराय के नेतृत्व में आदिवासियों ने आंदोलन किया था, लेकिन यहां की भौगोलिक परिस्तिथियों से अनजान अंग्रेज, विद्रोह को दबा नहीं पा रहे थे। ऐसे में अंग्रेज अधिकारी विलकिंग्सन ने राजा जगतपाल सिंह के पास सहायता का संदेश भिजवाया, जिसे उसने स्वीकार करते हुए अंग्रेजों की मदद की। उनकी इस मदद के बदले तत्कालीन गवर्नर जनरल विलियम वैंटिक ने उन्हें 313 रुपये प्रतिमाह आजीवन पेंशन दी।

इतिहासकारों के मुताबिक, 1857 के दौरान भी उसने अंग्रेजों का साथ दिया था। स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि जगतपाल सिंह की गवाही के कारण ही झारखंड के क्रांतिकारी ठाकुर विश्वनाथ नाथ शाहदेव को फांसी दी गई थी। मान्यता है कि विश्वनाथ शाहदेव ने जगतपाल सिंह को अंग्रेजों का साथ देने और देश के साथ गद्दारी करने पर यह श्राप दिया कि आने वाले समय में जगतपाल सिंह का कोई नामलेवा नहीं रहेगा और उसके किले पर हर साल बिजली गिरेगी। तब से हर साल इस किले पर बिजली गिरती आ रही है। इस कारण किला खंडहर में तब्दील हो चुका है।

भूगर्भशास्त्री ग्रामीणों की इस मान्यता से सहमत नहीं हैं। किले पर शोध कर चुके जाने-माने भूगर्भशास्त्री नितीश प्रियदर्शी इसके दूसरे ही कारण बताते हैं। उनके मुताबिक, यहां मौजूद ऊंचे पेड़ और पहाड़ों में मौजूद लौह अयस्कों की प्रचुरता दोनों मिलकर आसमानी बिजली को आकर्षित करने का एक बहुत ही सुगम माध्यम उपलब्ध कराती है। इस कारण बारिश के दिनों में यहां अक्सर बिजली गिरती है। बहरहाल ग्रामीणों की मान्यता और भूगर्भशास्त्रियों की शोध के अपने-अपने दावे हैं, लेकिन कई लोगों के लिए आज भी यह प्रश्न बना हुआ है कि यह किला जब दशकों तक आबाद रहा, तब क्यों नहीं बिजलियां गिरी थी? उस समय तो और ज्यादा पेड़ और लौह अयस्क रहे होंगे। 

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हथेली देखकर स्वयं जानिए भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है

भविष्य से जुड़े सभी प्रश्नों के सटीक उत्तर ज्योतिष शास्त्र के अनुसार प्राप्त किए जा सकते हैं। यदि किसी व्यक्ति को ज्योतिष में महारत हासिल हो तो वह आने वाले कल में होने वाली घटनाओं की जानकारी दे सकता है। भविष्य जानने की कई विद्याएं प्रचलित हैं, इन्हीं में से एक विद्या है हस्तरेखा ज्योतिष। हाथों में दिखाई देने वाली रेखाएं और हमारे भविष्य का गहरा संबंध है। इन रेखाओं का अध्ययन किया जाए तो हमें भविष्य में होने वाली घटनाओं की भी जानकारी प्राप्त हो सकती है। वैसे तो हाथों की सभी रेखाओं का अलग-अलग महत्व होता है। लेकिन अगर आप अपनी रेखाओं को ध्यान से देखें तो जान सकते हैं कि भाग्य ने आपके लिए किस तरह का करियर चुना है...

एस्ट्रो गुरु विजय कुमार के अनुसार, मजबूत शनि, लम्बी गहरी मस्तिष्क रेखा, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां जातक का रूझान मशीनरी क्षेत्र में करती हैं। इसके अलावा जिस जातक की लम्बी कनिष्ठा, उठा हुआ शुक्र तथा तर्जनी का विकसित एवं मोटा तीसरा पोरा हो तो आप समझ जाइए कि आप पाकशास्त्री हो सकते हैं|

निष्कंलक अर्थात् शुद्ध भाग्य रेखा अनामिका की तुलना में लम्बी तर्जनी, कनिष्ठा, अनामिका के पहले पोरे को पारकर जाए। शाखायुक्त मस्तिष्क रेखा, अच्छा मजबूत दोषयुक्त सूर्य क्षेत्र तथा श्रेष्ठ अन्य रेखाएं जातक को प्रशासन संबंधी कार्यों की ओर ले जाने का संकेत करती हैं। लम्बी शनि अंगुली, सबल एवं लम्बा दूसरा पोरा तथा सख्त हाथ कृषि की तरफ रूझान देता है।

लम्बा एवं सख्त मजबूत अंगूठा, उन्नत शुक्र एवं मंगल अच्छी सूर्य एवं भाग्य रेखा तथा वर्गाकार या चमसाकार अंगुलियां सैन्य सेवा के लिए अच्छी हैं। इसके साथ यदि मंगल अति विकसित एवं सख्त है तो थल सेना के लिए उपयुक्त है। यदि उक्त के साथ विकसित बृहस्पति एवं मजबूत एवं थोड़ा सा अन्तराल लिए मस्तिष्क एवं जीवन रेखा का उदय हो तो हवाई सेना के लिए संकेत हैं।

अपने उदय के समय मस्तिष्क रेखा एवं जीवन रेखा थोड़ा गैप लेकर चले तथा मस्तिष्क रेखा के अंत में कोई फोर्क (द्विशाखा) हो, कनिष्ठा का पहला पोरा लम्बा एवं मजबूत हो तथा अच्छा बुध, तीन खड़ी लाइन युक्त हो तथा मजबूत अंगूठे का दूसरा पोरा सबल हो तो यह न्याय के क्षेत्र में ले जाने का संकेत है।

अंगुलियों की तुलना में लम्बी हथेली, कोणाकार अंगुलियां, मस्तिष्क एवं जीवन रेखा में प्रारम्भ से ही गैप तथा शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा एवं शुक्र व चन्द्र अच्छे हों तो समझ जाइए आपके गायकी क्षेत्र में जाने के संकेत हैं| लम्बी एवं शाखा युक्त मस्तिष्क रेखा जिसकी एक शाखा बुध पर जाए, विकसित बुध तथा शुक्र तथा सूर्य एवं अच्छा चन्द्र एवं लम्बी कनिष्ठा अंगुली ऐक्टिंग के लिए उपयुक्त है। डांसर के लिए लचीला अंगूठा, लचीली एवं हथेली की तुलना में लम्बी अंगुलियां हों|

लम्बा अंगूठा, तर्जनी का लम्बा दूसरा पोरा वर्गाकार हथेली, अच्छी संधि गांठें, अंगुलियों की वर्गाकार नोक, विकसित शनि एवं लम्बी मध्यमा तथा मस्तिष्क रेखा एवं अच्छा बुध इंजीनियर के लिए उपयुक्त हैं। अच्छी एवं सफेद धब्बे युक्त मस्तिष्क रेखा तथा अच्छे बुध पर त्रिकोण का चिह्न वैज्ञानिक क्षेत्र में ले जाने के लिए उचित है। अच्छे बुध पर तीन-चार खड़ी लाइनें, लम्बी एवं गांठदार अंगुलियां तथा वर्गाकार हथेली तथा अच्छी आभास रेखा चिकित्सा क्षेत्र के लिए उपयुक्त है।

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जानिए कोई भी शुभ कार्य करते समय क्यों बनाते हैं स्वास्तिक?

हिन्दू धर्म व भारतीय संस्कृति में वैदिक काल से ही स्वस्तिक को विशेष महत्त्व प्रदान किया गया है। यूँ तो बहुत से लोग इसे हिन्दू धर्म का एक प्रतीक चिह्न ही मानते हैं । किन्तु वे लोग ये नहीं जानते कि इसके पीछे कितना गहरा अर्थ छिपा हुआ है। स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है । यहाँ "सु" का अर्थ है शुभ और "अस्ति" का अर्थ होना । संस्कृ्त व्याकरण अनुसार "सु" एवं "अस्ति" को जब संयुक्त किया जाता है तो जो नया शब्द बनता है वो है "स्वस्ति" अर्थात "शुभ हो", "कल्याण हो" ।

स्वस्तिक शब्द सु+अस+क से बना है। 'सु' का अर्थ अच्छा, 'अस' का अर्थ सत्ता 'या' अस्तित्व और 'क' का अर्थ है करने वाला। इस प्रकार स्वस्तिक शब्द का अर्थ हुआ मंगल करने वाला। इसलिए देवता का तेज़ शुभ करनेवाला - स्वस्तिक करने वाला है और उसकी गति सिद्ध चिह्न 'स्वस्तिक' कहा गया है। प्राचीन काल से ही भारतीय संस्कृति में स्वस्तिक को मंगल-प्रतीक माना जाता रहा है। विघ्नहर्ता गणेश की उपासना धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी के साथ भी शुभ लाभ, स्वस्तिक तथा बहीखाते की पूजा की परम्परा है। इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान प्राप्त है। इसीलिए जातक की कुण्डली बनाते समय या कोई मंगल व शुभ कार्य करते समय सर्वप्रथम स्वास्तिक को ही अंकित किया जाता है।

किसी भी पूजन कार्य का शुभारंभ बिना स्वस्तिक के नहीं किया जा सकता। चूंकि शास्त्रों के अनुसार श्री गणेश प्रथम पूजनीय हैं, अत: स्वस्तिक का पूजन करने का अर्थ यही है कि हम श्रीगणेश का पूजन कर उनसे विनती करते हैं कि हमारा पूजन कार्य सफल हो। स्वस्तिक बनाने से हमारे कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो जाते हैं। किसी भी धार्मिक कार्यक्रम में या सामान्यत: किसी भी पूजा-अर्चना में हम दीवार, थाली या ज़मीन पर स्वस्तिक का निशान बनाकर स्वस्ति वाचन करते हैं। साथ ही स्वस्तिक धनात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है, इसे बनाने से हमारे आसपास से नकारात्मक ऊर्जा दूर हो जाती है। आपको बता दें कि स्वस्तिक चिन्ह को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। जिन्हें शुभ कार्यो में आम की पत्तियों को आपने लोगों को अक्सर घर के दरवाजे पर बांधते हुए देखा होगा क्योंकि आम की पत्ती ,इसकी लकड़ी ,फल को ज्योतिष की दृष्टी से भी बहुत शुभ माना जाता है। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है> 

भारतीय दर्शन के अनुसार स्वस्तिक की चार रेखाओं को चार वेद, चार पुरूषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश से तुलना की गई है। ऋग्वेद में स्वास्तिक को सूर्य का प्रतीक माना गया है और उसकी चार भुजाओं को चार दिशाओं की उपमा दी गई है। जबकि सिद्धान्तसार ग्रन्थ में स्वास्तिक को विश्व ब्रह्माण्ड का प्रतीक चित्र माना गया है। उसके मध्य भाग को विष्णु की कमल नाभि और रेखाओं को ब्रह्माजी के चार मुख, चार हाथ और चार वेदों के रूप में निरूपित किया गया है।

हर मंगल कार्य में स्वास्तिक बनाया जाता है, क्योंकि इसका बायां हिस्सा गणेश की शक्ति का स्थान गं बीजमंत्र होता है। इसमें जो चार बिंदियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कच्छप और अनंत देवताओं का वास होता है। भगवान गणेश की उपासना, धन और वैभव की देवी लक्ष्मी के साथ ही बही-खाते की पूजा में भी स्वास्तिक का विशेष स्थान है। स्वास्तिक की बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा में एक जैसा दिखता है। और इसी कारण यह घर में मौजूद हर प्रकार के वास्तुदोष को कम करने में सहायक होता है। इसके प्रयोग से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है। शास्त्रों में स्वास्तिक को विष्णु का आसन और लक्ष्मी का स्वरुप माना गया है। चंदन, कुमकुम और सिंदूर से बना स्वास्तिक ग्रह दोषों को दूर करने वाला होता है और यह धन कारक योग बनाता है। स्वास्तिक के चिह्न को भाग्यवर्धक वस्तुओं में गिना जाता है।

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जानिए भगवान विष्णु को क्यों माना जाता है सर्वश्रेष्ठ देवता?

हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार, इस सम्पूर्ण सृष्टि का पालन पोषण और संचालन का जिम्मा तीन देवताओं पर हैं यह हम सभी जानते हैं| ब्रह्मदेव को जगत का रचनाकार, भगवान विष्णु को पालनकर्ता और भगवान शिव को संहारकर्ता माना गया है। तीनों ही देव सर्वशक्तिमान और परम पूज्यनीय हैं। कई युगों पहले ऋषि मुनियों में त्रिदेव को लेकर यह जिज्ञासा हुई कि इन तीनों देवताओं में सर्वश्रेष्ठ कौन है?

इस प्रश्न का उत्तर खोजने के लिए सभी ऋषि-मुनियों ने महर्षि भृगु से निवेदन किया। महर्षि भृगु परम तपस्वी और तीनों देवों के प्रिय थे। अब इस प्रश्न का उत्तर जाने के लिए सभी ऋषि मुनि बिना आज्ञा के ही ब्रम्हा जी के पास पहुँच गए| इस तरह अचानक आए महर्षि भृगु को देख ब्रह्मा क्रोधित हो गए। इसके बाद महर्षि भृगु इसी तरह शिवजी के सम्मुख जा पहुंचे और वहां भी उन्हें शिवजी द्वारा अपमानित होना पड़ा। अब भृगु भी क्रोधित हो गए और इसी क्रोध में वे भगवान विष्णु के सम्मुख जा पहुंचे। उस समय भगवान विष्णु शेषनाग पर सो रहे थे। महर्षि भृगु के आने का उन्हें ध्यान ही नहीं रहा और वे महर्षि के सम्मान में खड़े नहीं हुए। अतिक्रोधित स्वभाव वाले भृगु ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध से विष्णु की छाती पर लात मार दी। 

इस प्रकार जगाए जाने पर भी विष्णु ने धैर्य रखा और तुरंत ही महर्षि भृगु के सम्मान में खड़े होकर उन्हें प्रणाम किया। भगवान विष्णु ने विनयपूर्वक कहा कि मेरा शरीर वज्र के समान कठोर है, अत: आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी? औरे उन्होंने महर्षि के पैर पकड़ लिए और सहलाने लगे। विष्णु की इस महानता से महर्षि भृगु अति प्रसन्न हुए। भगवान विष्णु के इस धैर्य और सम्मान के भाव से प्रसन्न महर्षि ने उन्हें तीनों देवों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया।

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पांच पतियों के बावजूद कभी भंग नहीं हुआ द्रौपदी का ‘कौमार्य’

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत जैसा अन्य कोई ग्रंथ नहीं है। यह ग्रंथ बहुत ही विचित्र और रोचक है। विद्वानों ने इसे पांचवां वेद भी कहा है। महाभारत के बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसी चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| जैसा कि द्रोपदी के पांच पति थे। इसके बावजूद आजीवन उनका कौमार्य बना रहा। इसी लिए उन्‍हें कन्‍या कहा जाता था नारी नहीं। 


कहा जाता है कि द्रौपदी का विवाह महर्षि वेद व्‍यास ने पांडवों के साथ करवाया था। स्‍वयंवर की शर्त के अनुसार, अर्जुन ने अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करते हुए उन्होंने मछली की आंख पर निशाना लगाया। अर्जुन से विवाह करने के बाद द्रौपदी जब पांडवों के साथ उनके घर गईं तो उन्होंने अपनी मां से कहा, मां देखो हम क्या लाए हैं। उनकी मां ने बिना देखे पुत्रों से कहा कि वे जो भी लाए हैं उसे आपस में बांट लें।


मां का कहना टालना मुश्किल था इसलिए पांचों ने पांचाली से विवाह करने का निश्चय किया और मजबूरन पांचाली को सिर्फ अर्जुन की नहीं बल्कि पांडवों की पत्नी बनना स्वीकार करना पड़ा। वेद व्यास ने पांडवों के साथ पांचाली का विवाह करवाया। पांचों भाइयों की सुविधा को देखते हुए उनसे कहा कि द्रौपदी एक-एक वर्ष के लिए सभी पांडवों के साथ रहेंगी और जब वह एक भाई से दूसरे भाई के पास जाएगी, तो उसका कौमार्य पुन: वापस आ जाएगा। 


वेद व्यास ने ये भी कहा जब द्रौपदी एक भाई के साथ पत्नी के तौर पर रहेंगी तब अन्य चार भाई उनकी तरफ नजर उठाकर भी नहीं देखेंगे। लेकिन शायद अर्जुन को वेद व्यास की ये शर्त और पांचाली का पांडवों से विवाह करना पसंद नहीं आया, तभी तो वह पति के रूप में भी कभी भी द्रौपदी के साथ सामान्य नहीं रह पाए। अलग-अलग साल द्रौपदी, अलग-अलग पांडव के साथ रहती थीं। एक पुरुष होने के नाते कोई भी पांडव अगले चार वर्ष तक अपनी काम वासना पर नियंत्रण नहीं कर पाया और द्रौपदी के इतर सबने अलग-अलग स्त्री को अपनी पत्नी बनाया। पांच पतियों की पत्नी होने के बावजूद द्रौपदी ताउम्र अपने पति के प्रेम के लिए तरसती रहीं|

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शिवजी शरीर पर क्यों रमाते हैं भस्म?

हिन्दू धर्म में भगवान शिव को मृत्युलोक देवता माने गए हैं। शिव को अनादि, अनंत, अजन्मा माना गया है यानि उनका कोई आरंभ है न अंत है। न उनका जन्म हुआ है, न वह मृत्यु को प्राप्त होते हैं। इस तरह भगवान शिव अवतार न होकर साक्षात ईश्वर हैं। शिव की साकार यानि मूर्तिरुप और निराकार यानि अमूर्त रुप में आराधना की जाती है। शास्त्रों में भगवान शिव का चरित्र कल्याणकारी माना गया है। भगवान भोलेनाथ का स्वरूप सभी देवी-देवताओं से बिल्कुल भिन्न है। जहां सभी देवी-देवता दिव्य आभूषण और वस्त्रादि धारण करते हैं वहीं शिवजी ऐसा कुछ भी धारण नहीं करते, वे शरीर पर भस्म रमाते हैं| लेकिन कभी आपने सोचा है कि शिवजी शरीर पर भस्म क्यों रमाते हैं? 

मान्यता यह है कि शिव को मृत्यु का स्वामी माना गया है और शिवजी शव के जलने के बाद बची भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं। इस प्रकार शिवजी भस्म लगाकर हमें यह संदेश देते हैं कि यह हमारा यह शरीर नश्वर है और एक दिन इसी भस्म की तरह मिट्टी में विलिन हो जाएगा। अत: हमें इस नश्वर शरीर पर गर्व नहीं करना चाहिए। कोई व्यक्ति कितना भी सुंदर क्यों न हो, मृत्यु के बाद उसका शरीर इसी तरह भस्म बन जाएगा। अत: हमें किसी भी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए।

भस्म की एक विशेषता होती है कि यह शरीर के रोम छिद्रों को बंद कर देती है। इसका मुख्य गुण है कि इसको शरीर पर लगाने से गर्मी में गर्मी और सर्दी में सर्दी नहीं लगती। भस्मी त्वचा संबंधी रोगों में भी दवा का काम करती है। भस्मी धारण करने वाले शिव यह संदेश भी देते हैं कि परिस्थितियों के अनुसार अपने आपको ढ़ालना मनुष्य का सबसे बड़ा गुण है।

कामदा एकादशी कल, जानिए महत्व, व्रत विधि व कथा

हिंदू पंचांग की ग्यारहवी तिथि को एकादशी कहते हैं। यह तिथि मास में दो बार आती है। पूर्णिमा के बाद और अमावस्या के बाद। पूर्णिमा के बाद आने वाली एकादशी को कृष्ण पक्ष की एकादशी और अमावस्या के बाद आने वाली एकादशी को शुक्ल पक्ष की एकादशी कहते हैं। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। चैत्र शुक्ल पक्ष में ‘कामदा’ नाम की एकादशी होती है। "कामदा एकादशी" जिसे फलदा एकादशी भी कहते हैं, श्री विष्णु का उत्तम व्रत कहा गया है। इस व्रत के पुण्य से जीवात्मा को पाप से मुक्ति मिलती है। यह एकादशी कष्टों का निवारण करने वाली और मनोनुकूल फल देने वाली होने के कारण फलदा और कामना पूर्ण करने वाली होने से कामदा कही जाती है। इस बार कामदा एकदशी का व्रत 31 मार्च दिन मंगलवार को है| 

कामदा एकादशी व्रत विधि-

एकादशी के दिन स्नानादि से पवित्र होने के पश्चात संकल्प करके श्री विष्णु के विग्रह की पूजन करें। विष्णु को फूल, फल, तिल, दूध, पंचामृत आदि नाना पदार्थ निवेदित करें। आठों प्रहर निर्जल रहकर विष्णु जी के नाम का स्मरण एवं कीर्तन करें। एकादशी व्रत में ब्राह्मण भोजन एवं दक्षिणा का बड़ा ही महत्व है, अत: ब्राह्मण को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करने के पश्चात ही भोजन ग्रहण करें। इस प्रकार जो चैत्र शुक्ल पक्ष में कामदा एकादशी का व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है। 

कामदा एकादशी व्रत कथा-

युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव ! आपको नमस्कार है ! कृपया आप यह बताइये कि चैत्र शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है? भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! एकाग्रचित्त होकर यह पुरातन कथा सुनो, जिसे वशिष्ठजी ने राजा दिलीप के पूछने पर कहा था ।

वशिष्ठजी बोले : राजन् ! चैत्र शुक्लपक्ष में ‘कामदा’ नाम की एकादशी होती है । वह परम पुण्यमयी है । पापरुपी ईँधन के लिए तो वह दावानल ही है ।

प्राचीन काल की बात है: नागपुर नाम का एक सुन्दर नगर था, जहाँ सोने के महल बने हुए थे । उस नगर में पुण्डरीक आदि महा भयंकर नाग निवास करते थे । पुण्डरीक नाम का नाग उन दिनों वहाँ राज्य करता था । गन्धर्व, किन्नर और अप्सराएँ भी उस नगरी का सेवन करती थीं । वहाँ एक श्रेष्ठ अप्सरा थी, जिसका नाम ललिता था । उसके साथ ललित नामवाला गन्धर्व भी था । वे दोनों पति पत्नी के रुप में रहते थे । दोनों ही परस्पर काम से पीड़ित रहा करते थे । ललिता के हृदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में सुन्दरी ललिता का नित्य निवास था ।

एक दिन की बात है । नागराज पुण्डरीक राजसभा में बैठकर मनोंरंजन कर रहा था । उस समय ललित का गान हो रहा था किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी । गाते गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया । अत: उसके पैरों की गति रुक गयी और जीभ लड़खड़ाने लगी ।

नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललित के मन का सन्ताप ज्ञात हो गया, अत: उसने राजा पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी । कर्कोटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरीक की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं । उसने गाते हुए कामातुर ललित को शाप दिया : ‘दुर्बुद्धे ! तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गया, इसलिए राक्षस हो जा ।’

महाराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया । भयंकर मुख, विकराल आँखें और देखनेमात्र से भय उपजानेवाला रुप - ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा ।

ललिता अपने पति की विकराल आकृति देख मन ही मन बहुत चिन्तित हुई । भारी दु:ख से वह कष्ट पाने लगी । सोचने लगी: ‘क्या करुँ? कहाँ जाऊँ? मेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं…’

वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे पीछे घूमने लगी । वन में उसे एक सुन्दर आश्रम दिखायी दिया, जहाँ एक मुनि शान्त बैठे हुए थे । किसी भी प्राणी के साथ उनका वैर विरोध नहीं था । ललिता शीघ्रता के साथ वहाँ गयी और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई । मुनि बड़े दयालु थे । उस दु:खिनी को देखकर वे इस प्रकार बोले : ‘शुभे ! तुम कौन हो ? कहाँ से यहाँ आयी हो? मेरे सामने सच सच बताओ ।’

ललिता ने कहा : महामुने ! वीरधन्वा नामवाले एक गन्धर्व हैं । मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ । मेरा नाम ललिता है । मेरे स्वामी अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं । उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है । ब्रह्मन् ! इस समय मेरा जो कर्त्तव्य हो, वह बताइये । विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षसभाव से छुटकारा पा जायें, उसका उपदेश कीजिये ।

ॠषि बोले : भद्रे ! इस समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष की ‘कामदा’ नामक एकादशी तिथि है, जो सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है । तुम उसीका विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य हो, उसे अपने स्वामी को दे डालो । पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा ।

राजन् ! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ । उसने एकादशी को उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के (श्रीविग्रह के) समक्ष अपने पति के उद्धार के लिए यह वचन कहा: ‘मैंने जो यह ‘कामदा एकादशी’ का उपवास व्रत किया है, उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षसभाव दूर हो जाय ।’

वशिष्ठजी कहते हैं : ललिता के इतना कहते ही उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया । उसने दिव्य देह धारण कर लिया । राक्षसभाव चला गया और पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई ।

नृपश्रेष्ठ ! वे दोनों पति पत्नी ‘कामदा’ के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रुप धारण करके विमान पर आरुढ़ होकर अत्यन्त शोभा पाने लगे । यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए ।

मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है । ‘कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है । राजन् ! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है ।


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जानिए भीम में कैसे आया हजार हाथियों का बल?

पौराणिक महाकाव्य महाभारत के बारे में जानता तो हर कोई है| यह एक ऐसा शास्‍त्र है जिसके बारे में सबसे ज्‍यादा चर्चा और बातें की जाती है और इस काव्‍य में कई रहस्‍य है जिनके बारे में आजतक सही-सही पता नहीं लग पाया है या फिर बहुत कम लोगों को ही पता है। उदाहरण के लिए- पाण्डु पुत्र भीम के बारे में जानते तो सभी लोग होंगे कि भीम में हज़ार हाथियों का बल था जिसके चलते एक बार तो उसने अकेले ही नर्मदा नदी का प्रवाह रोक दिया था। लेकिन क्या आपको पता है कि भीम में हजार हाथियों का बल कैसे आया?

इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है| यह सभी जानते हैं कि गांधारी का बड़ा पु‍त्र दुर्योधन और गांधारी का भाई शकुनि, कुंती के पुत्रों को मारने के लिए नई-नई योजनाएं बनाते थे। इसी योजना के तहत एक बार दुष्ट दुर्योधन ने एक बार खेलने के लिए गंगा तट पर शिविर लगवाया। उस स्थान का नाम रखा उदकक्रीडन। वहां खाने-पीने इत्यादि सभी सुविधाएं भी थीं। दुर्योधन ने पाण्डवों को भी वहां बुलाया। एक दिन मौका पाकर दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। विष के असर से जब भीम अचेत हो गए तो दुर्योधन ने दु:शासन के साथ मिलकर उसे गंगा में डाल दिया। भीम इसी अवस्था में नागलोक पहुंच गए। वहां सांपों ने भीम को खूब डंसा जिसके प्रभाव से विष का असर कम हो गया। जब भीम को होश आया तो वे सर्पों को मारने लगे। सभी सर्प डरकर नागराज वासुकि के पास गए और पूरी बात बताई।

तब वासुकि स्वयं भीमसेन के पास गए। उनके साथ आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना का नाना था। वह भीम से बड़े प्रेम से मिले। तब आर्यक ने वासुकि से कहा कि भीम को उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दी जाए जिनमें हजारों हाथियों का बल है। वासुकि ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब भीम आठ कुण्ड पीकर एक दिव्य शय्या पर सो गए। नागलोक में भीम आठवें दिन रस पच जाने पर जागे। तब नागों ने भीम को गंगा के बाहर छोड़ दिया। जब भीम सही-सलामत हस्तिनापुर पहुंचे तो सभी को बड़ा संतोष हुआ। तब भीम ने माता कुंती व अपने भाइयों के सामने दुर्योधन द्वारा विष देकर गंगा में फेंकने तथा नागलोक में क्या-क्या हुआ, यह सब बताया। युधिष्ठिर ने भीम से यह बात किसी और को नहीं बताने के लिए कहा।

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जानिए परशुराम ने क्यों काटा था अपनी मां का सिर?

आपने अक्सर सुना और पढ़ा होगा कि राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र और भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम ने अपनी मां का सिर काट लिया था| लेकिन हममें से कितने लोगों को इसके पीछे का कारण पता है। शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा। आइए जानते हैं कि भगवान परशुराम ने अपनी माता का सिर क्‍यूं काट लिया था?

प्राचीनकाल में कन्नौज नामक नगर में गाधि नामक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्‍चात् वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्‍वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। "इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु जी ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया।


इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योगशक्‍ति से भृगु जी को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगा। इस पर सत्यवती ने भृगु जी से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु जी ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। "समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस और परशुराम।

बताया जाता है कि परशुराम को भगवान शिव से विशेष परशु प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार, जो वामन एवं रामचन्द्र के मध्य में गिने जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये जामदग्न्य भी कहे जाते हैं। इनका जन्म अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया) को हुआ था। दुर्वासा की भाँति परशुराम अपने क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात है। एक बार कार्त्तवीर्य ने परशुराम की अनुपस्थिति में आश्रम उजाड़ डाला था, जिससे परशुराम ने क्रोधित हो उसकी सहस्त्र भुजाओं को काट डाला। कार्त्तवीर्य के सम्बन्धियों ने प्रतिशोध की भावना से जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन कर दिया और पाँच झीलों को रक्त से भर दिया।

एक दिन जब सब सब पुत्र फल लेने के लिए वन चले गए तब परशुराम की माता रेणुका स्नान करने को गई, जिस समय वह स्नान करके आश्रम को लौट रही थीं, उन्होंने राजा चित्ररथ को जलविहार करते देखा। यह देखकर उनका मन विचलित हो गया। इस अवस्था में जब उन्होंने आश्रम में प्रवेश किया तो महर्षि जमदग्नि ने यह बात जान ली। इतने में ही वहां परशुराम के बड़े भाई रुक्मवान, सुषेणु, वसु और विश्वावसु भी आ गए। महर्षि जमदग्नि ने उन सभी से बारी-बारी अपनी मां का वध करने को कहा लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई।

तभी वहां परशुराम आ गए। उन्होंने पिता के आदेश पाकर तुरंत अपनी मां का वध कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपने पिता से माता रेणुका को पुनर्जीवित करने और चारों भाइयों को ठीक करने का वरदान मांगा। साथ ही इस बात का किसी को याद न रहने और अजेय होने का वरदान भी मांगा। महर्षि जमदग्नि ने उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर दीं।

बिहार की सियासत में सत्ता संघर्ष एक दलित परिचर्चा


लखनऊ| बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और नीतीश कुमार के बीच जो सत्ता संघर्ष की होड़ लगी है, काफी दिलचस्प दिखता जा रहा है। कुर्सी की लोभ में नीतीश कुमार ही क्यों, जबकि सबसे ज्यादा जीतनराम मांझी अपनी भूमिका बनाने में अग्रणी है। वे अपने बेबाक आचरण के साथ डटे हुये है। मांझी के समर्थकगण भी अपनी अदूरदर्शिता के कारण लगातार आग में घी डालने का कार्य कर रहे है। यहां कुछेक दलित चिंतकगण अचानक मांझी जी के समर्थन में धरना-प्रदर्शन हुडदंग इत्यादि करने लगे है। यहां अनुसूचित जाति के महादलित समुदाय के लोगों का मानना है कि मांझी गरीबों के हक के लिए लड़ रहे है, नीतीश कुमार दलितों-महादलितों के विकास में बाधक है। मतलब इससे पहले ऐसा नहीं हो रहा था अचानक कुर्सी का लोभ देख गरीबी व दलित नेतृत्व लोगों को मांझी जी के अंदर दिखने लगा है। बहरहाल, महादलित समुदाय के लोग जीतन राम मांझी का रट लगाये हुये है, कोई अपना मसीहा मान रहा है, तो कोई गरीबों का नेता। नीतीश कुमार एवं जीतनराम मांझी के समर्थक प्रत्यक्ष संघर्ष पर उतारू हो गये है। माहौल को प्रभावित करने में मुख्यतः मांझी के समर्थकगणों अर्थात् अंबेडकर मिशनरी स्वयंसेवी संस्थायें, अनार्य कहे जाने वाले मूल निवासीगण अपनी आवाज को दृढ़ प्रबलता से एवं उत्साहपूर्वक मांझी जी के पक्ष में बुलंद कर हौसला आफजाई कर रहे है। कुछ लोग इस परिस्थिति को सामाजिक संघर्ष का नाम देना चाह रहे तो कुछेक को मानना है कि मांझी जी भारत के मूल निवासियों के आवाज बन गये है।

राजनैतिक पार्टियां भी इस बिगड़ती हालात को देख माहौल खराब कर रही है। जदयू पार्टी के अन्दर चल रही अन्तर्हकलह को उकसाने में विपक्षी पार्टियां; शीर्ष नेता अपनी हथकंडो के सहारे मांझी को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। यहां लोग कल तक मांझी को नीतीश का खास आदमी कहा करते थे। इस विषय को लेकर विपक्षी पार्टियों की चिन्ता सत्तारूढ़ पार्टी की चिन्ता से कहीं अधिक दिख रही है, जबकि यह एक पार्टी का आंतरिक मामला है। इस मसले का उचित निर्णायक जनता दल यूनाइटेड पार्टी की हाइकमान को ही होनी चाहिए थी मगर माहौल इतना खराब कर दिया गया है कि सत्तारूढ़ पार्टी को अपनी इस परिस्थिति पर काबू कर पाना जटिल हो गया है। ऐसी परिस्थिति पैदा करने की दोषी न नीतीश कुमार है और न ही जदयू पार्टी; बल्कि इसका जिम्मेदार स्वयं जीतन राम मांझी है। हो सकता है कि मांझी के क्रियाकलापों व कार्यों से सत्तारूढ़ पार्टी को संतोषजनक परिणाम न मिल पा रहा हो। स्वाभाविक है कि इस प्रकार परिवर्तन करना कोई भी चाहेगा।

अगर देखा जाय तो मांझी समर्थकों द्वारा इस प्रकार से गुटबाजी तोड़-फोड़ की नीति मात्र है। अब कुर्सी जाने के भय से मांझी नीतीश कुमार को स्वार्थी और अपने को स्वावलम्बी साबित कर रहे है। नीतीश कुमार पर विपक्षीगण यह आरोप लगा रहे है कि अपनी कुर्सी फिर से पाने के कारण मांझी को हटाने का षडयन्त्र रचा गया। यहां कुछ लोगों को बड़ा-बेजोड़ तर्क है कि मांझी जी बहुत अच्छा कार्य कर रहे थे वे अपने पारंपरिक संस्कृति को समाज के प्रति बढ़ावा दे रहे थे। जबकि अम्बेडकर मिशनरी स्वयंसेवी दलित संस्थाए इस संस्कृति का विरोध कर आधुनिक वैज्ञानिक संस्कृति को समाज के लिए हितकर मानती है। खैर, जब मांझी जी कार्य अच्छा कर रहे थे तो क्या जदयू पार्टी की सहमति बगैर हीं।

गौरतलब है कि विगत लोकसभा चुनाव के परिणामों से विक्षुब्ध होकर जदयू ने एक ऐसा चेहरा लाने की कोशिश की जो दलित नेतृत्व को अच्छा से निर्वहन कर सके। चाहे वह वोट बैंक की शर्त ही क्यों न हो या फिर दलित समाज के विकास को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय। फलस्वरूप जीतनराम मांझी को जदयू ने ढूंढ निकाला और मुख्यमंत्री पद पर आसीन किया। अब मुख्यमंत्री का बागडोर संभालने के बावजूद भी मांझी अनुसूचित जाति के भावनाओं को नहीं समझ पाये। यहां बता दे कि जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद ग्रहण के समय से लेकर आज तक अनुसूचित जाति समूह के लोगों का ध्यान ‘‘दलित-महादलित’’ प्रकरण को खत्म करने पर केन्द्रित था। फिर भी उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया, उस समय से लेकर आज तक मांझी इस प्रकरण के प्रति अपनी संवेदन शून्यता का परिचय दिया। जबकि मांझी जानते थे कि दलित-महादलित प्रकरण बिल्कुल निराधार है। अब मांझी अनुसूचित जातियों के बड़ा हितैषी बन रहे है। मैं उन तमाम दलित बुद्धिजीवियों से पूछना चाहूंगा कि आखिर इतनी गंभीर मुद्दा अर्थात गैर संवैधानिक तरीके से लागू किया गया ‘‘दलित-महादलित’’ प्रकरण पर मांझी अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में चर्चा तक नहीं की कि क्या उचित है, क्या अनुचित है; आखिर क्यों?

मांझी सिर्फ अनाप-शनाप की बातों में लोगों को उलझाते रहे, समाज को विकास की राहों पर लाने की जगह ट्रेडिशनल कल्चर अर्थात् शराब पीने, मांस खाने जैसे दलित विरोधी बयान ही इनके मुख से निकलते रहे परन्तु दलित उत्थान के लिए एक कदम भी आगे नहीं आये। आज वे कह रहे है कि मैं रबर स्टाम्प नहीं बनना चाहता जबकि एक मुख्यमंत्री कभी रबर स्टाम्प नहीं हो सकता अगर होता है तो उसी समय अपनी कर्मठता का परिचय श्री मांझी क्यों नहीं दिये। अब तो यहीं कहा जायेगा कि कुर्सी के लालच में मांझी एक नेता के रूप में संघर्ष कर रहे है, जिससे कि उनकी कुर्सी बनी रहे। अब इस स्थिति में मांझी को छोड़ देने के अलावा नीतीश कुमार के पास कोई अन्य विकल्प था ही नहीं। यहां सत्तारूढ़ पार्टी भली-भांति जानती है कि इसी सत्र में आगमी बिहार विधानसभा चुनाव का होना सुनिश्चित है फिर भी इस प्रकार का निर्णय लेना पार्टी की मजबूरी नहीं तो और क्या। सभी जानते है कि ऐसी निर्णय से सियासी महकमों में भूचाल आ सकता है, दलित समाज के वोट बैंक पर प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में जदयू व नीतीश कुमार को दोषी करार देना बेईमानी होगा। इससे पहले क्या नीतीश कुमार को कुर्सी की लालच नहीं थी जो कि अब होगी, वो भी सरकार की समयावधि के अन्तिम समय में, निश्चित ही मांझी के कर्तव्यहीनता का परिणाम है।


दलित समाज के प्रति सहानुभूति का संदेश देने की कोशिश में जदयू तथा नीतीश कुमार स्वयं ही ‘‘दलित-महादलित’’ प्रकरण को लागू कर फंसे हुये नजर आ रहे है। हां, यह सत्य है कि दलित-महादलित फैक्टर को लेकर भारत के सम्पूर्ण अनुसूचित जाति के लोग नीतीश कुमार के प्रति आक्रोशित व नाराज है। नाराजगी का मुख्य कारण भी यहीं है। यदि इस प्रकरण को जदयू पार्टी गंभीरता से लेती तो कतई दलित-महादलित प्रकरण लागू नहीं किया जाता। सत्ता रूढ़ पार्टी इस प्रकरण को लागू करते समय काफी सहज समझी ये नहीं ध्यान दिया कि इस प्रकरण का परिणाम क्या होने वाला है। यदि जदयू सरकार यह सोंचती तो शायद उनको विगत लोकसभा चुनाव के परिणामों से मुंह नहीं खानी पड़ती। यदि अब भी इस प्रकरण को जदयू भंग नहीं करती है तो विगत चुनाव परिणामों के भांति ही आगामी विधानसभा चुनाव के परिणाम देखना पड़ सकता है। सत्तारूढ़ जदयू अनुसूचित जाति के लोगों को दो भागों में विभक्त कर दलित-महादलित का नया नाम दिया, जो कि असंवैधानिक है। यह भी है कि किस आधार पर नीतीश कुमार ने दलित-महादलित को दो भागों में बंटवारा किया, यह कितना न्यायप्रिय है? देखा जाय तो जदयू सरकार ने साधारण विधी द्वारा अनुसूचित जातियों में सामाजिक रूप से पिछड़ा अर्थात अविकसित को महादलित का नामकरण कर दिया तथा सामाजिक रूप से विकसित को दलित का नाम दिया गया। इस प्रकार यह प्रणाली अनुचित है। नीतीश कुमार इस प्रकरण की गहराई में न जाकर सिर्फ मौखिक आधार पर ही अनुसूचित जातियों का चयन किया। यहां पार्टी ने अपनी जज्बाती इरादों के कारण अदूरदर्शिता का भी परिचय दी है।


यदि जाति आधारित न होकर आर्थिक आधार पर दलित-महादलित का वर्गीकरण किया जाता तो भी लोागें को समझ आता; हालांकि यह प्रकरण लागू कारना ही असंवैधानिक एवं निन्दनीय है। यदि दलित-महादलित प्रकरण लागू किया भी गया तो इसका कोई ठोस आधार नही है चूकि जिनको महादलित की श्रेणी में होनी चााहिए वे दलित की श्रेणी में है, जिन्हे दलित की श्रेणी में होनी चााहिए वे महादंिलत के श्रेणी में हैं। इस नियम के अनुसार सिर्फ महानलिदों को ही अधिकतम सरकारी सुविघायें दी जा रही दंिलत बेचारे वंचित है। एक तरफ महादलित सुविधाओं का लाभ ले रहे है, तो दूसरी तरफ एक गरीब दलित निराश हो रहा है। इस स्थिति में एक दूसरों के प्रति भेदभाव द्वेष की भावना पनपना स्वाभाविक है। दलित एकजुटता के प्रति यह प्रकरण घातक है। इस स्थिति में दलित शुभचिंतको, बुद्विजीवियों के मन में ढेस पहुंचना जायज है। शायद इसी वजह से आज अनुसूचित जाति के लोग नीतीश कुमार एवं जदयू पार्टी के प्रति नाराज है। यहां सभी मान रहे है कि नीतीभ कुमार दलित समाज में फुट डालों और राज करो की नीति अपनाई है। जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने इस पर ध्यान नहीं दिया। अब इस दलित महादलित प्रकरण को खत्म करने की असमंजसता जोे पार्टी के अंदर दिखाई दे रही है उसका सामाधान पार्टी किस प्रकार से करती है कहना मुश्किल है। ऐसा तो नहीं इस प्रकरण को खत्म करने के लिए जदयू अंदर से भयभीत हो रही हो कि कहीं ऐसा न हो जाय कि लाभान्वित परिवार भी पार्टी से मोह-माया तोड़ दे। प्रकरण को भंग हो जाने से लाभान्वितों की पार्टी के प्रति क्या प्रतिक्रिया रहेगी, इसी दुविधा भरी मुश्किलों में फंसे है नीतीश कुमार।

अब; इधर दोनों नेता जीतन राम मांझी एवम् नीतीश कुमार विघानसभा में बहुमत का दावा कर रहे है। कानूनी दांव-पेंच चल रहे है जिससे संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है। यहां यह भी देखना है कि दोनों के बीच बहुमत के फैसले का संवैधानिक तरीका क्या है। जीतन राम मांझी की हठधर्मिता के कारण मामला और पेचीदा होता जा रहा है। यदि कार्य अवधि से पहले ही सरकार गिरने की फिराक चल रही है तो इससे प्रदेश को क्षति होगी। इससे जनता की भावनाओं पर भी ठेस पंहुचेगी चूंकि जदयू पूर्ण बहुमत की सरकार है। खैर इस रणनीति में श्री मांझी जी किसी दूसरे के इशारों पर कहीं न कहीं तो अपनी दृढ़ता का अंजाम दे रहे है। यदि वे इस रणनीति में सफल हो भी गए तो क्या वे दलितों के प्रति अपनी दृढ़ता रख पायेंगे। उस समय भी तो तमाम गढबंघनो की गांठ के बोझ उनको हिला कर रख देगी। मानता हूं कि मांझी जी कि संवेदनायें दलितो, शोषितों की भावनाओं जुड़ी है मगर समाज का विकास भावनाओं से नहीं होता।

कुल मिलाकर यदि लोग जीतन राम मांझी के क्रिया-कलापों, कार्यों से खुश होकर स्वीकारते है वही दूसरी तरफ नीतीश कुमार व जदयू को नकारते है तो निश्चित रूप से भारतीय राजनीति के इतिहास में एक नया ऐतिहासिक अध्याय जुड़ेगा कि को कोई भी पार्टी अध्यक्ष अपनी भावनाओं व वोटों की राजनीति से प्रेरित होकर शासकीय कुर्सी का बागडोर नहीं देगा।


प्रस्तुतकर्ता
राजू पासवान ‘‘राज’’
सामाजिक कार्यकर्ता
9450887493