जानिए भीम में कैसे आया हजार हाथियों का बल?

पौराणिक महाकाव्य महाभारत के बारे में जानता तो हर कोई है| यह एक ऐसा शास्‍त्र है जिसके बारे में सबसे ज्‍यादा चर्चा और बातें की जाती है और इस काव्‍य में कई रहस्‍य है जिनके बारे में आजतक सही-सही पता नहीं लग पाया है या फिर बहुत कम लोगों को ही पता है। उदाहरण के लिए- पाण्डु पुत्र भीम के बारे में जानते तो सभी लोग होंगे कि भीम में हज़ार हाथियों का बल था जिसके चलते एक बार तो उसने अकेले ही नर्मदा नदी का प्रवाह रोक दिया था। लेकिन क्या आपको पता है कि भीम में हजार हाथियों का बल कैसे आया?

इसकी कहानी भी बड़ी रोचक है| यह सभी जानते हैं कि गांधारी का बड़ा पु‍त्र दुर्योधन और गांधारी का भाई शकुनि, कुंती के पुत्रों को मारने के लिए नई-नई योजनाएं बनाते थे। इसी योजना के तहत एक बार दुष्ट दुर्योधन ने एक बार खेलने के लिए गंगा तट पर शिविर लगवाया। उस स्थान का नाम रखा उदकक्रीडन। वहां खाने-पीने इत्यादि सभी सुविधाएं भी थीं। दुर्योधन ने पाण्डवों को भी वहां बुलाया। एक दिन मौका पाकर दुर्योधन ने भीम के भोजन में विष मिला दिया। विष के असर से जब भीम अचेत हो गए तो दुर्योधन ने दु:शासन के साथ मिलकर उसे गंगा में डाल दिया। भीम इसी अवस्था में नागलोक पहुंच गए। वहां सांपों ने भीम को खूब डंसा जिसके प्रभाव से विष का असर कम हो गया। जब भीम को होश आया तो वे सर्पों को मारने लगे। सभी सर्प डरकर नागराज वासुकि के पास गए और पूरी बात बताई।

तब वासुकि स्वयं भीमसेन के पास गए। उनके साथ आर्यक नाग ने भीम को पहचान लिया। आर्यक नाग भीम के नाना का नाना था। वह भीम से बड़े प्रेम से मिले। तब आर्यक ने वासुकि से कहा कि भीम को उन कुण्डों का रस पीने की आज्ञा दी जाए जिनमें हजारों हाथियों का बल है। वासुकि ने इसकी स्वीकृति दे दी। तब भीम आठ कुण्ड पीकर एक दिव्य शय्या पर सो गए। नागलोक में भीम आठवें दिन रस पच जाने पर जागे। तब नागों ने भीम को गंगा के बाहर छोड़ दिया। जब भीम सही-सलामत हस्तिनापुर पहुंचे तो सभी को बड़ा संतोष हुआ। तब भीम ने माता कुंती व अपने भाइयों के सामने दुर्योधन द्वारा विष देकर गंगा में फेंकने तथा नागलोक में क्या-क्या हुआ, यह सब बताया। युधिष्ठिर ने भीम से यह बात किसी और को नहीं बताने के लिए कहा।

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जानिए परशुराम ने क्यों काटा था अपनी मां का सिर?

आपने अक्सर सुना और पढ़ा होगा कि राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका और भृगुवंशीय जमदग्नि के पुत्र और भगवान विष्णु के छठवें अवतार परशुराम ने अपनी मां का सिर काट लिया था| लेकिन हममें से कितने लोगों को इसके पीछे का कारण पता है। शायद बहुत कम लोगों को मालूम होगा। आइए जानते हैं कि भगवान परशुराम ने अपनी माता का सिर क्‍यूं काट लिया था?

प्राचीनकाल में कन्नौज नामक नगर में गाधि नामक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्‍चात् वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा। इस पर सत्यवती ने श्‍वसुर को प्रसन्न देखकर उनसे अपनी माता के लिये एक पुत्र की याचना की। सत्यवती की याचना पर भृगु ऋषि ने उसे दो चरु पात्र देते हुये कहा कि जब तुम और तुम्हारी माता ऋतु स्नान कर चुकी हो तब तुम्हारी माँ पुत्र की इच्छा लेकर पीपल का आलिंगन करें और तुम उसी कामना को लेकर गूलर का आलिंगन करना। फिर मेरे द्वारा दिये गये इन चरुओं का सावधानी के साथ अलग अलग सेवन कर लेना। "इधर जब सत्यवती की माँ ने देखा कि भृगु जी ने अपने पुत्रवधू को उत्तम सन्तान होने का चरु दिया है तो अपने चरु को अपनी पुत्री के चरु के साथ बदल दिया।


इस प्रकार सत्यवती ने अपनी माता वाले चरु का सेवन कर लिया। योगशक्‍ति से भृगु जी को इस बात का ज्ञान हो गया और वे अपनी पुत्रवधू के पास आकर बोले कि पुत्री! तुम्हारी माता ने तुम्हारे साथ छल करके तुम्हारे चरु का सेवन कर लिया है। इसलिये अब तुम्हारी सन्तान ब्राह्मण होते हुये भी क्षत्रिय जैसा आचरण करेगी और तुम्हारी माता की सन्तान क्षत्रिय होकर भी ब्राह्मण जैसा आचरण करेगा। इस पर सत्यवती ने भृगु जी से विनती की कि आप आशीर्वाद दें कि मेरा पुत्र ब्राह्मण का ही आचरण करे, भले ही मेरा पौत्र क्षत्रिय जैसा आचरण करे। भृगु जी ने प्रसन्न होकर उसकी विनती स्वीकार कर ली। "समय आने पर सत्यवती के गर्भ से जमदग्नि का जन्म हुआ। जमदग्नि अत्यन्त तेजस्वी थे। बड़े होने पर उनका विवाह प्रसेनजित की कन्या रेणुका से हुआ। रेणुका से उनके पाँच पुत्र हुये जिनके नाम थे रुक्मवान, सुखेण, वसु, विश्‍वानस और परशुराम।

बताया जाता है कि परशुराम को भगवान शिव से विशेष परशु प्राप्त हुआ था। इनका नाम तो राम था, किन्तु शंकर द्वारा प्रदत्त अमोघ परशु को सदैव धारण किये रहने के कारण ये परशुराम कहलाते थे। विष्णु के दस अवतारों में से छठा अवतार, जो वामन एवं रामचन्द्र के मध्य में गिने जाता है। जमदग्नि के पुत्र होने के कारण ये जामदग्न्य भी कहे जाते हैं। इनका जन्म अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया) को हुआ था। दुर्वासा की भाँति परशुराम अपने क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात है। एक बार कार्त्तवीर्य ने परशुराम की अनुपस्थिति में आश्रम उजाड़ डाला था, जिससे परशुराम ने क्रोधित हो उसकी सहस्त्र भुजाओं को काट डाला। कार्त्तवीर्य के सम्बन्धियों ने प्रतिशोध की भावना से जमदग्नि का वध कर दिया। इस पर परशुराम ने 21 बार पृथ्वी को क्षत्रिय-विहीन कर दिया और पाँच झीलों को रक्त से भर दिया।

एक दिन जब सब सब पुत्र फल लेने के लिए वन चले गए तब परशुराम की माता रेणुका स्नान करने को गई, जिस समय वह स्नान करके आश्रम को लौट रही थीं, उन्होंने राजा चित्ररथ को जलविहार करते देखा। यह देखकर उनका मन विचलित हो गया। इस अवस्था में जब उन्होंने आश्रम में प्रवेश किया तो महर्षि जमदग्नि ने यह बात जान ली। इतने में ही वहां परशुराम के बड़े भाई रुक्मवान, सुषेणु, वसु और विश्वावसु भी आ गए। महर्षि जमदग्नि ने उन सभी से बारी-बारी अपनी मां का वध करने को कहा लेकिन मोहवश किसी ने ऐसा नहीं किया। तब मुनि ने उन्हें श्राप दे दिया और उनकी विचार शक्ति नष्ट हो गई।

तभी वहां परशुराम आ गए। उन्होंने पिता के आदेश पाकर तुरंत अपनी मां का वध कर दिया। यह देखकर महर्षि जमदग्नि बहुत प्रसन्न हुए और परशुराम को वर मांगने के लिए कहा। तब परशुराम ने अपने पिता से माता रेणुका को पुनर्जीवित करने और चारों भाइयों को ठीक करने का वरदान मांगा। साथ ही इस बात का किसी को याद न रहने और अजेय होने का वरदान भी मांगा। महर्षि जमदग्नि ने उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर दीं।

बिहार की सियासत में सत्ता संघर्ष एक दलित परिचर्चा


लखनऊ| बिहार के मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी और नीतीश कुमार के बीच जो सत्ता संघर्ष की होड़ लगी है, काफी दिलचस्प दिखता जा रहा है। कुर्सी की लोभ में नीतीश कुमार ही क्यों, जबकि सबसे ज्यादा जीतनराम मांझी अपनी भूमिका बनाने में अग्रणी है। वे अपने बेबाक आचरण के साथ डटे हुये है। मांझी के समर्थकगण भी अपनी अदूरदर्शिता के कारण लगातार आग में घी डालने का कार्य कर रहे है। यहां कुछेक दलित चिंतकगण अचानक मांझी जी के समर्थन में धरना-प्रदर्शन हुडदंग इत्यादि करने लगे है। यहां अनुसूचित जाति के महादलित समुदाय के लोगों का मानना है कि मांझी गरीबों के हक के लिए लड़ रहे है, नीतीश कुमार दलितों-महादलितों के विकास में बाधक है। मतलब इससे पहले ऐसा नहीं हो रहा था अचानक कुर्सी का लोभ देख गरीबी व दलित नेतृत्व लोगों को मांझी जी के अंदर दिखने लगा है। बहरहाल, महादलित समुदाय के लोग जीतन राम मांझी का रट लगाये हुये है, कोई अपना मसीहा मान रहा है, तो कोई गरीबों का नेता। नीतीश कुमार एवं जीतनराम मांझी के समर्थक प्रत्यक्ष संघर्ष पर उतारू हो गये है। माहौल को प्रभावित करने में मुख्यतः मांझी के समर्थकगणों अर्थात् अंबेडकर मिशनरी स्वयंसेवी संस्थायें, अनार्य कहे जाने वाले मूल निवासीगण अपनी आवाज को दृढ़ प्रबलता से एवं उत्साहपूर्वक मांझी जी के पक्ष में बुलंद कर हौसला आफजाई कर रहे है। कुछ लोग इस परिस्थिति को सामाजिक संघर्ष का नाम देना चाह रहे तो कुछेक को मानना है कि मांझी जी भारत के मूल निवासियों के आवाज बन गये है।

राजनैतिक पार्टियां भी इस बिगड़ती हालात को देख माहौल खराब कर रही है। जदयू पार्टी के अन्दर चल रही अन्तर्हकलह को उकसाने में विपक्षी पार्टियां; शीर्ष नेता अपनी हथकंडो के सहारे मांझी को भड़काने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। यहां लोग कल तक मांझी को नीतीश का खास आदमी कहा करते थे। इस विषय को लेकर विपक्षी पार्टियों की चिन्ता सत्तारूढ़ पार्टी की चिन्ता से कहीं अधिक दिख रही है, जबकि यह एक पार्टी का आंतरिक मामला है। इस मसले का उचित निर्णायक जनता दल यूनाइटेड पार्टी की हाइकमान को ही होनी चाहिए थी मगर माहौल इतना खराब कर दिया गया है कि सत्तारूढ़ पार्टी को अपनी इस परिस्थिति पर काबू कर पाना जटिल हो गया है। ऐसी परिस्थिति पैदा करने की दोषी न नीतीश कुमार है और न ही जदयू पार्टी; बल्कि इसका जिम्मेदार स्वयं जीतन राम मांझी है। हो सकता है कि मांझी के क्रियाकलापों व कार्यों से सत्तारूढ़ पार्टी को संतोषजनक परिणाम न मिल पा रहा हो। स्वाभाविक है कि इस प्रकार परिवर्तन करना कोई भी चाहेगा।

अगर देखा जाय तो मांझी समर्थकों द्वारा इस प्रकार से गुटबाजी तोड़-फोड़ की नीति मात्र है। अब कुर्सी जाने के भय से मांझी नीतीश कुमार को स्वार्थी और अपने को स्वावलम्बी साबित कर रहे है। नीतीश कुमार पर विपक्षीगण यह आरोप लगा रहे है कि अपनी कुर्सी फिर से पाने के कारण मांझी को हटाने का षडयन्त्र रचा गया। यहां कुछ लोगों को बड़ा-बेजोड़ तर्क है कि मांझी जी बहुत अच्छा कार्य कर रहे थे वे अपने पारंपरिक संस्कृति को समाज के प्रति बढ़ावा दे रहे थे। जबकि अम्बेडकर मिशनरी स्वयंसेवी दलित संस्थाए इस संस्कृति का विरोध कर आधुनिक वैज्ञानिक संस्कृति को समाज के लिए हितकर मानती है। खैर, जब मांझी जी कार्य अच्छा कर रहे थे तो क्या जदयू पार्टी की सहमति बगैर हीं।

गौरतलब है कि विगत लोकसभा चुनाव के परिणामों से विक्षुब्ध होकर जदयू ने एक ऐसा चेहरा लाने की कोशिश की जो दलित नेतृत्व को अच्छा से निर्वहन कर सके। चाहे वह वोट बैंक की शर्त ही क्यों न हो या फिर दलित समाज के विकास को ध्यान में रखकर लिया गया निर्णय। फलस्वरूप जीतनराम मांझी को जदयू ने ढूंढ निकाला और मुख्यमंत्री पद पर आसीन किया। अब मुख्यमंत्री का बागडोर संभालने के बावजूद भी मांझी अनुसूचित जाति के भावनाओं को नहीं समझ पाये। यहां बता दे कि जीतनराम मांझी को मुख्यमंत्री पद ग्रहण के समय से लेकर आज तक अनुसूचित जाति समूह के लोगों का ध्यान ‘‘दलित-महादलित’’ प्रकरण को खत्म करने पर केन्द्रित था। फिर भी उन्होंने कोई निर्णय नहीं लिया, उस समय से लेकर आज तक मांझी इस प्रकरण के प्रति अपनी संवेदन शून्यता का परिचय दिया। जबकि मांझी जानते थे कि दलित-महादलित प्रकरण बिल्कुल निराधार है। अब मांझी अनुसूचित जातियों के बड़ा हितैषी बन रहे है। मैं उन तमाम दलित बुद्धिजीवियों से पूछना चाहूंगा कि आखिर इतनी गंभीर मुद्दा अर्थात गैर संवैधानिक तरीके से लागू किया गया ‘‘दलित-महादलित’’ प्रकरण पर मांझी अपने मुख्यमंत्रीत्व काल में चर्चा तक नहीं की कि क्या उचित है, क्या अनुचित है; आखिर क्यों?

मांझी सिर्फ अनाप-शनाप की बातों में लोगों को उलझाते रहे, समाज को विकास की राहों पर लाने की जगह ट्रेडिशनल कल्चर अर्थात् शराब पीने, मांस खाने जैसे दलित विरोधी बयान ही इनके मुख से निकलते रहे परन्तु दलित उत्थान के लिए एक कदम भी आगे नहीं आये। आज वे कह रहे है कि मैं रबर स्टाम्प नहीं बनना चाहता जबकि एक मुख्यमंत्री कभी रबर स्टाम्प नहीं हो सकता अगर होता है तो उसी समय अपनी कर्मठता का परिचय श्री मांझी क्यों नहीं दिये। अब तो यहीं कहा जायेगा कि कुर्सी के लालच में मांझी एक नेता के रूप में संघर्ष कर रहे है, जिससे कि उनकी कुर्सी बनी रहे। अब इस स्थिति में मांझी को छोड़ देने के अलावा नीतीश कुमार के पास कोई अन्य विकल्प था ही नहीं। यहां सत्तारूढ़ पार्टी भली-भांति जानती है कि इसी सत्र में आगमी बिहार विधानसभा चुनाव का होना सुनिश्चित है फिर भी इस प्रकार का निर्णय लेना पार्टी की मजबूरी नहीं तो और क्या। सभी जानते है कि ऐसी निर्णय से सियासी महकमों में भूचाल आ सकता है, दलित समाज के वोट बैंक पर प्रभाव पड़ सकता है। ऐसे में जदयू व नीतीश कुमार को दोषी करार देना बेईमानी होगा। इससे पहले क्या नीतीश कुमार को कुर्सी की लालच नहीं थी जो कि अब होगी, वो भी सरकार की समयावधि के अन्तिम समय में, निश्चित ही मांझी के कर्तव्यहीनता का परिणाम है।


दलित समाज के प्रति सहानुभूति का संदेश देने की कोशिश में जदयू तथा नीतीश कुमार स्वयं ही ‘‘दलित-महादलित’’ प्रकरण को लागू कर फंसे हुये नजर आ रहे है। हां, यह सत्य है कि दलित-महादलित फैक्टर को लेकर भारत के सम्पूर्ण अनुसूचित जाति के लोग नीतीश कुमार के प्रति आक्रोशित व नाराज है। नाराजगी का मुख्य कारण भी यहीं है। यदि इस प्रकरण को जदयू पार्टी गंभीरता से लेती तो कतई दलित-महादलित प्रकरण लागू नहीं किया जाता। सत्ता रूढ़ पार्टी इस प्रकरण को लागू करते समय काफी सहज समझी ये नहीं ध्यान दिया कि इस प्रकरण का परिणाम क्या होने वाला है। यदि जदयू सरकार यह सोंचती तो शायद उनको विगत लोकसभा चुनाव के परिणामों से मुंह नहीं खानी पड़ती। यदि अब भी इस प्रकरण को जदयू भंग नहीं करती है तो विगत चुनाव परिणामों के भांति ही आगामी विधानसभा चुनाव के परिणाम देखना पड़ सकता है। सत्तारूढ़ जदयू अनुसूचित जाति के लोगों को दो भागों में विभक्त कर दलित-महादलित का नया नाम दिया, जो कि असंवैधानिक है। यह भी है कि किस आधार पर नीतीश कुमार ने दलित-महादलित को दो भागों में बंटवारा किया, यह कितना न्यायप्रिय है? देखा जाय तो जदयू सरकार ने साधारण विधी द्वारा अनुसूचित जातियों में सामाजिक रूप से पिछड़ा अर्थात अविकसित को महादलित का नामकरण कर दिया तथा सामाजिक रूप से विकसित को दलित का नाम दिया गया। इस प्रकार यह प्रणाली अनुचित है। नीतीश कुमार इस प्रकरण की गहराई में न जाकर सिर्फ मौखिक आधार पर ही अनुसूचित जातियों का चयन किया। यहां पार्टी ने अपनी जज्बाती इरादों के कारण अदूरदर्शिता का भी परिचय दी है।


यदि जाति आधारित न होकर आर्थिक आधार पर दलित-महादलित का वर्गीकरण किया जाता तो भी लोागें को समझ आता; हालांकि यह प्रकरण लागू कारना ही असंवैधानिक एवं निन्दनीय है। यदि दलित-महादलित प्रकरण लागू किया भी गया तो इसका कोई ठोस आधार नही है चूकि जिनको महादलित की श्रेणी में होनी चााहिए वे दलित की श्रेणी में है, जिन्हे दलित की श्रेणी में होनी चााहिए वे महादंिलत के श्रेणी में हैं। इस नियम के अनुसार सिर्फ महानलिदों को ही अधिकतम सरकारी सुविघायें दी जा रही दंिलत बेचारे वंचित है। एक तरफ महादलित सुविधाओं का लाभ ले रहे है, तो दूसरी तरफ एक गरीब दलित निराश हो रहा है। इस स्थिति में एक दूसरों के प्रति भेदभाव द्वेष की भावना पनपना स्वाभाविक है। दलित एकजुटता के प्रति यह प्रकरण घातक है। इस स्थिति में दलित शुभचिंतको, बुद्विजीवियों के मन में ढेस पहुंचना जायज है। शायद इसी वजह से आज अनुसूचित जाति के लोग नीतीश कुमार एवं जदयू पार्टी के प्रति नाराज है। यहां सभी मान रहे है कि नीतीभ कुमार दलित समाज में फुट डालों और राज करो की नीति अपनाई है। जदयू राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने इस पर ध्यान नहीं दिया। अब इस दलित महादलित प्रकरण को खत्म करने की असमंजसता जोे पार्टी के अंदर दिखाई दे रही है उसका सामाधान पार्टी किस प्रकार से करती है कहना मुश्किल है। ऐसा तो नहीं इस प्रकरण को खत्म करने के लिए जदयू अंदर से भयभीत हो रही हो कि कहीं ऐसा न हो जाय कि लाभान्वित परिवार भी पार्टी से मोह-माया तोड़ दे। प्रकरण को भंग हो जाने से लाभान्वितों की पार्टी के प्रति क्या प्रतिक्रिया रहेगी, इसी दुविधा भरी मुश्किलों में फंसे है नीतीश कुमार।

अब; इधर दोनों नेता जीतन राम मांझी एवम् नीतीश कुमार विघानसभा में बहुमत का दावा कर रहे है। कानूनी दांव-पेंच चल रहे है जिससे संवैधानिक संकट की स्थिति पैदा हो गई है। यहां यह भी देखना है कि दोनों के बीच बहुमत के फैसले का संवैधानिक तरीका क्या है। जीतन राम मांझी की हठधर्मिता के कारण मामला और पेचीदा होता जा रहा है। यदि कार्य अवधि से पहले ही सरकार गिरने की फिराक चल रही है तो इससे प्रदेश को क्षति होगी। इससे जनता की भावनाओं पर भी ठेस पंहुचेगी चूंकि जदयू पूर्ण बहुमत की सरकार है। खैर इस रणनीति में श्री मांझी जी किसी दूसरे के इशारों पर कहीं न कहीं तो अपनी दृढ़ता का अंजाम दे रहे है। यदि वे इस रणनीति में सफल हो भी गए तो क्या वे दलितों के प्रति अपनी दृढ़ता रख पायेंगे। उस समय भी तो तमाम गढबंघनो की गांठ के बोझ उनको हिला कर रख देगी। मानता हूं कि मांझी जी कि संवेदनायें दलितो, शोषितों की भावनाओं जुड़ी है मगर समाज का विकास भावनाओं से नहीं होता।

कुल मिलाकर यदि लोग जीतन राम मांझी के क्रिया-कलापों, कार्यों से खुश होकर स्वीकारते है वही दूसरी तरफ नीतीश कुमार व जदयू को नकारते है तो निश्चित रूप से भारतीय राजनीति के इतिहास में एक नया ऐतिहासिक अध्याय जुड़ेगा कि को कोई भी पार्टी अध्यक्ष अपनी भावनाओं व वोटों की राजनीति से प्रेरित होकर शासकीय कुर्सी का बागडोर नहीं देगा।


प्रस्तुतकर्ता
राजू पासवान ‘‘राज’’
सामाजिक कार्यकर्ता
9450887493

कामवासना शांत न करने पर उर्वशी ने दिया अर्जुन को नपुंसकता का श्राप


महाभारत वह महाकाव्य है जिसके बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसे चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| एक बार चित्रसेन अर्जुन को संगीत और नृत्य की शिक्षा दे रहे थे, वहाँ पर इन्द्र की अप्सरा उर्वशी आई और अर्जुन पर मोहित हो गई। अवसर पाकर उर्वशी ने अर्जुन से कहा, “हे अर्जुन! आपको देखकर मेरी काम-वासना जागृत हो गई है, अतः आप कृपया मेरे साथ विहार करके मेरी काम-वासना को शांत करें।”

उर्वशी के वचन सुनकर अर्जुन बोले, “हे देवि! हमारे पूर्वज ने आपसे विवाह करके हमारे वंश का गौरव बढ़ाया था अतः पुरु वंश की जननी होने के नाते आप हमारी माता के तुल्य हैं। देवि! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।” अर्जुन की बातों से उर्वशी के मन में बड़ा क्षोभ उत्पन्न हुआ और उसने अर्जुन से कहा, “तुमने नपुंसकों जैसे वचन कहे हैं, अतः मैं तुम्हें शाप देती हूँ कि तुम एक वर्ष तक पुंसत्वहीन रहोगे।” इतना कहकर उर्वशी वहाँ से चली गई।

इस घटना की जानकारी जब देवराज इंद्र को हुई बड़े प्रसन्न हुए और अर्जुन से बोले, “वत्स! तुमने जो व्यवहार किया है, वह तुम्हारे योग्य ही था। उर्वशी का यह शाप भी भगवान की इच्छा थी, यह शाप तुम्हारे अज्ञातवास के समय काम आयेगा। अपने एक वर्ष के अज्ञातवास के समय ही तुम पुंसत्वहीन रहोगे और अज्ञातवास पूर्ण होने पर तुम्हें पुनः पुंसत्व की प्राप्ति हो जायेगी।”

उर्वशी द्वारा दिए गए इसी शाप के कारण ही अर्जुन एक वर्ष के अज्ञात वास के दौरान बृहन्नला बने थे। इस बृहन्नला के रूप में अर्जुन ने उत्तरा को एक वर्ष नृत्य सिखाया था। उत्तरा विराट नगर के राजा विराट की पुत्री थी। अज्ञातवास के बाद उत्तरा का विवाह अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से हुआ था।

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देश मना रहा 66वां गणतंत्र दिवस, राजपथ पर दिखी हिन्दुस्तान की ताकत

देशभर में 66वां गणतंत्र दिवस पूरे जोश और उल्लास से मनाया गया। इस मौके पर ऐतिहासिक राजपथ पर पारंपरिक परेड का आयोजन हुआ। इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को बतौर मुख्य अतिथि आमंत्रित किया गया । परेड में भारत की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक विविधता की झांकी दिखी, जहां थल और नौसेना के साथ वायु शक्ति का शानदार प्रदर्शन हुआ। 66वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने सुबह 10 बजे तिरंगा फहराया। इस दौरान पीएम मोदी के साथ विदेशी मेहमान अमरिकी राष्ट्रपति और उनकी पत्नी मौजूद थी। राष्ट्रगान की धुन पर पूरा माहौल राष्ट्रभक्ति की भावना से भर गया। इसके बाद मेजर मुकुंद वर्धराजन और नायक नीरज कुमार को उनकी असाधरण वीरता के लिए मरणोपरांत अशोक चक्र प्रदान किया गया। इसके बाद भारत का शक्तिप्रदर्शन शुरू हुआ। मौसम की मार को धता बताते हुए तिरंगा लेकर हेलीकाप्टर भी राजपथ पहुंचे। उन पर तिरंगा और भारतीय सेना के झंडे लहरा रहे थे।


सुबह 10 बजकर पांच मिनट पर परेड कमांडर मेजर जनरल सुब्रतो मित्रा की अगुवाई में परेड शुरू हुई। परेड में सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया गया। इसमें युद्ध में उपयोग आधुनिक हथियारों को लेकर सेना के अधिकारी राजपथ पर कदमताल करते जा रहे थे। परेड के बाद सेना से संबंधित झाकियों ने मेहमानों का मन मोह लिया। इस बार गणतंत्र दिवस का मुख्य विषय ‘महिला सशक्तिकरण’ है और राजपथ पर मुख्य आकर्षण तीनों सेनाओं की महिला अधिकारियों का दस्ता रहा। रक्षा सूत्रों ने बताया कि महिला अधिकारियों के दस्ते का विचार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दिया क्योंकि वह चाहते थे कि सेना ‘नारी शक्ति’ को तवज्जो दें। ऐतिहासिक राजपथ पर 16 राज्यों और नौ केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों की झांकी प्रदर्शित की जाएगी, जिसमें देश की ऐतिहासिक, स्थापत्य और सांस्कृतिक धरोहर को रेखांकित किया जाएगा। इस वर्ष अधिकतम झांकियों पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘जनधन योजना, ‘मां गंगा’, स्वच्छ भारत मिशन’ आदि की छाप रहेगी जिसमें बुलेट ट्रेन और ‘मेक इन इंडिया’ को भी रेखांकित किया गया है।

ऐतिहासिक राजपथ पर प्रदर्शित झांकियों में एक अन्य अहम आकर्षण स्वदेश निर्मित थल सेना का सतह से हवा में मार करने वाला मध्यम दूरी का आकाश मिसाइल और हथियारों का पता लगाने वाला रडार शामिल है। इन दोनों को रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने तैयार किया है। पहली बार भारत लम्बी दूरी का नौवहन निगरानी एवं पनडुब्बी रोधी पी8 आई विमान तथा लम्बी दूरी के मिग 29 के लड़ाकू विमानों का प्रदर्शन करेगा। पी8 आई विमान को हाल ही में खरीदा गया है। भारतीय सेना के लेजर संचालित टी.90 टैंक भीष्म, बख्तरबंद वाहन बीएमपी-2 (सरथ), टी-72 टैंक आदि शामिल शामिल हैं। गणतंत्र दिवस के मौके राजपथ पर ‘पिनाक’ लांचर प्रणाली के अलावा सचल ब्रह्मोस मिसाइल प्रणाली का प्रदर्शन किया जायेगा। इसके साथ ही थ्री डायमेंशनल रणनीतिक नियंत्रित रडार, संचार प्लेटफार्म पर उपग्रह, पुन: तैनात किये जाने वाला उपग्रह टर्मिनल (आरएडीसैट) को भी प्रदर्शित किया गया।

भारतीय वायु सेना की झांकी में इस वर्ष का थीम ‘1965 युद्ध के 50 वर्ष’ है। वायु सेना इस बार भारत.पाक युद्ध के दौरान प्रदर्शित अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया। इस दौरान केनबरा बमवषर्क, एमआई.4 हेलीकाप्टर और पैकेट परिवहन विमान का प्रदर्शन किया जायेगा। गणतंत्र दिवस पर ऐतिहासिक राजपथ पर परेड के दौरान इस वर्ष नौसेना का थीम ‘उभरते हुए राष्ट्र के लिए सुरक्षित समुद्र सुनिश्चित करना’ है। नौसेना की झांकी में नौवहन युद्ध के चारों आयामों को समाहित करते हुए कुछ अग्रिम अस्तियों का प्रदर्शन किया जायेगा। नौसेना अत्मनिर्भरता और स्वदेशीकरण की अपनी पहल का प्रदर्शन करते हुए स्वदेश निर्मित विध्वंसक आईएनएस कोलताता से ब्रह्मोस मिसाइल प्रक्षेपित करने की झांकी पेश करेगी जिसकी पृष्ठभूमि में अत्याधुनिक हल्का हेलीकाप्टर ध्रूव होगा। इसकी दूसरी झांकी में ‘भारतीय नौसेना और नारी शक्ति’ विषय पर होगा जिसमें नौसेना की चार महिला अधिकारियों को समुद्री यात्रा में नौसेना के पोत ‘महादेई’ से गोवा से रियो दी जेनेरियो जाते दिखाया जाएगा।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के नए उपक्रमों 'मेक इन इंडिया' और 'जन धन योजना' को सोमवार को 66वें गणतंत्र दिवस परेड में प्रमुखता से शामिल किया गया। परेड के दौरान इनकी झांकियां भी राजपथ पर निकाली गईं। वित्त सेवा विभाग की झांकी 'प्रधानमंत्री जन धन योजना' पर आधारित थी, जिसमें अभियान की विशिष्टता को दिखाया गया। इस योजना का लक्ष्य सभी भारतीयों के बैंक खाते खोलना और कमजोर वर्गो और निम्न आय वालों को लाभान्वित करना है।

औद्योगिक नीति एवं प्रोत्साहन विभाग की झांकी में 'मेक इन इंडिया' को पेश किया गया और उसमें स्मार्ट सिटी की पृष्ठभूमि के बीच मशीन से बना शेर दिख रहा था। इसका लक्ष्य भारत में विनिर्माण को बढ़ावा देना है। कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ प्रधानमंत्री की एक अन्य पहल 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' को भी परेड में शामिल किया गया। मोदी ने 22 जनवरी को हरियाणा के पानीपत में इस अभियान की शुरुआत की।
झांकी में एक महिला अपनी नवजात कन्या शिशु को झुला रही थी, जबकि चिकित्सक, इंजीनियर और वैज्ञानिकों के भेष में अन्य महिलाएं उनके आसपास नजर आईं। मोदी सरकार की महात्वाकांक्षी परियोजना 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' की प्रतिकृति भी परेड में पेश की गई। यह परियोजना देश के प्रथम गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को समर्पित है, जिन्होंने रियासतों को भारतीय संघ में शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 'स्टैच्यू ऑफ यूनिटी' की प्रतिकृति गुजरात की झांकी में दिखाई गई, जो कि प्रधानमंत्री का गृह राज्य है। राजपथ पर कुल 25 झांकियां प्रदर्शित की गईं, जबकि पिछले साल यह संख्या 18 थी। परेड का आयोजन रक्षा मंत्रालय ने किया था। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा गणतंत्र दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए।

जानिए किस तरह हुआ द्रोपदी का जन्म और क्यों मिले थे पांच पति..?

महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित महाभारत जैसा अन्य कोई ग्रंथ नहीं है। यह ग्रंथ बहुत ही विचित्र और रोचक है। विद्वानों ने इसे पांचवां वेद भी कहा है। महाभारत में अनेक पात्र हैं, लेकिन एक पात्र है द्रोपदी का| क्या आप द्रोपदी के बारे में जानते हैं की कैसे हुआ था इनका जन्म और किस तरह से इन्हें मिले थे पांच पति? महाभारत ग्रंथ के अनुसार एक बार राजा द्रुपद ने कौरवो और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य का अपमान कर दिया था। गुरु द्रोणाचार्य इस अपमान को भूल नहीं पाए। इसलिए जब पण्डवों और कौरवों ने शिक्षा समाप्ति के पश्चात गुरु द्रोणाचार्य से गुरु दक्षिणा माँगने को कहा तो उन्होंने उनसे गुरु दक्षिणा में राजा द्रुपद को बंदी बनाकर अपने समक्ष प्रस्तुत करने को कहाँ। पहले कौरव राजा द्रुपद को बंदी बनाने गए पर वो द्रुपद से हार गए। कौरवों के पराजित होने के बाद पांडव गए और उन्होंने द्रुपद को बंदी बनाकर द्रोणाचार्य के समक्ष प्रस्तुत किया। द्रोणाचार्य ने अपने अपमान का बदला लेते हुए द्रुपद का आधा राज्य स्वयं के पास रख लिया और शेष राज्य द्रुपद को देकर उसे रिहा कर दिया।


इस तरह द्रौपदी पांच पांडवों की पत्नी पांचाली बन गई


गुरु द्रोण से पराजित होने के उपरान्त महाराज द्रुपद अत्यन्त लज्जित हुये और उन्हें किसी प्रकार से नीचा दिखाने का उपाय सोचने लगे। इसी चिन्ता में एक बार वे घूमते हुये कल्याणी नगरी के ब्राह्मणों की बस्ती में जा पहुँचे। वहाँ उनकी भेंट याज तथा उपयाज नामक महान कर्मकाण्डी ब्राह्मण भाइयों से हुई। राजा द्रुपद ने उनकी सेवा करके उन्हें प्रसन्न कर लिया एवं उनसे द्रोणाचार्य के मारने का उपाय पूछा। उनके पूछने पर बड़े भाई याज ने कहा, "इसके लिये आप एक विशाल यज्ञ का आयोजन करके अग्निदेव को प्रसन्न कीजिये जिससे कि वे आपको वे महान बलशाली पुत्र का वरदान दे देंगे।" महाराज ने याज और उपयाज से उनके कहे अनुसार यज्ञ करवाया। उनके यज्ञ से प्रसन्न हो कर अग्निदेव ने उन्हें एक ऐसा पुत्र दिया जो सम्पूर्ण आयुध एवं कवच कुण्डल से युक्त था। उसके पश्चात् उस यज्ञ कुण्ड से एक कन्या उत्पन्न हुई जिसके नेत्र खिले हुये कमल के समान देदीप्यमान थे, भौहें चन्द्रमा के समान वक्र थीं तथा उसका वर्ण श्यामल था। उसके उत्पन्न होते ही एक आकाशवाणी हुई कि इस बालिका का जन्म क्षत्रियों के सँहार और कौरवों के विनाश के हेतु हुआ है। बालक का नाम धृष्टद्युम्न एवं बालिका का नाम कृष्णा रखा गया जो की राजा द्रुपद की बेटी होने के कारण द्रौपदी कहलाई।


तो इसलिए महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र?


द्रौपदी पूर्व जन्म में एक बड़े ऋषि की गुणवान कन्या थी। वह रूपवती, गुणवती और सदाचारिणी थी, लेकिन पूर्वजन्मों के कर्मों के कारण किसी ने उसे पत्नी रूप में स्वीकार नहीं किया। इससे दुखी होकर वह तपस्या करने लगी। उसकी उग्र तपस्या के कारण भगवान शिव प्रसन्न हए और उन्होंने द्रौपदी से कहा तू मनचाहा वरदान मांग ले। इस पर द्रौपदी इतनी प्रसन्न हो गई कि उसने बार-बार कहा मैं सर्वगुणयुक्त पति चाहती हूं। भगवान शंकर ने कहा तूने मनचाहा पति पाने के लिए मुझसे पांच बार प्रार्थना की है। इसलिए तुझे दुसरे जन्म में एक नहीं पांच पति मिलेंगे। तब द्रौपदी ने कहा मैं तो आपकी कृपा से एक ही पति चाहती हूं। इस पर शिवजी ने कहा मेरा वरदान व्यर्थ नहीं जा सकता है। इसलिए तुझे पांच पति ही प्राप्त होंगे।


इस तरह हुआ द्रोणाचार्य का जन्म...?


विवाह के बाद में द्रोपदी पांचों पांडव के एक-एक पुत्र को जन्म दिया। युधिष्ठिर के पुत्र का नाम प्रतिविन्ध्य, भीमसेन से उत्पन्न पुत्र का नाम सुतसोम, अर्जुन के पुत्र का नाम श्रुतकर्मा, नकुल के पुत्र का नाम शतानीक, सहदेव के पुत्र का नाम श्रुतसेन रखा गया।


गंगा ने क्यों बहाया अपने पुत्रों को नदी में...?


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हनुमान जी के एक पुत्र भी था, जानिए कौन था वह....?

पवनपुत्र हनुमानजी के विषय में यह सभी जानते हैं कि वह बाल ब्रह्मचारी थे| प्रभु श्रीराम की सेवा में लीन होकर उन्होंने विवाह नहीं किया| लेकिन मकरध्वज को उनका पुत्र कहा जाता है। अब प्रश्न उठता है कि जब विवाह नहीं की तो हनुमान जी का बेटा कहां से आया? वाल्मीकि रामायण के अनुसार, हनुमानजी सीता की खोज में लंका पहुंचे और मेघनाद द्वारा पकड़े जाने पर उन्हें रावण के दरबार में प्रस्तुत किया गया, तब रावण ने उनकी पूंछ में आग लगवा दी थी और हनुमान ने जलती हुई पूंछ से लंका जला दी। लंका जलाते समय आग की तपिश के कारण हनुमानजी को बहुत पसीना आ रहा था। इसलिए लंका दहन के बाद जब उन्होंने अपनी पूँछ में लगी आग को बुझाने के लिए समुद्र में छलाँग लगाई तो उनके शरीर से पसीने के एक बड़ी-सी बूँद समुद्र में गिर पड़ी। उस समय एक बड़ी मछली ने भोजन समझ वह बूँद निगल ली। उसके उदर में जाकर वह बूँद एक शरीर में बदल गई।

एक दिन पाताल के असुरराज अहिरावण के सेवकों ने उस मछली को पकड़ लिया। जब वे उसका पेट चीर रहे थे तो उसमें से वानर की आकृति का एक मनुष्य निकला। वे उसे अहिरावण के पास ले गए। अहिरावण ने उसे पाताल पुरी का रक्षक नियुक्त कर दिया। यही वानर हनुमान पुत्र ‘मकरध्वज’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जब राम-रावण युद्ध हो रहा था, तब रावण की आज्ञानुसार अहिरावण राम-लक्ष्मण का अपहरण कर उन्हें पाताल पुरी ले गया। उनके अपहरण से वानर सेना भयभीत व शोकाकुल हो गयी। लेकिन विभीषण ने यह भेद हनुमान के समक्ष प्रकट कर दिया। तब राम-लक्ष्मण की सहायता के लिए हनुमानजी पाताल पुरी पहुँचे।

जब उन्होंने पाताल के द्वार पर एक वानर को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए। उन्होंने मकरध्वज से उसका परिचय पूछा। मकरध्वज अपना परिचय देते हुआ बोला-“मैं हनुमान पुत्र मकरध्वज हूं और पातालपुरी का द्वारपाल हूँ।” मकरध्वज की बात सुनकर हनुमान क्रोधित होकर बोले- “यह तुम क्या कह रहे हो? दुष्ट! मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। फिर भला तुम मेरे पुत्र कैसे हो सकते हो?” हनुमान का परिचय पाते ही मकरध्वज उनके चरणों में गिर गया और उन्हें प्रणाम कर अपनी उत्पत्ति की कथा सुनाई। हनुमानजी ने भी मान लिया कि वह उनका ही पुत्र है।

लेकिन यह कहकर कि वे अभी अपने श्रीराम और लक्ष्मण को लेने आए हैं, जैसे ही द्वार की ओर बढ़े वैसे ही मकरध्वज उनका मार्ग रोकते हुए बोला- “पिताश्री! यह सत्य है कि मैं आपका पुत्र हूँ लेकिन अभी मैं अपने स्वामी की सेवा में हूँ। इसलिए आप अन्दर नहीं जा सकते।” हनुमान ने मकरध्वज को अनेक प्रकार से समझाने का प्रयास किया, किंतु वह द्वार से नहीं हटा। तब दोनों में घोर य़ुद्ध शुरु हो गया। देखते-ही-देखते हनुमानजी उसे अपनी पूँछ में बाँधकर पाताल में प्रवेश कर गए। हनुमान सीधे देवी मंदिर में पहुँचे जहाँ अहिरावण राम-लक्ष्मण की बलि देने वाला था। हनुमानजी को देखकर चामुंडा देवी पाताल लोक से प्रस्थान कर गईं। तब हनुमानजी देवी-रूप धारण करके वहाँ स्थापित हो गए।

कुछ देर के बाद अहिरावण वहाँ आया और पूजा अर्चना करके जैसे ही उसने राम-लक्ष्मण की बलि देने के लिए तलवार उठाई, वैसे ही भयंकर गर्जन करते हुए हनुमानजी प्रकट हो गए और उसी तलवार से अहिरावण का वध कर दिया। उन्होंने राम-लक्ष्मण को बंधन मुक्त किया। तब श्रीराम ने पूछा-“हनुमान! तुम्हारी पूँछ में यह कौन बँधा है? बिल्कुल तुम्हारे समान ही लग रहा है। इसे खोल दो।” हनुमान ने मकरध्वज का परिचय देकर उसे बंधन मुक्त कर दिया। मकरध्वज ने श्रीराम के समक्ष सिर झुका लिया। तब श्रीराम ने मकरध्वज का राज्याभिषेक कर उसे पाताल का राजा घोषित कर दिया और कहा कि भविष्य में वह अपने पिता के समान दूसरों की सेवा करे।

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गर्भावस्था के दौरान स्तन दर्द को कैसे करें दूर......

मां बनना सबसे बड़े सौभाग्य की बात है। लेकिन जब महिलाएं गर्भावस्था के दौर से गुजरती हैं तो उनको स्वास्थ्य से सम्बंधित कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसमें से एक समस्या है स्तनों में दर्द। बहुत सी महिलाओ को गर्भावस्था के दौरान ये समस्या रहती है| अक्सर महिलाये शिकायत करती है की उन्हें स्तन दर्द हो रहा है| 

डॉक्टरों के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान शरीर में कुछ बदलाव आते है| ब्लड सर्कुलेशन और स्तन का साइज भी बढ जाता है| डॉक्टरों की सलाह है कि गर्भावस्था के दिनों में स्तनों को भली प्रकार धोना चाहिए| यदि निप्पल्स बैठे हुए और ढीले हों तो उन्हें आहिस्ता से अंगुलियों से पकड़कर खींचना व मालिश द्वारा उन्नत व पर्याप्त उठे हुए बनाना चाहिए, ताकि नवजात शिशु के मुंह में भलीभांति दिए जा सकें। 

इसके अलावा डॉक्टरों का यह भी कहना है कि कभी-कभी निप्पल्स में कट लग जाता है और इसकी वजह से भी स्तनों में दर्द होता है। इसके लिए थोड़ा सा शुद्ध घी या गाय के दूध का लें, सुहागा फुलाकर पीसकर इसमें मिला दें। एक चुटकी गंधक भी मिला लें। इन तीनों को अच्छी तरह मिलाकर पेस्ट जैसा कर लें और स्तनों के निप्पल्स पर दिन में 3-4 बार लगाएं। ताजे मक्खन में थोड़ा सा कपूर मिलाकर लगाने से भी लाभ होता है।

हो सके तो ज्यादा तली हुई चीजे ना खाए| कपडे हमेशा अपने सुविधानुसार पहने ना ज्यादा टाइट पहने, ना ज्यादा ढीले। अगर आपको ज्यादा ही दर्द हो रहा है तो अपने डॉक्टर के पास जाये और जाँच कराये।

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सर्दियों में कुछ इस तरह करें पैरों की देखभाल

सर्दी शुरू हो गई है| सर्दी आते ही त्वचा संबधी परेशानियां जैसे रूखापन, त्वचा का फटना और त्वचा की रौनक चली जाना कई ऐसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। खासतौर पर सर्दियों में पैरों को कई प्रकार की समस्याओं से गुजरना पड़ता है। ऐसे में पैरो की विशेष देखभाल की जरूरत होती है। इसलिए सर्दियों में पैरों की देखभाल के आप इन बातों का ध्यान रखें:

सर्दियों के दिनों में पैरों की त्‍वचा को सूखा न रहने दें। उस पर क्रीम आदि लगाते रहें ताकि उनकी नमी बरकरार रहें। दिन में 3 से 4 बार पैरों पर मॉश्‍चराइजर लगाएं। यदि आपकी एडियां फट रही हैं तो रात को सोने से पहले पैरों को गुनगुने पानी में कुछ देर के लिए डुबो कर रखें और फटी एडियों को प्यूमिक स्टोन से रगडकर साफ करें। इससे मृत त्वचा बाहर निकल जाएगी और आपकी एडियां मुलायम बनी रहेंगी।

पैरों पर जीम धूल-मिट्टी व गंदगी को साफ करने के लिए एक टब में हल्का गरम पानी लेकर उसमें 3 चम्मच नमक व सुहागा डाल लें। अब इस पानी में पैरों को डुबोकर 10 मिनट बैठ जाएं। ऐसा कर आप देखेंगे कि कुछ देर बाद आपके पैरों की थकान दूर होने के साथ आपके पैरों में जीम धूल-मिट्टी भी पानी में ऊपर आज जाएगी। हमेशा आरामदायक जूते ही पहनें जिससे आपके पैरो को काफी जगह मिल सके। एडियां फटी होने पर या पैरों में खुश्की होने पर सख्त जूतों से दर्द बढ़ सकता है।

पैरो को हर रोज रात को इस प्रकार साफ कर सुखायें और सुखाने के बाद अपने पैरों पर लोशन लगाएं और उससे इन्हें पूरी तरह से नम कर लें| सूखी त्वचा को कैंची से काटने को कोशिश न करें क्योंकि इससे आप अपनी काफी त्वचा निकाल सकते हैं, जो कि काफी दर्दभरी होगी और इससे आपके पैरों में संक्रमण होने की भी आशंका होती है। एक चम्मच तेल में दो चम्मच चीनी मिला कर हाथों और पैरों पर रगड़े, ऐसा करने से पैर नरम हो जाते हैं। इसके लिए सूरजमुखी का तेल भी बहुत लाभकारी होता है।

नारियल, जैतून या सरसों जैसे किसी भी प्राकृतिक तेल की मालिश करना पैरों की त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होता है। एक चम्मच नारियल तेल में दो चम्मच चीनी मिला कर पैरों पर रगडें। इससे त्वचा मुलायम हो जाती है। इसके लिए जैतून का तेल भी बहुत लाभकारी होता है। रात को सोने से पहले एक चम्मच मलाई में नीबू का रस मिलाकर उसे पैरों पर अच्छी तरह रगडें और बीस मिनट बाद गीले कॉटन से पोंछकर साफ कर लें। त्वचा को कोमल बनाने के लिए अच्छी क्वॉलिटी के फुटक्रीम का इस्तेमाल करें।

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माहवारी के दर्द में आराम दिलाए ये उपाय

महिलाओं के लिए हर माह के कुछ दिन कष्टप्रद होते हैं। हालांकि प्रजनन क्षमता व स्त्री स्वास्थ्य के लिए यह जरूरी भी है। बदलती जीवनशैली, प्रदूषण और खानपान में बदलाव की वजह से ज्यादातर महिलाएं माहवारी के दिनों में दर्द की समस्या से परेशान रहती हैं लेकिन शर्म या झिझक के कारण डॉक्टर से परामर्श लेने के बजाय पेन किलर का इस्तेमाल करती रहती हैं जो हानिकारक भी साबित हो सकती है| ऐसे में इस समस्या से आराम के लिए ऐसे कई घरेलू उपाय हैं जिन्हें मासिक धर्म के समय होने वाले तेज दर्द में आराम के लिए अपनाया जा सकता है। 

मासिक चक्र के समय अक्सर महिलाओं में गैस्ट्रिक की समस्या बढ़ जाती हैं, जिसकी वजह से भी पेट में तेज दर्द होने लगता है। इससे निपटने के लिए अजवाइन का सेवन बेहद कारगर विकल्प है। ऐसा होने पर आधा चम्मच अज्वाइन और आधा चम्मच नमक को मिलाकर गुनगुने पानी के साथ पीने से दर्द से तुरंत राहत मिल जाती है। 

इसके अलावा पीरियड्स के दौरान पपीते का सेवन करने से लाभ होता है। दरअसल कई बार पीरियट्स के दौरान फ्लो ठीक प्रकार से नहीं हो पाता है, जिस कारण महिलाओं को अधिक दर्द होता है। ऐसे में पपीते का सेवन से पीरियड्स के दौरान फ्लो ठीक से होता है जिससे दर्द नहीं होता। इसके अलावा पीरियड्स में दर्द होने पर एक कप पानी में अदरक को बारीक काटकर उबाल लें। अगर स्वाद अच्छा न लगे तो इसमें स्वादानुसार शक्कर भी मिला सकती हैं। अब दिन में तीन बार भोजन के बाद इसका सेवन करें। दर्द में राहत मिलेगी।

दूध कैल्शियम का अच्छा स्रोत है, मासिक धर्म के दर्द से छुटकारा पाने के लिए एक गिलास दूध जरूर पिए यह आपकी कैल्शियम की कमी को भी पूरा करेगी साथ ही दर्द में भी आराम दिलाएगी। तुलसी एक बेहतरीन नैचुरल पेन किलर है जिसे पीरियड्स के दर्द में बेझिझक ले सकते हैं। इसमें मौजूद कैफीक एसिड दर्द में आराम पहुंचाता है। ऐसे में दर्द के समय तुलसी के पत्ते को चाय में मिलाकर पीने से भी आराम मिलता है।


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महाभारत के युद्ध में क्यों नहीं शामिल हुए बलराम....?



महाभारत वह महाकाव्य है जिसके बारे में जानता तो हर कोई है लेकिन आज भी कुछ ऐसे चीजें हैं जिसे जानने वालों की संख्या कम है| क्या आपको पता है महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम क्यों नहीं शामिल हुए थे? महाभारत युद्ध में देश-विदेश की सेना ने भाग लिया था। माना जाता है कि कौरवों के साथ कृष्ण की सेना सहित कई जगहों के योद्धा शामिल थे, तो पांडवों के साथ सिर्फ कृष्ण और उनके मित्र राजाओं की सेना थी। लेकिन इस युद्ध में दो राजा शामिल नहीं हुए थे इनमें से एक तो बलराम और दूसरे भोजकट के राजा और रुक्मणि के बड़े भाई रुक्मी थे।

तो इसलिए महाभारत युद्ध में कृष्ण को क्यों उठाना पड़ा था चक्र?


भगवान कृष्ण को उनके बड़े भाई बलराम ने कई बार समझाया कि हमें युद्ध में शामिल नहीं होना चाहिए, क्योंकि दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही हमारे मित्र हैं। ऐसे धर्मसंकट के समय दोनों का ही पक्ष न लेना उचित होगा। ऐसे में दोनों भाई धर्मसंकट में पड़ गए, लेकिन कृष्ण ने इस समस्या का भी हल निकाल लिया था। उन्होंने दुर्योधन से ही कह दिया था कि तुम मुझे और मेरी सेना दोनों में से किसी एक का चयन कर लो। दुर्योधन ने कृष्ण की सेना का चयन किया।

इस तरह हुआ द्रोणाचार्य का जन्म...?

महाभारत में वर्णित है कि जिस समय युद्ध की तैयारियां हो रही थीं और उधर एक दिन भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम, पांडवों की छावनी में अचानक पहुंचे। दाऊ भैया को आता देख श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर आदि बड़े प्रसन्न हुए। सभी ने उनका आदर किया। सभी को अभिवादन कर बलराम, धर्मराज के पास बैठ गए। उन्होंने कहा कि मैंने कृष्ण को न जाने कितनी बार समझाया हमारे लिए तो पांडव और कौरव दोनों ही एक समान हैं। दोनों को मूर्खता करने की सूझी है। इसमें हमें बीच में पड़ने की आवश्यकता नहीं, पर कृष्ण ने मेरी एक न मानी।

गंगा ने क्यों बहाया अपने पुत्रों को नदी में...?

कृष्ण को अर्जुन के प्रति स्नेह इतना ज्यादा है कि वे कौरवों के विपक्ष में हैं। अब जिस तरफ कृष्ण हों, उसके विपक्ष में कैसे जाऊं? भीम और दुर्योधन दोनों ने ही मुझसे गदा सीखी है। दोनों ही मेरे शिष्य हैं। दोनों पर मेरा एक जैसा स्नेह है। इन दोनों कुरुवंशियों को आपस में लड़ते देखकर मुझे अच्छा नहीं लगता अतः में तीर्थयात्रा पर जा रहा हूं।

जाने धृतराष्ट्र अंधे व पाण्डु पीले क्यों थे?

जाने धृतराष्ट्र के सौ पुत्रों के नाम



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हनुमान जी के विवाह का रहस्य...

 कहते हैं भगवान रामभक्त हनुमान की उपासना से जीवन के सारे कष्ट, संकट मिट जाते है। माना जाता है कि हनुमान एक ऐसे देवता है जो थोड़ी-सी प्रार्थना और पूजा से ही शीघ्र प्रसन्न हो जाते है। इतिहास साक्षी है जब-जब भक्तों पर संकट के बादल मंडराए भगवान ने अपने भक्तो की रक्षा के लिए किसी न किसी रूप में अवतार लेकर उनकी रक्षा की है। हनुमान जी को बाल ब्रह्मचारी माना जाता है इसलिए हनुमान जी लंगोट धारण किए हर मंदिर और तस्वीरों में अकेले दिखते हैं। कभी भी अन्य देवताओं की तरह हनुमान जी को पत्नी के साथ नहीं देखा होगा। लेकिन अगर आप हनुमान के साथ उनकी पत्नी को देखना चाहते हैं तो आपको आंध्र प्रदेश जाना होगा।

हैदराबाद से करीब 220 किलोमीटर दूर तेलंगाना के खम्मन जिले में एक ऐसा मंदिर है जहाँ पवनपुत्र हनुमान अपनी पत्नी सुर्वचला के साथ विराजमान हैं| किंवदंती है कि सुवर्चला सूर्य देव की पुत्री हैं। जिनका विवाह पवनपुत्र हनुमानजी के साथ हुआ था। मान्यता है कि जो भी हनुमानजी और उनकी पत्नी के दर्शन करता है, उन भक्तों के वैवाहिक जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं और पति-पत्नी के बीच प्रेम बना रहता है।

पाराशर संहिता के अनुसार हनुमानजी अविवाहित नहीं, विवाहित हैं। हनुमानजी ने सूर्य देव को अपना गुरु बनाया था। सूर्य देव के पास 9 दिव्य विद्याएं थीं। इन सभी विद्याओं का ज्ञान बजरंग बली प्राप्त करना चाहते थे। सूर्य देव ने इन 9 में से 5 विद्याओं का ज्ञान तो हनुमानजी को दे दिया, लेकिन शेष 4 विद्याओं के लिए सूर्य के समक्ष एक संकट खड़ा हो गया। शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान सिर्फ उन्हीं शिष्यों को दिया जा सकता था जो विवाहित हों।

हनुमानजी बाल ब्रह्मचारी थे, इस कारण सूर्य देव उन्हें शेष चार विद्याओं का ज्ञान देने में असमर्थ हो गए। समस्या के निराकरण के लिए सूर्य देव ने हनुमानजी से विवाह करने की बात कही। पहले तो हनुमानजी विवाह के लिए राजी नहीं हुए, लेकिन उन्हें शेष 4 विद्याओं का ज्ञान पाना ही था। तब हनुमानजी ने विवाह के लिए हां कर दी। जब हनुमानजी विवाह के लिए मान गए तब उनके योग्य कन्या के रूप में सूर्य देव की पुत्री सुवर्चला को चुना गया। सूर्य देव ने हनुमानजी से कहा कि सुवर्चला परम तपस्वी और तेजस्वी है और इसका तेज तुम ही सहन कर सकते हो।

सुवर्चला से विवाह के बाद तुम इस योग्य हो जाओगे कि शेष 4 दिव्य विद्याओं का ज्ञान प्राप्त कर सको। सूर्य देव ने यह भी बताया कि सुवर्चला से विवाह के बाद भी तुम सदैव बाल ब्रह्मचारी ही रहोगे, क्योंकि विवाह के बाद सुवर्चला पुन: तपस्या में लीन हो जाएगी। इस तरह हनुमानजी और सुवर्चला का विवाह सूर्य देव ने करवा दिया। विवाह के बाद सुवर्चला तपस्या में लीन हो गईं और हनुमानजी से अपने गुरु सूर्य देव से शेष 4 विद्याओं का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया। इस प्रकार विवाह के बाद भी हनुमानजी ब्रह्मचारी बने हुए हैं। 

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जानिए कैसे हुआ पवनसुत हनुमान का जन्म.....?

कलियुग में बहुत जल्दी प्रसन्न होने वाले देवी-देवताओं में से एक हैं हनुमान जी। आपको बता दें कि जीवन में जब भी कोई अत्यधिक मुश्किल प्रतीत हो रहा हो या लाख कोशिशों के बाद भी वह पूर्ण नहीं हो पा रहा हो या बार-बार बाधाएं उत्पन्न हो रही हों तब हनुमानजी को प्रसन्न कर उन रुकावटों को दूर किया जा सकता है। हनुमान जी को हिन्दू धर्म में कष्ट विनाशक और भय नाशक देवता के रूप में जाना जाता है| हनुमान जी अपनी भक्ति और शक्ति के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं| सारे पापों से मुक्त करने ओर हर तरह से सुख-आनंद एवं शांति प्रदान करने वाले हनुमान जी की उपासना लाभकारी एवं सुगम मानी गयी है। पुराणों के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार, स्वाति नक्षत्र मेष लग्न में स्वयं भगवान शिवजी ने अंजना के गर्भ से रुद्रावतार लिया। क्या आप जानते हैं कि हनुमान जी का जन्म कैसे हुआ अगर नहीं जानते हैं तो आज हम आपको बताते हैं कि कैसे जन्मे पवनसुत हनुमान- आपको बता दें कि हनुमान के जन्म के संबंध में धर्मग्रंथों में कई कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार-

भगवान विष्णु के मोहिनी रूप को देखकर लीलावश शिवजी ने कामातुर होकर अपना वीर्यपात कर दिया। सप्तऋषियों ने उस वीर्य को कुछ पत्तों में संग्रहित कर वानरराज केसरी की पत्नी अंजनी के गर्भ में स्थापित कर दिया, जिससे अत्यंत तेजस्वी एवं प्रबल पराक्रमी श्री हनुमानजी उत्पन्न हुए। हनुमान जी सब विद्याओं का अध्ययन कर पत्नी वियोग से व्याकुल रहने वाले सुग्रीव के मंत्री बन गए। उन्होंने पत्नीहरण से खिन्न व भटकते रामचंद्रजी की सुग्रीव से मित्रता कराई। सीता की खोज में समुद्र को पार कर लंका गए और वहां उन्होंने अद्भुत पराक्रम दिखाए। हनुमान ने राम-रावण युद्ध ने भी अपना पराक्रम दिखाया और संजीवनी बूटी लाकर लक्ष्मण के प्राण बचाए। अहिरावण को मारकर लक्ष्मण व राम को बंधन से मुक्त कराया।

हनुमान जी के विवाह का रहस्य...

वहीँ, दूसरी कथानुसार हनुमान की माता अंजना संतान सुख से वंचित थी। कई जतन करने के बाद भी उन्हें निराशा ही हाथ लगी। इस दुःख से पीड़ित अंजना मतंग ऋषि के पास गईं, तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पप्पा सरोवर के पूर्व में एक नरसिंहा आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है वहां जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करना पड़ेगा तब जाकर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी। अंजना ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया था बारह वर्ष तक केवल वायु का ही भक्षण किया तब वायु देवता ने अंजना की तपस्या से खुश होकर उसे वरदान दिया जिसके परिणामस्वरूप चैत्र शुक्ल की पूर्णिमा को अंजना को पुत्र की प्राप्ति हुई। वायु के द्वारा उत्पन्न इस पुत्र को ऋषियों ने वायु पुत्र नाम दिया।

एक अन्य कथा के अनुसार महाराजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ से प्राप्त जो हवि अपनी रानियों में बाँटी थी उसका एक भाग गरुड़ उठाकर ले गया और उसे उस स्थान पर गिरा दिया जहाँ अंजनी पुत्र प्राप्ति के लिए तपस्या कर रही थी। हवि खा लेने से अंजनी गर्भवती हो गई और कालांतर में उसने हनुमानजी को जन्म दिया। वहीँ, हनुमान के जन्म-स्थान के बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है। मध्यप्रदेश के आदिवासियों का कहना है कि हनुमानजी का जन्म राँची जिले के गुमला परमंडल के ग्राम अंजन में हुआ था। कर्नाटकवासियों की धारणा है कि हनुमानजी कर्नाटक में पैदा हुए थे। पंपा और किष्किंधा के ध्वंसावशेष अब भी हाम्पी में देखे जा सकते हैं। अपनी रामकथा में फादर कामिल बुल्के ने लिखा है कि कुछ लोगों के अनुसार हनुमानजी वानर-पंथ में पैदा हुए थे।

इस तरह बजरंगबली कहलाये हनुमान-

श्रीराम चरित मानस के अनुसार, हनुमानजी की माता का नाम अंजनी और पिता वानरराज केसरी है। केसरी नंदन जब काफी छोटे थे तब खेलते समय उन्होंने सूर्य को देखा। सूर्य को देखकर अजंनीपुत्र ने सोचा कि यह कोई खिलौना होगा और वे सूर्य की उड़ चले। जन्म से ही मारूति को दैवीय शक्तियां प्राप्त थी अत: वे कुछ ही समय में सूर्य के समीप पहुंच गए और अपना आकार बड़ा करके सूर्य को मुंह में निगल लिया।

पवनपुत्र द्वारा जब सूर्य को निगल लिया गया तब सृष्टि में अंधकार व्याप्त हो गया इससे सभी देवी-देवता चिंतित हो गए। सभी देवी-देवता पवनपुत्र के पास विनति करने पहुंचे कि वे सूर्य को छोड़ दें लेकिन बालक मारूति ने किसी की बात नहीं मानी। इससे क्रोधित होकर इंद्र ने उनके मुंह पर वज्र से प्रहार कर दिया। इस वज्र प्रहार से उनकी ठुड्डी टूट गई। ठुड्डी को हनु भी कहा जाता है। जब मारूति की ठुड्डी टूट गई तब पवन देव ने अपने पुत्र की यह दशा देखकर अति क्रोधित हो गए और सृष्टि से वायु का प्रवाह रोक दिया। इससे और अधिक संकट बढ़ गया। तब भी देवी-देवताओं ने बालक मारूति को अपनी-अपनी शक्तियों उपहार स्वरूप दी। तब पवन देव का क्रोध शांत हुआ। तभी से मारूति की ठुड्डी अर्थात् हनु टूट जाने की वजह से सभी देवी-देवताओं ने इनका नाम हनुमान रखा। 

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