इसी तालाब का पानी पीकर राजा सूरजसेन को मिला था जीवनदान


मध्य प्रदेश का एक प्रमुख शहर है ग्वालियर| ग्वालियर अपने पुरातन ऎतिहासिक संबंधों, दर्शनीय स्थलों और एक बड़े सांस्कृतिक, औद्योगिक और राजनीतिक केंद्र के रूप में जाना जाता है। इसीलिए यहाँ हर वर्ष यहाँ देश- विदेश से हज़ारों की संख्या में पर्यटक आते हैं| इस शहर को उसका नाम उस ऐतिहासिक पत्थरों से बने क़िले के कारण दिया जाता है, जो एक अलग-थलग, सपाट शिखर वाली 3 किलोमीटर लंबी तथा 90 मीटर ऊँची पहाड़ी पर बना है। लेकिन क्या आप जानते है इस शहर का नाम ग्वालियर कैसे पड़ा?


जनश्रुति के अनुसार, आठवीं शताब्दी में एक राजा हुए सूरजसेन| एक दिन राजा जंगल में रास्ता भटक गए तो उन्हें जोरों की प्यास लगी| पानी की तलाश में राजा सूरजसेन इधर-धरा भटक रहे थे कि अचानक उनकी भेंट एक संत से हो गई जिसका नाम था ग्वालिपा| सूरजसेन उस संत से मिलकर बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने संत से कहा कि महत्मन मैं बहुत प्यासा हूँ| इस पपर संत राजा को एक तालाब के पास ले गया| तालाब का पानी पीकर राजा सूरजसेन ने अपनी प्यास बुझाई| उस तालाब का पानी पीकर कुष्ठ रोग से पीड़ित राजा को जीवनदान मिल गया| जिस तालाब में पानी पीने से राजा को जीवनदान मिला उसी तालाब को आज सूरजकुंड के नाम से जाना जाता है| 

जीवनदान मिलने के बाद जब राजा ने उस संत को कुछ देने के लिए कहा तो संत ने कहा महाराज जंगल में इस पहाड़ी पर साधना कर रहे कई साधुओं के यज्ञ में जंगली जानवर विघ्न पैदा करते हैं, इसलिए उनकी सुरक्षा के लिए पहाड़ी पर एक दीवार बनवा दो। इसके बाद सूरज सेन ने किले के अंदर एक महल बनवाया, जिसका नाम संत गालिप से प्रभावित होकर उनके नाम पर ग्वालियर रखा। 

यह शहर सदियों से राजपूतों की प्राचीन राजधानी रहा है, चाहे वे प्रतिहार रहे हों या कछवाहा या तोमर। इस शहर में इनके द्वारा छोडे ग़ये प्राचीन चिह्न स्मारकों, क़िलों, महलों के रूप में मिल जाएंगे। सहेज कर रखे गए अतीत के भव्य स्मृति चिह्नों ने इस शहर को पर्यटन की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बनाता है। यह नगर सामंती रियासत ग्वालियर का केंद्र था। जिस पर 18वीं सदी के उत्तरार्द्ध में मराठों के सिंधिया वंश का शासन था। रणोजी सिंधिया द्वारा 1745 में इस वंश की बुनियाद रखी गई और महादजी (1761-94) के शासनकाल में यह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचा।

ليست هناك تعليقات: