अपनी कार में बैठे हुए आप लाल बत्ती के हरा होने का इंतजार कर रहे हों या किसी बाजार एवं भीड़ भरे इलाके में कार खड़ी कर उसके अंदर बैठे किसी का इतजार कर रहे हो, और कोई अनजान व्यक्ति आपकी कार का सीसा ठकठकाए तो भूलकर भी खोलिए मत। वरना आप राष्ट्रीय राजधानी में सक्रिय 'ठक-ठक' गिरोह का शिकार हो सकते हैं।
राष्ट्रीय राजधानी में सक्रिय यह 'ठक-ठक' गिरोह आपका ध्यान चूकते ही कार में से आपकी मूल्यवान वस्तुएं लूट या चुरा सकता है। पुलिस ने बताया कि नई दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में इस तरह के कई गिरोह सक्रिय हैं, और इस वर्ष अब तक काफी लोगों को लूट चुके हैं।
जनवरी से लेकर 15 सितंबर तक यह गिरोह ऐसी कई लूट की वारदातों को अंजाम दे चुका है, जिनमें करोल बाग से एक कार से 40 लाख रुपये से ज्यादा की चोरी, चांदनी चौक के एक व्यापारी से 60 लाख रुपये से ज्यादा की नकदी लूट और सफदरजंग के एक जौहरी से उत्तर प्रदेश के मुरादनगर से 50 लाख रुपयों के जवाहरातों की लूट शामिल है।
चांदनी चौक के व्यापारी मृदुल जैन ने अपने साथ हुई लूट की घटना के बारे में बताया कि वह उप्र के मेरठ से अपनी कार से आ रहे थे कि 14 एवं 15 वर्ष की आयु के दो किशोरों ने उनकी कार का शीशा खटखटा कर उन्हें बताया कि उनकी कार से तेल रिस रहा है।
मृदुल ने बताया, "जब मैं तेल के रिसाव की जांच के लिए कार से उतरा, इसी दौरान कार की पिछली सीट पर रखा 60 लाख रुपयों से भरा मेरा बैग चोरी हो गया। दोनों किशोर भी गायब थे।"
पुलिस उपायुक्त (दक्षिण) बी. एस. जायसवाल ने बताया, "दक्षिणी दिल्ली पुलिस ने मई महीने में दोनों किशोरों को धर दबोचा। दोनों ने इस तरह के कई मामलों में अपनी संलिप्तता स्वीकार कर ली।"
सितंबर की शुरुआत में दिल्ली पुलिस ने विभिन्न स्थानों से अलग-अलग गैंग के तीन व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। पुलिस उपायुक्त (दक्षिणी पूर्व) पी. करुणाकरन ने बताया, "गिरफ्तार संदिग्धों में एक बात समान पाई गई कि वे सभी तमिलनाडु के त्रिची के रहने वाले हैं।"
लूट एवं चोरी की वारदातों को अंजाम देने वाले इन गिरोहों को 'ठक-ठक' गिरोह नाम इसलिए दिया गया है, क्योंकि वे पहले कार का शीशा खटखटाते हैं, फिर शीशा खुलने पर कार मालिक को पता चलने से पहले कार में पड़ी मूल्यवान वस्तुएं चुरा ले जाते हैं।
अतिरिक्त पुलिस आयुक्त कुलवंत सिंह ने बताया कि वे किसी संगठित गिरोह का हिस्सा नहीं हैं। उन्होंने बताया कि वे पिछले आठ वर्षो से राजधानी में सक्रिय हैं और उनकी संख्या का सही-सही पता तो नहीं है, लेकिन वे हजारों की संख्या में हो सकते हैं।
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