सुचित्रा सेन: 59 फिल्मों की नायिका एक गूढ़ पहेली

बांग्ला फिल्मों की दिलकश महानायिका सुचित्रा सेन ने अपनी सुंदरता, भव्यता और असंख्य भूमिकाओं के माध्यम से तीन पीढ़ियों को सम्मोहित किया। फिर भी तीन दशकों से लंबे आत्म-वैराग्य की वजह से उनकी तुलना हॉलीवुड की आदर्श नायिका ग्रेटा गार्बो से हुई। अपने 26 साल के करियर में महानायिका सुचित्रा ने 59 फिल्मों में अभिनय किया। उन्होंने बांग्ला फिल्मों के सबसे आदर्श पुरुष उत्तम कुमार के साथ बांग्ला सिनेमा के स्वर्णयुग में प्रवेश किया। सुचित्रा ने 'देवदास', 'बंबई का बाबू', 'आंधी', 'ममता' और 'मुसाफिर' सरीखी हिंदी फिल्मों में यादगार भूमिकाएं निभाईं।

अपनी खूबसूरती और भव्यता से पीढ़ियों को सम्मोहित करने वाली 82 वर्षीया अभिनेत्री ने शुक्रवार को कोलकाता के नर्सिग होम में अंतिम सांस ली। एक चिकित्सक ने बताया कि वह पिछले 26 दिनों से सांस संबंधी तकलीफ की वजह से यहां उपचाराधीन थीं। वह भारत और बांग्लादेश दोनों ही देशों में बांग्लाभाषी लोगों के बीच लोकप्रिय थीं। उनकी अंतिम फिल्म 'प्रणय पाशा' 1978 में प्रदर्शित हुई थी। हिंदी फिल्मों में उन्हें 'तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा', 'तुम आ गए हो नूर आ गई है..', 'रहे न रहे हम, महका करेंगे..' सरीखे गीतों वाले दृश्यों में उनके बेजोड़ अभिनय के लिए याद किया जाता है।

नामचीन ब्रिटिश फिल्म आलोचक डेरेक मैल्कम ने एक बार कहा था, "सुचित्रा बहुत, बहुत, बहुत सुंदर हैं। उन्हें अभिनय के लिए बहुत मशक्कत करने की जरूरत नहीं पड़ी।" हालांकि, सुचित्रा ने सभी फिल्मों में जबर्दस्त प्रस्तुतियां दीं। लेकिन उनमें से 52 फिल्में बांग्ला की रहीं और हिंदी की सात। बांग्ला फिल्म 'सात पाके बांधा' में एक महिला की मानसिक पीड़ा की बेजोड़ अभिव्यक्ति के लिए उन्हें 1963 में मॉस्को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का 'सिल्वर प्राइज' मिला था।

वह कई मामलों में नए चलन की शुरुआत करने वाली मानी जाती हैं। वर्ष 1947 में दिवानाथ सेन संग शादी के पांच वर्षो बाद फिल्मों में कदम रखना था। उन दिनों एक विवाहिता के लिए इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। हालांकि, कहा गया कि उनका वैवाहिक जीवन चट्टान की तरह मजबूत था। 6 अप्रैल, 1931 को हेडमास्टर पिता करुणामय दासगुप्ता और गृहिणी इंदिरा देवी के घर जन्मीं रमा दासगुप्ता को वर्ष 1952 में उसकी पहली फिल्म 'शेष कोथाय' से सुचित्रा नाम मिला। लेकिन यह फिल्म प्रदर्शित नहीं हो पाई।

वह अपनी अगली हास्य फिल्म 'शारेय चुआत्तर' में उत्तम संग नजर आईं। यह फिल्म सफल रही। इस जोड़ी ने 20 वर्षो तक दर्शकों को अपना गुलाम बनाए रखा। उन्होंने इसके बाद 30 फिल्में कीं। इनमें 'अग्निपरीक्षा', 'शाप मोचन' (1955), 'सागरिका' (1956), 'हारानो सुर' (1957), 'इंद्राणी' (1958), 'छाउवा पावा' (1959) और 'सप्तपदी' (1961) सरीखी फिल्में शामिल हैं। उन्हें 'दीप ज्वले जाइ' और 'उत्तर फाल्गुनी' सरीखी बांग्ला फिल्मों में उनके दमदार अभिनय के लिए जाना जाता है। सुचित्रा सेन को वर्ष 2012 में पश्चिम बंगाल सरकार ने अपने सर्वोच्च पुरस्कार 'बंग विभूषण' से सम्मानित किया था।
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